सरकार में दो दशक पूरे करने पर बधाई। दो दशक लंबा समय है। यह वास्तव में एक लंबा और साथ ही काफी घटनापूर्ण समय रहा है, जो चुनावी क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए अनिच्छुक था, जब तक कि एक आपदा के बाद की परिस्थितियों ने उसे गुजरात के मुख्यमंत्री का कार्यभार नहीं दे दिया। उथल-पुथल भरी यात्रा का अनुभव कैसा रहा? और आपके सबसे संतोषजनक क्षण कौन से रहे हैं?

आपने अनिच्छुक शब्द का प्रयोग किया है।

एक तरह से आप सही कह रहे हैं... चुनावी राजनीति में शामिल होने की अनिच्छा की तो बात ही छोड़िए, मेरा राजनीतिक क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं था। मेरा परिवेश, मेरी आंतरिक दुनिया, मेरा दर्शन- ये बहुत अलग थे। बचपन के दिनों से ही मेरा झुकाव आध्यात्मिक था।

'जन सेवा ही प्रभु सेवा' का सिद्धांत, जिसे रामकृष्ण परमहंस ने प्रतिपादित किया था और स्वामी विवेकानंद ने मुझे हमेशा प्रेरित किया। मैंने जो कुछ भी किया उसमें यह एक प्रेरक शक्ति बन गया।

जहां तक राजनीति की बात है, दूर-दूर तक मेरा इससे कोई नाता नहीं था। बहुत बाद में परिस्थितिवश और कुछ मित्रों के आग्रह पर मैं राजनीति से जुड़ा। वहाँ भी, मैं उस स्थिति में था, जहाँ मैं मुख्य रूप से संगठनात्मक कार्य कर रहा था।

बीस साल पहले, हालात ऐसे हो गए थे कि मुझे एक प्रशासन का नेतृत्व करने के लिए पूरी तरह से अज्ञात क्षेत्र में प्रवेश करना पड़ा और यह 2001 में हुआ था, जब गुजरात, हमारे देश में देखे गए सबसे विनाशकारी भूकंपों में एक से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुआ था।

लोगों की गहरी परेशानियों को करीब से देखने के बाद, मेरे पास यह सोचने का समय या अवसर नहीं था कि मेरे जीवन में नए मोड़ का क्या मतलब है। मैं तुरंत राहत, पुनर्वास और गुजरात के पुनर्निर्माण में लग गया।

 अगर आप मुझसे पूछें... कुछ हासिल करना या बनना कभी भी मेरे आंतरिक अस्तित्व का हिस्सा नहीं रहा है।

मेरी आंतरिक इच्छा हमेशा दूसरों के लिए कुछ न कुछ करने की रही है। मैं जहां भी हूं, जो कुछ भी कर रहा हूं, उसकी वजह भी लोगों के लिए कुछ न कुछ करने की इच्छा है। दूसरों के लिए काम करना ही मुझमें हमेशा 'स्वतः सुखाय' या आत्मसंतुष्टि की भावना पैदा करता है।

दुनिया की नजर में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री होना बहुत बड़ी बात हो सकती है, लेकिन मेरी नजर में यह लोगों के लिए कुछ करने के तरीके हैं। मानसिक रूप से, मैं खुद को सत्ता, चकाचौंध और ग्लैमर की इस दुनिया से अलग रखता हूं और इसी के कारण, मैं एक आम नागरिक की तरह सोच पा रहा हूं और अपने कर्तव्य के रास्ते पर चल रहा हूं, ठीक वैसे ही जैसे अगर मुझे कोई और जिम्मेदारी दी जाती।

आपने संतोषजनक क्षणों के बारे में पूछा। खैर, बहुत कुछ हो सकते हैं, लेकिन मैं आपको एक हालिया उदाहरण देता हूं।

"बीस साल पहले, हालात ऐसे हो गए थे कि मुझे प्रशासन चलाने के लिए पूरी तरह से अज्ञात क्षेत्र में प्रवेश करना पड़ा।"

पिछले कुछ महीनों के दौरान मुझे हमारे ओलंपिक और पैरालंपिक नायकों से मिलने और बातचीत करने का मौका मिला। टोक्यो 2020 अब तक भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा है। फिर भी, स्वाभाविक रूप से कई एथलीट ऐसे थे जिन्होंने पदक नहीं जीते। जब मैं उनसे मिला तो वे पदक नहीं जीतने पर दुखी थे, लेकिन उनमें से प्रत्येक ने देश द्वारा उनके लिए प्रशिक्षण, सुविधाओं और अन्य प्रकार की सहायता में सपोर्ट करने के प्रयासों की प्रशंसा की। साथ ही, वे और अधिक पदक जीतने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए दृढ़ और उत्साहित थे।

मन ही मन सोचा...देखो हम कितनी दूर आ गए हैं। पहले हमारे खिलाड़ी सुविधाओं और सपोर्ट आदि की कमी के बारे में चिंता करते थे। ये ऐसी चीजें थीं जिनके बारे में वे कुछ नहीं कर सकते थे।

लेकिन, अब उन्हें लगता है कि उनकी ये चिंता दूर हो गई है और उनका पूरा ध्यान उन चीजों पर है जिन्हें वे नियंत्रित कर सकते हैं और पदक, उनकी भूख के सेंटर स्टेज में आ गया है। उन्हें इस बात का संतोष था कि देश ने उनका समर्थन किया है और देश के लिए कुछ असाधारण करने और आने वाले समय में और पदक लाने का संकल्प लिया है। यह परिवर्तन संतोषजनक है।

आपने लंबी दूरी तय की है। किसी ऐसे व्यक्ति से जो चाय बेचने के लिए मजबूर था और जिसकी माँ को परिवार के लिए भोजन उपलब्ध कराने के लिए दूसरों के घरों में काम करना पड़ता था, से लेकर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का शीर्ष राजनीतिक कार्यालय और यकीनन सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री तक। वास्तव में लेजन्ड ऐसे ही बनते हैं, जो आपने पाया है उसे देखकर क्या कभी आपको आश्चर्य होता है?

मैं खुद के जीवन से आश्चर्यचकित नहीं होता हूं। मुझे इस देश और देश के लोगों को देखकर आश्चर्य होता है जो एक गरीब बच्चे को चुन कर वहां पहुंचा सकते हैं जहां आज मैं हूँ। मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूं कि इस देश के लोगों ने मुझे इतनी बड़ी जिम्मेदारियां दी हैं और मुझ पर भरोसा करना जारी रखा है। यही हमारे लोकतंत्र की ताकत है।

जहां तक मेरे लिए एक बच्चे के रूप में चाय बेचने और बाद में हमारे देश का प्रधानमंत्री बनने का सवाल है, आप इसे जिस तरह से देखते हैं, उससे मैं इसे बहुत अलग तरीके से देखता हूं।

मुझे लगता है कि भारत के 130 करोड़ लोगों में वही क्षमताएं हैं जो मेरे पास हैं। मैंने जो हासिल किया है, उसे कोई भी हासिल कर सकता है।

अगर मैं कर सकता हूँ तो कोई भी कर सकता है!

130 करोड़ सक्षम लोगों का देश... मानव जाति के लिए हमारा देश जो योगदान दे सकता है वह जबरदस्त है!

और इसलिए, मैंने कहां से शुरुआत की, मैं कहां पहुंचा, मैंने क्या किया, मेरे व्यक्तिगत अनुभव क्या हैं, ये चीजें ज्यादा मायने नहीं रखती हैं। मायने यह रखता है कि इससे पता चलता है कि कोई भी भारतीय कुछ भी हासिल कर सकता है।

"दुनिया की नजर में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री होना बहुत बड़ी बात हो सकती है लेकिन मेरी नजर में यह लोगों के लिए कुछ करने के तरीके हैं।"

इसलिए ऊर्ध्वगामी गतिशीलता (अप्वर्ड मोबिलिटी) को प्राप्त करने योग्य बनाकर लोगों को सशक्त बनाना मेरे लिए मूलभूत प्रेरणाओं में से एक बन गया है। यह जरूरी है कि हर युवा को अवसर मिले और जब मैं अवसरों की बात करता हूं, तो मैं केवल उस सहायता का उल्लेख नहीं करता जो उन्हें आश्रित रखती है, बल्कि वह समर्थन जो उन्हें उनकी आकांक्षाओं को सम्मान के साथ पूरा करने के लिए आत्मनिर्भर बनाता है।

आपने एक मुक्त बाज़ार उदारवादी (Gung-ho free-market liberalizer) या आपके आलोचक जिसे आरएसएस-समर्थित उच्च-जाति का रूढ़िवाद कहते हैं, के हिमायती होने की चुनौतियों को ललकारा है। आपके विरोधी निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि वे आपको पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं। क्या लोकलुभावन चित्रण (पोर्ट्रेऐल) शुरू में गलत थे, या यह है कि वे गलत हो गए हैं क्योंकि आप समय के मिजाज या व्यावहारिक राजनीति की दिक्कतों को पूरा करने के लिए रास्ते बदलते रहते हैं?

