श्रीमान प्रभाकर जी, श्री शिवानंद जी, मंच पर विराजमान सभी वरिष्ठ महानुभाव, इस शै‍क्षणिक यात्रा से जुड़े हुए अनेकविध महानुभाव, स्वस्थ‍ हिंदुस्तान, हेल्दी इंडिया के स्वप्न‍ को साकार करने का कार्य जिन नौजवानों के माध्यम से होने वाला है, उन सभी विद्यार्थियों का अभिनंदन..! इस अवसर पर आने का मुझे सौभाग्यं मिला, मेरा स्वागत-सम्मान किया गया, मैं इसके लिए सोसायटी के सभी महानुभावों का तहे दिल से धन्यवाद प्रकट करता हूं..!

मित्रो, समाज और जीवन में, अलग-अलग जातियां और बिरादरी में, कोई न कोई सामाजिक कार्य चलते रहते हैं और ज्यादातर समाज का संगठन राजनीतिक गतिविधियों के लिए किया जाता है। समाज को एकत्र करके, समाज का विश्वास जुटाकर राजनीतिक जीवन में प्रगति करने के लिए सामाजिक भावनाओं को जोड़ने का प्रयास हिंदुस्तान के हर कोने में होता है। लेकिन कुछ ऐसे महापुरूष पैदा होते हैं जो बहुत दूर का सोच सकते हैं। जब वह कार्य को आरम्भ करते हैं तो समकालीन लोगों को अंदाजा तक नहीं लगता है कि ये छोटा सा प्रयास कितनी बड़ी क्रांति का कारण बन जाएगा..! 98 साल पहले जिन महापुरूषों ने शिक्षा के सामर्थ्य का अनुभव किया होगा, शिक्षा के महत्व को समझा होगा, और समाज के सभी लोगों को शिक्षा कैसे उपलब्ध हो, समाज के किसान परिवार तक भी शिक्षा कैसे पहुंचे, ये सपना देखकर के जिन्होने इस केएलई का बीज बोया होगा, मैं आज उन सभी दीघदृष्ट्रा महानुभाव को नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूं, उनका वंदन करता हूं..!

चीन में एक कहावत है कि जो एक साल का सोचता है वह अनाज बोता है, जो दस साल का सोचता है वह फलों का पेड़ उगाता है, लेकिन जो पीढि़यों का सोचता है वह मनुष्यो को बोता है..! ये केएलई जैसी सोसायटी ने मनुष्य बोने का पवित्र काम किया है ताकि शिक्षा और संस्कार के माध्यम से सशक्त व्यक्ति के द्वारा सशक्ते समाज और सशक्ता राष्ट्रका निर्माण हो और पीढि़यों तक इसके सुफल मिलते रहें..! जब शुरूआती दौर में इसको प्रारम्भ किया होगा तो कितनी कठिनाईयां आई होगी..! किसी एक संस्था या संगठन को तकरीबन सौ साल चलाना, ये कोई छोटा काम नहीं है..! कितने उतार-चढ़ाव आते होगें, कितने आरोप-प्रत्यारोप लगते होगें, उसके बावजूद भी सभी ने मिलकर इस कार्य का निरंतर विस्तार और विकास किया है, इसलिए जे. एन. मेडीकल कॉलेज की गोल्डन जुबली पर और इस संस्था की 98 वर्षो की यात्रा पर, इस पूरे कालखंड में जिस किसी ने भी सहयोग किया है, वह सभी अभिनंदन के अधिकारी हैं..!

