परम पूज्य बाबा रामदेव जी, पूज्य आचार्य जी, आदरणीय राजनाथ सिंह जी, आदरणीय वैदिक जी, श्रीमान हरिओम जी, देश के कोने-कोने से आए हुए भारत स्वाभिमान के सभी सिपाही, और मुझे बताया गया कि देश में 500 से अधिक स्थानों पर बड़ा स्क्रीन लगाकर इस भारत स्वाभिमान आंदोलन से जुड़े हुए सभी लोग बैठे हैं और इस कार्यक्रम में दूर दूर से भी शरीक हुए हैं, मैं उन सबको भी नमन करता हूं..!

आजादी के बाद ये पहला चुनाव ऐसा आ रहा है कि जिसने पुरानी सारी परम्पराओं को नष्ट कर दिया है..! आम तौर पर चुनाव राजनीतिक दल लड़ते रहे हैं, उम्मिदवार लड़ते रहे हैं, लेकिन ये पहला चुनाव ऐसा है जो चुनाव अपने आप में एक जन-आंदोलन बन गया है..! चुनाव को जन-आंदोलन बनाने में पूज्य रामदेव जी की अखंड एकनिष्ठ तपश्चर्या भी है..! हरिओम जी सच कह रहे थे, उनको क्या कमी थी..! सारे मुख्यमंत्री उनके दरवाजे पर दस्तक देते थे..! लेकिन वो सब कुछ छोड़कर एक मिशन को लेकर निकल पडे..! अपने लिए नहीं, भारत के स्वाभिमान के लिए..! कभी-कभी पीड़ा भी होती है कि आजादी के इतने सालों के बाद हमें ही हमारे ही देश के स्वाभिमान के लिए लड़ाई लड़नी पड़े..? ये अजूबा है..! ये तो सहज प्राप्य होना चाहिए, स्वाभाविक प्रक्रिया होनी चाहिए, लेकिन न जाने क्या-क्या रूकावटें रहीं, कि आज स्वाभिमान के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है..

भाईयों-बहनों, आज जब हम भारत के स्वाभिमान की लड़ाई लड़ने वाले सिपाहियों के बीच खड़े हैं तब, अपने इस कार्यक्रम के दरमियान ही इसरो के भारतीय वैज्ञानिकों ने, भारत के इंजीनियरों ने सफलतापूर्वक जीएसएलवी डी-5 को लांच करने में सफलता पाई है। मैं भारत के सभी वैज्ञानिकों को, इंजीनियरों को इस सफलता दिलाने के लिए इस पवित्र मंच से बहुत बहुत बधाई देता हूं, उनको शुभकामनाएं देता हूं..! ऐसी अनेक घटनाएं हैं जिसे पता चलता है कि इस देश में बहुत सामर्थ्य है..!

भाईयों-बहनों, मैं निराशावादी इंसान नहीं हूं, मेरी डिक्शनरी में निराशा शब्द ही नहीं है..! और उसका कारण ये नहीं कि मुझे डिक्शनरी का ज्ञान है, इसका कारण यह है कि मैंने जिंदगी को ऐसा जिया है..! जब आजकल लोग अनाप-शनाप इलजाम लगाते हैं तो मैं भी कभी मुडकर खुद के जीवन की ओर देखता हूं, और मैं सोचता हूं कि ये देश कितना महान है, यहां के लोग कितने महान है कि जिन्होंने रेल के डिब्बे में चाय बेचने वाले बच्‍चे को अपने कंधे पर उठा लिया..! मित्रों, मैं निराशावादी नहीं हूं इसके पीछे एक कारण है, क्‍योंकि मैनें अपनी मां को अड़ोस-पड़ोस के घरों में बर्तन साफ करते, पानी भरते देखा है, उन्‍होने बिना निराश हुए अपने बच्‍चों को पालने का, संस्कारित करने का काम किया..! मैं अभी बाबा रामदेव जी से एक सवाल पूछ रहा था क्‍योंकि एक हिन्‍दी शब्‍द मुझे मालूम नहीं था। हमारे यहां गुजरात में कॉटन की खेती होती है, और जब खेत में कपास तैयार होता है तो वो गरीब परिवार उसे अपने घर ले जाते हैं और उसका छिलका उतारकर उसके अंदर से कॉटन निकालते हैं। गुजराती में उसे ‘काला फोलवा...’ कहते हैं, मुझे नहीं मालूम कि हिन्‍दी में उसे क्‍या कहते हैं। हां, मुझे शब्द मिल गया, ‘भिंडोला’, हमारे यहां उसे ‘काला’ बोलते हैं..! उसका छिलका काफी धारदार होता है, कई बार उससे खून भी निकल आता है। जब वो सीजन आता था, तो पूरे दिन में पचासों प्रकार की मेहनत करने के बाद हमारा पूरा परिवार बैठता था और छिलके हटाकर कॉटन बाहर निकालते थे, दूसरे दिन सुबह जाकर जमा करवाते थे, और इससे कुछ मजबूरी मिल जाती थी..! जिसने इस जीवन को जिया है, उसके जीवन में निराशा का नामोनिशान नहीं हो सकता है। जो इस पीड़ा और दर्द में पला है उसे औरों की पीड़ा व दर्द समझने के लिए यात्राएं नहीं करनी पड़ती, और वही पीड़ा, वही दर्द, वही संवेदना हमें कार्य करने की प्रेरणा देती है। हर पल मन में रहता है कि ईश्‍वर ने जो शरीर दिया है, जो समय दिया है, जो अवसर दिया है, उसका उपयोग भारत माता के कोटि-कोटि जनों के लिए ही होना चाहिए। दुखी, पीडित, दरिद्र, दलित, शोषित, वंचित उनके लिए होना चाहिए और जब जीवन में ऐसी प्रेरणा होती है तो ईश्‍वर रास्‍ते भी अपने आप सुझाता है..!

मित्रों, पहले चुनाव होते थे, जोड़-तोड़ के चुनाव होते थे, परिवार को संभालने के लिए चुनाव होते थे, जाति-बिरादरी के समीकरणों को संभालने के लिए चुनाव होते थे, वोट बैंक की छाया में चुनाव होते थे..! मित्रों, ये खुशी की बात नहीं है कि आज देश में विकास के एजेंडा की चर्चा हो रही है और विकास के एजेंडा पर चुनाव लड़ने के लिए देश के राजनीतिक दलों को मजबूर किया जा रहा है और बाबा रामदेव जी का ये प्रयास उसी दिशा में एक नक्‍कर, मक्‍कम, मजबूत कदम है, यह एक शुभ संकेत है..! ठीक है भाई, आप सरकार बनाना चाहते हो, तो क्यों बनाना चाहते हो, किसके लिए बनाना चाहते हो, बनाकर क्‍या करना चाहते हो, जरा दुनिया को बताओ तो सही..! मैं चाहूंगा कि ये प्रयास 2014 के चुनावों तक निरंतर चलता रहना चाहिए, दबाव बढ़ाना चाहिए, सिर्फ बीजेपी पर ही नहीं बल्कि सभी दलों पर बढ़ाना चाहिए कि बहुत हुआ, 60 साल बर्बाद किए हैं अब कुछ कर दिखाओ..!

भाइयों-बहनों, इसके साथ-साथ बाबा रामदेव अब राजनेताओं को भली-भांति जान गए हैं..! ये जान गए हैं कि दिन में कैसे एयरपोर्ट पर लेने आना और रात में कैसे जुल्म करना, ये भली-भांति जान गए हैं..! इसलिए, कोई कहने को तो कह दें, लेकिन उस पर भरोसा मत करना, ट्रैक रिकॉर्ड बराबर देख लेना, अगर वो ट्रैक रिकॉर्ड पर सही उतरते हैं तो भरपूर आर्शीवाद दे देना, लेकिन अगर ट्रैक रिकॉर्ड ठीक नहीं है और सिर्फ टेप रिकॉर्ड चल रहा है तो उस पर भरोसा मत करना..!

