दि. २१-११-२०११

महात्मा मंदिर, गांधीनगर

ई बार अनेक लोगों के मन में प्रश्न उठते होंगे और हमारे समाज की एक स्थिति ऐसी है कि जो छोटी इकाइयाँ हैं उनके प्रति देखने का भाव कुछ अलग होता है। अब कोई सामान्य नौकरी कर रहे हों, गुज़ारा चल जाए इतना संतोषजनक कमा रहे हों फिर भी कई लोगों को ऐसा लगता है कि इससे अच्छा तो हम बैंक में चपरासी की नौकरी करते होते तो ज़्यादा रोब होता..! कारण? समाज में एक विचित्र प्रकार की मानसिकता है। कोई ऑटोरिक्शा चलाता हो, अपने घर की तीन ऑटोरिक्शा हो, किसी भी नौकरी से ज्यादा कमाता हो लेकिन ऑटोरिक्शा चलाता है इसलिए उसकी तरफ़ देखने का द्रष्टिकोण अलग होता है। यह जो समाज-जीवन की मन:स्थिति है जब तक हम उसे नहीं बदलें तब तक देश के विकास के लिए गौरवपूर्ण, स्वाभिमान-पूर्वक भाव जागना मुश्किल बनता है। और इसलिए जरूरत है कि हर एक क्षेत्र में डिग्निटी कैसे आए? इसको प्रतिष्ठा कैसे मिले? और एक बार डिग्निटी मिले, इसकी सहज प्रतिष्ठा बने तो समाज में अपने आप स्वीकृति मिलती है।

क समय था कि हमारे यहाँ आंगनबाड़ी अर्थात? उसका कोई महत्व ही नहीं था, उन्हें तो
आया बहन, झूलाघर वाली बहन कहा जाता था... घर से अपने बच्चों को ले जाए, लाए... हमें मालूम भी न हो कि इस बहन का नाम क्या है, काम क्या करती है। कारण? एक ऐसा माहौल बन गया है कि आंगनबाड़ी चलाने वाले अर्थात सामान्य लोग। इस सरकार ने समग्र आंगनबाड़ी क्षेत्र को महत्त्व भी दिया, इसकी डिग्निटी स्थापित की और आंगनबाड़ी में उत्तम काम करने वाली जो बहनें हो उन्हें ‘माता यशोदा एवॉर्ड’ भी दिये और हमने दुनिया को समझाया कि सबसे पहली आंगनबाड़ी माता यशोदा ने शुरु की थी। देवकी के पुत्र कृष्ण को माता यशोदा ने ही पाला था और ऐसे महापुरुष का निर्माण हुआ जिन्हें आज हजारों वर्षों बाद तक याद करते हैं और इसी लिए माता यशोदा का महत्व है। आपकी संतान को इस आंगनबाड़ी की बहनें जिस तरह से पालती हैं, संस्कारित करती है, बड़ा करती है वह माता यशोदा जैसा काम करती है। उनके लिए यूनिफॉर्म बनाये, एक डिग्निटी पैदा की। मित्रों, इसी प्रकार आई.टी.आई. यानि जैसे कुछ है ही नहीं..! पाँच-पंद्रह दोस्त कहीं घूमने गये हों और कोई पूछे कि क्या पढ़ते हो? आई.टी.आई., तो ऐसे दूरी बना लेते हैं, आई.टी.आई..! मुझे इस स्थिति को बदलना है। मुझे इसकी डिग्निटी खडी करनी है। ‘श्रम एव जयते’ ऐसा हम सब कहते हैं। श्रम की प्रतिष्ठा न हो? श्रम करके समाज का निर्माण करने वाले जो लोग हैं वे तो ब्रह्मा के अवतार हैं। सृष्टि के निर्माण में जो रोल ब्रह्मा का था वही आई.टी.आई. वालों का है। चाहे वह छोटे पैमाने पर होगा, ब्रह्मा ने तो विशाल, विश्व फलक पर काम किया था। आई.टी.आई. में दाखिल हुए कुछ तो ऐसे होते हैं जो छोटे होंगे तब घर पर आए मेहमान को मम्मी-पापा ने उनका परिचय दिया होगा कि यह बेटा है इसे डॉक्टर बनाना है, यह बेटी है इसे इंजीनियर बनाना है या तो ऐसा कहा होगा कि यह बेटा है इसे इंजीनियर बनाना है, बेटी है इसे डॉक्टर बनाना है। सब के घर में आपने यह सुना ही होगा। आप सब भी बड़े हुए, आपको भी किसी न किसी ने कहा होगा कि इसे डॉक्टर बनाना है। अब नहीं बन सके, गाड़ी आठवीँ से आगे गई ही नहीं । फिर मम्मी-पापा ने कह दिया होगा कि शिक्षक ही ऐसे थे..! अलग-अलग कारण ढूँढ निकाले होंगे लेकिन अपनी गाड़ी तो रूक ही गई और फिर मुश्किल से कहीं आई.टी.आई. में मेल खाया हो। हमें भी ऐसा लगता रहता है कि मुझे तो इंजीनियर बनना था, आई.टी.आई. करना पड़ा। मुझे तो फलां बनना था, आई.टी.आई. करना पड़ा। जिसके कारण अपना ही मन न लगे। और जो शिक्षक हों वे इंजीनीयरिंग पढ़कर आये हों, डिप्लोमा करके आये हों तो उनको भी ऐसा लगता है कि ठीक है अब..! मैं अच्छी तरह से पहचानता हूँ न आप सबको? आपके सारे प्रॉब्लेम मुझे पता है न? मित्रों, यह जो खाई है न, मुझे इस खाई को ख़त्म करना है और इसकी शुरुआत की है हमने। पहला काम किया, आई.टी.आई. मॉडल कैसे बने? उत्कृष्ट प्रकार की आई.टी.आई. की रचना कैसे हो? उसकी इमारतों में सुधार कैसे हो? उसके पाठ्यक्रमों में आधुनिकरण कैसे आये? डिसिप्लिन कैसे आये? यूनिफॉर्म कैसे हों? उसमें टॅक्नोलॉजी का उपयोग कैसे हो..? यानि ये सब शुरूआत की हमने। और मुझे स्मरण है कि कुछ पाँच साल पहले भारत सरकार के इस विषय के सारे सेक्रेटरी यहाँ गुजरात आये थे। गुजरात में अभ्यास करने आये कि आपने आई.टी.आई. के रुप-रंग बदले यानि क्या किया है? कैसे किया है? कहाँ तक ले गये हो? और उनको आश्चर्य हुआ कि इस राज्य में आई.टी.आई. के लिए यह सरकार इतना परिश्रम करती है! उसे तो कोई कुछ गिनता ही नहीं था। मित्रों, उसके बाद स्थिति यह बनी कि गुजरात ने जो प्रयोग किए उनके आधार पर भारत सरकार ने योजना बनाई कि आई.टी.आई. को कैसे अपग्रेड करना, आई.टी.आई. को कैसे मॉडल बनाना और गुजरात के मॉडल को आगे कैसे बढ़ाना इसका विचार भारत सरकार ने किया। हम उसी दिशा में थे। पहले स्थिति ऐसी थी कि आठवीँ कक्षा के बाद जिसने आई.टी.आई. किया हो, उसे आठवीँ पास ही माना जाता था। दसवीँ कक्षा तक पढ़ने के बाद दो साल आई.टी.आई. में लगाए हों तो भी उसे आठवीँ पास ही माना जाता था। दसवीँ कक्षा पास की हो, मुश्किल से पैंतीस प्रतिशत आए हों तो भी वह आई.टी.आई. वालों को चिढ़ाता था कि तुम तो आठवीँ वाले हो, तुम तो आठवीँ वाले हो..! बारहवीँ कक्षा में दो प्रयत्नों के बाद जैसे-तैसे इम्तिहान पास किया हो, अंग्रेज़ी-गणित लिए ही न हों फिर भी आई.टी.आई. वाला मिले तो बोलता था कि जाने दे यार, मैं तो बारहवीँ पास हूँ..! ऐसा ही होता था न? हमने यह स्थिति बदली। हमने तय किया, निर्णय किया कि आठवीँ कक्षा के बाद दो साल जो आई.टी.आई. करता है उसे दसवीँ कक्षा पास गिनना, दसवीँ के बाद जिन्हों ने दो साल किए हैं उनको बारहवीँ कक्षा पास गिनना। मित्रों, ये मेहनत इसलिए की है क्योंकि मुझे इसकी एक डिग्निटी पैदा करनी है।

