प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के पहले 10 महीनों में बहुत कुछ घटा। इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और चीन के सी जिनपिंग जैसी महान अंतर्राष्ट्रीय हस्तियाँ भारत आयीं, मोदी स्वयं अमेरिका, सार्क और जी-20 शिखर सम्मेलन में गये। देश में भी बहुत कुछ घटा, जैसे - संसद का विवादों से भरा सत्र, नई सरकार का पहला पूर्ण बजट, राज्यों एवं स्थानीय निकायों के चुनावों में मिश्रित परिणाम आदि। मोदी सरकार से सबने उम्मीदें लगा रखी हैं और हाल के सप्ताहों में, इस बात पर असंतोष के स्वर उठे हैं, खासकर व्यापार और उद्योग में, कि क्या मोदी सरकार अपने वादे को पूरा करने में सक्षम हो पाई है।प्रधानमंत्री बनने के बाद भारतीय मीडिया को दिये अपने पहले साक्षात्कार में मोदी ने मुख्य संपादक संजोय नारायण और कार्यकारी संपादक शिशिर गुप्ता से बात की।
प्रश्न - सत्ता में आने के बाद के दस महीने में आपकी प्रमुख उपलब्धियां क्या-क्या रहीं?
उत्तर – उपलब्धियां को अतीत के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। लोगों ने हमें किस स्थिति में सत्ता में आने का मौका दिया? और अब क्या स्थिति है? क्या अब नीतियों में कोई कमी है? नहीं है।क्या अब पारदर्शिता कोई मुद्दा है? नहीं है। क्या शासन संबंधी कोई गतिरोध है? नहीं है। बल्कि शासन मेंगतिशीलता आई है।
यह भी कहा जा रहा था कि ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका की उभरती अर्थव्यवस्था) से ‘I’ अर्थात भारत को हटा दिया जा सकता है। अब फिर से विश्वास बना है - प्रशासन, आर्थिक प्रगति और वैश्विक गौरव में तालमेल बना है। आप यह देख सकते हैं।
देश की प्रगति, दुनिया में इसकी जगह और अपने लोगों की खुशी ही हमारा लक्ष्य और हमारी प्रतिबद्धता है। हमने ऐसे कई पहल किये हैं जिससे लोगों का हम पर यह विश्वास बढ़ा है कि हम पारदर्शिता, दक्षता और तेजी से अपना कार्य करने में सक्षम हैं। हम देश के गरीबों के हितों और उनके सशक्तिकरण के लिए काम कर रहे हैं। जन-धन योजना, स्वच्छभारत अभियान और मृदा स्वास्थ्य कार्ड आदि पहल आम आदमी को ज्यादा आय एवं उनको बेहतर जीवन उपलब्ध कराने और हमारे देश के बारे में लोगों की सोच में बदलाव लाने के उद्देश्य से शुरू की गई हैं। बेटी बचाओ और अक्षय ऊर्जा के उत्पादन पर हमारा ध्यान देना यह दर्शाता है कि हम न केवल वर्तमान के लिए बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी कार्यरत हैं। हाल का केंद्रीय बजट, भविष्य को ध्यान में रखकर बनाया गया रेल बजट, रुके हुए बिजली संयंत्रों और उर्वरक संयंत्रों को फिर से शुरू करना हमारी सरकार की दिशा दिखाता है। यह समृद्ध और शक्तिशाली भारत के लिए हमारी पूर्ण प्रतिबद्धता को दिखाता है।
अच्छे इरादों के साथ सुशासन हमारी सरकार की पहचान है। ईमानदारी के साथ अपने कार्यों को क्रियान्वित करना हमारा जुनून है। विरासत में मिली कुछ विपत्तियों को हमने अवसरों में बदल दिया है। हाल ही में कोयला और स्पेक्ट्रम की नीलामी से यह स्पष्ट हो गया है कि अगर आप में राजनीतिक इच्छाशक्ति है तो पारदर्शिता लायी जा सकती है, घोटाले और भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री सब्सिडी में व्याप्त खामियों के बारे में बात करते रहे हैं। सीधे बैंक हस्तांतरण के माध्यम से एलपीजी सब्सिडी देने की हमारी पहल गरीबों और वंचितों की मदद करने के लिए हमारी ठोस रणनीति का एक शानदार उदाहरण है। पहली बार हम कमजोर वर्गों के लिए एक बेहतर सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था लेकर आये हैं। मेक इन इंडिया पहल की शुरुआत की गई है और इसे कौशल विकास का साथ मिल रहा है। इससे युवाओं के लिए रोजगार के नए रास्ते खुलेंगे।
हमने राजनीति, प्रशासन और अर्थव्यवस्था के मामले में भारत की विश्व में फिर से साख बनाई है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि अर्थव्यवस्था में फिर से विकास हुआ है। हमने जीडीपी विकास दर के मामले में चीन जैसे देशों को पीछे छोड़ दिया है। हमने इस्पात उत्पादन के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है। चालू खाते के घाटे में कमी आई है। आईएमएफ, ओईसीडी जैसे वैश्विक संस्थानों और अन्य संस्थानों ने आने वाले महीनों और वर्षों में और भी ज्यादा विकास होने की भविष्यवाणी की है। भारत, फिर से, विश्व पटल पर आ चुका है।
प्रश्न – एक महीने काम करने के बाद आपने कहा था कि आप दिल्ली में नये हैं और इस देश में एक सकारात्मक बदलाव लाने के लिए अपने इरादे और अपनी सच्चाई को दूसरों तक पहुँचाने में आपको परेशानियां आ रही हैं। क्या यह अभी भी आपके लिए परेशानी है? क्या आपने दिल्ली को बदल दिया या दिल्ली ने आपको बदल दिया?