भाइयों-बहनों, आप कल्‍पना कर सकते हैं कि जिस देश में 65 प्रतिशत जनसंख्‍या 35 से कम आयु की हो, जो विश्‍व का सबसे नौजवान देश हो और परमात्मा ने हर नौजवान को भुजा दी हो, बुद्धि और सामर्थ्‍य दिया हो, कुछ कर दिखाने की ललक दी हो, उसके बावजूद भी जो डेमोग्राफिक डिविडेंड एक बहुत बड़ा एसेट बन सकता था, लेकिन देश के नेतृत्‍व ने उस डेमोग्राफिक डिविडेंड को डेमोग्राफिक डिजास्‍टर में कन्‍वर्ट कर दिया, इससे बड़ा कोई पाप नहीं हो सकता है..!

नौजवान को अवसर चाहिये। आज चाइना के बारे में स्‍वामी जी एक बात बता रहे थे कि चाइना ने एक काम पर बहुत बल दिया है, और वो बल स्किल डेवलेपमेंट पर दिया गया है। नौजवानों को हुनर सिखाओ, अगर नौजवान के अंदर हुनर होगा तो वह अपने सामर्थ्‍य से जीवन जीने का रास्‍ता खोज लेगा। आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत सरकार ने बार-बार भांति-भांति प्रकार के स्किल डेवलेपमेंट के मिशन बनाए, प्रधानमंत्री तक उसके चेयरमेन बने, हर तीन महीने में लिखित रूप से उसका मूल्‍यांकन करना तय हुआ था, लेकिन तीन साल तक एक मीटिंग तक नहीं हुई..! क्‍या इसके लिए कोई एक्सट्राऑर्डिनरी विजन की जरूरत है..? काम नहीं बन सकता है क्‍या..?

मैं ट्रैक रिकॉर्ड की बात इसलिए बताता हूं क्‍योंकि गुजरात ने उस दिशा में करके दिखाया है..! हम जानते हैं कि अगर देश की जीडीपी को बढ़ाना है तो हमें हमारी उत्‍पादन क्षमता का भरपूर उपयोग करना होगा, हमारी उत्‍पादन क्षमता को बढ़ाना होगा, और मित्रों, ऐसा नहीं है कि ऐसा नहीं हो सकता है..! हमारा देश कृषि प्रधान देश है। बाबा ने जिन मुद्दों को उठाया है, उन मुद्दों को अरूण जी ने और राजनाथ जी ने बहुत पॉजिटिवली बता दिया है लेकिन मैं और तरीके से उस चीज को बता रहा हूं। हमारा कृषि प्रधान देश है, हमारे यहां कृषि के साथ पशुपालन अंगभूत व्‍यवस्‍था है और मैं मानता हूं कि अगर हमें कृषि को सामर्थ्‍यवान बनाना है तो उसे तीन हिस्‍सों में बांटना होगा। एक तिहाई - रेगुलर खेती, एक तिहाई - वृक्षों की खेती, पेड़ों की खेती, और एक तिहाई - पशुपालन..! हमारे यहां दो खेतों के बीच कितनी जमीन बेकार होती है..? सभी को यह बात मालूम है, उस खेत वाला हमारे खेत में न घुस जाएं, हम उसके खेत में न जाएं, इसके लिए बीच में हम जो बाड़ बना देते हैं, तो कितनी जमीन बर्बाद करते हैं..! अगर उस किनारे पर उस किसान को पेड़ उगाने का अधिकार दिया जाए और उसे पेड़ बेचने का अधिकार दिया जाए तो इस देश को टिम्‍बर इम्‍पोर्ट करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आज इस कृषि प्रधान देश को टिम्‍बर इम्‍पोर्ट करना पड़ता है और फिर करंट एकांउट डेफिसिट के लिए गोल्‍ड पर हमला बोल देते हैं, यानि करने जैसे काम नहीं करना और न करने जैसे पहले करना..!

मित्रों, 60-70 के दशक में हिंदुस्‍तान में गोल्‍ड स्‍मगलिंग के लिए एक बहुत बड़ा सुनहरा अवसर था, चारों ओर सोने की तस्‍करी, इस देश का बहुत बड़ा पेशा बन गया था, और उसी गोल्‍ड स्‍मगलिंग में से हिंदुस्‍तान में अंडरवर्ल्‍ड का नेटवर्क पैदा हुआ। आज भी अंडरवर्ल्‍ड के जो बड़े-बड़े माफिया हैं वो गोल्‍ड स्‍मगलिंग के उस काल में पैदा हुए थे। दिल्‍ली में ऐसी सरकार बैठी है कि फिर से उसने गोल्‍ड स्‍मगलिंग का उदय कर दिया है..! अभी मैं पिछले दिनों टीवी में देख रहा था, कि दक्षिण के एक राज्‍य में सौ किलो से ज्‍यादा स्‍मगलिंग का सोना पकड़ा गया, कितना पकड़ा गया वो तो हमें मालूम है, कितना नहीं पकड़ा गया वह नहीं मालूम है..! मित्रों, ये कुनीतियों का परिणाम है..!

मैं आप सभी के साथ गुजरात का एक अनुभव शेयर करना चाहता हूं। हमारे राज्‍य में हम पशु आरोग्‍य मेले लगाते हैं और हजारों की तादात में लगाते हैं। आज भी अगर हमारे देश में मनुष्‍य को भी कैटरेक्ट का ऑपरेशन करवाना हो तो किसी चैरिटेबल ट्रस्‍ट के कार्यक्रम में जाना पड़ता है, ये स्थिति है। गुजरात में हम पशु का भी कैटरेक ऑपरेशन करते हैं, उसके नेत्रमणि का ऑपरेशन करते हैं, उसका डेंटल ट्रीटमेंट करते हैं..! मैने अभी कुछ डॉक्‍टर्स को अमेरिका भेजा था कि वह लेजर टेक्‍नीक से पशुओं की आंखों का ऑपरेशन करना सीखकर आएं, ताकि पशु का रक्‍त न बहे, उसे पीड़ा न हो..! इसका परिणाम यह हुआ कि हमारे यहां मिल्‍क प्रोडक्‍शन में 86 प्रतिशत की वृद्धि हुई..! अब आप ही बताइए, इससे मेरा किसान सामर्थ्‍यवान हुआ या नहीं..? फर्क देखिए, उन्‍होने क्‍या किया, उन्‍होने सपना देखा-पिंक रिवोल्यूशन का। इस देश में हमने ग्रीन रिवोल्यूशन सुना है, व्‍हाइट रिवोल्यूशन सुना है, लेकिन दिल्‍ली में जो सरकार बैठी है उसने पिंक रिवोल्यूशन का कार्यक्रम शुरू किया। पिंक रिवोल्यूशन का मतबल क्‍या है..? कत्‍लखाने खोलो, पशुओं का कत्‍ल करो और मटन जिसका रंग पिंक होता है, उसको एक्‍सपोर्ट करो..! भाइयों-बहनों, आप मुझे बताइए कि देश के किसानों का भला पशु करेगा कि मटन करेगा..? मित्रों, फर्क यही है कि भारत जैसे गांवों में बसे देश के लिए उनकी प्राथमिकताएं क्‍या हैं..? इसका परिणाम यह हुआ है कि कमाई करने के इरादे से पशुओं की चोरी शुरू हो गई, उनकी स्‍मगलिंग शुरू हो गई। बाबा का कहना कि देश में किसान की मिनिमम इनकम का तो प्रबंध करो, उसे भरोसा दो..! लेकिन अगर आप कत्‍लखाना बनाते है तो भारत सरकार कोई टैक्‍स नहीं लगाती है, आपको बैंक से मिनिमम दर से पैसे मिलते हैं। उदाहरण के लिए, अगर आपका कत्‍लखाना मेरठ में है और आपको मुम्‍बई तक मटन भेजना है तो ट्रांसपोर्टेशन सब्सिडी भी भारत सरकार देती है..!

