भारत माता की जय..! सीमा पर जो जवान हमारी सुरक्षा में तैनात हैं, उन तक ये आवाज पहुंचनी चाहिए...

भारत माता की जय..! भारत माता की जय..!

मंच पर विराजमान पूर्व सेनाध्यक्ष आदरणीय श्री वी. के. सिंह जी, भारतीय जनता पार्टी के सभी वरिष्ठ नेतागण, मंच पर विराजमान भारत को गौरव दिलाने वाले, अपना खून पसीना एक करके हम लोगों को सुख चैन की जिंदगी देने वाले सेना के सभी पूर्व अफसर भाई-बहन और विशाल संख्या में आए हुए पूर्व सैनिक, भाइयों और बहनों..!

मेरे जीवन में इतनी बड़ी मात्रा में सेना के पूर्व अधिकारी और सेना के पूर्व सैनिक के बीच आने का, बैठने का मुझे सौभाग्य मिला है, ये मैं मेरे जीवन का एक बहुमूल्य अवसर मानता हूँ। इस धरती ने हर युद्घ में शहादत का शतक किया, चाहे वो रिझांग्ला की लड़ाई हो, त्रिशूर की लड़ाई हो, या फिर कारगिल की लड़ाई हो, हर युद्घ में शहादत का शतक किया है..! ये कोई कल्पना नहीं कर सकता है, ऐसी ये बांकुरों की भूमि है, ये वीरों की भूमि है..! 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में राव तुलाराम एक गौरवपूर्ण नाम, अंग्रेज सल्तनत की नाक में दम लाने वाला नाम, ये इसी भूमि का नाम... ऐसी वीर भूमि में आया हूँ तब, ऐसी बड़ी मात्रा में सेना के जवानों के बीच आया हूँ तब, भारत माँ के एक छोटे से सिपाही के नाते, इस माँ के संतान के नाते, मैं सबसे पहले इन वीरों को नमन करता हूँ, उनकों मैं प्रणाम करता हूँ..!

भाइयों-बहनों, देश के लिए मर मिटना, हर पल देश के लिए मरने की, शहीद होने की कामना करना, ये जीवन ऋषि-मुनियों से जरा भी कम नहीं होता और इसलिए मैं उनको नमन करता हूँ, मैं उनका गौरव करता हूँ और ना सिर्फ यहाँ है उनको मैं नमन करता हूँ, हिन्दुस्तान के किसी भी कोने में जो पूर्व सैनिक होंगे, हिन्दुस्तान के किसी भी कोने में तैनात हमारे जवान होंगे, मैं उनको भी आदरपूर्वक नमन करता हूँ, मैं उनका गौरव करता हूँ..!

भाइयों-बहनों, आज जब मैं आपके बीच आया हूँ तब सुबह-सुबह एक अच्छी खबर सुनने को मिली। जैसे यूरोप के देश में जब खबर आती है कि अगले हफ्ते एक दिन के लिए सूरज निकलने वाला है, तो वहाँ पर एक हफ्ते पहले से ही आनंद उमंग का माहोल बन जाता है, क्योंकि उनको सूरज देखने को मिलता नहीं है। मित्रों, हमारे देश में भी अच्छी खबरें सुनने को मिल ही नहीं रही है। पूरा एक दशक होने आया, निराशा की, बुराइयों की, पराजय की, ऐसी ही खबरें सुनते-सुनते हमारे कान पक चुके हैं, हम निराश हो चुके हैं। ऐसे समय कोई अच्छी खबर सुनने को मिलती है तो हौंसला बुलंद हो जाता हैं। मैं भारत के वैज्ञानिकों का अभिनंदन करता हूँ, भारत की विज्ञान शक्ति का अभिनंदन करता हूँ कि जिन्होंने आज सफलतापूर्वक अग्नि-5 का परीक्षण किया है और इसलिए मैं भारत की सभी वैज्ञानिक बिरादरी का हृदय से धन्यवाद करता हूँ, अभिनंदन करता हूँ..!

मित्रों, दो दिन पूर्व भारतीय जनता पार्टी ने मुझे एक विशेष जिम्मेवारी दी। व्यक्ति के जीवन में ऐसी घटनाएं बहुत ही रोचक होती हैं, लेकिन भाइयों-बहनों, आज मैं सार्वजनिक रूप से स्वीकार करना चाहता हूँ कि मुझे जितना थ्रिलिंग इस कार्यक्रम में हो रहा है, उतना मुझे उस पद की घोषणा के समय नहीं हुआ था, और ये मेरे अंदर बचपन से जो भाव पड़े हैं, उन भावों का परिणाम है..! मित्रों, आज मुझे कुछ अपनी बात बताने का भी मन करता है। मैं चौथी कक्षा का छात्र था, गरीब परिवार से था, दो रूपये एक साथ कभी देखे नहीं थे। लेकिन लाइब्रेरी में अखबार के अंदर एक इश्तिहार पढ़ा था, और उसमें लिखा था कि गुजरात के जामनगर के पास बालाछड़ी में एक सैन्य स्कूल है, उस सैनिक स्कूल में अगर कोई जाना चाहता है तो यहाँ पत्र व्यवहार करें। मित्रों, मैंने चौथी कक्षा में दो रूपये जमा किए और दो रूपया जमा करके मैं पोस्ट ऑफिस गया, मैंने जिदंगी में पहली बार पोस्ट ऑफिस देखी थी, पोस्ट ऑफिस के पोस्ट मास्टर से मैंने मदद ली और उनकी मदद लेकर के मैंने जामनगर सैनिक स्कूल को मनिआर्डर किया और उनसे मैंने प्रोस्पेक्टस मंगवाया। उस समय वो दो रूपयें में मिलता था। उस उम्र में मेरे मन में ये लगता था कि देश की सेवा करना मतलब सेना में जाना, ये मेरे मन में घुस गया था, किसी से सुना नहीं था, लेकिन ऐसे ही विचार आते थे..! प्रोस्पेक्टस आ गया, मैंने एक दूसरे टीचर की मदद ली, भर कर के भेज दिया..! अब उसके एक्जाम के लिए मुझे जाना था, टिकट के पैसे चाहिए, तो पिताजी से मैंने कहा कि मुझे ऐसी स्कूल में जाना है, और उसका एटंरेंस एक्जाम है, मुझे टिकट के लिए कुछ खर्चा चाहिए। पिताजी ने कहा बेटा, ये अपने बस की बात नहीं है, हम ये सब नहीं कर सकते, तुम यहीं गाँव में पढ़ लेना..! मेरा वो सपना टूट गया, मैं नहीं जा पाया, लेकिन मन में वो कसक बनी रही कि मैं सेना में जाने के इरादे से सैनिक स्कूल मे जाना चाहता था, नहीं जा पाया..! और ये जामनगर की बालाछड़ी की वो सैनिक स्कूल है, जहाँ आपके मुख्यमंत्री हुडा जी भी पढ़े हुए हैं। ये हुड़ा जी ने गुजरात का नमक बहुत खाया है..!

