मा. मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के वरद हस्तों से

६३वें वन महोत्सव तथा श्री गोविंद गुरु स्मृति वन का लोकार्पण कार्यक्रम

मानगढ़ हिल, संतरामपुर तालुका, पंचमहाल

३० जुलाई, २०१२

 गोविंद गुरू की प्रेरणा से देश की आजादी की लड़ाई में जिन्होंने अपना रक्त बहाया है ऐसी इस पवित्र भूमि पर आए हुए मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा गुजरात से आए हुए मेरे सभी प्यारे आदिवासी भाइयों और बहनों...

हली बार ऐसा हो रहा होगा कि वन में कोई सरकार वन महोत्सव कर रही हो..! गुजरात सरकार ने एक विशेषता खड़ी की है, और विशेषता यह है कि वन महोत्सव के जरिए मात्र पर्यावरण और वृक्षों की बात करके रूकने के बजाए इस वन महोत्सव को सांस्कृतिक विरासत के साथ जोड़ा जाये, आम आदमी की श्रद्घा के साथ जोड़ा जाये और एक बार कोई बात श्रद्घा के साथ जुड़ जाती है, तो फिर उसके बाद उसके लिए कोई अभियान चलाने नहीं पड़ते। क्या आपने कहीं भी देखा है कि भाई, तुलसी को नुकसान न पहुँचाएं ऐसा बोर्ड कभी लगाना पड़ता है? नहीं, कारण कि सभी के मन में यह बात बैठ गई है कि तुलसी अत्यंत पवित्र होती है, भगवान का रूप होती है इसलिए उसे नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए। यह सब के दिमाग में बैठ गया है। एक बार किसी बात को लेकर श्रद्घा पैदा हो जाती है तो फिर समाज खुद ही उसका संरक्षण भी करता है, संर्वधन भी करता है। और इसलिए इस राज्य सरकार ने वन महोत्सव की कल्पना को ही बदल दिया है। दूसरी बात ये कि ये वन महोत्सव इतने सालों से चल रहे हैं तो वे समाज के लिए स्थायी रूप से उपयोगी गहना क्यों न बने? मात्र एक समारोह करके पांच-पचास वृक्षों को लगा कर चला जाया जाए या उसे एक यादगार स्मृति के रूप में तैयार करें, राज्य की संपत्ति को बढ़ाएं, सामाजिक जीवन की आवश्यकताओं में एक सुविधा प्रदान करना, ऐसे एक शुभ उद्देश्य को लेकर, एक सुखद उद्देश्य के लिए यह सरकार वन माहोत्सव कार्यक्रमों को भी समाज के लिए स्थायी रूप से व्यवस्थाएं विकसीत करने वाले एक नए रूप के साथ आई है।