पने देखा होगा कि सेना का एक सिपाही, सामान्य छोटा कर्मचारी, वह जब सेना में काम करता होता है तब कई बार वहाँ माली का काम करता हो, या तो वहाँ गड्ढा खोदने का काम करता हो... लेकिन यूनिफॉर्म, परेड इन सब मामलों में समानता होती है और इसलिए वह जब घर से निकलता तो रौबदार लगता है। उसका कॉन्फिडन्स लेवल बढ़ जाता है। सामान्य सिपाही हो, आर्मी में बिलकुल ही छोटा, हमारे वहाँ प्यून जो काम करता है शायद उससे भी छोटा काम करता हो, लेकिन उसकी एक डिग्निटी पैदा हो गई, इन्स्टिटूशन में और समाज में भी। वो कहीं भी जाए तो उसे एक डिग्निटी से देखा जाता है। भाइयों-बहनों, यदि हमारी इन्स्टिट्युशन का कोई साधारण चपरासी हो तो उसे चपरासी की नजर से देखा जाता है, लेकिन इन्स्टिटूशनल अरेन्जमेन्ट ऐसी है कि आर्मी में वही काम करनेवाला आदमी समाज के लोगों से जब मिलता है तब उसे डिग्निटी से देखा जाता है। वह जा रहा हो तो हमें भी हाथ मिलाने का मन करता है कि वाह..! प्लेटफॉर्म पर खड़े हों तो मन में आता है कि चलो उसके साथ एक फोटो खींचवा लें। ऐसा होता है। कारण? उसे एक तरह की ट्रेनींग मिली है। उसके यूनिफॉर्म में, उसके पहनावे में, खड़े रहने में, बोलने में, चलने में एक बदलाव आया है और इसके कारण उसे यह सिद्धि मिली है। भाइयों-बहनों, मेरी कोशिश यही है। आनेवाले दिनों में आई.टी.आई. में आप कोई भी कोर्स करो, आप टर्नर हो, फिटर हो, वेल्डर हो, कुछ भी हो, वायरमैन का काम करते हो, ऑटोमोबाइल का काम करते हो लेकिन मैं चाहता हूँ कि आप इस मन:स्थिति को भंग करें कि इस देश को आपकी ज़रूरत नहीं थी और आप बेकार हो गये हैं। आप यहाँ अनिच्छा से बिल्कुल न आएँ। मुझे यह करना है और इसलिए मैं आई.टी.आई. क्षेत्र के हमारे सभी अधिकारी जो काम कर रहे हैं उनसे आग्रह करता हूँ कि आनेवाले दिनों में इन्हें जिस प्रकार का भी टॅक्निकल नॉलेज मिले, उसके साथ-साथ सॉफ्ट स्किल के भी पन्द्रह दिन, महिने के कोर्स को जोड़ दें। किसी को मिलें तो कैसे हाथ मिलाना? कैसे बात करनी? बॉस के साथ बात करनी हो तो कैसे बात करें? सहकर्मी के साथ कैसे बात करें... एक कॉन्फिडन्स लेवल आए। और यही काम, सॉफ्ट स्किल का, उतना ही महत्वपूर्ण है। आपकी बातचीत, आपका व्यवहार... आप टॅक्निकली कितने ही साउन्ड क्यूँ न हों, लेकिन आपको कम्यूनिकेट करना नहीं आता हो, अपनी बात एक्सप्रेस करना नहीं आता हो तो आपका मूल्य कौड़ी का हो जाता है। इसलिए यदि आपके पास योग्यता है तो आपको यह भी आ सकता है। आपको सुव्यवस्थित कैसे रहना, पाँच-पन्द्रह अंग्रेज़ी वाक्य बोलने हों तो कैसे बोलना, कुछ हिन्दी के वाक्य कैसे बोलने, मैनर कैसे दिखाना, टेलीफोन में कैसे बात करनी... ये सारी चीज़ें ट्रेनींग से आ सकती है। और एक बार हमारे आई.टी.आई. की पूरी कैडर में टेक्नोलोजी प्लस इस क्वॉलिटी की पूर्ति करें तो मैं निश्चित रूप से कहता हूँ मित्रों, मुझे इसे जिस डिग्निटी की ओर ले जाना है, उस डिग्निटी में ये सारी बातें महत्वपूर्ण सीढ़ियाँ बनेंगी और आप सभी के जीवन की एक ताकत बनेंगी। आपने देखा होगा कि किसी सेठ की दुकान हो, किराने की दुकान हो या प्रोविज़न स्टोर हो जिसमें पांच-पचास चीज़ें एक साथ बिकती हो वहाँ एक सहायक काम करता है। वह सहायक काम करता है और वह सेठ कहता है अरे, ये ला, वो ला... अरे, कहाँ गया था? देखता नहीं है ग्राहक आया हुआ है? ऐसा ही होता है न? लेकिन जब आप किसी बड़े मॉल में जाते हैं तब वहाँ अच्छा सा कोट-पैंट-टाइ पहेने, जैकेट पहने, अप-टू-डेट कपड़े पहने कोई लड़का या लड़की खड़ी होती है। वो आपको क्या देती है? वही देती है न? ये चीज़, वो चीज़... वो भी तो सहायक ही है न? ये मॉल का सहायक है, वो दुकान का सहायक है। लेकिन मॉल में काम करता है इसलिए उसके पहनावे, उसकी सॉफ्ट स्किल से उसकी एक डिग्निटी बनती है और हमें भी वह महत्वपूर्ण व्यक्ति लगता है। वास्तव में तो प्रोविज़न स्टोर में एक सहायक जो काम करता है वही काम ये करते हैं। काम में कोई फ़र्क नहीं है लेकिन मॉल कल्चर के तहत एक डिग्निटी पैदा हुई है। ये जो बदलाव आता है वह बदलाव इंसान में कॉन्फिडन्स पैदा करता है और मैं मानता हूँ कि हमारी विकास यात्रा के तहत इस बात के महत्व को जोड़ना आवश्यक बन गया है।