उत्तर – जब मैंने यह कहा था तो मेरा मतलब केंद्र सरकार से था मेरा विश्वास है कि यह तेजी से बदल रहा है। चूंकि, मैं एक राज्य से आया हूँ,मैं मुद्दों को पूरी ईमानदारी और स्वतंत्र रूप से देखता हूँ। मैंने देश के उन आम आदमी के नजरिए का इस्तेमाल किया जो हमें सत्ता में लेकर आये। हमने मेहनत की है और बार-बार एक साथ बैठे और बाधाओं एवं अवरोधों को दूर करने की कोशिश की है। दिल्ली से बाहर एक बहुत बड़ा हिन्दुस्तान है। दिल्ली को यह बताने में ज्यादा समय नहीं लगा कि भारत देश भर में फैले अपने गांवों, शहरों, घरों एवं झोपड़ियों में बसता है और हम उनके लिए यहाँ हैं। विभाग, कार्यालय, उनकी नीतियां और प्रक्रियाएं, सभी लोगों की सेवा करने के लिए तैयार किये जाने चाहिए। इसके अलावा, अब केंद्र सरकार और राज्य सरकारें देने वाले एवं लेने वाले की बजाय सहयोग की भावना से एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं। देश के विकास के लिए एक सच्ची साझेदारी बनी है। हम कार्यशैली को बदलने, इसे सक्रिय और पेशेवर बनाने में काफी हद तक सफल रहे हैं। मेरा अनुभव है कि दिल्ली उसी आधार पर काम करता है जैसा इसका नेतृत्व होता है। मैं दिल्ली (केन्द्र सरकार) को बदलने की दिशा में और दिल्ली के माध्यम से देश को बदलने की दिशा में, असाधारण परिणामों की उम्मीद कर रहा हूँ। मैंने एक छोटा सा काम किया है, जो बाहर से छोटा प्रतीत होता है। मैं नियमित रूप से चाय पर सचिवों (नौकरशाहों) के साथ बातचीत करता हूँ; यह मेरे काम करने का तरीका है... टीम इस तरह से बनाई जाती है। मैंने सचिवों से कहा था कि वे उस जगह पर जाएं जहाँ उनकी पहली तैनाती हुई थी। देश भर से वे सब आये हुए थे। वे पिछले 25-30 साल में वहां नहीं गये थे। मैंने उनसे यह भी कहा कि वे अपने परिवार के साथ जाएं और कम-से-कम एक रात वहां बिताएं और अपने बच्चों को बताएं कि यहाँ उनका काम कैसे शुरू हुआ था। इसके बाद यह सोचें कि अब तक कितना बदलाव आया है। मैं खुश हूँ क्योंकि लगभग सभी उन जगहों पर गए जहाँ उनकी पहली तैनाती हुई थी।
प्रश्न – आपने नौकरशाही को सशक्त किया। आपने उनसे राज्यों में जाकर वहां की स्थितियों का जायजा लेने को कहा। क्या आपको लगता है कि उससे फायदा हुआ है और नौकरशाही व्यवस्था सही तरीके से चल रही है?
उत्तर – देखिये, वास्तव में ऐसी गति से तो मीडिया चलती है - अधिकारियों पर तो यह तेजी लागू नहीं की जा सकती है। आपका मैं इसका उदहारण देता हूँ : अगर किसी सड़क पर एक गड्ढा है तो मीडिया एक फोटो लेकर या वीडियो बनाकर इसे सबके सामने ला सकता है। दो मिनट का काम है यह, लेकिन उस व्यक्ति के लिए जिसे इसे भरना है या ठीक करना है, उसे कम-से-कम 24 घंटे लगेंगे। पहले इतना तो स्पेस देना पड़ेगा। सब मिलाकर, मैं उनके प्रदर्शन से संतुष्ट हूँ।
प्रश्न - व्यापार समुदाय इस बात से परेशान है कि ‘व्यापार कार्य में आसानी’ के मामले में कुछ खास नहीं बदला है और उनके लिए तो टैक्स नोटिस की तो बाढ़ आ गई है।क्या आपको लगता है कि आपकी सरकार बदलाव लाने में सक्षम रही है?
