प्रिय मित्रों,

2014 के लोक सभा चुनाव के प्रचार का आज अंतिम दिन था। मैंने अपनी आखिरी रैली पूर्वी उत्‍तर प्रदेश में बलिया में की जो 1857 की क्रांति के नायक मंगल पांडेय की भूमि है।

13 सितंबर 2013 को भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का दायित्व मिलने के बाद मैंने पूरे भारतवर्ष का दौरा किया । मेरी पार्टी के मित्रों ने बताया इस दौरान रैलियाँ, 3डी सभायें, चाय पे चर्चा आदि को मिला कर मैंने लगभग  5800 कार्यक्रम किये  | 3 लाख किलोमीटर की यात्रा कर पूरे भारतवर्ष में 440 कार्यक्रम और रैलियाँ संबोधित की हैं। इसमें भारत विजय रैलियाँ भी शामिल हैं जिनकी शुरुआत मैंने 26 मार्च 2014 को माँ वैष्‍णो देवी के आशीर्वाद से की थी ।

Extensive, Innovating and Satisfying: The Story of 2014 Campaign

एक बार फिर भारत की विविधता, लोगों का उत्साह और हमारी संस्कृति की भव्यता को देखने का सुखद अवसर मिला। संगठन के लिए काम करते हुए मैंने पहले भी पूरे देश की यात्रा की है लेकिन इस बार का अनुभव एकदम अलग था, अद्भुत था ।

मुझे लोगों से अभूतपूर्व आशीर्वाद प्राप्‍त हुआ। आमतौर पर इतने दिनों तक चलने वाले प्रचार को थकावट भरा माना जाता है लेकिन मुझे गहरे  संतोष और आनन्द का अनुभव हो रहा है, एक ऐसा अनुभव जो किसी साधक को लंबी साधना के बाद प्राप्त होता है | इस प्रचार के माध्यम से मुझे पूरे देश के जनता जनार्दन के आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर मिला |

मैं जब पूरे प्रचार अभियान पर नजर डालता हूँ  तो मेरे मन में तीन शब्‍द आते हैं- व्‍यापक, अभिनव और संतोषजनक !

हमने अपने प्रचार अभियान के दौरान सुशासन और विकास के एजेंडा को भारत के हर कोने  तक पहुँचाने का प्रयास किया | लोग झूठे वादे, भ्रष्‍टाचार और अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए वंशवाद आधारित घिसे-पिटे बयानों को सुन-सुनकर थक चुके हैं। वे एक बेहतर भविष्य चाहते हैं और सिर्फ एनडीए ही एकमात्र ऐसा गठबंधन है जो यह परिवर्तन दे सकता है।

मुझे सबसे ज्यादा प्रसन्नता कार्यकर्ताओं के उत्साह और उनके अथक परिश्रम को देखकर हुई । टीवी या सोशल मीडिया पर रैली देखना एक बात है लेकिन जमीनी स्‍तर पर काम करना अलग अनुभूति  होती है | हम प्रचार अभियान को चुनावी जीत या हार के सीमित नजरिये से नहीं देखते। चुनाव प्रचार अभियान कार्यकर्ताओं के लिए जीवन का एक यादगार अनुभव होता है। यह संगठन के दृढ़ीकरण और विस्तार का अवसर होता है, जनता और संगठन के रिश्तों में विश्वास और मजबूती लाने का भी अवसर होता है |  कार्यकर्ता घर-घर गये और उन्‍होंने पार्टी के संदेश को जन-जन तक पहुँचाया, हमें उन पर बहुत गर्व है। हमारा प्रचार भाजपा के प्रत्‍येक कार्यकर्ता के कठिन परिश्रम की कहानी है जिसने एक बेहतर भारत के सृजन के लिए निस्‍वार्थ योगदान दिया है ।

पूरे प्रचार अभियान के दौरान हमें पार्टी के वरिष्ठ नेतृत्व का निरंतर सहयोग और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। इससे अपार शक्ति और प्रेरणा मिलती रही, कार्यकर्ताओं का उत्‍साहवर्द्धन होता रहा ।

