आज हम अपने प्यारे बापू की 150वीं जयंती के आयोजनों का शुभारंभ कर रहे हैं। बापू आज भी विश्व में उन लाखों-करोड़ों लोगों के लिए आशा की एक किरण हैं जो समानता, सम्मान, समावेश और सशक्तीकरण से भरपूर जीवन जीना चाहते हैं। विरले ही लोग ऐसे होंगे, जिन्होंने मानव समाज पर उनके जैसा गहरा प्रभाव छोड़ा हो। महात्मा गांधी ने भारत को सही अर्थों में सिद्धांत और व्यवहार से जोड़ा था। सरदार पटेल ने ठीक ही कहा था, ‘भारत विविधताओं से भरा देश है। इतनी विविधताओं वाला कोई अन्य देश धरती पर नहीं है। यदि कोई ऐसा व्यक्ति था, जिसने उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष के लिए सभी को एकजुट किया, जिसने लोगों को मतभेदों से ऊपर उठाया और विश्व मंच पर भारत का गौरव बढ़ाया तो वे केवल महात्मा गांधी ही थे। और, उन्होंने इसकी शुरुआत भारत से नहीं, बल्कि दक्षिण अफ्रीका से की थी।'

बापू ने भविष्य का आकलन किया और स्थितियों को व्यापक संदर्भ में समझा। वह अपने सिद्धांतों के प्रति अपनी अंतिम सांस तक प्रतिबद्ध रहे। 21वीं सदी में भी महात्मा गांधी के विचार उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उनके समय में थे और वे ऐसी अनेक समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, जिनका सामना आज विश्व कर रहा है। एक ऐसे विश्व में जहां आतंकवाद, कट्टरपंथ, उग्रवाद और विचारहीन नफरत देशों और समुदायों को विभाजित कर रही है, वहां शांति और अहिंसा के महात्मा गांधी के स्पष्ट आह्वान में मानवता को एकजुट करने की शक्ति है।

ऐसे युग में जहां असमानताएं स्वाभाविक हैं, बापू का समानता और समावेशी विकास का सिद्धांत विकास के आखिरी पायदान पर रह रहे लाखों लोगों के लिए समृद्धि के एक नए युग का सूत्रपात कर सकता है। एक ऐसे समय में, जब जलवायु-परिवर्तन और पर्यावरण की रक्षा का विषय चर्चा के केंद्र में हैं, दुनिया को गांधी जी के विचारों से सहारा मिल सकता है। उन्होंने एक सदी से भी अधिक समय पहले 1909 में मनुष्य की आवश्यकता और उसके लालच के बीच अंतर स्पष्ट किया था।

प्राकृतिक संसाधनों पर गांधी जी का संदेश
उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय संयम और करुणा- दोनों का अनुपालन करने की सलाह दी और स्वयं इनका पालन करके मिसाल कायम करते हुए नेतृत्व प्रदान किया। वह अपना शौचालय स्वयं साफ करते थे और आसपास के वातावरण की स्वच्छता सुनिश्चित करते थे। वह यह सुनिश्चित करते थे कि पानी कम से कम बर्बाद हो और अहमदाबाद में उन्होंने इस बात पर विशेष ध्यान दिया कि दूषित जल साबरमती के जल में ना मिले।

रचनात्मक कार्यक्रम
कुछ ही समय पहले महात्मा गांधी द्वारा लिखित एक सारगर्भित, समग्र और संक्षिप्त लेख ने मेरा ध्यान आकृष्ट किया। 1941 में बापू ने ‘रचनात्मक कार्यक्रम: उसका अर्थ और स्थान’ नाम से एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने 1945 में उस समय बदलाव भी किए थे जब स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर एक नया उत्साह था। उस दस्तावेज में बापू ने विविध विषयों पर चर्चा की थी जिनमें ग्रामीण विकास, कृषि का सशक्तीकरण, साफ-सफाई को बढ़ावा, खादी को प्रोत्साहन, महिलाओं का सशक्तीकरण और आर्थिक समानता सहित अनेक विषय शामिल थे। मैं अपने प्रिय भारतवासियों से अनुरोध करूंगा कि वे गांधी जी के ‘रचनात्मक कार्यक्रम’ को पढ़ें। यह ऑन लाइन एवं ऑफलाइन उपलब्ध है। हम कैसे गांधी जी के सपनों का भारत बना सकते हैं- इस कार्य के लिए इसे पथ प्रदर्शक बनाएं।

