मा. मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के वरद हस्तों से

६३वें वन महोत्सव तथा श्री गोविंद गुरु स्मृति वन का लोकार्पण कार्यक्रम

मानगढ़ हिल, संतरामपुर तालुका, पंचमहाल

३० जुलाई, २०१२

 गोविंद गुरू की प्रेरणा से देश की आजादी की लड़ाई में जिन्होंने अपना रक्त बहाया है ऐसी इस पवित्र भूमि पर आए हुए मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा गुजरात से आए हुए मेरे सभी प्यारे आदिवासी भाइयों और बहनों...

हली बार ऐसा हो रहा होगा कि वन में कोई सरकार वन महोत्सव कर रही हो..! गुजरात सरकार ने एक विशेषता खड़ी की है, और विशेषता यह है कि वन महोत्सव के जरिए मात्र पर्यावरण और वृक्षों की बात करके रूकने के बजाए इस वन महोत्सव को सांस्कृतिक विरासत के साथ जोड़ा जाये, आम आदमी की श्रद्घा के साथ जोड़ा जाये और एक बार कोई बात श्रद्घा के साथ जुड़ जाती है, तो फिर उसके बाद उसके लिए कोई अभियान चलाने नहीं पड़ते। क्या आपने कहीं भी देखा है कि भाई, तुलसी को नुकसान न पहुँचाएं ऐसा बोर्ड कभी लगाना पड़ता है? नहीं, कारण कि सभी के मन में यह बात बैठ गई है कि तुलसी अत्यंत पवित्र होती है, भगवान का रूप होती है इसलिए उसे नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए। यह सब के दिमाग में बैठ गया है। एक बार किसी बात को लेकर श्रद्घा पैदा हो जाती है तो फिर समाज खुद ही उसका संरक्षण भी करता है, संर्वधन भी करता है। और इसलिए इस राज्य सरकार ने वन महोत्सव की कल्पना को ही बदल दिया है। दूसरी बात ये कि ये वन महोत्सव इतने सालों से चल रहे हैं तो वे समाज के लिए स्थायी रूप से उपयोगी गहना क्यों न बने? मात्र एक समारोह करके पांच-पचास वृक्षों को लगा कर चला जाया जाए या उसे एक यादगार स्मृति के रूप में तैयार करें, राज्य की संपत्ति को बढ़ाएं, सामाजिक जीवन की आवश्यकताओं में एक सुविधा प्रदान करना, ऐसे एक शुभ उद्देश्य को लेकर, एक सुखद उद्देश्य के लिए यह सरकार वन माहोत्सव कार्यक्रमों को भी समाज के लिए स्थायी रूप से व्यवस्थाएं विकसीत करने वाले एक नए रूप के साथ आई है।

प अंबाजी जाओ तो अंबाजी में धर्मशाला मिल जाती है, अंबाजी में मंदिर का आसरा मिल जाता है, पर परिवार के साथ किसी जगह पर खुले में बैठना हो तो जगह नहीं मिलती। वन महोत्सव तो करना ही था, तो हमने तय किया सालों पहले, कि अंबाजी के पास में कोई एक पहाड़ी हो, जिसे कोई देखता भी नहीं था और जाता भी नहीं था, वहाँ हम मांगल्य वन बनाएं। धीरे धीरे मांगल्य वन इनता बड़ा हो गया कि भादव की पूनम पर लाखों लोग जब अंबाजी के दर्शन के लिए जाते हैं तो ये मांगल्य वन उनके लिए मंगलकारी साबित हो गया है, आर्शीवाद रूप बन गया है। जैन समाज के यात्री, खास तौर पर दिगम्बर समाज, तारंगाजी की यात्रा करने जाते हों। तारंगा जा कर आप पहाड़ी को देखें तो एक भी झाड़ वहाँ देखने को नहीं मिलता और एक पट्टा तो एसा है कि जहाँ धूल ही उड़ती हो, वीरान भूमि, पत्थरों के ढेर... उसके बीच कोने खोपचे में पड़े मंदिर, ऐसी भग्नावस्था..! तांरगाजी जैसा तीर्थ स्थल, वहाँ हमने तय किया कि ‘तीर्थंकर वन’ बनाया जाएगा और 24 वें तीर्थंकर जिनको जिस पेड़ के नीचे बोध हो गया था, उस वृक्ष को बोया जाएगा और जो तीर्थ यात्री वहाँ भगवान महावीर की उपासना के लिए तांरगाजी आते हैं उन्हें कहा गया कि उन पौधों में थोड़ा-थोड़ा पानी चढ़ाते हुए जाएं, ये भी एक पुण्य का काम है और आज तीर्थंकर वन तैयार हो गया है। भाइयों और बहनों, श्रावण का महिना चल रहा है, भोलेनाथ को सब याद करते हैं। आप सोमनाथ जाओ तो समुद्र की खारी हवा चलती है, वहाँ भी हराभरा क्यों ना हो? सोमनाथ के मंदिर में कोई आता है, देश भर के लोग आते हैं तो सोमनाथ के मंदिर का वातावरण मनभावन क्यों ना बनाएं? एक वन महोत्सव हमने सोमनाथ में किया। हरिहर वन बनाया और केवल हरिहर वन ही नहीं बनाया, भगवान सोमनाथ को, भोलेनाथ को जो वृक्ष पसंद हों ऐसे वृक्ष भी लगाए गए, बेल के वृक्षों का घन खड़ा कर दिया गया। शामलाजी में हमारा कालिया, आपके आदिवासी भील समाज का कालिया, शामलाजी में विराजता है। उदयपुर या श्रीनाथजी आते जाते लोग अगर समय हो तो शामलाजी का चक्कर लगाते हैं, पर रूकते नहीं हैं। हमने शामलाजी में इस कालिया का वन बनाया, शामल वन बनाया और केवल इतना ही नहीं, विष्णु भगवान को रोज सुबह कमल के पुष्प चढ़ाए जाते हैं, ये ताजे पुष्प इस कालिया वन में मिले इसके लिए व्यवस्था की गई। आज कोई भी यात्री वहाँ जाए और अब तो वहाँ कैसा सुमेल है, टेक्नोलोजी का उपयोग किया गया है जिसके उपयोग से वहाँ जानेवाले बच्चे बॉटनी का अध्ययन कर सके और कियोस्क में एक्जाम देने के बाद स्वयं मार्क्स भी मिल सके ऐसी व्यवस्था की गई है। बच्चे शामलाजी के दर्शन भी करते हैं और साथ साथ इस बॉटनिकल गार्डन का दर्शन भी कर लेते हैं। भाइयों और बहनों, पालिताणा। तीर्थ क्षेत्र की यात्रा के लिए लोग आते हैं, पालिताणा के ऊपर जाते हैं, रास्ते में एक सुंदर अच्छी जगह चाहिए। हमने वहाँ पावक वनबनाया और पावक वन की विशेषता ऐसी की गई कि उसमें पूरे शरीर की रचना की गई और कौन सा औषधीय वृक्ष किस प्रकार के रोग के लिए काम में आता है... जैसे घुटना हो, तो शरीर में घुटने के पास वृक्ष लगाया, ह्दय की बीमारी में काम आने वाले वृक्ष को जहाँ ह्दय हो वहाँ बना दिया, आंख की बीमारी में काम करने वाला वृक्ष हो तो जहाँ आंख होती है वहाँ बना दिया..! गरीब से गरीब, अनपढ़ से अनपढ़, सामान्य से सामान्य व्यक्ति को भी समझ में आ सकता है कि शरीर के लिए उपयोगी कौन कौन से वृक्ष हैं, औषधी के रूप में कैसे उपयोग होता है और आज लोग इसके अभ्यास के लिए वहाँ आते हैं। घंटे दो घंटे वन में घूमें तो उन्हें ये पता चल जाता है कि इस वृक्ष का क्या महत्व है..! भाइयों और बहनों, ऐसे तो अनेक अभिनव प्रयोग किए हैं। चोटीला जाओ तो भक्ति वनदेखने को मिलता है। आप पावागढ़ आईये तो यहाँ पावागढ़ के अंदर विरासत वनबनाया गया है। वर्ल्ड हेरिटेज की जगह हो चंपानेर की, एक तरफ मां काली विराजमान हो और इन दोनों की साक्षी के रूप में खड़ा हो ऐसा हमने विरासत वन बनाया है।

