प्रिय मित्रों,

११ मई, १९९८, वह ऐतिहासिक दिन जब भारत के इतिहास में एक और अध्याय जुड़ गया। नई शताब्दी में बतौर सुपरपॉवर उभर रहे भारत की काबिलियत पर सवाल उठाने वाले तमाम लोगों एवं समग्र विश्व को इस दिन भारत ने एक मजबूत संदेश दिया था। आज से १५ वर्ष पूर्व भारत ने राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल जी द्वारा परमाणु परीक्षण के सफल होने का ऐलान करते ही समूचा देश खुशी से झूम उठा था।

कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और महाराष्ट्र से लेकर मणिपुर तक तमाम लोगों को अपने भारतीय होने पर गर्व की अनुभूति हुई थी। दुनिया भर में फैले भारतीय समुदाय ने भी इसे लेकर अपनी प्रसन्नता जाहिर की थी। परमाणु परीक्षण किए जाने के ११ मई के उस ऐतिहासिक दिन को राष्ट्रीय टेक्नोलॉजी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। मैं अपने देशवासियों को, विशेषकर वैज्ञानिक समुदाय को अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं।

११ मई, १९९८ को किया गया सफल परमाणु परीक्षण वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत और भारत के मजबूत नेतृत्व की बदौलत संभव बना था। यह परीक्षण टेक्नोलॉजी की सफलता थी, साथ ही यह एक प्रशंसनीय कार्य भी था, जिसके तहत एक अत्यंत संवेदनशील कार्यक्रम को जबर्दस्त गोपनीयता बरतते हुए अंजाम दिया गया था।

हमारे वैज्ञानिकों के प्रशंसनीय प्रयासों के उल्लेख के बिना १९९८ के पोखरण परीक्षण की चर्चा अधूरी मानी जाएगी। उल्लेखनीय है कि, परमाणु परीक्षण का निर्णय लेने में उस वक्त माननीय अटल जी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने भी बुलंद हौसले का परिचय दिया था। भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने अभी दो महीने भी पूरे नहीं किए थे और बुद्ध पूर्णिमा (११ मई, १९९८) के महत्वपूर्ण दिन को सरकार ने परमाणु परीक्षण करने का साहसिक फैसला किया, जिससे सारे भारतीयों का मस्तक गर्व से ऊंचा उठ गया।

११ मई, १९९८ के परीक्षण के बाद चकित वैश्विक समुदाय ने फौरन ही भारत पर प्रतिबंध लगाकर उसे विश्व-मंच पर अलग-थलग करने का प्रयास किया। हालांकि, दो दिन बाद ही १३ मई, १९९८ को हमने पुनः परमाणु परीक्षण किया। ऐसे में, जब सारी दुनिया आपके द्वारा उठाए गए कदम के खिलाफ हो, तब पहले परीक्षण के दो दिन बाद फिर से परीक्षण करने के लिए अदम्य साहस की दरकार होती है, यह बताता है कि मजबूत नेतृत्व क्या कुछ कर सकता है। जब परीक्षण हुए तब समग्र देश खुशी से झूम उठा था। हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण और गर्व की बात यह थी कि वाजपेयी सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि ऐसे प्रतिबंध भारत की विकास यात्रा पर किसी तरह का असर न डालें। माननीय अटल जी और सरकार की विदेश एवं राजनयिक रणनीति के चलते जिन देशों ने भारत के परीक्षणों को लेकर विरोध जताया था, वे देश धीरे-धीरे फिर से भारत के साथ मजबूत संबंध विकसित करने लगे।

वैश्विक मंच पर अटल जी ने भारत के मित्र देशों के साथ पुनः मित्रता का सेतु स्थापित किया और वह भी देश-हित एवं सिद्धांतों के साथ समझौता किए बगैर। हम अपनी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाए बिना आगे बढ़ते गए। यह हमारी राजनीतिक इच्छाशक्ति की कसौटी थी, कहने की जरूरत नहीं कि हमने इस कसौटी को बखूबी पार किया।