प अंबाजी जाओ तो अंबाजी में धर्मशाला मिल जाती है, अंबाजी में मंदिर का आसरा मिल जाता है, पर परिवार के साथ किसी जगह पर खुले में बैठना हो तो जगह नहीं मिलती। वन महोत्सव तो करना ही था, तो हमने तय किया सालों पहले, कि अंबाजी के पास में कोई एक पहाड़ी हो, जिसे कोई देखता भी नहीं था और जाता भी नहीं था, वहाँ हम मांगल्य वन बनाएं। धीरे धीरे मांगल्य वन इनता बड़ा हो गया कि भादव की पूनम पर लाखों लोग जब अंबाजी के दर्शन के लिए जाते हैं तो ये मांगल्य वन उनके लिए मंगलकारी साबित हो गया है, आर्शीवाद रूप बन गया है। जैन समाज के यात्री, खास तौर पर दिगम्बर समाज, तारंगाजी की यात्रा करने जाते हों। तारंगा जा कर आप पहाड़ी को देखें तो एक भी झाड़ वहाँ देखने को नहीं मिलता और एक पट्टा तो एसा है कि जहाँ धूल ही उड़ती हो, वीरान भूमि, पत्थरों के ढेर... उसके बीच कोने खोपचे में पड़े मंदिर, ऐसी भग्नावस्था..! तांरगाजी जैसा तीर्थ स्थल, वहाँ हमने तय किया कि ‘तीर्थंकर वन’ बनाया जाएगा और 24 वें तीर्थंकर जिनको जिस पेड़ के नीचे बोध हो गया था, उस वृक्ष को बोया जाएगा और जो तीर्थ यात्री वहाँ भगवान महावीर की उपासना के लिए तांरगाजी आते हैं उन्हें कहा गया कि उन पौधों में थोड़ा-थोड़ा पानी चढ़ाते हुए जाएं, ये भी एक पुण्य का काम है और आज तीर्थंकर वन तैयार हो गया है। भाइयों और बहनों, श्रावण का महिना चल रहा है, भोलेनाथ को सब याद करते हैं। आप सोमनाथ जाओ तो समुद्र की खारी हवा चलती है, वहाँ भी हराभरा क्यों ना हो? सोमनाथ के मंदिर में कोई आता है, देश भर के लोग आते हैं तो सोमनाथ के मंदिर का वातावरण मनभावन क्यों ना बनाएं? एक वन महोत्सव हमने सोमनाथ में किया। हरिहर वन बनाया और केवल हरिहर वन ही नहीं बनाया, भगवान सोमनाथ को, भोलेनाथ को जो वृक्ष पसंद हों ऐसे वृक्ष भी लगाए गए, बेल के वृक्षों का घन खड़ा कर दिया गया। शामलाजी में हमारा कालिया, आपके आदिवासी भील समाज का कालिया, शामलाजी में विराजता है। उदयपुर या श्रीनाथजी आते जाते लोग अगर समय हो तो शामलाजी का चक्कर लगाते हैं, पर रूकते नहीं हैं। हमने शामलाजी में इस कालिया का वन बनाया, शामल वन बनाया और केवल इतना ही नहीं, विष्णु भगवान को रोज सुबह कमल के पुष्प चढ़ाए जाते हैं, ये ताजे पुष्प इस कालिया वन में मिले इसके लिए व्यवस्था की गई। आज कोई भी यात्री वहाँ जाए और अब तो वहाँ कैसा सुमेल है, टेक्नोलोजी का उपयोग किया गया है जिसके उपयोग से वहाँ जानेवाले बच्चे बॉटनी का अध्ययन कर सके और कियोस्क में एक्जाम देने के बाद स्वयं मार्क्स भी मिल सके ऐसी व्यवस्था की गई है। बच्चे शामलाजी के दर्शन भी करते हैं और साथ साथ इस बॉटनिकल गार्डन का दर्शन भी कर लेते हैं। भाइयों और बहनों, पालिताणा। तीर्थ क्षेत्र की यात्रा के लिए लोग आते हैं, पालिताणा के ऊपर जाते हैं, रास्ते में एक सुंदर अच्छी जगह चाहिए। हमने वहाँ पावक वनबनाया और पावक वन की विशेषता ऐसी की गई कि उसमें पूरे शरीर की रचना की गई और कौन सा औषधीय वृक्ष किस प्रकार के रोग के लिए काम में आता है... जैसे घुटना हो, तो शरीर में घुटने के पास वृक्ष लगाया, ह्दय की बीमारी में काम आने वाले वृक्ष को जहाँ ह्दय हो वहाँ बना दिया, आंख की बीमारी में काम करने वाला वृक्ष हो तो जहाँ आंख होती है वहाँ बना दिया..! गरीब से गरीब, अनपढ़ से अनपढ़, सामान्य से सामान्य व्यक्ति को भी समझ में आ सकता है कि शरीर के लिए उपयोगी कौन कौन से वृक्ष हैं, औषधी के रूप में कैसे उपयोग होता है और आज लोग इसके अभ्यास के लिए वहाँ आते हैं। घंटे दो घंटे वन में घूमें तो उन्हें ये पता चल जाता है कि इस वृक्ष का क्या महत्व है..! भाइयों और बहनों, ऐसे तो अनेक अभिनव प्रयोग किए हैं। चोटीला जाओ तो भक्ति वनदेखने को मिलता है। आप पावागढ़ आईये तो यहाँ पावागढ़ के अंदर विरासत वनबनाया गया है। वर्ल्ड हेरिटेज की जगह हो चंपानेर की, एक तरफ मां काली विराजमान हो और इन दोनों की साक्षी के रूप में खड़ा हो ऐसा हमने विरासत वन बनाया है।

