मेरे प्रिय गुजराती भाई-बहनों,

गुजरात के लोगों ने फिर से एक बार अपना फैसला सुना दिया है, और इस बार काफी स्पष्ट रूप से फैसला किया है। वर्ष २०१२ के गुजरात चुनावों ने दूसरे तमाम क्षुद्र मुद्दों को दरकिनार कर फिर से एक बार विकास की राजनीति और सुशासन पर अपनी मुहर लगा दी है। गुजरात की जनता ने हमारे प्रति जो स्नेह दर्शाया है, जो समर्थन दिया है और हमारी पार्टी तथा सरकार के प्रति जो अडिग विश्वास व्यक्त किया है इसके लिए मैं उनका आभार व्यक्त करता हूं। गुजरात के लोगों ने हमको प्रचंड बहुमत दिया है। मैं भरोसा देता हूं कि आपने हम पर जो विश्वास जताया है उसको बरकरार रखने में कोई कोरकसर बाकी नहीं रखी जाएगी।

खास तौर पर मैं अंतर्मन की गहराई से ईश्वर का धन्यवाद करता हूं, जिन्होंने हमें पिछले ११ वर्ष से गुजरात की जनता की सेवा करने के लिए अपार शक्ति और आशीर्वाद दिया है। प्रभु ने आने वाले वर्षों में भी गुजरात की सेवा करने का अवसर दिया, इसका हमें आनंद है।

यह गुजरात के लोगों की विजय है। यह गुजरात की नारी-शक्ति की भी विजय है जिसने अपनी आवाज बुलंद की है। यह हमारे युवाओं की भी विजय है जिन्होंने शुरुआत से ही इन चुनावों का बोझ अपने कंधों पर उठा लिया था। यह हमारे किसान भाइयों, कमजोर वर्ग के लोगों और वरिष्ठ नागरिकों की भी विजय है जो लगातार हमारे साथ खड़े रहे। यह विजय गुजरात के सर्वस्पर्शी, सर्वसमावेशक और सर्वांगी विकास मॉडल तथा सुशासन की भी विजय है।

मेरे जैसे बिल्कुल सामान्य घर में जन्में व्यक्ति को भी इतने सारे वर्षों तक समाज की सेवा करने का अवसर अमूल्य अवसर मिला, इसे मैं भारतीय लोकतंत्र की ताकत मानता हूं। मैं सामान्य लोगों के बीच रहकर पला-बढ़ा और उनकी शुभकामनाओं ने ही मुझे यहां तक पहुंचाया है और रात-दिन उनकी सेवा करने का पवित्र अवसर प्रदान किया है। जो युवा समाज की सेवा और राष्ट्र निर्माण के लिए अपना योगदान देना चाहते हैं वह गुजरात के इन चुनावों से काफी कुछ सीख सकते हैं।

सख्त परिश्रम के बजाये वंशवाद को ही ज्यादा महत्व मिलता देख कर कई बार युवा हताश हो जाते हैं और सोचते हैं कि क्या राजनीति के दरवाजे उनके लिए कभी खुलेंगे? गुजरात ने यह परंपरा बदल डाली है और दुनिया को दिखा दिया है कि अगर आपके मन में अपनी मातृभूमि की सेवा करने की लगन हो, चाहे जो हो जाए लेकिन मार्ग के अवरोध हटा देने का सामर्थ्य हो तो आपको अवसर अवश्य मिलेगा, चाहे आप किसी भी जाति या वंश के हों। भाजपा कार्यकर्ता वास्तव में धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने एक टीम की तरह कार्य किया और कमल को उतना खिलाने के लिए मेहनत की जितना वह पहले कभी नहीं खिला था।

यह विजय भाजपा के लाखों कार्यकर्ताओं के बलिदान और संकल्प की गाथा है। मैं हमेशा से कहता आया हूं कि गुजरात के चुनावों को लोग याद रखेंगे क्योंकि इस चुनाव ने भारत के लोगों का चुनाव के प्रति जो अभिगम था उसे आमूलचूल बदल दिया है। जातिवाद और वोटबैंक की राजनीति तथा फूट डालो-राज करो जैसे विभाजनकारी मुद्दों को पूरी तरह से दरकिनार कर गुजरात के लोगों ने विकास के मुद्दे को प्राथमिकता दी है और इस तरह समग्र देश के लिए एक उदाहरण पेश किया है। आज समग्र गुजरात एकमत होकर खड़ा है और स्पष्ट संदेश दे रहा है कि आखिर विकास की राजनीति और सुशासन की ही विजय होगी।

