महात्मा मंदिर, गांधीनगर

मंच पर विराजमान मंत्रे परिषद के मेरे साथी, राज्य के शिक्षा मंत्री श्रीमान भूपेन्द्र सिंह जी, प्रो. वसुबेन, इस कार्यक्रम को विशेषरूप से सहयोग दे रहे हैं ऐसे इटली के एम्बैसेडर हिज़ एक्सेलेन्सि डेनियल मानुसिनि, प्रो. दिनेश सिंह जी, प्रो. राजन वेलुकर जी, प्रो. चार्ल्सो जुकोस्‍की, प्रो. लता रामचन्द्र, डॉ. किशोर सिंह जी, मंच पर विराजमान सभी महानुभाव और देश के कोने-कोने से आए हुए शिक्षा क्षेत्र के सभी विद्वज जनों और विद्यार्थी मित्रों, मैं गुजरात की धरती पर आप सभी का बहुत-बहुत स्वातगत करता हूं..!

जिस स्थान पर हमारा ये कार्यक्रम चल रहा है, इस महात्मा मंदिर का निर्माण उस दौरान हुआ था, जब 2010 में हम गुजरात का गोल्डन जुबली ईयर मना रहे थे। उस समय हमने सोचा था कि ये गांधीनगर है तो गांधीजी की याद में भी यहां कुछ व्यवस्थाएं विकसित होनी चाहिए। आपको जानकर आनंद और आश्चर्य होगा कि हमारे देश में भी ऐसा निर्माण 182 दिनों में हो सकता है..! हमने इस महात्मा मंदिर का प्रमुख हिस्सा 2010 में कुल 182 दिनों में तैयार करके, 2011 में वाईब्रेंट समिट यहां आयोजित की थी। कहने का तात्प‍र्य यह है कि हमारे देश के पास अपार क्षमताएं हैं, विपुल संभावनाएं हैं और ढ़ेर सारी आकांक्षाएं हैं, आवश्यमकता है कि उसे समझें, उसे जोड़ें और देशवासी इसके लिए जुट जाएं, तो सब कुछ संभव होगा..!

हम लगातार विचार-विमर्श का प्रयास कर रहे हैं और हमारा एक कन्वींक्शन है कि देश के भिन्ने-भिन्न भागों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, देश के विद्वजनों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, दुनिया से भी बहुत कुछ सीखकर हमारे देश के काम लाया जा सकता है। यह अवसर हम सभी गुजरात वालों के लिए सीखने का अवसर है, जानने का अवसर है, समझने का अवसर है और आप सभी हमें ज्ञान देने के लिए, शिक्षा देने के लिए इतनी बड़ी मात्रा में आएं हैं, इसलिए मैं विशेष रूप से आप सभी का हृदय से अभिनंदन करता हूं, स्वागत करता हूं..!

एक प्रकार से भारत का युवा मन, भारत की शिक्षा का स्वरूप, एक लघु रूप में आज इस महात्मा मंदिर में इक्ट्ठा हुआ है। मुझे बताया गया है कि इस कार्यक्रम में संघ शासित प्रदेश और राज्य‍ मिलाकर कुल 33 राज्यों से लोग आएं हैं और इस समारोह में शरीक हुए हैं। हिंदुस्तान के 100 से अधिक वाइस चांसलर और डायरेक्टर इस समारोह में मौजूद हैं। इस समिति में 84 ऐसे स्कॉ‍लर और इनोवेटर आएं है जिनकी विश्व में गणना होती है, उन सभी ने यहां आकर कॉन्फ्रेंस के भिन्न-भिन्न हिस्सों को सम्बोधित किया है। 1500 से अधिक प्रोफेसर और टीचर्स इसमें शरीक हुए हैं। गुजरात के 1500 और गुजरात के बाहर से 3000 से ज्यादा विद्यार्थी यहां मौजूद हैं। इसके अलावा, इस समिट में तकरीबन 40 देशों के 200 से अधिक छात्र भी मौजूद हैं। शिक्षा को लेकर किए गए इस प्रयास मे लोगों की उपस्थिति को देखा जाए तो भी, आप कल्पना कर सकते हैं कि यह प्रयास कितना महत्वपूर्ण है। मैं इस प्रयास में सहयोग देने वाले, इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए हमारे डिपार्टमेंट के सभी लोगों को, यूर्नीवर्सिटी के सभी साथियों और देश के अन्य कोनों से मदद करने वाले सभी लोगों का हृदय से अभिनंदन करता हूं, उनका धन्यवाद करता हूं..!

Shri Narendra Modi's speech at the National Education Summit, Gandhinagar

भाईयों-बहनों, हम सभी लम्बे अरसे से एक बात सुनते आ रहे हैं और बोलते भी आ रहे हैं -“यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी नामों-निशां हमारा... कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी...” आखिर वो कौन सी बात है, कभी तो सोचें, क्या कारण है कि हजारों साल पुरानी परम्परा, हजारों साल पुराना ये समाज आज तक है, ये हस्ती मिटी क्यों नहीं..! हमले कम नहीं हुए है, संकट कम नहीं आए, दुविधाएं भी आई, प्रलोभन भी था, सब कुछ हुआ, लेकिन इसके बावजूद भी हस्ती मिटती नहीं हमारी, इसका कारण क्या है..? मित्रों, इस बात के कई कारण कई लोग बता सकते हैं और वह हो भी सकते हैं, लेकिन मैं जो कारण देख रहा हूं, वह यह है कि हमारे पूर्वजों ने जो इंवेस्टमेंट किया था, वह ह्यूमन वेल्थ के लिए किया था, उन्होने मानव समाज के निर्माण के लिए शक्ति जुटाई थी, हर युग में, हर समाज में, हर नेतृत्व में, निरंतर विकास किया था, व्यक्ति के निर्माण पर बल दिया गया था और व्यक्ति के निर्माण में शिक्षा-दीक्षा, गुरू-शिष्य, संस्कार-संक्रमण जैसी उत्तम परम्पाराओं को विकसित किया था, जिसके कारण एक ऐसे समाज की रचना हुई, जो ज्ञान पर आधारित था, उसके सारे पैरामीटर डायनामिक थे, वे बदलाव को स्वीकार करने वाली व्यवस्था वाले थे, युगानुकूल परिवर्तन को स्वीकार करने वाला समाज बनाया, ये ज्ञान की परम्प्रावाली हमारी जो विरासत है, इन्ही के भरोसे हम कह सकते हैं कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी..! और इसलिए अंग्रेजों ने बड़ी चतुराई और चालाकी से इसी पर वार करने की कोशिश की थी। लॉर्ड मैकॉले ने उस काल में शिक्षा व्यावस्थाओं और पम्पराओं पर हमला बोला था, बाकी किसी ने हमें हिलाया-डुलाया और ड़राया नहीं, लेकिन ये एक ऐसा इंजेक्शन हो गया, जिसने हमारी भीतर की शक्ति को झकझोर डाला..!

समय की मांग थी कि देश की आजादी के बाद विश्व को क्या चाहिए, आने वाला कल कैसा होगा, समाज कैसा होना चाहिए, क्याक ये देश विश्व को कुछ देने का सामर्थ्ये रखता है या नहीं, क्या इस देश को विश्व को कुछ देने का मन बनाना चाहिए या नहीं, क्या‍ ऐसे बड़े सपने सजोने चाहिए या नहीं, अगर इन सभी मूलभूत बातों को उठाया होता और उसी को लेकर हम आगे चले होते, और हमारी पुरानी विरासत की अच्छा ईयों को आगे बढ़ाते हुए, उसमें आवश्यक आधुनिकताओं के बदलाव को स्वीकार करते हुए हम नवीन व्यवस्थाओं को विकसित करने का प्रयास करते, तो आज हम विश्व को कुछ दे पाने के योग्य बन जाते..! भाईयों-बहनों, अभी भी वक्त है, कुछ कठिनाईयां जरूर होगी लेकिन रास्ते अभी भी खोजे जा सकते है, मंजिलें अभी भी पार की जा सकती हैं और मानव जाति की कल्यांण के लिए नई ऊर्जा का स्त्रोत हमारी भारत मां की पवित्र भूमि बन सकती है, ऐसे सपने हमें संजोने चाहिए..!