मित्रों, मेरे कहने का तात्‍पर्य यह है कि अगर हम चाहें तो स्थितियां बदल सकते हैं। जब अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी, हमारे राजनाथ सिंह जी कृषि मंत्री थे तो उन्‍होने एक योजना शुरू की थी - ‘वाड़ी प्रोजक्‍ट‘। उस वाड़ी प्रोजेक्ट के तहत ट्राईबल बेल्‍ट के लोगों को जिनके पास मुश्किल से एक या दो एकड़ भूमि है, जिनकी आय मात्र 10 से 12 हजार रूपए होती थी, ऐसे में वो घर कैसे चलाएगा..! उस वाड़ी प्रोजेक्‍ट के तहत हमने गुजरात में प्रयास शुरू किया, हमारे आदिवासी किसानों को आधुनिक खेती की तरफ ले गए, पानी प्रबंधन की तरफ ले गए, सीड्स में बदवाल लाने की दिशा में ले गए, क्रॉप पैटर्न बदल दिया, इससे परिणाम यह आया कि जो किसान 12 से 15 हजार रूपया कमाता था, वह अब डेढ़ से दो लाख रूपया कमाने लगा। लेकिन अटल जी की सरकार गई, और इस सरकार ने वो प्रोजेक्‍ट बंद कर दिया..! इनको समझ नहीं है कि किसके लिए क्‍या काम करना है..! इसलिए मैं कहता हूं कि देश को आगे बढाने के लिए कोई मंगल ग्रह से मनुष्‍यों को लाने की जरूरत नहीं है, यहां जो लोग हैं वही इस देश को बहुत आगे तक ले जा सकते हैं..!

मित्रों, ये बात सही है कि अगर हमारे नौजवान को रोजगार न मिले, ग्रामीण विकास के लिए हम खेती पर बल न दें, तो आगे नहीं बढ़ सकता है। और ये बात भी सही है कि मैनुफेक्‍चरिंग सेक्‍टर में हमें अपनी ताकत दिखानी होगी। हमारे जो भी मिनरल्स हैं, जो रॉ मैटेरियल हैं, उसमें वैल्‍यू एडीशन करना चाहिए, इसमें कोई काम्‍प्रोमाइज नहीं होना चाहिए। आप आयर्न ओर बाहर भेजने के बदले स्‍टील बनाकर भेजेगें तो इससे देश की आय बढ़ेगी, नौजवान को रोजगार मिलेगा, लेकिन अगर आप आयर्न ओर बाहर भेजेगें और स्‍टील बाहर से लेंगे तो देश को बर्बाद करके रखेगें..! लेकिन अगर आयर्न ओर से स्‍टील बनाना है तो बिजली चाहिए, और बिजली के कारखाने बंद पड़े हैं क्‍योंकि कोयला नहीं मिल रहा है, कोयला नहीं मिल रहा है क्योंकि दिल्‍ली सरकार की कोयला पॉलिसी को पैरालिसिस हो गया है, इस प्रकार ये एक के साथ दूसरा जुड़ा हुआ है..!

मित्रों, हमारे देश में भ्रष्‍टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए, भ्रष्‍टाचार के कुछ क्षेत्र हैं जिनमें से एक है, मिनरल्स..! हमारे देश का सिस्‍टम ऐसा है कि फर्स्‍ट कम फर्स्‍ट सर्व, हमारे देश में जो पहले एप्‍लाई करेगा, उसको हक मिलेगा, उसे पहले अलॉटमेंट होगा..! हमने गुजरात में तय किया कि हम ऐसा नहीं करेगें, हम ऑक्‍शन यानि नीलामी करेगें, जो ज्‍यादा बोली बोलेगा, सरकार के खजाने में पैसा आएगा और गरीबों का भला होगा..! आप लोग बताएं, ऑक्‍शन का रास्‍ता सही है या नहीं..? ट्रासपेरेंट तरीका है या नहीं..? हमने निर्णय लिया और भारत सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया, कि कानूनन आप ऑक्‍शन नहीं कर सकते हैं..! एक सरकार है जो हिम्‍मत करके, ऑक्‍शन करके अपनी भूसम्‍पदा को वैल्‍यू एडीशन के लिए देना चाहती है और दूसरी उसे रोकना..! आज मेरे यहां इतने सीमेंट के कारखाने लगने की संभावना है लेकिन मैं लाइम स्‍टोन नहीं दे पा रहा हूं कयोंकि भारत सरकार मुझे ऑक्‍शन करने का अधिकार नहीं देती है और मैं ऑक्‍शन के बिना देने को तैयार नहीं हूं..!

मित्रों, कहने का तात्‍पर्य यह है कि जो हमारी भूसम्‍पदा है, उस भूसम्‍पदा का उपयोग भी हम राष्‍ट्र के विकास की धरोहर के रूप में कर सकते हैं। हमारे पास सब कुछ है पर हम ध्‍यान नहीं देते हैं..! आपको जानकर हैरानी होगी कि आज हमारे देश से बालू की भी स्‍मगलिंग होने लगी है, जहाज भर-भर के बालू की स्‍मगलिंग होना शुरू हो गया है। लेकिन अगर आपकी नीतियां स्‍पष्‍ट नहीं रही, तो ये संभावनाएं बढ़ती जाती हैं। और इसलिए, भ्रष्‍टाचार से लड़ाई लड़ने की पहली शर्त होती है, स्‍टेट प्रोग्रेसिव पॉलिसी ड्रिवन होना चाहिए, नई नीतियां लगातार बनती चली जानी चाहिए, नीतियों के आधार पर निर्णय होने चाहिए, और निर्णयों को पारदर्शी तरीके से लागू करना चाहिए, इस प्रकार भ्रष्‍टाचार से मुक्ति मिल सकती है। ये कोई ऐसी चीज नहीं है कि हो नहीं सकती..!

मित्रों, टैक्सेशन..! मैं इन विचारों से कई वर्षो से अच्‍छी तरह परिचित हूं जो आर्थिक स्‍वराज को लेकर उठाएं जाते हैं। हमारे देश के कई राज्‍य हैं जो ऑक्‍ट्रोई बंद करने की हिम्‍मत नहीं दिखा पा रहे हैं। हमने कर दिया और हमारी गाड़ी चल रही है, हमारे राज्‍य में ऑक्‍ट्रोई वगैरह सब बंद हो गया..! कुल मिलाकर कहने का तात्‍पर्य यह है कि अगर इरादा हो, तो सब कुछ किया जा सकता है और इसलिए मैं बार-बार कहता हूं कि देश को वादे नहीं इरादे चाहिए..! भाईयों, इसलिए ये टैक्सेशन सिस्‍टम सामान्‍य मानवी के जीवन पर बोझ बनी हुई है, अफसरशाही की लगाम बढ़ती चली जाती है, समय की मांग है कि उसमें नए तरीके से देखकर रिफॉर्म लाया जाए और भारतीय जनता पार्टी गंभीरता पूर्वक इस विषय पर काम कर रही है..! अभी मेरी पार्टी के सभी नेता इस विषय के जानकार लोगों के साथ तीन-तीन घंटे तक बैठे थे। उन लोगों की हर बात को बारीकी से समझा, ठीक है हमें पहली नजर में कुछ समस्‍याएं नजर आती है, लेकिन अगर इरादा है तो आखिरकार इन समस्‍याओं का समाधान भी होगा और रास्‍ते भी खोजे जाएंगे और नई व्‍यवस्‍थाएं भी लाई जाएंगी..!

