मेरा विश्वास युवा शक्ति पर है। इन्ही में से मेरे कार्यकर्ता निकलेंगे, जो अपने पराक्रम से विश्व को बदल देंगे।

भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति से ठीक ५० वर्ष पूर्व मद्रास के युवाओं के सम्मूख दिये व्याख्यान में स्वामीजी ने यह विश्वास व्यक्त किया था। स्वामी विवेकानन्द स्वयं युवा ही थे। उनका सारा जीवन व संदेश यौवन का आदर्श था। उन्होंने भारतीय संस्कृति में युवावस्था के आदर्श को हमारे सम्मूख प्रस्तुत किया। केवल ३९ वर्ष ५ माह व २२ दिन की अल्पआयु में ऐसा पराक्रम किया कि सारा विश्व स्तम्भित रहा। अपने जीवन, प्रेरणा, विचार, साहित्य तथा कर्तृत्व से स्वामीजी ने तरुणाई को परिभाषित व प्रेरित किया।

स्वामीजी के जीवन ने अनेक महापéरूषों के जीवन को प्रभावित किया। आज भी उनका साहित्य किसी अग्निमन्त्र की भाँति पढ़नेवाले के मन में भाव जगाता है। किसी ने ठीक ही कहा है - यदि आप स्वामीजी की पुस्तक को लेटकर पढ़ोगे तो सहज ही उठकर बैठ जाओगे। बैठकर पढ़ोगे तो उठ खड़े हो जाओगे और जो खड़े होकर पढ़ेगा वो सहज ही कर्ममें लग जायेगा। अपने ध्येयमार्ग पर चल पड़ेगा। यह स्वामी विवेकानन्द के सजीव संदेश का प्रभाव है। जो भी उनके प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्पर्क में आया उसका जीवन ही बदल गया। वर्तमान समय में युवाओं के सम्मूख अनेक चुनौतियाँ हैं। ऐसे में स्वामीजी का संदेश उनके लिये अत्यन्त व्यावहारिक मार्गÎर्शन प्रदान करता है।

ध्येय निर्धारण :

स्वामी विवेकानन्द के अनुसार व्यक्ति का वास्तविक जन्म ध्येय के प्रगटन के साथ ही होता है। वे कहा करते थे, “जिसके जीवन में ध्येय नहीं वह तो खेलती-गाती, हँसती-बोलती लाश ही है। ''जब व्यक्ति अपने जीवन के विशिष्ट ध्येय को नहीं पहचान लेता तबतक तो उसका जीवन व्यर्थ ही है। युवको अपने जीवन में क्या करना है इसका निर्णय करना चाहिये। हम बचपन से क्या बनना है का विचार करते करते अपने आपको करियर के सीमित विकल्पों में घेर लेते है। और जीवन में करने योग्य बातों का विचार ही नहीं करते। करने का विचार करेंगे तो बनना अपने आप हो ही जायेगा। अतःध्येय निर्धारण जीवनकर्म का करना है। इसी आधार पर आजीविका को पाने से सफलता सहज ही निश्चित हो जायेगी।

आत्मविश्वास :

जीवन में जो तय किया है उसे करने के लिये सर्वाधिक आवश्यक कारक है अपने आप में विश्वास। स्वामी विवेकानन्द ईश्वर में विश्वास से अधिक अपने आप में विश्वास करने को महत्व देते है। ”पूराना धर्म कहता है ईश्वर में विश्वास ना करनेवाला नास्तिक है। मै कहता हूँ कि जिसका अपने आप में विश्वास नहीं वो ही नास्तिक है। ''हमने अपनी क्षमताओं की परीक्षा किये बिना ही उनको सीमित कर दिया है। हम मानकर चलते है कि हम इतना ही कर सकते है, जब कि हमारी क्षमतायें असीम है। यदि युवा ठान ले तो उसके लिये क्या असम्भव है? हम इन साधारण व्यक्तियों की असाधारण उपलब्धियों से अचंभित भी होते है और उनकी सराहना भी करते है। किन्तु क्या हम उन से प्रेरणा प्राप्त करते है? क्या हमारे अन्दर यह आत्म विश्वास जगता है कि हम भी ऐसा कुछ कर सकते हैं। स्वामीजी हमें यह प्रेरणा प्रदान करते हैकि जीवन में हमारे चारो ओर घटने वाली छोटी - बड़ी, सकारात्मक - नकारात्मक सभी घटनायें हमें अपनी असीम शक्ति को प्रगट करने का अवसर प्रदान करती है।