आज कठिनाई क्या हुई है, कभी हम सोचें कि हमारा शिशु मंदिर का बालक, यूर्नीवर्सिटी में रिसर्च करने तक की यात्रा में क्याम कोई लिंक है..? हर जगह पर हमें बिखराव नजर आता है..! अगर पूरी विकास यात्रा इंटीग्रल नहीं है, अगर वो सर्किल के रूप में है, छोटा सर्कल, बड़ा सर्कल, उससे बड़ा सर्कल.... तो मेरी समझ के मुताबिक वह मनुष्यै के विकास से नहीं जुड़ेगा। अगर वह छोटे सर्कल में है तो वहीं रहेगा, बड़े सर्कल में है तो वहीं रहेगा, उससे बड़े सर्कल में है तो वहीं रहेगा, और उसी में घूमता रहेगा। अगर हम एक छोर से शुरू करें, और राउंड करते-करते उसी सर्कल को बढ़ाते चलें, व्यक्तित्व का विस्तार करते चलें, जो व्यूक्ति से लेकर समूह तक, समूह से समाज तक, समाज से समष्टि तक अगर उस यात्रा को आगे बढ़ाया जाएं तो उससे व्यक्तित्व का विकास होगा। हम वो लोग हैं, जो कहते हैं कि ‘नर करणी करे तो नारायण हो जाए’, हमारे यहां ऐसा नहीं माना जाता है कि ईश्वर पैदा होते हैं, हमारे यह माना जाता है कि हमारी सोच में इतना सामर्थ्य‍ है कि व्यक्ति के विकास को ईश्वर की ऊंचाई तक ले जाया जा सकता है..!

हमें आवश्याकता है कि नई व्यवस्थाओं को विकसित किया जाए। हमने एक छोटा प्रयास किया, हम सभी जानते है कि हमारे देश में एक व्यंवस्था है जो अंग्रेजों के ज़माने से आई होगी, वो यह है कि जब भी हम स्कूल से पढ़कर निकलते हैं तो हमें एक कैरेक्टार सर्टिफिकेट दिया जाता है, और हम जहां भी जाते हैं वह कैरेक्टैर सर्टिफिकेट दिखाते रहते हैं। और देश के करोड़ों-करोड़ों नागरिकों के कैरेक्टर सर्टिफिकेट के शब्दे एक ही प्रकार के हैं, एक ही सॉफ्टवेयर से निकले हुए कैरेक्टोर सर्टिफिकेट हैं..! देने वाले को भी पता है क्यों दे रहा है और लेने वाले को भी पता है क्यों ले रहा है, फिर भी गाड़ी चल रही है, क्या किसी ने सवाल पूछा कि ये क्यों..? आखिर इसका क्या, उपयोग है..? और अगर सर्टिफिकेट मिल गया तो क्या मान लिया जाए कि वह व्यक्ति सही है..? मैनें अभी हमारी सरकार में एक सुझाव दिया है और उस पर काम चल रहा है कि क्यूं न हम बालक को एप्टीट्यूड सर्टिफिकेट दें..! जब वह स्कूल में पढ़ता है तो कोई ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जो उसका लगातार आर्ब्जूवेशन करता रहे, इसके लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाए, बारी-बारी से उनसे संवाद करके पता किया जाए, उनकी दिनचर्या को देखा जाए, उनकी फैमिली को देखा जाए, तो इससे उसके बारे में पता चला चलेगा, जैसे-कि यह बच्चा बड़ा साहसी है, ये इसका एप्टीट्यूड है, और उसे उसी क्षेत्र में प्रेरित किया जाए, जैसे कि सेना के जवानों से मिलवाया जाए, कभी आर्मी कैन्टान्मेंट में ले जाया जाए, ऐसे बच्चों का टूर प्रोग्राम भी वहीं रखा जाएं तो इससे उसे लगेगा कि हां यार, जिन्दगी ऐसे बनानी चाहिए..! स्कूल के दस बच्चें हैं जिनके हाथ में कोई भी चीज आई तो वह चीजों को तोड़-फोड़ कर देखते हैं कि इसके अंदर क्या है, मतलब उसका एप्टीट्यूड रिसर्च करने वाला है, वह जानना-समझना चाहता है, तो ऐसे बच्चों को इक्ट्ठा करके उनका प्रोग्राम किसी अच्छी मैनुफैक्चरिंग कम्पनी जहां ऐसे रिसर्च होते हों, वहां ले जाओं तो वह बड़ा मन से देखेगें..! लेकिन हमारे यहां टूर प्रोग्राम होता है तो एक साथ सब उदयपुर देखने जाएंगे, सब ताजमहल देखने जाएंगे..! कहने का तात्प्र्य यह है कि हम माइंड एप्लाई ही नहीं करते, चलती है गाड़ी तो चलने दो..! क्या इसके लिए भी पार्लियामेंट में कानून बनाना पड़ेगा, कोई संशोधन करना पड़ेगा..? ऐसा नहीं है, मित्रों। हमने सिलेबस को बल दिया है, आवश्याकता है कि हम एक-एक बच्चेको सेलिब्रिटी मानें और उसके जीवन पर बल दें तो हम स्थितियों को बदल सकते हैं..!

Shri Narendra Modi's speech at the National Education Summit, Gandhinagar

मित्रों, समाज और इन व्यवस्था ओं का डिस्कंनेक्टक कैसा हुआ है..! शायद चार-छ: महीने पहले की बात होगी, मैं रात को देर से आया तो सोचा कि दिन भर की क्या खबरें होगी इसलिए टीवी ऑन किया, एक टीवी चैनल पर विवाद चल रहा था - किसी स्कूल में बच्चे सफाई का काम कर रहे थे, झाडू-पोछा कर रहे थे, अपना स्कूल साफ कर रहे थे, और विवाद इस बात पर था कि बच्चों से ऐसा काम क्यों लिया जाता है..? मैं हैरान था, हमारे देश में तो गांधी जी भी कहते थे कि श्रम हमारी शिक्षा के केंद्र में होना चाहिए, उससे सारी चीजें करवानी चाहिए, तभी एक बालक तैयार होगा और हमारे देश का वर्तमान मीडिया इस बात पर बहस कर रहा था..! श्रम कार्य, हमारे देश में शिक्षा का हिस्सा था, लेकिन आज माना जाता है कि ये शिक्षा के व्यापारी लोग बच्चों का शोषण करते हैं, ये करते हैं, वो करते हैं... परन्तु यदि हमें व्याक्तित्व का विकास करना हो, तो समाज को भी प्रशिक्षित करना पड़ेगा कि इसका क्या‍ महत्व है, क्या जरूरत है..! मैं इसे नहीं मानता हूं। जैसे हमारी पूरी सृष्टि की जो रचना है, तो हमारी मैथोलॉजी में जो कॉन्सेप्ट है, उसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश की बात है, जिस प्रकार सृष्टि में तीनों का होना जरूरी है उसी प्रकार, शिक्षा के माध्यम से व्यक्तित्व, के विकास में सिर्फ हेड से काम नहीं चलेगा, सिर्फ दिमाग में सब भरा जाएगा तो वह रोबोट की तरह कहीं उगलता रहेगा और उससे आगे दुनिया नहीं चलेगी, इसलिए सिर्फ हेड नहीं बल्कि हेड, हार्ट और हैंड, तीनों का मेल होना जरूरी है जैसे पूरी सृष्टि के लिए ब्रह्मा, विष्णु , महेश जरूरी है..! व्यक्ति की ऊर्मियां, उसकी भावनाएं, उसके भीतर पड़ी हुई ललक, उसके हृदय का स्पंदन, ये सब उसके व्यक्तित्व के साथ जुड़ा हुआ होता है। उसका हेड जितना सामर्थ्य्वान होगा, जितना फर्टाइल होगा, जितना इनोवेटिव होगा, जितना क्रिएटिव होगा, वह एक ताकत के रूप में उभरेगा, लेकिन अगर उसके हैंड बेकार है, उनमें कौशल नहीं है, अगर वह किसी के काम नहीं आते हैं, किसी के काम में जुड़ते नहीं है, तो उस व्यक्ति और एक अच्छी किताब के बीच कोई फर्क नहीं है..! हमें इंसान किताब के रूप में नहीं बल्कि जीती-जागती व्यवस्था के रूप में चाहिए, जो व्यवस्था!ओं को विकसित करने का हिस्सा बनना चाहिये। इसलिए, हमें हमारी शिक्षा को उस तराजु पर तौलने की आवश्यकता है कि वह मनुष्य के इस रूप को बनाने में सक्षम है या नहीं..!