आज पोखरण परीक्षण की १५वीं वर्षगांठ के मौके पर हमारे समक्ष एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा है, जिसका हमें जवाब हमें देना ही होगा- हम सुरक्षा संसाधनों के उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर कब बनेंगे? बात सिर्फ सैन्य शक्ति तक ही सीमित नहीं, परंतु अपने रक्षा संसाधन तैयार करने की हमारी क्षमता की भी है। स्वतंत्रता प्राप्ति के ६५ वर्ष बाद भी हम विदेशों से रक्षा संसाधनों की खरीद पर क्यों हजारों करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं? यह हमारे युवाओं, प्रतिभासंपन्न लोगों एवं वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौती है कि, कैसे हम अपनी शक्तियों को समायोजित करते हुए भारत को रक्षा संबंधित उत्पादों के मामले में आत्मनिर्भर बनाएं।

रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में भारत किस तरह मानव संसाधन का विकास कर सकता है, इस विषय पर हमें बड़े पैमाने पर चर्चा करनी चाहिए और लोगों को अपने विचार व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। क्या हम अपने उत्पादन क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिए इकोसिस्टम तैयार कर सकते हैं? एक कदम आगे बढ़ते हुए हमें यह भी सोचना चाहिए कि किस तरह हम रक्षा उपकरणों का निर्यात कर सकते हैं।

गुजरात में हमनें इस दिशा में कदम उठाना शुरू कर दिया है। हमारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में हम रक्षा संसाधनों के उत्पादन संबंधित विषयों पर काम कर रहे हैं। वर्ष २०१३ के वाइब्रेंट गुजरात वैश्विक सम्मेलन में हमने इस विषय पर अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था, जिसमें इस विषय से संबंधित विचारों का आदान-प्रदान हुआ था।

एक बार फिर, मैं राष्ट्रीय टेक्नोलॉजी दिवस के अवसर पर देशवासियों को शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं। चलिए, हम पोखरण के जोश को याद करें और अपने देश को ज्यादा मजबूत बनाने के लिए टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आगे बढ़ें।

मैं अटल जी का वीडियो भी इसके साथ संलग्न कर रहा हूं, जिसमें उन्होंने पोखरण परीक्षण की सफलता को लेकर चर्चा की है।

जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान!

नरेन्द्र मोदी

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भारत के रतन का जाना...
November 09, 2024

आज श्री रतन टाटा जी के निधन को एक महीना हो रहा है। पिछले महीने आज के ही दिन जब मुझे उनके गुजरने की खबर मिली, तो मैं उस समय आसियान समिट के लिए निकलने की तैयारी में था। रतन टाटा जी के हमसे दूर चले जाने की वेदना अब भी मन में है। इस पीड़ा को भुला पाना आसान नहीं है। रतन टाटा जी के तौर पर भारत ने अपने एक महान सपूत को खो दिया है...एक अमूल्य रत्न को खो दिया है।

आज भी शहरों, कस्बों से लेकर गांवों तक, लोग उनकी कमी को गहराई से महसूस कर रहे हैं। हम सबका ये दुख साझा है। चाहे कोई उद्योगपति हो, उभरता हुआ उद्यमी हो या कोई प्रोफेशनल हो, हर किसी को उनके निधन से दुख हुआ है। पर्यावरण रक्षा से जुड़े लोग...समाज सेवा से जुड़े लोग भी उनके निधन से उतने ही दुखी हैं। और ये दुख हम सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में महसूस कर रहे हैं।

युवाओं के लिए, श्री रतन टाटा एक प्रेरणास्रोत थे। उनका जीवन, उनका व्यक्तित्व हमें याद दिलाता है कि कोई सपना ऐसा नहीं जिसे पूरा ना किया जा सके, कोई लक्ष्य ऐसा नहीं जिसे प्राप्त नहीं किया जा सके। रतन टाटा जी ने सबको सिखाया है कि विनम्र स्वभाव के साथ, दूसरों की मदद करते हुए भी सफलता पाई जा सकती है।

