भारत माता की जय..! भारत माता की जय..! 

आज सरदार बल्‍लभ भाई की पुण्‍य तिथि है। मैं कहूंगा, ''सरदार पटेल'', आप लोग बोलिए - ''अमर रहे...'' 

सरदार पटेल... अमर रहे..! सरदार पटेल... अमर रहे..! 

भारतीय जनता पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष और हम सबके मार्गदर्शक आदरणीय श्री राजनाथ सिंह जी, प्रदेश के अध्‍यक्ष श्रीमान तीरथ जी, इस प्रदेश के भूतपूर्व मुख्‍यमंत्री श्रीमान भुवनचंद्र जी, श्रीमान भगत सिंह जी, श्रीमान रमेश जी, मंच पर विराजमान पार्टी के सभी वरिष्‍ठ महानुभाव और विशाल संख्‍या में पधारे हुए इस देव भूमि के प्‍यारे भाईयों और बहनों..!

मैं इस देवभूमि को नमन करता हूं और यहां की पवित्रता को बरकरार रखने वाले, कोटि-कोटि जनों को प्रणाम करता हूं। भाईयों-बहनों, देहरादून रैली के लिए समय देने को मेरा मन नहीं करता था। मेरे मन में वो आपका आपदा का काल, वो पीडित लोग, वो संकट की छाया, छ: महीने होने को आए, लेकिन मेरी आंखों के सामने से ओझल नहीं हो पाता है..! मुझे सबसे ज्‍यादा पीड़ा इस बात की होती है कि राजनीति इतनी निष्‍ठुर हो सकती है, कि कोई अपनों के दुख-दर्द भी न बांट सकें, पीडितों के पास जाकर उनके आंसू न पोंछ सकें..!

भाईयों-बहनों, मैं उस दुख: की घड़ी में दौड़ा आया, लेकिन राजनीतिक निष्‍ठुरता ने मुझे यहां से विदा कर दिया था। वो कसक, वो दर्द, वो पीड़ा, आज भी मेरे दिल-दिमाग को झिझोंडती रहती है..! मुझे अभी भी चिंता होती है कि कठिन मौसम शुरू हो रहा है, ऐसे में बर्फ के बीच पीडित परिवार कैसे गुजारा करेंगे, कैसे जीवन बिताएंगे..! भाईयों-बहनों, हमारी आंखों का माया था, गुजरात मौत की चादर ओढ़कर सोया था लेकिन उस वक्‍त दुनिया के किसी कोने से भी किसी ने मदद का हाथ फैलाया, तो हमने तुंरत उसको गले लगाया कि आओ भाई, हम दुख में हैं, संकट में हैं, आओ, जो भी मदद कर सकते हो करो..! हमने सबसे मदद ली, उत्तराखंड ने भी हमारी मदद की, यहां तक कि पाकिस्‍तान ने भी मदद की थी और हमने मदद ली भी थी..! दुख और दर्द के समय राजनीति का साया पीडितों की पीड़ा को अगर बढ़ा दें तो मानवता चीख-चीखकर पुकारती है और हमसे जबाव मांगती है। इसी कारण, मन में हमेशा एक बोझ रहता है..!

भाईयों-बहनो, मेरा इस धरती से एक विशेष नाता भी रहा है। मैं यहां प्रभारी था, हिमालय के प्रति मुझे बचपन से लगाव भी रहा है। पहाड़ी लोगों की प्रमाणिकता, पवित्रता, निर्मलता और गंगा जैसा जीवन मुझे बचपन से छू जाता था। और प्रभारी होने के नाते मैं काफी समय आप सभी के बीच रहा और बहुत कुछ सीखा। इस धरती ने मुझे बहुत कुछ दिया है। ईश्‍वर हमें शक्ति दें और आप हमें आर्शीवाद दें ताकि आपने हमें जो दिया है, उसका कुछ अंश तो आपको लौटा सकूं..!

Full Speech: Shri Narendra Modi at Shankhnaad Rally, Dehradun

भाईयों-बहनों, सरकार दिल्‍ली में हो या देहरादून में, ये जनता से कटे हुए लोग हैं और मन से छटे हुए लोग हैं। मैं तो हैरान हूं कि दिल्‍ली और देहरादून की सरकार, जितनी शक्ति बाबा रामदेव के पीछे लगा रही है, अगर आधी शक्ति भी इन पीडि़तों की सेवा में लगा देती, तो इन पीडि़तों की ये दशा न होती..! मैं आज भी समझ नहीं पा रहा हूं कि कांग्रेस पार्टी की ये कौन सी राजनीतिक सोच है कि बाबा रामदेव उनको आंखों में चुभ रहे हैं..! वो लोगों को सांस लेने के लिए कह रहें है और कांग्रेस की सांस निकली जा रही है..! वो व्‍यक्ति के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए जीवन खपाएं है और राष्‍ट्र के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए भी जीवन खपाएं हैं, लेकिन कोई दिन ऐसा नहीं है कि उन पर नया केस न दर्ज किया गया हो..!

भाईयों-बहनों, आप मुझे बताइए, क्‍या ये लोकतंत्र है..? क्‍या ये व्‍यवहार उचित है..? उत्तराखंड में हमारे भुवन चंद्र जी ने सरकार चलाई है, भगत सिंह जी ने चलाई है, रमेश जी ने चलाई, क्‍या किसी कांग्रेसी को परेशान किया है..? क्‍या यहीं तौर-तरीके होते हैं..? क्‍या लोकतंत्र का यही हाथ होगा..? भाईयों-बहनों, जब किसी राज्‍य में इस प्रकार की गतिविधि होती है तो राज्‍य में आर्थिक लाभ होता है, चेतना आती है, लोग आते है, नई पीढ़ी आती है, राज्‍य का बहुत भला होता है, लेकिन ये लोग हर चीज को ताले लगाने में लगे है, ताकि उनकी दुकान चलती रहें।

भाईयों-बहनों, हम सब अटल बिहारी वाजपेई जी के ऋणी हैं कि उन्‍होने हमें उत्तराखंड दिया और ये भी सौभाग्‍य देखिए कि राजनाथ जी जब मुख्‍यमंत्री थे, उसी समय बाजपेई जी ने हमें उत्तराखंड दिया। उस समय जब उत्तराखंड बना तो राज्‍य कांग्रेस के हाथ में आया। लेकिन उसके बावजूद भी देखिए कि देशभक्ति क्‍या होती है, समाज भक्ति क्‍या होती है..! वाजपेई जी ने यह नहीं सोचा, कि अब यहां कांग्रेस की सरकार है, जो करेंगे करने दो, जो होता है वो होने दो..! उन्‍होने सोचा, उत्तराखंड भी हमारा है, और दस साल के लिए पैकेज दिया और यह नहीं देखा कि किसकी सरकार है। और इन्‍होने आकर क्‍या किया, दस साल में सब साफ कर दिया। हजारों-करोड़ों की लागत से कारखाने आ रहे थे, मेरे गुजरात से भी कईयों ने यहां आकर कारखाने लगाएं है, नौजवानों को रोजगार मिल रहा है लेकिन मैं हैरान हूं कि यूपीए सरकार ने आकर, आपको अटल जी ने जो सहुलियत दी थी, उसको भी छीन लिया।