‘रचनात्मक कार्यक्रम’ के बहुत से विषय आज भी प्रासंगिक हैं और भारत सरकार ऐसे बहुत से बिंदुओं को पूरा कर रही है जिनकी चर्चा पूज्य बापू ने सात दशक पहले की थी, लेकिन जो आज तक पूरे नहीं हुए। गांधी जी के व्यक्तित्व के सबसे खूबसूरत आयामों में से एक बात यह थी कि उन्होंने प्रत्येक भारतीय को इस बात का अहसास दिलाया था कि वे भारत की स्वतंत्रता के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने एक अध्यापक, वकील, चिकित्सक, किसान, मजदूर, उद्यमी, सभी में आत्म-विश्वास की भावना भर दी थी कि जो कुछ भी वे कर रहे हैं उसी से वे भारत के स्वाधीनता संग्राम में योगदान दे रहे हैं।

उसी संदर्भ में, आइए आज हम उन कामों को अपनाएं जिनके बारे में हमें लगता है कि गांधी जी के सपनों को पूरा करने के लिए हम इन्हें कर सकते हैं। भोजन की बर्बादी को पूरी तरह बंद करने जैसी साधारण सी चीज से लेकर अहिंसा और अपनेपन की भावना तक को अपना कर इसकी शुरुआत की जा सकती है। आइए हम इस बात पर विचार करें कि कैसे हमारे क्रियाकलाप भावी पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ और हरित वातावरण बनाने में योगदान दे सकते हैं। करीब आठ दशक पहले जब प्रदूषण का खतरा इतना बड़ा नहीं था तब महात्मा गांधी ने साइकिल चलाना शुरू किया था। जो लोग उस समय अहमदाबाद में थे, इस बात को याद करते हैं कि गांधी जी कैसे गुजरात विद्यापीठ से साबरमती आश्रम साइकिल से जाते थे।

असल में, मैंने पढ़ा है कि गांधी जी के सबसे पहले विरोध प्रदर्शनों में वह घटना शामिल है जब उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में उन कानूनों का विरोध किया जो लोगों को साइकिल का उपयोग करने से रोकते थे। कानून के क्षेत्र में एक समृद्ध भविष्य होने के बावजूद जोहॉन्सबर्ग में आने-जाने के लिए गांधी जी साइकिल का प्रयोग करते थे।

ऐसा कहा जाता है कि जब एक बार जोहॉन्सबर्ग में प्लेग का प्रकोप हुआ तो गांधी जी एक साइकिल से सबसे ज्यादा प्रभावित स्थान पर पहुंचे और राहत कार्य में जुट गए। क्या आज हम इस भावना को अपना सकते हैं। ये त्योहारों का समय है और पूरे देश में लोग नए कपड़े, उपहार, खाने की चीजें और अन्य वस्तुएं खरीदेंगे। ऐसा करते समय हमें गांधी जी की एक बात ध्यान में रखनी चाहिए जो कि उन्होंने हमें एक ताबीज के रूप में दी थी। आइए हम इस बात पर विचार करें कि कैसे हमारे क्रियाकलाप अन्य भारतीयों के जीवन में समृद्धि का दीया जला सकते हैं। चाहे वे खादी के उत्पाद हों या उपहार की वस्तुएं या फिर खाने पीने का सामान, जिन भी चीजों का वे उत्पादन करते हैं उन्हें खरीद कर हम एक बेहतर जिंदगी जीने में अपने साथी भारतीयों की मदद करेंगे। हो सकता है कि हमने उन्हें कभी देखा ना हो और हो सकता है कि शेष जीवन में भी हम उनसे कभी ना मिलें। लेकिन बापू को हम पर गर्व होगा कि हम अपने क्रियाकलापों से अपने साथी भारतीयों की मदद कर रहे हैं।