प्राइमरी स्कूल में जो बच्चे होते हैं, उनमें से कुछ छूट जाते हैं, कुछ सेकेंडरी में जाते हैं, फिर कुछ छूट जाते हैं, कुछ हॉयर सेकेंडरी में जाते हैं, फिर कुछ छूट जाते है, कुछ कॉलेज में जाते हैं, और कॉलेज में भी कुछ इसलिए जाते हैं कि जाएं तो जाएं कहां...। इसके बाद, वो कहीं नौकरी के लिए जाते हैं तो उनसे कहा जाता है कि तुम्हारे पास सर्टिफिकेट है, डिग्री है, वो सब ठीक है, लेकिन क्या तुम्हे ये आता है..? तो छात्र बोलता है कि नहीं, हमें कॉलेज में ये तो नहीं सिखाया गया। फिर उस छात्र को लगता है कि मैनें अपनी जिन्देगी क्यों खराब की, चार साल कॉलेज में क्यों गया..? हमारी शिक्षा व्यवस्था से उस प्रकार का जीवन तैयार हों, उस प्रकार की शख्सियत तैयार हों, उस प्रकार की शक्ति तैयार हों, जिसे समाज खोजता हो..! लोग ऐसा कहें कि अरे मेरे यहां आओ, मुझे जरूरत है, तुम काम करो, तुम्हारे पास ताकत है, हम मिलकर कुछ करेगें... ये स्थिति हमें पैदा करनी चाहिए। और हमारी कोशिश यह है कि व्यक्तित्व को उस दिशा में ले जाना चाहिए..!

उसी प्रकार से, हमारे देश में व्हाइट कॉलर जॉब ने हमारा बहुत नुकसान किया है, लोगों की सोच बन गई है कि छोटा-मोटा काम करना बुरा है, हालांकि अब धीरे-धीरे बदलाव आने लगा है, यूथ को लगने लगा है कि वह कुछ नया करें, अलग करें, अच्छा करें। हम समाज का ये स्वभाव कैसे बनाएं, कि ऑफिस में फाइलों में साइन करने के बजाय, या बैंकों में चेकबुक पर काम करने के बजाय भी तो दुनिया में कोई काम हो सकता है..! एक बार मैं एक एग्रीकल्चर के कार्यक्रम में गया था, हमारे कृषि विभाग का एक कार्यक्रम था, जिसमें किसानों को अवॉर्ड देना था। मैनें जाने से पहले सोचा कि सब वयोवृद्ध, तपोवृद्ध लोग होगें। उस दिन मुझे लगभग 35 कृषिकारों को अवॉर्ड देना था, और उस दिन मुझे बहुत खुशी हुई क्योंकि उसमें से कम से कम 27-28 किसान, 35 से कम आयु वाले जींस-पैंट पहने हुए किसान थे, मन को बहुत आनंद हुआ कि नई पीढ़ी में भी बदलाव आया है..! कुछ दिनों पहले, मुझसे विदेश से एक-दो लड़के मिलने आए थे, वो बोले कि वह कुछ करना चाहते हैं। मैनें कहा कि क्या सोचा है..? वो बोले कि वह तबेला खोलेंगे, गाय-भैंस रखेगें, उनका लालन-पालन करेगें और दुध का मार्केट कैप्चर करूंगा। मैनें कहा गुजरात में क्या करोगे, यहां अमूल है, जो दिनेश सिंह की रगों तक पहुंच गया है..! उसने कहा कि मैं करूंगा और करके दिखाउंगा..! मित्रों, ये जो मन की रचना तैयार होती है वह सिर्फ किताबों से नहीं होती है, हमें वो एन्वॉयरमेंट तैयार करना पड़ेगा। क्या हमने वो माहौल तैयार किया है..? हमारी यूनिवर्सिटी के कैम्पस में, हमारे कॉलेज में, जहां सभी आपस में ये बातें करते हैं कि किसने कितनी सेंचुरी मारी, किसने कितने रन बनाएं और उसी में सारा समय जाता है। कौन सा फिल्मं शो चल रहा है, अगले फ्राइडे कौन सी मूवी आएगी, किसने ज्यादा कमाई की, नई फैशन में क्या आया है... छात्र इसी बारे में बातें करते हैं और उनका सारा समय इसी में जाता है..! क्या कैम्पस में दुनिया कहां जा रही है, जगत में किस प्रकार की आधुनिक, आर्थिक, सामाजिक और वैज्ञानिक तकनीकी आ रही है और उनका क्या प्रभाव है, क्या ऐसी सहज बातों का माहौल बनता है..? लेकिन एक-आध प्रोफेसर ऐसा होता है जो माहौल बदल देता है, जिसके कारण बदलाव आता है। कहा जाता है कि एक समय में वाराणसी का माहौल ऐसा था, कि लोग आते-जाते शास्त्र में बात करते थे, जीवन की समस्याओं की चर्चा भी शास्त्रों को वर्णित करके करते थे, शास्त्र बहुत सहज रूप से उनके जीवन का हिस्सा बन गया था, इसी कारण सदियों बाद भी वाराणसी उसकी पंडिताई के लिए जाना जाता है और उस समय ये सब कुछ इंफॉर्मल था। क्यों न हम ऐसी व्यवस्थाओं को विकसित करने की दिशा में एक एन्वॉयरमेंट डेपलप करें..!

सारी दुनिया जानती है कि 20 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में इंर्फोमेशन टेक्नो्लॉजी आई और रेवोल्यूशन हुआ, उसने जीवन पर बहुत बड़ा इम्पे्क्टा डाल दिया। 21 वीं सदी में ईटी यानि एन्वॉहयरमेंट टेक्नोलॉजी का प्रभाव रहने वाला है। क्या अभी से हमने अपने आपको ईटी के लिए तैयार किया है..? क्या हमारे इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट्स, हमारा मैनुफैक्चकरिंग सेक्टर, हमारे रिसर्चर ईटी के लिए तैयार हैं..? सारी दुनिया में एन्वॉयरमेंट टेक्नोहलॉजी एक पैरामीटर बन रहा है। क्या हमारे पास ऐसा बुद्धिधन है, जो एन्वॉयरमेंट टेक्नोलॉजी में पूरे विश्व को लीड़ कर सकें, उसे नए रास्ते दिखाएं..? अगर आईटी के माध्यम से हम जगत में अपनी जगह बना पाए हैं, तो इंजीनियरिंग स्किल के माध्यम से 21 वीं सदी में ईटी के क्षेत्र में भी दुनिया में अपनी जगह बना सकते हैं, दुनिया की आवश्य्कताओं की पूर्ति कर सकते हैं..!