मित्रों, समय की मांग है कि छह करोड़ गुजराती अब एकजुट होकर खड़े रहें। हमारी सरकार ऐसी नहीं है कि जिन्होंने हमको वोट दिया सिर्फ उसी की परवाह करे। हम राज्य के प्रत्येक व्यक्ति की सुख-सुविधा के लिए चिंतित हैं। गुजरात की गौरवपूर्ण विकासयात्रा में प्रत्येक जात-पात और वर्ग के लोगों का विकास और सफलता अत्यंत आवश्यक है। गरीबी और वंचितता व्यक्ति की जात-पात देखकर नहीं आती और वोटबैंक की राजनीति के जातिवादी समीकरणों से इन समस्याओं का अंत नहीं होता। अगर हमें लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है तो सुशासन और विकास के लाभ गरीबतम व्यक्ति को भी मिले, यह सुनिश्चित करना होगा। यही हमारा विजन रहा है और आने वाले वर्षों में हम इसी दिशा में प्रयत्न जारी रखेंगे। गुजरात की प्रत्येक सफलता और विकास के पीछे यहीं के लोगों का परिश्रम और पसीना है। हमने सिर्फ आपकी मेहनत को सपोर्ट किया है और एक ऐसा जनकेंद्रीय वातावरण तैयार किया है जिससे आप विकास करके सुख और समृद्धि हासिल कर सकें। कृषि क्षेत्र में गुजरात ने क्रांति की है और दूसरी हरित क्रांति का जनक बना है।

हमने गुजरात को उद्योगों के लिए अनुकूल राज्य बनाया है जिससे यहां बड़े पैमाने पर पूंजी निवेशों और औद्योगिक विकास द्वारा रोजगार का सृजन हो सके। बिजली, पानी और सड़क जैसी मूलभूत आवश्यकताएं पूरी करने पर गुजरात ने ध्यान केंद्रित किया है जिससे लोगों को प्राथमिक आवश्यकताओं की कमी महसूस न हो और इनकी वजह से आपका विकास अवरुद्ध न हो। गरीबी उन्मूलन योजनाओं के लाभ लाभार्थियों को सीधे मिल सके, इसके लिए हमने बिचौलियों और एजेंटों को दूर कर दिया है। पिछले दशक में गुजरात में बड़ी संख्या में नवमध्यम वर्ग खड़ा हुआ है। यह एक ऐसा वर्ग है जिसे राज्य सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण विकास के फल मिले हैं और जिनकी सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी हुई है।

गुजरात के समाज में खड़े हुए इस नये वर्ग की सुख-सुविधाओं का ख्याल रखना हमारी जिम्मेदारी है। उनके जीवन-गुणवत्ता में जो सुधार हुआ है वह उन्हीं की सख्त मेहनत का परिणाम है। यही गुजरात का खमीर है और यही गुजरात का जोश है जो हमेशा समय की कसौटी पर खरा उतरा है। बारंबार मुझे पूछा जाता है कि मोदी जी, आने वाले वर्षों में गुजरात के विकास के लिए आपका क्या आयोजन है? आने वाले वर्षों में हम गुजरात के लोगों की सेवा जारी रखेंगे और आप सभी के लिए प्रगति और विकास के अवसर खड़े करते रहेंगे। हम एक ऐसे गुजरात का निर्माण करेंगे जहां सिर्फ आप ही नहीं बल्कि आपकी आने वाली पीढ़ियां भी सुखमय जीवन व्यतीत कर सकें। अब भव्य और दिव्य गुजरात के निर्माण की यात्रा का प्रारंभ हुआ है।

मित्रों, आप देखना, आगे और प्रगति, विकास, सुख और समृद्धि गुजरात का इंतजार कर रहे हैं।

 

जय जय गरवी गुजरात

नरेन्द्र मोदी

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राष्ट्र निर्माण के ‘अटल’ आदर्श की शताब्दी
December 25, 2024

