आज अखबार सिर्फ ख़बर नहीं देते बल्कि वह हमारी सोच भी बदल सकते हैं: प्रधानमंत्री मोदी
व्यापक संदर्भ में, मीडिया समाज में बदलाव लाने का एक माध्यम और यही कारण है कि मीडिया हमारे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ: प्रधानमंत्री
वर्नाकुलुर एक्ट से अंग्रेज डर गए थे। स्थानीय अख़बारों को दबाने के लिए कहा गया था और 1878 में वर्नाकुलर प्रेस एक्ट लागू किया गया: पीएम मोदी
हमें जनहित को देखते हुए बुद्धिमानी से संपादकीय स्वीतंत्रता का इस्तेिमाल करना होगा: प्रधानमंत्री मोदी
आजकल मीडिया राजनीति के चारों ओर मंडराता है। हालांकि हम जैसे राजनेताओं से भारत कहीं आगे: पीएम मोदी
125 करोड़ भारतीयों ने मिलकर किया है भारत का निर्माण: प्रधानमंत्री मोदी

सबसे पहले, मैं चेन्‍नई और तमिलनाडु के अन्‍य भागों में हाल ही में भारी वर्षा और बाढ़ की घटनाओं के कारण मृत लोगों के परिवारजनों और अत्‍यधिक कठिनाईयों का सामना करने वाले लोगों के प्रति अपनी संवेदना और सहानुभूति अभिव्‍यक्‍त करता हूँ। मैंने राज्‍य सरकार को हर संभव सहायता प्रदान करने का आश्‍वासन दिया था। मैं वरिष्‍ठ पत्रकार थीरू. आर. मोहन के निधन पर शोक व्‍यक्‍त करता हूँ।

दिना थांथी ने 75 उत्‍तम वर्ष पूरे किए हैं। मैं थीरू. एस. पी. अदिथयानर, थीरू एस. टी. आदिथयनार और थीरू बाल सुब्रहमणयम जी को अभी तक उनकी सफल यात्रा के लिए योगदान की सराहना करता हूं। पिछले साढ़े सात दशकों से उनके अथक प्रयासों ने थांथी को न सिर्फ तमिलनाडु, बल्कि संपूर्ण देश में बड़े मीडिया ब्रांडों में शामिल कर दिया है। मैं इस सफलता के लिए थांथी समूह के प्रबंधन और कर्मचारियों की प्रशंसा करता हूँ।

24 घंटे के समाचार चैनल अब लाखों भारतीय भाषाओं में उपलब्‍ध हैं। फिर भी अनेक व्‍यक्तियों के दिन की शुरुआत एक हाथ में चाय या कॉफी का कप और दूसरे हाथ में समाचार पत्र लिए होती है। मुझे बताया गया कि दिना थांथी अपने 17 संस्‍करणों के माध्‍यम से न सिर्फ तमिलानाडु, बल्कि बेंगलुरु, मुंबई और दुबई में भी यह विकल्‍प उपलब्‍ध करा रहा है। पिछले 75 वर्ष में यह अभूतपूर्व विस्‍तार थीरू एस. पी. सुदितयार की दूरदर्शी नेतृत्‍व क्षमता को श्रद्धांजलि है। जिन्‍होंने 1942 में इस समाचार पत्र को शुरू किया था। उस समय समाचार पत्र बहुत दुर्लभ होते थे। लेकिन उन्‍होंने तिनके से हाथ द्वारा पेपर पर समाचार पत्र को छापना शुरू किया।

अक्षरों के आकार, साधारण भाषा और आसानी से समझ आने वाले वर्णों ने दिना थांथी को लोगों में लोकप्रिय बना दिया। उस समय में, उन्‍होंने राजनीतिक जागरूकता और सूचना प्रदान की। लोग इस समाचार पत्र को पढ़ने के लिए चाय की दुकान पर भीड़ लगा लेते थे। इस प्रकार यह यात्रा शुरू हुई जो आज भी जारी है। इस अखबार की संतुलित कवरेज ने दिना थांथी को राज्य में एक दैनिक मजदूरी अर्जित करने वाले व्यक्ति से उच्‍चतम राजनीतिक पदाधिकारी के बीच लोकप्रिय बनाया।