र आज जब वन महोत्सव की बात आई तब गोविंद गुरू, भाइयों आदिवासियों की छाती गज भर फूल जाए ऐसा नाम, किसी भी भारत भक्त का सिर ऊंचा हो जाए ऐसा नाम। लेकिन बदकिस्मती से इतिहास के पन्नों में इस नाम को मिटा दिया गया। ज़्यादा से ज़्यादा पांच-पचास परिवार, या दो-चार महंत ही इन्हें याद करते होंगे इतना सीमित कर दिया था। इस क्षेत्र के लोग बारह महीने में एक बार शायद भक्तिभाव के कारण पूर्णिमा के मेले में आते हों उतनी ही उनकी गणना रह गई।  भाइयों और बहनों, यह एक एतिहासिक घटना है और इसकी शताब्दी पूरी होने जा रही है तब 1913 में, आज से निन्यानवे साल पहले, जिनका अब शताब्दी वर्ष शुरू हुआ है, इसी भूमि पर गोविंद गुरु की प्रेरणा से नि:शस्त्र समाज सुधारक के रूप में काम करने वाले भक्तों का समूह, संत सभा के लोग, इस संत सभा के लोग समाज को सुधारने का काम करते थे, अंग्रेज सल्तनत के सामने अपनी आवाज उठाते थे और गोविंद गुरू से ये अंग्रेज सल्तनत काँप गई। पंचमहल जिले के संतरामपुरा-दाहोद क्षेत्र में भेखधारी एक समाज सुधारक, वह चलता जाये, फिरता जाये, मिलता जाये, बात करता जाये और लोगों में एक नई चेतना जगाता जाये और उसका परिणाम क्या आया? सीधे लंदन तक खबर पहुंची कि यह एक ऐसा आदमी है जिसके पीछे पीछे ये आदिवासी भाईयों अपना जीवन कुर्बान कर देने के लिए तैयार हो गये हैं, आदिवासी अपनी जिंदगी देने को तैयार हो गये हैं और ये जो इतना बड़ा तोप का गोला यदि अंग्रेजों की ओर घूम गया तो उनका कत्लेआम हो जाएगा ऐसा डर था। गोविंद गुरू को सीधा करने के लिए षडंयत्र रचे गए। स्पेशल लोग नियुक्त किए गए, और यह तय किया गया कि गोविंद गुरू को खत्म कर दिया जाए। लेकिन गोविंद गुरू के भक्त ऐसे थे कि वे आदिवासी भाइयों ने भारत माता की आजादी के लिए अंग्रेजों के सामने झुकना पंसद नहीं किया, अंग्रेजों की फौज आई तो भागना पंसद नहीं किया, अंग्रेजो की फौज आई तो गोविंद गुरू को अकेला छोड़ कर भाग जाने की कोशिश नहीं की, बल्कि अंग्रेजों के सामने गए मेरे वीर आदिवासी, अंग्रेजों के सामने लड़े। उनकी तोप की नलियाँ थीं और बंदूक की नलियाँ थीं, गोलियोँ की बौछार चल रही थी और एक के बाद एक मेरे आदिवासी भाई शहीद होते गए पर गोविंद गुरू पर आंच ना आए इसके लिए अपना बलिदान देते गए। लाशों के ढेर लग गए। आप सोचो, जलियांवाला बाग से दोगुने लोग यहाँ शहीद हुए थे। जलियांवाला बाग का नाम तो इतिहास के पन्नों में शामिल है, पर मानगढ़ का कोई उल्लेख न हो इस तरीके से इतिहास को भूला दिया गया है, मेरे आदिवासी भाइयों को भूला दिया गया है। देश की आजादी के लिए मरने वाले बिरसा मुंडा हो कि गोविंद गुरू की प्रेरणा से शहीद होने वाले पन्द्रह सौ से ज्यादा मेरे भील युवा हों, इन सभी लोगों ने भारत माता को आजाद करवाने के लिए अपने जीवन समर्पित कर दिये थे, बलिदान दिया था पर इतिहास में इन्हें भुला दिया गया। और आज इस बात को ठोक बजाकर दुनिया के सामने मुझे लाना है। जब उनकी शताब्दी जब मनाई जाएगी, पूरा वर्ष आदिवासी समाज के लोग यहाँ आएगें, यात्राएं निकलती रहेंगी, लगातार यात्राएं चलेंगी और 2013 में जब शताब्दी वर्ष पूर्ण होगा तब हमें गर्व होगा कि महात्मा गांधी की शताब्दी हर कोई मनाता है, पंडित नेहरू की शताब्दी हर कोई मनाता है, महापुरुषों की शताब्दी हर कोई मनाता है पर कोई तो चाहिए जो गोविंद गुरू को, इस महान विरासत को, इस शहादत को, उन 1500 से ज्यादा अनाम लोग जिनकी किसी को खबर नहीं है वे अगर यहाँ शहीद हुए हों तो उन शहादत की शताब्दी भी मनानी चाहिए। गुजरात में कोई तो ऐसा है जिसको उनकी याद आयी है और उसे मनाना है। कुछ लोगों को ये लगता है कि ये सब तो चुनाव आ रहे हैं इसलिए हो रहा है। अब भैया, यह शताब्दी क्या हमने तय की थी..? चुनाव और शताब्दी दोनों साथ में आ जाएं तो क्या वह हमारा कसूर है..? वह 1912 में हुआ था और ये 2012 में आया, इसमें हमारा कोई अपराध है, भाई? और इन सारी बातों को चुनाव के साथ जोड़ कर, उसे राजनीति का रूप देकर, इन बलिदानों के महत्व को छोटा करने वाले लोग शहीदों का अपमान कर रहे हैं..!