मित्रों, इक्कीसवीं सदी हिंदुस्तान की सदी है। हम सब सुनते हैं, तैयारी की है? यह समाप्त भी होने को आएगी! जैसे हम जन्मदिन मनाते हैं वैसे ही इक्कीसवीं सदी भी निकल जाएगी। जो तैयारी बीसवीँ सदी में करनी चाहिये थी वो तो हुई या न हुई लेकिन अब देर करना उचित नहीं है। यदि भारत ऐसा चाहता हो कि इक्कीसवीं सदी हिंदुस्तान की सदी बने तो हमें हमारा ध्यान हमारी युवाशक्ति पर केंद्रित करना होगा। हिंदुस्तान दुनिया का सबसे युवा देश है, यह दुनिया का एक देश है जहाँ ६५% से ज़्यादा जनसंख्या युवा है... आप में से किसी को शायद यूरोप जाने का सौभाग्य न मिला हो, लेकिन आप टी.वी. पर कभी बी.बी.सी. या और कुछ देखते हों तो आप देखते होंगे कि आपको जो लोग दिखेंगे वे ज़्यादातर बूढ़े लोग ही दिखेंगे। हाथ में वॉकिंग स्टिक हो, धीरे-धीरे चलते हों... ऐसे पचास-सौ लोग गुज़रें तब जाकर मुश्किल से एकाध नौजवान दिखता है। पूरे यूरोप में ऐसी स्थिति है। हमारे यहाँ इतनी सारी युवाशक्ति ऐसे ही रास्ते पर भटकती फिर रही हैं। कैसे इस युवाशक्ति को इस देश के निर्माण कार्य में लगाएँ? और यदि इसे काम लगाना हो तो तीन चीज़ों पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है। और मित्रों, ये सारी चीज़ें आपके लिए भी उपयोगी हैं। इक्कीसवीं सदी यदि ज्ञान की सदी है तो हमारा युवक ज्ञान का उपासक बने। मित्रों, ज्ञान के कोई दरवाज़े नहीं होते, ज्ञान को कोई फुल स्टॉप नहीं होता है। आठवीँ कक्षा तक पढ़ाई के बाद उठ गये इसका मतलब सब कुछ खत्म हो गया ऐसा नहीं होता। मित्रों, मैंने एक काम करवाया था हमारी सरकार में, कुछ चार साल पहले। मैंने उन लोगों से कहा कि एक काम करो, जो विद्यार्थी आई.टी.आई. करके गये हैं, जिनके जीवन के कैरियर की शुरुआत आई.टी.आई. से हुई और
स्वप्रयत्नों
 से वे खुद जो कुछ सीखे थे उसके आधार पर स्वयं बड़े उद्योगपति बन गये हैं उनकी सूचि बनाओ। और हमने एक पुस्तक प्रसिद्ध की तो ध्यान में आया कि गुजरात में अनेक ऐसे आई.टी.आई. के विद्यार्थी थे जिनके यहाँ पचास-पचास सौ-सौ आई.टी.आई. के लड़के नौकरी करते थे। और इसकी एक पुस्तक मैंने प्रसिद्ध की है, वह शायद आपकी आई.टी.आई. इन्स्टिटूट की सभी लाइब्रेरी में होंगी ही। यह क्यों किया? एक डिग्निटी पैदा करने के लिए, एक कॉन्फिडन्स पैदा करने के लिए कि आई.टी.आई. में आए हैं तो जिंदगी यहाँ खत्म नहीं होती है, आई.टी.आई. से भी बहुत कुछ किया जा सकता है।