उत्तर - सबसे पहले, आपको यह समझना होगा कि मेरी सरकार आम आदमी के लिए काम कर रही है। हमारी प्राथमिकता देश के गरीब लोग है। हम एक गतिशील और सहज सरकार के माध्यम से सुशासन चाहते हैं। परिणाम सभी क्षेत्रों में दिखाई दे रहे हैं। उद्योग को सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का लाभ लेने के लिए आगे आना होगा।
मैं मीडिया से अनुरोध करता हूँ कि वे दो चीजों को उन्हीं से पूछें: हमारे कांग्रेस के मित्र जो हमारे खिलाफ आरोप लगाते हैं, और व्यवसायी जिनको हमसे शिकायत है। कांग्रेस कहती है कि हम उद्योगपतियों की सरकार हैं और उद्योगपति कहते हैं कि हम उनके लिए कुछ भी नहीं करते हैं!
मेरा काम है – नीति आधारित सरकार चलाना। “रेड टेप नहीं होना चाहिए; अब रेड टेप नहीं होना चाहिए मतलब मुकेश अंबानी के लिए रेड टेप ना हो और एक कॉमन मैन के लिए रेड टेप हो, वैसा नहीं चल सकता।”
सरकार का काम है - हर किसी के लिए सुशासन। मेरी सरकार नीतियां सुनिश्चित करेगी, अगर आप इसमें फिट आते हैं तो आप आएं नहीं तो आप जहाँ हैं वहीँ रहें। मेरा काम किसी को चम्मच से खिलाना नहीं है। देश का निजी क्षेत्र अभी भी शासन के पुराने मुद्दों के साथ अटका हुआ है – टैक्स टेररिज्म, ड्यूटी इन्वर्जन और चयनात्मक छूट इसमें शामिल है। इसी वजह से हमने 2015-16 के बजट में इस तरह के कई मुद्दों को उठाते हुए उन्हें सभी स्तरों पर सही करने का प्रयास किया है। हम जानते हैं कि इस तरह के पहल से लाखों भारतीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर बनेंगे। फिर से आप सभी को मैं इसका आश्वासन देता हूँ : अगर आप एक कदम चलेंगे तो हम आपके लिए दो कदम आगे बढ़ेंगे।
27 मई 2014 को हिन्दुस्तान टाइम्स का मुख्य पृष्ठ। दुनिया के सबसे बड़े चुनाव में एनडीए की जबर्दस्त जीत के सूत्रधार रहे 63 वर्षीय मोदी को शपथ दिलाते राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी।
प्रश्न – संसद के इस सत्र में अपने आपको गरीब-समर्थक दिखाने में आपके और कांग्रेस के बीच जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा देखने को मिली। इस पर आपकी टिपण्णी?
उत्तर - कांग्रेस के 60 साल के शासन में इस देश के गरीब या तो गरीब बने रहे या और गरीब हो गए। दुनिया के कई देश गरीबी उन्मूलन सहित सभी चीजों में हमसे आगे निकाल गये हैं।कांग्रेस ने इस अर्थ में विकासशील काम किया है ताकि अगले चुनाव के लिए ये मुद्दे वैसे ही बने रहें। और फिर, जब चुनाव पास में होते थे तो वे कुछ नाटकीय कानून ले आते थे और यह दिखाते थे कि वे गरीबों के समर्थक हैं। जब हम इस ऐतिहासिक समस्या से देश को निकालने के लिए उपाय कर रहे हैं, जब हम अपने पांच वर्ष के कार्यकाल के शुरुआत से ही गरीबी उन्मूलन के लिए कार्य कर रहे हैं तब उन्हें गरीबों के लिए पहल करने का अर्थ समझ नहीं आता।
कोयला और स्पेक्ट्रम घोटालों से गरीबों को लाभ नहीं मिला और न ही राष्ट्रमंडल खेलों की असफलता और लूट से। हर कोई जानता है कि इन सब का लाभ किसे मिला। कांग्रेस की तथाकथित गरीब समर्थक राजनीति और 60 साल के शासन का नतीजा यह है कि गरीबी अभी भी हमारी सबसे बड़ी चुनौती है। एक-चौथाई परिवार घरों के बिना रह रहे हैं। इस देश के बहुत से नागरिकों के लिए अभी भी स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी, बिजली और सड़कें एक तरह से अधूरे सपने ही हैं।
हम पहले पांच महीनों में जन-धन योजना शुरू की। हमने वित्तीय समावेशन के लिए 12 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले। बैंक थे और लोग बिना बैंक खातों के थे। वे उन्होंने इतने वर्षों में क्या किया?