र आज जब वन महोत्सव की बात आई तब गोविंद गुरू, भाइयों आदिवासियों की छाती गज भर फूल जाए ऐसा नाम, किसी भी भारत भक्त का सिर ऊंचा हो जाए ऐसा नाम। लेकिन बदकिस्मती से इतिहास के पन्नों में इस नाम को मिटा दिया गया। ज़्यादा से ज़्यादा पांच-पचास परिवार, या दो-चार महंत ही इन्हें याद करते होंगे इतना सीमित कर दिया था। इस क्षेत्र के लोग बारह महीने में एक बार शायद भक्तिभाव के कारण पूर्णिमा के मेले में आते हों उतनी ही उनकी गणना रह गई।  भाइयों और बहनों, यह एक एतिहासिक घटना है और इसकी शताब्दी पूरी होने जा रही है तब 1913 में, आज से निन्यानवे साल पहले, जिनका अब शताब्दी वर्ष शुरू हुआ है, इसी भूमि पर गोविंद गुरु की प्रेरणा से नि:शस्त्र समाज सुधारक के रूप में काम करने वाले भक्तों का समूह, संत सभा के लोग, इस संत सभा के लोग समाज को सुधारने का काम करते थे, अंग्रेज सल्तनत के सामने अपनी आवाज उठाते थे और गोविंद गुरू से ये अंग्रेज सल्तनत काँप गई। पंचमहल जिले के संतरामपुरा-दाहोद क्षेत्र में भेखधारी एक समाज सुधारक, वह चलता जाये, फिरता जाये, मिलता जाये, बात करता जाये और लोगों में एक नई चेतना जगाता जाये और उसका परिणाम क्या आया? सीधे लंदन तक खबर पहुंची कि यह एक ऐसा आदमी है जिसके पीछे पीछे ये आदिवासी भाईयों अपना जीवन कुर्बान कर देने के लिए तैयार हो गये हैं, आदिवासी अपनी जिंदगी देने को तैयार हो गये हैं और ये जो इतना बड़ा तोप का गोला यदि अंग्रेजों की ओर घूम गया तो उनका कत्लेआम हो जाएगा ऐसा डर था। गोविंद गुरू को सीधा करने के लिए षडंयत्र रचे गए। स्पेशल लोग नियुक्त किए गए, और यह तय किया गया कि गोविंद गुरू को खत्म कर दिया जाए। लेकिन गोविंद गुरू के भक्त ऐसे थे कि वे आदिवासी भाइयों ने भारत माता की आजादी के लिए अंग्रेजों के सामने झुकना पंसद नहीं किया, अंग्रेजों की फौज आई तो भागना पंसद नहीं किया, अंग्रेजो की फौज आई तो गोविंद गुरू को अकेला छोड़ कर भाग जाने की कोशिश नहीं की, बल्कि अंग्रेजों के सामने गए मेरे वीर आदिवासी, अंग्रेजों के सामने लड़े। उनकी तोप की नलियाँ थीं और बंदूक की नलियाँ थीं, गोलियोँ की बौछार चल रही थी और एक के बाद एक मेरे आदिवासी भाई शहीद होते गए पर गोविंद गुरू पर आंच ना आए इसके लिए अपना बलिदान देते गए। लाशों के ढेर लग गए। आप सोचो, जलियांवाला बाग से दोगुने लोग यहाँ शहीद हुए थे। जलियांवाला बाग का नाम तो इतिहास के पन्नों में शामिल है, पर मानगढ़ का कोई उल्लेख न हो इस तरीके से इतिहास को भूला दिया गया है, मेरे आदिवासी भाइयों को भूला दिया गया है। देश की आजादी के लिए मरने वाले बिरसा मुंडा हो कि गोविंद गुरू की प्रेरणा से शहीद होने वाले पन्द्रह सौ से ज्यादा मेरे भील युवा हों, इन सभी लोगों ने भारत माता को आजाद करवाने के लिए अपने जीवन समर्पित कर दिये थे, बलिदान दिया था पर इतिहास में इन्हें भुला दिया गया। और आज इस बात को ठोक बजाकर दुनिया के सामने मुझे लाना है। जब उनकी शताब्दी जब मनाई जाएगी, पूरा वर्ष आदिवासी समाज के लोग यहाँ आएगें, यात्राएं निकलती रहेंगी, लगातार यात्राएं चलेंगी और 2013 में जब शताब्दी वर्ष पूर्ण होगा तब हमें गर्व होगा कि महात्मा गांधी की शताब्दी हर कोई मनाता है, पंडित नेहरू की शताब्दी हर कोई मनाता है, महापुरुषों की शताब्दी हर कोई मनाता है पर कोई तो चाहिए जो गोविंद गुरू को, इस महान विरासत को, इस शहादत को, उन 1500 से ज्यादा अनाम लोग जिनकी किसी को खबर नहीं है वे अगर यहाँ शहीद हुए हों तो उन शहादत की शताब्दी भी मनानी चाहिए। गुजरात में कोई तो ऐसा है जिसको उनकी याद आयी है और उसे मनाना है। कुछ लोगों को ये लगता है कि ये सब तो चुनाव आ रहे हैं इसलिए हो रहा है। अब भैया, यह शताब्दी क्या हमने तय की थी..? चुनाव और शताब्दी दोनों साथ में आ जाएं तो क्या वह हमारा कसूर है..? वह 1912 में हुआ था और ये 2012 में आया, इसमें हमारा कोई अपराध है, भाई? और इन सारी बातों को चुनाव के साथ जोड़ कर, उसे राजनीति का रूप देकर, इन बलिदानों के महत्व को छोटा करने वाले लोग शहीदों का अपमान कर रहे हैं..!