यहां समस्या मोदी नहीं है..... लेकिन जब कोई व्यक्ति पूर्वधारणा से ग्रसित मानसिकता से किसी भी चीज को देखने की कोशिश करता है तो या तो वह आधी नजर से ही देख पाता है या गलत चीजों को ही देख पाता है और अगर वह अपनी पूर्वधारणा के अनुसार कुछ भी नहीं देख पाता है, तो वह अपनी पूर्वकल्पित मानसिकता को आगे बढ़ाने के लिए एक धारणा बनाता है।

हम सभी जानते हैं कि मनुष्य का स्वभाव है कि वह अपनी गलतियों को आसानी से स्वीकार नहीं करता। अपनी गलत धारणाओं पर सच्चाई को स्वीकार करने के लिए साहस चाहिए और यही कारण है कि व्यक्ति बिना मिले, जाने या समझे बिना भी, उसके बारे में धारणा बना लेता है। भले ही वे आपसे व्यक्तिगत रूप से मिलें और कुछ अलग देखें (अपनी धारणा की तुलना में), फिर भी वे इसे केवल अपने अहंकार के कारण स्वीकार नहीं करेंगे। यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है।

अगर किसी ने केवल मेरे काम का विश्लेषण किया होता, तो उसे मेरे बारे में कोई भ्रम नहीं होता। मुख्यमंत्री बनने के बाद सबसे पहला काम जो मैंने किया, लगभग 20 साल पहले, जब मुझे प्रशासन का कोई पूर्व अनुभव नहीं था… मैं सबसे पहले कच्छ भूकंप से प्रभावित लोगों के पास गया। मैंने सार्वजनिक रूप से कहा कि भूकंप के बाद यह पहली दिवाली है, इसलिए हम इसे नहीं मनाएंगे और मैं दिवाली के दिन भूकंप पीड़ितों के परिवारों के साथ था और उनकी पीड़ा साझा की।

“मेरे बचपन के दिनों से, मेरा झुकाव आध्यात्मिक था। 'जन सेवा ही प्रभु सेवा' के सिद्धांत ने मुझे हमेशा प्रेरित किया"

और मुख्यमंत्री बनने के बाद मैंने जो पहला सार्वजनिक समारोह किया, वह गरीब कल्याण मेला था। अगर किसी को यह सब समझ में आता तो आज मेरे द्वारा किए गए काम, जैसे गरीब लोगों के घरों में शौचालय बनाना या गरीबों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराना, उनके लिए समझना आसान होता।

और इसका मतलब यह नहीं है कि मोदी में कोई दोष नहीं है या ऐसा कोई बिंदु नहीं है जिस पर मोदी की आलोचना की जा सके।

दूसरा, मैं महसूस करता हूं और यह मेरा दृढ़ विश्वास भी है। मैं अपने स्वस्थ विकास के लिए बहुत ही खुले मन से आलोचनाओं को बहुत महत्व देता हूं। मैं ईमानदारी से आलोचकों का बहुत सम्मान करता हूं। लेकिन, दुर्भाग्यवश आलोचकों की संख्या बहुत कम है। ज्यादातर लोग सिर्फ आरोप लगाते हैं। जो लोग धारणा के आधार पर खेल करने का प्रयास करते हैं, उनकी संख्या बहुत ज्यादा है, जबकि आलोचना के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है। उस बारे में अध्ययन करना पड़ता है, लेकिन आज की तेजी से भागती दुनिया में लोगों के पास इसके लिए फुर्सत नहीं है। लिहाजा, कभी-कभार मैं आलोचकों की कमी भी महसूस करता हूं।

आपके प्रश्न से ऐसा लगता है कि पिछली शताब्दी के पुराने सिद्धांत जैसे निजी क्षेत्र बनाम सार्वजनिक क्षेत्र, सरकार बनाम लोग, अमीर बनाम गरीब, शहरी बनाम ग्रामीण अभी भी आपके दिमाग में हैं और आप इसमें सब कुछ फिट करते हैं।

वैश्विक अनुभव कहता है कि सरकार उनके लिए होनी चाहिए जिनके लिए कोई नहीं है। सरकार का पूरा फोकस उनकी मदद करने पर होना चाहिए। हमारे आकांक्षी जिलों के कार्यक्रम का उदाहरण लें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत में कोई क्षेत्र पीछे न छूटे। हमने स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाया, संसाधन जुटाए, नागरिकों में विश्वास जगाया। यहां तक कि जो जिले कई मानकों में पिछड़ रहे थे, वे भी ऊपर आ गए हैं और उनमें काफी सुधार हुआ है। एक सफलता हासिल हुई है और आपको भविष्य में अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे।

जैसा कि सभी ने सोचा था कि खेल, समाज के एक निश्चित वर्ग तक ही सीमित है, लेकिन हमारे पास गरीब और पिछड़े क्षेत्रों में बेहद प्रतिभाशाली लोग हैं। अगर हम उन तक पहुंच जाते हैं, तो देश में खेल बहुत आगे बढ़ सकता है और नतीजों ने यह दिखाया है। टीयर 2, टीयर 3 शहरों और यहां तक कि गांवों के बच्चों को, इन दिनों, खेल के मैदान में प्रतिस्पर्धा करते देखा जा सकता है।

"कांग्रेस गोत्र के एक व्यक्ति के नेतृत्व में सभी सरकारें बनीं। इस प्रकार, उनके राजनीतिक और आर्थिक विचारों में कोई अंतर नहीं था।"

इसलिए मैं कहना चाहूंगा कि अगर हमारे काम का मूल्यांकन किया जाता तो आपके द्वारा पूछा गया सवाल नहीं उठता। यह प्रश्न धारणा (परसेप्शन) के आधार पर है न कि वास्तविक स्थिति के आधार पर।

आपको जोखिम लेने वाले के रूप में देखा जाता है, जबकि आपने भूमि अधिग्रहण कानूनों में संशोधन के लिए अपनी योजना को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया, आपने बड़े नोटों को बंद करके, श्रम सुधारों पर रूबिकॉन को पार करके और कृषि कानूनों को वापस लेने से इनकार करके, दायरे से बाहर जाकर उद्यम करने की अपनी तत्परता दिखाई। क्या आप इन जोखिम भरे परिणामों के बारे में चिंतित नहीं हैं, हालांकि ये आवश्यक हैं, वर्जित क्षेत्रों में प्रवेश करते हैं जहां आपके पूर्ववर्तियों को जाने में डर लगता था?

हमारे देश की राजनीति ऐसी है कि अब तक हमने एक ही मॉडल देखा है जिसमें अगली सरकार बनाने के लिए सरकारें चलाई जाती हैं।

मेरी मौलिक सोच अलग है। मेरा मानना है कि देश बनाने के लिए सरकार चलानी है।

अपनी पार्टी को जिताने के लिए सरकार चलाने की परंपरा रही है, लेकिन मेरा मकसद अपने देश को जिताने के लिए सरकार चलाना है।

और इसी बुनियादी सरोकार के कारण मैं गांधीजी के मंत्र के आधार पर फैसले लेता हूं जो देखता है कि मेरे फैसलों से सबसे गरीब या सबसे कमजोर व्यक्ति को क्या फायदा होगा या नुकसान होगा।

निर्णय लेते समय, मुझे थोड़ा सा भी निहित स्वार्थ दिखाई देने पर भी मैं रुक जाता हूं। निर्णय शुद्ध और प्रामाणिक होना चाहिए और यदि निर्णय इन सभी परीक्षणों से गुजरता है, तो मैं इस तरह के निर्णय को लागू करने के लिए दृढ़ता से आगे बढ़ता हूं।

"हमारे राजनीतिक क्लास के एक वर्ग में भारतीय लोगों को देखने के तरीके में एक गहरी समस्या है। वे केवल राज शक्ति देखते हैं, लेकिन वे भारतीयों में जन्मजात जन शक्ति नहीं देखते हैं"

भारत के लोग जिन चीजों के हकदार हैं, जो लाभ उन्हें दशकों पहले मिलना चाहिए था, वह अब तक उन तक नहीं पहुंचा है। भारत को ऐसी स्थिति में नहीं रखा जाना चाहिए, जहां उसे उन चीजों के लिए और इंतजार करना पड़े, इस देश के नागरिक जिसका हकदार हैं, हमें उन्हें देना चाहिए, और इसके लिए बड़े फैसले लेने चाहिए और जरूरत पड़ने पर कड़े फैसले भी लेने चाहिए।

भारत जैसे बड़े देश में क्या ऐसा निर्णय लेना संभव है जो 100 प्रतिशत लोगों को स्वीकार्य हो? हालांकि यदि कोई निर्णय कम संख्या में लोगों को स्वीकार्य नहीं है, तो वे गलत नहीं हैं। उनकी अपनी वास्तविक चिंताएँ हो सकती हैं लेकिन यदि निर्णय बड़े हित में है, तो इस तरह के निर्णय को लागू करना सरकार की जिम्मेदारी है।

यदि कोई राजनीतिक दल वादा करता है और उस वादे को पूरा करने में असमर्थ है, तो यह एक ऐसा पहलू है जिस पर राजनीतिक वर्ग को सुधार करना चाहिए। लेकिन एक और पहलू है जो इससे पूरी तरह से अलग है और विशेष रूप से अवांछनीय है और मैं कहूंगा, राजनीतिक दलों के कुछ वर्गों में घृणित लक्षण हैं। मैं जिस विशिष्टता की बात कर रहा हूं, वह बौद्धिक बेईमानी और राजनीतिक धोखेबाजी विशिष्टता की है।

ऐसे कई राजनीतिक दल हैं जो चुनाव से पहले बड़े-बड़े वादे करते हैं, उन्‍हें मैनिफेस्‍टो में भी डालते हैं। फिर, जब वक्‍त आता है वादा पूरा करने का, तो यही दल यू-टर्न ले लेते हैं और अपने ही किए वादों को लेकर हर तरह की मनगढ़ंत और झूठी बातें फैलाते हैं।

अगर आप किसान हित में किए गए सुधारों का विरोध करने वालों को देखेंगे तो आपको बौद्धिक बेइमानी और राजनीतिक धोखाधड़ी का असली मतलब दिखेगा।

