मोदी जी प्रधानमंत्री बनने के बाद जब पहली बार वाराणसी पहुंचे तो वे तमाम कार्यक्रमों के साथ एक काम और दिल्ली से सोंच कर गए थे कि वह बनारस के बुनकरों के लिए व्यापार सुविधा केंद्र व शिल्प संग्रहालय का शिलान्यास भी करेंगे और उन्होंने अपने पहले वाराणसी दौरे में यह किया। उनके साथ तब के केंद्रीय कपड़ा मंत्री संतोष गंगवार भी थे। मोदी जी ने उसके बाद एक बार कहा था कि बिना काशी के विकास के भारत विश्वगुरू नहीं बन सकता। जाहिर है उनके मन में काशी के विकास में वहां के बुनकरों का विकास भी शामिल था। इस व्यापार सुविधा केंद्र पर सरकार ने 147 करोड़ रुपये खर्च किए।
प्रधानमंत्री मोदी ने कई अवसरों पर कहा कि कृषि के बाद रोजगार देने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र टेक्सटाइल है। और यही एक ऐसा उद्योग है, जिसमें मालिक और मजदूर के बीच कोई अंतर नहीं है। मोदी जी के सामने बनारस के कपड़ा उद्योग को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने की चुनौती थी, क्योंकि पिछली सरकारों के उपेक्षापूर्ण नीतियों के कारण हस्तकरधा में लगे मजदूर बेहद परेशान होकर यह उद्योग छोड़ रहे थे। ना तो उन्हें कच्चा माल मिल रहा था और ना उन्हें तैयार माल का दाम मिल रहा था। तब उत्तरप्रदेश में सपा की सरकार थी। मोदी जी ने जब सपा सरकार से व्यापार केंद्र के लिए जमीन मांगी तो उन्होंने जमीन शहर से बहुत बाहर दिया। फिर भी व्यापार केंद्र खुला और फिर बुनकरों के दिन लौटने शुरू हुए।
वाराणसी का यह हस्तशिल्प, कुटीर उद्योग के रूप में फैला है। जिसमें बनारसी रेशमी साड़ी, कपड़ा उद्योग, कालीन उद्योग प्रमुख हैं। चूंकि ये सारे उद्योग मुख्य रूप से लेवर इंटेसिव होते हैं इसलिए इनपर ताला लगने का मतलब लोगों के सामने रोटी की समस्या आ जाती । 43 लाख से अधिक हथकरघा बुनकर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े हैं। इसलिए एक साथ कई परियोजनाओं पर काम करना जरूरी था। पीएम मोदी की पहल पर वाराणसी में बुनकरों के लिए योजनाएं शुरू हुईं।
प्रधानमंत्री मोदी ने काशी को सबसे पहले मेक इन इंडिया प्रोग्राम से जोड़ा। उन्होंने काशी मे कहा कि “हमें भारत की अर्थव्यवस्था में जिस प्रकार का बदलाव लाना है, उस बदलाव में एक तरफ मैन्युफेक्चरिंग ग्रोथ को बढ़ाना है, दूसरी तरफ उसका सीधा फायदा हिन्दुस्तान के नौजवानों को मिले, उसे रोजगार मिले ताकि गरीब से गरीब परिवार की आर्थिक स्थिति में बदलाव आए। वो गरीबी से मिडिल क्लास की ओर बढ़े और उसका पर्चेजिंग पावर बढ़े, इससे मैन्युफेक्चरर की संख्या बढ़ेगी, मैन्युफेक्चरिंग ग्रोथ बढ़ेगा, रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे, फिर एक बार बाजार बढ़ेगा।”
मोदी जी की खासियत ही यह है कि वह सिर्फ घोषणा में विश्वास नहीं करते। शिलान्यास के समय ही उद्घाटन का दिन निश्चय कर लते हैं। 22 सितंबर 2017 को प्रधानमंत्री ने इस व्यापार सुविधा केंद्र का उद्घाटन भी कर दिया, इसका नाम रखा गया ‘दीनदयाल हस्तकला संकुल। प्रधानमंत्री ने वाराणसी के हस्तकरघा उद्योग को मेक इन इंडिया के साथ साथ स्किल इंडिया कार्यक्रम से भी जोड़ दिया और कारीगरों को तकनीक एवं कौशलता का प्रशिक्षण भी दिया जाने लगा। इसके लिए 305 करोड़ रुपए की लागत से एक टेक्सटाइल फैसिलिटेशन सेंटर का निर्माण किया गया । साथ ही 9 स्थानों पर बुनकरों को उत्कृष्ट उत्पादन सुविधा के लिए कॉमन फैसिलिटेशन सेंटर भी बनाए गए।
प्रधानमंत्री मोदी कोई भी कार्यक्रम इस सोंच के साथ लेते हैं कि वह एक रोल मॉडल बन जाए । इसलिए उन्होंने वाराणसी में छह करोड़ रुपए की लागत से नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी की शाखा भी खुलवाई। साथ ही रीजनल सिल्क टेक्नोलॉजिकल रिसर्च स्टेशन की स्थापना की गई। मोदी जी यहीं नहीं रूके उन्होंने 31 करोड़ रुपए की लागत से हस्तशिल्प उद्योग सर्वांगीण विकास योजना भी शुरू की।