भाइयों और बहनों, श्यामजी कृष्ण वर्मा, हिंदुस्तान में सशस्त्र क्रांति का जिसने नेतृत्व किया, वीर सावरकर जैसे महापुरूष जिसने दिए, मदन लाल धींगरा जैसे लोगों में वीरता को प्रेरित किया, भगतसिंह-सुखदेव-आजाद जैसे लोग जिनको प्रेरणा मानते थे वे श्याम कृष्ण वर्मा, अपने गुजरात के कच्छ का बेटा, अंग्रेजों के सामने लंदन में अंग्रेजों की नाक के नीचे आजादी की लड़ाई लड़ते थे, इस देश की सशस्त्र क्रांति करने वाले लोगों को शिष्यवृत्ति के द्वारा तैयार करते थे। वह श्यामजी कृष्ण वर्मा 1930 में जब गुजर गए तब लिख कर गए थे कि मुझे तो जीते जी आजादी देखने को नहीं मिल सकी, पर मेरी अस्थियों को संभाल कर रखना, मेरी हड्डियों को संभाल कर रखना और जब मेरा देश आजाद हो जाए तो मेरी अंतिम इच्छा है कि मेरी अस्थियां मेरे आजाद हिंदुस्तान की धरती पर ले जाई जाए, जिससे मुझे मोक्ष मिले, मुझे शांति मिले। ऐसा श्यामजी कृष्ण वर्मा लिख कर गए थे। 1930 में उनका स्वर्गवास हुआ और 1947 में देश आजाद हुआ। 15 अगस्त को तिरंगा झंडा फहराया गया उसके दूसरे ही दिन दिल्ली सरकार ने आदमी को भेज कर अस्थियां हिंदुस्तान लानी चाहिए थीं। मगर उन्हें शहीदों की पड़ी ही नहीं थी, देश के लिए जीने वाले, देश के लिए मरने वालों की परवाह नहीं थी और इसलिए श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां वहाँ पड़ी रहीं। भाइयों और बहनों, ये सौभाग्य मुझे मिला, भारतमात के इस सपूत की अस्थियां मैं कंधे पर उठा कर विदेश की धरती से 2003 में यहाँ लेकर आया। और आज श्याम कृष्ण वर्मा का एक अत्यंत प्रेरक स्मारक कच्छ के मांडवी में बनाया गया है। कोई भी भारत माता को प्रेम करने वाला नागरिक वहाँ जाएं तो उसे देखते ही लगेगा कि ऐसे ऐसे थे हमारे वीर पुरूष..! आज हर साल हजारों की संख्या में विद्यार्थी श्यामजी कृष्ण वर्मा के इस स्मारक की मुलाकात लेते हैं, देश-दुनिया के पर्यटक श्यामजी कृष्ण वर्मा के इस स्मारक को देखने आते हैं। एक दिन ऐसा आएगा कि गोविंद गुरू की स्मृति में यहाँ जो स्मारक बना है, उनकी शहादत को याद किया है ऐसा ये शहीद वन स्मृति वन बना है, यहाँ भी देश और दुनिया के लोग उन पन्द्रह सौ से ज्यादा मेरे शहीद भील कुमारों पर हमेशा पुष्प वर्षा करने के लिए इस धरती पर आएंगे, ऐसा वातावरण बनाने का काम मैंने किया है।

भाइयों और बहनों, आजादी को इतने साल हो गए, इतने सारे समाज सुधारक हुए। आप देखिए  हमने वहाँ एक  छोटा सा प्रदर्शन रखा है। उस जमाने में गोविंद गुरू की कैसी प्रेरणा देते थे, कैसे वचन कहते थे..! ये वचन आज भी काम में आए ऐसे शब्द वे उस समय कहते थे,एक-एक बात पर अमल हो इसके लिए भगत पंथ चला कर भक्तों को तैयार करके समाज सुधार का काम करते थे। और जीवन के कितने साल जेल में बिताए, अहमदाबाद की साबरमती जेल में भी रहे। अंग्रेज सरकार को डर लगा तो हैदराबाद की जेल में भेज दिया, हैदराबाद की जेल में जिंदगी गुजारने पर मजबूर किये गए थे। ये गोविंद गुरू, उन्हें भूला दिया गया है। आदिवासियों के कल्याण के लिए अपना जीवन खपा देने वाले व्यक्ति को इस देश में भूलाया नहीं जाएगा। आने वाली पीढिय़ां याद रखे इसके लिए हमने सकंल्प किया है और यह बात हम पहुँचाना चाहते हैं। शहादत व्यर्थ नहीं जा सकती और जब भील कुमारों को पता चलेगा कि उनके पूर्वजों ने कितना बड़ा बलिदान दिया था, तब जैसे एकलव्य से प्रेरणा ली जाती है वैसे ही गोविंद गुरू से भी प्रेरणा मिलेगी ऐसा मुझे विश्वास है।