भाइयों-बहनों, अगर यहीं व्‍यवस्‍थाएं चलानी हैं तो मुझे यहां आने की क्‍या जरूरत है, बहुत लोग हैं जो चलाएंगे..! दोस्तों, अगर हम कुछ कर नहीं पाते हैं तो जिन्‍दगी में पद के लिए पैदा नहीं हुए हैं, अगर कुछ कर सकते हैं तो जिन्‍दगी में कुछ करना है..! लेकिन व्‍यवस्‍थाएं ऐसी होनी चाहिए जो जिंदगी में सरलीकरण लाएं। एक छोटा सा उदाहरण देता हूं, ये जो अफसरशाही और लाइसेंस राज की दुनिया है, आप सभी को मालूम होगा कि हमारे देश में जो कारखाने होते हैं उनमें बॉयलर होते हैं। सरकार में बॉयलर इंस्‍पेक्‍शन की व्‍यवस्‍था होती है और जो व्‍यक्ति बॉयलर इंस्‍पेक्‍शन करने वाला होता है, वह शंहशाहों का शंहशाह होता है क्‍योंकि ये बहुत कम लोग होते हैं और वो कारखाने के मालिक परेशान होते हैं क्योंकि उन्‍हे एक नियत तारीख तक जांच का सर्टिफिकेट चाहिए, और वो कहता है कि समय नहीं है, पहले से क्‍यों नहीं बोला..? फिर उन दोनों के बीच जो कुछ भी होना चाहिए वह होता होगा, इसके बाद इंस्‍पेक्‍शन करने वाला उस कारखाने को सर्टिफिकेट दे देता है कि मैने बॉयलर का इंस्‍पेक्‍शन किया और यह कार्य करने योग्‍य है..! ऐसे ही पूरा कारोबार चलता था। कोई मुझे बताएं कि आप कार खरीदते हैं, आपकी कार ठीक है या नहीं, ब्रेक बराबर है या नहीं, इसका इंस्‍पेक्‍शन क्‍या सरकार करती है..? इसकी जांच तो आप खुद ही करते हैं कि नहीं..? आपको आपकी जिदंगी की चिंता है या नहीं..? तो बॉयलर की चिंता भी वो करेगा या नहीं करेगा..? अगर बॉयलर फटेगा तो वो मरेगा कि नहीं..? मैनें कहा कि अब सरकार इंस्‍पेक्‍शन नहीं करेगी, आप खुद इंस्‍पेक्‍शन करके सर्टिफिकेट दे दो, हम उसको स्‍वीकार कर लेंगे..! अफसरशाही गई के नहीं..? इसके लिए क्‍या करना पड़ा..? हमने कहा कि स्किल डेवलेपमेंट का कोर्स आईटीआई में चालू करो, प्राईवेट इंस्‍टीटयूट खोलकर बॉयलर इंस्‍पेक्‍शन का काम करें, और इस तरह हजारों लड़के बॉयलर इंस्‍पेक्‍टर बन गए, वो देखते हैं और मालिक को भी चिंता रहती है क्योंकि बिना ब्रेक की गाड़ी कोई चलाएगा क्‍या..? तो क्‍या फटने वाला बॉयलर कोई कारखाने में चलाएगा..? मित्रों, ये बहुत छोटी-छोटी बातें होती हैं..!

भाइयों-बहनों, आप सभी ने देखा होगा कि पहले हमारे यहां बड़े-बड़े मकानों में लिफ्ट बहुत कम थी, और लिफ्ट के सरकारी इंस्‍पेक्‍टर रहते थे और अब करीब-करीब हर घर में लिफ्ट आ गई। अब मुझे बताइए, इतने इंस्‍पेक्‍टर कहां से लाओगे..? मैनें अपने यहां नियम किया, कि जो लोग रहते हैं, वो हर 6 महीने में अपने यहां की लिफ्टों की जांच करवा कर हमें रिपोर्ट दे दें कि हमारी लिफ्ट ठीक है, उपयोग करने योग्‍य है और उसका उपयोग करते चलो। मित्रों, हम व्‍यवस्‍थाओं को बदल सकते हैं, छोटी-छोटी चीजों के माध्‍यम से भी स्थितियों को बदला जा सकता है, और अगर परिवर्तन लाना है तो लाया जा सकता है..! हमारे देश में एक कानूनी व्‍यवस्‍था है कि हर तीस साल में एक बार देश की जमीन का हिसाब-किताब, लेखा-जोखा होना चाहिए। जमीन की लम्‍बाई कितनी है, चौडा़ई कितनी है, उसका मालिक कौन है, इस प्रकार के पूरे विवरण को हर तीस साल में करने का नियम है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले सौ साल से हमारे देश में ये काम नहीं हुआ है..! कई नदियों ने अपना रास्‍ता बदल दिया, सरकारी कागजों में जो जमीन और खेत हैं उन पर नदी बहने लगी है, कहीं खेतों में पर्वत ढ़हकर नीचे आ गए हैं और खेत बचे ही नहीं है, लेकिन सरकारी कागजों पर आज भी वही जमीन है..! सौ साल से इस काम को हमारे देश में नहीं किया गया, आखिर किसान कहां जाएगा..? मैने गुजरात में बीड़ा उठाया, इन दिनों मैं ये काम कर रहा हूं और करके रहूंगा..!

मित्रों, कहने का तात्पर्य ये है कि ऐसा नहीं है कि समस्‍याओं के समाधान नहीं हैं, लेकिन ज्‍यादातर सरकारें आती हैं, दिन-रात अगला चुनाव जीतने में लगी रहती हैं। सरकारों का काम है पांच साल के समय में देश की भलाई के लिए लोगों को विश्वास में लेकर के कदम उठाना। भाईयों-बहनों, मैं गुजरात एक्‍सपीरियंस से कहता हूं कि सब कुछ संभव है..! बाबा रामदेव जी ने, स्‍वाभिमान आंदोलन के साथ जुड़े हुए सिपाहियों ने, भारतीय जनता पार्टी से जो अपेक्षाएं रखी हैं और नरेन्‍द्र मोदी से व्‍यक्तिगत रूप से जो अपेक्षाएं रखी हैं, उसको हम जी-जान से पूरा करने की कोशिश करने वाले हैं..!