भाईयों-बहनों, शासन में बैठे लोगों के लिए अपने-पराए नहीं होते हैं, सारे के सारे हमारे होते हैं..! लेकिन भाईयों-बहनों, हम बहुत सालों में यहां एक बात सुनते थे, जब भी यहां आते थे, कोई भी काम हो, कोई कार्यक्रम करना हो या यहां की मीटिंग करना हों, तो ये कहावत तो मेरे दिमाग में ठूंस-ठूंस कर भर दी गई थी, लोग बोलते थे कि मोदी जी, ये गुजरात नहीं है..! ऐसा मुझे कहते थे जब मैं यहां काम करता था। बोलते थे कि आप पहाड़ को नहीं जानते, यहां की जवानी और यहां का पानी, हमारे काम नहीं आता, ऐसा मुझे बारबार बोला जाता था। यहां की जवानी और यहां का पानी, पहाड़ के काम नहीं आता। अब वक्‍त बदल चुका है, अब विज्ञान, पानी को भी पहाड़ के काम में ला सकता है और जवानी, पहाड़ को खुशियों से भर सकती है, वक्‍त बदल चुका है। भाईयों-बहनों, इतना पानी पहाड़ों में हो और देश में अंधेरा हो, इसका कारण क्‍या..? जल-विद्युत परियोजनाएं, पानी को ऊर्जा में परिवर्तित कर सकती है और ऊर्जा न पहाड़ों की, लेकिन राष्‍ट्र की शक्ति बन सकती है और वो किया जा सकता है। लेकिन न इनको समय है, न करना है, न सोच है..! वो तो चाहते हैं कि लोग गरीब रहें, लोग ऐसे ही रहें ताकि उनकी सरकारें चलती रहें..!

भाईयों-बहनों, आज पहाड़ों के इन नौजवानों को इतना अच्‍छा मौसम और बढिया माहौल छोड़कर, शहरों की झुग्‍गी झोपड़ी में जाने के लिए क्‍यों मजबूर होना पड़ता है, बूढ़े मां-बाप को छोड़कर नौजवान को क्‍यों जाना पड़ रहा है..? दुनिया के कई देश हैं जो सिर्फ टूरिज्‍म पर अपने देश को कहां से कहां ले जाते हैं..! भाईयों-बहनों, यह ऐसी भूमि है कि हिंदुस्‍तान के सवा सौ करोड़ नागरिक कभी न भी जिन्‍दगी में एक बार इस भूमि पर आना चाहते हैं, सपना देखते हैं..! हर नौजवान को लगता है कि अपने मां-बाप को हरिद्धार ले जाऊं, ऋषिकेष ले जाऊं, बद्रीनाथ ले जाऊं, गंगोत्री ले जाऊं, जमनोत्री ले जाऊं, हर एक का सपना होता है। आप कल्‍पना कर सकते है, मैं सिर्फ आर्थिक परिभाषा में बोल रहा हूं, उसका कोई गलत अर्थ न निकालें, अगर आर्थिक परिभाषा में कहूं तो सवा सौ करोड़ यात्रियों का मार्केट, उत्तराखंड का इंतजार कर रहा है। आप कल्‍पना कर सकते है कि कितना बड़ा अवसर आपके सामने है। क्‍यों यह कार्य नहीं होता, क्‍यों लोगों को उनके नसीब पर छोड़ दिया जाता है..? भाईयों-बहनों, पूरे विश्‍व में आज टूरिज्‍म उद्योग सबसे तेजी से विकास करने वाला उद्योग माना जाता है, 3 ट्रिलियन डॉलर के व्‍यापार की संभावनाएं टूरिजम में पड़ी हुई है। हिंदुस्‍तान के लोगों की आस्‍था है और दुनिया के लोग भी जो शांति की खोज में है, जो वैभव से ऊब चुके है, वे भी इस धरती की शरण में आने के लिए जगह ढूंढ रहे है। हम न सिर्फ हिंदुस्‍तान, बल्कि सारी दुनिया को उत्तराखंड के चरणों में लाकर खड़ा कर सकते हैं..!

Full Speech: Shri Narendra Modi at Shankhnaad Rally, Dehradun

भाईयों-बहनों, आप लोगों में से जो लोग विकास की अवधाराओं का अभ्‍यास करते है, मैं उनको आग्रह करता हूं। आप आज से तीस साल पहले के मक्‍का को याद कीजिए। बहुत गिने-चुने लोग आते थे, व्‍यवस्‍थाएं बहुत सामान्‍य थी, लेकिन पिछले 30-40 साल में, मक्‍का को उस रूप में खड़ा कर दिया गया कि आज दुनिया में सबसे ज्‍यादा यात्री किसी एक स्‍थान पर आते होगें, तो वो स्‍थान मक्‍का बन गया है। अरबों-खरबों के दौर का ढ़ेर वहां हो रहा है। हर हिंदुस्‍तानी के लिए, ये भूमि जितनी पवित्र है उस हिसाब से थोड़ी व्‍यवस्‍थाएं कर दी जाएं तो उत्तराखंड कहां से कहां पहुंच सकता है..! क्‍या हिंदुस्‍तान के हर राज्‍य को इस धरती से रेलवे से जोड़ना चाहिए या नहीं..? अगर केरल से सीधी ट्रेन यहां आती है, चेन्‍नई से सीधी ट्रेन यहां आती है, अहमदाबाद से आती है तो आप ही मुझे बताइए, क्‍या यहां यात्रियों की कमी रहेगी..? यहां कि आर्थिक सुविधाएं बढ़ेगी कि नहीं बढ़ेगी..? लेकिन इनको यह समझ नहीं आता है, इनको लगता है कि हिंदुस्‍तान के हर कोने से ट्रेन दिल्‍ली तो आनी चाहिए लेकिन देश का दिल उत्तराखंड में है, वहां भी तो आनी चाहिए..! थोड़ी सी सुविधाएं बढ़ाई जाएं और भारत के यात्री, कष्‍ट झेलकर यात्रा करने के स्‍वभाव के हैं, अगर उनकी चिंता की जाएं, अगर यहां के सार्वजनिक जीवन में उन आदर्शो को लाया जाएं तो कितना बड़ा परिणाम मिल सकता है..!

भाईयों–बहनों, हिंदुस्‍तान में औद्योगिक विकास के लिए एसईजेड की कल्‍पना की गई, व्‍यवस्‍था खड़ी की गई। एसईजेड यानि ‘स्‍पेशल ईकोनॉमिक जोन’, उसके बराबर हुआ करती है। मैं कहता हूं उत्तराखंड तो सदियों से एसईजेड है, और मेरी एसईजेड की परिभाषा है – ‘स्‍प्रीचुअल एनवॉयरमेंट जोन’, ये पूरा आध्‍यात्मिक पर्यावरण का जोन है। उसी पर ध्‍यान देकर, आध्‍यात्‍म की खोज में जो आते है, उनके लिए एक स्वर्ग जैसी भूमि बनाकर आ‍कर्षित कर सकते हैं..!