भाइयों और बहनों, आजादी के इतने सारे सालों में आदिवासियों का कल्याण करने में ये सभी सरकारें निष्फल रही हैं। आदिवासियों के नाम पर विपुल मात्रा में वोट ले गए, पर आदिवासियों के जीवन में बदलाव नहीं आया। इस सरकार ने प्रयास किया है कि आदिवासियों के घर तक पीने का पानी कैसे पहुंचे, आदिवासियों के खेतों तक सिंचाई का पानी कैसे पहुंचे, आदिवासियों को रहने के लिए घर कैसे मिले, पेड़ों के नीचे जिंदगी गुजारने वाले आदिवासियों को अपना घर किस तरह से मिले ये चिंता इस सरकार ने की है। भाइयों और बहनों, शून्य से सोलह तक के गरीबी रेखा के नीचे जीवन गुजारने वाले सभी आदिवासियों को मकान देने का काम पूरा कर दिया गया है। और अब उठाने वाले हैं, सत्तरह से बीस के बीच आने वाले लगभग दो लाख से ज्यादा आदिवासीयों को घर देने का काम, जो आने वाले दिसंबर तक हम पूरा करने वाले हैं। आप सोचिए, पचास सालों में जो काम कोई नहीं कर सका है, वो काम करने के लिए संघर्ष उठाया है और ये काम का लाभ लोगों को मिले इसके लिए काम किया है। 15,000 करोड़ रूपये का पैकेज, वनबंधु कल्याण योजना में नियत किए गए थे 15,000 करोड़ और पहुँचाया 18,000 करोड़ और अब तो मामला 40,000 करोड़ रूपये तक पहुँच गया है, 40,000 करोड़ रुपये मेरी आदिवासी जनता के लिए। भाइयों और बहनों, समाज को लड़वाने के लिए आरक्षण के नाम पर दंगे करवाते हैं, सब कुछ करते हैं, दूसरों को उकसाने की बातें करते हैं। लेकिन मेरे आरक्षण का लाभ कैसे मिल सकता है, भाइयों? मेरे आदिवासी बेटे को डॉक्टर बनना है, मेरे आदिवासी बेटे को इंजीनियर बनना है, तो पहले बारहवीं कक्षा तक की विज्ञान प्रवाह की स्कूल तो होनी चाहिए की नहीं..? आपको जानकर दु:ख होगा भाइयों-बहनों, उमरगांव से अंबाजी तक की पूरी आदिवासी पट्टी में विज्ञान संकाय की एक भी बारहवीं कक्षा नहीं थी। मैं जब 2001 में आया तब इस राज्य में 45 तालुके ऐसे थे जहाँ पर बारहवीं कक्षा में विज्ञान संकाय वाला विद्यालय ही नहीं था। जब बारहवीं कक्षा में विज्ञान संकाय ही नहीं है तो डॉक्टर या इंजीनियर कैसे बना जा सकता है? आरक्षण का लाभ कैसे मिलेगा? और आरक्षण के नाम पर झगड़ा करके अपनी राजनीति चलाते रहते हो लेकिन आदिवासियों का भला कभी नहीं किया। भाइयों और बहनों, हमने उन 45 के 45 तालुकाओं में विज्ञान संकाय की बारहवीं कक्षा के विद्यालय प्रारंभ करवाए और इसका परिणाम ये आया कि आज मेडिकल, इंजीनियरिंग की आदिवासियों की सभी सीटें भरने लगी। आदिवासी लडक़े इंजीनियर बने, आदिवासी लडक़े डॉक्टर बने इस दिशा में हमने काम किया। नर्सिंग की कॉलेज प्रारंभ की, आदिवासी क्षेत्र में आई.टी.आई. प्रारंभ की, आदिवासियों के बच्चे आज पढ़ें और आगे बढें इसकी चिंता की।

क जमाना था, मेरे पंचमहाल तालुका के आदिवासी 44 डिग्री तापमान होने पर भी रोड का काम करने के लिए, डामर का काम करने के लिए शहरों में तपते थे, चिलचिलाती धूप में डामर की सड़क बनाने का काम करते थे, ऐसे दिन थे। आज मुझे गर्व के साथ कहना है कि दाहोद और पंचमहाल जिले का एक भी ऐसा तालुका नहीं है कि जहाँ पर मेरे आदिवासी आज रोड कांन्ट्रेक्टर नहीं बने हो। जेसीबी लाने लगे हैं । अभी एक सदभावना मिशन के कार्यक्रम में मेरे इस गरीब समाज के लोग मुझे मिलने आए थे, बक्षीपंच के गधे चराने वाले और गधे पर मिट्टी उठा कर ले जाने वाले लोग मुझे मिलने आए थे। और मेरे लिए एक खिलौना लेकर आए थे, सदभावना मिशन में प्लास्टिक का खिलौना मुझे भेंट दिया। मैं हँस पड़ा, मैंने कहा कि आप लोगों ने मुझे यह प्लास्टिक की जेसीबी मशीन का खिलौना क्यों दिया? मेरे परिवार में तो खेलने वाला कोई नहीं है, मुझे हँसी आ गई। तो मुझे कहा कि साहब, हम ये जेसीबी का खिलौना इसलिए लाए हैं कि पहले हम गधे चराते थे, आपकी सरकार में ऐसी प्रगति हुई कि हमारे घर में भी जेसीबी आ गई उसका नमूना आपको बताने के लिए लाए हैं, उसका आभार व्यक्त करने के लिए आएं हैं। आज मेरे पंचमहाल के, दाहोद के आदिवासी तथा सभी तालुका में देखना मित्रों, आज मेरे आदिवासी रोड के कान्ट्रेक्टर बन गए हैं, कल तक मजदूरी करते थे। मेरा डांग जिला, आदिवासी भाइयों, इनके कल्याण के लिए कोई योजना ही नहीं थी। हमने डांग जिले में दूध  उत्पादन के काम शुरू किए, गाय-भैंसे देने की दिशा में काम किए। आज मेरे डांग जिले का आदिवासी स्वावलम्बी हो गया है। हमने दाहोद जिले में अभियान शुरू किया है, दूध उत्पादन करने की क्षमता बढ़े, दुधारी पशु उपलब्ध हों इसके लिए काम शुरू किए। हम एक ओर आदिवासी भाइयों को दूध उत्पादन के लिए गाय-भैंस प्रदान कर रहे हैं, वहीं दिल्ली सरकार ने क्या शुरू किया है, जानते हैं? दिल्ली सरकार ने कसाईखानों को सब्सिडी देने का काम शुरू किया है। पचास करोड़ रूपया कसाईखानों के लिए सब्सिडी दे रहे हैं तथा गाय का मांस विदेश में भेजो तो सब्सिडी दी जाती है और लाखों टन गाय का मांस विदेश भेजने का काम ये दिल्ली की सरकार कर रही है। यह देश तो ऐसा है कि जब 1857 की क्रांति हुई थी, वह गाय की चर्बी के ऊपर क्रांति हुई थी, बुलेट पर गाय की चर्बी है इतनी बात मात्र से हिंदुस्तान जाग गया था। इसी हिन्दुस्तान में आज दिल्ली की सरकार गाय का मांस विदेश भेजने के लिए प्रोत्साहक इनाम दे रही है..! इस बदकिस्मती के साथ देश जी रहा है तब मेरे भाइयों-बहनों, गौ माता की रक्षा के लिए गोविंद गुरू ने जिदंगी दे दी थी। गाँव-गाँव जाकर गौ पालन के लिए ज्ञान देने का काम गोविंद गुरू ने किया था। इन गोविंद गुरू से प्रेरणा लेकर इतने लोग शहीद हो गए और अंग्रेज सरकार के नाक में दम कर दिया था उस मानगढ़ भूला नहीं सकते। इस मानगढ़ ने ही गुजरात का सम्मान बढ़ाया है, इस गुजरात का गौरव बढ़ाने का काम मानगढ़ के मेरे शहीदों ने किया है। उस शहादत याद करते हुए यह ‘शहीद स्मृति वन’ हमने समर्पित किया है।