भाइयों-बहनों, यह पूरा इन्स्टिट्युशन... मैंने जैसे कहा कि यह ज्ञान की ओर का आकर्षण रहना चाहिए, नया-नया जानने का... आज आपके मोबाइल फोन में सब कुछ आपको आता है, मोबाइल फोन कैसे इस्तेमाल करना ये आप सबको आता है। और अभी पिछले दिनों मैं कपराडा नामक वलसाड जिले का एक इन्टीरीअर गाँव है वहाँ डेरी के एक चिलिंग सेन्टर का उद्घाटन करने गया था। वह आदिवासी इलाका है, आदिवासी बहनें दूध इकट्ठा करती हैं। एक छोटा सा चिलिंग सेन्टर बना था जहाँ आदिवासी बहनें दूध भर कर जाती है। मेरे लिए आश्चर्य की बात यह थी कि दूध भरने आने वाली जो बहनें थीं, उन लोगों ने आस-पास के गाँवों में से सौ-एक बहनों को इकट्ठा किया था, वे आदिवासी बहनें थीं और हम जब उद्घाटन की रस्म कर रहे थे तब सभी आदिवासी बहनें अपने मोबाइल फोन से हमारे फ़ोटो खींच रही थी। आदिवासी बहनें, जो सिर्फ़ पशुपालन करती है, दूध भरने आयी थी, ऐसी बहनें मोबाइल से फ़ोटो खींच रही थी..! इसलिए मैं उनके पास गया, मैंने कहा कि इस मोबाइल में फ़ोटो खींचकर क्या करेंगी? तो उनका जवाब था, आदिवासी बहनों का जवाब था कि वो तो हम डाउनलोड करवा लेंगे..! इसका अर्थ यह हुआ कि आपको यह टॅक्नोलॉजी सहज रूप से हस्तगत है। और यदि आप मोबाइल टॅक्नोलॉजी जानते हो तो वही कम्प्यूटर टॅक्नोलॉजी है। यदि सहज रूप से आप कम्प्यूटर सैवी बनो, आपकी एडिशनल क्वॉलिफिकेशन..! क्योंकि जैसे मैंने कहा है कि आई.टी.आई. में भी आगामी दिनों में एक टर्नर को जॉब-वर्क ई-मेल से ही आनेवाला है। वह काम करेगा तो उसको जॉब-वर्क ई-मेल से ही आने वाला है और जॉब-वर्क पूरा करने की सारी सूचनाएँ ई-मेल से ही आनेवाली हैं। तो जैसे उसके लिए सॉफ्ट स्किल की ज़रूरत है वैसे ही उसे आई.टी. सैवी भी बनना चाहिए, उसे टेक्नॉ सैवी भी बनना चाहिए, उसे कम्प्यूटर सैवी भी बनना चाहिए। और यह व्यवस्था यदि हम तैयार करें तो हमारा विद्यार्थी ज्ञान के मामले में भी समृद्ध हो सकता है।

दूसरी महत्वपूर्ण आवश्यकता है स्किल, कौशल्य। मित्रों, वेल्यू एडिशन करना जरूरी है। जो व्यक्ति अपने आप में वेल्यू एडिशन करता है वह स्थितियों को बदल सकता है। वेल्यू एडिशन कैसे होता है? मेरा गाँव, मेरा वतन वडनगर। मैं एक बार रेल्वे से महेसाणा जा रहा था। तो हमारे डिब्बे में एक बूटपॉलिश वाला लड़का चढ़ गया। वह अपंग था, उसे गुजराती भाषा आती नहीं थी। मुझे आज भी याद है मेरे बचपन की वो घटना। वह कर्णाटक का था, कन्नड भाषा जानता था। अपाहिज होने के कारण मेरे मन में उसके लिए थोड़ी संवेदना जागी। तो मैं उसे पूछने लगा। अब गुजराती तो उसे आती नहीं थी,
टूटी
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फूटी अंग्रेज़ी में बोल रहा था सब। मैंने कहा तुम वहाँ सब कुछ छोडकर यहाँ किसलिये आये? यह तो ऐसा इलाक़ा है कि यहाँ जूते तो खरीदे हों लेकिन जूते को पोलिश-बोलिश नहीं करते हैं, यहाँ तुमको क्या काम मिलेगा? वह मुझसे बोला कि साहब, मुझे ज़्यादा कुछ तो पता नहीं है, जिस गाड़ी में चढ़ गया मतलब चढ़ गया। मुझसे बोला साहब, आप मेरे पास पॉलिश करवाओगे? उस समय तो चार आने में होती थी। मैंने कहा कि हाँ, जरूर कराऊँगा। तो उसने क्या किया? उसने अपने थैले में से उस दिन का ‘टाईम्स ऑफ इंडिया’ निकाला और मेरे हाथ में रखा। ‘टाईम्स ऑफ इंडिया’ के उपर उसने लिखा था कि ‘आपका दिन अच्छा हो’। उसने मुझे कहा कि साहब, मैं बूटपॉलिश करुँ तब तक आप अख़बार पढ़ो। अब यह उसने वेल्यू एडिशन की। पॉलिश करता था लेकिन मुझे उसने अख़बार पढ़ने को दिया लिहाज़ा मुझमें स्वाभाविक ही लालच जागे कि बग़ैर पैसे के मुझे तो अख़बार पढ़ने मिल गया। हम तो ‘गुजराती’ हैं, ‘सिंगल फेर, डबल जर्नी’..! लेकिन आज भी उसकी छबि वैसे की वैसी मेरे मन में पड़ी है कि उसे पता था कि ग्राहक के संतोष लिए क्या क्या किया जा सकता है। तो मुझे सिर्फ़ जूते अच्छी पॉलिश कर के दे इसके बदले उसने प्रोफेशनल स्किल इतनी डेवलप की थी कि उसने मुझे अपना
‘टाईम्स ऑफ इंडिया’ पढ़ने दिया। दूसरे ग्राहक के पास गया, पॉलिश करते हुए फिर से उसने वही ‘टाईम्स ऑफ इंडिया’ उसे दिया। वह पॉलिश करे तब तक आप हेडलाइन्स पढ़ लें। एक छोटा सा सुधार एक बूटपॉलिश वाले को भी आता हो..! मित्रों, ये सारी वेल्यू एडिशन स्किल हमारा महत्व बढ़ाती हैं। स्किल के मामले में कोई भी कॉम्प्रोमाइज़ नहीं हो सकता। आपके पास कितना अच्छा हुनर है, किस प्रकार का हुनर है ज़िंदगी जीने का आनन्द इसके उपर निर्भर करता है।