ये वही लोग हैं जिन्‍होंने मुख्‍यमंत्रियों को पत्र लिखकर वही करने को कहा जो हमारी सरकार ने किया है। ये वही लोग हैं जिन्‍होंने अपने मैनिफेस्‍टो में लिखा कि वे वही सुधार लागू करेंगे जो हम लेकर आए हैं। फिर भी, चूंकि हम एक अलग राजनीतिक‍ दल हैं, जिसे लोगों ने अपना प्‍यार दिया है और जो वही सुधार लागू कर रहा है, तो उन्‍होंने पूरी तरह यू-टर्न ले लिया है और बौद्धिक बेइमानी का भौंडा प्रदर्शन कर रहे हैं। यह पूरी तरह से नजरअंदाज कर लिया गया है कि किसान हित में क्‍या है, सिर्फ इसकी सोची जा रही है कि राजनीतिक रूप से उन्‍हें फायदा कैसे होगा।

"अगर आप आज किसान समर्थक सुधारों का विरोध करने वालों को देखें तो आपको बौद्धिक बेईमानी और राजनीतिक धोखेबाजी का वास्तविक अर्थ दिखाई देगा।"

हम छोटे किसानों को हर तरह से सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। आप जिस कृषि कानून की बात कर रहे हैं, सरकार पहले दिन से ही कह रही है कि जिस भी बिंदु पर असहमति हो, सरकार एक साथ बैठकर उन मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार है। इस संबंध में कई बैठकें भी हो चुकी हैं, लेकिन अभी तक किसी ने भी किसी खास प्वाइंट पर असहमति नहीं जताई है कि हम इसे बदलना चाहते हैं।

यही राजनीतिक धोखाधड़ी, आधार, जीएसटी, कृषि कानूनों और यहां तक कि सैन्‍य बलों के हथियारों जैसे गंभीर मामलों पर देखी जा सकती है। कुछ वादा करो, उसके लिए तर्क दो और फिर बिना किसी नैतिक मूल्‍य के उसी चीज का विरोध करो।

आपको नहीं लगता कि राजनीतिक दल अपना माखौल बना रहे थे जब उनके सदस्‍यों ने नई संसद की जरूरत पर बात की, जबकि पिछले स्‍पीकर्स ने कहा कि नई संसद की जरूरत है? लेकिन अगर कोई ऐसा करने चले तो वे लोग कुछ बहाने बनाकर विरोध करेंगे, यह कितना सही है?'

इस तरह के विवाद पैदा करने वाले सोचते हैं कि मुद्दा यह नहीं है कि इन फैसलों से लोगों को फायदा होगा या नहीं, बल्कि उनके लिए मुद्दा यह है कि अगर इस तरह के फैसले लिए गए तो मोदी की सफलता को कोई नहीं रोक पाएगा। मैं सभी से आग्रह करना चाहता हूं कि मुद्दा यह नहीं है कि मोदी सफल होते हैं या विफल, बल्कि यह होना चाहिए कि हमारा देश सफल होता है या नहीं।

जब विश्लेषक इन मामलों को देखते हैं, तो वे भी इसे केवल एक राजनीतिक मामले के रूप में देखते हैं, न कि नैतिक और राजनीतिक स्थिरता के मामले के रूप में, लेकिन ये चीजें राजनीति से बहुत आगे हैं और लोगों और हमारे देश के लिए वास्तविक दुनिया के परिणाम हैं।

कई विशेषज्ञ यह मानते हैं कि विकास में तेजी लाने, इकोनॉमी और गवर्नेंस में सुधार और इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए आपके द्वारा किए गए उपाय सही दिशा में कदम हैं, लेकिन वे यह भी कहते हैं कि इन उपायों का फायदा मिलने में समय लगेगा और आपको 2024 में इसका लाभ नहीं मिल पााएगा।

यह प्रश्न राजनीतिक पंडितों के पुराने विचारों का भी परिणाम है। अगर यह सच होता तो लोगों ने मुझे 20 साल तक सरकार के मुखिया के रूप में काम करने का मौका नहीं दिया होता।

जो लोग इन लाइन पर सोचते हैं, वे न तो अपने देश के लोगों को जानते हैं, न ही उनकी सोच को। देश के लोग इतने समझदार हैं कि अच्छे निस्वार्थ भाव से किए गए सभी अच्छे कामों को समझ सकते हैं और उसका समर्थन कर सकते हैं और इसलिए मुझे देश की जनता ने लगातार 20 वर्षों तक सरकार के मुखिया के रूप में काम करने का अवसर दिया है।

बीज बोने वाले को इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिए कि उसका फल किसे मिलेगा। मुद्दा यह नहीं है कि मुझे अपनी आर्थिक नीतियों का लाभ मिलेगा या नहीं। मुद्दा यह है कि इसका फायदा देश को मिलेगा।

"मैं विशेषज्ञों का आभारी हूं कि उन्होंने स्वीकार किया कि विकास में तेजी लाने, इकोनॉमी और गवर्नेंस में सुधार के लिए हमारे द्वारा उठाए गए सही दिशा में कदम हैं।"

मैं इस बात को स्वीकार करने के लिए विशेषज्ञों का आभारी हूं कि विकास में तेजी लाने, इकोनॉमी और गवर्नेंस में सुधार और बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए हमारे द्वारा किए गए उपाय सही दिशा में उठाए गए कदम हैं।

लाभ दिखने में समय लग सकता है, लेकिन भारत के लोग स्मार्ट हैं और हमारी नीतियों को देख रहे हैं और उनका सकारात्मक मूल्यांकन कर रहे हैं। लोग भारत में आर्थिक गति और विकास के बारे में वैश्विक एजेंसियों और कंपनियों के बीच नए सिरे से दिलचस्पी ले रहे हैं।

लोग रिकॉर्ड एफडीआई इनफ्लो को देख रहे हैं, लोग बढ़ते निर्यात को देख रहे हैं, लोग अच्छे जीएसटी नंबरों को देख रहे हैं, लोग दर्जनों स्टार्टअप को यूनिकॉर्न बनते देख रहे हैं, लोग हाई फ्रीक्वेंसी इंडिकेटर्स का नोटिस ले रहे हैं, जो तेजी दिखा रहे हैं।

आपकी सरकार की विचारधारा (Ideological play), जिसे आपने कई मौकों पर व्यक्त किया है, वह प्रो-पुअर और प्रो-बिजनेस है। सरकार ने निरर्थक कानूनों को खत्म करने, करों को कम करने, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और पीएलआई जैसे कई उपाय किए हैं। न्यू इकोनॉमी के प्लेयर, विशेष रूप से डिजिटल, पहले से ही उनके साथ चल रहे हैं। कुछ का कहना है कि पुराना इंडिया इंक थोड़ा धीमा है, लेकिन यह आम सहमति है कि आप एयरक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग के लिए निजी क्षेत्र के साथ नवीनतम रक्षा समझौते जैसी चीजों से उनकी मानसिकता को तोड़ रहे हैं। प्रो-पुअर एजेंडा और भी बड़ा है। गवर्नेस के प्रति अप्रोच बदल गया है। आपने मध्यस्थहीनता (Disintermediation) के माध्यम से भ्रष्टाचार को खत्म किया है। आपने JAM के आइडिया को आगे बढ़ाया है। इसने सरकार को गरीबों का पता लगाने के लिए एक इकोनॉमिक जीपीएस दिया है। डीबीटी से बचत की राशि अभूतपूर्व है। इसने लोगों को सीधे तौर पर सशक्त बनाया है। चीजें कैसे बदली हैं इस पर आपके क्या विचार हैं?

प्राथमिक छात्रों, माध्यमिक छात्रों और पीएचडी करने वाले छात्रों के लिए सिलेबस और वातावरण अलग हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा में हैं।

हमारा देश अभी विकसित देश नहीं है, हम अभी भी गरीबी से जूझ रहे हैं। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को उसकी आवश्यकता और क्षमता के अनुसार अवसर मिलना चाहिए। तभी विकास संभव है।

गरीबों को एक प्रकार के अवसर की आवश्यकता होती है और वेल्थ क्रिएटर्स को दूसरे प्रकार के अवसर की आवश्यकता होती है। जब सरकार 'सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय' में विश्वास करती है, तो उसका दृष्टिकोण कभी भी एकतरफा नहीं हो सकता, बल्कि यह बहुआयामी हो जाता है। जिन चीजों में आप अंतर्विरोध देखते हैं, मैं एक अंतर्संबंध (Inter-linkage) देखता हूं।

"गरीबों को एक प्रकार के अवसर की आवश्यकता होती है और वेल्थ क्रिएटर्स को दूसरे प्रकार के अवसर की आवश्यकता होती है। प्रो-पुअर और प्रो-बिजनेस परस्पर अनन्य श्रेणियां (Exclusive Categories क्यों हैं?"

प्रो-पुअर और प्रो-बिजनेस परस्पर अनन्य श्रेणियां क्यों हैं? हमें नीतियों को इनमें से एक या दूसरे बाल्टियों में क्यों विभाजित करना चाहिए? मेरे हिसाब से नीति निर्धारण जन हितैषी होना चाहिए। इन कृत्रिम श्रेणियों को बनाकर आप समाज में अन्योन्याश्रयता (Interdependence) को खो रहे हैं। व्यवसाय और लोग विरोधी उद्देश्यों के साथ काम नहीं कर रहे हैं।

उदाहरण के लिए, जब पीएलआई योजना कंपनियों को मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी का विस्तार करने और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोजगार के नए अवसर पैदा करने की अनुमति देती है, तो क्या गरीबों को लाभ नहीं होता है? इसका उद्देश्य पीएलआई योजना के माध्यम से अधिक रोजगार सृजित करना है। जब हम JAM के माध्यम से पब्लिक सर्विस डिलीवरी में लीकेज को रोककर हजारों करोड़ रुपये बचाते हैं, तो क्या इससे मध्यम वर्ग, करदाता और व्यवसायों को लाभ नहीं होता है? वास्तव में, जब गरीबों और किसानों को डायरेक्ट ट्रांसफर प्राप्त होता है, तो वे अधिक उपभोग करते हैं, जो बदले में मध्यम वर्ग और ओवरऑल इकोनॉमी की मदद करता है।

कई मायनों में आपने हर मुद्दे के गवर्नेंस पैरडाइम को बदल दिया है। एक राष्ट्र, एक कार्ड को देखें। आपने इसे पोर्टेबल बना दिया है, जबकि मनरेगा जैसे कार्यक्रम जारी हैं, आप जवाबदेही लाए हैं। आपने इस कार्यक्रम को भी सशक्तिकरण के साथ सामंजस्य बैठाया है। उज्ज्वला, बिजली, खाद्यान्न वितरण की भी यही स्थिति है। इन सभी योजनाओं में गवर्नेंस, अवधारणा के वास्तविक प्रमाण के साथ स्तरित (Layered) है। खराब डिलीवरी के कारण पिछली सरकारों को भरोसे की कमी का सामना करना पड़ा। पिछले सात वर्षों में सरकार भरोसे पर कितनी आगे बढ़ी है?

