आयुर्वेद भारत की महान संस्कृति का एक अहम हिस्सा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आयुर्वेद को लेकर बेहद गंभीर हैं। दरअसल प्रधानमंत्री जिस हॉलिस्टिक हेल्थकेयर की बात करते हैं, आयुर्वेद उसमें से एक है।
कई मौकों पर वो इसकी महत्ता के बारे में बता चुके हैं। उनका मानना हैं कि भारत का आयुर्वेद सिर्फ जड़ी-बूटियों पर आधारित एक चिकित्सा पद्धति नहीं है, बल्कि एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है और इसे एक दिन पूरा विश्व जान जाएगा। आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार को लेकर इन्हीं कोशिशों में से एक राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाने का फैसला रहा।
केंद्र सरकार के आयुष विभाग ने 28 अक्टूबर यानि धन्वंतरी जयंती के दिन को हर साल राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाने का निर्णय लिया। श्री मोदी ने 2014 में विश्व आयुर्वेद कांग्रेस के एक कार्यक्रम में कहा था, ‘जिस योग से कभी हम भी जुड़ने को तैयार नहीं थे, उस योग से आज पूरी दुनिया जुड़ गई है। उसी प्रकार जिस आयुर्वेद से आज हमारे अंदर उदासीनता है, कल उस आयुर्वेद से भी दुनिया जुड़ सकती है।’
दिल्ली में 2016 में आयोजित पहले आदिवासी कार्निवल फेस्टिवल में भी प्रधानमंत्री ने कहा था कि ‘दुनिया में धीरे-धीरे हॉलिस्टिक हेल्थकेयर की तरफ दुनिया आकर्षित होने लगी है।’श्री मोदी ने कहा कि हम आदिवासी भाइयों के बीच जाएं तो जंगलों से जड़ी-बूटी लेकर के तुरंत दवाई बनाकर आपको दे देते हैं और आप घंटे भर में भले चंगे भी हो जाते हो। प्रधानमंत्री ने जोर देते हुए कहा कि इस ज्ञान को आधुनिक रूप में ढालना बहुत जरूरी हैं ताकि मानवता की और अच्छे से सेवा हो सके।