पहले जिस गति से काम चल रहा था, उस गति से अगर हम काम करें तो सभी स्कूलों में शौचालय बनवाने के कार्य को पूरा करने के लिए 50 साल और लग जाएंगे। हमने पहले चार महीनों में ही यह काम करना शुरू कर दिया और अगले कुछ महीनों में हम इसे पूरा भी कर देंगे। क्या गरीबों के बच्चे इन पब्लिक स्कूलों में नहीं पढ़ते हैं?
तथाकथित गरीब समर्थक लोग बार-बार यह कहते रहते हैं कि सब्सिडी में खामियां हैं। हमने प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया ताकि एलपीजी सब्सिडी सीधे उनलोगों तक पहुंचे जिन्हें इसकी जरुरत है; हमने उन छह करोड़ छोटे दुकानदारों और व्यापारों को वित्तीय मदद देने के लिए मुद्रा बैंक की शुरुआत की जिसमें से 61% अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक हैं। हम गरीबों और वंचितों, वृद्ध और कम आय वाले लोगों के लिए एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा योजना लेकर आये हैं। हमने युवाओं को ज्यादा रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कौशल विकास मंत्रालय की स्थापना की है। हम युवाओं को ‘मेक इन इंडिया’ पहल के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं। अतीत में, देश ने एक बेरोजगार और कम विकास करने वाली अर्थव्यवस्था देखी है।
ये तो कुछ उदाहरण भर हैं। पिछले 60 वर्षों में ये चीजें क्यों नहीं हुईं? किसने रोका हुआ था? इसके अलावा, अगर यह चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस द्वारा किया गया होतातो लोग उन्हें गरीब समर्थक कहते। हम वही चीजें बिना 'सही समय' सोचे अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही कर रहे हैं तो किसी को यह नहीं दिखता।
विपक्ष, खासकर कांग्रेस, की चिंता यह नहीं है कि हम गरीब समर्थक नहीं हैं। उनकी चिंता यह है कि उनकी असलियत सबके सामने की आ रही है। लोग उन्हें पूछ रहे हैं “ अगर मोदी सरकार सोच सकती है और ये सब छह से नौ महीनों में कर सकती है तो आप क्यों नहीं सोच सकते और 60 वर्षों में आपने क्यों नहीं किया?” वजह साफ है – इसका थोड़ा-थोड़ा करने के लिए भी वे चुनाव का इंतजार करते।
प्रश्न – राज्यसभा में आपको क्या-क्या परेशानियां झेलनी पड़ी? आपको क्या लगता है सरकार इस समस्या से निपटने के लिए क्या करेगी?
उत्तर - मैं पार्टियों और संसद के सदस्यों को संसद के चार सार्थक सत्र के लिए धन्यवाद देता हूँ। 36 विधेयक संसद के दोनों सदनों में पारित हुये। कुल मिलाकर, दोनों सदनों का आउटकम अच्छा रहा। लोकसभा ने निर्धारित समय के 123.45% काम किया है जबकि राज्यसभा की उत्पादकता 106.79% रही है।
मई2014 में हमारे कार्यकाल के बाद से संसद के चार सत्रों में से यह बजट सत्र कई मामलों में सबसे महत्वपूर्ण और लाभकारी रहा है। दलों और संसद के सदस्यों के समर्थनके बाद सरकार ने दिखा दिया है कि हम मुक्त और नीति-संचालित शासन की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। बजट सत्र का सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण परिणाम रहा - कोयला और अन्य खनिज क्षेत्रों में अध्यादेशों की जगह पर दो विधेयकों का पास होना। इस के साथ, कोयला और गैर-कोयला खनिजों के आवंटन में भ्रष्टाचार और कदाचार के लिए बदनाम ‘सरकार के स्व-निर्णय’को समाप्त कर दिया गया है। हम अपने ईमानदार इरादे का समर्थन करने के लिए पार्टियों के लिए आभारी हैं।
प्रमुख प्राकृतिक संसाधनों के कुशल आवंटन और शासन में पारदर्शिता लाने के लिए ये दो कानून महत्वपूर्ण साबित होंगे और यही आज की जरुरत है क्योंकि यह देश त्वरित आर्थिक विकास के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है। बीमा कानून (संशोधन) विधेयक का पारित होना सत्र का दूसरा महत्वपूर्ण आउटकम रहा। अंत में, सात साल की एक लंबी देरी के बाद पूंजी की कमी से जूझ रहे बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि लाने के लिए इस महत्वपूर्ण कानून को मंजूरी मिल गई। लोकसभा में पेश किया गया अज्ञात विदेशी आय और संपत्ति (टैक्स अधिरोपण) विधेयक, 2015 काले धन को रोकने और वापस लाने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है।
हम सहयोगी दलों और विपक्षी दलों दोनों के साथ बातचीत करने में विश्वास करते हैं। मैं स्वयं संसद में अपील की है कि जिन भी मुद्दों पर राजनीतिक दलों के विचार अलग-अलग हैं, हम उन मुद्दे पर चर्चा और विचार-विमर्श के लिए तैयार हैं। मुझे उम्मीद है कि सबसे जरूरी राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर ज्यादातर पार्टियाँ द्विदलीय रुख अपनाते हुए सहयोग करेंगी।
प्रश्न - अप्रैल के दूसरे सप्ताह में आप फ्रांस, जर्मनी और कनाडा जा रहे हैं। यात्रा से आपकी क्या उम्मीदें हैं?