 रतन टाटा जी, भारतीय उद्यमशीलता की बेहतरीन परंपराओं के प्रतीक थे। वो विश्वसनीयता, उत्कृष्टता औऱ बेहतरीन सेवा जैसे मूल्यों के अडिग प्रतिनिधि थे। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह दुनिया भर में सम्मान, ईमानदारी और विश्वसनीयता का प्रतीक बनकर नई ऊंचाइयों पर पहुंचा। इसके बावजूद, उन्होंने अपनी उपलब्धियों को पूरी विनम्रता और सहजता के साथ स्वीकार किया।

दूसरों के सपनों का खुलकर समर्थन करना, दूसरों के सपने पूरा करने में सहयोग करना, ये श्री रतन टाटा के सबसे शानदार गुणों में से एक था। हाल के वर्षों में, वो भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम का मार्गदर्शन करने और भविष्य की संभावनाओं से भरे उद्यमों में निवेश करने के लिए जाने गए। उन्होंने युवा आंत्रप्रेन्योर की आशाओं और आकांक्षाओं को समझा, साथ ही भारत के भविष्य को आकार देने की उनकी क्षमता को पहचाना।

भारत के युवाओं के प्रयासों का समर्थन करके, उन्होंने नए सपने देखने वाली नई पीढ़ी को जोखिम लेने और सीमाओं से परे जाने का हौसला दिया। उनके इस कदम ने भारत में इनोवेशन और आंत्रप्रेन्योरशिप की संस्कृति विकसित करने में बड़ी मदद की है। आने वाले दशकों में हम भारत पर इसका सकारात्मक प्रभाव जरूर देखेंगे।

रतन टाटा जी ने हमेशा बेहतरीन क्वालिटी के प्रॉडक्ट...बेहतरीन क्वालिटी की सर्विस पर जोर दिया और भारतीय उद्यमों को ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करने का रास्ता दिखाया। आज जब भारत 2047 तक विकसित होने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, तो हम ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करते हुए ही दुनिया में अपना परचम लहरा सकते हैं। मुझे आशा है कि उनका ये विजन हमारे देश की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करेगा और भारत वर्ल्ड क्लास क्वालिटी के लिए अपनी पहचान मजबूत करेगा।

रतन टाटा जी की महानता बोर्डरूम या सहयोगियों की मदद करने तक ही सीमित नहीं थी। सभी जीव-जंतुओं के प्रति उनके मन में करुणा थी। जानवरों के प्रति उनका गहरा प्रेम जगजाहिर था और वे पशुओं के कल्याण पर केन्द्रित हर प्रयास को बढ़ावा देते थे। वो अक्सर अपने डॉग्स की तस्वीरें साझा करते थे, जो उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा थे। मुझे याद है, जब रतन टाटा जी को लोग आखिरी विदाई देने के लिए उमड़ रहे थे...तो उनका डॉग ‘गोवा’ भी वहां नम आंखों के साथ पहुंचा था।

रतन टाटा जी का जीवन इस बात की याद दिलाता है कि लीडरशिप का आकलन केवल उपलब्धियों से ही नहीं किया जाता है, बल्कि सबसे कमजोर लोगों की देखभाल करने की उसकी क्षमता से भी किया जाता है।

रतन टाटा जी ने हमेशा, नेशन फर्स्ट की भावना को सर्वोपरि रखा। 26/11 के आतंकवादी हमलों के बाद उनके द्वारा मुंबई के प्रतिष्ठित ताज होटल को पूरी तत्परता के साथ फिर से खोलना, इस राष्ट्र के एकजुट होकर उठ खड़े होने का प्रतीक था। उनके इस कदम ने बड़ा संदेश दिया कि – भारत रुकेगा नहीं...भारत निडर है और आतंकवाद के सामने झुकने से इनकार करता है।