भाइयों-बहनों, मैं मानता हूं कि हर समस्‍या का समस्‍या का समाधान हो सकता है, रास्‍ते खोजे जा सकते हैं और परिणाम लाया जा सकता है..! भारत बहुरत्ना वसुंधरा है, सामर्थ्‍यवान देश है। मित्रों, भाषा के विषय में, भारतीय भाषाओं का गौरव होना बहुत स्‍वाभावाविक बात है, और अगर हमें अपने आप पर गौरव नहीं होगा तो दुनिया की पराई चीजों से क्‍या गौरव कर सकते हैं..? लेकिन हम आधुनिकता के भी पक्ष में हैं, टेक्‍नोलॉजी के पक्ष में हैं, हम विज्ञान को प्राथमिकता देने के पक्ष में हैं, क्‍योंकि हमें विश्‍व के सामने उस सामर्थ्‍य के साथ खड़ा रहना है, और दुनिया जो भाषा समझें, उस भाषा में मेरे देश का बच्‍चा आंख से आंख मिलाकर बात करें, उसमें इतनी ताकत होनी चाहिए..! मुंडी नीचे करने का अवसर हमारे देश के बच्चों का नहीं होना चाहिए..! लेकिन अगर हमें अपनी ही भाषाओं पर गर्व नहीं होगा, स्‍वाभिमान नहीं होगा, तो आप दुनिया में कभी भी आंख से आंख मिलाकर बात नहीं कर सकते हैं। इसलिए, सबसे पहले अपने पर भरोसा होना चाहिए, अपने पर स्‍वाभिमान होना चाहिए, अपनी परम्‍पराओं पर गर्व होना चाहिए, हमारी संस्‍कृति, खान-पान, पहनावे, बोल-चाल हर बात का हमें गर्व होना चाहिए..! मित्रों, अगर हमें गर्व है तो रास्‍ते अपने आप मिल जाते हैं..!

भाइयों-बहनों, मैं फिर एक बार बाबा रामदेव जी का अभिनंदन करता हूं कि उन्‍होने सही दिशा में, देश में सच्‍चे अर्थ में परिवर्तन क्या हो, नींव कैसी हो, पिलर कैसे हो, इमारत कैसी हो, इसके लिए मंथन शुरू किया है..! अगर संतो के द्वारा मंथन होता है तो अमृत निकलना निश्चित होता है, अगर निस्‍वार्थ भाव से मंथन होता है तो अमृत सुनिश्चित होता है..!

भाइयों-बहनों, हमें दो विषयों पर बल देकर आगे बढ़ना होगा। 5 साल बाद महात्‍मा गांधी की 150 वीं जयंती आएगी। उस युग पुरूष को हम कैसा हिंदुस्‍तान देना चाहते हैं, उन सपनों को तय करना होगा..! वहीं 8-9 साल बाद, भारत की आजादी के 75 साल हो जाएंगे, अमृत पर्व आएगा, देश के दीवानों ने 1200 साल तक लड़ाई लड़ी और देश को आजादी मिली, उस आजादी का अमृत पर्व आने पर उन दीवानों का नाम हमारा देश कैसे लें, देश कैसे सुपुर्द करे, इसके लिए सपने सजोने होगें और एक दिव्‍य व भव्‍य भारत बनाना होगा..! हम सिर्फ भव्‍यता से जुड़े हुए लोग नहीं है, भारत भव्‍य भी हो और भारत दिव्‍य हो..! ये दिव्‍य-भव्‍य भारत का निर्माण करने के सपनों को लेकर हम आगे बढ़ें, इसी एक अपेक्षा के साथ, ईश्‍वर हमें शक्ति दें, जनता-जनार्दन हमें आर्शीवाद दें, ताकि बाबा रामदेव जैसे निस्पृही लोगों की तपस्‍या रंग लाए और 60 साल की कठिनाईयों से गुजरा हुआ देश संतोष, विश्वास और समृद्धि के शिखरों को पार करने वाला बनें, इसी एक कामना के साथ आप सबका बहुत-बहुत धन्‍यवाद..!

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गौरैया को पुनर्जीवित करने के लिए अद्वितीय प्रयास किए जा रहे हैं: पीएम मोदी

मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | 'मन की बात', यानि देश के सामूहिक प्रयासों की बात, देश की उपलब्धियों की बात, जन-जन के सामर्थ्य की बात, ‘मन की बात' यानि देश के युवा सपनों, देश के नागरिकों की आकांक्षाओं की बात | मैं पूरे महीने, 'मन की बात' का इंतजार करता रहता हूँ, ताकि, आपसे सीधा संवाद कर सकूँ । कितने ही सारे संदेश, कितने ही messages ! मेरा पूरा प्रयास रहता है कि ज्यादा- से-ज्यादा संदेश को पढूँ, आपके सुझावों पर मंथन करूँ ।

साथियो, आज बड़ा ही खास दिन है - आज NCC दिवस है | NCC का नाम सामने आते ही हमें स्कूल-कॉलेज के दिन याद आ जाते हैं | मैं स्वयं भी NCC Cadet रहा हूँ, इसलिए, पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि इससे मिला अनुभव मेरे लिए अनमोल है | 'NCC' युवाओं में अनुशासन, नेतृत्व और सेवा की भावना पैदा करती है । आपने अपने आस-पास देखा होगा, जब भी कहीं कोई आपदा होती है, चाहे बाढ़ की स्थिति हो, कहीं भूकंप आया हो, कोई हादसा हुआ हो, वहाँ, मदद करने के लिए NCC के cadets जरूर मौजूद हो जाते हैं । आज देश में NCC को मजबूत करने के लिए लगातार काम हो रहा है । 2014 में करीब 14 लाख युवा NCC से जुड़े थे | अब 2024 में, 20 लाख से ज्यादा युवा NCC से जुड़े हैं | पहले के मुकाबले पाँच हजार और नए स्कूल-कॉलेजों में अब NCC की सुविधा हो गई है, और सबसे बड़ी बात, पहले NCC में girls cadets की संख्या करीब 25% (percent) के आस-पास ही होती थी | अब NCC में girls cadets की संख्या करीब-करीब 40% (percent) हो गई है | बॉर्डर किनारे रहने वाले युवाओं को ज्यादा से ज्यादा NCC से जोड़ने का अभियान भी लगातार जारी है । मैं युवाओं से आग्रह करूंगा कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में NCC से जुड़ें | आप देखिएगा आप किसी भी career में जाएं, NCC से आपके व्यक्तित्व निर्माण में बड़ी मदद मिलेगी |

साथियो, विकसित भारत के निर्माण में युवाओं का रोल बहुत बड़ा है | युवा मन जब एकजुट होकर देश की आगे की यात्रा के लिए मंथन करते हैं, चिंतन करते हैं, तो निश्चित रूप से इसके ठोस रास्ते निकलते हैं । आप जानते हैं 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर देश 'युवा दिवस' मनाता है । अगले साल स्वामी विवेकानंद जी की 162वीं जयंती है | इस बार इसे बहुत खास तरीके से मनाया जाएगा | इस अवसर पर 11-12 जनवरी को दिल्ली के भारत मंडपम में युवा विचारों का महाकुंभ होने जा रहा है, और इस पहल का नाम है 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue’ | भारत-भर से करोड़ों युवा इसमें भाग लेंगे | गाँव, block, जिले, राज्य और वहाँ से निकलकर चुने हुए ऐसे दो हजार युवा भारत मंडपम में 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue' के लिए जुटेंगे | आपको याद होगा, मैंने लाल किले की प्राचीर से ऐसे युवाओं से राजनीति में आने का आहवान किया है, जिनके परिवार का कोई भी व्यक्ति और पूरे परिवार का political background नहीं है, ऐसे एक लाख युवाओं को, नए युवाओं को, राजनीति से जोड़ने के लिए देश में कई तरह के विशेष अभियान चलेंगे | ‘विकसित भारत Young Leaders Dialogue' भी ऐसा ही एक प्रयास है । इसमें देश और विदेश से experts आएंगे | अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हस्तियाँ भी रहेंगी | मैं भी इसमें ज्यादा-से-ज्यादा समय उपस्थित रहूँगा | युवाओं को सीधे हमारे सामने अपने ideas को रखने का अवसर मिलेगा | देश इन ideas को कैसे आगे लेकर जा सकता है? कैसे एक ठोस roadmap बन सकता है? इसका एक blueprint तैयार किया जाएगा, तो आप भी तैयार हो जाइए, जो भारत के भविष्य का निर्माण करने वाले हैं, जो देश की भावी पीढ़ी हैं, उनके लिए ये बहुत बड़ा मौका आ रहा है | आइए, मिलकर देश बनाएं, देश को विकसित बनाएं ।