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं...लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं? अटल जी के ये शब्द कितने साहसी हैं...कितने गूढ़ हैं। अटल जी, कूच से नहीं डरे...उन जैसे व्यक्तित्व को किसी से डर लगता भी नहीं था। वो ये भी कहते थे... जीवन बंजारों का डेरा आज यहां, कल कहां कूच है..कौन जानता किधर सवेरा...आज अगर वो हमारे बीच होते, तो वो अपने जन्मदिन पर नया सवेरा देख रहे होते। मैं वो दिन नहीं भूलता जब उन्होंने मुझे पास बुलाकर अंकवार में भर लिया था...और जोर से पीठ में धौल जमा दी थी। वो स्नेह...वो अपनत्व...वो प्रेम...मेरे जीवन का बहुत बड़ा सौभाग्य रहा है।

आज 25 दिसंबर का ये दिन भारतीय राजनीति और भारतीय जनमानस के लिए एक तरह से सुशासन का अटल दिवस है। आज पूरा देश अपने भारत रत्न अटल को, उस आदर्श विभूति के रूप में याद कर रहा है, जिन्होंने अपनी सौम्यता, सहजता और सहृदयता से करोड़ों भारतीयों के मन में जगह बनाई। पूरा देश उनके योगदान के प्रति कृतज्ञ है। उनकी राजनीति के प्रति कृतार्थ है।

21वीं सदी को भारत की सदी बनाने के लिए उनकी एनडीए सरकार ने जो कदम उठाए, उसने देश को एक नई दिशा, नई गति दी। 1998 के जिस काल में उन्होंने पीएम पद संभाला, उस दौर में पूरा देश राजनीतिक अस्थिरता से घिरा हुआ था। 9 साल में देश ने चार बार लोकसभा के चुनाव देखे थे। लोगों को शंका थी कि ये सरकार भी उनकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाएगी। ऐसे समय में एक सामान्य परिवार से आने वाले अटल जी ने, देश को स्थिरता और सुशासन का मॉडल दिया। भारत को नव विकास की गारंटी दी।

वो ऐसे नेता थे, जिनका प्रभाव भी आज तक अटल है। वो भविष्य के भारत के परिकल्पना पुरुष थे। उनकी सरकार ने देश को आईटी, टेलीकम्यूनिकेशन और दूरसंचार की दुनिया में तेजी से आगे बढ़ाया। उनके शासन काल में ही, एनडीए ने टेक्नॉलजी को सामान्य मानवी की पहुंच तक लाने का काम शुरू किया। भारत के दूर-दराज के इलाकों को बड़े शहरों से जोड़ने के सफल प्रयास किये गए। वाजपेयी जी की सरकार में शुरू हुई जिस स्वर्णिम चतुर्भुज योजना ने भारत के महानगरों को एक सूत्र में जोड़ा वो आज भी लोगों की स्मृतियों पर अमिट है। लोकल कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए भी एनडीए गठबंधन की सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसे कार्यक्रम शुरू किए। उनके शासन काल में दिल्ली मेट्रो शुरू हुई, जिसका विस्तार आज हमारी सरकार एक वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के रूप में कर रही है। ऐसे ही प्रयासों से उन्होंने ना सिर्फ आर्थिक प्रगति को नई शक्ति दी, बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों को एक दूसरे से जोड़कर भारत की एकता को भी सशक्त किया।

जब भी सर्व शिक्षा अभियान की बात होती है, तो अटल जी की सरकार का जिक्र जरूर होता है। शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मानने वाले वाजपेयी जी ने एक ऐसे भारत का सपना देखा था, जहां हर व्यक्ति को आधुनिक और गुणवत्ता वाली शिक्षा मिले। वो चाहते थे भारत के वर्ग, यानि ओबीसी, एससी, एसटी, आदिवासी और महिला सभी के लिए शिक्षा सहज और सुलभ बने।

उनकी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कई बड़े आर्थिक सुधार किए। इन सुधारों के कारण भाई-भतीजावाद में फंसी देश की अर्थव्यवस्था को नई गति मिली। उस दौर की सरकार के समय में जो नीतियां बनीं, उनका मूल उद्देश्य सामान्य मानवी के जीवन को बदलना ही रहा।