आईटीआई, टेक्नोलॉजी फील्ड़ में स्किल डेवलपमेंट में शिक्षा के स्तर पर सबसे छोटी ईकाई होती है। हमने अपने राज्य में आईटीआई में छोटे-छोटे बदलाव किए हैं। हमारे राजेन्द्र् जी इंटरडिसीप्लेन के विषय के बारे में अभी कह रहे थे, कुछ चीज़ें कैसे बदलाव लाती हैं, और हमने इसमें प्रतिष्ठा देने के विषय में एक छोटा सा प्रयोग किया है। जो बच्चे 7 वीं कक्षा, 8 वी कक्षा में होते हैं और आगे पढ़ नहीं पाते हैं, उनका मन नहीं लगता है या संजोग नहीं हो पाता, और वह रोजी-रोटी कमाने के लिए कुछ काम सीखते हैं जैसे प्लैम्बर, टर्नर, फिटर, वायरमैन, आदि, और कोई सलाह देता है तो आईटीआई में चले जाते हैं कि इनमें से कुछ बन जाएंगे। वहां जाने के बाद, उसके अंदर मैच्योरिटी आती है, उसे लगता है कि स्कूल छूट गया तो अपना जीवन बर्बाद कर दिया, अब उसे कुछ करना चाहिए, लेकिन व्यवस्था ऐसा होती है कि दरवाजे बंद हो जाते हैं। उसे मन में इच्छा जग जाती है लेकिन हम उसकी इच्छा के अनुसार कोई व्यवस्थां विकसित नहीं करते हैं। इसी को लेकर हमने एक छोटा सा प्रयास किया, कि जिस बच्चेने 7 वीं, 8 वीं, और 9 वीं से कक्षा से स्कूल छोड़ दिया है और मान लीजिए कि वह दो साल आईटीआई करता है, तो हम उसे 10 वीं पास मानते हैं और उसे सर्टिफिकेट दे देते हैं..! पहले वो छात्र आईटीआई कहने से शर्माता था, कोई पूछता था कि क्याऔ पढ़ते हो, तो वह दूसरे विषय पर ही बात करने लगता था, उसे शर्म आती थी, लेकिन इस बदलाव को करने के बाद, छात्र में कॉन्फीडेंस बढ़ा, वो कहने लगा कि नहीं 10 वीं पास हूं। जो छात्र 10 वीं के बाद आईटीआई में जाता है और दो साल आईटीआई करता है उसे हमने 12 वीं पास के बराबर दर्जा दे दिया, वो कहने लगा कि हां मैने, 12 वीं पास किया है। 12 वीं के बराबर होने के नाते, उसके लिए डिप्लोमा इंजीनियरिंग के दरवाजे हमने खोल दिए, यूं तो उसके स्कूल 8 वीं में ही छोड़ दिया था, लेकिन इस आईटीआई और उसके एप्टीट्यूट के कारण उसे अवसर मिल गया और वह इंजीनियरिंग के डिप्लोमा में चला गया। और उसकी इन विषयों में रूचि होने के कारण, 8 वीं में पढ़ाई छोड़ने के बाद भी इंजीनियरिंग की ओर चला गया, डिग्री की ओर चला गया..! मित्रों, हमें दरवाजे खोलने होगें..! 8वीं, 9वीं, 10 वीं के कारणों से जिन छात्रों का जीवन रूक गया है, उसको रूकने नहीं देना होगा। हमें ऐसे छात्रों के लिए दरवाजे खोलने होगें, उन्हे अवसर देना होगा..! इसके लिए यहां हमारे शिक्षाशास्त्री बैठे हैं, हम इस बदलाव को कैसे एडॉप्ट कर सकते हैं, और उसे एडॉप्टए करने के बाद, उसके विकास के लिए क्या कर सकते हैं..? क्यों न हम बच्चों को उनके एप्टीट्यूड के हिसाब से काम दें..! मैने गुजरात सरकार में एक प्रयोग किया है, वैसे सरकारी व्यवस्थां में इस प्रकार का प्रयोग करने के लिए बहुत बड़ी हिम्मत लगती है, जो मेरे अंदर ज्या्दा ही है..! सरकार में पद्धति ऐसी होती है कि हर अफसर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तक निर्धारित दायरे में अपना-अपना काम करता है और उसी दायरे में सोचता है, धीरे-धीरे वह रोबोट जैसा हो जाता है, उसे मालूम होता है कि दिन में 6 फाइल आने वाली हैं और उसे ऐसा-ऐसा करना है..! इसको लेकर हमने छोटा सा प्रयोग किया, हमने अफसरों के लिए ‘स्वान्त: सुखाय्’ नाम का एक कार्यक्रम बनाया, जिसमें सरकारी कामकाज के अलावा, उसके मन को आनंद देने वाले किसी एक काम को वो चुनें और करें। इस कार्यक्रम को लेकर मुझे इतने आश्चर्यजनक परिणाम मिले हैं कि हमारे सैं‍कड़ों सरकारी अधिकारियों ने उनकी निर्धारित नौकरी के अलावा, अपनी पसंद का एक काम लिया, उसमें जी-जान से जुट गए, और वह इतने इनोवेटिव होते हैं, इतने रिर्सोस मोबिलाइज़ करते हैं और साल-दो साल में उस काम को पूरा करते हैं। जब ट्रांसफर हो जाता है, तो ट्रांसफर होने के बाद भी अपने यार, दोस्तो और रिश्तेोदार आते हैं तो उनको साथ लेकर जाते हैं और बताते हैं कि मैं जब यहां कलेक्टबर था, तो ये काम किया था। इससे उसके जीवन को अत्यंत संतोष मिलता है, क्योंकि उसके एप्टीमट्यूट के अनुकूल उसे एक अवसर मिलता है, दिया जाता है..! अगर ऐसा परिवर्तन कट्टर सरकारी व्यवस्था में हो सकता है तो शिक्षा में आसानी से हो सकता है, ये मेरा मत है..!