भाइयों और बहनों, श्यामजी कृष्ण वर्मा, हिंदुस्तान में सशस्त्र क्रांति का जिसने नेतृत्व किया, वीर सावरकर जैसे महापुरूष जिसने दिए, मदन लाल धींगरा जैसे लोगों में वीरता को प्रेरित किया, भगतसिंह-सुखदेव-आजाद जैसे लोग जिनको प्रेरणा मानते थे वे श्याम कृष्ण वर्मा, अपने गुजरात के कच्छ का बेटा, अंग्रेजों के सामने लंदन में अंग्रेजों की नाक के नीचे आजादी की लड़ाई लड़ते थे, इस देश की सशस्त्र क्रांति करने वाले लोगों को शिष्यवृत्ति के द्वारा तैयार करते थे। वह श्यामजी कृष्ण वर्मा 1930 में जब गुजर गए तब लिख कर गए थे कि मुझे तो जीते जी आजादी देखने को नहीं मिल सकी, पर मेरी अस्थियों को संभाल कर रखना, मेरी हड्डियों को संभाल कर रखना और जब मेरा देश आजाद हो जाए तो मेरी अंतिम इच्छा है कि मेरी अस्थियां मेरे आजाद हिंदुस्तान की धरती पर ले जाई जाए, जिससे मुझे मोक्ष मिले, मुझे शांति मिले। ऐसा श्यामजी कृष्ण वर्मा लिख कर गए थे। 1930 में उनका स्वर्गवास हुआ और 1947 में देश आजाद हुआ। 15 अगस्त को तिरंगा झंडा फहराया गया उसके दूसरे ही दिन दिल्ली सरकार ने आदमी को भेज कर अस्थियां हिंदुस्तान लानी चाहिए थीं। मगर उन्हें शहीदों की पड़ी ही नहीं थी, देश के लिए जीने वाले, देश के लिए मरने वालों की परवाह नहीं थी और इसलिए श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां वहाँ पड़ी रहीं। भाइयों और बहनों, ये सौभाग्य मुझे मिला, भारतमात के इस सपूत की अस्थियां मैं कंधे पर उठा कर विदेश की धरती से 2003 में यहाँ लेकर आया। और आज श्याम कृष्ण वर्मा का एक अत्यंत प्रेरक स्मारक कच्छ के मांडवी में बनाया गया है। कोई भी भारत माता को प्रेम करने वाला नागरिक वहाँ जाएं तो उसे देखते ही लगेगा कि ऐसे ऐसे थे हमारे वीर पुरूष..! आज हर साल हजारों की संख्या में विद्यार्थी श्यामजी कृष्ण वर्मा के इस स्मारक की मुलाकात लेते हैं, देश-दुनिया के पर्यटक श्यामजी कृष्ण वर्मा के इस स्मारक को देखने आते हैं। एक दिन ऐसा आएगा कि गोविंद गुरू की स्मृति में यहाँ जो स्मारक बना है, उनकी शहादत को याद किया है ऐसा ये शहीद वन स्मृति वन बना है, यहाँ भी देश और दुनिया के लोग उन पन्द्रह सौ से ज्यादा मेरे शहीद भील कुमारों पर हमेशा पुष्प वर्षा करने के लिए इस धरती पर आएंगे, ऐसा वातावरण बनाने का काम मैंने किया है।

भाइयों और बहनों, आजादी को इतने साल हो गए, इतने सारे समाज सुधारक हुए। आप देखिए  हमने वहाँ एक  छोटा सा प्रदर्शन रखा है। उस जमाने में गोविंद गुरू की कैसी प्रेरणा देते थे, कैसे वचन कहते थे..! ये वचन आज भी काम में आए ऐसे शब्द वे उस समय कहते थे,एक-एक बात पर अमल हो इसके लिए भगत पंथ चला कर भक्तों को तैयार करके समाज सुधार का काम करते थे। और जीवन के कितने साल जेल में बिताए, अहमदाबाद की साबरमती जेल में भी रहे। अंग्रेज सरकार को डर लगा तो हैदराबाद की जेल में भेज दिया, हैदराबाद की जेल में जिंदगी गुजारने पर मजबूर किये गए थे। ये गोविंद गुरू, उन्हें भूला दिया गया है। आदिवासियों के कल्याण के लिए अपना जीवन खपा देने वाले व्यक्ति को इस देश में भूलाया नहीं जाएगा। आने वाली पीढिय़ां याद रखे इसके लिए हमने सकंल्प किया है और यह बात हम पहुँचाना चाहते हैं। शहादत व्यर्थ नहीं जा सकती और जब भील कुमारों को पता चलेगा कि उनके पूर्वजों ने कितना बड़ा बलिदान दिया था, तब जैसे एकलव्य से प्रेरणा ली जाती है वैसे ही गोविंद गुरू से भी प्रेरणा मिलेगी ऐसा मुझे विश्वास है।