तीसरी चीज़ ज़रूरी है, ‘कैपेसिटी’। आपकी क्षमता देखें। ज्ञान का भंडार पडा हो, कौशल्य हो, लेकिन डिलिवर करने की क्षमता न हो। घर में गैस हो, कुकर हो, चूल्हा हो, आटा, पानी, लकड़ी सब कुछ हो लेकिन रसोई बनाने की क्षमता ही न हो तो लड्डु कहाँ से बने, भाई? और इसलिए कैपेसिटी होनी बहुत ज़रूरी है। तो ज्ञान, कौशल्य और क्षमता, इन तीनों दिशाओं में यदि हम काम करें तो मुझे विश्वास है मित्रों कि हम अपने आप को तैयार कर सकते हैं। और दूसरी चीज़, मित्रों जब सपने देखते हों तब..., मैं यहाँ सारे ही विद्यार्थी मित्रों को कहता हूँ, नौजवान मित्रों को कहता हूँ कि आई.टी.आई. पढ़ने के बाद भी आपके जीवन में कहीं भी पूर्ण विराम नहीं है, आप बहुत सी नई ऊँचाईयों को पार कर सकते हो। अब तो मित्रों, कवि भी इन्कम टैक्स भरने लगे हैं..! नहीं समझ आया? यह कौशल्य जिसके पास हो, तो पहले प्रश्न उठता था कि उसकी रोजी-रोटी का क्या? कवि हो, लेखक हो, तो मुश्किल से बेचारे का गुजारा चलता था। आज कवि, लेखक भी इन्कम टैक्स भरते हैं। तो टॅक्नोलॉजी वालों के पास तो कितनी सारी ताकत होती है? टॅक्नोलॉजी वाले तो कितना नया कर सकते हैं? मित्रों, कई बार बड़ा आदमी इनोवेशन करे उसकी तुलना में टॅक्नोलॉजी फिल्ड का छोटा आदमी बहुत ज़्यादा इनोवेशन कर सकता है। मैं जानता हूँ कि राजकोट में एक भाई घड़ी की रिपेरिंग का काम करते हैं। आज भी मुझे याद है। मैं जानता हूँ उसे ऐसा शौख है कि दुनिया की कोई भी बेहतरीन घड़ी हो और यदि रिपेर करने मिले तो उसे अच्छा लगता है। एक बार कोई स्विस-मेड घड़ी रिपेरिंग के लिए आई। उसने रिपेर तो की लेकिन उसने स्विस कंपनी के साथ कॉरस्पोन्डन्स किया और उसने कहा कि आपकी इस घड़ी में मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट है, आपकी डिज़ाइन में ही डिफेक्ट है इसलिए आपको यह समस्या हमेशा आती रहेगी। और उसका सोल्यूशन भी दिया, उसका डायाग्राम बना कर उसने स्विस कंपनी के साथ पत्रव्यवहार भी किया और मुझे आज भी पता है कि उस स्विस कंपनी ने... अन्यथा तो वो उस घड़ी को रिपेर करके पैसे ले लेता और बात खत्म हो गई होती। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसने उसमें रुचि ली और स्विस कंपनी ने स्वीकार किया कि आपने हमें बहुत अच्छा सोल्यूशन दिया है और हमारी नई प्रोडक्ट जो आयेगी वह नई प्रोडक्ट हम यह डिफेक्ट ठीक करके ही बनायेंगे और उसको इनाम भेजा, उसका अप्रीशीऐशन किया। आज भी उस घडी की दुकान में उसका अप्रीशीऐशन लेटर वैसे का वैसा पडा हुआ है। इसका अर्थ यह हुआ कि मित्रों, यदि इनोवेटिव नेचर हो तो छोटा काम भी कितना परिवर्तन ला सकता है, कितनी प्रतिष्ठा खड़ी कर सकता है। और टेक्निकल फील्ड का आदमी, आप टेक्निकल लोग, आपके माँ-बाप आपका वर्णन करते होंगे तब कहते होंगे कि ये जब छोटा था तब इसे कोई भी खिलौना लाकर दो शाम तक तो उसने तोड़ ही डालता था और फिर खुद ही उसे दोबारा फिट भी कर देता था। यह आपकी प्रकृति में ही होगा, मित्रों। आपके स्वभाव में ही होगा। यह जो ताकत ईश्वर ने आपको दी है वह अकल्पनीय ताकत है, मित्रों। आप भाग्यशाली हो कि ईश्वर ने आपको यह शक्ति दी है। इस शक्ति का उपयोग आपके विकास में ऊर्जा के रूप में काम कर सकता है, एक पावर जनरेटर के रूप में काम कर सकता है। यह वृत्ति है इस वृत्ति को आपको पहचानना है। और इस वृत्ति को आप जानो, इस वृत्ति को क्षमता में कनवर्ट कर दो तो आपके जीवन में अनेक द्वार खुल सकेंगे, ऐसी बहुत सी संभावनाएँ पडी हैं। और इसका विचार विद्यार्थियों और टेक्निकल फील्ड के लोगों को करना है।

दूसरी चीज़ है, गुजरात जिस प्रकार से विकास कर रहा है, गुजरात में जिस प्रकार से औद्योगिक विकास हो रहा है... औद्योगिक विकास की सबसे पहली ज़रूरत होती है टेक्निकली स्किल्ड मैन-पावर। मैन-पावर जितनी ज़्यादा मात्रा में हो उतनी ही मात्रा में औद्योगिक विकास की संभावना बढ़ती है। हम २००३ से गुजरात में जो ‘वाइब्रन्ट समिट’ करते हैं। ’०३ में किया, ’०७ में किया, ’०९ में किया, ’११ में किया... इसका परिणाम यह है कि गुजरात में मैक्सिमम रोजगार मिल रहा है। भारत सरकार के आँकड़े भी कहते हैं कि पूरे हिंदुस्तान में जितना रोजगार मिलता है उसमें सर्वाधिक रोजगार यदि कहीं मिलता है तो वह गुजरात में मिलता है। और इसकी वजह है यह टेक्निकल वर्क। लेकिन हम इसमें कुछ ऐसा करेंगे कि जो ये नई-नई कंपनीयाँ आ रही हैं उनकी ज़रूरतों और हमारी आई.टी.आई. संस्थाओं, हमारी इंजीनीयरिंग कॉलेजों, टेक्निकल यूनिवर्सिटीयों, अन्य यूनिवर्सिटीयों के बीच तालमेल बनाएंगे... ‘वाइब्रन्ट समिट’ के बाद हम मीटिंग करते हैं और उनको पूछते हैं कि आप जिस प्रकार का उद्योग लाने वाले हैं उस उद्योग में आपको किस प्रकार के स्किल्ड मैन-पावर की ज़रूरत है यदि आप अभी से बताएँ तो हम उसके अनुसार स्किल्ड मैन-पावर तैयार करने के लिए सिलेबस शुरु करें। और गुजरात में नीड बॅज़्ड सिलेबसों के लिए आग्रह रखने की वजह यही है कि जैसे ही बालक पढ़कर निकले, उसे काम मिल जाए... मोरबी हो तो उस तरफ सिरैमिक का पढ़ाओ, मांडवी हो, मुंद्रा हो तो पॉर्ट संबन्धित पढ़ाओ, शिपिंग का पढ़ाओ, अंकलेश्वर की ओर हो तो केमिकल का पढ़ाओ... तो नीड बॅस्ड पढ़ाना शुरु किया ताकि लोकल बच्चों को तुरंत ही रोजगार मिल जाए। हमने ऐसा आयोजन किया है और इतने बड़े स्केल पर किया है। और मित्रों, गुजरात जो प्रगति करना चाहता है उसके तीन मुख्य आधार हैं। तीन आधार पर गुजरात आगे बढ़ना चाहता है, जहाँ तक युवा शक्ति का सवाल है उसके संदर्भ में। एक, स्केल। बहुत बड़ा स्केल तैयार किया है। और इस महात्मा मंदिर को देखकर आपको ऐसा लगा होगा कि हाँ, इसे बड़ा स्केल कहते हैं। वरना तो पहले दस बाइ दस का रूम बनाते थे... बड़े स्केल पर, हर चीज़ बड़े स्केल पर। दूसरा, स्किल। मल्टिपल स्किल के साथ गुजरात का यूथ पावर कैसे तैयार हो? एक यूथ को कितनी सारी चीज़ें आती हों, टेक्निक्ली कितना साउन्ड हो..! स्केल, स्किल और तीसरी महत्वपूर्ण चीज़ है, स्पीड। इन ‘थ्री एस’, को पकड़कर हम गुजरात को आगे बढ़ाना चाहते हैं।