आप अच्छी तरह जानते हैं कि मैं किसी शाही परिवार से नहीं आता। मैंने अपना जीवन गरीबी में गुजारा है। मैंने 30-35 साल भटकते सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में बिताए हैं। मैं सत्ता के गलियारों से दूर था और जनता के बीच रहा हूं और इस वजह से मैं अच्छी तरह जानता हूं कि आम आदमी की समस्याएं, आकांक्षाएं और क्षमताएं क्या हैं। इसलिए मेरे फैसले (जब देश ने मुझे काम करने का मौका दिया है) आम आदमी की मुश्किलें कम करने की दिशा में काम करने का एक प्रयास है।

शौचालय को कभी किसी ने लोगों की सेवा करने के तरीके के रूप में नहीं देखा, लेकिन मुझे लगा कि शौचालय लोगों की सेवा करने का एक तरीका है।

और इसलिए जब मैं निर्णय लेता हूं तो आम आदमी को लगता है कि यह प्रधानमंत्री हमें समझता है, हमारी तरह सोचता है और हम में से एक है, उनके बीच अपनेपन की यह भावना हर परिवार को यह महसूस कराती है कि मोदी हमारे परिवार के सदस्य की तरह हैं। ये विश्वास किसी PR द्वारा बनाई गई धारणा से विकसित नहीं हुआ है। यह विश्वास पसीने और मेहनत से अर्जित किया गया है।

मैंने ऐसा जीवन जीने का प्रयास किया है जहां मैं चाकू की धार पर चलता हूं, लोगों से संबंधित हर मुद्दे का अनुभव करता हूं और जीता हूं। सत्ता में आने पर मैंने लोगों से तीन चीजों का वादा किया था:

मैं अपने लिए कुछ नहीं करूंगा।

मैं गलत इरादे से कोई काम नहीं करूंगा।

मैं मेहनत की नई मिसाल गढ़ूंगा।

मेरी इस निजी प्रतिबद्धता को लोग आज भी देखते हैं। इस तरह लोगों का विश्वास विकसित होता है।

पिछले सात वर्षों में हम जो कुछ भी हासिल कर पाए हैं, उसका आधार सरकार और नागरिकों के बीच अपार पारस्परिक विश्वास है।

हमारे पॉलिटिकल क्लास का एक बहुत बड़ा वर्ग भारतीय लोगों को जिस तरह से देखते हैं, उसमें एक गहरी समस्या है। वे केवल राज शक्ति को देखते हैं और भारतीय लोगों को केवल उसी चश्मे से देखते हैं, लेकिन वे भारतीयों में जन्मजात जनशक्ति नहीं देखते हैं, वे लोगों के कौशल और ताकत, क्षमता और क्षमता को नहीं देखते हैं।

"सेल्फ अटेस्टेशन की अनुमति देने में या व्यवसायों के लिए हजारों अनुपालनों को कम करने में, हमने एक विश्वास-आधारित प्रणाली का निर्माण किया है।"

डिजिटल पेमेंट का ही उदाहरण लें। मुझे फरवरी 2017 में संसद में एक पूर्व वित्त मंत्री का एक भाषण याद है। ठेठ कृपालु स्वर में, जो केवल 'राज शक्ति' जानने वालों को आता है, उन्होंने पूछा: “गांव के मेले में डिजिटल तरीके से आलू और टमाटर खरीदें। गरीब महिला क्या करेगी? क्या वह डिजिटल पेमेंट जानती है? क्या वहां इंटरनेट है?"

उसका जवाब जन शक्ति ने दिया था जब भारत दुनिया में नंबर एक डिजिटल भुगतान देश बन गया था, सिर्फ तीन साल बाद, 2020 में, 25 अरब से अधिक लेनदेन के साथ। केवल अगस्त 2021 में ही, UPI का उपयोग करके 6.39 लाख करोड़ रुपये से अधिक का लेन-देन किया गया, जो हमारे युवाओं द्वारा पूरी तरह से घरेलू सॉल्यूशन है।

यह डिजिटल क्रांति उन्हीं लोगों द्वारा संचालित है जिन्हें कम करके आंका गया था: ठेला वाले, छोटे दुकानदार, सड़क के किनारे के समोसा और चायवाले, वे महिलाएं जो दैनिक किराने का सामान खरीदती हैं और भुगतान का एक सुरक्षित तरीका ढूंढती हैं। इन सभी ने न केवल खुद को सशक्त बनाया है, बल्कि अपनी जन शक्ति से डिजिटल होकर भारत को विश्व स्तर पर सशक्त बनाया है।

हमारे लोगों को कम आंकने की यही घटना कई अन्य मामलों में हुई है।

जब हमने शौचालय बनाएं, तो उन्होंने कहा कि लोग इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे और खुले में शौच करने के लिए वापस चले जाएंगे। जब हमने गैस कनेक्शन दिया तो उन्होंने कहा कि लोग पहली बार इसका इस्तेमाल करेंगे और रिफिल नहीं लेंगे। जब हमने छोटे उद्यमियों को कोलैटरल फ्री लोन दिया, तो उन्होंने कहा कि पैसा कभी वापस नहीं आएगा। विडंबना यह थी कि इन लोगों ने अपने दोस्तों और मित्रों को कर्ज दिया और एनपीए की समस्या पैदा की, लेकिन छोटे उद्यमियों को कर्ज देने के खिलाफ थे।

हमारे देश के गरीब और आम नागरिकों के प्रति ऐसा रवैया दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है।

हम अपने लोगों में जन शक्ति को राष्ट्र को आगे ले जाने और इसकी अपार क्षमता के आगे झुकने के तरीके के रूप में देखते हैं।

"हमारा अनुभव बताता है कि टेक्नोलॉजी का अधिकतम लाभ गरीबों को ही मिलता है। उन्हें सेवाओं का लाभ उठाने के लिए रिश्वत देने या कतार में पीछे रहने की आवश्यकता नहीं है।"

गवर्नेंस में पैरडाइम शिफ्ट को प्रभावित करने के कारणों में से एक यह है कि हम जिस मानसिकता में बदलाव लाए हैं, वह है- चाहे वह योजनाओं के स्कोप में हो, डिलीवरी के पैमाने में हो, या योजनाओं की प्रकृति में ही हो। हालांकि, मानसिकता में सबसे बड़ा बदलाव यह है कि हमें अपने लोगों पर भरोसा है। चाहे सेल्फ अटेस्टेशन की अनुमति देना हो या व्यवसायों के लिए हजारों अनुपालनों को कम करना हो, हमने एक विश्वास-आधारित प्रणाली का निर्माण किया है।

पिछले कुछ वर्षों में देश भर में करोड़ों परिवारों ने स्वेच्छा से अपनी एलपीजी सब्सिडी छोड़ दी है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वे जानते थे कि छोड़ी गई सब्सिडी से यह सुनिश्चित होगा कि देश भर के करोड़ों गरीब परिवारों को स्वच्छ एलपीजी ईंधन मिल सके। जनता कभी हम पर पर्याप्त भरोसा नहीं करती और हजारों रुपये नहीं छोड़ती, अगर वे हमारे परफॉर्मेंस की सराहना नहीं करते। इसी तरह, 2014 से कर चोरी में गिरावट आई है। सरकार द्वारा विभिन्न सुधारों और बेहतर निगरानी के अलावा, करों से बचने का इरादा कम है। जैसे-जैसे लोगों ने यह देखना शुरू किया कि उनके कर योगदान का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा रहा है, करों से बचने का इरादा काफी कम हो गया है।

यदि आप भारत के पिछले 74 वर्षों को देखें, तो चार चरण रहे हैं: पहला नेहरूनॉमिक्स था। फिर इंदिरा गांधी। इंदिरा गांधी के 1970 और 1980 के दशक अलग थे। पहले उन्होंने आत्मनिर्भरता और गरीबी कार्यक्रमों के बारे में बात की। फिर उन्होंने 1980 के दशक में अपने रुख को कम करना शुरू कर दिया, डायल डाउन किया और आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की। यह चुपके से सुधारों का दौर था। तीसरे चरण में, पीवी नरसिम्हा राव ने इस रणनीति को बड़े पैमाने पर भुनाया। अब, हमारे पास मोदीनॉमिक्स है। मोदीनॉमिक्स में, सुधारों का साहस अभूतपूर्व है। यह संसद में आपके पूर्ण बहुमत से संचालित होता है। आप ऐसे व्यक्ति हैं जो सामाजिक पूंजी का उपयोग सामाजिक भलाई के लिए कर रहे हैं।