भाईयों-बहनों, विश्‍व छोटा होता चला जा रहा है। मैं कहता हूं कि ‘टेररीज्‍म डिवाइड्स, टूरिज्‍म यूनाइट्स’..! एडवेंचर टूरिज्‍म के लिए कितना ज्‍यादा स्‍कोप है, क्‍या यहां हमारे पास एडवेंचर टूरिज्‍म के लिए स्‍कूल है..? क्या इन्‍हे बनाया नहीं जा सकता है..? जब पूरे हिंदुस्‍तान में समय परिवर्तन हो, तो नौजवानों को एडवेंचर टूरिज्‍म में लाने के लिए हर गांव में कैम्‍प नहीं लगाया जा सकता..? यहां की आबादी से तीन गुना लोग, तीन-तीन महीने के लिए एडवेंचर टूरिज्‍म के लिए आ सकते हैं..! क्‍या रोजी-रोटी के लिए बाहर जाना पड़ेगा..?

भाईयों-बहनों, जिस प्रकार से ये उत्तराखंड स्‍प्रीचुएल एनवॉयरमेंट जोन है, ऐसा ही एक और एसईजेड कैरेक्‍टर यहां है। ये भूमि ऐसी है जो देश को सुरक्षा के लिए ताकत देती है, यहां के हर परिवार में, हर गांव में देश के लिए बलि चढ़ने वाले सेनानियों की परम्‍परा है। सेना में जहां सीना तान करके गर्व से खड़े हों, ऐसे नौजवान इस धरती से आते है। लेकिन यहां मेरे उत्तराखंड में कुमांऊ के गढ़वाल के नौजवान सामान्‍य फौजी बनकर क्‍यों जिन्‍दगी गुजारें..? और ऐसा कब तक चलेगा..? मेरे गढ़वाल कुमाऊं के साहसिक नौजवान सेना में अफसर बन सकते है या नहीं..? वो अफसर के नाते जा सकते है या नहीं..? आज सेना में अफसरों की कमी है, कई लोगों की जगह खाली पड़ी हुई है, अगर ऐसी जगह पर, जहां के लोगों में वीरता का स्‍वभाव है, क्‍या यहां पर ऐसे अफसरों को तैयार करने वाली स्‍कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटी नहीं बन सकती..? अगर यहीं के नौजवान, उसी स्‍कूल-कॉलेज से निकलकर, आर्मी, एयरफोर्स या नेवी में चला जाएं तो वह सीधा-सीधा अफसर बन सकता है या नहीं..? यहां के जीवन में कितना बदलाव आ सकता है। लेकिन दिल्‍ली में बैठी हुई इस सरकार को समझ नहीं आता है..! गुजरात के लोग यूनीफार्म वाली दुनिया में बहुत कम होते है, हमारे यहां के लोग पुलिस में भी ज्‍यादा नहीं जाते हैं, सेना में तो शायद ही कोई मिल जाए, लेकिन उसके बावजूद भी हमारी नई पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए, हमारे यहां 1600 कि.मी. समुद्री तट है, पड़ोस में पाकिस्‍तान है, रेगिस्‍तान है, हमें लगा कि हमें अपने पैरों पर तैयारी करनी चाहिए और हमने अलग रक्षा शक्ति यूनीवर्सिटी बनाई है और जो लोग देश की सेवा करना चाहते है, यूनीफार्म में रहना चाहते है, हम उनको दसवीं कक्षा के बाद उसी में एडमिशन देकर तैयार करने लगे है। जिस राज्‍य का स्‍वभाव नहीं है, अगर वहां यह किया जा सकता है तो उत्तराखंड की रगों में तो वीरता है, यहां की रगों में शौर्य है, य‍हां के लोग सेना में जाकर भारत मां की रक्षा करने के लिए अपना जीवन देने के लिए परम्‍परा से, सदियों से नई-नई ऊंचाईयों को सर करते रहे है। क्‍या उनके जीवन के लिए यह व्‍यवस्‍था नहीं की जा सकती है..?

भाईयों-बहनों, रामायण की कथा में जब लक्ष्‍मण जी मूर्छित हो जाते हैं तो उनकी मूर्छा को दूर करने के लिए राम जी ने हनुमान जी को कहा, हिमालय जाकर जड़ी-बूटी ले आइए। हनुमान जी हिमालय आकर जड़ी-बूटी ले गए और दक्षिण में जाकर लक्ष्‍मण जी को ठीक किया। हिमालय जड़ी-बूटियों का भंडार है..! जड़ी-बूटियों का जहां इतना सारा भंडार है क्‍या वहां औषधों के निर्माण का काम नहीं किया जा सकता है..? क्‍या वहां रिसर्च इंस्‍टीट्यूट नहीं बनवाएं जा सकते..? हर्बल मेडीसीन में चाइना हमसे ज्‍यादा एक्‍सपोर्ट कर रहा है, इतना बड़ा हिमालय हमारे पास है, जहां जड़ी-बूटियों का अथाह भंडार हो, पारंपरिक ज्ञान हो, उसके बावजूद भी नौजवान बेकार घूम रहा हो, मेडीसीन बनती न हो, दुनिया के स्‍वार्थ के लिए मेडीसीन पहुंचाने का काम न होता हो, इससे बुरा और क्‍या हो सकता है..!

भाईयों-बहनों, पहाड़ों में माताएं-बहनें, परिवार को चलाने में सबसे ज्‍यादा योगदान देती है। किसी भी परिवार में चले जाइए, माताएं-बहनें कोई न कोई आर्थिक कार्य करती है। यह पहाड़ों की विशेषता है कि पहाड़ों के जीवन को चलाने में माताएं-बहनें बहुत बड़ी भूमिका अदा करती हैं। क्‍या हम अकेले उत्तराखंड की माताओं बहनों को स्किल डेवलेपमेंट के द्वारा हैंडी क्राफ्ट के क्षेत्र में, नई-नई वस्‍तुओं के निर्माण के क्षेत्र में, उनको प्रेरित करके, क्‍या हम उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति को सुधार नहीं सकते हैं..? लेकिन ये दिल्‍ली में बैठे हुए लोगों के दिमाग में, जनता की भलाई की चिंता नहीं है। उनकी भलाई के लिए क्‍या करना है, किन-किन क्षेत्रों में जाएं, कैसे आगे बढ़ें, ये उनकी सोच नहीं है और इसी का यह नतीजा है..!

भाईयों-बहनों, नई चीजें, नई तरीके से सोचनी चाहिए..! मैं देख रहा हूं हिंदुस्‍तान भर से नौजवान हमारे गुजरात में रोजी-रोटी कमाने आते है, ईमानदारी से मेहनत करते है। हमने एक कम्‍पनी को कहा, कि मेरा एक सुझाव है कि आप पॉयलट प्रोजेक्‍ट करें। मैं कानून आदि बाद में देख लूंगा लेकिन आप इस प्रोजेक्‍ट को करें, जितने लोग बाहर से आकर आपके यहां काम करते है, वो दिन में कितनी देर, हफ्ते में कितनी देर काम करते है, उसके हिसाब से अंदाज लगाएं कि एक व्‍यक्ति एक महीने में कितना आउटपुट देता है और उसके हिसाब से आप उसे महीने भर का काम दे दें। फिर वो जितने समय में भी वह काम करें, उसे करने दो। अगर वह व्‍यक्ति साल भर का काम छ: महीने में कर देता है तो उसको तनख्‍वाह के साथ छ: महीने की छुट्टी दे दो, ताकि छ: महीने खेती के समय वह अपने गांव जाकर खेती करें, अपने मां-बाप के साथ रहे और परिवार को समय दें। इस तरह छ: महीने वह खेती में आर्थिक विकास करें और छ: महीने कारखाने में काम करें। भाईयों-बहनों, ऐसा प्रोजेक्‍ट एक जगह पर हुआ है और बेहद सफल रहा। सभी नौजवान बहुत खुश है, वह सिर्फ काम करने आते है तो चार घंटे की बजाय 8 से 12 घंटे तक काम करते है और छुट्टियां इक्‍ट्ठी करते रहते है, काम पूरा हो जाने के बाद, गांव में खेती करने आराम से चले जाते है, इस तरह वह घर और काम दोनों को संभाल लेते हैं..!