इसलिए मित्रों, ये जो हमारा मंथन है, जो मोदी कह रहा है वो अल्टीमेट नहीं हो सकता है और न होना चाहिए, लेकिन इस ज्योत को जलाने की शुरूआत की जाए, इसे जलाया जाए, इसे स्पार्क किया जाए..! मिलें, बैठें और सपना देखें, 21 वीं सदी में विश्व को कुछ देने का सामर्थ्य देखें..! लोग कहते है कि 21 वीं सदी हिंदुस्तान की सदी है, इसका मतलब क्यां है..? इसके बारे में कुछ तो डिफाइन करो, हिंदुस्तान की सदी कैसे है, क्यों है..? परन्तु यदि हम पुरातन काल में देखें कि जब-जब मानव जाति ज्ञान के युग में जी रही थी, हर बार हिंदुस्तान ने मानव जाति का नेतृत्व किया था। 21 वीं सदी भी नॉलेज की सदी है, ज्ञान की सदी है और अगर यह ज्ञान की सदी है, तो हम लोग इसमें काफी कुछ कॉन्ट्रीब्यूट कर सकते हैं और हमें लीड करना चाहिए। हमारी दूसरी पॉजीटिव शक्ति यह है कि हम विश्व में सबसे युवा देश हैं। वी आर द यंगेस्ट नेशन..! हमारे देश की 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है। जिस देश के पास इतनी जवानी भरी हो, वो देश क्या नहीं कर सकता है..! डेमोग्रफिक डिवीडेंट हमारी सबसे बड़ी ताकत है..! हमारे देश के नौजवान आईटी के माध्यम से दुनिया को अपनी उंगलियों पर नचाने की ताकत रखते हैं..! ये जो हमारी डेमोग्राफिक स्ट्रेंथ है, डेमोग्रफिक डिवीडेंट है, अगर ऐसे नौजवानों को हुनर मिले, कौशल मिले, सामर्थ्य मिले, अवसर मिले, तो वह नौजवान पूरे विश्व में अपनी ताकत दिखा सकता है..! हमारा तीसरा सशक्त पहलू यह है कि हम एक वाईब्रेंट डेमोक्रेटिक देश हैं। ये लोकतंत्र हमारे देश की बहुत बड़ी अमानत है..! विश्व भर में चल रही स्पर्धा में हमारे पास ये चीज ऐसी है जिसके कारण हम पहले से एक कदम आगे होने की ताकत रखते हैं। अगर इन सपनों को लेकर, हम आगे की नई पीढ़ी को तैयार करने के लिए इस पर ध्यान दें कि कॉलेज की सोच कैसे बदलें, यूनिवर्सिटी की सोच कैसे बदलें, हमारी शिक्षा व्यवस्था की सोच कैसे बदलें, तो बेहतर होगा..! हमें सिर्फ नौकरशाहों को पैदा करने के लिए इतना बड़ा शिक्षा का क्षेत्र चलाने की क्या जरूरत है..? हमें तो समाज के निर्माताओं को तैयार करना है, युग निर्माताओं को तैयार करना है, आने वाली पीढि़यों को तैयार करने का काम करना है, और इस बदलाव को लेकर हम अपनी पूरी शिक्षा व्यवस्था पर सोचें..!

मुझे विश्वास है कि दो दिन चलने वाला मंथन और पिछले 7 दिनों से इस संदर्भ में चल रहे प्रयासों से हमें कुछ न कुछ अमृत मिलेगा..! ये कोई टोकन काम नहीं है, हम लगातार इसके लिए प्रयासरत रहते हैं। पहले यूनीवर्सिटी के स्तृर पर काम किया, पिछले वाइब्रेंट समिति में पूरे विश्व से 45 यूनीवर्सिटी को बुलाकर एक वर्कशॉप किया। उसके बाद, लॉर्ड भीखु पारेख जैसे लोगों को बुलाकर एक इनहाउस मंथन का काम किया और आज इस स्तर पर कार्य कर रहे हैं। यानी कि हम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं, ये अचानक से काम शुरु नहीं किया है। इसके बाद भी हम और आगे जाएंगे, आगे सोचेंगे और कदम उठाएंगे। हमारी कोशिश है कि हम गुजरात में कुछ करना है। गुजरात कुछ सीखना चाहता है, देश के बुद्धिजीवियों को हमने कुछ सीखने के लिए बुलाया है। हम शिक्षाशास्त्री नहीं है, इसलिए अपने मन के विचारों को आप सभी के सामने रखने और आपसे सीखने के लिए बुलाया है। इससे कहीं तो कुछ शुरू होगा और कहीं भी कुछ भी शुरू होने पर परिवर्तन आ सकता है, और उसी के प्रयास के हिस्से के रूप में हम आएं हैं..!

हमें सेंटर फॉर एक्सीलेंसी की ओर बल देना होगा। मैने देखा है कभी-कभी गांव का एक किसान एग्रीकल्चर यूनीवर्सिटी के सांइटिस्ट से ज्यादा बढि़या काम करता है। गांव में खेती करने वाला किसान, लेबोरेट्री में काम करने वाले सांइटिस्ट‍ से अगर दो कदम आगे है तो दोनों को साथ में जोड़ने की जरूरत है..! एक वेटेनेरी डॉक्टर से ज्यादा, पशुओं का पालन करने वाली अनपढ महिला जानती होगी कि पशुओं की केयर कैसे करनी चाहिए, उसकी देखभाल कैसे की जाएं की वह ज्यादा दूध दे, वो ज्यादा जिन्देगी कैसे जिएं, तो इसमें भी दोनों को जोड़ने की जरूरत है..! अगर हम इन चीजों पर बल देगें तो बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। एक बार फिर से यहां आने वाले सभी लोगों का स्वागत करता हूं..! लता जी तो गला खराब होने के कारण बोल नहीं पा रही है, उसके बाद भी इस कार्यक्रम में शरीक हुई, मैं उनका विशेष रूप से आभार व्यक्त करता हूं। आप सभी का स्वागत करते हुए, बहुत-बहुत धन्यउवाद, बहुत-बहुत शुभकामनाएं..!

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मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | 2025 बस अब तो आ ही गया है, दरवाजे पर दस्तक दे ही रहा है | 2025 में 26 जनवरी को हमारे संविधान को लागू हुए 75 वर्ष होने जा रहे हैं | हम सभी के लिए बहुत गौरव की बात है | हमारे संविधान निर्माताओं ने हमें जो संविधान सौंपा है वो समय की हर कसौटी पर खरा उतरा है | संविधान हमारे लिए guiding light है, हमारा मार्गदर्शक है | ये भारत का संविधान ही है जिसकी वजह से मैं आज यहाँ हूँ, आपसे बात कर पा रहा हूँ | इस साल 26 नवंबर को संविधान दिवस से एक साल तक चलने वाली कई activities शुरू हुई हैं | देश के नागरिकों को संविधान की विरासत से जोड़ने के लिए constitution75.com नाम से एक खास website भी बनाई गई है | इसमें आप संविधान की प्रस्तावना पढ़कर अपना video upload कर सकते हैं | अलग-अलग भाषाओं में संविधान पढ़ सकते हैं, संविधान के बारे में प्रश्न भी पूछ सकते हैं | ‘मन की बात’ के श्रोताओं से, स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों से, कॉलेज में जाने वाले युवाओं से, मेरा आग्रह है, इस website पर जरूर जाकर देखें, इसका हिस्सा बनें |

साथियो,

अगले महीने 13 तारीख से प्रयागराज में महाकुंभ भी होने जा रहा है | इस समय वहां संगम तट पर जबरदस्त तैयारियाँ चल रही हैं | मुझे याद है, अभी कुछ दिन पहले जब मैं प्रयागराज गया था तो हेलिकॉप्टर से पूरा कुम्भ क्षेत्र देखकर दिल प्रसन्न हो गया था | इतना विशाल! इतना सुंदर! इतनी भव्यता!

साथियो,

महाकुंभ की विशेषता केवल इसकी विशालता में ही नहीं है | कुंभ की विशेषता इसकी विविधता में भी है | इस आयोजन में करोड़ों लोग एक साथ एकत्रित होते हैं | लाखों संत, हजारों परम्पराएँ, सैकड़ों संप्रदाय, अनेकों अखाड़े, हर कोई इस आयोजन का हिस्सा बनता है | कहीं कोई भेदभाव नहीं दिखता है, कोई बड़ा नहीं होता है, कोई छोटा नहीं होता है | अनेकता में एकता का ऐसा दृश्य विश्व में कहीं और देखने को नहीं मिलेगा | इसलिए हमारा कुंभ एकता का महाकुंभ भी होता है | इस बार का महाकुंभ भी एकता के महाकुंभ के मंत्र को सशक्त करेगा | मैं आप सबसे कहूँगा, जब हम कुंभ में शामिल हों, तो एकता के इस संकल्प को अपने साथ लेकर वापस आयें | हम समाज में विभाजन और विद्वेष के भाव को नष्ट करने का संकल्प भी लें | अगर कम शब्दों में मुझे कहना है तो मैं कहूँगा...