भाइयों और बहनों, पर्यावरण के सामने लडऩा है तो वृक्ष बचाने पड़ेंगे, वृक्ष लगाने पड़ेंगे। बारिश की खींच के चलते जीव कैसा व्याकुल हो जाता है..? समाज का कोई ऐसा वर्ग नहीं है जो बारिश की खींच के चलते दु:खी नहीं होता हो। राजा हो या रंक हो, बरसात कम हो तो हर कोई दु:खी होता है, हर एक के मन में पीड़ा होती है कि भाई, अब बरसात हो तो अच्छा है। कुछ निकम्मे लोग भी होते हैं, ये लोग यज्ञ करते हैं, यज्ञ करके भगवान से प्रार्थना करते हैं कि बरसात न हो तो अच्छा है, तो हमें चुनाव में आसानी रहे, बोलो ऐसी बात..! अरे भाई, चुनाव जीतने के लिए इस जनता को दु:ख में नहीं डाल सकते, इस जनता को कष्ट हो ऐसा नहीं कर सकते। अरे, चुनाव तो आएंगे और जाएंगे, पर मेरा ये समाज तो अविनाशी है। यदि इसे पानी ईश्चर की कृपा से नहीं मिलेगा तो कितनी विपदाएं आएंगी, हम सब प्रार्थना करें, गोविंद गुरू के धाम में प्रार्थना करें कि ईश्वर हमें बरसात का प्रसाद दें और हमारा गुजरात हराभरा बनने कि दिशा में आगे बढ़े, इसका अवसर हम लें। बरसात तो ईश्वर की दी हुई सबसे बड़ी कृपा है, इसके बिना जीवन संभव ही नहीं हो सकता। इस पानी के लिए पूजा इस समाज के भविष्य की गारंटी का एक साधन है। भाइयों और बहनों, विकास का मार्ग हमने लिया है, विकास के मार्ग पर जाना है, हमारे आदिवासियों की जिंदगी बदलनी है..! अभी भारत सरकार ने एक आंकड़ा जारी किया। भारत सरकार ने कहा कि पूरे देश में जो बेरोजगारी है, इसमें कम से कम बेरोजगारी कहीं है तो उस राज्य का नाम है गुजरात। यदि हमने विकास नहीं किया होता तो राज्य के नौजवानों को रोजगार नहीं मिला होता। और अगर नौजवानों को रोजगार नहीं मिलता है तो उनके परिवार की स्थिति नहीं बदलेगी और इसलिए हमारा प्रयास है कि युवाओं को रोजगार मिले। वनबंधु कल्याण योजना के जरिए, स्किल डेवलपमेंट कार्यक्रम के जरिए, कौशल वर्धन के कार्यक्रमों के जरिए प्रत्येक नौजवान को काम सिखाना है ताकि पत्थर पर लात मार कर पानी निकाल सके ऐसी ताकत इनमें आए। इस ताकत को खड़ी करने का काम उठाया है।