भाईयों-बहनों, हम अपने देश के नौजवानों के लिए, नई सोच के साथ, नई व्‍यवस्‍थाओं को विकसित करके काम क्‍यों नहीं कर सकते हैं..? इसीलिए, आज जब मैं आपके पास आया हूं तो मैं इसी बात को लेकर आया हूं कि हमारा यह दायित्‍व बनता है कि हम हाथ पर हाथ धरकर न बैठे रहें कि क्‍या करें, पहाड़ की जिन्‍दगी ही ऐसी है, भगवान ने यहीं पैदा किया, ऐसे ही गुजारा करना है... ऐसी सोच नहीं चलेगी। हमें जिन्‍दगियां बदलनी है, अपने पैरों पर खड़ा होना है। मित्रों, मैं मानता हूं कि परमात्‍मा ने जो आपको दिया है, इससे बढिया परिस्थितियां पलटने के लिए कुछ हो नहीं सकता है, बस नई आशा होनी चाहिए, नई सोच होनी चाहिए, नई उमंग होनी चाहिए, नए सपने होने चाहिए, नए संकल्‍प होने चाहिए। और मैं मानता हूं अगर हम इस विश्‍वास के साथ उत्तराखंड को आगे बढ़ाने का संकल्‍प करें तो हम बढ़ा सकते हैं..!

भाईयों-बहनों, कांग्रेस पार्टी का अहंकार सातवें आसमान पर है, उनको कोई परवाह ही नहीं है। आपने देखा होगा, कल कांग्रेस के एक नेता जी ने प्रेस कांफ्रेंस की और वह एक महान उपदेशक के नाते लोकपाल पर भाषण दे रहे थे। मैं देहरादून की इस पवित्र धरती और गंगा मैय्या के किनारे से उनसे सवाल पूछना चाहता हूं कि अगर आपको लोकपाल का इतना महत्‍व समझ आता है, भ्रष्‍टाचार की इतनी चिंता है, आप देश के नाम इतना बड़ा संदेश दे रहे है, तो उत्तराखंड में भुवनचंद्र खंडूरी जी के शासन में एक महत्‍वपूर्ण फैसले के दौरान लोकपाल का कानून बनाया गया था, जिसे अन्‍ना हजारे जी ने पढ़कर सराहा और भुवनचंद्र जी को बधाईयां दी थी। अगर लोकपाल आपको इतना ही प्‍यारा लगता है, भ्रष्‍टाचार से मुक्ति पाने का एकमात्र सहारा समझ में आता है तो आपने और आपकी पार्टी ने उसे उत्तराखंड में क्‍यों नहीं लागू होने दिया था..?

भाईयों-बहनों, देश की जनता की आंख में धूल झोंकी जा रही है। अगर यही बात हमारे साथ होती है तो मीडिया के लोग जाने कहां-कहां से खोजबीन कर लाते कि उस राज्‍य के उस भाजपा नेता ने ऐसा किया था, अरे अब कोई तो इन्‍हे पूछो..!

भाईयों-बहनों, अभी हाल ही में पांच राज्‍यों चुनाव हुए है और हवा का रूख साफ नज़र आ रहा है। देश की जनता ने कांग्रेस मुक्‍त भारत की शुभ शुरूआत कर दी है। चार राज्‍यों ने पहल की है और आने वाले दिनों में जो चार राज्‍यों ने किया है, वह चारों ओर होने वाला है, ऐसा हवा के रूख में साफ दिखता है। मैं उत्तराखंड के लोगों का ध्‍यान एक और तरफ आकर्षित करना चाहता हूं, कि अटल बिहारी वाजपेयी जी ने तीन राज्‍यों को जन्‍म दिया। एक उत्तराखंड, दूसरा छत्तीसगढ़ और तीसरा झारखंड। समय की मांग है कि हिंदुस्‍तान के अर्थशास्‍त्री, पॉलिटिकल पंडित, इन 13 सालों में तीन राज्‍यों का हिसाब किताब देखें। उनकी तुलना और अध्‍ययन कर लें। भाईयों-बहनों, मैं कह सकता हूं कि छत्तीसगढ़ की जनता ने बड़ी समझदारी से काम लिया है और बार-बार भाजपा को चुनकर बैठाया। इस निर्णय से आज छत्तीसगढ़ भारत के समृद्ध राज्‍यों से बराबरी की तरफ आगे बढ़ रहा है। लेकिन झारखंड और उत्तराखंड पिछड़ गए, क्‍योंकि यहां की जनता ने बार-बार दल बदले, सरकारें बदली, नेता बदले और अस्थिरता ही अस्थिरता बनी रही और इसी कारण, उत्तराखंड को बहुत नुकसान हो रहा है..!

भाईयों-बहनों, अब प्रयोग बहुत कर लिए है, एक बार भरोसा कर लीजिए..! भारतीय जनता पार्टी पर विश्‍वास कर लीजिए। मैं आपको भरोसा देता हूं कि आपके सपने ही हमारा संकल्‍प बनेगें, आपकी इच्‍छाएं ही हमारी आदर्श होगी, आपकी आवश्‍यकताएं ही हमारी जिम्‍मेदारी होगी। हिंदुस्तान के हर व्यक्ति के दिल में जिस उत्तराखंड के लिए जगह है, उस उत्तराखंड को नई ऊंचाईयों तक पहुंचाने के सपने को साकार करने में कंधे से कंधा मिलाकर हम आपके साथ जुडेंगे। भाईयों-बहनों, मैंने बहुत साल इस भूमि पर चुनाव और संगठन के लिए काम किया है, लेकिन ऐसा नजारा कभी नहीं देखा है..! मैं देख सकता हूं कि रोड़ के उस तरफ भी लोग खड़े हैं, जहां भी नजर घुमाइऐ, माथे ही माथे दिखते हैं। मैं उत्तराखंड की जनता का बहुत आभारी हूं कि पीड़ा की अवस्‍था के बावजूद आप सभी ने जो प्रेम दिया है, उस प्रेम को कभी भूलाया नहीं जा सकता..!

आप सभी मेरे साथ बोलिए,

भारत माता की जय..!

दोनों मुठ्ठी बंद करके पूरी ताकत से बोलिए,

भारत माता की जय..! भारत माता की जय..!

वंदे मातरम्..! वंदे मातरम्..! वंदे मातरम्..!

