अपनी स्थापना के बाद से, भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम एक शक्तिशाली ताकत के रूप में विकसित हुआ है, जिसने वैज्ञानिक प्रगति, टेक इनोवेशन और राष्ट्रीय विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हाल के वर्षों में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में, भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र ने और भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी है, जिसमें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अभूतपूर्व उपलब्धियों में सबसे आगे है।
भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रगति को मापने का एक महत्वपूर्ण तरीका है सैटेलाइट लॉन्चिंग की रफ्तार और उनकी क्षमता। वर्ष 2014 से ISRO उल्लेखनीय दर से सैटेलाइट लॉन्च कर रहा है, जिससे कम्युनिकेशन, नेविगेशन, मौसम पूर्वानुमान और सर्विलांस कैपेसिटी को बढ़ावा मिला है। पिछले दशक में 33 विदेशी और 31 घरेलू सैटेलाइट लॉन्चिंग की तुलना में, 2014 और 2023 के बीच ISRO ने 396 विदेशी और 70 घरेलू सैटेलाइट सफलतापूर्वक लॉन्च किए हैं। यह आंकड़ा भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में हुई महत्वपूर्ण प्रगति को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
भारत ने स्वदेशी सैटेलाइट विकसित करने में भी उल्लेखनीय प्रगति की है, जिससे विदेशी तकनीक और विशेषज्ञता पर उसकी निर्भरता कम हो गई है। ISRO की सैटेलाइट मैन्युफैक्चरिंग क्षमता तेजी से बढ़ी है, जिसका फोकस पूरी तरह से स्वदेश में ही सैटेलाइट को डिजाइन, बिल्डिंग और लॉन्चिंग करने पर है। यह स्वदेशी अप्रोच न केवल अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी में भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ाता है, बल्कि भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के बीच इनोवेशन और विशेषज्ञता को भी बढ़ावा देता है। नेविगेशन सैटेलाइट जैसे IRNSS (इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) से लेकर कम्युनिकेशन सैटेलाइट जैसे GSAT सीरीज तक, भारत का स्वदेशी सैटेलाइट बेड़ा लगातार विस्तार कर रहा है, जिससे कई प्रकार की राष्ट्रीय जरूरतें पूरी होती हैं।
प्रोपल्शन सिस्टम, सैटेलाइट के मिनिएचराइजेशन, रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल, सैटेलाइट कॉन्स्टेलेशन जैसे क्षेत्रों में प्रगति ने भारत को अंतरिक्ष खोज में एक अग्रणी के रूप में स्थापित किया है। GSLV Mk III लॉन्च व्हीकल, चंद्रयान, मंगल मिशन, आदित्य-L1, XPoSAT और आगामी गगनयान ह्यूमन स्पेस फ्लाइट प्रोग्राम जैसी पहलें अंतरिक्ष खोज की सीमाओं को लांघने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को बल देती हैं।
वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने की आवश्यकता को समझते हुए, सरकार ने अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की गतिविधियों को बढ़ावा देने को भी प्राथमिकता दी है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में निजी भागीदारों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए 2020 में अंतरिक्ष क्षेत्र सुधारों की घोषणा की गई, जिससे उन्हें स्वतंत्र अंतरिक्ष गतिविधियों को करने में सक्षम बनाया गया। भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) और न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) जैसी पहलें निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुविधाजनक बनाने और अंतरिक्ष स्टार्टअप और कंपनियों के लिए अनुकूल पॉलिसी एनवायर्नमेंट बनाने के लिए शुरू की गई हैं।
सुधारों का एक और महत्वपूर्ण पहलू ISRO के इंफ्रास्ट्रक्चर और फैसिलिटीज को निजी क्षेत्र के लिए खोलना है। इस कदम का उद्देश्य राष्ट्रीय अंतरिक्ष इंफ्रास्ट्रक्चर का लाभ उठाना है, जिसमें टेस्टिंग फैसिलिटीज, लॉन्च पैड्स और लैब्स शामिल हैं, ताकि निजी क्षेत्र को अंतरिक्ष गतिविधियों में भाग लेने में सक्षम बनाया जा सके। सरकार इन्हें बिजनेस-फ्रेंडली मैकेनिज्म के माध्यम से फैसिलिटीज उपलब्ध कराकर निजी कंपनियों को वैल्यू चेन में वृद्धि करने और पूर्ण अंतरिक्ष मिशन चलाने में सक्षम बनाना चाहती है।
भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र ने कमर्शियल एक्टिविटीज और अंतरराष्ट्रीय सहयोग में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी है। ISRO की कमर्शियल शाखा, एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन, विभिन्न देशों और संगठनों के लिए सैटेलाइट के कमर्शियल लॉन्च की सुविधा प्रदान करती है, जिससे रेवेन्यू उत्पन्न होता है और वैश्विक साझेदारी को बढ़ावा मिलता है। अमेरिका, रूस, फ्रांस और इज़राइल जैसे देशों के साथ सहयोग ने भारत को पारस्परिक लाभ के लिए विशेषज्ञता, रिसोर्सेज और टेक्नोलॉजी का लाभ उठाने में सक्षम बनाया है। इसके अतिरिक्त, अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष मंचों और संगठनों में भारत की भागीदारी ने एक जिम्मेदार अंतरिक्ष क्षमताओं वाले राष्ट्र के रूप में इसकी स्थिति को मजबूत किया है।
इन सुधारों ने भारतीय अंतरिक्ष उद्योग में इनोवेशन और आंत्रप्रेन्योरशिप की एक लहर पैदा कर दी है, जिससे कई स्टार्टअप और कंपनियां अंतरिक्ष खोज के लिए अनोखे समाधान पेश कर रही हैं। भारत में 2014 में केवल एक ही स्पेस स्टार्टअप था, जो बढ़कर 2023 में 189 हो गए हैं। उल्लेखनीय उदाहरणों में चेन्नई स्थित स्टार्टअप Agnikul कॉसमॉस शामिल है, जिसे अपने लॉन्च व्हीकल के महत्वपूर्ण कंपोनेंट्स के डेवलपमेंट के लिए अंतरिक्ष विभाग से समर्थन प्राप्त हुआ। इसी तरह, प्रोपल्शन सिस्टम डेवलपमेंट में लगी बेलेट्रिक्स एयरोस्पेस को भी अंतरिक्ष विभाग से प्रोत्साहन मिला है। श्रीहरिकोटा में ISRO परिसर में Agnikul कॉसमॉस द्वारा भारत के पहले निजी लॉन्च पैड और मिशन कंट्रोल सेंटर का उद्घाटन भी भारत की अंतरिक्ष यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
हाल के वर्षों में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं, जो अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी और खोज में देश की बढ़ती क्षमता को दर्शाता है। विशेष रूप से, अगस्त 2023 में चंद्रयान-3 की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग ISRO के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी। यह मिशन, भारत की पहली सोलर ऑब्जर्वेटरी (आदित्य-L1) के लॉन्च और क्रू एस्केप सिस्टम (CES) की डेवलपमेंट फ्लाइट के साथ मिलकर, अंतरिक्ष खोज को आगे बढ़ाने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है। इसके अलावा, IN-SPACe की पहल, जैसे स्काईरूट एयरोस्पेस द्वारा विक्रम-एस रॉकेट का पहला सब-ऑर्बिटल लॉन्च, भारत के निजी अंतरिक्ष उद्योग की बढ़ती क्षमताओं को उजागर करता है।
सरकार के समर्थन, निजी क्षेत्र की भागीदारी और टेक एडवांसमेंट के साझा बल से भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र निरंतर ग्रोथ और इनोवेशन की ओर अग्रसर है। आगामी मिशनों जैसे कि NASA-ISRO SAR (NISAR) और स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (SPADEX) के साथ, भारत अंतरिक्ष खोज और शोध में और प्रगति करने के लिए तैयार है, जो वैज्ञानिक ज्ञान और राष्ट्रीय विकास में योगदान देगा।
2014 के बाद से अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की प्रगति वैज्ञानिक उत्कृष्टता, टेक इनोवेशन और राष्ट्रीय विकास के प्रति उसकी अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाती है। सैटेलाइट को अभूतपूर्व दर से लॉन्च करने से लेकर चंद्रमा और मंगल के खोज अभियानों तक, भारत की अंतरिक्ष यात्रा ने वैश्विक मंच पर अपनी एक अमिट छाप छोड़ी है। जबकि राष्ट्र और भी अधिक महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशनों पर निकल रहा है, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का भविष्य उज्ज्वल दिखता है, जो अगली पीढ़ी के वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और खोजकर्ताओं को सितारों तक पहुंचने के लिए प्रेरित करता है।