यह प्रचार अभिनव प्रयोगों के लिए भी याद रखा जायेगा। राजनीति में सामान्यतयाः प्रचार सिर्फ एकतरफा संदेश होते थे लेकिन हमारी चाय पे चर्चा इस मामले में लीक से हटकर एक अभिनव प्रयोग थी। चाय पे चर्चा देशभर में 4000 से अधिक स्‍थानों पर हुईं। इन चर्चाओं के दौरान मैं घंटों बैठा और लोगों के विचार सुने तथा विभिन्‍न मुद्दों पर उनके सवालों के  जवाब दिये । मुझे याद है एक चर्चा वर्धा (महाराष्ट्र) में हुई थी, जहाँ मैंने उन किसानों के परिवारों से मुलाकात की जो आत्‍महत्‍या कर अपना जीवन समाप्‍त कर चुके हैं। मुझे बेहद दुःख हुआ। आजादी के इतने वर्ष बाद भी हमारे किसान अपनी जान गँवाने को मजबूर हैं जबकि मौजूदा सरकार मूकदर्शक बनी हुई है। हम कितने दिन तक ऐसा होने देंगे?

भारत विजय 3डी रैलियों के रूप में एक ओर अभिनव प्रयोग हुआ। एक महीने के भीतर मैंने  12 दौर में 1350 स्‍थानों पर 3डी रैलियां संबोधित कीं। 3डी रैलियों के प्रति लोगों का उत्साह गजब का था। बहुत से युवाओं ने मुझे सोशल मीडिया और ईमेल के माध्‍यम से उनके गाँव  में पधारने का धन्‍यवाद दिया। लोगों ने हमारे कार्यकर्ताओं से कहा कि हम मोदीजी से मंच पर जाकर मिलना चाहते हैं।

भारत के चुनावी इतिहास में पहली बार एक विशेष Volunteer Portal India272+ (https://www.india272.com) के रूप में स्थापित किया गया। इससे जुड़ कर लाखों volunteers ने Online और जमीनी स्तर दोनों ही जगह बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिये | मुझे उनके विचारों और योगदान से लाभ मिला। इस तरह के फोरम में प्रचार को गति देने और शुभेच्‍छुकों से विचार विमर्श करने तथा volunteers के योगदान को दिशा देने (revolutionize campaigning and create a paradigm shift ) की अपार संभावनाएं हैं।

प्रचार के दौरान अद्भुत तरीके से सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया गया। बहुत से मित्रों ने मुझे WhatsApp पर बहुत ही रचनात्मक सन्देश, नारे और इन्‍फोग्राफिक दिखाये जो बेहद लोकप्रिय थे। मैंने अपना वोट डालने के बाद खुद का फोटो (सेल्‍फी) लिया और आपसे भी सेल्‍फी भेजने का आह्वान किया। मैंने प्रिंट और इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया के कई मित्रों से खुलकर बातचीत की। हिन्‍दी, क्षेत्रीय और अंग्रेजी मीडिया ने मेरे साक्षात्‍कार लिये ।

मुझे बीते आठ महीनों में जो स्नेह मिला है उसे मैं नहीं भूल सकता। पटना की घटना हमेशा मुझे याद रहेंगी- वहां बम विस्‍फोट हुए लेकिन लोगों का संकल्‍प उन पर भारी पड़ा। किसी भी व्‍यक्ति ने रैली स्‍थल नहीं छोड़ा। मैने उस दिन स्‍पष्‍ट संदेश दिया जो मैं प्रचार अभियान के दौरान भी दोहराता रहा हूँ - हम फैसला कर सकते हैं कि क्‍या हम एक दूसरे से लड़ना चाहते हैं या फिर हम एक साथ मिलकर गरीबी से लड़ना चाहते हैं? पहला काम हमें कहीं नहीं ले जायेगा जबकि दूसरा हमारे देश को नई ऊंचाइयों पर ले जायेगा।

मैं देशवासियों को धन्यवाद देना चाहता हूँ, जिन्होंने बड़ी संख्या में हमारी रैलियों, 3डी आयोजनों और चर्चाओं में भाग लिया। सभी आयु वर्ग के लोगों और हर जाति और धर्म के लोगों ने हमारा साथ दिया। मैंने अक्‍सर कहा कि नरेन्‍द्र मोदी या कोई एक व्‍यक्ति यह चुनाव नहीं लड़ रहा। भारत की जनता ने इन चुनावों को अपने कंधे पर उठा लिया है। भारत का प्रत्‍येक नागरिक बदलाव का वाहक बन गया है।