उत्तर – मैं जब अंतर्राष्ट्रीय दौरे पर जाता हूँ तो मैं चाहता हूँ कि उसमें एक की बजाय ज्यादा देशों के दौरे हों ताकि अधिक-से-अधिक परिणाम प्राप्त किया जा सके। मैं अहमदाबाद से हूँ जहाँ एक कहावत है, ‘सिंगल फेयर, डबल जर्नी’। इन तीन देशों की अर्थव्यवस्था काफी महत्वपूर्ण है जिनका हमारी वृद्धि और विकास की प्रक्रिया में बहुत महत्व है। ये सभी पूंजी प्रवाह, प्रौद्योगिकी और सर्वोत्तम साधन के मामले में योगदान कर सकते हैं। कनाडा हाइड्रोकार्बन और अन्य प्राकृतिक संसाधनों में समृद्ध है। एक लंबे समय के बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री कनाडा का दौरा करेगा। फ्रांस और जर्मनी विनिर्माण और कौशल के आधार हैं जो हमारे लिए उपयोगी है। फ्रांस हमारा भरोसेमंद रणनीतिक भागीदार है। जर्मनी में, मैं प्रतिष्ठित हनोवर मेले में भाग लूँगा जिसमें भारत एक भागीदार देश है। मैं उम्मीद करता हूँ कि मेरी यह यात्रा ‘मेक इन इंडिया’ को आगे बढ़ाने में मददगार होगी। मुक्त व्यापार समझौते पर विचार-विमर्श चल रहा हैं और आगे होने वाली मेरी बैठकों में यह दिखेगा भी।
प्रश्न – आपने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया था। हालांकि, तब से भारत-पाक के संबंधों में और गिरावट आई है। कब से हम यह उम्मीद करें कि द्विपक्षीय वार्ता शुरू होगी? क्या कोई पूर्व शर्तें भी होंगी?
उत्तर - हम दक्षिण एशिया में शांति और समृद्धि चाहते हैं, सार्क की उन्नति चाहते हैं। क्षेत्रीय सहयोग और संपर्क को ध्यान में रखते हुए मैंने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और अन्य सार्क नेताओं को आमंत्रित किया था। यह हमारी विदेश नीति में एक मार्गदर्शक है। नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका के साथ संबंधों में इस लाभ का काफी असर देखने को मिला है। लेकिन आतंकवाद और शांति एक साथ नहीं चल सकते, चल सकते हैं क्या? शांति वहीँ कायम हो सकती है जहाँ इसके लिए उपयुक्त वातावरण हो। हम आतंकवाद और हिंसा से मुक्त वातावरण में सभी वर्तमान मुद्दों पर पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय बातचीत के लिए तैयार रहते हैं। आगे बढ़ने में शिमला समझौते और लाहौर घोषणा को आधार बनाना पड़ेगा।
प्रश्न - आगे होने वाली आपकी चीन यात्रा से दोनों देशों के बीच सीमा वार्ता में सफलता मिलने की बहुत ज्यादा उम्मीद और आशा की जा रही है। ये उम्मीदें कहाँ तक सच हैं?
उत्तर - राष्ट्रपति सी की भारत यात्रा से निश्चित रूप से हमारे संबंधों में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है। मैं काफी जल्दी ही चीन की यात्रा कर हमारे संबंधों को आगे और बेहतर बनाने के लिए तत्पर हूँ। जहाँ तक सीमा का सवाल है, सबसे महत्वपूर्ण बात अभी यह है कि शांति और सौहार्द के साथ समझौता नहीं किया जाना चाहिए। इससे हमारे लिए एक ऐसी स्थिति बनेगी जहाँ हम समस्याओं का समाधान पारस्परिक रूप से कर सकेंगे। यह एक जटिल और पुरानी समस्या है और इसे बहुत ध्यान से और विचार-विमर्श करके हल किया जाना चाहिए। राष्ट्रपति सी भी मेरे इस विचार से सहमत हैं। अभी दोनों देशों की प्राथमिकताएँ अपने लोगों का आर्थिक कल्याण करना है। हमने एक प्रबुद्ध निर्णय लिया है ताकि विरोध की यह स्थिति टकराव या संघर्ष में न बदल जाए। दोनों देशों में नेतृत्व व्यावहारिक और स्वतंत्र है। इसलिए, हम इन उम्मीदों को वास्तविकता के धरातल पर देख रहे हैं।
प्रश्न - अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और विश्व के कई अन्य नेताओं के साथ आपके व्यक्तिगत संबंधस्पष्ट रूप से दिखते हैं। आपको क्या लगता है एशिया में अमेरिका के भू-रणनीतिक हित में भारत कहाँ ठहरता है और इस दृष्टिकोण में आपने किसी भी तरह का बदलाव देखा है?