मुझे यह पता लगा कि थांथी का अर्थ टेलिग्राम होता है। दिना थांथी का अर्थ दैनिक टेलिग्राम होता है। पिछले 75 वर्षों से डाक विभाग द्वारा भेजे जाने वाले परंपरागत टेलिग्राम को बंद कर दिया गया है। परंतु यह टेलिग्राम प्रतिदिन निरंतर बढ़ रहा है। कड़ी मेहनत और प्रतिबद्धता द्वारा समर्थित यह शक्तिशाली महान विचार है।

मुझे यह जानकर खुशी है कि थांथी समूह ने अपने संस्‍थापक थीरू आथायानार के नाम पर तमिल साहित्‍य को प्रोत्‍साहन देने के लिए पुरस्‍कारों की स्‍थापना की है। मैं पुरस्‍कार प्राप्‍तकर्ताओं:- थीरू तमिलनबन, डॉ. इराई अंबू और थीरू वी.जी. संतोषम को हार्दिक बधाई देता हूं। मुझे विश्‍वास है कि यह पुरस्‍कार लेखन को नोबल पेशे के रूप में शुरू करने वाले लोगों के लिए प्ररेणादायक बनेगा।

भाईयों और बहनों,

मनुष्‍य के ज्ञान की भूख हमारे इतिहास जितनी पुरानी है। पत्रकारिता इस भूख को कम करने में मदद करती है। आज समाचार पत्र सिर्फ समाचार ही नहीं देते। वे हमारे विचारों को भी बदल देता है तथा हमारे लिए विश्‍व का एक नया द्वार खोलता है। वृहद संदर्भ में, मीडिया समाज का रूप परिवर्तन करने वाला माध्‍यम है। इसलिए हम मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्‍तंभ कहते हैं। मैं आज कलम की ताकत प्रदर्शित करने वाले आप लोगों के बीच उपस्थित होकर सौभाग्‍यशाली महसूस कर रहा हूँ। आप यह दर्शाते हैं कि यह महत्‍वपूर्ण जीवन बल और समाज की चेतना बन सकता है।

उपनिवेशवाद के अंधकार युग के दौरान, राजा राम मोहन राय के संवाद कौमुदी, लोकमान्‍य तिलक का केसरी और महात्‍मा गांधी के नवजीवन जैसे प्रकाशनों ने उम्‍मीद की रोशनी जगाई और स्‍वाधीनता संघर्ष को प्रेरित किया। उस समय देशभर में पत्रकारिता में ऐसे अग्रदूत थे जिन्‍होने अपने आराम का जीवन भी त्‍याग दिया था। उन्‍होंने अपने समाचार पत्रों के माध्‍यम से जन चेतना और जागृति का निर्माण कार्य करने में मदद की। शायद उन संस्‍थापक अग्रणियों के उच्‍च आदर्शों के कारण ही ब्रिटिश राज के दिनों में स्‍थापित अनेक समाचार पत्र आज भी फल-फूल रहे हैं।

मित्रों,

हमें यह कभी भी नहीं भूलना चाहिए कि बाद की पीढियों ने समाज और देश के प्रति अपेक्षित उत्‍तरदायित्‍वों को पूरा किया है। इसी प्रकार हमने स्‍वतंत्रता प्राप्‍त की थी। स्‍वतंत्रता के पश्‍चात, सामाजिक विमर्श में नागरिकों के अधिकारों ने प्रमुखता प्राप्‍त की। दुर्भाग्‍यवश, कुछ समय से हमने अपने व्‍यक्तिगत और सामूहिक कर्तव्‍य के भाग को नजरअंदाज कर दिया। इसने आज समाज को दूषित करने वाली अनेक बुराईयों में योगदान दिया है। आज समय की जरूरत है कि हम “सक्रिय, जिम्मेदार और जागरूक नागरिकों” के बारे में जन जागरूकता फैलायें। निश्चित रूप से यह हमारी शिक्षा प्रणाली औऱ हमारे राजनीतिक नेताओँ के आचार से होना चाहिए। लेकिन मीडिया भी यह महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।