बेलगाम, शिक्षा के कारण और विशेष रूप से केएलई सोसायटी के कारण, लघु भारत बन गया है। हिंदुस्तान के हर कोने से हर भाषा-भाषी, हर प्रकार के खान-पान वाले विद्यार्थी पिछले 5-6 दशक से बेलगाम आते रहे हैं और इसके कारण बेलगाम का ये शिक्षा धाम, सरस्वती धाम न सिर्फ बेलगाम या कर्नाटक में बल्कि पूरे हिंदुस्तान में अपनी पहचान बना चुका है और एक आस्था् का निर्माण कर चुका है। अगर कोई समाज, समयानुकूल परिर्वतन नहीं करता है, शिक्षा को महत्व नहीं देता है तो वह कभी भी प्रगति नहीं कर सकता है। शिक्षण ही सबसे पहला क्षेत्र होता है जो आने वाले युग के बदलाव को भांप सकता है। जैसे-व्यापारी अगले सीजन का अंदाज लगा सकता है, ज्यादा से ज्याादा अगले साल का अंदाज लगा सकता है, ठीक उसी प्रकार शिक्षा से जुड़ा हुआ व्यक्ति आने वाली पीढि़यों की परिस्थितियों को भांप सकता है। अगर वह उसको अनुमानित करके आज से व्यवस्थाएं विकसित करता है तो यह परिवर्तन का बहुत बड़ा कारण बन जाता है..!

चीन में अंग्रेजी भाषा की कोई शुरूआत ही नहीं हुई थी। जब दुनिया इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी की ओर चल पड़ी, ग्लोबल इकोनॉमी का युग शुरू हुआ तो चाइना को लगा कि हमें प्राइमरी स्कूल से ही बच्चों को अंग्रेजी सिखाना पड़ेगा और उन्हे अगर आईटी प्रोफेशनल बनाना है, क्यों कि अगर दुनिया में टिकना है तो यह जरूरी है। उन लोगों ने बहुत ही कम समय में अपनी परम्पराओं को सम्हाालते हुए अपने आपको इस स्थिति में जोड़ दिया। एक समय ऐसा था, आज से 30 साल पहले, चाइना की कोई भी यूनीवर्सिटी विश्व में जानी नहीं जाती थी, लेकिन इन 30 सालों में दुनिया की टॉप यूनीवर्सिटी में उन्होने अपनी 10 यूनीवर्सिटी को शामिल कर दिया..! सरकार कोई भी हो, उस सरकार के मन में एक जिजिषवा होनी चाहिए, एक महत्वकांक्षा होनी चाहिए कि हमारा देश भी शिक्षा के क्षेत्र में दुनिया में अपना नाम रोशन करे..! हम वो लोग हैं जो ज्ञान के उपासक रहे हैं। विश्व में यूनीवर्सिटी की कल्पना की उम्र लगभग 2800 हुई है, 2800 साल लम्बा इतिहास यूनीवर्सिटी एजूकेशन का है और हमारे ही देश में कभी नालंदा, तक्षशिला और बल्भी जैसी यूनीवर्सिटी ने पूरे विश्व में अपना लोहा जमाया था। 2800 साल में से 1600 साल इस ज्ञान की दुनिया में भारत का रूतबा रहा था। उस जमाने में समुद्री तट पर गुजरात का हिस्सा बल्भी , सदियों पहले वहां 80 देशों के स्टूडेंट पढ़ते थे। लेकिन गुलामी के कालखंड में हम हमारी वो विधा खो चुके हैं, अनेक प्रकार से हम आश्रित बन गए। परन्तु आजादी के तुंरत बाद इस विशेष क्षेत्र पर ध्याान केंद्रित किया गया होता, बल प्रदान किया गया होता, तो हो सकता था कि हम आजादी के बाद के इस 50 साल के कालखंड में पूरे विश्व में ज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी शक्ति बनकर उभरते..!