भाइयों-बहनों, आज लगभग २६०० से भी ज्यादा नौजवानों को नौकरी के ऑर्डर्स मिल रहे हैं। पिछले दस वर्षों में इस सरकार ने ढाई लाख लोगों को रोजगार दिया है, ढाई लाख लोगों को..! और इस साल साठ हजार नये लोगों को रोजगार देने की प्रॉसेस चल रही है। पहले क्या होता था? विज्ञापन प्रसिद्ध हो, फिर अर्जियाँ आएँ, अर्जी आए और सरकार की ओर से कुछ पत्र आए, दो महीने, छ: महीने या बारह महीने का टाइम हो तो जिसने अर्जी की हो वो क्या करे? एक चैनल ढूँढ़े, जैक ढूँढ़े और बीच में कोई मिल भी जाए और कहे कि अच्छा, तुमने अर्जी दी है? लाओ, बैठा देंगे, मगर देखो, मुझे इतना देना पडेगा..! बीच में टाइम-टेबल बने, सब कुछ बिठाना हो न..! फिर इन्टरव्यू के लिए कॉल आए, इसमें भी दो महीने का अन्तराल हो। इन्टरव्यू लेटर लेकर वो नाचता हो कि वाह, मेरा इन्टरव्यू लेटर आया है। फिर ढूँढ़ता है, कोई खादी के कुर्ते वाला मिल जाए तो उसका कुर्ता पकड लूँ। इन्टरव्यू है साहब, कुछ कर दो न..! उससे आगे का वो कुछ पक्का कर दे, उसके साथ भी कुछ पक्का हुआ हो। वो बेचारा गरीब का लड़का हो, विधवा माँ का बेटा हो, माँ के पास एकाध छोटा गहना हो तो उसे गिरवी रखकर या बेचकर कुछ बंदोबस्त करे बेचारा..! तब जा कर मुश्किल से इन्टरव्यू तक पहुँचे। इन्टरव्यू में पहुँचने के बाद फिर अगली सीढ़ी चढ़ने के लिए और तीन महीने। उस तीन महीने में तीसरे, ऊपरी कैडर के लोग जमाने आएँ। सारी व्यवस्था हो..! मैंने ये सब निकाल दिया, एक ही झटके में सब साफ..! अनेक विधवा माताएँ हैं जिन्हें अपने बेटे को नौकरी मिलेगी कि नहीं इसकी चिंता होंगी, आज उसका बेटा हाथ में नौकरी का पत्र लेकर घर जायेगा तब जाकर के माँ को चैन मिलेगा। एक कौड़ी के भ्रष्टाचार के बगैर, एक पाई के भ्रष्टाचार के बगैर क्या इस देश के नौजवानों को रोजगार नहीं मिल सकता? रोजगार के लिए उसे छटपटाना क्यूँ पडे? क्यूँ उसे किसी की पगचंपी करनी पडे? भाइयों-बहनों, यह मुझे मंज़ूर नहीं है। सम्‍‍मानपूर्वक, इस राज्य का युवक सम्‍‍मानपूर्वक जिए, आँखों में आँखें डालकर बात करे, अन्याय सुनकर खड़े होने की उसकी तैयारी हो। ऑन-लाइन, तमाम प्रोसीजर ट्रैन्स्पेरन्ट, ऑन-लाइन।