Shri Narendra Modi's speech at Ex- Servicemen's Rally, Rewari

मित्रों, बाद में 1962 की लड़ाई हुई, 1962 की लड़ाई पूरे देश को, आजाद हिन्दुस्तान के हर व्यक्ति के लिए झकझोर देने वाली थी। तब तो मैं छठी-सातवीं कक्षा में पढ़ता था। मेरे गाँव से मेहसाणा स्टेशन दूरी पर था, लेकिन पता चला कि युद्घ भूमि में जाने वाले सैनिक इस रेलवे से जा रहे हैं, यहाँ से गुजर रहे हैं। कुछ सामाजिक संस्थाएं रेलवे स्टेशन पर सेना के जवानों की विदाई के लिए, उनकी हौंसला अफजाई के लिए वहाँ पर मिठाई, चाय-नाश्ता, ढोल-नगाड़े बजा रहे थे। ये हमने अखबार में पढ़ा तो हम भी पिताजी को कहे बिना मेहसाणा चले गए और उस युद्घ के दिनों में, छोटी उम्र में, मैं सेना के जवानों को चाय देना, नाश्ता देना, उनके पैर छूना... कई दिनों तक वो क्रम चला था..! मेरा बचपन से ये लगाव रहा था, लेकिन खुद को इसका लाभ नहीं मिला। इत्तेफाक से 1995 के बाद मुझे हरियाणा, हिमाचल, चंडीगढ़, पंजाब, जम्मू-कश्मीर इस सारे क्षेत्र में भाजपा का काम करने का सौभाग्य मिला और यहाँ पर मुझे केन्टोनमेंट में जाने का अवसर मिला, सेना में अफसरों के साथ वार्तालाप का अवसर मिला, पूर्व सैनिकों के घर जाने का अवसर मिला और एक प्रकार से सैनिक परिवार मेरा एक बृहद परिवार बनता गया। एक नई अनुभूति मैं कर रहा था और इस मन की अवस्था के कारण जब मैं आज आपके बीच आया हूँ तब मैं गौरव अनुभव करता हूँ। मेरे मन में जो सपने पड़े हैं, मेरे मन में सेना के प्रति जो भाव पड़ा है, जो गौरव पड़ा है, वो जब भी अवसर मिलता है उसका उजागर होना बहुत स्वाभाविक है। मित्रों, शायद इश्वर का भी कोई संकेत है, वरना ये रैली तो बहुत पहले तय हुई थी। 15 तारीख को मेरा रेवाड़ी आना पहले से तय था। मुझे कहाँ पता था कि 13 तारीख को ही इतनी बड़ी घोषणा हो जाएगी और उसके बाद पहला कार्यक्रम, जो मेरे दिल को छूने वाला कार्यक्रम है, वो पूर्व सैनिकों के बीच आने का कार्यक्रम होगा..! ये भी कोई इश्वरीय संकेत है..!

मित्रों, मैंने हरियाणा में बहुत काम किया है। मैं यहाँ के गाँव-गाँव गली-गली से परिचित रहा हूँ। ये भूमि पर जब स्वामी दयानंद सरस्वती का प्रभाव देखता था, कोई परिवार ऐसा नहीं होगा जिसके घर पर आज भी स्वामी दयानंद सरस्वती का प्रभाव ना हो..! और हरियाणा में उस समय मुझे सम्मान और गौरव मिलता था उसका एक प्रमुख कारण था कि मैं स्वामी दयानंद जी की धरती से आया था, इतने मात्र से..! यहाँ आर्य समाज का इतना प्रभाव रहा है, संस्कार सरिता यहाँ बह रही है, ये मेरे मन को छू रहा था..! मित्रों, जब इमरजेंसी आई, मोरारजी भाई देसाई को जेल में डाल दिया गया था, तो यही हरियाणा की जेल में उनको कैदी बना कर के रखा गया था, वो भी गुजरात का एक नाता जुड़ गया था। भाइयों-बहनों, हरियाणा में मुझे चौधरी देवीलाल जी के साथ निकट से काम करने का अवसर मिला, हरियाणा में मुझे चौधरी बंसीलाल जी के साथ निकट काम करने का अवसर मिला, मुझे हरियाणा में अटल जी के साथ भी अनेक रैली में आने का अवसर मिला। मैंने आखिरी एक रैली यहीं रेवाड़ी में अटल जी के साथ की थी। लेकिन भाइयों-बहनों, आज का दृश्य कुछ अलग ही है। किसी कैमरे की ताकत नहीं है कि इस दृश्य को अपने कैमरे में समाहित कर पाए..! किसी कि आंखों में उतनी चेतना संभव नहीं है कि इतना दूर-दूर तक किसी को देख पाएं जहाँ मैं देख रहा हूँ। माथे ही माथे नजर आ रहे हैं, मुंड ही मुंड नजर आ रहे हैं, क्या दृश्य है, मित्रों..! भाइयों-बहनों, ये हरियाणा की धरती से उठी हुई परिवर्तन की पुकार है। ये हरियाणा की धरती ने दिल्ली की सल्तनत को आज ललकारा है..!

भाइयों-बहनों, श्री कृष्ण भगवान द्वारिका में आकर बसे थे, लेकिन हरियाणा की धरती का नाता, कुरूक्षेत्र की धरती का नाता, भगवान श्री कृष्ण का गीता का संदेश हजारों-हजारों वर्ष तक दुनिया के लिए प्रेरणा का संदेश है..! मित्रों, विश्व में कहीं पर भी युद्घ की भूमि में ऐसा ज्ञान का सागर छलका हो ये कभी कोई सोच नहीं सकता..! सेनाएं सज्ज हों, तीर और तलवारें खून की प्यासी हुई हों, जीवन और मृत्यु का खेल निर्धारित हो, ऐसे समय गीता का ऐसा कोई संदेश सुना पाए, ये घटना भी दुनिया के मनोवैज्ञानिकों के लिए संशोधन का विषय है..! युद्घ की भूमि में श्री कृष्ण की कैसी स्वस्थता होगी, विजय का कितना विश्वास होगा, युद्घ की रणनीति पर कितना भरोसा होगा, और युद्घ के मैदान में भी मानवीय मूल्यों की कितनी कीमत उस हृदय में होगी, तब जाकर के गीता का संदेश निकला होगा..! भाइयों-बहनों, जब सेना के बीच खड़े हों, युद्घ की भूमि पर खड़े हों, उस समय नेतृत्व और दिशा देने वाले व्यक्ति का ये सामर्थ्य होता है कि उसमें विजय का विश्वास चाहिए, उसमें सामर्थ्य चाहिए, उसमें रणनीतिक कौशल्य चाहिए, और खुद फ्रंट पे खड़े रह कर लीड करने का जज्बा चाहिए, तब जाकर के युद्घ जीते जाते हैं..!