दुनिया कहती है कि 21 वीं सदी हिंदुस्तान की सदी है। विश्व ने जब-जब ज्ञान युग के अंदर प्रवेश किया, हर बार भारत ने उसका नेतृत्वे किया। 21 वीं सदी ज्ञान की सदी है, ज्ञान के क्षेत्र में अप्रीतम रिव्युलेशन का कालखंड हम सभी अपनी आंखों के सामने देखने वाले हैं। हम सदियों से ऋषि-मुनियों के ज़माने से ज्ञान के उपासक रहे हैं। आधुनिक विज्ञान और टैक्नोलॉजी को स्वीकार करके आने वाली शताब्दी में दुनिया को हम क्या दे सकते हैं, हमें इन सपनों को लेकर हमारे शिक्षा धामों या यूनीवर्सिटी को, हमारी शिक्षा व्यवस्थाओं को एक सीमित दायरे में नहीं बल्कि ग्लोाबल विजन के साथ विकसित करना होगा और विश्व के साथ ताल मिलाते हुए शिक्षा के सहारे नई ऊचाईयों को प्राप्ति करने का प्रयास करना होगा..!

Valedictory Program of Golden Jubilee Celebrations of  J. N. Medical College, Belgaum

मित्रों, आज देश में हेल्थ सेक्टर चिंता का सबसे बड़ा कारण बन चुका है। बीमारियां बढ़ती जा रही हैं, बीमार लोग बढ़ते जा रहे हैं, जितने अनुपात में डॉक्टरों की जरूरत है उतने डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं। हेल्थ सेक्टर में अनेक प्रकार की सर्विस डेपलेप हुई हैं जैसे - पैरामेडिकल स्टाफ, लेकिन उसकी भी देश में बहुत बड़ी कमी महसूस हो रही है। आप सोचिए, एक तरफ देश में 65% जनसंख्या 35 से कम आयु की है यानि यंगेस्ट कंट्री इन द वर्ल्ड , वहीं दूसरी ओर हमारे पास पैरामेडिकल क्षेत्र के लिए स्किल्ड मैन पावर नहीं है..! जितनी आवश्यतकता डॉक्टर्स की है, उतनी ही आवश्यकता पैरामेडिकल स्टाफ की है। और जितनी आवश्य कता पैरामेडिकल स्टाफ की है, उतनी ही हेल्थ़ टेक्नोटलॉजी की है। मित्रों, आज भी बहुत बड़ी मात्रा में मेडीकल इक्वीपमेंट्स को हमें विदेशों से लाना पड़ता है। क्या हमारे देश के नौजवानों में वह सामर्थ्यक नहीं है कि वह इन्हे तैयार कर पाएं..? जिस प्रकार से ह्यूमन रिसोर्स डेपलेपमेंट की आवश्यकता है उसी प्रकार से इसकी भी आवश्यकता है। टेक्नोलॉजी ने मेडीकल सांइस को पूरी तरह से प्रभावित कर दिया है, टेक्नालॉजी के बिना मेडीकल साइंस एक भी कदम आगे नहीं बढ़ सकता है, ऐसी स्थिति आ गई है। कोई ज़माना था कि हाथ की नाड़ी देखकर दवा दे दी जाती थी और आदमी ठीक हो जाता था लेकिन आज लेबोरेट्री में 100 प्रकार के टेस्ट होते है, बिना टेस्ट के दर्द का भी पता नहीं चलता है। इसीलिए, टेक्नोलॉजी बहुत बड़ा रोल प्ले कर रही है। लेकिन इस क्षेत्र में जितनी मात्रा में रिसर्च होनी चाहिए, इस प्रकार की रिसर्च में हिंदुस्तान बहुत पीछे है..!