६०० से भी ज़्यादा लोगों को आज नौकरी मिल जाएगी। लेकिन जिनको नौकरी मिली है उनको मुझे कुछ कहना है और जिनको भविष्य में नौकरी मिलनेवाली है उन्हें भी। मित्रों, आपको नौकरी सिर्फ इसलिए नहीं मिली, आपको यह तनख्वाह इसलिए नहीं मिलती कि आपने कोई डिप्लोमा की डिग्री धारण की है या कोई डिग्री कोर्स खत्म किया है, आपके पास इंजीनीयरिंग के कुछ विशेष सर्टिफिकेट्स हैं... सिर्फ इतना काफ़ी नहीं है? काफ़ी है, लेकिन इससे ज़्यादा आप जो कुछ भी हो उसमें समाज का बहुत बड़ा ऋण है, मित्रों। आप दो सौ, पाँच सौ, हजार रुपये की फीस में पढ़े होंगे। मित्रों, अगर चाय पीने की आदत हो तो एक महीने का उसका बिल इस से ज़्यादा हो, उससे भी कम पैसों में आप पढ़े हैं। सरकार यानि समाज। अनेक लोगों के योगदान की वजह से आपको यह शिक्षा मिली है। अनेक लोगों ने योगदान दिया है तब आपने यह प्राप्त किया है। इस समाज को कुछ वापस करने के बारे में कभी न भूलें। आज एक नौजवान ने, अभी तो उसकी नौकरी का आज पहला दिन शुरु होने वाला है, लेकिन उसने पाँच हजार रुपये ‘कन्या केलवणी’ में दिए। मेरे लिए तो वे यदि इक्यावन रुपये होते तो भी उतने ही महत्वपूर्ण थे। कारण? क्योंकि मन में विचार आया कि भाई, मैं जो हूँ वह इस समाज के कारण हूँ। मुझे ईश्वर ने ऐसा मौका दिया है तो मुझे समाज को वापस अदा करना चाहिए। क्योंकि मैं जो कुछ भी सीखा हूँ, जो कुछ भी हूँ मित्रों, वह इस समाज के कारण हूँ। इस समाज का ऋण चुकाना कभी भी चूकें नहीं। और आज अत्यंत ट्रैन्स्पेरन्ट पद्धति से, ऑन-लाइन इक्ज़ाम लेकर इतने कम समय में... वरना फिर नौकरी का तो ऐसा है कि पन्द्रह तो कॉर्ट कैस चले, एक दूसरी दुकान चले..! किसी न किसी ने तो पी.आई.एल. ठोक ही दी हो। भरती ही बंद हो जाए। उस बेचारे के घर ऑर्डर आया हो लेकिन नियुक्त न कर सकें। सौभाग्यवश इस ट्रैन्स्पेरन्सी की वजह से कॉर्ट में कोई वाद-विवाद नहीं हुए, आज निर्विघ्नता से इन नौजवानों को नौकरी मिल गई है।

मित्रों, आपके जीवन का सपना हो, जिनको नौकरी मिल रही है, कि आपके हाथों तले तैयार होने वाले जो नौजवान हैं, बहन-बेटीयाँ हैं वे उनके जीवन में नई-नई ऊँचाइयाँ प्राप्त करें वही आपके जीवन का संतोष हो और राष्ट्र की सेवा करने का वही मार्ग हो ऐसी भूमिका के साथ आप सब मित्र खूब प्रगति करो, खूब विकास करो और उमंग-उत्साह के साथ आगे बढ़ो। मित्रों, इस राज्य में अनेक ऐसे क्षेत्र हैं, जैसे, ऑटोमोबाइल इन्डस्ट्री, आप कल्पना करो भाई, पहले तो कोई ऑटोमोबाइल का सीखता था तो बस गैरेज में नौकरी करता। यही दिन थे न? “ओय नूर, पडखा खोल दे..” ऐसा ही था न? वो स्कूटर रिपेरिंग वाला ऐसे कहता था, “ओय नूरीये, जरा पडखा खोल दे..!” ऐसे ही जिंदगी जाती थी न, भाई? पूरी टर्मिनालोजी ही अलग। इस ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में हर एक स्पेरपार्ट के कुछ अलग ही नाम होते हैं। फ़लां निकाल, फलां निकाल... मित्रों, आज गुजरात पूरे एशिया का सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल हब बन रहा है। टेक्निकल लोगों की बहुत जरूरत पड़ने वाली है। आने वाले दिनों में गुजरात शिपिंग इन्डस्ट्री में जाना चाहता है। समुद्री जहाज़ बनाना। समुद्री जहाज़ बनाने में वेल्डर का काम सबसे बड़ा होता है और वहाँ का वेल्डिंग यानि परफेक्ट वेल्डिंग होना चाहिए क्योंकि उसे पचास साल तक समुद्र के अंदर पानी में ज़िंदगी गुज़ारनी होती है और उसमें वेल्डिंग में त्रुटि हो तो सब खत्म..! आप सोचो वेल्डर जैसा काम जिसकी सबसे बड़ी प्रतिष्ठा जब शिप बनेगा तब होने वाली है।

मित्रों, गुजरात में विकास के बहुत सारे क्षेत्र पडे हैं, आप जितनी ज़्यादा स्किल जानोगे, आपके लिए आसमान की ऊँचाइयाँ पार करना बाँये हाथ का खेल होगा, मित्रों। आप सब को अंत:करण पूर्वक बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ। और मुझे विश्वास है कि आपको जीवन के सपने पूरे करने के लिए नई दिशा मिली है। इसमें भी वही मुख्य काम करने हैं। कौशल्य की प्रतिष्ठा। हुनर; इसकी ओर पूरा साल गुजरात काम करने वाला है। आप कल्पना कर सकते हो कि आपके लिए कितना बड़ा अवकाश है। पूरी ताकत से मेरे साथ बोलो,

 

भारत माता की जय..!

 

थॅंक यू, दोस्तों..!

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December 26, 2024

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – I have written three Books, my main cause of writing books is i love reading. And I myself have this rare disease and I was given only two years to live but with help of my mom, my sister, my School, …… and the platform that I have published my books on which is every books, I have been able to make it to what I am today.

प्रधानमंत्री जी – Who inspired you?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – I think it would be my English teacher.

प्रधानमंत्री जी – Now you have been inspiring others. Do they write you anything, reading your book.

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – Yes I have.

प्रधानमंत्री जी – So what type of message you are getting?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – one of the biggest if you I have got aside, people have started writing their own books.

प्रधानमंत्री जी – कहां किया, ट्रेनिंग कहां हुआ, कैसे हुआ?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – कुछ नहीं।

प्रधानमंत्री जी – कुछ नहीं, ऐसे ही मन कर गया।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां सर।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा तो और किस किस स्पर्धा में जाते हो?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैं इंग्लिश उर्दू कश्मीरी सब।

प्रधानमंत्री जी – तुम्हारा यूट्यूब चलता है या कुछ perform करने जाते हो क्या?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – सर यूट्यूब भी चलता है, सर perform भी करता हूं।

प्रधानमंत्री जी – घर में और कोई है परिवार में जो गाना गाते हैं।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नहीं सर, कोई भी नहीं।

प्रधानमंत्री जी – आपने ही शुरू कर दिया।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां सर।

प्रधानमंत्री जी – क्या किया तुमने? Chess खेलते हो?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां।

प्रधानमंत्री जी – किसने सिखाया Chess तुझे?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – Dad and YouTube.