प्रशिक्षण के साथ पूंजी भी जरूरी है। यह मोदी जी बखूबी जानते हैं। इसलिए उन्होंने बुनकरों व छोटे व्यापारियों को मुद्रा योजना से जोडा। अब उन्हें 50 हजार रुपये से ले करके 10 लाख रुपये तक बिना गारंटी के लोन मिल रहा है। बुनकरों के लिए तो मुद्रा योजना में 10 हजार रुपये की मार्जिन मनी का भी प्रावधान है। ‘पहचान’ नाम से एक पहचान पत्र बुनकरों को दिया गया है जिसके जरिये पैसे सीधे उनके खाते में चले जाते हैं।
मोदी जी के लिए काशी का हस्तकरघा केवल उद्योग ही नहीं अध्यात्म भी है। वे इसमें कबीर की सेवा देखते हैं। उन्होंने कहा भी कि कबीर की काशी में बुनकारी सिर्फ एक कला नहीं, जीवन दर्शन भी है। कबीर ने जुलाहा के रूप में कर्म का संदेश दिया तो अपने जीवन दर्शन से अध्यात्म भी समझाया।
छोटी शुरूआत कर बड़े लक्ष्य तक पहंचना मोदी जी की आदत में शामिल है। उन्होंने काशी को विश्व बाजार के पटल पर एक मुकाम के साथ पहुंचाने का व्रत लिया है। इस समय दुनिया के 35 प्रतिशत कालीन बाजार पर भारत का कब्जा है। मोदी जी ने लक्ष्य किया है कि शीघ्र ही दुनिया के कालीन बाजार के 50 फीसदी हिस्से पर भारत का अधिकार होगा।
दुनिया काशी पहुंच रही है। वहीं दीनदयाल हस्तकला संकुल में 36वें कार्पेट एक्सपो की प्रदर्शनी लगी जिसमें दुनिया के 38 देशों के करीब 300 कालीन आयातक आए। देश के के कालीन निर्यातक भी पहुंचे। वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिये मोदी जी ने घोषणा की कि 50 प्रतिशत कालीन बाजार पर अपना कब्जा करने के लिए जल्दी ही कालीन उद्योग से जुड़े व्यापारियों, बुनकरों और उनके परिजनों लिए विस्तृत कार्ययोजना लेकर आएंगे। प्रधानमंत्री को चिंता सिर्फ बुनकरों की नहीं उनके बच्चों की भी है। उन्होंने बुनकरों के बच्चों के निए स्कूली व कॉलेज शिक्षा मुहैया का 75 प्रतिशत खर्च सरकार द्वारा उठाने की घोषणा भी की।
पीएम मोदी ने बुनकर उद्योग के भविष्य के लिए कुछ योजनाएं बनाई है। उन्होंने कहा है कि 2022 में भारत की आजादी के 75 साल पूरे हो रहे हैं, 2022 तक कालीन का निर्यात ढ़ाई गुना बढ़ाकर 25 हजार करोड़ रुपये करने का लक्ष्य हासिल करेंगे। उन्होंने कालीन कारोबार को फाइव एफ का फार्मूला दिया है। फार्म, फाइबर, फैक्ट्री, फैशन व फारेन इसके मूलभूत तत्व हैं। इसमें किसान, बुनकर, डिजाइनर, कारोबारी सभी समाहित हैं।
एक कारपेट एक्सपो में पीएम मोदी ने कहा था
मित्रों इसके पहले जब भी मैं अपने बुनकर भाइयों और बहनों से बात करता था कि तो वे एक बात जरूर कहते थे कि आगे उनके बच्चे यह काम नहीं करेंगे। इससे ज्यादा खतरनाक स्थिति क्या हो सकती थी? आज यदि हम कालीन के बाजार में दुनिया को लीड कर रहे हैं तो यह उतना ही आवश्यक है कि हम अपनी अगली पीढ़ी को इस उद्योग के लिए प्रोत्साहित करें।
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भदोही आईआईसीटी ने एक बी टेक कार्यक्रम शुरू किया है। हमारी योजना देश के अन्य भागों में भी इस तरह का प्रशिक्षण कार्यक्रम अन्य ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में चलाने की है। भारत का इस समय विश्व कालीन बाजार के 35 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा है। प्रधानमंत्री मोदी ने 50 प्रतिशत कालीन बाजार पर अपना कब्जा रखने का लक्ष्य तय किया है।
वाराणसी में लघु उद्योग के मामले जो एक और उल्लेखनीय चीज हुई है वह है खादी का विकास। आसानी से लोन और पूंजी में सब्सिडी मिलने से खादी से जुड़े लोग काफी उत्साहित है। कौसल विकास योजना के तहत 3,105 उम्मीदवारों का चयन किया गया है। कोयर बोर्ड ने भी अतंरराष्ट्रीय व्यापार मेले का आयोजन किया।
जैसा कि हम देख सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने काशी के बुनकरों व हस्तशिल्पकारों के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया है। ना केवल उन्हंे अलग अलग कामों के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है, बल्कि मुद्रा के जरिये उनकी वित्तीय जरूरतें भी पूरी की जा रही हैं। बुनकरों की युवा पीढ़ी को मुफ्त शिक्षा दी जा रही है ताकि वे इस महत्वपूर्ण पेशे में टिके रह सके।