उत्तर - यह दोस्ती आपसी सम्मान और आपसी हित पर आधारित है। राष्ट्रपति ओबामा के साथ मेरे व्यक्तिगत चर्चाओं से यह स्पष्ट है कि भारत का अमेरिका केभू-राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक सोच में काफी महत्वपूर्ण स्थान है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। हम अपनी इस ताकत और अपने प्रतिभाशाली युवाओं के माध्यम सेसबसे पुराने लोकतंत्र और मानव प्रतिभा का सम्मान करने वाले अमेरिका के साथ काम कर सकते हैं। हाल की घटनाओं से मेरा विश्वास आगे और मजबूत हुआ है और यही सोच अमेरिकी राष्ट्रपति की भी है। हमारी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है और हम एक-दूसरे के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। हमारे विचार मिलते हैं जो हमारे संबंधों को आगे और मजबूत करने में मदद करेंगे।
प्रश्न - बिन मौसम बारिश से अनाज और सब्जी के उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है, मूल्यों की स्थिति बिगड़ती जा रही है। आप कितने चिंतित हैं? सरकार कीमतों को बढ़ने से रोकने के लिए क्या उपाय कर रही है?
उत्तर – जब मैंने अपना कार्यकाल शुरू किया था, कीमतें पहले से ही आसमान छू रही थी। मानसून में देरी से स्थिति और ख़राब हो गई। फिर भी, हमने अपनी पूरी कोशिश की और मंहगाई को कम करने में सफल रहे। इस मामले में थोड़ी सी राहत मिल ही रही थी कि बिन मौसम बारिश से कृषि को एक और झटका लगा, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। ज़ाहिर है, यहसरकार के लिए बड़ी चिंता का विषय है।
मैं अपने सभी किसान भाइयों और बहनों को आश्वस्त करना चाहता हूँ कि मेरी सरकार इस घड़ी में हर संभव मदद देगी। केन्द्रीय मंत्री और अधिकारी पहले से ही जरूरतों का आकलन करने के लिए गये हुए हैं। वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से और राज्यों का दौरा करके मैंने भी स्थिति की समीक्षा की है। सरकार अनाज और अन्य खाद्य उत्पादों की समुचित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए हर संभव काम करेगी। अभी, मांग के हिसाब से आपूर्ति संतोषजनक है। हालांकि, जमाखोरी एक गंभीर मुद्दा है, बिचौलिये हद से अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। राज्य सरकारों को जमाखोरों और काला बाजारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का अनुरोध किया गया है। मुझे पूरा विश्वास है कि राज्य और केंद्र सरकार के संयुक्त प्रयासों से बेहतर परिणाम देखने को मिलेगा।
प्रश्न - आपने संपन्न भारतीयों से यह आग्रह किया है कि वे अपना एलपीजी सब्सिडी लेना छोड़ दें और बढ़ते खर्चों पर लगाम कसने में सरकार की मदद करें। क्या आप अंततः एक नीतिगत आधार पर उनलोगों के लिए एलपीजी सब्सिडी खत्म करने पर विचार कर रहे हैं?
उत्तर - गरीबों का ख्याल रखना सरकार की जिम्मेदारी है। अतःसब्सिडी उनलोगों के लिए है जिन्हें वास्तव में इसकी जरूरत है, और इन्हीं लोगों के लिए होनी भी चाहिए। सब्सिडी सही समय पर और सही अनुपात में, सही लोगों तक पहुँचना चाहिए। यह न सिर्फ एक आर्थिक मुद्दा है बल्कि एक मानवीय मुद्दा है। हमारे देश की संस्कृति में है कि हम दें न कि सब कुछ अपने पास रख लें। इसलिए मैं संपन्न लोगों से अपील कर रहा हूँ।
मैं फिर से कह रहा हूँ कि सरकार की नीति सिर्फ़ सब्सिडी के कुशल प्रयोग के माध्यम से इसमें आ रही खामियों को दूर करना है। इस दिशा में पहल जोकि एलपीजी में दुनिया का सबसे बड़ा नकद हस्तांतरण कार्यक्रम है, के परिणाम उत्साहजनक रहे हैं। सब्सिडी छोड़ने रुपी यह आंदोलन संपन्न रसोई गैस उपभोक्ताओं को प्रोत्साहित करने का एक प्रयास है ताकि वे स्वेच्छा से एलपीजी सब्सिडी लेना बंद कर दें। इससे होने वाली बचत का प्रयोग गरीबों को लाभ देने के लिए किया जाएगा। हम इसका प्रयोग उन गरीबों की रसोईकी ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए करेंगे जो अभी भी लकड़ी ईंधन का उपयोग करते हैं और लकड़ी के धुएं से संबंधित स्वास्थ्य खतरों से प्रभावित होते हैं।
प्रश्न - भारत एवं विश्व के उद्योग की तरफ से भारत में श्रम कानूनों को और अधिक लचीला किये जाने की मांग की जा रही है। स्पष्ट रूप से इसमें सामाजिक और राजनीतिक उलझनें हैं। भारत के श्रम कानूनों को कैसे सुधारा जा सकता है?