भाइयों और बहनों, आजादी के इतने सारे सालों में आदिवासियों का कल्याण करने में ये सभी सरकारें निष्फल रही हैं। आदिवासियों के नाम पर विपुल मात्रा में वोट ले गए, पर आदिवासियों के जीवन में बदलाव नहीं आया। इस सरकार ने प्रयास किया है कि आदिवासियों के घर तक पीने का पानी कैसे पहुंचे, आदिवासियों के खेतों तक सिंचाई का पानी कैसे पहुंचे, आदिवासियों को रहने के लिए घर कैसे मिले, पेड़ों के नीचे जिंदगी गुजारने वाले आदिवासियों को अपना घर किस तरह से मिले ये चिंता इस सरकार ने की है। भाइयों और बहनों, शून्य से सोलह तक के गरीबी रेखा के नीचे जीवन गुजारने वाले सभी आदिवासियों को मकान देने का काम पूरा कर दिया गया है। और अब उठाने वाले हैं, सत्तरह से बीस के बीच आने वाले लगभग दो लाख से ज्यादा आदिवासीयों को घर देने का काम, जो आने वाले दिसंबर तक हम पूरा करने वाले हैं। आप सोचिए, पचास सालों में जो काम कोई नहीं कर सका है, वो काम करने के लिए संघर्ष उठाया है और ये काम का लाभ लोगों को मिले इसके लिए काम किया है। 15,000 करोड़ रूपये का पैकेज, वनबंधु कल्याण योजना में नियत किए गए थे 15,000 करोड़ और पहुँचाया 18,000 करोड़ और अब तो मामला 40,000 करोड़ रूपये तक पहुँच गया है, 40,000 करोड़ रुपये मेरी आदिवासी जनता के लिए। भाइयों और बहनों, समाज को लड़वाने के लिए आरक्षण के नाम पर दंगे करवाते हैं, सब कुछ करते हैं, दूसरों को उकसाने की बातें करते हैं। लेकिन मेरे आरक्षण का लाभ कैसे मिल सकता है, भाइयों? मेरे आदिवासी बेटे को डॉक्टर बनना है, मेरे आदिवासी बेटे को इंजीनियर बनना है, तो पहले बारहवीं कक्षा तक की विज्ञान प्रवाह की स्कूल तो होनी चाहिए की नहीं..? आपको जानकर दु:ख होगा भाइयों-बहनों, उमरगांव से अंबाजी तक की पूरी आदिवासी पट्टी में विज्ञान संकाय की एक भी बारहवीं कक्षा नहीं थी। मैं जब 2001 में आया तब इस राज्य में 45 तालुके ऐसे थे जहाँ पर बारहवीं कक्षा में विज्ञान संकाय वाला विद्यालय ही नहीं था। जब बारहवीं कक्षा में विज्ञान संकाय ही नहीं है तो डॉक्टर या इंजीनियर कैसे बना जा सकता है? आरक्षण का लाभ कैसे मिलेगा? और आरक्षण के नाम पर झगड़ा करके अपनी राजनीति चलाते रहते हो लेकिन आदिवासियों का भला कभी नहीं किया। भाइयों और बहनों, हमने उन 45 के 45 तालुकाओं में विज्ञान संकाय की बारहवीं कक्षा के विद्यालय प्रारंभ करवाए और इसका परिणाम ये आया कि आज मेडिकल, इंजीनियरिंग की आदिवासियों की सभी सीटें भरने लगी। आदिवासी लडक़े इंजीनियर बने, आदिवासी लडक़े डॉक्टर बने इस दिशा में हमने काम किया। नर्सिंग की कॉलेज प्रारंभ की, आदिवासी क्षेत्र में आई.टी.आई. प्रारंभ की, आदिवासियों के बच्चे आज पढ़ें और आगे बढें इसकी चिंता की।

क जमाना था, मेरे पंचमहाल तालुका के आदिवासी 44 डिग्री तापमान होने पर भी रोड का काम करने के लिए, डामर का काम करने के लिए शहरों में तपते थे, चिलचिलाती धूप में डामर की सड़क बनाने का काम करते थे, ऐसे दिन थे। आज मुझे गर्व के साथ कहना है कि दाहोद और पंचमहाल जिले का एक भी ऐसा तालुका नहीं है कि जहाँ पर मेरे आदिवासी आज रोड कांन्ट्रेक्टर नहीं बने हो। जेसीबी लाने लगे हैं । अभी एक सदभावना मिशन के कार्यक्रम में मेरे इस गरीब समाज के लोग मुझे मिलने आए थे, बक्षीपंच के गधे चराने वाले और गधे पर मिट्टी उठा कर ले जाने वाले लोग मुझे मिलने आए थे। और मेरे लिए एक खिलौना लेकर आए थे, सदभावना मिशन में प्लास्टिक का खिलौना मुझे भेंट दिया। मैं हँस पड़ा, मैंने कहा कि आप लोगों ने मुझे यह प्लास्टिक की जेसीबी मशीन का खिलौना क्यों दिया? मेरे परिवार में तो खेलने वाला कोई नहीं है, मुझे हँसी आ गई। तो मुझे कहा कि साहब, हम ये जेसीबी का खिलौना इसलिए लाए हैं कि पहले हम गधे चराते थे, आपकी सरकार में ऐसी प्रगति हुई कि हमारे घर में भी जेसीबी आ गई उसका नमूना आपको बताने के लिए लाए हैं, उसका आभार व्यक्त करने के लिए आएं हैं। आज मेरे पंचमहाल के, दाहोद के आदिवासी तथा सभी तालुका में देखना मित्रों, आज मेरे आदिवासी रोड के कान्ट्रेक्टर बन गए हैं, कल तक मजदूरी करते थे। मेरा डांग जिला, आदिवासी भाइयों, इनके कल्याण के लिए कोई योजना ही नहीं थी। हमने डांग जिले में दूध  उत्पादन के काम शुरू किए, गाय-भैंसे देने की दिशा में काम किए। आज मेरे डांग जिले का आदिवासी स्वावलम्बी हो गया है। हमने दाहोद जिले में अभियान शुरू किया है, दूध उत्पादन करने की क्षमता बढ़े, दुधारी पशु उपलब्ध हों इसके लिए काम शुरू किए। हम एक ओर आदिवासी भाइयों को दूध उत्पादन के लिए गाय-भैंस प्रदान कर रहे हैं, वहीं दिल्ली सरकार ने क्या शुरू किया है, जानते हैं? दिल्ली सरकार ने कसाईखानों को सब्सिडी देने का काम शुरू किया है। पचास करोड़ रूपया कसाईखानों के लिए सब्सिडी दे रहे हैं तथा गाय का मांस विदेश में भेजो तो सब्सिडी दी जाती है और लाखों टन गाय का मांस विदेश भेजने का काम ये दिल्ली की सरकार कर रही है। यह देश तो ऐसा है कि जब 1857 की क्रांति हुई थी, वह गाय की चर्बी के ऊपर क्रांति हुई थी, बुलेट पर गाय की चर्बी है इतनी बात मात्र से हिंदुस्तान जाग गया था। इसी हिन्दुस्तान में आज दिल्ली की सरकार गाय का मांस विदेश भेजने के लिए प्रोत्साहक इनाम दे रही है..! इस बदकिस्मती के साथ देश जी रहा है तब मेरे भाइयों-बहनों, गौ माता की रक्षा के लिए गोविंद गुरू ने जिदंगी दे दी थी। गाँव-गाँव जाकर गौ पालन के लिए ज्ञान देने का काम गोविंद गुरू ने किया था। इन गोविंद गुरू से प्रेरणा लेकर इतने लोग शहीद हो गए और अंग्रेज सरकार के नाक में दम कर दिया था उस मानगढ़ भूला नहीं सकते। इस मानगढ़ ने ही गुजरात का सम्मान बढ़ाया है, इस गुजरात का गौरव बढ़ाने का काम मानगढ़ के मेरे शहीदों ने किया है। उस शहादत याद करते हुए यह ‘शहीद स्मृति वन’ हमने समर्पित किया है।