भाइयों और बहनों, मानगढ़ जैसा वीरान प्रदेश, यहाँ पहुँचना भी कठिन है और एक पर्वत की छोटी सी चोटी पर जिस तरह से मैंने जन सैलाब देखा, हैलिकाप्टर से मैं देख रहा था कि कितने सारे आदमी खड़े थे, अंदर तो कुछ भी नहीं है। इतना बड़ा जन सैलाब, गोविंद गुरू की याद ताजा करने का हमारा जो सपना था उसका बीज बोया गया है, दोस्तों। अब गोविंद गुरू को कैसा भी ताकतवर आदमी आए तो भी भूला नहीं पाएगा। इतिहास के पन्नों से शहादत की बात को मिटाने की कोशिश करने वाले लोग अब नाकाम होंगे ऐसा ये दृश्य मुझे नजर आ रहा है। इतिहास के पन्नों से शहादत को कोई मिटा नहीं सकेगा, सशस्त्र क्रांति के वीरों को भूला नहीं जा सकता, भारत के वीरत्व को भूला नहीं जा सकता, आदिवासियों के बलिदान का भूला नहीं जा सकता, आदिवासियों की यशगाथा को भूला नहीं जा सकता और ये बड़ा काम गोविंद गुरू की धरती पर हमने किया है। मेरे आदिवासी भाइयों और बहनों, आओ, सिर्फ जंगलों को बचाना ही नहीं है, वृक्ष भी बढ़ाने हैं। यहाँ आपने देखा होगा कि एक एक गाँव को, किसी को पन्द्रह लाख, किसी को बीस लाख रूपये मिल रहे हैं। ये सरकार की योजना का लाभ लें। इतने सारे वृक्ष उगाओ, प्रत्येक वृक्ष से पैसा कमाओ, ये सरकार आपको पैसे देती है, लाखों रूपये देती है। एक एक गाँव को पन्द्रह-पन्द्रह, बीस-बीस लाख रूपया मिलता है वो आपने देखा मेरे सामने। इतने सारे रूपयों की वर्षा हो रही हो तो वृक्ष उगाने की बात में हम कमी न बरतें। वन विभाग के मित्रों को भी मानगढ़ जैसी इस जगह पर गोविंद गुरू की याद में... और यह सारी नौकरी से ऊपर की बात है। नौकरी में तो सब चलता है, पर आपने आज एतिहासिक काम किया है, सिर्फ नौकरी नहीं की है, दोस्तों। और किसी एतिहासिक काम के साक्षी बनने में जीवन का अपूर्व आनंद मिलता है। आप भी भविष्य में आपके संतानों को यहाँ दिखाने लाएंगे कि मैं जब नौकरी करता था तब हमने यह एक महान एतिहासिक काम किया था, ऐसा भाव पैदा होने वाला है। पीढ़ी दर पीढ़ी ये संस्कार पहुँचने वाले हैं और इस काम को जब हमने महसूस किया है तब फिर एक बार मेरे साथ ‘गोविंद गुरू अमर रहे’ का नारा लगाएं, फिर मैं कहूँगा ‘शहीदों’ तब आप ‘अमर रहो’ कहना...

 

गोविंद गुरू, अमर रहो... गोविंद गुरू, अमर रहो...!

हीदो, अमर रहो...हीदो, अमर रहो...हीदो, अमर रहो...!

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November 22, 2024

गुटेन आबेन्ड

स्टटगार्ड की न्यूज 9 ग्लोबल समिट में आए सभी साथियों को मेरा नमस्कार!

मिनिस्टर विन्फ़्रीड, कैबिनेट में मेरे सहयोगी ज्योतिरादित्य सिंधिया और इस समिट में शामिल हो रहे देवियों और सज्जनों!

Indo-German Partnership में आज एक नया अध्याय जुड़ रहा है। भारत के टीवी-9 ने फ़ाउ एफ बे Stuttgart, और BADEN-WÜRTTEMBERG के साथ जर्मनी में ये समिट आयोजित की है। मुझे खुशी है कि भारत का एक मीडिया समूह आज के इनफार्मेशन युग में जर्मनी और जर्मन लोगों के साथ कनेक्ट करने का प्रयास कर रहा है। इससे भारत के लोगों को भी जर्मनी और जर्मनी के लोगों को समझने का एक प्लेटफार्म मिलेगा। मुझे इस बात की भी खुशी है की न्यूज़-9 इंग्लिश न्यूज़ चैनल भी लॉन्च किया जा रहा है।

साथियों,

इस समिट की थीम India-Germany: A Roadmap for Sustainable Growth है। और ये थीम भी दोनों ही देशों की Responsible Partnership की प्रतीक है। बीते दो दिनों में आप सभी ने Economic Issues के साथ-साथ Sports और Entertainment से जुड़े मुद्दों पर भी बहुत सकारात्मक बातचीत की है।

साथियों,

यूरोप…Geo Political Relations और Trade and Investment…दोनों के लिहाज से भारत के लिए एक Important Strategic Region है। और Germany हमारे Most Important Partners में से एक है। 2024 में Indo-German Strategic Partnership के 25 साल पूरे हुए हैं। और ये वर्ष, इस पार्टनरशिप के लिए ऐतिहासिक है, विशेष रहा है। पिछले महीने ही चांसलर शोल्ज़ अपनी तीसरी भारत यात्रा पर थे। 12 वर्षों बाद दिल्ली में Asia-Pacific Conference of the German Businesses का आयोजन हुआ। इसमें जर्मनी ने फोकस ऑन इंडिया डॉक्यूमेंट रिलीज़ किया। यही नहीं, स्किल्ड लेबर स्ट्रेटेजी फॉर इंडिया उसे भी रिलीज़ किया गया। जर्मनी द्वारा निकाली गई ये पहली कंट्री स्पेसिफिक स्ट्रेटेजी है।