मित्रों, हमारे देश की सेना का एक ही रूप लोगों के सामने आता है, कि वो यूनिफार्म में सज्ज होते हैं, वो सीमा पर तैनात होते हैं, और दुश्मन के दांत खट्टे करने की ताकत रखते हैं... उनको एक ही रूप में हमने देखा होता है। लेकिन ये हमारे देश की सेना का हमें गर्व है कि दुश्मनों के लिए जितनी कठोरता से वो पेश आ सकते हैं, उतनी ही ऋजुता और मृदुता के साथ देश के संकट के समय नागरिकों की सेवा के लिए काम आते हैं..! ये अद्भुत ट्रेनिंग है, मित्रों..! 2001 में गुजरात के भूकंप के समय सेना के जवानों ने जो काम किया था, उसको मैं कभी भूल नहीं सकता..! गुजरात मौत की चादर ओढ के सोया था, तब देश की सेना के जवान आए, अनेक जीवित व्यक्ति मलबे के नीचे दबे हुए थे, जीवन और मृत्यु के बीच कोई फासला बचा नहीं था, तब देवदूत बन कर के सेना के जवान आए थे और मेरे गुजरात के पीड़ितों की उन्होंने रक्षा की थी, ये मानवता का संदेश मेरे सेना के जवानों ने दिया था..! मित्रों, अभी उत्तराखंड में इतनी भंयकर आपत्ति आई। देश के कोने-कोने से आए यात्री फंसे हुए थे, घर जिंदा लौट पाएंगे या नहीं वो भरोसा नहीं था और तब जान की बाजी लगा कर के हमारे सेना के जवान, हमारे हैलीकॉप्टर, यात्रा में पीड़ित लोगों को उठा-उठा कर के सुरक्षित पहुंचाने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे थे। और युद्घ के मैदान में नहीं, दुश्मनों की गोलियों से नहीं, उत्तराखंड के पीड़ितों की सेवा करते-करते, यात्रियों की सेवा करते-करते हमारे जवानों ने जीवन दे दिया..! भाइयों-बहनों, यात्रियों की सेवा करते-करते जीवन देने वाले उन सेना के जवानों को मैं नमन करता हूँ, उनका मैं अभिनदंन करता हूँ, उनकी शहादत का मैं गर्व करता हूँ..!

लेकिन भाइयों-बहनों, जब देश हमारे सैन्य के इस पराक्रम की गाथा गा रहा था, देश का हर व्यक्ति जो गंगा से, केदार से जुड़ा हुआ है वो सेना के इस त्याग और तपस्या की गाथा गा रहा था, एक तरफ तो ये पवित्र तपस्या की गाथाएं सुनाई जा रही थी, उसी समय दूसरी तरफ पाकिस्तान के सैनिक आ कर के हमारे देश की सेवा कर रहे जवानों को सीमा पर मौत के घाट उतार दें, उनको मार दिया जाए और दुर्भाग्य देखिए, भारत के रक्षा मंत्री संसद में खड़े हो कर के ये कहे कि पाकिस्तानी सेना के कपड़े पहन कर के कोई आए थे..! कितनी बड़ी पीड़ा होती होगी, उन शहीद परिवारों को कितनी पीड़ा होती होगी, देश की रक्षा के लिए तैनात लाखों जवानों को कितनी पीड़ा होती होगी, सवा सौ करोड़ देशवासियों को कितनी पीड़ा होती होगी..! लेकिन भाइयों-बहनों, दिल्ली में बैठी हुई सरकार को इसकी परवाह नहीं, उसको इसकी चिंता नहीं, उसके लिए तो ऐसी घटनाएं घटती रहती हैं..! इतना ही नहीं मित्रों, निर्लज्जता की सीमा तो तब आ जाती है, जब जनता के चुने हुए प्रतिनिधि, मंत्री परिषद में बैठे हुए व्यक्ति, ये बयान दे दें कि सेना में लोग मरने के लिए ही तो जाते हैं..! इससे बुरा कोई व्यवहार नहीं हो सकता है, इससे बड़ा सेना के जवानों का अपमान इस देश में किसी राजनैतिक दल ने नहीं किया होगा, किसी राजनेता ने नहीं किया होगा..! अगर आप आंसू नहीं बहा पाते हो तो मत बहाओ, आपके हृदय में पत्थर बसे हो तो बसने दो, लेकिन मेरे देश के लिए जीने मरने वाले सैनिकों का अपमान मत करो..! निर्लज्जता की भी सीमा होती है और उसका कारण ये है मित्रों, कि देश की सुरक्षा और देश के सुरक्षा बल इनकी प्राथमिकता नहीं है..! मित्रों, आज भी जब दिवाली के दिन आते हैं तो लोग अलग-अलग तरीके से दिवाली मनाते हैं। मुझे अगर दिवाली मनाने का मैाका मिलता है तो आज भी मैं सीमा पर चला जाता हूँ, उन जवानों के साथ दिवाली मनाता हूँ, उन जवानों के सुख-दुख बांटता हूँ..!

हमारे गुजरात की सीमा पाकिस्तान से सटी हुई है। आजादी के इतने साल हो गए, लेकिन पीने का पानी ऊंट पर भर-भर के लाया जाता था, करीब आठ सौ ऊंट पीने के पानी को लाने के लिए तैनात थे। मैं जब गया, मैंने जब पीड़ा देखी, तो गुजरात के पूर्वी छोर से पानी उठाया, सात सौ किलोमीटर लंबा पाइप लाइन डाला और सीमा के आखिरी पाँइट पर नर्मदा का पीने का शुद्घ जल पहुंचाया..! मित्रों, ये बजट के कारण नहीं होता है, ये पाइप डालने की टैक्नोलॉजी है इसलिए नहीं होता है, ये होता इसलिए है कि सीमा पर काम करने वाले जवान के प्रति सम्मान का भाव हमारे जज्बे में भरा हुआ है, तब जा कर के होता है, तब हमारी ये प्रायोरिटी बनती है..! 1965 की लड़ाई हुई थी हमारे यहाँ, कोई शहीद स्मारक नहीं था..! मेरे सभी अधिकारियों को मैं गर्व से जानकारी देता हूँ, हमने पाकिस्तान की सीमा पर भारत के उन वीर शहीदों का स्मारक बनाया, उसका लोकापर्ण किया और हमारे टूरिस्ट मैप पर भी लगाया है। और मेरे देश के नौजवानों से मैं प्रार्थना करता हूँ, जब भी यात्रा पर जाने का मौका मिले, सीमा पर बनाए हुए उस शहीद स्मारक को जा कर के सलाम करें, इससे चेतना मिलती है, संस्कार मिलते हैं..!

Shri Narendra Modi's speech at Ex- Servicemen's Rally, Rewari

भाइयों-बहनों, आज देश की नीतियों का क्या हाल हो गया है..! मित्रों, आए दिन हम संकटों से घिरते चले जा रहे हैं। पाकिस्तान अपनी हरकतेां को छोड़ नहीं रहा है, चीन आए दिन आंखें दिखाता रहता है, हमारी धरती पर घुस जाता है..! इतना ही नहीं, ब्रह्मपुत्रा नदी का पानी रोकने पर उतारू है, अरूणाचल प्रदेश को हड़प करने पर उतारू है..! मेरे भाइयों-बहनों, क्या ये सब सेना की कमजोरी के कारण हो रहा है..? ये पड़ौसी देश हमें परेशान कर रहे हैं, ये सेना की कमजोरी के कारण..? मित्रों, समस्या सीमा पर नहीं है, समस्या दिल्ली में है, और इसलिए इस समस्या का समाधान भी हमें दिल्ली से खोजना पड़ेगा..! जब तक दिल्ली में सक्षम सरकार ना बने, देश भक्ति से भरी हुई सरकार ना बने, हिन्दुस्तान के जन-जन की रक्षा के लिए प्रतिबद्घ सरकार ना बने, तब तक सैन्य भले कितना ही सामर्थ्यवान क्यों ना हो, साधन कितने ही आधुनिक क्यों ना हो, हम सुरक्षा की गारंटी नहीं ले सकते हैं..! भाइयों-बहनों, हिन्दुस्तान ने जितने जवान आजादी के बाद युद्घ में गवाएं हैं, उससे ज्यादा जवान आतंकवादियों की गोलियों से गवाएं हैं, माओवादियों की गोलियों से गवाएं हैं, विघटनकारी शक्तियों से गवाएं हैं..!