हमारे देश में बनी सभी सरकारें मूल रूप से कांग्रेस गोत्र के एक व्यक्ति के नेतृत्व में बनी हैं और इसीलिए, उनमें से प्रत्येक के लिए, उनकी पॉलिटिकल थॉट प्रोसेस और इकोनॉमिक थॉट प्रोसेस में कोई अंतर नहीं था। अटलजी को लोगों ने मौका दिया, लेकिन उनके पास पूर्ण बहुमत नहीं था, यह गठबंधन सरकार थी। मैं भाग्यशाली हूँ कि यह पहली गैर-कांग्रेसी सरकार है जिसे लोगों ने पूर्ण बहुमत दिया था। इसका मतलब है कि इस देश के लोगों ने पूर्ण परिवर्तन के लिए मतदान किया।

"यदि हमने समय पर मैपिंग पर अपनी नीतियों को बदल दिया होता, तो शायद भारत मैप टेक्नोलॉजी में ग्लोबल लीडर बन सकता था।"

मेरे सामने पिछले 70 सालों का लोगों का अनुभव था और इस वजह से यह तय करना आसान था कि क्या सही है और क्या गलत। पिछले सात दशकों की सफलता-असफलता मेरे सामने थी, और इसी वजह से मैंने ऐसी नीतियां और रणनीतियां अपनाईं जिससे आम आदमी को फायदा हो और देश भी आगे बढ़े।

वर्षों के बाध्यकारी रिफॉर्म्स के बाद, हम दृढ़विश्वास के माध्यम से रिफॉर्म्स लाए हैं।

हमने कोविड काल में रिफॉर्म्स किए, कुछ ऐसा जो अद्वितीय था यदि आप दुनिया भर के देशों को देखें। चाहे बीमा, कृषि और श्रम जैसे स्थापित क्षेत्रों में या दूरसंचार और अंतरिक्ष जैसे भविष्य के क्षेत्रों में।

एक भी सेक्टर ऐसा नहीं है जहां हम मूलभूत रिफॉर्म्स नहीं लाए हैं। हमने विभिन्न रिफॉर्म्स को लागू करने के लिए राज्य सरकारों के लिए अनुकूल माहौल भी बनाया।

हमारे रिफॉर्म्स का उद्देश्य न केवल आत्मनिर्भर भारत के हमारे आर्थिक उद्देश्य को प्राप्त करना है, बल्कि ईज ऑफ लिविंग पर भी ध्यान केंद्रित करना है, पिछली सरकारों के विपरीत, जो आर्थिक सुधारों को बिजनेस वेंचर्स को सुविधाजनक बनाने के एक संकीर्ण चश्मे के माध्यम से देखती थीं।

उदाहरण के लिए, हमारी सरकार ने राज्यों को अतिरिक्त उधार लेने की सुविधा दी, यदि उन्होंने 'वन नेशन, वन राशन कार्ड' लागू किया, जो करोड़ों प्रवासियों को पीडीएस पात्रता प्राप्त करने की अनुमति देगा। क्या यह करोड़ों गरीबों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद नहीं करता है?

लेकिन इकोनॉमिक रिफॉर्म्स कितने फायदेमंद हैं अगर कोई मिलान और एक साथ गवर्नेंस रिफॉर्म्स नहीं हैं? हमने एक साथ और समानांतर दोनों में काम किया है। 1,600 से अधिक पुराने कानूनों को खत्म कर दिया गया है। सभी बोर्ड में कई रिफॉर्म्स ने व्यापार और लोगों के लिए अनुपालन आसान बना दिया है। ऐसे कई और उपाय पाइपलाइन में हैं।

"यह डिजिटल क्रांति उन लोगों द्वारा संचालित है, जिन्हें कम करके आंका गया था: रेहड़ी-पटरी लगाने वाले, छोटे दुकानदार, समोसा और चायवाले।"

अपनी पूरी सुधार यात्रा में हमने लोगों को साथ लिया है। हमारे देश में, शायद यह अंग्रेजों की विरासत है कि लोगों और सरकार को अलग-अलग संस्थाएं माना जाता है और केवल सरकारों से देश की बेहतरी की दिशा में काम करने की उम्मीद की जाती है। हमारा मॉडल अलग है; हम लोगों को विकासशील भारत की यात्रा में भागीदार मानते हैं और इसलिए बेहतर परिणाम देने में सक्षम हैं।

 वैक्सीनेशन भी गवर्नेंस का एक क्लासिक उदाहरण है। आपने, सभी तक पहुंचने के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया ताकि लोगों तक टीके पहुंचे। भारत में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था और यह लोगों तक कैसे पहुंचा? यह उन पर निर्भर था कि वे कहाँ और कब जाना चाहते हैं। यह वही देश था जहां आप निर्धारित दुकान के बाहर राशन नहीं खरीद सकते थे।

आपके प्रश्न में ही कई उत्तर हैं। मैं भारत के टीकाकरण अभियान की सफलता के बारे में आपकी समझ की सराहना करना चाहता हूं। जैसा कि आपने ठीक ही बताया, यह वही देश है जहां एक व्यक्ति निर्धारित दुकान के बाहर राशन नहीं खरीद सकता था और यह हमारी सरकार थी जो 'वन नेशन वन राशन कार्ड' योजना लाई।

सोचिए,अगर हमारा देश वैक्सीन नहीं बनाया होता। क्या स्थिति होती? हम जानते हैं कि दुनिया की एक बड़ी आबादी के पास कोविड के टीके नहीं हैं। आज, टीकाकरण में हमारी सफलता भारत के आत्मनिर्भर होने के कारण है।

कुछ साल पहले एक विज्ञान सम्मेलन में मैंने कहा था कि "जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान से आगे बढ़कर "जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान" के मंत्र पर काम करने का समय आ गया है। हमने रिसर्च को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।

"दुर्भाग्य से स्वतंत्र टिप्पणीकार भी 'साइलो' के आदी हो गए हैं। उन्हें पता नहीं है कि 'एकीकृत अप्रोच' के परिणाम क्या हैं।"

हमने मई 2020 में टीकाकरण अभियान की योजना बनाना शुरू कर दिया था, जब दुनिया में कहीं भी कोई टीका मंजूरी के करीब नहीं था। हमने तो जल्दी ही तय कर लिया था, हम नहीं चाहते कि यह टीकाकरण अभियान पुराने तरीके से चलाया जाए, जहां लोगों को टीका लगाने में दशकों लग सकते हैं। हम इसे तेज, कुशल, भेदभाव-मुक्त और समयबद्ध तरीके से चलाना चाहते थे।

लेकिन जैसा कि हमारे देश के लोग समझते हैं, इतनी बड़ी संख्या में लोगों का टीकाकरण करने में कई जटिलताएं आती हैं। टीकों का उचित तापमान नियंत्रण सुनिश्चित करना, देश के कोने-कोने में कोल्ड-चेन इंफ्रास्ट्रक्चर, मैन्युफैक्चरिंग प्लांट से दूरस्थ टीकाकरण केंद्र तक समय पर डिलीवरी, सुई और सीरिंज की सप्लाई, टीकाकरण करने वालों का प्रशिक्षण और प्रतिकूल रिएक्शन की तैयारी, त्वरित रजिस्ट्रेशन से सर्टिफिकेट जनरेशन से लेकर अगली अपॉइंटमेंट के लिए रिमाइंडर तक......और इस सब के बीच, हमारे पास ऐसे लोग भी थे जिन्होंने जानबूझकर घबराहट और चिंता पैदा करने की कोशिश की। मैं बहुत कुछ बता सकता हूं। ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो इतनी बड़ी पहल के पर्दे के पीछे चली गईं। हमें वैक्सीन अभियान की सफलता को समझने के लिए संपूर्ण लॉजिस्टिक, प्लानिंग और प्रोग्रेस को देखने की जरूरत है। यह एक बहुत बड़ा प्रयास है जिसमें देश भर में इतने सारे लोग जुटे हुए हैं। मुझे उम्मीद है कि मीडिया दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान को आश्चर्यजनक सफलता दिलाने में हमारे लोगों के प्रयासों को उजागर करने के लिए समय निकालेगा।

हमने सुनिश्चित किया कि टेक्नोलॉजी, वैक्सीनेशन प्रोसेस की रीढ़ बने। पिछले सात वर्षों में, हमने गरीबों को अन्याय से बचाने के लिए टेक्नोलॉजी का लाभ उठाया है। हमारा अनुभव बताता है कि टेक्नोलॉजी का अधिकतम लाभ गरीबों को ही मिलता है। टेक्नोलॉजी के कारण गरीबों को उन सेवाओं का लाभ उठाने के लिए रिश्वत देने या कतार में पीछे रहने की जरूरत नहीं है, जिनके वे हकदार हैं। उन्हें भी किसी और की तरह, समान अधिकार हैं। एक गरीब प्रवासी की कल्पना करें, जो अब उसी शहर में उसी टीके की दूसरी खुराक ले सकता है जहां वह काम करता है, भले ही उसने अपने गांव में पहली खुराक ली हो। टेक्नोलॉजी यह सुनिश्चित करती है कि उसे सही समय पर और निर्बाध रूप से सही टीका मिले।

"कोविड-19 लड़ाई से सबसे बड़ा सबक यह है कि भारत में एकजुट होने की एक अद्वितीय क्षमता है और जरूरत पड़ने पर डिलीवर करने जबरदस्त क्षमता है।"

हम महामारी के दौरान बड़ी संख्या में लोगों की जान बचाने में कामयाब रहे। हम उन्हें नहीं भूल सकते, जिन्हें हमने खोया है। उनके परिवारों के लिए यह अपूरणीय क्षति है। जब हम दुनिया में भारत की स्थिति की तुलना करते हैं, तो हमने कई विकसित देशों की तुलना में बेहतर परफॉर्मेंस किया है। हालाँकि, हमारे बीच निहित स्वार्थ हैं जिनका एकमात्र उद्देश्य भारत का नाम खराब करना है। कोविड-19 एक वैश्विक संकट था जिसमें सभी देश, समान रूप से प्रभावित थे। इस परिदृश्य में, इस तरह के नकारात्मक अभियानों के बावजूद भारत ने कई विकसित देशों से बेहतर परफॉर्मेंस किया है। मुझे अपने लोगों पर भरोसा है और उन्होंने दुनिया के लिए एक मिसाल कायम की है।

सरकार अब ऐसे मुद्दों को हाथ लगा रही है जिसे पहले छूने से बचा जाता था। भू-स्थानिक (Geospatial एकाधिकार को समाप्त करना उस दिशा में एक बड़ा कदम है। पहले इस काम से बचा जाता था। अब आप राशन की दुकानों, शौचालयों आदि की मैपिंग कर सकते हैं? अगर कोई जीपीएस-नियंत्रित ऐप बनाता है जो आपको निकटतम शौचालय के बारे में बताता है, तो यह एक बड़ी समस्या का समाधान करता है। जब आपने इसके बारे में सोचा तो आपको क्या विचार थो? आप इस 'भारत के त्रिभुज' (Triangulation of India) को कैसे आगे ले जाने की योजना बना रहे हैं?