उनकी सरकार के कई ऐसे अद्भुत और साहसी उदाहरण हैं, जिन्हें आज भी हम देशवासी गर्व से याद करते है। देश को अब भी 11 मई 1998 का वो गौरव दिवस याद है, एनडीए सरकार बनने के कुछ ही दिन बाद पोकरण में सफल परमाणु परीक्षण हुआ। इसे ‘ऑपरेशन शक्ति’ का नाम दिया गया। इस परीक्षण के बाद दुनियाभर में भारत के वैज्ञानिकों को लेकर चर्चा होने लगी। इस बीच कई देशों ने खुलकर नाराजगी जताई, लेकिन तब की सरकार ने किसी दबाव की परवाह नहीं की। पीछे हटने की जगह 13 मई को न्यूक्लियर टेस्ट का एक और धमाका कर दिया गया। 11 मई को हुए परीक्षण ने तो दुनिया को भारत के वैज्ञानिकों की शक्ति से परिचय कराया था। लेकिन 13 मई को हुए परीक्षण ने दुनिया को ये दिखाया कि भारत का नेतृत्व एक ऐसे नेता के हाथ में है, जो एक अलग मिट्टी से बना है।

उन्होंने पूरी दुनिया को ये संदेश दिया, ये पुराना भारत नहीं है। पूरी दुनिया जान चुकी थी, कि भारत अब दबाव में आने वाला देश नहीं है। इस परमाणु परीक्षण की वजह से देश पर प्रतिबंध भी लगे, लेकिन देश ने सबका मुकाबला किया।

वाजपेयी सरकार के शासन काल में कई बार सुरक्षा संबंधी चुनौतियां आईं। करगिल युद्ध का दौर आया। संसद पर आतंकियों ने कायरना प्रहार किया। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले से वैश्विक स्थितियां बदलीं, लेकिन हर स्थिति में अटल जी के लिए भारत और भारत का हित सर्वोपरि रहा।

जब भी आप वाजपेयी जी के व्यक्तित्व के बारे में किसी से बात करेंगे तो वो यही कहेगा कि वो लोगों को अपनी तरफ खींच लेते थे। उनकी बोलने की कला का कोई सानी नहीं था। कविताओं और शब्दों में उनका कोई जवाब नहीं था। विरोधी भी वाजपेयी जी के भाषणों के मुरीद थे। युवा सांसदों के लिए वो चर्चाएं सीखने का माध्यम बनतीं।

कुछ सांसदों की संख्या लेकर भी, वो कांग्रेस की कुनीतियों का प्रखर विरोध करने में सफल होते। भारतीय राजनीति में वाजपेयी जी ने दिखाया, ईमानदारी और नीतिगत स्पष्टता का अर्थ क्या है।

संसद में कहा गया उनका ये वाक्य... सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए...आज भी मंत्र की तरह हम सबके मन में गूंजता रहता है।

वो भारतीय लोकतंत्र को समझते थे। वो ये भी जानते थे कि लोकतंत्र का मजबूत रहना कितना जरुरी है। आपातकाल के समय उन्होंने दमनकारी कांग्रेस सरकार का जमकर विरोध किया, यातनाएं झेली। जेल जाकर भी संविधान के हित का संकल्प दोहराया। NDA की स्थापना के साथ उन्होंने गठबंधन की राजनीति को नए सिरे से परिभाषित किया। वो अनेक दलों को साथ लाए और NDA को विकास, देश की प्रगति और क्षेत्रीय आकांक्षाओं का प्रतिनिधि बनाया।

पीएम पद पर रहते हुए उन्होंने विपक्ष की आलोचनाओं का जवाब हमेशा बेहतरीन तरीके से दिया। वो ज्यादातर समय विपक्षी दल में रहे, लेकिन नीतियों का विरोध तर्कों और शब्दों से किया। एक समय उन्हें कांग्रेस ने गद्दार तक कह दिया था, उसके बाद भी उन्होंने कभी असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया।