भाइयों-बहनों, यूनाइटेड नेशन का जन्म दुनिया को विश्व युद्घ से बचाने के लिए हुआ था, तीसरे विश्व युद्घ की नौबत ना आए इसलिए यू.एन.ओ. अपना जिम्मा निभाने की कोशिश कर रहा है। उनको लगता भी होगा कि इतने साल हो गए, तीसरे विश्व युद्घ की नोबत नहीं आई..! लेकिन आज मैं सार्वजनिक तौर पर कहना चाहता हूँ, यू.एन.ओ. को गर्व नहीं करना चाहिए, क्योंकि अब युद्घ ने अपना रूप बदल दिया है, युद्घ ने अपने रंग बदल दिए हैं, युद्घ ने अपने तौर तरीके बदल दिए हैं, और इसके कारण प्रथम और द्वितीय विश्व युद्घ में जितने देश, जितनी जनसंख्या युद्घ के कारण परेशान थी, उससे ज्यादा देश और ज्यादा जनसंख्या प्रोक्सी वॉर से परेशान है, छद्म युद्घ से परेशान है, और उस युद्घ का नाम है आतंकवाद, उस युद्घ का नाम है माओवाद..! और इसलिए समय की माँग है कि पूरे विश्व में आतंकवाद के खिलाफ, माओवाद के खिलाफ, हिंसा के खिलाफ एक जनमत तैयार होना चाहिए। अगर भारत के पास सामर्थ्यवान नेतृत्व होता है, तो विश्व के अंदर आतंकवाद के खिलाफ, माओवाद के खिलाफ, हिंसा के खिलाफ जनमत इकट्ठा करना मुश्किल काम नहीं है..!

भाइयों-बहनों, आज मैं जब हरियाणा की धरती पर आया हूँ तब अटल जी और आडवाणी जी के काल की सरकार को याद करना मुझे अच्छा लगता है। इसलिए क्योंकि अटल जी की विदेश नीति की एक विशेषता रही कि हम दिन-रात कश्मीर किसका इसी की लड़ाई में उलझे रहते थे, आए दिन उसी की डिबेट होती रहती थी, उसी का जवाब देते रहते थे। ये अटल जी की कूटनीति का परिणाम था कि उन्होंने पूरे विश्व को आंतकवाद पर चर्चा करने के लिए मजबूर कर दिया था। और पूरा विश्व दो खेमे में बंट गया था, एक खेमा था जो मानवतावाद में विश्वास करते हैं और दूसरा खेमा था जो आतंकवाद में विश्वास करते हैं, आतंकवाद का पनपाते हैं। और उसके कारण दुनिया ने पाकिस्तान को सुनना बंद कर दिया था, दुनिया में पाकिस्तान की चलती नहीं थी, वो दिन आ गए थे..! लेकिन भाइयों-बहनों, पिछले नौ साल में आज विश्व में आतंकवाद के प्रति जो गुस्सा पैदा होना चाहिए वो नहीं होता है। और कुछ देश मानवता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, अपने आप को बड़ा मानने वाले देश मानवता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, क्योंकि वे अपने देश की राजनीति के अनुकूल सिलेक्टिव आतंकवाद के संबंध में ही चर्चा करते हैं। आतंकवाद के साथ सिलेक्टिव व्यवहार नहीं हो सकता, आतंकवाद मानवता का दुश्मन है, हिंसा मानवता की कब्र खोदती है और इसलिए मानवतावादी सभी शक्तियों का एकत्र आना विश्व शांति के लिए जरूरी है, गरीब देशों की भलाई के लिए जरूरी है, गरीब देशों के नौजवानों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए जरूरी है..!

भाइयों-बहनों, पाकिस्तान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई एक सरकार आई है। ये सरकार आने के बाद एक आशा थी कि वो भारत विरोधवाद की राजनीति छोड़ कर के एक मित्र देश के रूप में अपने आप को उभारने की कोशिश करेंगे। लेकिन सीमा पर जिस प्रकार से हमारे जवानों को मार दिया गया, इससे लगता है कि पाकिस्तान के इरादे नेक नहीं हैं। पाकिस्तान के हुक्मरानों से मैं साफ-साफ शब्दों में कहना चाहता हूँ कि हिन्दुस्तान हो, बांग्लादेश हो या पाकिस्तान हो, हमें अगर लड़ाई लड़नी है तो लड़ाई गरीबी के खिलाफ लड़नी चाहिए, हमें अगर लड़ाई लड़नी है तो लड़ाई अशिक्षा के खिलाफ लड़नी चाहिए, हमें अगर लड़ाई लड़नी है तो अंधश्रद्घा के खिलाफ लड़नी चाहिए..! मैं पाकिस्तान के मित्रों को कहना चाहता हूँ कि ये बम, बंदूक, पिस्तौल, ये आंतकवाद का गर्भाधान करने की प्रवृति ने आपका साठ साल में अब तक कोई भला नहीं किया। पाकिस्तान के हुक्मरान समझिए, दस साल के लिए आप पाकिस्तान की धरती पर आतंकवादियों को पैर नहीं रखने देंगे, आतंकवादियों की रक्षा नहीं करेंगे, आंतकवादियों का ब्रिडिंग ग्राउंड नहीं बनने देंगे... दस साल करके देखिए, मैं दावे के साथ कहता हूँ कि पिछले साठ साल में पाकिस्तान की जो प्रगति नहीं हुई है, उससे अनेक गुना प्रगति पाकिस्तान की होगी, पाकिस्तान के नौजवानों का भला होगा, पाकिस्तान गरीबी से बाहर आएगा। इतना ही नहीं, ये युद्घ की मानसिकता के कारण, ये आंतकवादी हरकतों के कारण हिन्दुस्तान को भी आपने युद्घ भूमि में परिवर्तित कर दिया है। पहले तो लड़ाई सीमा पर होती थी, सैन्यों के बीच होती थी, वो अपनी-अपनी ताकत से लड़ाई लड़ते भी थे और जीतते भी थे, लेकिन जब आप हिन्दुस्तान की सेना को पराजित नहीं कर पाए तो आपने निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतारने वाली लड़ाई का खेल शुरु किया है..! निर्दोष नागरिकों को मार कर के पाकिस्तान की धरती से आए आतंकवादी, क्रॉस बॉर्डर टैरेरिज्म ना पाकिस्तान का भला कर सकता है, ना हिन्दुस्तान का भला कर सकता है, ना बांग्लादेश का भला कर सकता है। और इसलिए भाइयों-बहनों, मैं आज साफ-साफ शब्दों में पाकिस्तान को कहता हूँ कि भले आपका जन्म भारत विरोधी राजनीति में से हुआ हो, लेकिन आपका जीवन भारत विरोध के भरोसे नहीं चल सकता है, आपकी प्रगति भारत विरोध के भरोसे नहीं हो सकती है..! आपकी भलाई के लिए भी और आपकी युवा पीढ़ी के कल्याण के लिए भी, साठ साल से जो गलत रास्ते पर चल पड़े हो, एक बार सोचो, लौट जाओ, और सब मिल कर के गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ें, अशिक्षा के खिलाफ लड़ाई लड़ें, अंधश्रद्घा के खिलाफ लड़ाई लड़ें और इस महात्मा गांधी की भूमि से विश्व को शांति का संदेश देने का सामर्थ्य पैदा करें, ये मकसद लेकर के चलना होगा..!