Explore More
140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी

लोकप्रिय भाषण

140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी
India’s Biz Activity Surges To 3-month High In Nov: Report

Media Coverage

India’s Biz Activity Surges To 3-month High In Nov: Report
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
हमारे देश में एनसीसी को मजबूत करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं: पीएम मोदी
विकसित भारत यंग लीडर्स डायलॉग एक लाख नए युवाओं को राजनीति से जोड़ने का प्रयास है: पीएम मोदी
यह देखकर खुशी हुई कि युवा वरिष्ठ नागरिकों को डिजिटल क्रांति का हिस्सा बनने में मदद कर रहे हैं: पीएम मोदी
बच्चों में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए चेन्नई, हैदराबाद और बिहार में अभिनव प्रयास किए जा रहे हैं: पीएम मोदी
प्रवासी भारतीयों ने विभिन्न देशों में अपनी पहचान बनाई है: पीएम मोदी
लोथल में एक संग्रहालय विकसित किया जा रहा है, जो भारत की समुद्री विरासत को प्रदर्शित करने के लिए समर्पित है: पीएम मोदी
#EkPedMaaKeNaam अभियान ने केवल 5 महीनों में 100 करोड़ पेड़ लगाने का मील का पत्थर पार कर लिया है: पीएम
गौरैया को पुनर्जीवित करने के लिए अद्वितीय प्रयास किए जा रहे हैं: पीएम मोदी

मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | 'मन की बात', यानि देश के सामूहिक प्रयासों की बात, देश की उपलब्धियों की बात, जन-जन के सामर्थ्य की बात, ‘मन की बात' यानि देश के युवा सपनों, देश के नागरिकों की आकांक्षाओं की बात | मैं पूरे महीने, 'मन की बात' का इंतजार करता रहता हूँ, ताकि, आपसे सीधा संवाद कर सकूँ । कितने ही सारे संदेश, कितने ही messages ! मेरा पूरा प्रयास रहता है कि ज्यादा- से-ज्यादा संदेश को पढूँ, आपके सुझावों पर मंथन करूँ ।

साथियो, आज बड़ा ही खास दिन है - आज NCC दिवस है | NCC का नाम सामने आते ही हमें स्कूल-कॉलेज के दिन याद आ जाते हैं | मैं स्वयं भी NCC Cadet रहा हूँ, इसलिए, पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि इससे मिला अनुभव मेरे लिए अनमोल है | 'NCC' युवाओं में अनुशासन, नेतृत्व और सेवा की भावना पैदा करती है । आपने अपने आस-पास देखा होगा, जब भी कहीं कोई आपदा होती है, चाहे बाढ़ की स्थिति हो, कहीं भूकंप आया हो, कोई हादसा हुआ हो, वहाँ, मदद करने के लिए NCC के cadets जरूर मौजूद हो जाते हैं । आज देश में NCC को मजबूत करने के लिए लगातार काम हो रहा है । 2014 में करीब 14 लाख युवा NCC से जुड़े थे | अब 2024 में, 20 लाख से ज्यादा युवा NCC से जुड़े हैं | पहले के मुकाबले पाँच हजार और नए स्कूल-कॉलेजों में अब NCC की सुविधा हो गई है, और सबसे बड़ी बात, पहले NCC में girls cadets की संख्या करीब 25% (percent) के आस-पास ही होती थी | अब NCC में girls cadets की संख्या करीब-करीब 40% (percent) हो गई है | बॉर्डर किनारे रहने वाले युवाओं को ज्यादा से ज्यादा NCC से जोड़ने का अभियान भी लगातार जारी है । मैं युवाओं से आग्रह करूंगा कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में NCC से जुड़ें | आप देखिएगा आप किसी भी career में जाएं, NCC से आपके व्यक्तित्व निर्माण में बड़ी मदद मिलेगी |

साथियो, विकसित भारत के निर्माण में युवाओं का रोल बहुत बड़ा है | युवा मन जब एकजुट होकर देश की आगे की यात्रा के लिए मंथन करते हैं, चिंतन करते हैं, तो निश्चित रूप से इसके ठोस रास्ते निकलते हैं । आप जानते हैं 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर देश 'युवा दिवस' मनाता है । अगले साल स्वामी विवेकानंद जी की 162वीं जयंती है | इस बार इसे बहुत खास तरीके से मनाया जाएगा | इस अवसर पर 11-12 जनवरी को दिल्ली के भारत मंडपम में युवा विचारों का महाकुंभ होने जा रहा है, और इस पहल का नाम है 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue’ | भारत-भर से करोड़ों युवा इसमें भाग लेंगे | गाँव, block, जिले, राज्य और वहाँ से निकलकर चुने हुए ऐसे दो हजार युवा भारत मंडपम में 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue' के लिए जुटेंगे | आपको याद होगा, मैंने लाल किले की प्राचीर से ऐसे युवाओं से राजनीति में आने का आहवान किया है, जिनके परिवार का कोई भी व्यक्ति और पूरे परिवार का political background नहीं है, ऐसे एक लाख युवाओं को, नए युवाओं को, राजनीति से जोड़ने के लिए देश में कई तरह के विशेष अभियान चलेंगे | ‘विकसित भारत Young Leaders Dialogue' भी ऐसा ही एक प्रयास है । इसमें देश और विदेश से experts आएंगे | अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हस्तियाँ भी रहेंगी | मैं भी इसमें ज्यादा-से-ज्यादा समय उपस्थित रहूँगा | युवाओं को सीधे हमारे सामने अपने ideas को रखने का अवसर मिलेगा | देश इन ideas को कैसे आगे लेकर जा सकता है? कैसे एक ठोस roadmap बन सकता है? इसका एक blueprint तैयार किया जाएगा, तो आप भी तैयार हो जाइए, जो भारत के भविष्य का निर्माण करने वाले हैं, जो देश की भावी पीढ़ी हैं, उनके लिए ये बहुत बड़ा मौका आ रहा है | आइए, मिलकर देश बनाएं, देश को विकसित बनाएं ।

मेरे प्यारे देशवासियों, ‘मन की बात’ में, हम अक्सर ऐसे युवाओं की चर्चा करते हैं | जो निस्वार्थ भाव से समाज के लिए काम कर रहे हैं ऐसे कितने ही युवा हैं जो लोगों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान निकालने में जुटे हैं | हम अपने आस-पास देखें तो कितने ही लोग दिख जाते है, जिन्हें, किसी ना किसी तरह की मदद चाहिए,कोई जानकारी चाहिए I मुझे ये जानकर अच्छा लगा कुछ युवाओं ने समूह बनाकर इस तरह की बात को भी address किया है जैसे लखनऊ के रहने वाले वीरेंद्र हैं, वो बुजुर्गों को Digital life certificate के काम में मदद करते हैं I आप जानते हैं कि नियमों के मुताबिक सभी Pensioners को साल में एक बार Life Certificate जमा कराना होता है I 2014 तक इसकी प्रक्रिया यह थी इसे बैंकों में जाकर बुजुर्ग को खुद जमा करना पड़ता था आप कल्पना कर सकते हैं कि इससे हमारे बुजुर्गों को कितनी असुविधा होती थी I अब ये व्यवस्था बदल चुकी है I अब Digital Life Certificate देने से चीजें बहुत ही सरल हो गई हैं, बुजुर्गों को बैंक नहीं जाना पड़ता I बुजुर्गों को Technology की वजह से कोई दिक्कत ना आए, इसमें, वीरेंद्र जैसे युवाओं की बड़ी भूमिका है I वो, अपने क्षेत्र के बुजुर्गों को इसके बारे में जागरूक करते रहते हैं I इतना ही नहीं वो बुजुर्गों को tech savvy भी बना रहे हैं ऐसे ही प्रयासों से आज Digital Life certificate पाने वालों की संख्या 80 लाख के आँकड़े को पार कर गई है I इनमें से दो लाख से ज्यादा ऐसे बुजुर्ग हैं, जिनकी आयु 80 के भी पार हो गई है I