भाईयों और बहनों

स्वतंत्रता के लिए अलख जलाने वाले अनेक समाचार पत्र देशी भाषा के समाचार पत्र थे। वास्तव में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार भारतीय वर्नाक्यूलर प्रेस से भयभीत थी। उसे वर्नाक्यूलर समाचार पत्रों की आवाज बंद करने के लिए 1878 में वर्नाक्यूलर प्रेस अधिनियम लागू करना पड़ा था।

हमारे विविधता भरे देश में वर्नाक्यूलर समाचार पत्रों अर्थात् क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित समाचार पत्रों की भूमिका आज भी उसी समय की तरह महत्वपूर्ण है। ये एक ऐसी भाषा में विषय वस्तु प्रस्तुत करते हैं जिसे लोग आसानी से समझ सकते हैं। ये समाचार पत्र अक्सर कमजोर और सामाजिक रुप से वंचित समूहों की जरूरत पूरा करते हैं। इनकी ताकत, प्रभाव और इस प्रकार इनके दायित्वों को कम नहीं आंका जा सकता। ये दूर-दराज के क्षेत्रों में सरकार की इच्छा तथा नीतियों के संदेश वाहक होते हैं। इसी प्रकार ये हम लोगों के विचारों और भावनाओं के पथ-प्रदर्शक हैं। इस संदर्भ में, निश्चित रूप से यह प्रशंसनीय है कि हमारे ज्वलंत प्रिंट मीडिया में से कुछ सर्वाधिक बिकने वाले समाचार पत्र क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित होते हैं। दिना थांथी निश्चित रूप से उनमें से एक है।

मित्रों,

मैंने अक्सर लोगों को आश्चर्य करते हुए देखा है कि प्रतिदिन विश्व में बनने वाले समाचारों की मात्रा कितनी भी हो, वह सदैव समाचार पत्रों में फिट हो जाते हैं। वास्तव में, हम सभी यह जानते हैं कि विश्व में प्रतिदिन बहुत कुछ घटित होता रहता है। संपादक ही वे लोग होते हैं जो महत्वपूर्ण समाचारों का चयन और निर्णय करते हैं। यह निर्धारित करते हैं कि किस समाचार को मुख्य पृष्ठ पर स्थान दिया जाए या किस समाचार को और अधिक स्थान देना चाहिए और किस समाचार को नजर अंदाज किया जाना चाहिए। वास्तव में यह संपादकों की यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। इसी प्रकार लेखन की स्वतंत्रता और क्या लिखा जाना है इसका निर्णय करने की स्वतंत्रता में “सही से कम” या “तथ्यागत रूप से गलत” लेखन की स्वतंत्रता शामिल नहीं होती। महात्मा गांधी के शब्दों में, प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। वास्तव में, यह एक शक्ति है लेकिन इस शक्ति का दुरुपयोग करना अपराध है।

चाहे मीडिया पर किसी निजी व्यक्ति का स्वामित्व क्यों न हो, वह जन उद्देश्य को पूरा करती है। जैसा कि विद्वान कहते हैं कि यह बल कि बजाय शांति के माध्यम से सुधार लाने में सहायक हैं। इसलिए, इसका निर्वाचित सरकार या न्यायपालिका की तरह बहुत बड़ा सामाजिक उत्तरदायित्व होता है और इसका आचार भी पूर्ण रुप से सत्य होना चाहिए। महान संत तिरुवल्लूवर के शब्दों में, “इस विश्व में नैतिकता के अलावा ऐसा कुछ नहीं है जो प्रतिष्ठा और संपदा एक साथ प्रदान करे।

मित्रों,

प्रौद्योगिकी ने मीडिया में बहुत बड़ा बदलाव कर दिया है। एक समय था जब एक गांव के ब्लैक बोर्ड पर लिखी गई दिन की हैडलाइन की बहुत अधिक विशेषता होती थी। आज हमारे मीडिया का विस्तार गांव के ब्लैक बोर्ड से लेकर ऑनलाइन बुलेटिन बोर्ड तक हो गया है।