भाइयों और बहनों, पर्यावरण के सामने लडऩा है तो वृक्ष बचाने पड़ेंगे, वृक्ष लगाने पड़ेंगे। बारिश की खींच के चलते जीव कैसा व्याकुल हो जाता है..? समाज का कोई ऐसा वर्ग नहीं है जो बारिश की खींच के चलते दु:खी नहीं होता हो। राजा हो या रंक हो, बरसात कम हो तो हर कोई दु:खी होता है, हर एक के मन में पीड़ा होती है कि भाई, अब बरसात हो तो अच्छा है। कुछ निकम्मे लोग भी होते हैं, ये लोग यज्ञ करते हैं, यज्ञ करके भगवान से प्रार्थना करते हैं कि बरसात न हो तो अच्छा है, तो हमें चुनाव में आसानी रहे, बोलो ऐसी बात..! अरे भाई, चुनाव जीतने के लिए इस जनता को दु:ख में नहीं डाल सकते, इस जनता को कष्ट हो ऐसा नहीं कर सकते। अरे, चुनाव तो आएंगे और जाएंगे, पर मेरा ये समाज तो अविनाशी है। यदि इसे पानी ईश्चर की कृपा से नहीं मिलेगा तो कितनी विपदाएं आएंगी, हम सब प्रार्थना करें, गोविंद गुरू के धाम में प्रार्थना करें कि ईश्वर हमें बरसात का प्रसाद दें और हमारा गुजरात हराभरा बनने कि दिशा में आगे बढ़े, इसका अवसर हम लें। बरसात तो ईश्वर की दी हुई सबसे बड़ी कृपा है, इसके बिना जीवन संभव ही नहीं हो सकता। इस पानी के लिए पूजा इस समाज के भविष्य की गारंटी का एक साधन है। भाइयों और बहनों, विकास का मार्ग हमने लिया है, विकास के मार्ग पर जाना है, हमारे आदिवासियों की जिंदगी बदलनी है..! अभी भारत सरकार ने एक आंकड़ा जारी किया। भारत सरकार ने कहा कि पूरे देश में जो बेरोजगारी है, इसमें कम से कम बेरोजगारी कहीं है तो उस राज्य का नाम है गुजरात। यदि हमने विकास नहीं किया होता तो राज्य के नौजवानों को रोजगार नहीं मिला होता। और अगर नौजवानों को रोजगार नहीं मिलता है तो उनके परिवार की स्थिति नहीं बदलेगी और इसलिए हमारा प्रयास है कि युवाओं को रोजगार मिले। वनबंधु कल्याण योजना के जरिए, स्किल डेवलपमेंट कार्यक्रम के जरिए, कौशल वर्धन के कार्यक्रमों के जरिए प्रत्येक नौजवान को काम सिखाना है ताकि पत्थर पर लात मार कर पानी निकाल सके ऐसी ताकत इनमें आए। इस ताकत को खड़ी करने का काम उठाया है।

भाइयों और बहनों, मानगढ़ जैसा वीरान प्रदेश, यहाँ पहुँचना भी कठिन है और एक पर्वत की छोटी सी चोटी पर जिस तरह से मैंने जन सैलाब देखा, हैलिकाप्टर से मैं देख रहा था कि कितने सारे आदमी खड़े थे, अंदर तो कुछ भी नहीं है। इतना बड़ा जन सैलाब, गोविंद गुरू की याद ताजा करने का हमारा जो सपना था उसका बीज बोया गया है, दोस्तों। अब गोविंद गुरू को कैसा भी ताकतवर आदमी आए तो भी भूला नहीं पाएगा। इतिहास के पन्नों से शहादत की बात को मिटाने की कोशिश करने वाले लोग अब नाकाम होंगे ऐसा ये दृश्य मुझे नजर आ रहा है। इतिहास के पन्नों से शहादत को कोई मिटा नहीं सकेगा, सशस्त्र क्रांति के वीरों को भूला नहीं जा सकता, भारत के वीरत्व को भूला नहीं जा सकता, आदिवासियों के बलिदान का भूला नहीं जा सकता, आदिवासियों की यशगाथा को भूला नहीं जा सकता और ये बड़ा काम गोविंद गुरू की धरती पर हमने किया है। मेरे आदिवासी भाइयों और बहनों, आओ, सिर्फ जंगलों को बचाना ही नहीं है, वृक्ष भी बढ़ाने हैं। यहाँ आपने देखा होगा कि एक एक गाँव को, किसी को पन्द्रह लाख, किसी को बीस लाख रूपये मिल रहे हैं। ये सरकार की योजना का लाभ लें। इतने सारे वृक्ष उगाओ, प्रत्येक वृक्ष से पैसा कमाओ, ये सरकार आपको पैसे देती है, लाखों रूपये देती है। एक एक गाँव को पन्द्रह-पन्द्रह, बीस-बीस लाख रूपया मिलता है वो आपने देखा मेरे सामने। इतने सारे रूपयों की वर्षा हो रही हो तो वृक्ष उगाने की बात में हम कमी न बरतें। वन विभाग के मित्रों को भी मानगढ़ जैसी इस जगह पर गोविंद गुरू की याद में... और यह सारी नौकरी से ऊपर की बात है। नौकरी में तो सब चलता है, पर आपने आज एतिहासिक काम किया है, सिर्फ नौकरी नहीं की है, दोस्तों। और किसी एतिहासिक काम के साक्षी बनने में जीवन का अपूर्व आनंद मिलता है। आप भी भविष्य में आपके संतानों को यहाँ दिखाने लाएंगे कि मैं जब नौकरी करता था तब हमने यह एक महान एतिहासिक काम किया था, ऐसा भाव पैदा होने वाला है। पीढ़ी दर पीढ़ी ये संस्कार पहुँचने वाले हैं और इस काम को जब हमने महसूस किया है तब फिर एक बार मेरे साथ ‘गोविंद गुरू अमर रहे’ का नारा लगाएं, फिर मैं कहूँगा ‘शहीदों’ तब आप ‘अमर रहो’ कहना...

 

गोविंद गुरू, अमर रहो... गोविंद गुरू, अमर रहो...!

हीदो, अमर रहो...हीदो, अमर रहो...हीदो, अमर रहो...!