हमें हेल्थ सेक्टर में ह्यूमन रिसोर्स चाहिए, चाहे मेडीकल कॉलेज या पैरामेडिकल स्टाफ में शिक्षा की व्यवस्था करनी हों, लाखों की तादाद में देश को इसकी आवश्य कता है। आज गरीब इंसान के लिए बीमार होना सबसे ज्यादा महंगा है। अभी हाल ही में हमारे राष्ट्रपति जी ने उल्लेख किया था कि हमारे देश में औसतन चार करोड़ लोग बीमारी के कारण कर्जदार बन जाते हैं, अगर परिवार में कोई बीमार पड़ जाता है तो उन्हे कहीं न कहीं से इलाज के लिए कर्ज लेना पड़ता है। एक तरफ दवाई में और एक तरफ कर्ज में उसकी पूरी जिंदगी तबाह हो जाती है। क्यों न हम इसके लिए नई व्यवस्थाओं को विकसित करें..! मैं पिछले कुछ वर्षो से इंश्योरेंस कम्पनियों से हमेशा एक सवाल करता हूं, हालांकि मुझे अभी तक जवाब मिला नहीं है, यहां भी मैं सार्वजनिक रूप से रखता हूं, अगर आप लोगों में से कोई कभी किसी ऐसे व्यक्ति से मिलें तो अवश्य पूछें कि - अगर किसी कार का इश्योरेंस है और उस कार का एक्सीडेंट हो जाता है तो कार में बैठा हर व्यक्ति इंश्यरेंस का हकदार है, चाहें उसका कार के मालिक के साथ कोई सम्बंध हो या नहीं। अगर कार में बैठा हर व्यक्ति इंश्योरेंस का हकदार हो सकता है, तो अस्पताल के हर बेड का भी इंश्योरेंस होना चाहिए, जो भी बेड पर लेटे उसका इंश्योरेंस हो जाएं, वह भी इंश्योरेंस का हकदार बन जाए..! इंश्योरेंस कम्पेनियों को लगता है कि इसमें कोई कमाई नहीं है और इसीलिए वह मुझे इसका जवाब नहीं दे रहे हैं..! मित्रों, हेल्थ इंश्योरेंस तो है, लेकिन हमें गांरटी देनी होगी और हेल्थ एश्योारेंस पर सोचना होगा। सिर्फ हेल्थि इंश्योरेंस काफी नहीं है, हमें हेल्थ एश्योहरेंस पर बल देना पड़ेगा..!

हेल्थ एश्योरेंस के साथ प्रीवेंशन की बातें आती हैं। दुनिया में अगर शुद्ध पानी पहुंचे तो ज्यादातर बीमारियों से मुक्ति मिल जाती है, लेकिन आज यह देश की कठिनाई है..! मैं आप सभी के साथ गुजरात का एक अनुभव शेयर करता हूं, आप में से कई लोगों ने अहमदाबाद देखा होगा, वहां एक साबरमती नदी है, महात्मा गांधी के कारण इस नाम का उल्लेख अक्सार आता है। अगर आज से कुछ साल पहले बच्चे को बोला जाता कि साबरमती पर निबन्ध लिखो तो वह लिखता था कि साबरमती में बालू के ढ़ेर होते हैं, नदी में क्रिकेट खेला जाता है, नदी में सर्कस आता है क्योंकि उसने नदी में पानी देखा ही नहीं था। मित्रों, हमने रिवर ग्रिड किया, नर्मदा का पानी साबरमती में ले आए और नदी को जिन्दा कर दिया, अब आप जाएं तो वहां देखने जैसा है..! अब दुनिया की नजरों में तो यही है कि हमने साबरमती में नर्मदा का पानी लाकर शहर की शोभा बढ़ा दी, दोनों ओर नदी बहती है, आनंद आता है..! लेकिन इस छोटे से प्रयास से सारे वॉटर लेवल ऊपर आएं। पहले 2500-3000 टीसीएफ वाला पानी पीते थे, पानी ऊपर आने के कारण शुद्ध पानी मिलने लगा। क्वालिटी ऑफ वॉटर चेंज हो गया, टीसीएफ एकदम से कम हो गया, बिसलरी बॉटल के जैसा पानी नल में बहने लग गया, जिसके परिणामस्वरूप हमारे अहमदाबाद के म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन का बिजली का बिल प्रतिवर्ष 15 करोड़ कम हो गया..! लेकिन जब वहां लगातार 5-7 बारिश होती थी तो अस्पताल भर जाते थे, लोग बीमार हो जाते थे और डॉक्टर भी जब बारिश आती थी तो कहते थे कि ये सीजन अच्छा है..! लोग बीमार हो रहे हैं और डॉक्टर बोलते हैं कि सीजन अच्छा है..! पर हमारे यहां पानी शुद्ध पहुंचने के कारण पिछले 8-9 सालों में कोई महामारी नहीं फैली। इसीलिए, प्रीवेंशन को जितना ज्यादा महत्व हमारे देश में दिया जाएगा, पर्सनल हाईजिन का जितना महत्व है उतना ही महत्व सोशल हाईजिन का बढ़ेगा..!