मैं आपके साथ एक पुराना अनुभव साझा करूंगा। कोई 15-20 साल पहले जब सरदार सरोवर बांध बनाया जा रहा था, उस समय बांध में काफी पानी आने पर लोग इसे देखने जाया करते थे, लेकिन वहां साइनबोर्ड थे जो कह रहे थे, "फोटोग्राफी निषेध है।" मैं पूछता था कि फोटोग्राफी पर प्रतिबंध लगाने का क्या फायदा जब वही बांध सैटेलाइट इमेजरी में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। मैंने ऐसे कदम का तर्क पूछा। सिस्टम ने केवल इतना कहा कि यह कानून है। मैंने तय किया कि ऐसे कानून अप्रासंगिक हो गए हैं और इन्हें बदलने की जरूरत है। इसके बजाय, मैंने सरदार सरोवर बांध पर एक फोटोग्राफी प्रतियोगिता शुरू की और परिणामस्वरूप बांध और भी लोकप्रिय हो गया। हमने बांध पर जाने के लिए नाममात्र का टिकट भी शुरू किया था। यह मेरे लिए बहुत ही सुखद स्मृति है कि हमने बांध पर पर्यटक संख्या नंबर 5 लाख के रूप में बारामूला के एक युवा जोड़े को सम्मानित किया था।

देखिए, मुझे सरकार के मुखिया के रूप में शासन में 20 वर्षों का अनुभव मिला है, लेकिन इससे पहले भी, मैंने दूर-दूर तक यात्रा की है और चीजों को बहुत बारीकी से देखा है।

अगर हमने समय पर मैपिंग पर अपनी नीतियों में बदलाव किया होता, तो शायद भारत मैप टेक्नोलॉजी में ग्लोबल लीडर बन सकता था। इसके बजाय, हमारी नीतियां पुरातन बनी रहीं और हमारे नवाचार-उन्मुख (Innovation-oriented) और रचनात्मक युवाओं ने बेहतर अवसरों के लिए देश छोड़ दिया।

हमारे देश के युवाओं में अपार क्षमता है। हमें उन्हें प्रोसेस का हिस्सा, व्यवस्था का हिस्सा, निर्णय लेने वाली प्रणाली का हिस्सा बनाना चाहिए।

हमने अक्सर देखा है कि भिन्न डेटा सेट जितने अधिक ऐक्सेसबल होते हैं, उतने ही अधिक वे एक संपत्ति बन जाते हैं। आप इसे हमारे अप्रोच में देख सकते हैं जब हम एक घरेलू नेविगेशन प्रणाली NaVIC के साथ आए थे। अब मैप्स में रिफॉर्म के साथ, एक बार जब हमारे यंग इनोवेटर्स दिलचस्प प्रोडक्ट बनाने के लिए उनका उपयोग करते हैं तो यह ईज ऑफ लिविंग में काफी सुधार कर सकता है।

भू-स्थानिक (Geospatial) टेक्नोलॉजी में सुधार कई स्टार्टअप और यहां तक कि व्यवसायों के लिए आर्थिक अवसर पैदा करेगा। स्टार्टअप अक्सर एक आइडिया पर नहीं, बल्कि किसी समस्या का समाधान खोजने के लिए स्थापित होते हैं। अब, जब हम अपने युवाओं को मैपिंग पर अपने उत्पादों के साथ आने के लिए सशक्त बनाते हैं, तो वे निश्चित रूप से हमारे ड्राइवरों और हमारे उद्यमियों के सामने आने वाली समस्याओं का समाधान करेंगे।

हमारी राजनीति, चुनावी सफलता के लिए भारतीयों के बीच विभाजन को प्राथमिकता देती है। पिछले सात वर्षों में प्रधानमंत्री के रूप में, राजनीतिक व्यवस्था में एकीकृत विचारों को स्वीकार करना आपके लिए कितना मुश्किल रहा है?

मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि आप मेरे भाषणों को सुनें, पिछले 20 वर्षों में चाहे वह गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में हो या भारत के प्रधानमंत्री के रूप में।

मैंने हमेशा क्या कहा है? पहले जब मैं गुजरात में था तो मैंने 6 करोड़ गुजराती कहा... और अब मैं 130 करोड़ भारतीय कहता हूं।

इसका तात्पर्य क्या है? कि जब मैं बोल रहा हूं, मैं बिना किसी भेदभाव के पूरी जनसंख्या के लिए बोलता हूं।

हमारी विकास नीतियों का लक्ष्य पूर्ण संतृप्ति (complete saturation) या शत-प्रतिशत है - चाहे वह विद्युतीकरण हो, आवास हो, शौचालय कवरेज हो या अन्य। जब पैमाना इतना बड़ा है, जब हम पूर्ण परिवर्तन का लक्ष्य बना रहे हैं, तो भेदभाव की गुंजाइश कहाँ है? हम एक भारत श्रेष्ठ भारत के मंत्र से प्रेरित हैं।

मैं आपको एक ऐसे विषय का उदाहरण देता हूं जिसने दशकों से देश को विभाजित किया है- आरक्षण का। इतिहास की किताबें उठाइए और आप देखेंगे कि आरक्षण के इस एक मुद्दे से संबंधित आंदोलन, काउंटर-आंदोलन, कितनी दर्दनाक घटनाएं हुईं।

"कोविड-19 एक वैश्विक संकट था। नकारात्मक अभियानों के बावजूद भारत ने अपने साथ के देशों और कई विकसित देशों से बेहतर प्रदर्शन किया है।"

लेकिन कुछ साल पहले जब हमारी सरकार को सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का सम्मान मिला, तो क्या कोई कटुता थी? क्या किसी ने विरोध किया? नहीं, इस निर्णय की सामाजिक स्तर पर सराहना की गई। ऐसी सहज प्रक्रिया, बिना किसी विरोध के, एक बहुत बड़ी बात है और राजनीतिक विद्वानों द्वारा अधिक अध्ययन के योग्य है।

मैं आपको एक और उदाहरण दूंगा।

दो दशक पहले अटल जी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने तीन राज्यों का निर्माण किया था। यह सौहार्द की भावना के साथ किया गया था। नए राज्यों में और उन राज्यों में समारोह हुए जिनमें से नए राज्यों को तराशा गया। इसके विपरीत, देखें कि यूपीए सरकार ने तेलंगाना-आंध्र प्रदेश के मुद्दे को कैसे संभाला। उनके कुप्रबंधन की कड़वाहट आज भी बरकरार है।

आइए, भाषा के बारे में बात करते हैं, एक और विषय जिसने दशकों से लोगों को विभाजित किया है। बार-बार राजनीति करने से मातृभाषा का महत्व वर्षों से कम होता जा रहा है। हमारी सरकार ने स्थानीय भाषा में चिकित्सा और तकनीकी शिक्षा प्रदान करने का निर्णय लिया। विभाजन की बात भूल जाइए, इस कदम का स्वागत किया गया।

उसी भावना में, मैं कृषि से संबंधित कुछ का उल्लेख करता हूं। हमारी सरकार ने छोटे किसानों के लिए अथक प्रयास किया है, लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि हमने बड़े किसानों के हित के खिलाफ फैसले लिए हैं? बिल्कुल नहीं।

हम आर्थिक समृद्धि के लिए काम करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन हम इकोलॉजी की जरूरतों को पूरा करने में भी विश्वास करते हैं। हम ये क्यों करते हैं? क्योंकि हमारी विचार प्रक्रिया (थॉट प्रोसेस) के मूल में "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास" का आदर्श है।

सही भी कहा है- संघे शक्ति कलौ युगे- एकता में ताकत है।

कोविड-19 लड़ाई के दौरान राज्य और हेल्थकेयर सिस्टम की तैयारियों के बारे क्या सबक हैं जिन्हें आप अब बदलने और बदलने की योजना बना रहे हैं?