उत्तर - दुर्भाग्य से, भारत में श्रम सुधारों को केवल उद्योग के संदर्भ में देखा जाता है। यहाँ सवाल यह नहीं है कि उद्योग की जरूरत क्या है। हम श्रम संबंधी जो सुधार करने जा रहे हैं, उसका उद्देश्य श्रमिकों को लाभ प्रदान करना है। हमें श्रमिकों के कल्याण और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। इसके अलावा, हम सभी को रोजगार उपलब्ध कराना चाहते हैं। हमें इन करोड़ो लोगों के लिए काम करने की जरूरत है। इसलिए हमें रोजगार बाजार का विस्तार करना होगा। इस प्रकार, हमारे श्रम सुधारों के अंतर्गत ये दो उद्देश्य हैं।
यह सोचकर,हमने श्रमिकों की सुरक्षा, उनका संरक्षण और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारे बदलाव किये हैं। मैंने श्रमेवजयते नामक पहल शुरू की है। हमने इस साल के बजट में कुछ बदलाव किये हैं जिसके अंतर्गत ईपीएफ या नई पेंशन योजना में से किसी एक को और ईएसआई और अन्य स्वास्थ्य बीमा योजना के बीच चुनने का विकल्प उपलब्ध होगा। हम श्रमिकों को कर्मचारी भविष्य निधि राशि का भुगतान न होने संबंधी मुद्दों पर भी ध्यान दे रहे हैं। रोजगार बढ़ाने के लिए,हमने कुछ श्रम कानूनों को भी आसान बनाया है ताकि श्रमिकों की सुरक्षा के साथ-साथ व्यापार कार्य में भी आसानी हो। हमने शिक्षुता अधिनियम में संशोधन किया ताकि हमारे कर्मचारियों के दल में नई-नई प्रतिभाएं शामिल हो सकें। अतः हम इस मामले में एक समग्र और संतुलित दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ रहे हैं।
29 सितंबर 2014 को हिंदुस्तान टाइम्स का मुख्य पृष्ठ। अमेरिका की अपनी यात्रा के दौरान न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका में रह रहे हज़ारों भारतीय मूल के लोगों ने जोशीला स्वागत किया।
प्रश्न - स्पष्ट रूप से भारत में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशाल क्षमता है लेकिन अभी तकनीकी नवीनीकरण में अमेरिका जैसे विकसित अर्थव्यवस्थाओं का प्रभुत्व है। हम तकनीक और इसके नवीनीकरण के बीच की दूरी को कैसे खत्म कर सकते हैं?
उत्तर - हाँ, यह एक महत्वपूर्ण कार्य है और हमें इस दूरी को खत्म करना होगा। हमारा इरादा भारत को एक ज्ञानवान समाज में बदलना है। हमें इस देश के विकास और यहाँ के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए यहाँ के प्रतिभाशाली युवाओं की क्षमता का उपयोग करने की जरुरत है। इसी वजह से, हमने अपनी सरकार के गठन के साथ-साथ कौशल विकास और उद्यमशीलता नाम के एक नये मंत्रालय की स्थापना की। हाल के बजट में, इस क्षेत्र में और आगे बढ़ते हुए हमने नवाचार, ऊष्मायन और सुविधा कार्यक्रमों के लिए दो योजनाएं शुरू की। वे हैं - अटल अभिनव मिशन (एआईएम) और स्व-रोजगार और प्रतिभा उपयोगिता (सेतु)। मैं यह आशा करता हूँ कि नीति आयोगके तत्वावधान में शिक्षा के लिए उपयुक्त वातावरण (एकेडेमिया) को एक संरचित तरीके से इन पहलों से जोड़ा जाएगा। आने वाले दिनों में, नवाचार, अनुसंधान एवं विकास, ऊष्मायन और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने के लिए कार्यक्रम शुरू किये जाएंगे। मैं डिजिटल भारत के लिए एक कार्यक्रम पहले ही शुरू कर चुका हूँ। हम अपने आईपीआर व्यवस्था को भी मजबूत कर रहे हैं। इसके लिए एक कार्य दल काम कर रहा है।
प्रश्न - भाजपा का विजयी अभियान दिल्ली के चुनावों में एक दुखद स्थिति में समाप्त हुआ। कई विश्लेषकों ने इसे ‘मोदी लहर’का अंत बताया। आप इस पर क्या सोचते हैं?