भाइयों-बहनों, हमारे देश में वोट बैंक की राजनीति का खेल इतना घिनौना हो गया है, चप्पे-चप्पे पर वोट बैंक की राजनीति की दुर्गंध आती है, बू आती है, टुकड़े-टुकड़े में समाज को तहस-नहस कर दिया गया है। और जो दिन-रात सेक्यूलरिज्म का छाता ओढ कर के, वोट बैंक की राजनीति करके समाज को टुकड़ों-टुकड़ों में बांटने की कोशिश में लगे हैं उन राजनेताओं से मैं कहना चाहता हूँ, उन बुद्घिजीवियों से मैं कहना चाहता हूँ कि अगर सच्चा सैक्यूलरिज्म देखना है तो एक बार हमारी सेना को देखो..! हम राजनेताओं को अगर सेक्यूलरिज्म सीखना है तो हमारी भारत की सेना से हम सीख सकते हैं..! जल, थल और नभ, तीनों क्षेत्रों में काम कर रहे हमारे सैनिक बल..! वहाँ जिस प्रकार से सभी पंथों के लिए आदर भाव है, सभी पंथ मिलजुल कर के मात्र और मात्र भारत माता की सेवा के लिए खप रहे हैं, इससे बड़ा सैक्यूलरिज्म का कोई उदाहरण नहीं हो सकता है..! मैं सैल्यूट करता हूँ हमारे सुरक्षा बलों को, जिन्होंने सच्चे अर्थ में भारत के सेक्यूलरिज्म की आन, बान, शान रखी हुई है और गौरव दिया है इस देश को, इसलिए मैं उनका अभिनंदन करता हूँ..! भाइयों-बहनों, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को देखिए..! राव तुलाराम इसके एक योद्घा थे। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दु भी थे, मुसलमान भे थे..! 1857 का स्वतंत्रता संग्राम भी सेक्यूरिज्म की एक मिसाल है कि कंधे से कंधा मिला कर के, किसी भी पंथ या संप्रदाय का क्यों ना हो, सभी मिल कर के लड़े थे। ये मिसाल आज भी कायम है, आज भी वो परंपरा हमारी सेना निभा रही है..! पहली बार सत्ता भूख में डूबे हुए, वोट बैंक की राजनीति में तोड़ने-फोड़ने की प्रवृति करने वाले राजनेताओं ने भारत की सेना के इन महान गुणों को, भारत की सेना के इस महान चरित्र को दाग लगा दिया। पहली बार इस देश में सच्चर कमेटी के माध्यम से सेना के अंदर कौन हिन्दु है, कौन मुसलमान है इसकी गिनती करवाने का हुक्म किया था। पाप किया है इन लोगों ने, पाप किया है..! भारत की सेना जो सिर्फ भारत माँ की भक्ति में डूबी हुई है, हर पंथ का सम्मान करने की परंपरा को लेकर के जी रही है, उसको भी संप्रदाय के रंगों में रंगने का पाप वोट बैंक की राजनीति में डूबे हुए दिल्ली के राजनेता करते रहे हैं..! मैं सेना के उन नायकों का अभिनंदन करता हूँ जिन्होंने दिल्ली की सल्तनत को दो टूक सुना दिया कि सेना का चरित्र कोई बदल नहीं सकता, हमारे सेक्यूलरिज्म को कोर्ई चुनौति नहीं दे सकता। हम सेना के भीतर संप्रदाय के आधार पर कोई गिनती नहीं होने देंगे, हमारा हर फौजी भारत माँ का लाल होता है..! भाइयों-बहनों, ये बहुत बड़ा काम किया है मेरे सेना के जवानों ने, लेकिन मेरे सेना के जवान, मेरे पूर्व सैनिक, इन लोगों को कभी माफ नहीं करना जिन्होंने दूध में भी दरार करने की कोशिश की है..!

भाइयों-बहनों, देश अगर सामर्थ्यवान होता है तो ना चीन आंख ऊंची कर सकता है, ना पाकिस्तान आए दिन हमें परेशान कर सकता है और इसलिए सशक्त सरकार, सशक्त नेतृत्व, सशक्त सेना और सशक्त देश, इस सपने को हमें साकार करना होगा, उसको हमें बल देना होगा..! भाइयों-बहनों, आज भी देश में सेना की उपेक्षा के कारण, सेना के गौरव को नीचा करने की आदतों के कारण, सेना के सम्मान के अवसरों की अनदेखी करने के कारण, हमारे देश की युवा पीढ़ी को अब सेना में जाने का मन नही करता है। किसी भी देश के लिए ये बहुत बड़ी चुनौती होती है। ऊपरी दर्जे में 40% अधिकारी के पद आज भी सेना में खाली हैं..! भाइयों-बहनों, देश के अंदर हमारे पढ़े-लिखे बुद्धिमान नौजवानों का सेना में होना जरूरी है। अब युद्घ सीमा पर लड़े जाएंगे उससे ज्यादा टैक्नोलॉजी से लड़े जाने वाले हैं, साइबर वॉर होने वाले हैं, और उसमें ओजस्वी, तेजस्वी, बुद्घिमान नौजवानों की जरूरत रहेगी। हमें सेना को आधुनिक बनाना होगा, हमें सेना में तेजस्वी युवा शक्ति को जोड़ना होगा। और उस दिशा में दिल्ली में बैठी हुई सरकार को एक विश्वास का माहौल बनाना होगा, सेना में जाना एक गौरव का कारण हो, ये माहौल क्रियेट करना होगा, तब जा कर के होगा..!

भाइयों-बहनों, हमारे पूर्व सैनिकों को बीमारी में दर-दर भटकना पड़े, हाथ-पैर गंवाने वाले, युद्घ की भूमि में शरीर के अंग न्यौछावर करने वाले हमारे आधुनिक दधीचि, ये हमारे सैनिक... किसी ने हाथ दे दिया, किसी ने पैर दिया, किसी ने दोनों हाथ दे दिए, किसी ने दोनों भुजाएं दे दी... माँ भारत को न्यौछावर कर दी..! उनको जब निवृति के बाद अस्पताल में, डॉक्टर के यहाँ, रेलवे में, बस में लोगों से याचना करनी पड़े, मित्रों, इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता और ये हमारे लिए चिंता और जिम्मेदारी का विषय है, हमें इन स्थितियों को बदलना होगा। हमारे पूर्व सैनिक गौरव से जीएं, आत्मसम्मान से जीएं, उनकी वाजिब मांग स्वीकार हो... उसमें कौन रोकता है? कई वर्षों से ‘वन रैंक वन पेंशन’, आए दिन सुनने को मिलता है, क्या तकलीफ हुई है..? मैं आज सार्वजनिक रूप से देश के सेना के जवानों की तरफ से, देश की सेना के पूर्व जवानों की तरफ से भारत सरकार से मांग करता हूँ कि ‘वन रैंक वन पेंशन’ के संबंध में क्या स्थिति है उसका व्हाइट पेपर घोषित करें, श्वेत पत्र घोषित करें। और भाइयों-बहनों, मैं कहता हूँ कि अगर 2004 में वाजपेयी जी की सरकार बन गई होती तो आज ‘वन रैंक वन पैंशन’ वाली समस्या उलझती नहीं..! मित्रों, मिल बैठ कर के रास्ता निकालते, अटल जी का उदार मन रास्ता खोज लेता और हमारे पूर्व सैनिकों को, सेना में बैठे हमारे जवानों को सम्मान और गौरव के साथ जीने का अवसर देता..!