उन में सत्ता की लालसा नहीं थी। 1996 में उन्होंने जोड़-तोड़ की राजनीति ना चुनकर, इस्तीफा देने का रास्ता चुन लिया। राजनीतिक षड्यंत्रों के कारण 1999 में उन्हें सिर्फ एक वोट के अंतर के कारण पद से इस्तीफा देना पड़ा। कई लोगों ने उनसे इस तरह की अनैतिक राजनीति को चुनौती देने के लिए कहा, लेकिन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी शुचिता की राजनीति पर चले। अगले चुनाव में उन्होंने मजबूत जनादेश के साथ वापसी की।

संविधान के मूल्य संरक्षण में भी, उनके जैसा कोई नहीं था। डॉ. श्यामा प्रसाद के निधन का उनपर बहुत प्रभाव पड़ा था। वो आपात के खिलाफ लड़ाई का भी बड़ा चेहरा बने। इमरजेंसी केबाद 1977 के चुनाव से पहले उन्होंने ‘जनसंघ’ का जनता पार्टी में विलय करने पर भी सहमति जता दी। मैं जानता हूं कि ये निर्णय सहज नहीं रहा होगा, लेकिन वाजपेयी जी के लिए हर राष्ट्रभक्त कार्यकर्ता की तरह दल से बड़ा देश था, संगठन से बड़ा, संविधान था।

हम सब जानते हैं, अटल जी को भारतीय संस्कृति से भी बहुत लगाव था। भारत के विदेश मंत्री बनने के बाद जब संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण देने का अवसर आया, तो उन्होंने अपनी हिंदी से पूरे देश को खुद से जोड़ा। पहली बार किसी ने हिंदी में संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात कही। उन्होंने भारत की विरासत को विश्व पटल पर रखा। उन्होंने सामान्य भारतीय की भाषा को संयुक्त राष्ट्र के मंच तक पहुंचाया।

राजनीतिक जीवन में होने के बाद भी, वो साहित्य और अभिव्यक्ति से जुड़े रहे। वो एक ऐसे कवि और लेखक थे, जिनके शब्द हर विपरीत स्थिति में व्यक्ति को आशा और नव सृजन की प्रेरणा देते थे। वो हर उम्र के भारतीय के प्रिय थे। हर वर्ग के अपने थे।

मेरे जैसे भारतीय जनता पार्टी के असंख्य कार्यकर्ताओं को उनसे सीखने का, उनके साथ काम करने का, उनसे संवाद करने का अवसर मिला। अगर आज बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है तो इसका श्रेय उस अटल आधार को है, जिसपर ये दृढ़ संगठन खड़ा है।

उन्होंने बीजेपी की नींव तब रखी, जब कांग्रेस जैसी पार्टी का विकल्प बनना आसान नहीं था। उनका नेतृत्व, उनकी राजनीतिक दक्षता, साहस और लोकतंत्र के प्रति उनके अगाध समर्पण ने बीजेपी को भारत की लोकप्रिय पार्टी के रूप में प्रशस्त किया। श्री लालकृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गजों के साथ, उन्होंने पार्टी को अनेक चुनौतियों से निकालकर सफलता के सोपान तक पहुंचाया।

जब भी सत्ता और विचारधारा के बीच एक को चुनने की स्थितियां आईं, उन्होंने इस चुनाव में विचारधारा को खुले मन से चुन लिया। वो देश को ये समझाने में सफल हुए कि कांग्रेस के दृष्टिकोण से अलग एक वैकल्पिक वैश्विक दृष्टिकोण संभव है। ऐसा दृष्टिकोण वास्तव में परिणाम दे सकता है।

आज उनका रोपित बीज, एक वटवृक्ष बनकर राष्ट्र सेवा की नव पीढ़ी को रच रहा है। अटल जी की 100वीं जयंती, भारत में सुशासन के एक राष्ट्र पुरुष की जयंती है। आइए हम सब इस अवसर पर, उनके सपनों को साकार करने के लिए मिलकर काम करें। हम एक ऐसे भारत का निर्माण करें, जो सुशासन, एकता और गति के अटल सिद्धांतों का प्रतीक हो। मुझे विश्वास है, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के सिखाए सिद्धांत ऐसे ही, हमें भारत को नव प्रगति और समृद्धि के पथ पर प्रशस्त करनें की प्रेरणा देते रहेंगे।