व्यक्तिगत तौर पर, मुझे पिछले कुछ दशकों में उन्हें बेहद करीब से जानने का सौभाग्य मिला। हमने गुजरात में साथ मिलकर काम किया। वहां उनकी कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर निवेश किया गया। इनमें कई ऐसी परियोजनाएं भी शामिल थीं, जिसे लेकर वे बेहद भावुक थे।

जब मैं केन्द्र सरकार में आया, तो हमारी घनिष्ठ बातचीत जारी रही और वो हमारे राष्ट्र-निर्माण के प्रयासों में एक प्रतिबद्ध भागीदार बने रहे। स्वच्छ भारत मिशन के प्रति श्री रतन टाटा का उत्साह विशेष रूप से मेरे दिल को छू गया था। वह इस जन आंदोलन के मुखर समर्थक थे। वह इस बात को समझते थे कि स्वच्छता और स्वस्थ आदतें भारत की प्रगति की दृष्टि से कितनी महत्वपूर्ण हैं। अक्टूबर की शुरुआत में स्वच्छ भारत मिशन की दसवीं वर्षगांठ के लिए उनका वीडियो संदेश मुझे अभी भी याद है। यह वीडियो संदेश एक तरह से उनकी अंतिम सार्वजनिक उपस्थितियों में से एक रहा है।

कैंसर के खिलाफ लड़ाई एक और ऐसा लक्ष्य था, जो उनके दिल के करीब था। मुझे दो साल पहले असम का वो कार्यक्रम याद आता है, जहां हमने संयुक्त रूप से राज्य में विभिन्न कैंसर अस्पतालों का उद्घाटन किया था। उस अवसर पर अपने संबोधन में, उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि वो अपने जीवन के आखिरी वर्षों को हेल्थ सेक्टर को समर्पित करना चाहते हैं। स्वास्थ्य सेवा एवं कैंसर संबंधी देखभाल को सुलभ और किफायती बनाने के उनके प्रयास इस बात के प्रमाण हैं कि वो बीमारियों से जूझ रहे लोगों के प्रति कितनी गहरी संवेदना रखते थे।

मैं रतन टाटा जी को एक विद्वान व्यक्ति के रूप में भी याद करता हूं - वह अक्सर मुझे विभिन्न मुद्दों पर लिखा करते थे, चाहे वह शासन से जुड़े मामले हों, किसी काम की सराहना करना हो या फिर चुनाव में जीत के बाद बधाई सन्देश भेजना हो।

अभी कुछ सप्ताह पहले, मैं स्पेन सरकार के राष्ट्रपति श्री पेड्रो सान्चेज के साथ वडोदरा में था और हमने संयुक्त रूप से एक विमान फैक्ट्री का उद्घाटन किया। इस फैक्ट्री में सी-295 विमान भारत में बनाए जाएंगे। श्री रतन टाटा ने ही इस पर काम शुरू किया था। उस समय मुझे श्री रतन टाटा की बहुत कमी महसूस हुई।

आज जब हम उन्हें याद कर रहे हैं, तो हमें उस समाज को भी याद रखना है जिसकी उन्होंने कल्पना की थी। जहां व्यापार, अच्छे कार्यों के लिए एक शक्ति के रूप में काम करे, जहां प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता को महत्व दिया जाए और जहां प्रगति का आकलन सभी के कल्याण और खुशी के आधार पर किया जाए। रतन टाटा जी आज भी उन जिंदगियों और सपनों में जीवित हैं, जिन्हें उन्होंने सहारा दिया और जिनके सपनों को साकार किया। भारत को एक बेहतर, सहृदय और उम्मीदों से भरी भूमि बनाने के लिए आने वाली पीढ़ियां उनकी सदैव आभारी रहेंगी।