भाइयों-बहनों, आज हमारे देश में कई ऐसे क्षेत्र हैं जिसमे हम सेना के पूर्व सैनिकों को बहुत ही सम्मान के साथ उनकी शक्ति, उनका डिसिप्लेन, उनका वर्क कल्चर राष्ट्र के लिए उपयोग कर सकते हैं। अब आप देखिए, अग्निशामक दल, हिन्दुस्तान के हर टाउन में फायर बिग्रेड होता है, क्या कभी हमने सोचा है कि हमारे इस अग्निशामक दल के लिए ये पूर्व सैनिक यदि लगा दिए गए, इस देश में कभी आग नहीं लग सकती..! सेाचने के लिए वो तैयार ही नहीं है..! मित्रों, हमारा देश ओलम्पिक में अपनी जगह नहीं बना पा रहा है। हमारे एक पूर्व साथी ने ओलम्पिक में नाम रोशन किया, सेना के जवान, भाई राज्यवर्धन राठौड़, आज हमारे बीच में है, जिन्होंने भारत का गौरव बढ़ाया था, ऑलम्पिक में पदक ले कर के आए थे..! सेना के जवान केन्टोनमेंट में होते हैं। यदि ये देश तय करे कि इन सेना के जवानों को स्पोटर्स की स्पेशल ट्रेनिंग देकर उनके कौशल्य को तैयार करें, तो क्या हम ओलम्पिक मे रंग नही ला सकते हैं..? ला सकते हैं मित्रों, लेकिन कोई सोचने वाला तो चाहिए..! उनके पास समय नहीं है, या तो सोचने के लिए ईश्वर ने वेक्यूम रखा हुआ है और उसके कारण कोई नई सोच नहीं है..! मित्रों, मेरे गुजरात में जब मैं नया-नया आया तो बिजली की चोरी बहुत बड़ी मात्रा में होती थी। हमने क्या किया, एक्स सर्विस मैन का पूरा एक दल गठित कर दिया। करीब-करीब एक हजार एक्स सर्विस मैन को रिक्रूट करके उनका एक दल बनाया, उनका यूनिफार्म तैयार किया और बिजली चोरी को रोकने का काम उनको दिया। भाइयों-बहनों, किसी पर कोई कानूनी कार्रवाई करने की नौबत ही नहीं आई। ये सेना के जवान की यूनिफार्म देखते ही, इसका इतना मोरल इम्पैक्ट होने लगा कि चोर को लगने लगा कि अरे, सेना का जवान आया है और मैं चोरी कर रहा हूँ..? चोरी बंद हो गई, दोस्तों..! मेरा बिजली का क्षेत्र 1000 सेना के जवानों की मदद से ताकतवर बन गया। मित्रों, कहने का तात्पर्य ये है कि आज भी इस देश में सेना के यूनिफार्म के प्रति एक आदर है, सम्मान है, उसको अगर सही तरीके से काम मे लाया जाए तो हमें एक उचित परिणाम मिलता है और हमारा उस दिशा में प्रयास रहना चाहिए, दोस्तों..!

मैं और एक विषय पर भी आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। सेना का बजट लाखों-करोड़ों रूपये का होता है, ज्यादातर रुपये विदेशों से शस्त्रास्त्र इम्पोर्ट करने में जाते हैं। सवा सौ करोड का देश हो, अग्नि मिसाइल छोड़ने की ताकत रखने वाले वैज्ञानिक हो, लेकिन आज सेना के लिए हर छोटा-मोटा पुर्जा भी लाना हो तो विदेशों से लाना पड़ता है। ये किसका इन्ट्रेस्ट है..! और दिल्ली में बैठे हुए शासकों को सेना का हाल क्या है उसके लिए तो समय नहीं है, लेकिन अगला टेंडर कब निकलने वाला है उसमें रूचि ज्यादा है, क्योंकि अरबों-खरबों रूपये का कारोबार होता है, ये छोटी-छोटी चीजों में क्यों खेलें..! और उसके कारण भाइयों, हमारे देश को युद्घ के लिए जो शस्त्रास्त्र चाहिए, जो सरंजाम चाहिए उसमें देश को आत्मनिर्भर होना चाहिए। इतना ही नहीं, अरे सवा सौ करोड़ का देश हो, इतने नौजवान हो, इंजीनियर हो, टैक्नोलॉजी हो, तो हमें तो सपना देखना चाहिए कि दुनिया के जितने भी देश शस्त्र खरीदते हैं, आने वाले दिनों में उनको शस्त्र बेचने का काम हम करें..! हमें शस्त्र एक्सपोर्ट करने का सपना देखना चाहिए..! ये सामर्थ्य मुश्किल नहीं है। मित्रों, मेरा प्रदेश तो बहुत छोटा सा रहा, लेकिन हमने हमारी कॉलेजिस में इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स के लिए डिफेंस इक्विपमेंट मैन्यूफैक्चरिंग के कोर्स शुरू किये हैं।

अभी से ह्यूमन रिसार्स डेवलपमेंट का काम शुरू किया है। हम भारतीय कंपनियों को प्रेात्साहित करें, प्रोत्साहित करके उनको हम हिन्दुस्तान की सेना को जो चाहिए वो सारी व्यवस्थाएं यहाँ डेवलप करें, उसके लिए उचित खर्च करें, तो मुझे विश्वास है मित्रों, भारत में एक नई शक्ति का उदय होगा..! और हमें डिफेंस ओफ़्सेट के लिए प्राथमिकता देनी चाहिए, हमारे देश में उत्पादन हो उस पर बल देना चाहिए, हमारी नीतियों को बनाना चाहिए, हमें विदेशों से आयात और यहाँ की उत्पादित चीजों को लेवल प्ले फील्ड देना चाहिए..! संशोधन में हम पराक्रम करते हैं, लेकिन हाल क्या है, मित्रों..? जब विदेशों से हम युद्घ का समान लेते हैं तब, जब कभी युद्घ होता है, और जिस देश से हम सैनिकों के लिए शस्त्र लेते हैं, अगर उस देश की विदेश नीति उस समय हमारे अनुकूल नहीं है, तो अरबों-खरबों रूपये चुकाने के बाद भी वो युद्घ के समय वो शस्त्र पहुंचाना बंद कर देता है। भूतकाल में हिन्दुस्तान ने ये मुसीबत झेली है। युद्घ के दरम्यिान शस्त्रों का आना रुक जाए, पहले से ऑर्डर दिए हो, पैसे दे दिये हो, लेकिन उस देश की विदेश नीति के अनुकूल नहीं है इसलिए बंद कर देते हैं..! भाइयों-बहनों, अगर हम विदेशों से सामान लेते रहें, और कल भयंकर युद्घ हो गया, और जो देश हमको दे रहे हैं वो उस समय अगर बंद कर दें, तो हमारा हाल क्या होगा वो आपने सोचा है..? और इसलिए हमारे पास अपनी शक्ति होनी चाहिए, अपना सामर्थ्य होना चाहिए और इसके लिए देश की युवा शक्ति का हमें उपयोग करना चाहिए..!