प्रधानमंत्री जी – ओहो।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – and my Sir

प्रधानमंत्री जी – दिल्ली में तो ठंड लगता है, बहुत ठंड लगता है।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – इस साल कारगिल विजय दिवस की रजत जयंती मनाने के लिए मैंने 1251 किलोमीटर की साईकिल यात्रा की थी। कारगिल वार मेमोरियल से लेकिर नेशनल वार मेमोरियल तक। और दो साल पहले आजादी का अमृत महोत्सव और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वी जयंती मनाने के लिए मैंने आईएनए मेमोरियल महिरांग से लेकर नेशनल वार मेमोरियल नई दिल्ली तक साईकलिंग की थी।

प्रधानमंत्री जी – कितने दिन जाते थे उसमे?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – पहली वाली यात्रा में 32 दिन मैंने साईकिल चलाई थी, जो 2612 किलोमीटर थी और इस वाली में 13 दिन।

प्रधानमंत्री जी – एक दिन में कितना चला लेते हो।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – दोनों यात्रा में maximum एक दिन में मैंने 129.5 किलोमीटर चलाई थी।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नमस्ते सर।

प्रधानमंत्री जी – नमस्ते।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैंने दो international book of record बनाया है। पहला रिकॉर्ड मैंने one minute में 31 semi classical का और one minute में 13 संस्कृत श्लोक।

प्रधानमंत्री जी – हम ये कहां से सीखा सब।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – सर मैं यूट्यूब से सीखी।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा, क्या करती हो बताओं जरा एक मिनट में मुझे, क्या करती हो।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। (संस्कृत में)

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नमस्ते सर।

प्रधानमंत्री जी – नमस्ते।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैंने जूड़ो में राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल लाई।

प्रधानमंत्री जी – ये सब तो डरते होंगे तुमसे। कहां सीखे तुम स्कूल में सीखे।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नो सर एक्टिविटी कोच से सीखा है।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा, अब आगे क्या सोच रही हो?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैं ओलंपिक में गोल्ड लाकर देश का नाम रोशन कर सकती हूं।

प्रधानमंत्री जी – वाह , तो मेहनत कर रही हो।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – जी।

प्रधानमंत्री जी – इतने हैकर कल्ब है तुम्हारा।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – जी अभी तो हम law enforcement को सशक्त करने के लिए जम्मू कश्मीर में trainings provide कर रहे हैं और साथ साथ 5000 बच्चों को फ्री में पढ़ा चुके हैं। हम चाहते हैं कि हम ऐसे models implement करे, जिससे हम समाज की सेवा कर सकें और साथ ही साथ हम मतलब।

प्रधानमंत्री जी – तुम्हारा प्रार्थना वाला कैसा चल रहा है?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – प्रार्थना वाला अभी भी development phase पर है! उसमे कुछ रिसर्च क्योंकि हमें वेदों के Translations हमें बाकी languages में जोड़नी है। Dutch over बाकी सारी कुछ complex languages में।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैंने एक Parkinsons disease के लिए self stabilizing spoon बनाया है और further हमने एक brain age prediction model भी बनाया है।

प्रधानमंत्री जी – कितने साल काम किया इस पर?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – सर मैंने दो साल काम किया है।

प्रधानमंत्री जी – अब आगे क्या करोगी?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – सर आगे मुझे रिसर्च करना है।

प्रधानमंत्री जी – आप हैं कहां से?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – सर मैं बैंगलोर से हूं, मेरी हिंदी उतनी ठीक नहीं है।

प्रधानमंत्री जी – बहुत बढ़िया है, मुझसे भी अच्छी है।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – Thank You Sir.

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – I do Harikatha performances with a blend of Karnataka music and Sanskritik Shlokas

प्रधानमंत्री जी – तो कितनी हरि कथाएं हो गई थी।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – Nearly hundred performances I have.

प्रधानमंत्री जी – बहुत बढ़िया।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – पिछले दो सालों में मैंने पांच देशों की पांच ऊंची ऊंची चोटियां फतेह की हैं और भारत का झंडा लहराया है और जब भी मैं किसी और देश में जाती हूं और उनको पता चलता है कि मैं भारत की रहने वाली हूं, वो मुझे बहुत प्यार और सम्मान देते हैं।

प्रधानमंत्री जी – क्या कहते हैं लोग जब मिलते हैं तुम भारत से हो तो क्या कहते हैं?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – वो मुझे बहुत प्यार देते हैं और सम्मान देते हैं, और जितना भी मैं पहाड़ चढ़ती हूं उसका motive है एक तो Girl child empowerment और physical fitness को प्रामोट करना।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – I do artistic roller skating. I got one international gold medal in roller skating, which was held in New Zealand this year and I got 6 national medals.

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैं एक Para athlete हूं सर और इसी month में मैं 1 से 7 दिसम्बर Para sport youth competetion Thailand में हुआ था सर, वहां पर हमने गोल्ड मेडल जीतकर अपने देश का नाम रोशन किया है सर।

प्रधानमंत्री जी – वाह।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैं इस साल youth for championship में gold medal लाई हूं। इस मैच में 57 केजी से गोल्ड लिया और 76 केजी से वर्ल्ड रिकॉर्ड किया है, उसमें भी गोल्ड लाया है, और टोटल में भी गोल्ड लाया है।

प्रधानमंत्री जी – इन सबको उठा लोगी तुम।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नहीं सर।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – one flat पर आग लग गई थी तो उस टाइम किसी को मालूम नहीं था कि वहां पर आग लग गई है, तो मेरा ध्यान उस धुएं पर चला गया, जहां से वो धुआं निकल रहा था घर से, तो उस घर पर जाने की किसी ने हिम्मत नहीं की, क्योंकि सब लोग डर गए थे जल जाएंगे और मुझे भी मना कर रहे थे कि मत जा पागल है क्या, वहां पर मरने जा रही, तो फिर भी मैंने हिम्म्त दिखकर गई और आग को बुझा दिया।

प्रधानमंत्री जी – काफी लोगों की जान बच गई?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – 70 घर थे उसमे और 200 families थीं उसमें।

प्रधानमंत्री जी – स्विमिंग करते हो तुम?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा तो सबको बचा लिया?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां।

प्रधानमंत्री जी – डर नहीं लगा तुझे?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नहीं।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा, तो निकालने के बाद तुम्हे अच्छा लगा कि अच्छा काम किया।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा, शाबास!