भारत से पहले अन्य देशों में महामारी की शुरुआत हुई थी। मैं वैश्विक स्थिति और रुझानों का आकलन कर रहा था। मैं हर जगह भ्रम और व्यक्तिगत स्तर पर गंभीरता की कमी भी देख सकता था। हम जानते थे कि भारत भी इससे प्रभावित होगा। मैंने योजना बनाना शुरू कर दिया कि कैसे पूरे देश को इसके लिए एक साथ लाया जाए। आखिरकार, लोगों का संकल्प और अनुशासन मायने रखेगा और इसके बिना, इस महामारी से निपटना असंभव होगा। तभी मेरे मन में जनता कर्फ्यू का ख्याल आया। इसने इच्छित कहानी को दूर-दूर तक फैलाया। यह एक बड़ी सफलता की कहानी है।

"एक भी सेक्टर ऐसा नहीं है जहां हम मूलभूत रिफॉर्म्स नहीं लाए हैं। हमने राज्य सरकारों के लिए रिफॉर्म्स को लागू करने के लिए अनुकूल माहौल भी बनाया है।"

इसी तरह, महामारी में सबसे बड़ी भूमिका हेल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर्स की थी। उनका मनोबल बढ़ाने की जरूरत है। थालियों को पीटना और दीये जलाना एक बड़ा जनआंदोलन बन गया और इसने हमारे स्वास्थ्य कर्मियों के मनोबल को बढ़ाने में मदद की। यह एक बड़ा केस स्टडी हो सकता है। इससे चिकित्सा कर्मियों के साथ दुर्व्यवहार के मामले भी कम हुए और उनके प्रति सम्मान बढ़ा। लोग सफेद कोट में चिकित्सा कर्मियों को भगवान के रूप में देखाते थे।

सरकार के मुखिया के रूप में 20 वर्षों का मेरा अनुभव कहता है कि सरकार में लोग अक्सर लोगों की शक्ति को कम आंकते हैं। जब हम उनकी शक्ति पर भरोसा करते हैं और उनसे जुड़ते हैं, तो हमें परिणाम मिलते हैं। देश ने इसे स्वच्छ भारत अभियान, गिव इट अप, वगैरह के दौरान देखा है। मैंने इसे अपने गुजरात के दिनों में भी देखा है।

हमारे देश में सरकारों की सबसे बड़ी कठिनाई 'साइलो' है और और दुर्भाग्य से सभी स्वतंत्र टीकाकार भी साइलो के आदी हो गए हैं। इस वजह से, उन्हें पता नहीं है कि "एकीकृत अप्रोच" और "संपूर्ण सरकारी अप्रोच" के परिणाम क्या हैं।

शासन में अपने 20 साल के अनुभव से मैंने जो सबसे बड़ी बात सीखी है, वह यह है कि अगर मैं कुछ शुरू करता हूं, तो मैं उसे आइसोलेशन में नहीं करता। विजन का विकास होता है और शुरुआत में मैं सब कुछ नहीं बताता। जन धन खातों का उदाहरण लें, लोगों को लगा कि यह सिर्फ एक वित्तीय समावेशन कार्यक्रम है। आधार का ही उदाहरण लें, लोगों को लगा कि यह सिर्फ एक पहचान पत्र है, लेकिन इस महामारी के समय जब दुनिया भर की सरकारें जरूरतमंदों को पैसा भेजना चाहती थीं, तो वे ऐसा नहीं कर पाईं। भारत एक बटन के क्लिक के साथ एक महामारी के बीच ऐसा करने में सक्षम था, हमारी करोड़ों माताओं को सीधे उनके खाते में पैसे मिले।

यह दर्शाता है कि हमारा दृष्टिकोण कैसे एकीकृत, समग्र और भविष्यवादी है।

और जैसे पैसे भेजे गए, जरूरतमंदों को खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया और यह योजना अभी भी जारी है। मैंने कहीं सुना है कि पिछली सदी में महामारी में भूख से बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई थी। इसलिए, हम इसके प्रति बहुत सचेत थे और संकट की इस घड़ी में, पहले दिन से ही हम इतनी बड़ी आबादी को कई महीनों से मुफ्त राशन दे रहे हैं। जब कोई नकद देता है तो ट्रांसफर की गई राशि का हवाला देकर आसानी से सुर्खियां बटोर सकता है, लेकिन यह सुनिश्चित करना कि खाद्यान्न बिना भ्रष्टाचार, बिना देरी और बिना भेदभाव के लंबे समय तक गरीबों तक पहुंचे, यह एक बड़ी बात है।

कोविड-19 लड़ाई से हमारे लिए सबसे बड़ा सबक यह रहा है कि भारत में एकजुट होने, एक सामान्य उद्देश्य खोजने, एक साथ आने और जरूरत पड़ने पर डिलीवर करने की जबरदस्त क्षमता है। पीपीई किट के शुद्ध आयातक होने से अब हम दुनिया भर में सबसे बड़े निर्माताओं में से एक बन गए हैं।

इसी तरह, हम न केवल वेंटिलेटर की संख्या में तेजी से वृद्धि करने में कामयाब रहे, बल्कि यह भी बड़े पैमाने पर घरेलू मैन्युफैक्चरिंग के माध्यम से किया। भारत ने वायरस के बारे में सीमित वैश्विक ज्ञान, लॉकडाउन के आर्थिक प्रभाव और मौजूदा स्टेट कैपेसिटी बाधाओं के बावजूद यह हासिल किया। क्या ट्रांसफॉर्मेटिव चेंज लाने की हमारी क्षमता का कोई बेहतर प्रमाण है? पिछले सात वर्षों में, हमने राष्ट्रीय लक्ष्यों के लिए सामूहिक प्रयासों का स्वभाव बनाया है। हमारे लिए, पिछले सात वर्षों में यह स्पष्ट था कि यदि हम अपने नागरिकों की अप्रकट ऊर्जा का उपयोग करते हैं तो हम जबरदस्त परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन अब, मेरे विचार से सभी के लिए यह एक महत्वपूर्ण सीख रही है।

इसके अलावा, कोविड -19 की लड़ाई ने हमें यह भी महसूस कराया है कि हमें विश्व स्तरीय चिकित्सा बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए अपने प्रयासों को और मजबूत करने की आवश्यकता है। आज बहुत से लोग स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने की आवश्यकता के बारे में बात करते हैं। हालाँकि, हमें यह याद रखने की आवश्यकता है कि यह केवल अधिक बेड या कमरे बढ़ा कर नहीं किया जा सकता है, इसके लिए कुशल और प्रशिक्षित चिकित्सा कर्मियों की आवश्यकता होती है। पिछले सात वर्षों से हम इस दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। 2014 में छह एम्स से अब हम 22 एम्स बना रहे हैं। 2014 में लगभग 380 मेडिकल कॉलेजों थे, आज हमारे पास लगभग 560 मेडिकल कॉलेज हैं। लगभग 82 हजार ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल सीटों में से, अब हमारे पास लगभग 1 लाख 40 हजार ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल सीटें हैं। हाल ही में, हम राज्यों को बाल चिकित्सा सुविधाओं सहित सभी श्रेणियों में चिकित्सा बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए एक योजना लेकर आए हैं। हम स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के लिए एक बड़ी योजना शुरू करने पर भी काम कर रहे हैं जो बहुत सारे पुराने मुद्दों को संबोधित करेगा।

सभी के लिए एक और महत्वपूर्ण अहसास स्वास्थ्य क्षेत्र को होलिस्टिक रूप से देखना है। हम सक्रिय रूप से प्रिवेंटिव हेल्थकेयर पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। साफ-सफाई से लेकर वाटर सप्लाई तक, योग से लेकर आयुर्वेद तक, दूर-दराज के इलाकों में डायग्नोस्टिक सेंटरों को मजबूत करने से लेकर हम यह सब कर रहे हैं।

हमने टेलीमेडिसिन के महत्व को महसूस किया और महामारी की शुरुआत में, हम टेलीमेडिसिन पर एक नीति लेकर आए और उस पर लगे सभी प्रतिबंधों को हटा दिया। हाल ही में, हमने आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) लॉन्च किया है। यह गरीबों के लिए स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच बढ़ाएगा, नवाचार को बढ़ावा देगा और उपचार को भौगोलिक क्षेत्रों में निर्बाध बनाएगा।

Source: Open Magazine

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Joint Statement: Official visit of Shri Narendra Modi, Prime Minister of India to Kuwait (December 21-22, 2024)
December 22, 2024

At the invitation of His Highness the Amir of the State of Kuwait, Sheikh Meshal Al-Ahmad Al-Jaber Al-Sabah, Prime Minister of India His Excellency Shri Narendra Modi paid an official visit to Kuwait on 21-22 December 2024. This was his first visit to Kuwait. Prime Minister Shri Narendra Modi attended the opening ceremony of the 26th Arabian Gulf Cup in Kuwait on 21 December 2024 as the ‘Guest of Honour’ of His Highness the Amir Sheikh Meshal Al-Ahmad Al-Jaber Al-Sabah.

His Highness the Amir of the State of Kuwait Sheikh Meshal Al-Ahmad Al-Jaber Al-Sabah and His Highness Sheikh Sabah Al-Khaled Al-Sabah Al-Hamad Al-Mubarak Al-Sabah, Crown Prince of the State of Kuwait received Prime Minister Shri Narendra Modi at Bayan Palace on 22 December 2024 and was accorded a ceremonial welcome. Prime Minister Shri Narendra Modi expressed his deep appreciation to His Highness the Amir of the State of Kuwait Sheikh Meshal Al-Ahmad Al-Jaber Al-Sabah for conferring on him the highest award of the State of Kuwait ‘The Order of Mubarak Al Kabeer’. The leaders exchanged views on bilateral, global, regional and multilateral issues of mutual interest.

Given the traditional, close and friendly bilateral relations and desire to deepen cooperation in all fields, the two leaders agreed to elevate the relations between India and Kuwait to a ‘Strategic Partnership’. The leaders stressed that it is in line with the common interests of the two countries and for the mutual benefit of the two peoples. Establishment of a strategic partnership between both countries will further broad-base and deepen our long-standing historical ties.

Prime Minister Shri Narendra Modi held bilateral talks with His Highness Sheikh Ahmad Abdullah Al-Ahmad Al-Jaber Al-Mubarak Al-Sabah, Prime Minister of the State of Kuwait. In light of the newly established strategic partnership, the two sides reaffirmed their commitment to further strengthen bilateral relations through comprehensive and structured cooperation in key areas, including political, trade, investment, defence, security, energy, culture, education, technology and people-to-people ties.