अभी बीच में पाकिस्तान की एक रिर्पोट आई थी कि वहां पर जो छोटे बच्चे मरते हैं, उनमें से 40% बच्चे सिर्फ बिना हाथ धोएं खाना खाने के कारण मर जाते हैं..! ये चीज छोटी है लेकिन हमारी भी कुछ आदतें ऐसी ही हैं, हम लोग एक ही भूमि के रहने वाले थे तो कमियां भी वैसी ही होती हैं..! लेकिन परिवार में अगर ये आदत हो तो बच्चों के जीवन को बदला जा सकता है, उनको रक्षा दी जा सकती है। हमारे देश में इंफेंट मॉरटीलिटी रेट यानि शिशु मृत्यु दर, आईएमआर और एमएमआर की चर्चा बहुत ज्यादा होती है। क्या रास्ते खोजे जा सकते है या नहीं..? हमें गुजरात में एक स्कीम चालू की जिसको दुनिया भर के कई पुरस्कार मिले हैं, चिरंजीव योजना..! पहली बार हमने हेल्थ सेक्टर में पब्लिक-प्राईवेट पार्टनरशिप का मॉडल विकसित किया। इस मॉडल में हमने डॉक्टर्स को जोड़ा और कहा कि अगर गरीब परिवार की कोई भी प्रेग्नेंट वूमन आपके यहां आती है तो पेमेंट हम देंगे, उसको सही ट्रीटमेंट मिलनी चाहिए। इस स्की्म के कारण मां की जिन्दगी बची, बेटे की जिन्दगी बची, बच्चों की जिदंगी बची..! पहले हमारे यहां इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी 40-45% हुआ करती थी, जो आज लगभग 96% तक पहुंचा दी गई है..! हमने हमारे समय की मांग को देखते हुए सरकारों के द्वारा पब्लिक- प्राईवेट पार्टनरशिप के मॉडल को किस प्रकार आगे बढ़ाते हैं, गांवों के अंदर जाने के लिए डॉक्टरों को कैसे प्रोत्साहित कर सकते हैं, मोबाइल हॉस्पीटल का नेटवर्क कितना ज्यादा इफेक्टिव बना सकते हैं, इस बारे में ध्यान दें तो हम अपने आप एक स्वस्थो हिंदुस्तान का सपना देखकर बहुत कुछ योगदान कर सकते हैं..!

मित्रों, पांच साल बाद महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती आएगी, गांधीजी को 150 साल हो जाएंगे। गांधीजी जीवन भर एक बात के प्रति बहुत आग्रही थे, वह बात थी-सफाई, स्वच्छता..! गांधीजी अपने आश्रम में और जहां भी जाते थे, सफाई के विषय में अवश्य आग्रह से बोलते थे। क्या हिंदुस्तान इन 5 सालों में ‘गांधी 150’ मिशन लेकर पूरे देश में सफाई व स्वच्छता पर बल दे सकता है..! हेल्थ के लिए सबसे बड़ी यही बात होती है जो परिवर्तन लाती है। 2022 में हमारी आजादी के 75 साल होगें, अमृत पर्व का अवसर आएगा। क्या हम अभी से 2022 के लिए हेल्दी इंडिया का सपना लेकर योजनाएं विकसित कर सकते हैं..! इससे बड़ी प्रेरणा कोई नहीं हो सकती है कि एक तरफ गांधी हों और एक तरफ आजादी के 75 साल हो..! हम इस बात को लेकर चल सकते हैं..!