मेरे प्यारे देशवासियों, ‘मन की बात’ में, हम अक्सर ऐसे युवाओं की चर्चा करते हैं | जो निस्वार्थ भाव से समाज के लिए काम कर रहे हैं ऐसे कितने ही युवा हैं जो लोगों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान निकालने में जुटे हैं | हम अपने आस-पास देखें तो कितने ही लोग दिख जाते है, जिन्हें, किसी ना किसी तरह की मदद चाहिए,कोई जानकारी चाहिए I मुझे ये जानकर अच्छा लगा कुछ युवाओं ने समूह बनाकर इस तरह की बात को भी address किया है जैसे लखनऊ के रहने वाले वीरेंद्र हैं, वो बुजुर्गों को Digital life certificate के काम में मदद करते हैं I आप जानते हैं कि नियमों के मुताबिक सभी Pensioners को साल में एक बार Life Certificate जमा कराना होता है I 2014 तक इसकी प्रक्रिया यह थी इसे बैंकों में जाकर बुजुर्ग को खुद जमा करना पड़ता था आप कल्पना कर सकते हैं कि इससे हमारे बुजुर्गों को कितनी असुविधा होती थी I अब ये व्यवस्था बदल चुकी है I अब Digital Life Certificate देने से चीजें बहुत ही सरल हो गई हैं, बुजुर्गों को बैंक नहीं जाना पड़ता I बुजुर्गों को Technology की वजह से कोई दिक्कत ना आए, इसमें, वीरेंद्र जैसे युवाओं की बड़ी भूमिका है I वो, अपने क्षेत्र के बुजुर्गों को इसके बारे में जागरूक करते रहते हैं I इतना ही नहीं वो बुजुर्गों को tech savvy भी बना रहे हैं ऐसे ही प्रयासों से आज Digital Life certificate पाने वालों की संख्या 80 लाख के आँकड़े को पार कर गई है I इनमें से दो लाख से ज्यादा ऐसे बुजुर्ग हैं, जिनकी आयु 80 के भी पार हो गई है I

साथियो, कई शहरों में ‘युवा’ बुजुर्गों को Digital क्रांति में भागीदार बनाने के लिए भी आगे आ रहे हैं I भोपाल के महेश ने अपने मोहल्ले के कई बुजुर्गों को Mobile के माध्यम से Payment करना सिखाया है I इन बुजुर्गों के पास smart phone तो था, लेकिन, उसका सही उपयोग बताने वाला कोई नहीं था I बुजुर्गों को Digital arrest के खतरे से बचाने के लिए भी युवा आगे आए हैं I अहमदाबाद के राजीव, लोगों को Digital Arrest के खतरे से आगाह करते हैं I मैंने ‘मन की बात’ के पिछले episode में Digital Arrest की चर्चा की थी I इस तरह के अपराध के सबसे ज्यादा शिकार बुजुर्ग ही बनते हैं I ऐसे में हमारा दायित्व है कि हम उन्हें जागरूक बनाएं और cyber fraud से बचने में मदद करें I हमें बार-बार लोगों को समझाना होगा कि Digital Arrest नाम का सरकार में कोई भी प्रावधान नहीं है - ये सरासर झूठ, लोगों को फ़साने का एक षड्यन्त्र है मुझे खुशी है कि हमारे युवा साथी इस काम में पूरी संवेदनशीलता से हिस्सा ले रहे हैं और दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं I

मेरे प्यारे देशवासियो, आजकल बच्चों की पढ़ाई को लेकर कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं | कोशिश यही है कि हमारे बच्चों में creativity और बढ़े, किताबों के लिए उनमें प्रेम और बढ़े - कहते भी हैं ‘किताबें’ इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं, और अब इस दोस्ती को मजबूत करने के लिए, Library से ज्यादा अच्छी जगह और क्या होगी | मैं चेन्नई का एक उदाहरण आपसे share करना चाहता हूं | यहां बच्चों के लिए एक ऐसी library तैयार की गई है, जो, creativity और learning का Hub बन चुकी है | इसे प्रकृत् अरिवगम् के नाम से जाना जाता है | इस library का idea, technology की दुनिया से जुड़े श्रीराम गोपालन जी की देन है | विदेश में अपने काम के दौरान वे latest technology की दुनिया से जुड़े रहे | लेकिन, वो, बच्चों में पढ़ने और सीखने की आदत विकसित करने के बारे में भी सोचते रहे | भारत लौटकर उन्होंने प्रकृत् अरिवगम् को तैयार किया | इसमें तीन हजार से अधिक किताबें हैं, जिन्हें पढ़ने के लिए बच्चों में होड़ लगी रहती है | किताबों के अलावा इस library में होने वाली कई तरह की activities भी बच्चों को लुभाती हैं | Story Telling session हो, Art Workshops हो, Memory Training Classes, Robotics Lesson या फिर Public Speaking, यहां, हर किसी के लिए कुछ-न-कुछ जरूर है, जो उन्हें पसंद आता है |

साथियो, हैदराबाद में ‘Food for Thought’ Foundation ने भी कई शानदार libraries बनाई हैं | इनका भी प्रयास यही है कि बच्चों को ज्यादा-से-ज्यादा विषयों पर ठोस जानकारी के साथ पढ़ने के लिए किताबें मिलें | बिहार में गोपालगंज के ‘Prayog Library’ की चर्चा तो आसपास के कई शहरों में होने लगी है | इस library से करीब 12 गांवों के युवाओं को किताबें पढ़ने की सुविधा मिलने लगी है, साथ ही ये, library पढ़ाई में मदद करने वाली दूसरी जरूरी सुविधाएँ भी उपलब्ध करा रही है | कुछ libraries तो ऐसी हैं, जो, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में students के बहुत काम आ रही हैं | ये देखना वाकई बहुत सुखद है कि समाज को सशक्त बनाने में आज library का बेहतरीन उपयोग हो रहा है | आप भी किताबों से दोस्ती बढ़ाइए, और देखिए, कैसे आपके जीवन में बदलाव आता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, परसों रात ही मैं दक्षिण अमेरिका के देश गयाना से लौटा हूं | भारत से हजारों किलोमीटर दूर, गयाना में भी, एक ‘Mini भारत’ बसता है | आज से लगभग 180 वर्ष पहले, गयाना में भारत के लोगों को, खेतों में मजदूरी के लिए, दूसरे कामों के लिए, ले जाया गया था | आज गयाना में भारतीय मूल के लोग राजनीति, व्यापार, शिक्षा और संस्कृति के हर क्षेत्र में गयाना का नेतृत्व कर रहे हैं | गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली भी भारतीय मूल के हैं, जो, अपनी भारतीय विरासत पर गर्व करते हैं | जब मैं गयाना में था, तभी, मेरे मन में एक विचार आया था - जो मैं ‘मन की बात’ में आपसे share कर रहा हूं | गयाना की तरह ही दुनिया के दर्जनों देशों में लाखों की संख्या में भारतीय हैं | दशकों पहले की 200-300 साल पहले की उनके पूर्वजों की अपनी कहानियां हैं | क्या आप ऐसी कहानियों को खोज सकते हैं कि किस तरह भारतीय प्रवासियों ने अलग-अलग देशों में अपनी पहचान बनाई! कैसे उन्होंने वहाँ की आजादी की लड़ाई के अंदर हिस्सा लिया! कैसे उन्होंने अपनी भारतीय विरासत को जीवित रखा? मैं चाहता हूं कि आप ऐसी सच्ची कहानियों को खोजें, और मेरे साथ share करें | आप इन कहानियों को NaMo App पर या MyGov पर #IndianDiasporaStories के साथ भी share कर सकते हैं |