जिस प्रकार, आज शिक्षा शिक्षण के परिणामों पर अधिक केंद्रित हो गई है, उसी प्रकार हमारी विषय वस्तु के उपभोग के प्रति प्रवृत्ति भी बदल गई है। आज हर नागरिक विभिन्न स्रोतों के माध्यम से उनके पास आए हुए समाचारों का विश्लेषण, चर्चा और उनकी वास्तविकता की जांच करता है। इसलिए मीडिया को अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। विश्वसनीय मीडिया मंचों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी हमारे लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए अच्छी है। विश्वसनीयता पर यह जोर हमें आत्मनिरीक्षण का अवसर देता है। मुझे दृढ़ता से विश्वास है कि जब कभी भी मीडिया में सुधार की आवश्यकता होगी तो इसे आत्मनिरीक्षण के माध्यम से केवल स्वयं के भीतर ही किया जा सकता है। वास्तव में हमने 26/11 मुंबई आतंकवादी हमलें की रिपोर्ताज जैसे कुछ अवसरों पर विश्लेषण कर आत्मनिरीक्षण की इस प्रक्रिया को देखा है। इस आत्मनिरीक्षण को अक्सर किया जाना चाहिए।  

मित्रों,

मैं हमारे प्रिय भूतपूर्व राष्ट्रपति, डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम के शब्दों को याद करता हूँ, “भारत एक ऐसा महान देश है, हमारे पास अनेक रोमांचित कर देने वाली अनेक सफलता की कहानियां हैं, लेकिन हम उन्हें स्वीकार करने से मना कर देते हैं। ऐसा क्यों?”

मैंने देखा कि, आजकल अधिकतर मीडिया विमर्श राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती हैं। लोकतंत्र में राजनीति की विस्तार से चर्चा करना अच्छी बात है। हालांकि भारत केवल राजनीतिज्ञों से भी बढ़कर बहुत कुछ है। यह 125 करोड़ भारतीय लोग हैं, जो मिलकर भारत का निर्माण करते हैं। मुझे उन लोगों पर मीडिया के अधिक ध्यान, उनकी कहानियों और उपलब्धियों पर ध्यान देखकर प्रसन्नता होगी।

इस प्रयास में, मोबाइल फोन रखने वाला प्रत्येक नागरिक आपका मित्र है। व्यक्तियों की सफल कहानियों का साँझा और प्रचारित करने के लिए नागरिक रिपोर्टिंग महत्वपूर्ण उपकरण बन सकती है। यह संकट या प्राकृतिक आपदाओं के समय में बचाव एवं राहत प्रयासों में भी बहुत अधिक सहायक बन सकता है।

मैं यह कहूंगा कि प्राकृतिक आपदाओं के समय, मीडिया घटना के विभिन्न आयामों को कवर करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देती है। विश्व में प्राकृतिक आपदाओं की बारंबारता और गंभीरता बढ़ती जा रही है। हम सभी के लिए जलवायु परिवर्तन एक चुनौती बन गई है। क्या मीडिया इसके विरुद्ध लडाई में आगे आ सकता है? क्या मीडिया जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए किए जा रहे कार्यों की रिपोर्टिंग, चर्चा या जागरुकता बढ़ाने के लिए थोड़ा-सा स्थान या प्रतिदिन कोई समय निर्धारित कर सकता है?