स्वच्छ भारत अभियान से बापू को श्रद्धांजलि

पिछले चार वर्षों में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के जरिये 130 करोड़ भारतीयों ने महात्मा गांधी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है। स्वच्छ भारत अभियान के चार वर्ष आज पूरे हो रहे हैं। प्रत्येक भारतीय के कठोर परिश्रम के कारण यह अभियान आज एक ऐसे जीवंत जन-आंदोलन के रूप में बदल चुका है जिसके परिणाम सराहनीय हैं। साढ़े आठ करोड़ से ज्यादा परिवारों के पास अब पहली बार शौचालय की सुविधा है। चालीस करोड़ से ज्यादा भारतीयों को अब खुले में शौच के लिए नहीं जाना पड़ता है। चार वर्षों के छोटे से कालखंड में स्वच्छता का दायरा 39% से बढ़कर 95% पर पहुंच गया है। 21 राज्य और संघशासित क्षेत्र और साढ़े चार लाख गांव अब खुले में शौच से मुक्त हैं।

शौचालय बने वरदान
‘स्वच्छ भारत अभियान’ आत्मसम्मान और बेहतर भविष्य से संबद्ध है। यह उन करोड़ों महिलाओं के भले की बात है जो हर सुबह खुले में दैनिक-चर्या से निवृत्त होते समय मुंह छुपाती थीं। मुंह छुपाने की यह समस्या अब इतिहास बन चुकी है। साफ-सफाई के अभाव में जो बच्चे बीमारियों का शिकार बनते थे, उनके लिए शौचालय वरदान बना है। कुछ दिन पहले राजस्थान के एक दिव्यांग भाई ने मेरे ‘मन की बात कार्यक्रम’ के दौरान मुझे फोन किया था। उन्होंने बताया था कि वे दोनों आंखों से देखने में लाचार थे, लेकिन जब उन्होंने अपने घर में खुद का शौचालय बनवाया तो उनकी जिंदगी में कितना बड़ा सकारात्मक बदलाव आया।

उनके जैसे अनेक दिव्यांग भाई और बहन हैं जो कि सार्वजनिक स्थलों और खुले में शौच जाने की असुविधा से मुक्त हुए हैं। जो आशीर्वाद उन्होंने मुझे दिया वे मेरी स्मृति में हमेशा के लिए अंकित रहेंगे। आज बहुत बड़ी संख्या उन भारतीयों की है जिन्हें स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने का सौभाग्य नहीं मिला। हमें उस समय देश के लिए जीवन बलिदान करने का अवसर तो नहीं मिला, लेकिन अब हमें हर हाल में देश की सेवा करनी चाहिए और ऐसे भारत का निर्माण करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए जैसे भारत का सपना हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने देखा था।

आज गांधी जी के सपनों को पूरा करने का एक बेहतरीन अवसर हमारे पास है। हमने काफी कुछ किया है और मुझे पूरा विश्वास है कि आने वाले समय में हम और बहुत कुछ करने में सफल रहेंगे। ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए, जे पीर परायी जाने रे’, ये बापू जी की सबसे प्रिय पंक्तियों में से एक थी। इसका अर्थ है कि भली आत्मा वह है जो दूसरों के दु:ख का अहसास कर सके। यही वो भावना थी जिसने उन्हें दूसरों के लिए जीवन जीने को प्रेरित किया। हम, एक सौ तीस करोड़ भारतीय, आज उन सपनों को पूरा करने के लिए मिलकर काम करने को प्रतिबद्ध हैं, जो बापू ने देश के लिए देखे और जिसके लिए उन्होंने अपने जीवन का बलिदान दिया था।

Explore More
140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी

लोकप्रिय भाषण

140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी
Ayushman driving big gains in cancer treatment: Lancet

Media Coverage

Ayushman driving big gains in cancer treatment: Lancet
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
रण उत्सव – प्रकृति, परंपरा और प्रचीनता का उत्सव
December 21, 2024

कच्छ का सफेद रण आपको आमंत्रित कर रहा है।

कच्छ के इस उत्सव पर्व से जुड़कर एक नए अनुभव के साक्षी बनिए।

और रण के इस उत्सव में प्रकृति, परंपरा और प्रचीनता के रंगों को जीवन का हिस्सा बनाइए।

भारत के सबसे पश्चिमी छोर पर स्थित कच्छ, विरासत और बहुसंस्कृति की भूमि है। कच्छ का सफेद रण और इसकी जीवंतता किसी का भी मन मोह लेती है। चांदनी रात में कच्छ के इस रण का अनुभव और अलौकिक हो जाता है, दिव्य हो जाता है। कच्छ की ये धरती जितनी सुंदर है, इसकी कला और शिल्प भी उतना ही विशेष है।