भाइयों-बहनों, हममें से बहुत लोग हैं जो सैन्य में जा कर के भारत माँ की रक्षा नहीं कर पाए हैं, सैनिक बनने का सौभाग्य नहीं मिला है। लेकिन भाइयों-बहनों, भारत माँ की उत्तम सेवा करने का एक और अवसर भी जीवन में आता है, और वो अवसर होता है, मताधिकार..! मैं आज देश के नौजवानों को कहना चाहता हूँ। बच्चा जब पहली बार स्कूल जाता है तब पूरे घर में एक आंनद होता है कि बच्चा स्कूल जा रहा है, बच्चे का पहला जन्मदिन होता है तो पूरे घर में आनंद होता है कि बच्चे का जन्मदिन है, बच्चे की शादी होती है तो पूरे गाँव में आनंद छा जाता है कि फलाने के बेटे की शादी हो रही है... लेकिन भारत के संविधान ने हमें ऐसी सौगात दी है, वो सौगात जब हमें मिलती है तो हमें पता भी नहीं होता है कि कितनी बड़ी सौगात मिली है..! मित्रों, 18 साल की उम्र में हम जब मत के अधिकारी बन जाते हैं, ये भारत के संविधान ने हमें दी हुई सबसे बड़ी गिफ्ट होती है, उसका गौरव होना चाहिए..! अरे, जिसको भी 18 साल पूरा होता है, उसको बधाई देनी चहिए, एक माहोल बनना चाहिए..! और आज मैं नौजवानों को कहता हूँ कि अगर हम हिन्दुस्तान को समर्थ बनाना चाहते हैं, चाहते हैं ना..? देश को मजबूत चाहते हो..? देश को ताकतवर चाहते हो..? दिल्ली में मजबूत सरकार चाहते हो..? तो आप ये चैक कर लिजीए कि भारत का मताधिकार आपके पास है कि नहीं है, मतदाता सूचि में आपका नाम है या नहीं है, अपने यार-दोस्त, अड़ौसी-पड़ौसी, रिश्तेदार उनके घरों में कोई 18 साल का रह तो नहीं गया..! ये काम करोगे..? लोगों को मतदाता बनाओगे..? ये पवित्र काम है, हर पार्टी को करना चाहिए, हर नागरिक को करना चाहिए..! और मैं पूर्व सैनिकों से प्रार्थना करता हूँ, आपकी समस्याओं के समाधान के लिए आप देश के नौजवानों से जुड़िए, उनको मतदाता बनाने का अभियान उठाइए, आप देखिए एक नई ताकत के साथ हम उभर जाएंगे..!

भाइयो-बहनों, एक और काम के लिए मुझे आपकी मदद चाहिए..! करोगे, सब कोई करोगे..? भाइयों-बहनों, इस देश को एक करने का काम सरदार वल्लभ भाई ने किया था। सैकड़ों राजा-रजवाड़ों को एक करके भारत का ये वर्तमान रूप हमें सरदार पटेल ने दिया था। लेकिन पिछले कई वर्षों से भारत की एकता का काम करने वाले लोह पुरूष सरदार पटेल को भूला दिया गया है..! सरदार वल्लभ भाई पटेल किसान थे, ये ना भूलें कि सरदार पटेल किसान थे, आजादी के आंदोलन में किसानों को जोड़ने का काम सरदार पटेल ने किया था। सरदार पटेल लौह पुरूष थे और सरदार पटेल ने एकता के लिए बहुत बड़ा काम किया था। और इसलिए सरदार पटेल का जन्म जहाँ हुआ उस गुजरात की धरती पर सरदार साहब का एक भव्य स्मारक बनाने की हमारी इच्छा है, सरदार साहब की एक भव्य प्रतिमा बनानी है। और प्रतिमा कैसी, बताऊं..? आज दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा जो है वो अमेरिका में ‘स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी’ है। अमेरिका का ‘स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी’ दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है। हम ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ बनाना चाहते हैं, और ‘स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी’ से दो गुना ऊंचा बनाना चाहते हैं..! विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा बनाने का हमारा सपना है। लेकिन हम उसको सारे देश को जोड़ कर के बनाना चाहते हैं। हमारी इच्छा है कि सरदार पटेल लौह पुरूष थे, एकता के लिए काम किया था और वो किसान थे, इसलिए हमें हर गाँव से लोहे का टुकड़ा चाहिए। लेकिन कोई गाँव वाला कहेगा कि मोदी जी, इतना करने की जरूरत नहीं है, हमारे गाँव में एक पुरानी तोप है, वो ले जाओ और प्रतिमा बना दो..! मुझे तोप और तलवार नहीं चाहिए, मुझे लोहा चाहिए, लेकिन कौन सा लोहा..? वो लोहा जो किसानों ने अपने खेत में जोतने के लिए काम किया है उस लोहे का टुकड़ा चाहिए। क्योंकि वो किसान थे, क्योंकि वो लोह पुरूष थे, क्योंकि वो भारत माता के लिए जीते थे मरते थे, क्योंकि उन्होंने देश की एकता का काम किया था..! और हर घर से नहीं, पूरे गाँव की तरफ से एक औजार, दो-तीन सौ ग्राम से ज्यादा नहीं... और उसको पिघला कर के ये जो भव्य स्मारक बनेगा उसमें आपके गाँव का भी एक हिस्सा होगा, ऐसा एक एकता का स्मारक..! 31 अक्टूबर के बाद, क्योंकि ये प्रोजेक्ट चार-पाँच साल चलने वाला है, 31 अक्टूबर सरदार जयंती के बाद आपकी तरफ कोई ना कोई आएगा, ये संदेश सुनाएगा और आपसे आपके गाँव समस्त की तरफ से किसान के काम में आए हुए एक छोटे से औजार को हम ले जाएंगे और एकता के इस स्मारक में, विश्व के सबसे ऊंचे इस स्मारक में आपका भी योगदान होगा..!

भाइयों बहनों, मैं पूर्व सेनाध्यक्ष जी का बहुत आभारी हूँ कि इस कार्यक्रम में वो आए, पूर्व सैनिकों का जज्बा बढ़ाने का काम किया..! इतनी बड़ी मात्रा में सेना के सारे पूर्व अफसर आए और इतनी बड़ी तादाद में आप सब भाई-बहन आए..! मैं फिर से एक बार आपको नमन करता हूँ, आपको प्रणाम करता हूँ और मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूँ..!

दोनों मुटठी बंद करके बोलिए...

भारत माता की जय...!

ऐसे नहीं, दोनों मुट्ठी ऊपर, पूरी ताकत होनी चाहिए...

भारत माता की जय...! भारत माता की जय...!

वंदे मातरम्... वंदे मातरम्... वंदे मातरम्... वंदे मातरम्... वंदे मातरम्...

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December 26, 2024

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – I have written three Books, my main cause of writing books is i love reading. And I myself have this rare disease and I was given only two years to live but with help of my mom, my sister, my School, …… and the platform that I have published my books on which is every books, I have been able to make it to what I am today.

प्रधानमंत्री जी – Who inspired you?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – I think it would be my English teacher.

प्रधानमंत्री जी – Now you have been inspiring others. Do they write you anything, reading your book.

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – Yes I have.

प्रधानमंत्री जी – So what type of message you are getting?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – one of the biggest if you I have got aside, people have started writing their own books.