महाकुंभ का संदेश, एक हो पूरा देश |

महाकुंभ का संदेश, एक हो पूरा देश |

और अगर दूसरे तरीके से कहना है तो मैं कहूँगा...

गंगा की अविरल धारा, न बँटे समाज हमारा ||

गंगा की अविरल धारा, न बँटे समाज हमारा ||

साथियो,

इस बार प्रयागराज में देश और दुनिया के श्रद्धालु digital महाकुंभ के भी साक्षी बनेंगे | Digital Navigation की मदद से आपको अलग-अलग घाट, मंदिर, साधुओं के अखाड़ों तक पहुँचने का रास्ता मिलेगा | यही navigation system आपको parking तक पहुँचने में भी मदद करेगा | पहली बार कुंभ आयोजन में AI chatbot का प्रयोग होगा | AI chatbot के माध्यम से 11 भारतीय भाषाओं में कुंभ से जुड़ी हर तरह की जानकारी हासिल की जा सकेगी | इस chatbot से कोई भी text type करके या बोलकर किसी भी तरह की मदद मांग सकता है | पूरा मेला क्षेत्र को AI-Powered cameras से cover किया जा रहा है | कुंभ में अगर कोई अपने परिचित से बिछड़ जाएगा तो इन कैमरों से उन्हें खोजने में भी मदद मिलेगी | श्रद्धालुओं को digital lost & found center की सुविधा भी मिलेगी | श्रद्धालुओं को मोबाईल पर government-approved tour packages, ठहरने की जगह और homestay के बारे में भी जानकारी दी जाएगी | आप भी महाकुंभ में जाएँ तो इन सुविधाओं का लाभ उठाएँ और हाँ #एकता का महाकुंभ के साथ अपनी selfie जरूर uplaod करिएगा |

साथियो,

‘मन की बात’ यानि MKB में अब बात KTB की, जो बड़े बुजुर्ग हैं, उनमें से, बहुत से लोगों को KTB के बारे में पता नहीं होगा | लेकिन जरा बच्चों से पूछिए KTB उनके बीच बहुत ही superhit है | KTB यानि कृष, तृष और बाल्टीबॉय | आपको शायद पता होगा बच्चों की पसंदीदा animation series और उसका नाम है KTB – भारत हैं हम और अब इसका दूसरा season भी आ गया है | ये तीन animation character हमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन नायक-नायिकाओं के बारे में बताते हैं जिनकी ज्यादा चर्चा नहीं होती | हाल ही में इसका season-2 बड़े ही खास अंदाज में International Film Festival of India, Goa में launch हुआ | सबसे शानदार बात ये है कि ये series न सिर्फ भारत की कई भाषाओं में बल्कि विदेशी भाषाओं में भी प्रसारित होती है | इसे दूरदर्शन के साथ-साथ अन्य OTT platform पर भी देखा जा सकता है |

साथियो,

हमारी animation फिल्मों की, regular फिल्मों की, टीवी serials की, popularity दिखाती है कि भारत की creative industry में कितनी क्षमता है | यह industry न सिर्फ देश की प्रगति में बड़ा योगदान दे रही है, बल्कि, हमारी economy को भी नई ऊंचाइयों पर ले जा रही है | हमारी Film & Entertainment industry बहुत विशाल है | देश की कितनी ही भाषाओं में फिल्में बनती हैं, creative content बनता है | मैं अपनी film और entertainment industry को इसलिए भी बधाई देता हूँ, क्योंकि उसने ‘एक भारत – श्रेष्ठ भारत’ के भाव को सशक्त किया है |

साथियो,

वर्ष 2024 में हम फिल्म जगत की कई महान हस्तियों की 100वीं जयंती मना रहे हैं | इन विभूतियों ने भारतीय सिनेमा को विश्व-स्तर पर पहचान दिलाई | राज कपूर जी ने फिल्मों के माध्यम से दुनिया को भारत की soft power से परिचित कराया | रफ़ी साहब की आवाज में वो जादू था जो हर दिल को छू लेता था | उनकी आवाज अद्भुत थी | भक्ति गीत हों या romantic songs, दर्द भरे गाने हों, हर emotion को उन्होंने अपनी आवाज से जीवंत कर दिया | एक कलाकार के रूप में उनकी महानता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज भी युवा-पीढ़ी उनके गानों को उतनी ही शिद्दत से सुनती है - यही तो है timeless art की पहचान | अक्किनेनी नागेश्वर राव गारू ने तेलुगु सिनेमा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है | उनकी फिल्मों ने भारतीय परंपराओं और मूल्यों को बखूबी प्रस्तुत किया | तपन सिन्हा जी की फिल्मों ने समाज को एक नई दृष्टि दी | उनकी फिल्मों में सामाजिक चेतना और राष्ट्रीय एकता का संदेश रहता था | हमारी पूरी film industry के लिए इन हस्तियों का जीवन प्रेरणा जैसा है |

साथियो,

मैं आपको एक और खुशखबरी देना चाहता हूँ | भारत की creative talent को दुनिया के सामने रखने का एक बहुत बड़ा अवसर आ रहा है | अगले साल हमारे देश में पहली बार World Audio Visual Entertainment Summit यानि WAVES summit का आयोजन होने वाला है | आप सभी ने दावोस के बारे में सुन होगा जहां दुनिया के अर्थजगत के महारथी जुटते हैं | उसी तरह WAVES summit में दुनिया-भर के media और entertainment industry के दिग्गज, creative world के लोग भारत आएंगे | यह summit भारत को global content creation का hub बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है | मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि इस summit की तैयारी में हमारे देश के young creators भी पूरे जोश से जुड़ रहे हैं | जब हम 5 trillion dollar economy की ओर बढ़ रहे हैं, तब हमारी creator economy एक नई energy ला रही है | मैं भारत की पूरी entertainment और creative industry से आग्रह करूंगा – चाहे आप young creator हों या established artist, Bollywood से जुड़े हों, या regional cinema से, TV industry के professional हों, या animation के expert, gaming से जुड़े हों या entertainment technology के innovator, आप सभी WAVES summit का हिस्सा बनें |

मेरे प्यारे देशवासियो,

आप सभी जानते हैं कि भारतीय संस्कृति का प्रकाश आज कैसे दुनिया के कोने-कोने में फैल रहा है | आज मैं आपको तीन महाद्वीपों से ऐसे प्रयासों के बारे में बताऊंगा, जो हमारी सांस्कृतिक विरासत के वैश्विक विस्तार की गवाह है | ये सभी एक दूसरे से मिलों दूर हैं | लेकिन भारत को जानने और हमारी संस्कृति से सीखने की उनकी ललक एक जैसी है |

साथियो,

Paintings का संसार जितना रंगों से भरा होता है, उतना ही खूबसूरत होता है | आप में से जो लोग टीवी के माध्यम से ‘मन की बात’ से जुड़े हैं, वे अभी कुछ paintings टीवी पर देख भी सकते हैं | इन Paintings में हमारे देवी-देवता, नृत्य की कलाएं और महान विभूतियों को देखकर आपको बहुत अच्छा लगेगा | इनमें आपको भारत में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं से लेकर और भी बहुत कुछ देखने को मिलेगा | इनमें ताजमहल की एक शानदार Painting भी शामिल है, जिसे 13 साल की एक बच्ची ने बनाया है | आपको ये जानकार हैरानी होगी इस दिव्यांग बच्ची ने अपने मुहँ से इस panting को तैयार किया है | सबसे दिलचस्प बात यह है कि इन Painting को बनाने वाले भारत के नहीं, बल्कि Egypt के students हैं, वहाँ के विद्यार्थी हैं | कुछ ही हफ्ते पहले Egypt के करीब 23 हजार students ने एक painting प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था | वहाँ उन्हें भारत की संस्कृति और दोनों देशों के ऐतिहासिक संबंधों को बताने वाली paintings तैयार करनी थी | मैं इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले सभी युवाओं की सराहना करता हूँ | उनकी creativity की जितनी भी प्रशंसा की जाए वो कम है |