साथियो, आपको ओमान में चल रहा एक extraordinary project भी बहुत दिलचस्प लगेगा | अनेकों भारतीय परिवार कई शताब्दियों से ओमान में रह रहे हैं | इनमें से ज्यादातर गुजरात के कच्छ से जाकर बसे हैं | इन लोगों ने व्यापार के महत्वपूर्ण link तैयार किए थे | आज भी उनके पास ओमानी नागरिकता है, लेकिन भारतीयता उनकी रग-रग में बसी है | ओमान में भारतीय दूतावास और National Archives of India के सहयोग से एक team ने इन परिवारों की history को preserve करने का काम शुरू किया है | इस अभियान के तहत अब तक हजारों documents जुटाए जा चुके हैं | इनमें diary, account book, ledgers, letters और telegram शामिल हैं | इनमें से कुछ दस्तावेज तो सन् 1838 के भी हैं | ये दस्तावेज, भावनाओं से भरे हुए हैं | बरसों पहले जब वो ओमान पहुंचे, तो उन्होंने किस प्रकार का जीवन जिया, किस तरह के सुख-दुख का सामना किया, और, ओमान के लोगों के साथ उनके संबंध कैसे आगे बढ़े - ये सब कुछ इन दस्तावेजों का हिस्सा है | ‘Oral History Project’ ये भी इस mission का एक महत्वपूर्ण आधार है | इस mission में वहां के वरिष्ठ लोगों ने अपने अनुभव साझा किए हैं | लोगों ने वहाँ अपने रहन-सहन से जुड़ी बातों को विस्तार से बताया है |

साथियो ऐसा ही एक ‘Oral History Project’ भारत में भी हो रहा है | इस project के तहत इतिहास प्रेमी देश के विभाजन के कालखंड में पीड़ितों के अनुभवों का संग्रह कर रहें हैं | अब देश में ऐसे लोगों की संख्या कम ही बची है, जिन्होंने, विभाजन की विभीषिका को देखा है | ऐसे में यह प्रयास और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है |

साथियो, जो देश, जो स्थान, अपने इतिहास को संजोकर रखता है, उसका भविष्य भी सुरक्षित रहता है | इसी सोच के साथ एक प्रयास हुआ है जिसमें गांवों के इतिहास को संजोने वाली एक Directory बनाई है | समुद्री यात्रा के भारत के पुरातन सामर्थ्य से जुड़े साक्ष्यों को सहेजने का भी अभियान देश में चल रहा है | इसी कड़ी में, लोथल में, एक बहुत बड़ा Museum भी बनाया जा रहा है, इसके अलावा, आपके संज्ञान में कोई manuscript हो, कोई ऐतिहासिक दस्तावेज हो, कोई हस्तलिखित प्रति हो तो उसे भी आप, National Archives of India की मदद से सहेज सकते हैं |

साथियो, मुझे Slovakia में हो रहे ऐसे ही एक और प्रयास के बारे में पता चला है जो हमारी संस्कृति को संरक्षित करने और उसे आगे बढ़ाने से जुड़ा है | यहां पहली बार Slovak language में हमारे उपनिषदों का अनुवाद किया गया है | इन प्रयासों से भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव का भी पता चलता है | हम सभी के लिए ये गर्व की बात है कि दुनिया-भर में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिनके हृदय में, भारत बसता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, अब मैं आपसे देश की एक ऐसी उपलब्धि साझा करना चाहता हूं जिसे सुनकर आपको खुशी भी होगी और गौरव भी होगा, और अगर आपने नहीं किया है, तो शायद पछतावा भी होगा | कुछ महीने पहले हमने ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान शुरू किया था | इस अभियान में देश-भर के लोगों ने बहुत उत्साह से हिस्सा लिया | मुझे ये बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि इस अभियान ने सौ करोड़ पेड़ लगाने का अहम पड़ाव पार कर लिया है | सौ करोड़ पेड़, वो भी, सिर्फ पाँच महीनों में - ये हमारे देशवासियों के अथक प्रयासों से ही संभव हुआ है | इससे जुड़ी एक और बात जानकर आपको गर्व होगा | ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान अब दुनिया के दूसरे देशों में भी फैल रहा है | जब मैं गयाना में था, तो वहां भी, इस अभियान का साक्षी बना | वहां मेरे साथ गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली, उनकी पत्नी की माता जी, और परिवार के बाकी सदस्य, ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान में शामिल हुए |

साथियो, देश के अलग-अलग हिस्सों में ये अभियान लगातार चल रहा है | मध्य प्रदेश के इंदौर में ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान के तहत, पेड़ लगाने का record बना है - यहां 24 घंटे में 12 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए गए | इस अभियान की वजह से इंदौर की Revati Hills के बंजर इलाके, अब, green zone में बदल जाएंगे | राजस्थान के जैसलमेर में इस अभियान के द्वारा एक अनोखा record बना - यहां महिलाओं की एक टीम ने एक घंटे में 25 हजार पेड़ लगाए | माताओं ने मां के नाम पेड़ लगाया और दूसरों को भी प्रेरित किया। यहां एक ही जगह पर पाँच हज़ार से ज़्यादा लोगों ने मिलकर पेड़ लगाए - ये भी अपने आप में एक रिकॉर्ड है । ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के तहत कई सामाजिक संस्थाएँ स्थानीय जरूरतों के हिसाब से पेड़ लगा रही हैं । उनका प्रयास है कि जहां पेड़ लगाए जाएँ वहाँ पर्यावरण के अनुकूल पूरा Eco System Develop हो । इसलिए ये संस्थाएँ कहीं औषधीय पौधे लगा रहीं हैं, तो कहीं, चिड़ियों का बसेरा बनाने के लिए पेड़ लगा रहीं हैं । बिहार में ‘JEEViKA Self Help Group’ की महिलाओं ने 75 लाख पेड़ लगाने का अभियान चला रहीं हैं । इन महिलाओं का focus फल वाले पेड़ों पर है, जिससे आने वाले समय में आय भी की जा सके ।