प्रधानमंत्री जी – कहां किया, ट्रेनिंग कहां हुआ, कैसे हुआ?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – कुछ नहीं।

प्रधानमंत्री जी – कुछ नहीं, ऐसे ही मन कर गया।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां सर।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा तो और किस किस स्पर्धा में जाते हो?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैं इंग्लिश उर्दू कश्मीरी सब।

प्रधानमंत्री जी – तुम्हारा यूट्यूब चलता है या कुछ perform करने जाते हो क्या?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – सर यूट्यूब भी चलता है, सर perform भी करता हूं।

प्रधानमंत्री जी – घर में और कोई है परिवार में जो गाना गाते हैं।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नहीं सर, कोई भी नहीं।

प्रधानमंत्री जी – आपने ही शुरू कर दिया।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां सर।

प्रधानमंत्री जी – क्या किया तुमने? Chess खेलते हो?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां।

प्रधानमंत्री जी – किसने सिखाया Chess तुझे?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – Dad and YouTube.

प्रधानमंत्री जी – ओहो।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – and my Sir

प्रधानमंत्री जी – दिल्ली में तो ठंड लगता है, बहुत ठंड लगता है।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – इस साल कारगिल विजय दिवस की रजत जयंती मनाने के लिए मैंने 1251 किलोमीटर की साईकिल यात्रा की थी। कारगिल वार मेमोरियल से लेकिर नेशनल वार मेमोरियल तक। और दो साल पहले आजादी का अमृत महोत्सव और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वी जयंती मनाने के लिए मैंने आईएनए मेमोरियल महिरांग से लेकर नेशनल वार मेमोरियल नई दिल्ली तक साईकलिंग की थी।

प्रधानमंत्री जी – कितने दिन जाते थे उसमे?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – पहली वाली यात्रा में 32 दिन मैंने साईकिल चलाई थी, जो 2612 किलोमीटर थी और इस वाली में 13 दिन।

प्रधानमंत्री जी – एक दिन में कितना चला लेते हो।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – दोनों यात्रा में maximum एक दिन में मैंने 129.5 किलोमीटर चलाई थी।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नमस्ते सर।

प्रधानमंत्री जी – नमस्ते।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैंने दो international book of record बनाया है। पहला रिकॉर्ड मैंने one minute में 31 semi classical का और one minute में 13 संस्कृत श्लोक।

प्रधानमंत्री जी – हम ये कहां से सीखा सब।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – सर मैं यूट्यूब से सीखी।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा, क्या करती हो बताओं जरा एक मिनट में मुझे, क्या करती हो।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। (संस्कृत में)

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नमस्ते सर।

प्रधानमंत्री जी – नमस्ते।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैंने जूड़ो में राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल लाई।

प्रधानमंत्री जी – ये सब तो डरते होंगे तुमसे। कहां सीखे तुम स्कूल में सीखे।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नो सर एक्टिविटी कोच से सीखा है।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा, अब आगे क्या सोच रही हो?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैं ओलंपिक में गोल्ड लाकर देश का नाम रोशन कर सकती हूं।

प्रधानमंत्री जी – वाह , तो मेहनत कर रही हो।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – जी।

प्रधानमंत्री जी – इतने हैकर कल्ब है तुम्हारा।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – जी अभी तो हम law enforcement को सशक्त करने के लिए जम्मू कश्मीर में trainings provide कर रहे हैं और साथ साथ 5000 बच्चों को फ्री में पढ़ा चुके हैं। हम चाहते हैं कि हम ऐसे models implement करे, जिससे हम समाज की सेवा कर सकें और साथ ही साथ हम मतलब।

प्रधानमंत्री जी – तुम्हारा प्रार्थना वाला कैसा चल रहा है?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – प्रार्थना वाला अभी भी development phase पर है! उसमे कुछ रिसर्च क्योंकि हमें वेदों के Translations हमें बाकी languages में जोड़नी है। Dutch over बाकी सारी कुछ complex languages में।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैंने एक Parkinsons disease के लिए self stabilizing spoon बनाया है और further हमने एक brain age prediction model भी बनाया है।

प्रधानमंत्री जी – कितने साल काम किया इस पर?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – सर मैंने दो साल काम किया है।

प्रधानमंत्री जी – अब आगे क्या करोगी?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – सर आगे मुझे रिसर्च करना है।

प्रधानमंत्री जी – आप हैं कहां से?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – सर मैं बैंगलोर से हूं, मेरी हिंदी उतनी ठीक नहीं है।

प्रधानमंत्री जी – बहुत बढ़िया है, मुझसे भी अच्छी है।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – Thank You Sir.

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – I do Harikatha performances with a blend of Karnataka music and Sanskritik Shlokas

प्रधानमंत्री जी – तो कितनी हरि कथाएं हो गई थी।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – Nearly hundred performances I have.

प्रधानमंत्री जी – बहुत बढ़िया।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – पिछले दो सालों में मैंने पांच देशों की पांच ऊंची ऊंची चोटियां फतेह की हैं और भारत का झंडा लहराया है और जब भी मैं किसी और देश में जाती हूं और उनको पता चलता है कि मैं भारत की रहने वाली हूं, वो मुझे बहुत प्यार और सम्मान देते हैं।

प्रधानमंत्री जी – क्या कहते हैं लोग जब मिलते हैं तुम भारत से हो तो क्या कहते हैं?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – वो मुझे बहुत प्यार देते हैं और सम्मान देते हैं, और जितना भी मैं पहाड़ चढ़ती हूं उसका motive है एक तो Girl child empowerment और physical fitness को प्रामोट करना।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – I do artistic roller skating. I got one international gold medal in roller skating, which was held in New Zealand this year and I got 6 national medals.

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैं एक Para athlete हूं सर और इसी month में मैं 1 से 7 दिसम्बर Para sport youth competetion Thailand में हुआ था सर, वहां पर हमने गोल्ड मेडल जीतकर अपने देश का नाम रोशन किया है सर।

प्रधानमंत्री जी – वाह।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैं इस साल youth for championship में gold medal लाई हूं। इस मैच में 57 केजी से गोल्ड लिया और 76 केजी से वर्ल्ड रिकॉर्ड किया है, उसमें भी गोल्ड लाया है, और टोटल में भी गोल्ड लाया है।

प्रधानमंत्री जी – इन सबको उठा लोगी तुम।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नहीं सर।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – one flat पर आग लग गई थी तो उस टाइम किसी को मालूम नहीं था कि वहां पर आग लग गई है, तो मेरा ध्यान उस धुएं पर चला गया, जहां से वो धुआं निकल रहा था घर से, तो उस घर पर जाने की किसी ने हिम्मत नहीं की, क्योंकि सब लोग डर गए थे जल जाएंगे और मुझे भी मना कर रहे थे कि मत जा पागल है क्या, वहां पर मरने जा रही, तो फिर भी मैंने हिम्म्त दिखकर गई और आग को बुझा दिया।

प्रधानमंत्री जी – काफी लोगों की जान बच गई?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – 70 घर थे उसमे और 200 families थीं उसमें।

प्रधानमंत्री जी – स्विमिंग करते हो तुम?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा तो सबको बचा लिया?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां।

प्रधानमंत्री जी – डर नहीं लगा तुझे?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नहीं।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा, तो निकालने के बाद तुम्हे अच्छा लगा कि अच्छा काम किया।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा, शाबास!