कच्छ के लोगों का आतिथ्य भाव तो सारी दुनिया जानती है। हर वर्ष लाखों पर्यटक इस धरती पर आते हैं और कच्छ के लोग उतने ही उत्साह से उनका स्वागत करते हैं। अतिथियों के सम्मान और उनके अनुभवों को संवारने के लिए कच्छ का हर परिवार पूरे आदर भाव से काम करता है। रण उत्सव, कच्छ की इसी आतिथ्य परंपरा और स्थानीय कला का उत्सव है। इस जीवंत उत्सव में, हमें इस क्षेत्र की अनोखी संस्कृति, प्राकृतिक सौंदर्य, स्थानीय जनभावनाओं और कलाओं से जुड़ने का अवसर मिलता है।

इस पोस्ट के माध्यम से मैं विश्व भर के अतिथियों को रण उत्सव 2024-25 के लिए व्यक्तिगत आमंत्रण दे रहा हूं। आप सब अपने परिवार के साथ यहां आएं, यहां की संस्कृति और अनुभवों से जुड़ें, तो मुझे बहुत प्रसन्नता होगी। इस बार रण उत्सव 1 दिसंबर 2024 से लेकर 28 फरवरी 2025 तक आयोजित हो रहा है। इसके अलावा रण की टेंट सिटी मार्च 2025 तक पर्यटकों के लिए खुली रहेगी।

ये टेंट सिटी आपको कच्छ के अनुभवों से, यहां के विराट आतिथ्य से, भारत की संस्कृति से और प्रकृति के नए अनुभवों से जोड़ेगी। मैं पूरे विश्वास से कहता हूं, कच्छ के रण उत्सव का अनुभव आपके जीवन का सबसे अलौकिक और अविस्मरणीय अनुभव बनेगा।

कच्छ की इस टेंट सिटी में पर्यटकों के अनुरूप अनेक सुविधाओं को शामिल किया गया है। जो लोग रिलैक्स करने के लिए यहां आ रहे हैं, उन्हें यहां एक अलग अनुभव मिलेगा। संस्कृति और इतिहास के नए रंगों को खोज रहे लोगों के लिए, रण उत्सव एक इंद्रधनुष जैसा होगा।

देखिए, रण उत्सव की गतिविधियों का आनंद लेने के अलावा आप यहां और क्या-क्या कर सकते हैं:

सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा भारत का गौरव स्थल धोलावीरा यहीं पास में स्थित है। ये यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट है, जहां आपको भारत की प्राचीन सभ्यता से जुड़ने का अवसर मिलेगा।

जिन लोगों को प्रकृति और स्थापत्य कला से प्रेम हो, उनके लिए काला डूंगर का विजय विलास पैलेस एक अद्भुत अनुभव का स्थान होगा।

सफेद नमक के मैदानों से घिरी रोड टू हैवन, अपने मनोरम दृश्यों से हर पर्यटक का मन मोह लेती है। 30 किलोमीटर लंबी ये सड़क खावड़ा और धोलावीरा को आपस में जोड़ती है और इसपर यात्रा करना बहुत ही खास अनुभव होता है।

18वीं शताब्दी का लखपत फोर्ट हमें प्राचीन भारत के गौरव से जोड़ता है।

माता नो मढ़ आशापुरा मंदिर कच्छ की धरती पर हमारी आध्यात्मिक चेतना का शक्ति तीर्थ बन जाता है।

श्यामजी कृष्ण वर्मा स्मारक और क्रांति तीर्थ पर श्रद्धांजलि अर्पित करके अपने स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ सकते हैं।

और इन सब के साथ, रण उत्सव कच्छ की इस यात्रा में आप हस्तशिल्प के एक अद्भुत संसार से जुड़ सकते हैं। इस हस्तशिल्प मेले में हर उत्पाद की एक अलग पहचान है। ये उत्पाद कच्छ के लोगों की कलाओं से पूरी दुनिया को जोड़ते हैं।

कुछ समय पहले ही मुझे स्मृति वन के लोकार्पण का उत्सव मिला था। जिन लोगों ने 26 जनवरी 2001 के विनाशकारी भूकंप में अपना जीवन बनाया, ये उनकी स्मृतियों का स्मारक है। यहां दुनिया का सबसे खूबसूरत संग्रहालय है, जिसे 2024 का UNESCO Prix Versailles Interiors World Title मिला है! यह भारत का एकमात्र ऐसा संग्रहालय है, जिसे यह विशेष उपलब्धि हासिल हुई है। यह स्मारक हमें हमेशा याद दिलाता है कि कैसे बहुत विपरीत और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी हमारा मन, हमारी भावनाएं हमें फिर से आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं।