मैंने कई स्थलों पर रैलियां की, जहाँ मौसम बेहद गर्म था, फिर भी बड़ी संख्‍या में लोग उपस्थित हुए। कुछ दिन पहले मैं विशाखापट्टनम में था, उसी समय अचानक बारिश शुरु हो गयी। लेकिन लोग वहीं रहे। लोगों का आभार प्रकट करने के लिए मेरे पास शब्‍द नहीं हैं। मैं भारत की जनता को आश्‍वस्‍त करना चाहता हूँ कि मैं इस अपार प्रेम के कर्ज को  अभूतपूर्व विकास के रूप में चुकाऊंगा जो मजबूत भारत की बुनियाद बनेगा।

प्रचार आज खत्‍म हो गया है लेकिन एक चरण का चुनाव अभी बाकी है। मैं उन लोगों, खासकर युवाओं से रिकार्ड संख्‍या में मतदान करने की अपील करता हूँ  जो अंतिम चरण में वोट डालने वाले है । कृपया वोट देने जाइये, अपने परिवार और मित्रों को भी वोट डालने के लिये प्रेरित कीजिये । हर वोट देश के लिये कीमती है।

इस  भारत भ्रमण के दौरान मैंने साक्षात् अनुभव किया है कि हमारा देश विशेष है, इसका एक विशेष दायित्व है |  इतिहास में उदाहरण भरे हुए हैं कि किस तरह हमारे देश ने समय – समय पर दुनिया को रास्ता दिखाया है और आज एक बार फिर आवश्यकता है कि भारत अपनी जगद्गुरु की भूमिका निभाए | आइये हम सब मिलकर एक मजबूत और विकसित भारत का सृजन करें जो विश्व को रास्‍ता दिखायेगा।

आपका,

नरेन्‍द्र मोदी

 

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एकता का महाकुंभ, युग परिवर्तन की आहट
February 27, 2025

महाकुंभ संपन्न हुआ...एकता का महायज्ञ संपन्न हुआ। जब एक राष्ट्र की चेतना जागृत होती है, जब वो सैकड़ों साल की गुलामी की मानसिकता के सारे बंधनों को तोड़कर नव चैतन्य के साथ हवा में सांस लेने लगता है, तो ऐसा ही दृश्य उपस्थित होता है, जैसा हमने 13 जनवरी के बाद से प्रयागराज में एकता के महाकुंभ में देखा।

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22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में मैंने देवभक्ति से देशभक्ति की बात कही थी। प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान सभी देवी-देवता जुटे, संत-महात्मा जुटे, बाल-वृद्ध जुटे, महिलाएं-युवा जुटे, और हमने देश की जागृत चेतना का साक्षात्कार किया। ये महाकुंभ एकता का महाकुंभ था, जहां 140 करोड़ देशवासियों की आस्था एक साथ एक समय में इस एक पर्व से आकर जुड़ गई थी।

तीर्थराज प्रयाग के इसी क्षेत्र में एकता, समरसता और प्रेम का पवित्र क्षेत्र श्रृंगवेरपुर भी है, जहां प्रभु श्रीराम और निषादराज का मिलन हुआ था। उनके मिलन का वो प्रसंग भी हमारे इतिहास में भक्ति और सद्भाव के संगम की तरह ही है। प्रयागराज का ये तीर्थ आज भी हमें एकता और समरसता की वो प्रेरणा देता है।

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बीते 45 दिन, प्रतिदिन, मैंने देखा, कैसे देश के कोने-कोने से लाखों-लाख लोग संगम तट की ओर बढ़े जा रहे हैं। संगम पर स्नान की भावनाओं का ज्वार, लगातार बढ़ता ही रहा। हर श्रद्धालु बस एक ही धुन में था- संगम में स्नान। मां गंगा, यमुना, सरस्वती की त्रिवेणी हर श्रद्धालु को उमंग, ऊर्जा और विश्वास के भाव से भर रही थी।