मैं स्वच्छ भारत मिशन पर मीडिया की प्रतिक्रिया की सराहना करना चाहता हूं। हम महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर 2019 तक स्वच्छ भारत का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हैं। मैं स्वच्छता के प्रति जागरूकता और जन चेतना दोनों का सृजन करने में मीडिया द्वारा अदा की गई महत्वपूर्ण भूमिका की प्रशंसा करता हूँ। क्योंकि हमारा लक्ष्य प्राप्त करने से पहले हमें क्या-क्या शेष कार्य करने हैं, इसके बारे में मीडिया हमें बताता रहता है।

भाइयों और बहनों,

एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र है जहां मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह क्षेत्र है - एक भारत, श्रेष्ठ भारत। इसे एक उदहारण के माध्यम से समझाता हूं। क्या कोई समाचार पत्र इस कार्य के लिए प्रतिदिन कॉलम का सिर्फ कुछ इंच स्थान दे सकता है। वह प्रतिदिन अपने प्रकाशन की भाषा में उसके अनुवाद और लिप्यांतरण सहित सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में एक साधारण वाक्य लिख सकता है क्या? वर्ष के अंत में, समाचार पत्र के पाठकों को सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में ऐसे 365 साधारण वाक्यों का अनुभव हो जाएगा। इस साधारण प्रयास के सकारात्मक प्रभाव की कल्पना कीजिए। इसके अलावा विद्यालयों को भी प्रतिदिन उनकी कक्षाओँ में कुछ मिनट के लिए इस विषय पर चर्चा के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जिससे कि बच्चे भी हमारी विविधता की ताकत औऱ समृद्धता को समझ सकें। इसलिए यह प्रयास न सिर्फ महान कार्य पूर्ण करेगा बल्कि यह समाचार पत्रों की ताकत भी बढ़ाएगा।

भाइयों और बहनों

मनुष्य के जीवनकाल में 75 वर्ष का समय बहुत अधिक हो सकता है लेकिन एक देश या संस्थान के लिए यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हो जाते हैं। लगभग तीन माह पहले, हमने भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ मनाई थी। एक प्रकार से दिना थांथी की यात्रा ने भारत के उदय को एक युवा उज्ज्वल देश के रूप में देखा है।

उस दिन संसद में वक्तव्य देते हुए, मैंने 2022 तक न्यू इंडिया का निर्माण करने का आह्वान किया था। एक ऐसा भारत जो भ्रष्टाचार, जातिवाद, सांप्रदायिकता, गरीबी, निरक्षरता और बीमारी जैसी बुराइयों से मुक्त होगा। अगले 5 वर्ष संकल्प से सिद्धि के जरूर होने चाहिए। तभी हम हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों का भारत बना सकते हैं। भारत छोड़ो आंदोलन के समय जन्म लेने वाले समाचार पत्र के रूप में, मैं दिना थांथी को सुझाव देना चाहता हूं, इस संबंध में उनकी विशेष जिम्मेदारी है। मुझे आशा है कि आप इस अवसर को अगले 5 वर्षों तक अपने पाठकों को या देश के लोगों को क्या दे सकते हैं, को प्रदर्शित करने के रूप में उपयोग करेंगे।

यहां तक की तत्काल 5 वर्षों के लक्ष्य से भी अधिक, शायद अपनी प्लैटिनम जयंती के इस अवसर पर दिना थांथी को यह जरूर विचार करना चाहिए कि उसके अगले 75 वर्ष कैसे होंगे? तत्काल समाचार के युग में अपनी उपयोगिता और प्रासंगिकता को बनाए रखने तथा लोगों और देश की सेवा करने का सही तरीका क्या है। और ऐसा करते समय, पेशेवर, नैतिकता और स्पष्टता के उच्च मानक बनाए रखें।

अंत में, मैं एक बार फिर तमिलनाडु के लोगों की सेवा में दिना थांथी के प्रकाशकों के प्रयासों की प्रशंसा करता हूँ। मुझे पूर्ण विश्वास है कि वे हमारे महान देश के भाग्य को बनाने में अहम भूमिका निभायेंगे।

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Prime Minister Shri Narendra Modi paid homage today to Mahatma Gandhi at his statue in the historic Promenade Gardens in Georgetown, Guyana. He recalled Bapu’s eternal values of peace and non-violence which continue to guide humanity. The statue was installed in commemoration of Gandhiji’s 100th birth anniversary in 1969.

Prime Minister also paid floral tribute at the Arya Samaj monument located close by. This monument was unveiled in 2011 in commemoration of 100 years of the Arya Samaj movement in Guyana.