तब और अब को बताने वाली तस्वीर:

करीब दो दशक पहले स्थितियां ऐसी थीं कि अगर आपको कच्छ आने का निमंत्रण मिलता, तो आप सोचते कि कोई मजाक कर रहा है। कारण ये था कि तब तक भारत के सबसे बड़े जिलों में से एक होने के बावजूद भी, कच्छ बहुत बेहाल स्तिथि में था। ये स्थितियां तब थीं, जब कच्छ में एक तरफ रेगिस्तान था, दूसरी तरफ पाकिस्तान था। लेकिन सुरक्षा और पर्यटन दोनों ही क्षेत्र में ये स्थान पिछड़ा हुआ था।

कच्छ ने 1999 में चक्रवात और 2001 में भीषण भूकंप का सामना किया था। यहां सूखे की समस्या रहती थी। खेती के पर्याप्त साधन नहीं थे। यही कारण था कि अन्य लोग इसके अच्छे भविष्य की सोच तक नहीं पाते थे।। लेकिन वो नहीं जानते थे कि कच्छ के लोगों की ऊर्जा, उनकी इच्छा शक्ति क्या है। दो दशकों में अपनी मेहनत से, कच्छ के लोगों ने अपना भाग्य बदला। 21वीं शताब्दी के शुरुआत से कच्छ में एक परिवर्तन की भी शुरुआत हुई।

हम सबने मिलकर कच्छ के समावेशी विकास पर काम किया। हमने Disaster Resilient Infrastructure बनाने पर फोकस किया। इसके साथ ही यहां ऐसी आजीविका पर जोर दिया, जिससे यहां के युवाओं को काम की तलाश में अपना घर ना छोड़ना पड़े।

यही कारण है कि 21वीं सदी के पहले दशक के अंत तक जो धरती सूखे के लिए जानी जाती थी, वह आज कृषि के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियों के पड़ाव पर है। यहां के आम सहित कई फल विदेशी बाजार में एक्सपोर्ट हो रहे हैं। कच्छ के हमारे किसान भाई-बहनों ने ड्रिप सिंचाई और अन्य तकनीकों से खेती को बहुत समृद्ध किया है। इससे पानी की हर बूंद के संरक्षण के साथ अधिकतम उत्पादकता सुनिश्चित हुई है।

गुजरात सरकार के औद्योगिक विकास पर जोर देने से इस जिले में निवेश को भी काफी बढ़ावा मिला है। हमने कच्छ के तटीय क्षेत्र का उपयोग करके इसे एक महत्वपूर्ण समुद्री व्यापार केंद्र के रूप में फिर से स्थापित करने का काम किया।

कच्छ में पर्यटन की संभावनाओं को और विस्तार देने के लिए 2005 में कच्छ रण उत्सव की शुरुआत की गई थी। आज यह स्थान एक Vibrant Tourism Centre बन चुका है। रण उत्सव को देश-विदेश के कई अवॉर्ड्स मिल चुके हैं।

हर साल धोरडो गांव में रण उत्सव का आयोजन होता है। ये प्रसन्नता और गर्व की बात है कि इस गांव को United Nations World Tourism Organization ने 2023 का बेस्ट टूरिज्म विलेज घोषित किया। इस गांव की संस्कृति, पर्यटन और यहां हुआ विकास हर देशवासी को गौरव से भर देता है।

मुझे विश्वास है कि आप सब भी, कच्छ की विरासत भूमि को देखने यहां आएंगे और अपनी इस यात्रा के अनुभवों से दूसरों को भी यहां आने की प्रेरणा देंगे। जब आप इन अनुभवों को सोशल मीडिया पर साझा करेंगे, तो पूरा विश्व भी इनसे जुड़ेगा। इस संस्कृति और आतिथ्य के भाव को जी सकेगा।

इसी आमंत्रण के साथ, मैं आप सभी को नववर्ष 2025 के लिए भी शुभकामनाएं देता हूं। आने वाला साल आपके और आपके परिवार के लिए सफलता, समृद्धि और आरोग्यपूर्ण जीवन लेकर आए, यही प्रार्थना है।