उत्तर – यह बिल्कुल राजनीतिक सवाल है। हम दिल्ली के लोगों के फैसले का सम्मान करते हैं। हालांकि, यह सुनकर थोड़ा अजीब लगता है कि ये लोग जो अभी ‘मोदी लहर’ पर गहन विचार-विमर्श में लगे हुए हैं, उनलोगों ने 2014 के आम चुनावों के परिणाम के संदर्भ में ‘मोदी लहर’की बात नहीं की थी।
हमें उन लोगों के फैसले का सम्मान करना होगा जिन्होंने लोकसभा चुनाव के बाद आयोजित सभी चुनावों में वोट दिया है। चाहे झारखंड, महाराष्ट्र, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में राज्य चुनाव हो या असम, पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान में स्थानीय निकाय के चुनाव हों। सब जगह भाजपा है। मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि हमें विभिन्न राज्यों, शहरों और गांवों में रहने वाले देश के लोगों का पूर्ण प्यार और विश्वास मिला है।
प्रश्न - सत्ता संभालने के बाद एक महीने से भी कम समय में जम्मू-कश्मीर की पीडीपी-भाजपा सरकार विवादों में है। लोकसभा में आपने कहा कि हुर्रियत नेता मसर्रतआलम की रिहाई के बारे में आपसे विचार-विमर्श नहीं किया गया। क्या आप श्रीनगर में सरकार के साथ खुश हैं?
उत्तर – ये शुरूआती परेशानियां हैं। हमें धैर्य रखने की जरुरत है। मैंने खुद और मेरी पार्टी ने अपनी बात स्पष्ट रूप से कह दी है कि राष्ट्र विरोधी तत्वों और आतंकवादियों के प्रति किसी भी प्रकार की उदारता स्वीकार्य नहीं होगी।
हालांकि, हमें विस्तृत परिदृश्य नहीं भूलना चाहिए। समकालीन राजनीतिक परिदृश्य में जम्मू-कश्मीर में गठबंधन सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। इसमें लोगों की भागीदारी और अच्छे प्रशासन के माध्यम से हमारी सबसे कठिन राष्ट्रीय समस्याओं में से एक को हल करने की क्षमता है।
प्रश्न - अपने चुनाव अभियान के दौरान और उसके बाद आपने कहा है कि आप देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाना चाहते हैं। क्या आपको लगता है कि ऐसा हो रहा है?
उत्तर - हाँ, मैंने यह बात कही है। मैंने यह भी कहा था कि देश के पूर्वोत्तर के आठ राज्य अष्ट लक्ष्मी हैं जिनमें अपूर्व क्षमता है। ये क्षेत्र पूरे देश के विकास में बहुत योगदान कर सकते हैं। पिछले 10 महीनों में, मैंने दो बार पूर्वोत्तर का दौरा किया है। मैं उनके महत्वपूर्ण अवसरों पर उन क्षेत्रों के लोगों के साथ रहा, इसके अलावा, मैंने पानी, ऊर्जा, रेलवे आदि विभिन्न क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शुरू की। मैं बुनियादी ढांचे के विकास और कनेक्टिविटी को बढ़ाने की बात पर अत्यंत उत्सुक हूँ। लुमडिंग-सिलचर रेलवे लाइन के गेज बदलने का पहला चरण पिछले आठ महीनों में पूरा हो चुका है। ट्रायल रन चल रहा है। मैंने देश की जनता से भी अपील किया है कि वे पूर्वोत्तर के लोगों का सम्मान और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करें। इस उद्देश्य सेहमने पूर्वोत्तर में महानिदेशकों के सम्मेलन का आयोजन किया। यह तो बस शुरुआत है। मुझे विश्वास है कि हमारे प्रयासों सेहमारे देश का पूर्वोत्तर क्षेत्र राष्ट्रीय विकास की प्रक्रिया में एक सक्रिय भागीदार के रूप में उभरेगा।
प्रश्न - आपने हाल में कहा कि न्यायपालिका “फाइव स्टार एक्टिविस्ट” से प्रभावित नहीं होना चाहिए। इससे लोगों के मन में सवाल पैदा हो गया है। क्या आपको लगता है कि न्यायपालिका आगे बढ़ रही है क्योंकि कार्यकारी निकाय का प्रभाव कई मामलों में कम हो रहा है?
उत्तर - मैं न्यायपालिका का विश्लेषण नहीं करूँगा, यह विशेषज्ञों का काम है। कई बार ऐसा हुआ है जब न्यायपालिका की पहल से अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं और कई बार बुरे परिणाम भी देखने को मिले हैं। इसके साथ-साथ, प्रशासनिक अकर्मण्यतासे नुकसान भी हुआ है जबकि त्वरित निर्णय भी लिए गए हैं। किसी के इरादे पर शक नहीं करना चाहिए।