मित्रों, कुछ छोटे-छोटे प्रयास होते हैं जो बहुत बड़ा बदलाव लाते हैं। गुजरात में हमने एनीमल हॉस्टल का प्रयोग किया। यह यूनीक है..! हमारे देश में पढ़ने के लिए बच्चों के हॉस्टल हैं, गुजरात में हमने एनीमल हॉस्टिल का कॉन्सेप्ट शुरू किया। गांव के बाहर एक हॉस्टल बनाया और उस गांव के जितने भी लगभग 900 कैटल्स थे, उन सभी को हॉस्टल में रखा और उस हॉस्टल के मैनेजमेंट के लिए कुछ लोगों को रख दिया। हमारे देश में आज भी गांवों में घरों के सामने तीन-चार पशु होते है, जगह कम होती है, पशु के कारण कई बीमारियां फैलती है, गंदगी फैलती है, लेकिन गांव के लोग ऐसी ही जिन्दगी जीने के आदी हो गए हैं। हम उसमें बदलाव चाहते थे। एनीमल हॉस्टेल बनाने के कारण गांव साफ-सुथरा रहने लगा। परिवार के लोग दिन में दो घंटे जाकर अपने पशु के साथ रहते हैं, पशु की देखभाल करते हैं, बाकी के समय वहां के कर्मचारी देखभाल करते हैं। इससे परिणाम इतना आया कि हॉस्टल में पशु रहने के कारण, डॉक्टेर उपलब्ध होने के कारण, वैज्ञानिक तरीके से देखभाल होने के कारण, उनके मिल्क प्रोडक्शकन में 20% की वृद्धि हो गई। इससे ये एक फायदा हुआ और दूसरी तरफ, पूरे दिन पशुओं की देखभाल में जिन बहनों की जिन्दगी खप जाती थी, वो इस काम से बाहर आकर अपने बच्चों का ख्याल रखने लगी, कोई हैंडीक्राफ्ट का काम करने लगी, कोई र्इकोनॉमीकल एक्टींविटी में जुड़ गई, पढ़ने-लिखने में रूचि रखने लगी और इस तरह पूरे गांव के जीवन में बदलाव आ गया और हेल्थ के व्यूम प्वाइंट से भी पूरे गांव का जीवन बदल गया..!

मित्रों, मैं मानता हूं कि आने वाले समय में हेल्थ को ध्यान में रखते हुए प्रीवेंशस के लिए कई नए इनिशिएटिव्स लेने पड़ेंगे। इसके लिए अगर मेडीकल क्षेत्र से जुड़े लोगों, सामाजिक सेवा करने वाले लोग और एजुकेशन सोसाइटी से जुडे लोग समाज के साथ मिलकर अगर इन चीजों पर बल देते हैं तो हम एक स्गस्थ हिंदुस्तान का सपना पूरा कर सकते हैं..! मैं मानता हूं कि यहां जो विद्यार्थी आने वाले दिनों में समाज के स्वा‍स्य्के साथ-साथ हिंदुस्तान के स्वास्य्दे की चिंता करने वाले हैं इस बारे में ध्यान देगें..! आज हमारे देश में मेडीकल को सेवा क्षेत्र के रूप में माना जाता है, सेवा को परमोधर्म के रूप में माना जाता है, दरिद्र नारायण की सेवा के रूप में माना जाता है, इस पवित्र भाव के साथ यहां मेडीकल सेक्टर से निकले हुए लोग, यहां के सभी विद्यार्थी, भारत को स्वास्थ बनाने में अपना बहुत योगदान देगें..! मेरी ओर से आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं..! मुझे आप सभी के बीच आने का अवसर मिला, इसके लिए मैं आप सभी का बहुत आभारी हूं। धन्यवाद..!

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November 22, 2024

गुटेन आबेन्ड

स्टटगार्ड की न्यूज 9 ग्लोबल समिट में आए सभी साथियों को मेरा नमस्कार!

मिनिस्टर विन्फ़्रीड, कैबिनेट में मेरे सहयोगी ज्योतिरादित्य सिंधिया और इस समिट में शामिल हो रहे देवियों और सज्जनों!