साथियो, कई शहरों में ‘युवा’ बुजुर्गों को Digital क्रांति में भागीदार बनाने के लिए भी आगे आ रहे हैं I भोपाल के महेश ने अपने मोहल्ले के कई बुजुर्गों को Mobile के माध्यम से Payment करना सिखाया है I इन बुजुर्गों के पास smart phone तो था, लेकिन, उसका सही उपयोग बताने वाला कोई नहीं था I बुजुर्गों को Digital arrest के खतरे से बचाने के लिए भी युवा आगे आए हैं I अहमदाबाद के राजीव, लोगों को Digital Arrest के खतरे से आगाह करते हैं I मैंने ‘मन की बात’ के पिछले episode में Digital Arrest की चर्चा की थी I इस तरह के अपराध के सबसे ज्यादा शिकार बुजुर्ग ही बनते हैं I ऐसे में हमारा दायित्व है कि हम उन्हें जागरूक बनाएं और cyber fraud से बचने में मदद करें I हमें बार-बार लोगों को समझाना होगा कि Digital Arrest नाम का सरकार में कोई भी प्रावधान नहीं है - ये सरासर झूठ, लोगों को फ़साने का एक षड्यन्त्र है मुझे खुशी है कि हमारे युवा साथी इस काम में पूरी संवेदनशीलता से हिस्सा ले रहे हैं और दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं I

मेरे प्यारे देशवासियो, आजकल बच्चों की पढ़ाई को लेकर कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं | कोशिश यही है कि हमारे बच्चों में creativity और बढ़े, किताबों के लिए उनमें प्रेम और बढ़े - कहते भी हैं ‘किताबें’ इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं, और अब इस दोस्ती को मजबूत करने के लिए, Library से ज्यादा अच्छी जगह और क्या होगी | मैं चेन्नई का एक उदाहरण आपसे share करना चाहता हूं | यहां बच्चों के लिए एक ऐसी library तैयार की गई है, जो, creativity और learning का Hub बन चुकी है | इसे प्रकृत् अरिवगम् के नाम से जाना जाता है | इस library का idea, technology की दुनिया से जुड़े श्रीराम गोपालन जी की देन है | विदेश में अपने काम के दौरान वे latest technology की दुनिया से जुड़े रहे | लेकिन, वो, बच्चों में पढ़ने और सीखने की आदत विकसित करने के बारे में भी सोचते रहे | भारत लौटकर उन्होंने प्रकृत् अरिवगम् को तैयार किया | इसमें तीन हजार से अधिक किताबें हैं, जिन्हें पढ़ने के लिए बच्चों में होड़ लगी रहती है | किताबों के अलावा इस library में होने वाली कई तरह की activities भी बच्चों को लुभाती हैं | Story Telling session हो, Art Workshops हो, Memory Training Classes, Robotics Lesson या फिर Public Speaking, यहां, हर किसी के लिए कुछ-न-कुछ जरूर है, जो उन्हें पसंद आता है |

साथियो, हैदराबाद में ‘Food for Thought’ Foundation ने भी कई शानदार libraries बनाई हैं | इनका भी प्रयास यही है कि बच्चों को ज्यादा-से-ज्यादा विषयों पर ठोस जानकारी के साथ पढ़ने के लिए किताबें मिलें | बिहार में गोपालगंज के ‘Prayog Library’ की चर्चा तो आसपास के कई शहरों में होने लगी है | इस library से करीब 12 गांवों के युवाओं को किताबें पढ़ने की सुविधा मिलने लगी है, साथ ही ये, library पढ़ाई में मदद करने वाली दूसरी जरूरी सुविधाएँ भी उपलब्ध करा रही है | कुछ libraries तो ऐसी हैं, जो, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में students के बहुत काम आ रही हैं | ये देखना वाकई बहुत सुखद है कि समाज को सशक्त बनाने में आज library का बेहतरीन उपयोग हो रहा है | आप भी किताबों से दोस्ती बढ़ाइए, और देखिए, कैसे आपके जीवन में बदलाव आता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, परसों रात ही मैं दक्षिण अमेरिका के देश गयाना से लौटा हूं | भारत से हजारों किलोमीटर दूर, गयाना में भी, एक ‘Mini भारत’ बसता है | आज से लगभग 180 वर्ष पहले, गयाना में भारत के लोगों को, खेतों में मजदूरी के लिए, दूसरे कामों के लिए, ले जाया गया था | आज गयाना में भारतीय मूल के लोग राजनीति, व्यापार, शिक्षा और संस्कृति के हर क्षेत्र में गयाना का नेतृत्व कर रहे हैं | गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली भी भारतीय मूल के हैं, जो, अपनी भारतीय विरासत पर गर्व करते हैं | जब मैं गयाना में था, तभी, मेरे मन में एक विचार आया था - जो मैं ‘मन की बात’ में आपसे share कर रहा हूं | गयाना की तरह ही दुनिया के दर्जनों देशों में लाखों की संख्या में भारतीय हैं | दशकों पहले की 200-300 साल पहले की उनके पूर्वजों की अपनी कहानियां हैं | क्या आप ऐसी कहानियों को खोज सकते हैं कि किस तरह भारतीय प्रवासियों ने अलग-अलग देशों में अपनी पहचान बनाई! कैसे उन्होंने वहाँ की आजादी की लड़ाई के अंदर हिस्सा लिया! कैसे उन्होंने अपनी भारतीय विरासत को जीवित रखा? मैं चाहता हूं कि आप ऐसी सच्ची कहानियों को खोजें, और मेरे साथ share करें | आप इन कहानियों को NaMo App पर या MyGov पर #IndianDiasporaStories के साथ भी share कर सकते हैं |