साथियो,

दक्षिण अमेरिका का एक देश है पराग्वे | वहाँ रहने वाले भारतीयों की संख्या एक हजार से ज्यादा नहीं होगी | पराग्वे में एक अद्भुत प्रयास हो रहा है | वहाँ भारतीय दूतावास में एरीका ह्युबर free आयुर्वेद consultation देती हैं | आयुर्वेद की सलाह लेने के लिए आज उनके पास स्थानीय लोग भी बड़ी संख्या में पहुँच रहे हैं | एरीका ह्युबर ने भले ही engineering की पढ़ाई की हो, लेकिन उनका मन तो आयुर्वेद में ही बसता है | उन्होंने आयुर्वेद से जुड़े Courses किए थे और समय के साथ वे इसमें पारंगत होती चली गई |

साथियो,

ये हमारे लिए बहुत गर्व की बात है कि दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल है और हर हिन्दुस्तानी को इसका गर्व है | दुनियाभर के देशों में इसे सीखने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है | पिछले महीने के आखिर में फ़िजी में भारत सरकार के सहयोग से Tamil Teaching Programme शुरू हुआ | बीते 80 वर्षों में यह पहला अवसर है, जब फ़िजी में तमिल के Trained Teachers इस भाषा को सिखा रहे हैं | मुझे ये जानकार अच्छा लगा कि आज फ़िजी के students तमिल भाषा और संस्कृति को सीखने में काफी दिलचस्पी ले रहे हैं |

साथियो,

ये बातें, ये घटनाएं, सिर्फ सफलता की कहानियाँ नहीं है | ये हमारी सांस्कृतिक विरासत की भी गाथाएं हैं | ये उदाहरण हमें गर्व से भर देते हैं | Art से आयुर्वेद तक और Language से लेकर Music तक, भारत में इतना कुछ है, जो दुनिया में छा रहा है |

साथियो,

सर्दी के इस मौसम में देश-भर से खेल और fitness को लेकर कई activities हो रही हैं | मुझे खुशी है कि लोग fitness को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना रहे हैं | कश्मीर में Skiing से लेकर गुजरात में पतंगबाजी तक, हर तरफ, खेल का उत्साह देखने को मिल रहा है | #SundayOnCycle और #CyclingTuesday जैसे अभियानों से Cycling को बढ़ावा मिल रहा है |

साथियो,

अब मैं आपको एक ऐसी अनोखी बात बताना चाहता हूँ जो हमारे देश में आ रहे बदलाव और युवा साथियों के जोश और जज्बे का प्रतीक है | क्या आप जानते हैं कि हमारे बस्तर में एक अनूठा Olympic शुरू हुआ है! जी हाँ, पहली बार हुए बस्तर Olympic से बस्तर में एक नई क्रांति जन्म ले रही है | मेरे लिए ये बहुत ही खुशी की बात है कि बस्तर Olympic का सपना साकार हुआ है | आपको भी ये जानकार अच्छा लगेगा कि यह उस क्षेत्र में हो रहा है, जो कभी माओवादी हिंसा का गवाह रहा है | बस्तर Olympic का शुभंकर है – ‘वन भैंसा’ और ‘पहाड़ी मैना’ | इसमें बस्तर की समृद्ध संस्कृति की झलक दिखती है | इस बस्तर खेल महाकुंभ का मूल मंत्र है –

‘करसाय ता बस्तर बरसाए ता बस्तर’

यानि ‘खेलेगा बस्तर – जीतेगा बस्तर’ |

पहली ही बार में बस्तर Olympic में 7 जिलों के एक लाख 65 हजार खिलाड़ियों ने भाग लिया है | यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है – यह हमारे युवाओं के संकल्प की गौरव-गाथा है | Athletics, तीरंदाजी, Badminton, Football, Hockey, Weightlifting, Karate, कबड्डी, खो-खो और Volleyball – हर खेल में हमारे युवाओं ने अपनी प्रतिभा का परचम लहराया है | कारी कश्यप जी की कहानी मुझे बहुत प्रेरित करती है | एक छोटे से गांव से आने वाली कारी जी ने तीरंदाजी में रजत पदक जीता है | वे कहती हैं – “बस्तर Olympic ने हमें सिर्फ खेल का मैदान ही नहीं, जीवन में आगे बढ़ने का अवसर दिया है” | सुकमा की पायल कवासी जी की बात भी कम प्रेरणादायक नहीं है | Javelin Throw में स्वर्ण पदक जीतने वाली पायल जी कहती हैं – “अनुशासन और कड़ी मेहनत से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है” | सुकमा के दोरनापाल के पुनेम सन्ना जी की कहानी तो नए भारत की प्रेरक कथा है | एक समय नक्सली प्रभाव में आए पुनेम जी आज wheelchair पर दौड़कर मेडल जीत रहे हैं | उनका साहस और हौसला हर किसी के लिए प्रेरणा है | कोडागांव के तीरंदाज रंजू सोरी जी को ‘बस्तर youth icon’ चुना गया है | उनका मानना है – बस्तर Olympic दूरदराज के युवाओं को राष्ट्रीय मंच तक पहुंचाने का अवसर दे रहा है |

साथियो,

बस्तर Olympic केवल एक खेल आयोजन नहीं है I यह एक ऐसा मंच है जहां विकास और खेल का संगम हो रहा है I जहां हमारे युवा अपनी प्रतिभा को निखार रहे हैं और एक नए भारत का निर्माण कर रहे हैं I मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ :

अपने क्षेत्र में ऐसे खेल आयोजनों को प्रोत्साहित करें

#खेलेगा भारत – जीतेगा भारत के साथ अपने क्षेत्र की खेल प्रतिभाओं की कहानियां साझा करें

स्थानीय खेल प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का अवसर दें

याद रखिए, खेल से, न केवल शारीरिक विकास होता है, बल्कि ये Sportsman spirit से समाज को जोड़ने का भी एक सशक्त माध्यम है I तो खूब खेलिए-खूब खिलिए |