Indo-German Partnership में आज एक नया अध्याय जुड़ रहा है। भारत के टीवी-9 ने फ़ाउ एफ बे Stuttgart, और BADEN-WÜRTTEMBERG के साथ जर्मनी में ये समिट आयोजित की है। मुझे खुशी है कि भारत का एक मीडिया समूह आज के इनफार्मेशन युग में जर्मनी और जर्मन लोगों के साथ कनेक्ट करने का प्रयास कर रहा है। इससे भारत के लोगों को भी जर्मनी और जर्मनी के लोगों को समझने का एक प्लेटफार्म मिलेगा। मुझे इस बात की भी खुशी है की न्यूज़-9 इंग्लिश न्यूज़ चैनल भी लॉन्च किया जा रहा है।

साथियों,

इस समिट की थीम India-Germany: A Roadmap for Sustainable Growth है। और ये थीम भी दोनों ही देशों की Responsible Partnership की प्रतीक है। बीते दो दिनों में आप सभी ने Economic Issues के साथ-साथ Sports और Entertainment से जुड़े मुद्दों पर भी बहुत सकारात्मक बातचीत की है।

साथियों,

यूरोप…Geo Political Relations और Trade and Investment…दोनों के लिहाज से भारत के लिए एक Important Strategic Region है। और Germany हमारे Most Important Partners में से एक है। 2024 में Indo-German Strategic Partnership के 25 साल पूरे हुए हैं। और ये वर्ष, इस पार्टनरशिप के लिए ऐतिहासिक है, विशेष रहा है। पिछले महीने ही चांसलर शोल्ज़ अपनी तीसरी भारत यात्रा पर थे। 12 वर्षों बाद दिल्ली में Asia-Pacific Conference of the German Businesses का आयोजन हुआ। इसमें जर्मनी ने फोकस ऑन इंडिया डॉक्यूमेंट रिलीज़ किया। यही नहीं, स्किल्ड लेबर स्ट्रेटेजी फॉर इंडिया उसे भी रिलीज़ किया गया। जर्मनी द्वारा निकाली गई ये पहली कंट्री स्पेसिफिक स्ट्रेटेजी है।

साथियों,

भारत-जर्मनी Strategic Partnership को भले ही 25 वर्ष हुए हों, लेकिन हमारा आत्मीय रिश्ता शताब्दियों पुराना है। यूरोप की पहली Sanskrit Grammer ये Books को बनाने वाले शख्स एक जर्मन थे। दो German Merchants के कारण जर्मनी यूरोप का पहला ऐसा देश बना, जहां तमिल और तेलुगू में किताबें छपीं। आज जर्मनी में करीब 3 लाख भारतीय लोग रहते हैं। भारत के 50 हजार छात्र German Universities में पढ़ते हैं, और ये यहां पढ़ने वाले Foreign Students का सबसे बड़ा समूह भी है। भारत-जर्मनी रिश्तों का एक और पहलू भारत में नजर आता है। आज भारत में 1800 से ज्यादा जर्मन कंपनियां काम कर रही हैं। इन कंपनियों ने पिछले 3-4 साल में 15 बिलियन डॉलर का निवेश भी किया है। दोनों देशों के बीच आज करीब 34 बिलियन डॉलर्स का Bilateral Trade होता है। मुझे विश्वास है, आने वाले सालों में ये ट्रेड औऱ भी ज्यादा बढ़ेगा। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि बीते कुछ सालों में भारत और जर्मनी की आपसी Partnership लगातार सशक्त हुई है।