साथियों,

भारत-जर्मनी Strategic Partnership को भले ही 25 वर्ष हुए हों, लेकिन हमारा आत्मीय रिश्ता शताब्दियों पुराना है। यूरोप की पहली Sanskrit Grammer ये Books को बनाने वाले शख्स एक जर्मन थे। दो German Merchants के कारण जर्मनी यूरोप का पहला ऐसा देश बना, जहां तमिल और तेलुगू में किताबें छपीं। आज जर्मनी में करीब 3 लाख भारतीय लोग रहते हैं। भारत के 50 हजार छात्र German Universities में पढ़ते हैं, और ये यहां पढ़ने वाले Foreign Students का सबसे बड़ा समूह भी है। भारत-जर्मनी रिश्तों का एक और पहलू भारत में नजर आता है। आज भारत में 1800 से ज्यादा जर्मन कंपनियां काम कर रही हैं। इन कंपनियों ने पिछले 3-4 साल में 15 बिलियन डॉलर का निवेश भी किया है। दोनों देशों के बीच आज करीब 34 बिलियन डॉलर्स का Bilateral Trade होता है। मुझे विश्वास है, आने वाले सालों में ये ट्रेड औऱ भी ज्यादा बढ़ेगा। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि बीते कुछ सालों में भारत और जर्मनी की आपसी Partnership लगातार सशक्त हुई है।

साथियों,

आज भारत दुनिया की fastest-growing large economy है। दुनिया का हर देश, विकास के लिए भारत के साथ साझेदारी करना चाहता है। जर्मनी का Focus on India डॉक्यूमेंट भी इसका बहुत बड़ा उदाहरण है। इस डॉक्यूमेंट से पता चलता है कि कैसे आज पूरी दुनिया भारत की Strategic Importance को Acknowledge कर रही है। दुनिया की सोच में आए इस परिवर्तन के पीछे भारत में पिछले 10 साल से चल रहे Reform, Perform, Transform के मंत्र की बड़ी भूमिका रही है। भारत ने हर क्षेत्र, हर सेक्टर में नई पॉलिसीज बनाईं। 21वीं सदी में तेज ग्रोथ के लिए खुद को तैयार किया। हमने रेड टेप खत्म करके Ease of Doing Business में सुधार किया। भारत ने तीस हजार से ज्यादा कॉम्प्लायेंस खत्म किए, भारत ने बैंकों को मजबूत किया, ताकि विकास के लिए Timely और Affordable Capital मिल जाए। हमने जीएसटी की Efficient व्यवस्था लाकर Complicated Tax System को बदला, सरल किया। हमने देश में Progressive और Stable Policy Making Environment बनाया, ताकि हमारे बिजनेस आगे बढ़ सकें। आज भारत में एक ऐसी मजबूत नींव तैयार हुई है, जिस पर विकसित भारत की भव्य इमारत का निर्माण होगा। और जर्मनी इसमें भारत का एक भरोसेमंद पार्टनर रहेगा।

साथियों,

जर्मनी की विकास यात्रा में मैन्यूफैक्चरिंग औऱ इंजीनियरिंग का बहुत महत्व रहा है। भारत भी आज दुनिया का बड़ा मैन्यूफैक्चरिंग हब बनने की तरफ आगे बढ़ रहा है। Make in India से जुड़ने वाले Manufacturers को भारत आज production-linked incentives देता है। और मुझे आपको ये बताते हुए खुशी है कि हमारे Manufacturing Landscape में एक बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ है। आज मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग में भारत दुनिया के अग्रणी देशों में से एक है। आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा टू-व्हीलर मैन्युफैक्चरर है। दूसरा सबसे बड़ा स्टील एंड सीमेंट मैन्युफैक्चरर है, और चौथा सबसे बड़ा फोर व्हीलर मैन्युफैक्चरर है। भारत की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री भी बहुत जल्द दुनिया में अपना परचम लहराने वाली है। ये इसलिए हुआ, क्योंकि बीते कुछ सालों में हमारी सरकार ने Infrastructure Improvement, Logistics Cost Reduction, Ease of Doing Business और Stable Governance के लिए लगातार पॉलिसीज बनाई हैं, नए निर्णय लिए हैं। किसी भी देश के तेज विकास के लिए जरूरी है कि हम Physical, Social और Digital Infrastructure पर Investment बढ़ाएं। भारत में इन तीनों Fronts पर Infrastructure Creation का काम बहुत तेजी से हो रहा है। Digital Technology पर हमारे Investment और Innovation का प्रभाव आज दुनिया देख रही है। भारत दुनिया के सबसे अनोखे Digital Public Infrastructure वाला देश है।

साथियों,

आज भारत में बहुत सारी German Companies हैं। मैं इन कंपनियों को निवेश और बढ़ाने के लिए आमंत्रित करता हूं। बहुत सारी जर्मन कंपनियां ऐसी हैं, जिन्होंने अब तक भारत में अपना बेस नहीं बनाया है। मैं उन्हें भी भारत आने का आमंत्रण देता हूं। और जैसा कि मैंने दिल्ली की Asia Pacific Conference of German companies में भी कहा था, भारत की प्रगति के साथ जुड़ने का- यही समय है, सही समय है। India का Dynamism..Germany के Precision से मिले...Germany की Engineering, India की Innovation से जुड़े, ये हम सभी का प्रयास होना चाहिए। दुनिया की एक Ancient Civilization के रूप में हमने हमेशा से विश्व भर से आए लोगों का स्वागत किया है, उन्हें अपने देश का हिस्सा बनाया है। मैं आपको दुनिया के समृद्ध भविष्य के निर्माण में सहयोगी बनने के लिए आमंत्रित करता हूँ।

Thank you.

दान्के !