साथियो, इस अभियान से जुड़कर कोई भी व्यक्ति अपनी माँ के नाम पर पेड़ लगा सकता है । अगर माँ साथ है तो उन्हें साथ लेकर आप पेड़ लगा सकते हैं, नहीं तो उनकी तस्वीर साथ में लेकर आप इस अभियान का हिस्सा बन सकते हैं । पेड़ के साथ आप अपनी Selfie भी mygov.in पर पोस्ट कर सकते हैं । माँ, हम सबके लिए जो करती है हम उनका ऋण कभी नहीं चुका सकते, लेकिन, एक पेड़ माँ के नाम लगाकर हम उनकी उपस्थिति को हमेशा के लिए जीवंत बना सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आप सभी लोगों ने बचपन में गौरेया या Sparrow को अपने घर की छत पर, पेड़ों पर चहकते हुए ज़रूर देखा होगा । गौरेया को तमिल और मलयालम में कुरुवी, तेलुगु में पिच्चुका और कन्नड़ा में गुब्बी के नाम से जाना जाता है । हर भाषा, संस्कृति में, गौरेया को लेकर किस्से-कहानी सुनाए जाते हैं । हमारे आसपास Biodiversity को बनाए रखने में गौरेया का एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है, लेकिन, आज शहरों में बड़ी मुश्किल से गौरेया दिखती है । बढ़ते शहरीकरण की वजह से गौरेया हमसे दूर चली गई है । आज की पीढ़ी के ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिन्होंने गौरेया को सिर्फ तस्वीरों या वीडियो में देखा है । ऐसे बच्चों के जीवन में इस प्यारी पक्षी की वापसी के लिए कुछ अनोखे प्रयास हो रहे हैं । चेन्नई के कूडुगल ट्रस्ट ने गौरेया की आबादी बढ़ाने के लिए स्कूल के बच्चों को अपने अभियान में शामिल किया है । संस्थान के लोग स्कूलों में जाकर बच्चों को बताते हैं कि गौरेया रोज़मर्रा के जीवन में कितनी महत्वपूर्ण है । ये संस्थान बच्चों को गौरेया का घोंसला बनाने की training देते है । इसके लिए संस्थान के लोगों ने बच्चों को लकड़ी का एक छोटा सा घर बनाना सिखाया । इसमें गौरेया के रहने, खाने का इंतजाम किया । ये ऐसे घर होते हैं जिन्हें किसी भी इमारत की बाहरी दीवार पर या पेड़ पर लगाया जा सकता है । बच्चों ने इस अभियान में उत्साह के साथ हिस्सा लिया और गौरेया के लिए बड़ी संख्या में घोंसला बनाना शुरू कर दिया । पिछले चार वर्षों में संस्था ने गौरेया के लिए ऐसे दस हज़ार घोंसले तैयार किए हैं । कूडुगल ट्रस्ट की इस पहल से आसपास के इलाकों में गौरेया की आबादी बढ़नी शुरू हो गई है। आप भी अपने आसपास ऐसे प्रयास करेंगे तो निश्चित तौर पर गौरेया फिर से हमारे जीवन का हिस्सा बन जाएगी ।

साथियो, कर्नाटका के मैसुरू की एक संस्था ने बच्चों के लिए ‘Early Bird’ नाम का अभियान शुरू किया है । ये संस्था बच्चों को पक्षियों के बारे में बताने के लिए खास तरह की library चलाती है । इतना ही नहीं, बच्चों में प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का भाव पैदा करने के लिए ‘Nature Education Kit’ तैयार किया है। इस Kit में बच्चों के लिए Story Book, Games, Activity Sheets और jig-saw puzzles हैं । ये संस्था शहर के बच्चों को गांवों में लेकर जाती है और उन्हें पक्षियों के बारे में बताती है । इस संस्था के प्रयासों की वजह से बच्चे पक्षियों की अनेक प्रजातियों को पहचानने लगे हैं । ‘मन की बात’ के श्रोता भी इस तरह के प्रयास से बच्चों में अपने आसपास को देखने, समझने का अलग नज़रिया विकसित कर सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आपने देखा होगा, जैसे ही कोई कहता है ‘सरकारी दफ्तर’ तो आपके मन में फाइलों के ढ़ेर की तस्वीर बन जाती है | आपने फिल्मों में भी ऐसा ही कुछ देखा होगा | सरकारी दफ्तरों में इन फाइलों के ढ़ेर पर कितने ही मजाक बनते रहते हैं, कितनी ही कहानियां लिखी जा चुकी हैं | बरसों-बरस तक ये फाइलें Office में पड़े-पड़े धूल से भर जाती थीं, वहां, गंदगी होने लगती थी - ऐसी दशकों पुरानी फाइलों और Scrap को हटाने के लिए एक विशेष स्वच्छता अभियान चलाया गया | आपको ये जानकर खुशी होगी कि सरकारी विभागों में इस अभियान के अद्भुत परिणाम सामने आए हैं | साफ-सफाई से दफ्तरों में काफी जगह खाली हो गई है | इससे दफ्तर में काम करने वालों में एक Ownership का भाव भी आया है | अपने काम करने की जगह को स्वच्छ रखने की गंभीरता भी उनमें आई है |

सथियो, आपने अक्सर बड़े-बुजुर्गों को ये कहते सुना होगा, कि जहां स्वच्छता होती है, वहां, लक्ष्मी जी का वास होता है | हमारे यहाँ ‘कचरे से कंचन’ का विचार बहुत पुराना है | देश के कई हिस्सों में ‘युवा’ बेकार समझी जाने वाली चीजों को लेकर, कचरे से कंचन बना रहे हैं | तरह-तरह के innovation कर रहे हैं | इससे वो पैसे कमा रहे हैं, रोजगार के साधन विकसित कर रहे हैं | ये युवा अपने प्रयासों से sustainable lifestyle को भी बढ़ावा दे रहे हैं | मुंबई की दो बेटियों का ये प्रयास, वाकई बहुत प्रेरक है | अक्षरा और प्रकृति नाम की ये दो बेटियाँ, कतरन से फैशन के सामान बना रही हैं | आप भी जानते हैं कपड़ों की कटाई-सिलाई के दौरान जो कतरन निकलती है, इसे बेकार समझकर फेंक दिया जाता है | अक्षरा और प्रकृति की Team उन्हीं कपड़ों के कचरे को Fashion Product में बदलती है | कतरन से बनी टोपियां, Bag हाथों-हाथ बिक भी रही है |

साथियो, साफ-सफाई को लेकर UP के कानपुर में भी अच्छी पहल हो रही है | यहाँ कुछ लोग रोज सुबह Morning Walk पर निकलते हैं और गंगा के घाटों पर फैले Plastic और अन्य कचरे को उठा लेते हैं | इस समूह को ‘Kanpur Ploggers Group’ नाम दिया गया है | इस मुहिम की शुरुआत कुछ दोस्तों ने मिलकर की थी | धीरे-धीरे ये जन भागीदारी का बड़ा अभियान बन गया | शहर के कई लोग इसके साथ जुड़ गए हैं | इसके सदस्य, अब, दुकानों और घरों से भी कचरा उठाने लगे हैं | इस कचरे से Recycle Plant में tree guard तैयार किए जाते हैं, यानि, इस Group के लोग कचरे से बने tree guard से पौधों की सुरक्षा भी करते हैं|

साथियो, छोटे-छोटे प्रयासों से कैसी बड़ी सफलता मिलती है, इसका एक उदाहरण असम की इतिशा भी है | इतिशा की पढ़ाई-लिखाई दिल्ली और पुणे में हुई है | इतिशा corporate दुनिया की चमक-दमक छोड़कर अरुणाचल की सांगती घाटी को साफ बनाने में जुटी हैं | पर्यटकों की वजह से वहां काफी plastic waste जमा होने लगा था | वहां की नदी जो कभी साफ थी वो plastic waste की वजह से प्रदूषित हो गई थी | इसे साफ करने के लिए इतिशा स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम कर रही है | उनके group के लोग वहां आने वाले tourist को जागरूक करते हैं और plastic waste को collect करने के लिए पूरी घाटी में बांस से बने कूड़ेदान लगाते हैं |

साथियो, ऐसे प्रयासों से भारत के स्वच्छता अभियान को गति मिलती है | ये निरंतर चलते रहने वाला अभियान है | आपके आस-पास भी ऐसा जरूर होता ही होगा | आप मुझे ऐसे प्रयासों के बारे में जरूर लिखते रहिए |

साथियो, ‘मन की बात’ के इस episode में फिलहाल इतना ही | मुझे तो पूरे महीने, आपकी प्रतिक्रियाओं, पत्रों और सुझावों का खूब इंतजार रहता है | हर महीने आने वाले आपके संदेश मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा देते हैं | अगले महीने हम फिर मिलेंगे, ‘मन की बात’ के एक और अंक में - देश और देशवासियों की नई उपलब्धियों के साथ, तब तक के लिए, आप सभी देशवासियों को, मेरी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं |

बहुत-बहुत धन्यवाद |