साथियों,

आज भारत दुनिया की fastest-growing large economy है। दुनिया का हर देश, विकास के लिए भारत के साथ साझेदारी करना चाहता है। जर्मनी का Focus on India डॉक्यूमेंट भी इसका बहुत बड़ा उदाहरण है। इस डॉक्यूमेंट से पता चलता है कि कैसे आज पूरी दुनिया भारत की Strategic Importance को Acknowledge कर रही है। दुनिया की सोच में आए इस परिवर्तन के पीछे भारत में पिछले 10 साल से चल रहे Reform, Perform, Transform के मंत्र की बड़ी भूमिका रही है। भारत ने हर क्षेत्र, हर सेक्टर में नई पॉलिसीज बनाईं। 21वीं सदी में तेज ग्रोथ के लिए खुद को तैयार किया। हमने रेड टेप खत्म करके Ease of Doing Business में सुधार किया। भारत ने तीस हजार से ज्यादा कॉम्प्लायेंस खत्म किए, भारत ने बैंकों को मजबूत किया, ताकि विकास के लिए Timely और Affordable Capital मिल जाए। हमने जीएसटी की Efficient व्यवस्था लाकर Complicated Tax System को बदला, सरल किया। हमने देश में Progressive और Stable Policy Making Environment बनाया, ताकि हमारे बिजनेस आगे बढ़ सकें। आज भारत में एक ऐसी मजबूत नींव तैयार हुई है, जिस पर विकसित भारत की भव्य इमारत का निर्माण होगा। और जर्मनी इसमें भारत का एक भरोसेमंद पार्टनर रहेगा।

साथियों,

जर्मनी की विकास यात्रा में मैन्यूफैक्चरिंग औऱ इंजीनियरिंग का बहुत महत्व रहा है। भारत भी आज दुनिया का बड़ा मैन्यूफैक्चरिंग हब बनने की तरफ आगे बढ़ रहा है। Make in India से जुड़ने वाले Manufacturers को भारत आज production-linked incentives देता है। और मुझे आपको ये बताते हुए खुशी है कि हमारे Manufacturing Landscape में एक बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ है। आज मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग में भारत दुनिया के अग्रणी देशों में से एक है। आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा टू-व्हीलर मैन्युफैक्चरर है। दूसरा सबसे बड़ा स्टील एंड सीमेंट मैन्युफैक्चरर है, और चौथा सबसे बड़ा फोर व्हीलर मैन्युफैक्चरर है। भारत की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री भी बहुत जल्द दुनिया में अपना परचम लहराने वाली है। ये इसलिए हुआ, क्योंकि बीते कुछ सालों में हमारी सरकार ने Infrastructure Improvement, Logistics Cost Reduction, Ease of Doing Business और Stable Governance के लिए लगातार पॉलिसीज बनाई हैं, नए निर्णय लिए हैं। किसी भी देश के तेज विकास के लिए जरूरी है कि हम Physical, Social और Digital Infrastructure पर Investment बढ़ाएं। भारत में इन तीनों Fronts पर Infrastructure Creation का काम बहुत तेजी से हो रहा है। Digital Technology पर हमारे Investment और Innovation का प्रभाव आज दुनिया देख रही है। भारत दुनिया के सबसे अनोखे Digital Public Infrastructure वाला देश है।

साथियों,

आज भारत में बहुत सारी German Companies हैं। मैं इन कंपनियों को निवेश और बढ़ाने के लिए आमंत्रित करता हूं। बहुत सारी जर्मन कंपनियां ऐसी हैं, जिन्होंने अब तक भारत में अपना बेस नहीं बनाया है। मैं उन्हें भी भारत आने का आमंत्रण देता हूं। और जैसा कि मैंने दिल्ली की Asia Pacific Conference of German companies में भी कहा था, भारत की प्रगति के साथ जुड़ने का- यही समय है, सही समय है। India का Dynamism..Germany के Precision से मिले...Germany की Engineering, India की Innovation से जुड़े, ये हम सभी का प्रयास होना चाहिए। दुनिया की एक Ancient Civilization के रूप में हमने हमेशा से विश्व भर से आए लोगों का स्वागत किया है, उन्हें अपने देश का हिस्सा बनाया है। मैं आपको दुनिया के समृद्ध भविष्य के निर्माण में सहयोगी बनने के लिए आमंत्रित करता हूँ।

Thank you.

दान्के !