समर्पण :

किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिये समर्पण अनिवार्य है। स्वामीजी इसे अध्यवसाय की संज्ञा देते है। “अध्यवसायी आत्मा कहती है कि मै सागर को पी जाउंगी। उस सींप की भांति जो स्वाती नक्षत्र की एक बुन्द को प्राशन करने के लिये ही लहरों के उपर आती है। एक बुन्द पा जाने के बाद सागर की अतल गहराई में जा बैठती है धैर्य के साथ जब तक उसका मोती ना बन जाये। हमारे युवाओं को ऐसे अध्यवसाय की आवश्यकता है।'' हम किसी कार्य को प्रारम्भ करने में तो बड़ी वीरता का परिचय देते है किन्तु कुछ ही समय में सहज ही उससे विमुख हो जाते है। आज की प्रतिस्पर्धा के युग में ऐसे आरम्भ शूरों का काम नहीं है। पूर्ण समर्पण से हाथ में लिये कार्य को पूर्ण करने की लगन ही युवाओं को सफलता प्रदान कर सकती है।

संगठन :

वर्तमान युग संगठन का युग है। किसी भी क्षेत्र में चाहे व्यावसायिक क्षेत्र हो या विज्ञान का आज टीम के द्वारा ही कार्य होता है। व्यक्तिगत उपलब्धियों के स्थान पर चमु के द्वारा ही आज कार्य सम्पन्न होते है। चाहे प्रबन्धन का क्षेत्र हो या सोफ्‌टवेयर का उसीको प्राधान्य मिलता है जो टीम स्पिरीट के साथ काम करने में सक्षम हो। विश्व के सभी मानव संसाधन विशेषज्ञ आज इसी गुण को प्राधान्य देते है। स्वामी विवेकानन्द अमरिका में संगठित कार्य के चमत्कार से प्रभावित हुए थे। उन्होंने ठान लिया था कि भारत में भी इस संगठन कौशल को पुनर्जिवित करना है। उन्होंने स्वयं रामकृष्ण मिशन की स्थापना कर सन्यासियों तक संगठित कर चमु में काम करने का प्रशिक्षण दिया था।

यदि वर्तमान युग में भारत के युवा स्वामीजी के बताये इन युवामन्त्रों, ध्येय निर्धारण, आत्मविश्वास, समर्पण व संगठन को अपने जीवन में उतार लेते हैतो भारत के विश्व में अग्रणी होने में समय नहीं लगेगा। वैसे भी आज भारत विश्व का सबसे युवा देश है। केवल आबादी के रूप में ही हम विश्व के सर्वाधिक युवान हीं है अपितु सुशिक्षित रोजगार सक्षम युवाओं की संख्या में भी आज भारत अव्वल है। ऐसे में स्वामी विवेकानन्द की १५० वीं जयन्ति हमारे लिये अवसर है कि हम अपने जीवन को सार्थक बनाए और देश को भी विश्व में उसके उचित स्थान पर प्रतिष्ठित करें।

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PM urges youngsters to take part in Viksit Bharat Young Leaders Dialogue Quiz
November 27, 2024

The Prime Minister Shri Narendra Modi today urged youngsters to take part in quiz which can ensure them to be a part of historic Viksit Bharat Young Leaders Dialogue. He remarked that it would be their indelible contribution to achieving our goal of a Viksit Bharat.

In a post on X, he wrote:

“My young friends,

There is an interesting Quiz, which will ensure you can be a part of the historic Viksit Bharat Young Leaders Dialogue on 12th Jan, 2025.

mybharat.gov.in

This is a very special opportunity for letting your innovative ideas be heard by the topmost levels of Government.

It will be your indelible contribution to achieving our goal of a Viksit Bharat.”