The two sides recalled the centuries-old historical ties rooted in shared history and cultural affinities. They noted with satisfaction the regular interactions at various levels which have helped in generating and sustaining the momentum in the multifaceted bilateral cooperation. Both sides emphasized on sustaining the recent momentum in high-level exchanges through regular bilateral exchanges at Ministerial and senior-official levels.

The two sides welcomed the recent establishment of a Joint Commission on Cooperation (JCC) between India and Kuwait. The JCC will be an institutional mechanism to review and monitor the entire spectrum of the bilateral relations between the two countries and will be headed by the Foreign Ministers of both countries. To further expand our bilateral cooperation across various fields, new Joint Working Groups (JWGs) have been set up in areas of trade, investments, education and skill development, science and technology, security and counter-terrorism, agriculture, and culture, in addition to the existing JWGs on Health, Manpower and Hydrocarbons. Both sides emphasized on convening the meetings of the JCC and the JWGs under it at an early date.

Both sides noted that trade has been an enduring link between the two countries and emphasized on the potential for further growth and diversification in bilateral trade. They also emphasized on the need for promoting exchange of business delegations and strengthening institutional linkages.

Recognizing that the Indian economy is one of the fastest growing emerging major economies and acknowledging Kuwait’s significant investment capacity, both sides discussed various avenues for investments in India. The Kuwaiti side welcomed steps taken by India in making a conducive environment for foreign direct investments and foreign institutional investments, and expressed interest to explore investment opportunities in different sectors, including technology, tourism, healthcare, food-security, logistics and others. They recognized the need for closer and greater engagement between investment authorities in Kuwait with Indian institutions, companies and funds. They encouraged companies of both countries to invest and participate in infrastructure projects. They also directed the concerned authorities of both countries to fast-track and complete the ongoing negotiations on the Bilateral Investment Treaty.

Both sides discussed ways to enhance their bilateral partnership in the energy sector. While expressing satisfaction at the bilateral energy trade, they agreed that potential exists to further enhance it. They discussed avenues to transform the cooperation from a buyer-seller relationship to a comprehensive partnership with greater collaboration in upstream and downstream sectors. Both sides expressed keenness to support companies of the two countries to increase cooperation in the fields of exploration and production of oil and gas, refining, engineering services, petrochemical industries, new and renewable energy. Both sides also agreed to discuss participation by Kuwait in India's Strategic Petroleum Reserve Programme.

Both sides agreed that defence is an important component of the strategic partnership between India and Kuwait. The two sides welcomed the signing of the MoU in the field of Defence that will provide the required framework to further strengthen bilateral defence ties, including through joint military exercises, training of defence personnel, coastal defence, maritime safety, joint development and production of defence equipment.

The two sides unequivocally condemned terrorism in all its forms and manifestations, including cross-border terrorism and called for disrupting of terrorism financing networks and safe havens, and dismantling of terror infrastructure. Expressing appreciation of their ongoing bilateral cooperation in the area of security, both sides agreed to enhance cooperation in counter-terrorism operations, information and intelligence sharing, developing and exchanging experiences, best practices and technologies, capacity building and to strengthen cooperation in law enforcement, anti-money laundering, drug-trafficking and other transnational crimes. The two sides discussed ways and means to promote cooperation in cybersecurity, including prevention of use of cyberspace for terrorism, radicalisation and for disturbing social harmony. The Indian side praised the results of the fourth high-level conference on "Enhancing International Cooperation in Combating Terrorism and Building Resilient Mechanisms for Border Security - The Kuwait Phase of the Dushanbe Process," which was hosted by the State of Kuwait on November 4-5, 2024.

Both sides acknowledged health cooperation as one of the important pillars of bilateral ties and expressed their commitment to further strengthen collaboration in this important sector. Both sides appreciated the bilateral cooperation during the COVID- 19 pandemic. They discussed the possibility of setting up of Indian pharmaceutical manufacturing plants in Kuwait. They also expressed their intent to strengthen cooperation in the field of medical products regulation in the ongoing discussions on an MoU between the drug regulatory authorities.

The two sides expressed interest in pursuing deeper collaboration in the area of technology including emerging technologies, semiconductors and artificial intelligence. They discussed avenues to explore B2B cooperation, furthering e-Governance, and sharing best practices for facilitating industries/companies of both countries in the policies and regulation in the electronics and IT sector.

The Kuwaiti side also expressed interest in cooperation with India to ensure its food-security. Both sides discussed various avenues for collaboration including investments by Kuwaiti companies in food parks in India.

The Indian side welcomed Kuwait’s decision to become a member of the International Solar Alliance (ISA), marking a significant step towards collaboration in developing and deploying low-carbon growth trajectories and fostering sustainable energy solutions. Both sides agreed to work closely towards increasing the deployment of solar energy across the globe within ISA.

Both sides noted the recent meetings between the civil aviation authorities of both countries. The two sides discussed the increase of bilateral flight seat capacities and associated issues. They agreed to continue discussions in order to reach a mutually acceptable solution at an early date.

Appreciating the renewal of the Cultural Exchange Programme (CEP) for 2025-2029, which will facilitate greater cultural exchanges in arts, music, and literature festivals, the two sides reaffirmed their commitment on further enhancing people to people contacts and strengthening the cultural cooperation.

Both sides expressed satisfaction at the signing of the Executive Program on Cooperation in the Field of Sports for 2025-2028. which will strengthen cooperation in the area of sports including mutual exchange and visits of sportsmen, organising workshops, seminars and conferences, exchange of sports publications between both nations.

Both sides highlighted that education is an important area of cooperation including strengthening institutional linkages and exchanges between higher educational institutions of both countries. Both sides also expressed interest in collaborating on Educational Technology, exploring opportunities for online learning platforms and digital libraries to modernize educational infrastructure.

As part of the activities under the MoU between Sheikh Saud Al Nasser Al Sabah Kuwaiti Diplomatic Institute and the Sushma Swaraj Institute of Foreign Service (SSIFS), both sides welcomed the proposal to organize the Special Course for diplomats and Officers from Kuwait at SSIFS in New Delhi.

Both sides acknowledged that centuries old people-to-people ties represent a fundamental pillar of the historic India-Kuwait relationship. The Kuwaiti leadership expressed deep appreciation for the role and contribution made by the Indian community in Kuwait for the progress and development of their host country, noting that Indian citizens in Kuwait are highly respected for their peaceful and hard-working nature. Prime Minister Shri Narendra Modi conveyed his appreciation to the leadership of Kuwait for ensuring the welfare and well-being of this large and vibrant Indian community in Kuwait.

The two sides stressed upon the depth and importance of long standing and historical cooperation in the field of manpower mobility and human resources. Both sides agreed to hold regular meetings of Consular Dialogue as well as Labour and Manpower Dialogue to address issues related to expatriates, labour mobility and matters of mutual interest.

The two sides appreciated the excellent coordination between both sides in the UN and other multilateral fora. The Indian side welcomed Kuwait’s entry as ‘dialogue partner’ in SCO during India’s Presidency of Shanghai Cooperation Organisation (SCO) in 2023. The Indian side also appreciated Kuwait’s active role in the Asian Cooperation Dialogue (ACD). The Kuwaiti side highlighted the importance of making the necessary efforts to explore the possibility of transforming the ACD into a regional organisation.

Prime Minister Shri Narendra Modi congratulated His Highness the Amir on Kuwait’s assumption of the Presidency of GCC this year and expressed confidence that the growing India-GCC cooperation will be further strengthened under his visionary leadership. Both sides welcomed the outcomes of the inaugural India-GCC Joint Ministerial Meeting for Strategic Dialogue at the level of Foreign Ministers held in Riyadh on 9 September 2024. The Kuwaiti side as the current Chair of GCC assured full support for deepening of the India-GCC cooperation under the recently adopted Joint Action Plan in areas including health, trade, security, agriculture and food security, transportation, energy, culture, amongst others. Both sides also stressed the importance of early conclusion of the India-GCC Free Trade Agreement.

In the context of the UN reforms, both leaders emphasized the importance of an effective multilateral system, centered on a UN reflective of contemporary realities, as a key factor in tackling global challenges. The two sides stressed the need for the UN reforms, including of the Security Council through expansion in both categories of membership, to make it more representative, credible and effective.

The following documents were signed/exchanged during the visit, which will further deepen the multifaceted bilateral relationship as well as open avenues for newer areas of cooperation:● MoU between India and Kuwait on Cooperation in the field of Defence.

● Cultural Exchange Programme between India and Kuwait for the years 2025-2029.

● Executive Programme between India and Kuwait on Cooperation in the field of Sports for 2025-2028 between the Ministry of Youth Affairs and Sports, Government of India and Public Authority for Youth and Sports, Government of the State of Kuwait.

● Kuwait’s membership of International Solar Alliance (ISA).

Prime Minister Shri Narendra Modi thanked His Highness the Amir of the State of Kuwait for the warm hospitality accorded to him and his delegation. The visit reaffirmed the strong bonds of friendship and cooperation between India and Kuwait. The leaders expressed optimism that this renewed partnership would continue to grow, benefiting the people of both countries and contributing to regional and global stability. Prime Minister Shri Narendra Modi also invited His Highness the Amir of the State of Kuwait, Sheikh Meshal Al-Ahmad Al-Jaber Al-Sabah, Crown Prince His Highness Sheikh Sabah Al-Khaled Al-Sabah Al-Hamad Al-Mubarak Al-Sabah, and His Highness Sheikh Ahmad Abdullah Al-Ahmad Al-Jaber Al-Mubarak Al-Sabah, Prime Minister of the State of Kuwait to visit India.