साथियो, आपको ओमान में चल रहा एक extraordinary project भी बहुत दिलचस्प लगेगा | अनेकों भारतीय परिवार कई शताब्दियों से ओमान में रह रहे हैं | इनमें से ज्यादातर गुजरात के कच्छ से जाकर बसे हैं | इन लोगों ने व्यापार के महत्वपूर्ण link तैयार किए थे | आज भी उनके पास ओमानी नागरिकता है, लेकिन भारतीयता उनकी रग-रग में बसी है | ओमान में भारतीय दूतावास और National Archives of India के सहयोग से एक team ने इन परिवारों की history को preserve करने का काम शुरू किया है | इस अभियान के तहत अब तक हजारों documents जुटाए जा चुके हैं | इनमें diary, account book, ledgers, letters और telegram शामिल हैं | इनमें से कुछ दस्तावेज तो सन् 1838 के भी हैं | ये दस्तावेज, भावनाओं से भरे हुए हैं | बरसों पहले जब वो ओमान पहुंचे, तो उन्होंने किस प्रकार का जीवन जिया, किस तरह के सुख-दुख का सामना किया, और, ओमान के लोगों के साथ उनके संबंध कैसे आगे बढ़े - ये सब कुछ इन दस्तावेजों का हिस्सा है | ‘Oral History Project’ ये भी इस mission का एक महत्वपूर्ण आधार है | इस mission में वहां के वरिष्ठ लोगों ने अपने अनुभव साझा किए हैं | लोगों ने वहाँ अपने रहन-सहन से जुड़ी बातों को विस्तार से बताया है |

साथियो ऐसा ही एक ‘Oral History Project’ भारत में भी हो रहा है | इस project के तहत इतिहास प्रेमी देश के विभाजन के कालखंड में पीड़ितों के अनुभवों का संग्रह कर रहें हैं | अब देश में ऐसे लोगों की संख्या कम ही बची है, जिन्होंने, विभाजन की विभीषिका को देखा है | ऐसे में यह प्रयास और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है |

साथियो, जो देश, जो स्थान, अपने इतिहास को संजोकर रखता है, उसका भविष्य भी सुरक्षित रहता है | इसी सोच के साथ एक प्रयास हुआ है जिसमें गांवों के इतिहास को संजोने वाली एक Directory बनाई है | समुद्री यात्रा के भारत के पुरातन सामर्थ्य से जुड़े साक्ष्यों को सहेजने का भी अभियान देश में चल रहा है | इसी कड़ी में, लोथल में, एक बहुत बड़ा Museum भी बनाया जा रहा है, इसके अलावा, आपके संज्ञान में कोई manuscript हो, कोई ऐतिहासिक दस्तावेज हो, कोई हस्तलिखित प्रति हो तो उसे भी आप, National Archives of India की मदद से सहेज सकते हैं |

साथियो, मुझे Slovakia में हो रहे ऐसे ही एक और प्रयास के बारे में पता चला है जो हमारी संस्कृति को संरक्षित करने और उसे आगे बढ़ाने से जुड़ा है | यहां पहली बार Slovak language में हमारे उपनिषदों का अनुवाद किया गया है | इन प्रयासों से भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव का भी पता चलता है | हम सभी के लिए ये गर्व की बात है कि दुनिया-भर में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिनके हृदय में, भारत बसता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, अब मैं आपसे देश की एक ऐसी उपलब्धि साझा करना चाहता हूं जिसे सुनकर आपको खुशी भी होगी और गौरव भी होगा, और अगर आपने नहीं किया है, तो शायद पछतावा भी होगा | कुछ महीने पहले हमने ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान शुरू किया था | इस अभियान में देश-भर के लोगों ने बहुत उत्साह से हिस्सा लिया | मुझे ये बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि इस अभियान ने सौ करोड़ पेड़ लगाने का अहम पड़ाव पार कर लिया है | सौ करोड़ पेड़, वो भी, सिर्फ पाँच महीनों में - ये हमारे देशवासियों के अथक प्रयासों से ही संभव हुआ है | इससे जुड़ी एक और बात जानकर आपको गर्व होगा | ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान अब दुनिया के दूसरे देशों में भी फैल रहा है | जब मैं गयाना में था, तो वहां भी, इस अभियान का साक्षी बना | वहां मेरे साथ गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली, उनकी पत्नी की माता जी, और परिवार के बाकी सदस्य, ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान में शामिल हुए |

साथियो, देश के अलग-अलग हिस्सों में ये अभियान लगातार चल रहा है | मध्य प्रदेश के इंदौर में ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान के तहत, पेड़ लगाने का record बना है - यहां 24 घंटे में 12 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए गए | इस अभियान की वजह से इंदौर की Revati Hills के बंजर इलाके, अब, green zone में बदल जाएंगे | राजस्थान के जैसलमेर में इस अभियान के द्वारा एक अनोखा record बना - यहां महिलाओं की एक टीम ने एक घंटे में 25 हजार पेड़ लगाए | माताओं ने मां के नाम पेड़ लगाया और दूसरों को भी प्रेरित किया। यहां एक ही जगह पर पाँच हज़ार से ज़्यादा लोगों ने मिलकर पेड़ लगाए - ये भी अपने आप में एक रिकॉर्ड है । ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के तहत कई सामाजिक संस्थाएँ स्थानीय जरूरतों के हिसाब से पेड़ लगा रही हैं । उनका प्रयास है कि जहां पेड़ लगाए जाएँ वहाँ पर्यावरण के अनुकूल पूरा Eco System Develop हो । इसलिए ये संस्थाएँ कहीं औषधीय पौधे लगा रहीं हैं, तो कहीं, चिड़ियों का बसेरा बनाने के लिए पेड़ लगा रहीं हैं । बिहार में ‘JEEViKA Self Help Group’ की महिलाओं ने 75 लाख पेड़ लगाने का अभियान चला रहीं हैं । इन महिलाओं का focus फल वाले पेड़ों पर है, जिससे आने वाले समय में आय भी की जा सके ।

साथियो, इस अभियान से जुड़कर कोई भी व्यक्ति अपनी माँ के नाम पर पेड़ लगा सकता है । अगर माँ साथ है तो उन्हें साथ लेकर आप पेड़ लगा सकते हैं, नहीं तो उनकी तस्वीर साथ में लेकर आप इस अभियान का हिस्सा बन सकते हैं । पेड़ के साथ आप अपनी Selfie भी mygov.in पर पोस्ट कर सकते हैं । माँ, हम सबके लिए जो करती है हम उनका ऋण कभी नहीं चुका सकते, लेकिन, एक पेड़ माँ के नाम लगाकर हम उनकी उपस्थिति को हमेशा के लिए जीवंत बना सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आप सभी लोगों ने बचपन में गौरेया या Sparrow को अपने घर की छत पर, पेड़ों पर चहकते हुए ज़रूर देखा होगा । गौरेया को तमिल और मलयालम में कुरुवी, तेलुगु में पिच्चुका और कन्नड़ा में गुब्बी के नाम से जाना जाता है । हर भाषा, संस्कृति में, गौरेया को लेकर किस्से-कहानी सुनाए जाते हैं । हमारे आसपास Biodiversity को बनाए रखने में गौरेया का एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है, लेकिन, आज शहरों में बड़ी मुश्किल से गौरेया दिखती है । बढ़ते शहरीकरण की वजह से गौरेया हमसे दूर चली गई है । आज की पीढ़ी के ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिन्होंने गौरेया को सिर्फ तस्वीरों या वीडियो में देखा है । ऐसे बच्चों के जीवन में इस प्यारी पक्षी की वापसी के लिए कुछ अनोखे प्रयास हो रहे हैं । चेन्नई के कूडुगल ट्रस्ट ने गौरेया की आबादी बढ़ाने के लिए स्कूल के बच्चों को अपने अभियान में शामिल किया है । संस्थान के लोग स्कूलों में जाकर बच्चों को बताते हैं कि गौरेया रोज़मर्रा के जीवन में कितनी महत्वपूर्ण है । ये संस्थान बच्चों को गौरेया का घोंसला बनाने की training देते है । इसके लिए संस्थान के लोगों ने बच्चों को लकड़ी का एक छोटा सा घर बनाना सिखाया । इसमें गौरेया के रहने, खाने का इंतजाम किया । ये ऐसे घर होते हैं जिन्हें किसी भी इमारत की बाहरी दीवार पर या पेड़ पर लगाया जा सकता है । बच्चों ने इस अभियान में उत्साह के साथ हिस्सा लिया और गौरेया के लिए बड़ी संख्या में घोंसला बनाना शुरू कर दिया । पिछले चार वर्षों में संस्था ने गौरेया के लिए ऐसे दस हज़ार घोंसले तैयार किए हैं । कूडुगल ट्रस्ट की इस पहल से आसपास के इलाकों में गौरेया की आबादी बढ़नी शुरू हो गई है। आप भी अपने आसपास ऐसे प्रयास करेंगे तो निश्चित तौर पर गौरेया फिर से हमारे जीवन का हिस्सा बन जाएगी ।