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भारत और कुवैत का रिश्ता; सभ्यताओं, सागर और कारोबार का है: पीएम मोदी
December 21, 2024
कुवैत में प्रवासी भारतीयों की गर्मजोशी और स्नेह असाधारण है: प्रधानमंत्री
43 वर्षों के बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री कुवैत की यात्रा कर रहा है: प्रधानमंत्री
भारत और कुवैत के बीच सभ्यता, समुद्र और वाणिज्य का रिश्ता है: प्रधानमंत्री
भारत और कुवैत हमेशा एक-दूसरे के साथ खड़े रहे हैं: प्रधानमंत्री
भारत कुशल प्रतिभाओं की वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए पूरी तरह से सुसज्जित है: प्रधानमंत्री
भारत में स्मार्ट डिजिटल प्रणाली अब विलासिता की वस्तु नहीं रह गयी है, बल्कि यह आम आदमी के दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गयी है: प्रधानमंत्री
भविष्य का भारत वैश्विक विकास का केंद्र होगा, दुनिया का विकास इंजन होगा: प्रधानमंत्री
भारत, एक विश्व मित्र के रूप में, विश्व की भलाई के दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ रहा है: प्रधानमंत्री

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

नमस्कार,

अभी दो ढाई घंटे पहले ही मैं कुवैत पहुंचा हूं और जबसे यहां कदम रखा है तबसे ही चारों तरफ एक अलग ही अपनापन, एक अलग ही गर्मजोशी महसूस कर रहा हूं। आप सब भारत क अलग अलग राज्यों से आए हैं। लेकिन आप सभी को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सामने मिनी हिन्दुस्तान उमड़ आया है। यहां पर नार्थ साउथ ईस्ट वेस्ट हर क्षेत्र के अलग अलग भाषा बोली बोलने वाले लोग मेरे सामने नजर आ रहे हैं। लेकिन सबके दिल में एक ही गूंज है। सबके दिल में एक ही गूंज है - भारत माता की जय, भारत माता की जय I

यहां हल कल्चर की festivity है। अभी आप क्रिसमस और न्यू ईयर की तैयारी कर रहे हैं। फिर पोंगल आने वाला है। मकर सक्रांति हो, लोहड़ी हो, बिहू हो, ऐसे अनेक त्यौहार बहुत दूर नहीं है। मैं आप सभी को क्रिसमस की, न्यू ईयर की और देश के कोने कोने में मनाये जाने वाले सभी त्योहारों की बहुत बहुत शुभकानाएं देता हूं।

साथियों,

आज निजी रूप से मेरे लिए ये पल बहुत खास है। 43 years, चार दशक से भी ज्यादा समय, 43 years के बाद भारत का कोई प्रधानमंत्री कुवैत आया है। आपको हिन्दुस्तान से यहां आना है तो चार घंटे लगते हैं, प्रधानमंत्री को चार दशक लग गए। आपमे से कितने ही साथी तो पीढ़ियों से कुवैत में ही रह रहे हैं। बहुतों का तो जन्म ही यहीं हुआ है। और हर साल सैकड़ों भारतीय आपके समूह में जुड़ते जाते हैं। आपने कुवैत के समाज में भारतीयता का तड़का लगाया है, आपने कुवैत के केनवास पर भारतीय हुनर का रंग भरा है। आपने कुवैत में भारत के टेलेंट, टेक्नॉलोजी और ट्रेडिशन का मसाला मिक्स किया है। और इसलिए मैं आज यहां सिर्फ आपसे मिलने ही नहीं आया हूं, आप सभी की उपलब्धियों को सेलिब्रेट करने के लिए आया हूं।

साथियों,

थोड़ी देर पहले ही मेरे यहां काम करने वाले भारतीय श्रमिकों प्रोफेशनल्श् से मुलाकात हुई है। ये साथी यहां कंस्ट्रक्शन के काम से जुड़े हैं। अन्य अनेक सेक्टर्स में भी अपना पसीना बहा रहे हैं। भारतीय समुदाय के डॉक्टर्स, नर्सज पेरामेडिस के रूप में कुवैत के medical infrastructure की बहुत बड़ी शक्ति है। आपमें से जो टीचर्स हैं वो कुवैत की अगली पीढ़ी को मजबूत बनाने में सहयोग कर रही है। आपमें से जो engineers हैं, architects हैं, वे कुवैत के next generation infrastructure का निर्माण कर रहे हैं।

और साथियों,

जब भी मैं कुवैत की लीडरशिप से बात करता हूं। तो वो आप सभी की बहुत प्रशंसा करते हैं। कुवैत के नागरिक भी आप सभी भारतीयों की मेहनत, आपकी ईमानदारी, आपकी स्किल की वजह से आपका बहुत मान करते हैं। आज भारत रेमिटंस के मामले में दुनिया में सबसे आगे है, तो इसका बहुत बड़ा श्रेय भी आप सभी मेहनतकश साथियों को जाता है। देशवासी भी आपके इस योगदान का सम्मान करते हैं।

साथियों,

भारत और कुवैत का रिश्ता सभ्यताओं का है, सागर का है, स्नेह का है, व्यापार कारोबार का है। भारत और कुवैत अरब सागर के दो किनारों पर बसे हैं। हमें सिर्फ डिप्लोमेसी ही नहीं बल्कि दिलों ने आपस में जोड़ा है। हमारा वर्तमान ही नहीं बल्कि हमारा अतीत भी हमें जोड़ता है। एक समय था जब कुवैत से मोती, खजूर और शानदार नस्ल के घोड़े भारत जाते थे। और भारत से भी बहुत सारा सामान यहां आता रहा है। भारत के चावल, भारत की चाय, भारत के मसाले,कपड़े, लकड़ी यहां आती थी। भारत की टीक वुड से बनी नौकाओं में सवार होकर कुवैत के नाविक लंबी यात्राएं करते थे। कुवैत के मोती भारत के लिए किसी हीरे से कम नहीं रहे हैं। आज भारत की ज्वेलरी की पूरी दुनिया में धूम है, तो उसमें कुवैत के मोतियों का भी योगदान है। गुजरात में तो हम बड़े-बुजुर्गों से सुनते आए हैं, कि पिछली शताब्दियों में कुवैत से कैसे लोगों का, व्यापारी-कारोबारियों का आना-जाना रहता था। खासतौर पर नाइनटीन्थ सेंचुरी में ही, कुवैत से व्यापारी सूरत आने लगे थे। तब सूरत, कुवैत के मोतियों के लिए इंटरनेशनल मार्केट हुआ करता था। सूरत हो, पोरबंदर हो, वेरावल हो, गुजरात के बंदरगाह इन पुराने संबंधों के साक्षी हैं।

कुवैती व्यापारियों ने गुजराती भाषा में अनेक किताबें भी पब्लिश की हैं। गुजरात के बाद कुवैत के व्यापारियों ने मुंबई और दूसरे बाज़ारों में भी उन्होंने अलग पहचान बनाई थी। यहां के प्रसिद्ध व्यापारी अब्दुल लतीफ अल् अब्दुल रज्जाक की किताब, How To Calculate Pearl Weight मुंबई में छपी थी। कुवैत के बहुत सारे व्यापारियों ने, एक्सपोर्ट और इंपोर्ट के लिए मुंबई, कोलकाता, पोरबंदर, वेरावल और गोवा में अपने ऑफिस खोले हैं। कुवैत के बहुत सारे परिवार आज भी मुंबई की मोहम्मद अली स्ट्रीट में रहते हैं। बहुत सारे लोगों को ये जानकर हैरानी होगी। 60-65 साल पहले कुवैत में भारतीय रुपए वैसे ही चलते थे, जैसे भारत में चलते हैं। यानि यहां किसी दुकान से कुछ खरीदने पर, भारतीय रुपए ही स्वीकार किए जाते थे। तब भारतीय करेंसी की जो शब्दाबली थी, जैसे रुपया, पैसा, आना, ये भी कुवैत के लोगों के लिए बहुत ही सामान्य था।