मेरे प्यारे देशवासियो,

भारत की दो बड़ी उपलब्धियां आज विश्व का ध्यान आकर्षित कर रही हैं I इन्हें सुनकर आपको भी गर्व महसूस होगा I ये दोनों सफलताएं स्वास्थ्य के क्षेत्र में मिली हैं I पहली उपलब्धि मिली है – मलेरिया से लड़ाई में | मलेरिया की बीमारी चार हजार वर्षों से मानवता के लिए एक बड़ी चुनौती रही है I आजादी के समय भी यह हमारी सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक थी I एक महीने से लेकर पांच साल तक के बच्चों की जान लेने वाली सभी संक्रामक बीमारियों में मलेरिया का तीसरा स्थान है I आज, मैं संतोष से कह सकता हूँ कि देशवासियों ने मिलकर इस चुनौती का दृढ़ता से मुकाबला किया है I विश्व स्वास्थ्य संगठन – WHO की रिपोर्ट कहती है – “भारत में 2015 से 2023 के बीच मलेरिया के मामलों और इससे होने वाली मौतों में 80 प्रतिशत की कमी आई है” I यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है I सबसे सुखद बात यह है, यह सफलता जन-जन की भागीदारी से मिली है I भारत के कोने-कोने से, हर जिले से हर कोई इस अभियान का हिस्सा बना है I असम में जोरहाट के चाय बागानों में मलेरिया चार साल पहले तक लोगों की चिंता की एक बड़ी वजह बना हुआ था I लेकिन जब इसके उन्मूलन के लिए चाय बागान में रहने वाले एकजुट हुए, तो इसमें काफी हद तक सफलता मिलने लगी I अपने इस प्रयास में उन्होनें Technology के साथ-साथ Social media का भी भरपूर इस्तेमाल किया है I इसी तरह हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले ने मलेरिया पर नियंत्रण के लिए बड़ा अच्छा model पेश किया I यहां मलेरिया की monitoring के लिए जनभागीदारी काफी सफल रही है I नुक्कड़ नाटक और रेडियो के जरिए ऐसे संदेशों पर जोर दिया गया, जिससे मच्छरों की breeding कम करने में काफी मदद मिली है I देश-भर में ऐसे प्रयासों से ही हम मलेरिया के खिलाफ जंग को और तेजी से आगे बढ़ा पाए है I

साथियो,

अपनी जागरूकता और संकल्प शक्ति से हम क्या कुछ हासिल कर सकते हैं, इसका दूसरा उदाहरण है cancer से लड़ाई I दुनिया के मशहूर Medical Journal Lancet की study वाकई बहुत उम्मीद बढ़ाने वाली है I इस Journal के मुताबिक अब भारत में समय पर cancer का इलाज शुरू होने की संभावना काफी बढ़ गई है I समय पर इलाज का मतलब है – cancer मरीज का treatment 30 दिनों के भीतर ही शुरू हो जाना और इसमें बड़ी भूमिका निभाई है – ‘आयुष्मान भारत योजना’ ने | इस योजना की वजह से cancer के 90 प्रतिशत मरीज, समय पर अपना इलाज शुरू करा पाए हैं | ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि पहले पैसे के अभाव में गरीब मरीज cancer की जांच में, उसके इलाज से कतराते थे I अब ‘आयुष्मान भारत योजना’ उनके लिए बड़ा संबल बनी है I अब वो आगे बढ़कर अपना इलाज कराने के लिए आ रहे हैं I ‘आयुष्मान भारत योजना’ ने cancer के इलाज में आने वाली पैसों की परेशानी को काफी हद तक कम किया है I अच्छा ये भी है, कि आज समय पर, cancer के इलाज को लेकर, लोग, पहले से कहीं अधिक जागरूक हुए हैं I यह उपलब्धि जितनी हमारे Healthcare system की है, डॉक्टरों, नर्सों और Technical staff की है, उतनी ही, आप, सभी मेरे नागरिक भाई-बहनों की भी है I सबके प्रयास से cancer को हारने का संकल्प और मजबूत हुआ है I इस सफलता का credit उन सभी को जाता है, जिन्होनें जागरूकता फैलाने में अपना अहम योगदान दिया है I

Cancer से मुकाबले के लिए एक ही मंत्र है - Awareness, Action और Assurance. Awareness यानि cancer और इसके लक्षणों के प्रति जागरूकता, Action यानि समय पर जांच और इलाज, Assurance यानि मरीजों के लिए हर मदद उपलब्ध होने का विश्वास I आईए, हम सब मिलकर cancer के खिलाफ इस लड़ाई को तेजी से आगे ले जाएं और ज्यादा-से-ज्यादा मरीजों की मदद करें I

मेरे प्यारे देशवासियो,

आज मैं आपको ओडिशा के कालाहांडी के एक ऐसे प्रयास की बात बताना चाहता हूँ, जो कम पानी और कम संसाधनों के बावजूद सफलता की नई गाथा लिख रहा है | ये है कालाहांडी की ‘सब्जी क्रांति’ | जहां, कभी किसान, पलायन करने को मजबूर थे, वहीं आज, कालाहांडी का गोलामुंडा ब्लॉक एक vegetable hub बन गया है | यह परिवर्तन कैसे आया? इसकी शुरुआत सिर्फ 10 किसानों के एक छोटे से समूह से हुई | इस समूह ने मिलकर एक FPO - ‘किसान उत्पाद संघ’ की स्थापना की, खेती में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया, और आज उनका ये FPO करोड़ों का कारोबार कर रहा है | आज 200 से अधिक किसान इस FPO से जुड़े हैं, जिनमें 45 महिला किसान भी हैं | ये लोग मिलकर 200 एकड़ में टमाटर की खेती कर रहे हैं, 150 एकड़ में करेले का उत्पादन कर रहे हैं | अब इस FPO का सालाना turnover भी बढ़कर डेढ़ करोड़ से ज्यादा हो गया है | आज कालाहांडी की सब्जियां, न केवल ओडिशा के विभिन्न जिलों में, बल्कि, दूसरे राज्यों में भी पहुँच रही हैं, और वहाँ का किसान, अब, आलू और प्याज की खेती की नई तकनीकें सीख रहा है |

साथियो,

कालाहांडी की यह सफलता हमें सिखाती है कि संकल्प शक्ति और सामूहिक प्रयास से क्या नहीं किया जा सकता | मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ :-

अपने क्षेत्र में FPO को प्रोत्साहित करें

किसान उत्पादक संगठनों से जुड़ें और उन्हें मजबूत बनाएं |

याद रखिए – छोटी शुरुआत से भी बड़े परिवर्तन संभव हैं | हमें, बस, दृढ़ संकल्प और टीम भावना की जरूरत है |

साथियो,

आज की ‘मन की बात’ में हमने सुना, कि कैसे हमारा भारत, विविधता में एकता के साथ आगे बढ़ रहा है | चाहे वो खेल का मैदान हो या विज्ञान का क्षेत्र, स्वास्थ हो या शिक्षा – हर क्षेत्र में भारत नई ऊंचाइयों को छू रहा है | हमने एक परिवार की तरह मिलकर हर चुनौती का सामना किया और नई सफलताएं हासिल की | 2014 से शुरू हुए ‘मन की बात’ के 116 episodes में मैंने देखा है कि ‘मन की बात’ देश की सामूहिक शक्ति का एक जीवंत दस्तावेज़ बन गया है | आप सभी ने इस कार्यक्रम को अपनाया, अपना बनाया | हर महीने आपने अपने विचारों और प्रयासों को साझा किया | कभी किसी young innovator के idea ने प्रभावित किया, तो कभी किसी बेटी की achievement ने गौरवान्वित किया | ये आप सभी की भागीदारी है जो देश के कोने-कोने से positive energy को एक साथ लाती है | ‘मन की बात’ इसी positive energy के amplification का मंच बन गया है, और अब, 2025 दस्तक दे रहा है | आने वाले साल में ‘मन की बात’ के माध्यम से हम और भी inspiring प्रयासों को साझा करेगें | मुझे विश्वास है कि देशवासियों की positive सोच और innovation की भावना से भारत नई ऊंचाइयों को छूएगा | आप अपने आस-पास के unique प्रयासों को #Mannkibaat के साथ share करते रहिए | मैं जानता हूँ कि अगले साल की हर ‘मन की बात’ में हमारे पास एक दूसरे से साझा करने के लिए बहुत कुछ होगा | आप सभी को 2025 की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं | स्वस्थ रहें, खुश रहें, Fit India Movement में आप भी जुड़ जाइए, खुद को भी fit रखिए | जीवन में प्रगति करते रहें |

बहुत-बहुत धन्यवाद |