साथियो, कर्नाटका के मैसुरू की एक संस्था ने बच्चों के लिए ‘Early Bird’ नाम का अभियान शुरू किया है । ये संस्था बच्चों को पक्षियों के बारे में बताने के लिए खास तरह की library चलाती है । इतना ही नहीं, बच्चों में प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का भाव पैदा करने के लिए ‘Nature Education Kit’ तैयार किया है। इस Kit में बच्चों के लिए Story Book, Games, Activity Sheets और jig-saw puzzles हैं । ये संस्था शहर के बच्चों को गांवों में लेकर जाती है और उन्हें पक्षियों के बारे में बताती है । इस संस्था के प्रयासों की वजह से बच्चे पक्षियों की अनेक प्रजातियों को पहचानने लगे हैं । ‘मन की बात’ के श्रोता भी इस तरह के प्रयास से बच्चों में अपने आसपास को देखने, समझने का अलग नज़रिया विकसित कर सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आपने देखा होगा, जैसे ही कोई कहता है ‘सरकारी दफ्तर’ तो आपके मन में फाइलों के ढ़ेर की तस्वीर बन जाती है | आपने फिल्मों में भी ऐसा ही कुछ देखा होगा | सरकारी दफ्तरों में इन फाइलों के ढ़ेर पर कितने ही मजाक बनते रहते हैं, कितनी ही कहानियां लिखी जा चुकी हैं | बरसों-बरस तक ये फाइलें Office में पड़े-पड़े धूल से भर जाती थीं, वहां, गंदगी होने लगती थी - ऐसी दशकों पुरानी फाइलों और Scrap को हटाने के लिए एक विशेष स्वच्छता अभियान चलाया गया | आपको ये जानकर खुशी होगी कि सरकारी विभागों में इस अभियान के अद्भुत परिणाम सामने आए हैं | साफ-सफाई से दफ्तरों में काफी जगह खाली हो गई है | इससे दफ्तर में काम करने वालों में एक Ownership का भाव भी आया है | अपने काम करने की जगह को स्वच्छ रखने की गंभीरता भी उनमें आई है |

सथियो, आपने अक्सर बड़े-बुजुर्गों को ये कहते सुना होगा, कि जहां स्वच्छता होती है, वहां, लक्ष्मी जी का वास होता है | हमारे यहाँ ‘कचरे से कंचन’ का विचार बहुत पुराना है | देश के कई हिस्सों में ‘युवा’ बेकार समझी जाने वाली चीजों को लेकर, कचरे से कंचन बना रहे हैं | तरह-तरह के innovation कर रहे हैं | इससे वो पैसे कमा रहे हैं, रोजगार के साधन विकसित कर रहे हैं | ये युवा अपने प्रयासों से sustainable lifestyle को भी बढ़ावा दे रहे हैं | मुंबई की दो बेटियों का ये प्रयास, वाकई बहुत प्रेरक है | अक्षरा और प्रकृति नाम की ये दो बेटियाँ, कतरन से फैशन के सामान बना रही हैं | आप भी जानते हैं कपड़ों की कटाई-सिलाई के दौरान जो कतरन निकलती है, इसे बेकार समझकर फेंक दिया जाता है | अक्षरा और प्रकृति की Team उन्हीं कपड़ों के कचरे को Fashion Product में बदलती है | कतरन से बनी टोपियां, Bag हाथों-हाथ बिक भी रही है |

साथियो, साफ-सफाई को लेकर UP के कानपुर में भी अच्छी पहल हो रही है | यहाँ कुछ लोग रोज सुबह Morning Walk पर निकलते हैं और गंगा के घाटों पर फैले Plastic और अन्य कचरे को उठा लेते हैं | इस समूह को ‘Kanpur Ploggers Group’ नाम दिया गया है | इस मुहिम की शुरुआत कुछ दोस्तों ने मिलकर की थी | धीरे-धीरे ये जन भागीदारी का बड़ा अभियान बन गया | शहर के कई लोग इसके साथ जुड़ गए हैं | इसके सदस्य, अब, दुकानों और घरों से भी कचरा उठाने लगे हैं | इस कचरे से Recycle Plant में tree guard तैयार किए जाते हैं, यानि, इस Group के लोग कचरे से बने tree guard से पौधों की सुरक्षा भी करते हैं|

साथियो, छोटे-छोटे प्रयासों से कैसी बड़ी सफलता मिलती है, इसका एक उदाहरण असम की इतिशा भी है | इतिशा की पढ़ाई-लिखाई दिल्ली और पुणे में हुई है | इतिशा corporate दुनिया की चमक-दमक छोड़कर अरुणाचल की सांगती घाटी को साफ बनाने में जुटी हैं | पर्यटकों की वजह से वहां काफी plastic waste जमा होने लगा था | वहां की नदी जो कभी साफ थी वो plastic waste की वजह से प्रदूषित हो गई थी | इसे साफ करने के लिए इतिशा स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम कर रही है | उनके group के लोग वहां आने वाले tourist को जागरूक करते हैं और plastic waste को collect करने के लिए पूरी घाटी में बांस से बने कूड़ेदान लगाते हैं |

साथियो, ऐसे प्रयासों से भारत के स्वच्छता अभियान को गति मिलती है | ये निरंतर चलते रहने वाला अभियान है | आपके आस-पास भी ऐसा जरूर होता ही होगा | आप मुझे ऐसे प्रयासों के बारे में जरूर लिखते रहिए |

साथियो, ‘मन की बात’ के इस episode में फिलहाल इतना ही | मुझे तो पूरे महीने, आपकी प्रतिक्रियाओं, पत्रों और सुझावों का खूब इंतजार रहता है | हर महीने आने वाले आपके संदेश मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा देते हैं | अगले महीने हम फिर मिलेंगे, ‘मन की बात’ के एक और अंक में - देश और देशवासियों की नई उपलब्धियों के साथ, तब तक के लिए, आप सभी देशवासियों को, मेरी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं |

बहुत-बहुत धन्यवाद |