साथियों,

भारत दुनिया के उन पहले देशों में से एक है, जिसने कुवैत की स्वतंत्रता के बाद उसे मान्यता दी थी। और इसलिए जिस देश से, जिस समाज से इतनी सारी यादें जुड़ी हैं, जिससे हमारा वर्तमान जुड़ा है। वहां आना मेरे लिए बहुत यादगार है। मैं कुवैत के लोगों का, यहां की सरकार का बहुत आभारी हूं। मैं His Highness The Amir का उनके Invitation के लिए विशेष रूप से धन्यवाद देता हूं।

साथियों,

अतीत में कल्चर और कॉमर्स ने जो रिश्ता बनाया था, वो आज नई सदी में, नई बुलंदी की तरफ आगे बढ़ रहा है। आज कुवैत भारत का बहुत अहम Energy और Trade Partner है। कुवैत की कंपनियों के लिए भी भारत एक बड़ा Investment Destination है। मुझे याद है, His Highness, The Crown Prince Of Kuwait ने न्यूयॉर्क में हमारी मुलाकात के दौरान एक कहावत का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था- “When You Are In Need, India Is Your Destination”. भारत और कुवैत के नागरिकों ने दुख के समय में, संकटकाल में भी एक दूसरे की हमेशा मदद की है। कोरोना महामारी के दौरान दोनों देशों ने हर स्तर पर एक-दूसरे की मदद की। जब भारत को सबसे ज्यादा जरूरत पड़ी, तो कुवैत ने हिंदुस्तान को Liquid Oxygen की सप्लाई दी। His Highness The Crown Prince ने खुद आगे आकर सबको तेजी से काम करने के लिए प्रेरित किया। मुझे संतोष है कि भारत ने भी कुवैत को वैक्सीन और मेडिकल टीम भेजकर इस संकट से लड़ने का साहस दिया। भारत ने अपने पोर्ट्स खुले रखे, ताकि कुवैत और इसके आसपास के क्षेत्रों में खाने पीने की चीजों का कोई अभाव ना हो। अभी इसी साल जून में यहां कुवैत में कितना हृदय विदारक हादसा हुआ। मंगफ में जो अग्निकांड हुआ, उसमें अनेक भारतीय लोगों ने अपना जीवन खोया। मुझे जब ये खबर मिली, तो बहुत चिंता हुई थी। लेकिन उस समय कुवैत सरकार ने जिस तरह का सहयोग किया, वो एक भाई ही कर सकता है। मैं कुवैत के इस जज्बे को सलाम करूंगा।

साथियों,

हर सुख-दुख में साथ रहने की ये परंपरा, हमारे आपसी रिश्ते, आपसी भरोसे की बुनियाद है। आने वाले दशकों में हम अपनी समृद्धि के भी बड़े पार्टनर बनेंगे। हमारे लक्ष्य भी बहुत अलग नहीं है। कुवैत के लोग, न्यू कुवैत के निर्माण में जुटे हैं। भारत के लोग भी, साल 2047 तक, देश को एक डवलप्ड नेशन बनाने में जुटे हैं। कुवैत Trade और Innovation के जरिए एक Dynamic Economy बनना चाहता है। भारत भी आज Innovation पर बल दे रहा है, अपनी Economy को लगातार मजबूत कर रहा है। ये दोनों लक्ष्य एक दूसरे को सपोर्ट करने वाले हैं। न्यू कुवैत के निर्माण के लिए, जो इनोवेशन, जो स्किल, जो टेक्नॉलॉजी, जो मैनपावर चाहिए, वो भारत के पास है। भारत के स्टार्ट अप्स, फिनटेक से हेल्थकेयर तक, स्मार्ट सिटी से ग्रीन टेक्नॉलजी तक कुवैत की हर जरूरत के लिए Cutting Edge Solutions बना सकते हैं। भारत का स्किल्ड यूथ कुवैत की फ्यूचर जर्नी को भी नई स्ट्रेंथ दे सकता है।

साथियों,

भारत में दुनिया की स्किल कैपिटल बनने का भी सामर्थ्य है। आने वाले कई दशकों तक भारत दुनिया का सबसे युवा देश रहने वाला है। ऐसे में भारत दुनिया की स्किल डिमांड को पूरा करने का सामर्थ्य रखता है। और इसके लिए भारत दुनिया की जरूरतों को देखते हुए, अपने युवाओं का स्किल डवलपमेंट कर रहा है, स्किल अपग्रेडेशन कर रहा है। भारत ने हाल के वर्षों में करीब दो दर्जन देशों के साथ Migration और रोजगार से जुड़े समझौते किए हैं। इनमें गल्फ कंट्रीज के अलावा जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, मॉरिशस, यूके और इटली जैसे देश शामिल हैं। दुनिया के देश भी भारत की स्किल्ड मैनपावर के लिए दरवाज़े खोल रहे हैं।

साथियों,

विदेशों में जो भारतीय काम कर रहे हैं, उनके वेलफेयर और सुविधाओं के लिए भी अनेक देशों से समझौते किए जा रहे हैं। आप ई-माइग्रेट पोर्टल से परिचित होंगे। इसके ज़रिए, विदेशी कंपनियों और रजिस्टर्ड एजेंटों को एक ही प्लेटफॉर्म पर लाया गया है। इससे मैनपावर की कहां जरूरत है, किस तरह की मैनपावर चाहिए, किस कंपनी को चाहिए, ये सब आसानी से पता चल जाता है। इस पोर्टल की मदद से बीते 4-5 साल में ही लाखों साथी, यहां खाड़ी देशों में भी आए हैं। ऐसे हर प्रयास के पीछे एक ही लक्ष्य है। भारत के टैलेंट से दुनिया की तरक्की हो और जो बाहर कामकाज के लिए गए हैं, उनको हमेशा सहूलियत रहे। कुवैत में भी आप सभी को भारत के इन प्रयासों से बहुत फायदा होने वाला है।

साथियों,

हम दुनिया में कहीं भी रहें, उस देश का सम्मान करते हैं और भारत को नई ऊंचाई छूता देख उतने ही प्रसन्न भी होते हैं। आप सभी भारत से यहां आए, यहां रहे, लेकिन भारतीयता को आपने अपने दिल में संजो कर रखा है। अब आप मुझे बताइए, कौन भारतीय होगा जिसे मंगलयान की सफलता पर गर्व नहीं होगा? कौन भारतीय होगा जिसे चंद्रयान की चंद्रमा पर लैंडिंग की खुशी नहीं हुई होगी? मैं सही कह रहा हूं कि नहीं कह रहा हूं। आज का भारत एक नए मिजाज के साथ आगे बढ़ रहा है। आज भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी इकॉनॉमी है। आज दुनिया का नंबर वन फिनटेक इकोसिस्टम भारत में है। आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम भारत में है। आज भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता देश है।

मैं आपको एक आंकड़ा देता हूं और सुनकर आपको भी अच्छा लगेगा। बीते 10 साल में भारत ने जितना ऑप्टिकल फाइबर बिछाया है, भारत में जितना ऑप्टिकल फाइबर बिछाया है, उसकी लंबाई, वो धरती और चंद्रमा की दूरी से भी आठ गुना अधिक है। आज भारत, दुनिया के सबसे डिजिटल कनेक्टेड देशों में से एक है। छोटे-छोटे शहरों से लेकर गांवों तक हर भारतीय डिजिटल टूल्स का उपयोग कर रहा है। भारत में स्मार्ट डिजिटल सिस्टम अब लग्जरी नहीं, बल्कि कॉमन मैन की रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल हो गया है। भारत में चाय पीते हैं, रेहड़ी-पटरी पर फल खरीदते हैं, तो डिजिटली पेमेंट करते हैं। राशन मंगाना है, खाना मंगाना है, फल-सब्जियां मंगानी है, घर का फुटकर सामान मंगाना है, बहुत कम समय में ही डिलिवरी हो जाती है और पेमेंट भी फोन से ही हो जाता है। डॉक्यूमेंट्स रखने के लिए लोगों के पास डिजि लॉकर है, एयरपोर्ट पर सीमलैस ट्रेवेल के लिए लोगों के पास डिजियात्रा है, टोल बूथ पर समय बचाने के लिए लोगों के पास फास्टटैग है, भारत लगातार डिजिटली स्मार्ट हो रहा है और ये तो अभी शुरुआत है। भविष्य का भारत ऐसे इनोवेशन्स की तरफ बढ़ने वाला है, जो पूरी दुनिया को दिशा दिखाएगा। भविष्य का भारत, दुनिया के विकास का हब होगा, दुनिया का ग्रोथ इंजन होगा। वो समय दूर नहीं जब भारत दुनिया का Green Energy Hub होगा, Pharma Hub होगा, Electronics Hub होगा, Automobile Hub होगा, Semiconductor Hub होगा, Legal, Insurance Hub होगा, Contracting, Commercial Hub होगा। आप देखेंगे, जब दुनिया के बड़े-बड़े Economy Centres भारत में होंगे। Global Capability Centres हो, Global Technology Centres हो, Global Engineering Centres हो, इनका बहुत बड़ा Hub भारत बनेगा।

साथियों,

हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। भारत एक विश्वबंधु के रूप में दुनिया के भले की सोच के साथ आगे चल रहा है। और दुनिया भी भारत की इस भावना को मान दे रही है। आज 21 दिसंबर, 2024 को दुनिया, अपना पहला World Meditation Day सेलीब्रेट कर रही है। ये भारत की हज़ारों वर्षों की Meditation परंपरा को ही समर्पित है। 2015 से दुनिया 21 जून को इंटरनेशन योगा डे मनाती आ रही है। ये भी भारत की योग परंपरा को समर्पित है। साल 2023 को दुनिया ने इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर के रूप में मनाया, ये भी भारत के प्रयासों और प्रस्ताव से ही संभव हो सका। आज भारत का योग, दुनिया के हर रीजन को जोड़ रहा है। आज भारत की ट्रेडिशनल मेडिसिन, हमारा आयुर्वेद, हमारे आयुष प्रोडक्ट, ग्लोबल वेलनेस को समृद्ध कर रहे हैं। आज हमारे सुपरफूड मिलेट्स, हमारे श्री अन्न, न्यूट्रिशन और हेल्दी लाइफस्टाइल का बड़ा आधार बन रहे हैं। आज नालंदा से लेकर IITs तक का, हमारा नॉलेज सिस्टम, ग्लोबल नॉलेज इकोसिस्टम को स्ट्रेंथ दे रहा है। आज भारत ग्लोबल कनेक्टिविटी की भी एक अहम कड़ी बन रहा है। पिछले साल भारत में हुए जी-20 सम्मेलन के दौरान, भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर की घोषणा हुई थी। ये कॉरिडोर, भविष्य की दुनिया को नई दिशा देने वाला है।

साथियों,

विकसित भारत की यात्रा, आप सभी के सहयोग, भारतीय डायस्पोरा की भागीदारी के बिना अधूरी है। मैं आप सभी को विकसित भारत के संकल्प से जुड़ने के लिए आमंत्रित करता हूं। नए साल का पहला महीना, 2025 का जनवरी, इस बार अनेक राष्ट्रीय उत्सवों का महीना होने वाला है। इसी साल 8 से 10 जनवरी तक, भुवनेश्वर में प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन होगा, दुनियाभर के लोग आएंगे। मैं आप सब को, इस कार्यक्रम के लिए आमंत्रित करता हूं। इस यात्रा में, आप पुरी में महाप्रभु जगन्नाथ जी का आशीर्वाद ले सकते हैं। इसके बाद प्रयागराज में आप महाकुंभ में शामिल होने के लिए प्रयागराज पधारिये। ये 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलने वाला है, करीब डेढ़ महीना। 26 जनवरी को आप गणतंत्र दिवस देखकर ही वापस लौटिए। और हां, आप अपने कुवैती दोस्तों को भी भारत लाइए, उनको भारत घुमाइए, यहां पर कभी, एक समय था यहां पर कभी दिलीप कुमार साहेब ने पहले भारतीय रेस्तरां का उद्घाटन किया था। भारत का असली ज़ायका तो वहां जाकर ही पता चलेगा। इसलिए अपने कुवैती दोस्तों को इसके लिए ज़रूर तैयार करना है।

साथियों,

मैं जानता हूं कि आप सभी आज से शुरु हो रहे, अरेबियन गल्फ कप के लिए भी बहुत उत्सुक हैं। आप कुवैत की टीम को चीयर करने के लिए तत्पर हैं। मैं His Highness, The Amir का आभारी हूं, उन्होंने मुझे उद्घाटन समारोह में Guest Of Honour के रूप में Invite किया है। ये दिखाता है कि रॉयल फैमिली, कुवैत की सरकार, आप सभी का, भारत का कितना सम्मान करती है। भारत-कुवैत रिश्तों को आप सभी ऐसे ही सशक्त करते रहें, इसी कामना के साथ, फिर से आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद!

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय!

बहुत-बहुत धन्यवाद।