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प्रयागराज में हुआ महाकुंभ का ये आयोजन, आधुनिक युग के मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स के लिए, प्लानिंग और पॉलिसी एक्सपर्ट्स के लिए, नए सिरे से अध्ययन का विषय बना है। आज पूरे विश्व में इस तरह के विराट आयोजन की कोई दूसरी तुलना नहीं है, ऐसा कोई दूसरा उदाहरण भी नहीं है।

पूरी दुनिया हैरान है कि कैसे एक नदी तट पर, त्रिवेणी संगम पर इतनी बड़ी संख्या में करोड़ों की संख्या में लोग जुटे। इन करोड़ों लोगों को ना औपचारिक निमंत्रण था, ना ही किस समय पहुंचना है, उसकी कोई पूर्व सूचना थी। बस, लोग महाकुंभ चल पड़े...और पवित्र संगम में डुबकी लगाकर धन्य हो गए।

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मैं वो तस्वीरें भूल नहीं सकता...स्नान के बाद असीम आनंद और संतोष से भरे वो चेहरे नहीं भूल सकता। महिलाएं हों, बुजुर्ग हों, हमारे दिव्यांग जन हों, जिससे जो बन पड़ा, वो साधन करके संगम तक पहुंचा।

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और मेरे लिए ये देखना बहुत ही सुखद रहा कि बहुत बड़ी संख्या में भारत की आज की युवा पीढ़ी प्रयागराज पहुंची। भारत के युवाओं का इस तरह महाकुंभ में हिस्सा लेने के लिए आगे आना, एक बहुत बड़ा संदेश है। इससे ये विश्वास दृढ़ होता है कि भारत की युवा पीढ़ी हमारे संस्कार और संस्कृति की वाहक है और इसे आगे ले जाने का दायित्व समझती है और इसे लेकर संकल्पित भी है, समर्पित भी है।

इस महाकुंभ में प्रयागराज पहुंचने वालों की संख्या ने निश्चित तौर पर एक नया रिकॉर्ड बनाया है। लेकिन इस महाकुंभ में हमने ये भी देखा कि जो प्रयाग नहीं पहुंच पाए, वो भी इस आयोजन से भाव-विभोर होकर जुड़े। कुंभ से लौटते हुए जो लोग त्रिवेणी तीर्थ अपने साथ लेकर गए, उस जल की कुछ बूंदों ने भी करोड़ों भक्तों को कुंभ स्नान जैसा ही पुण्य दिया। कितने ही लोगों का कुंभ से वापसी के बाद गांव-गांव में जो सत्कार हुआ, जिस तरह पूरे समाज ने उनके प्रति श्रद्धा से सिर झुकाया, वो अविस्मरणीय है।

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ये कुछ ऐसा हुआ है, जो बीते कुछ दशकों में पहले कभी नहीं हुआ। ये कुछ ऐसा हुआ है, जो आने वाली कई-कई शताब्दियों की एक नींव रख गया है।

प्रयागराज में जितनी कल्पना की गई थी, उससे कहीं अधिक संख्या में श्रद्धालु वहां पहुंचे। इसकी एक वजह ये भी थी कि प्रशासन ने भी पुराने कुंभ के अनुभवों को देखते हुए ही अंदाजा लगाया था। लेकिन अमेरिका की आबादी के करीब दोगुने लोगों ने एकता के महाकुंभ में हिस्सा लिया, डुबकी लगाई। 

आध्यात्मिक क्षेत्र में रिसर्च करने वाले लोग करोड़ों भारतवासियों के इस उत्साह पर अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि अपनी विरासत पर गौरव करने वाला भारत अब एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ रहा है। मैं मानता हूं, ये युग परिवर्तन की वो आहट है, जो भारत का नया भविष्य लिखने जा रही है।

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साथियों,

महाकुंभ की इस परंपरा से, हजारों वर्षों से भारत की राष्ट्रीय चेतना को बल मिलता रहा है। हर पूर्णकुंभ में समाज की उस समय की परिस्थितियों पर ऋषियों-मुनियों, विद्वत् जनों द्वारा 45 दिनों तक मंथन होता था। इस मंथन में देश को, समाज को नए दिशा-निर्देश मिलते थे। 

इसके बाद हर 6 वर्ष में अर्धकुंभ में परिस्थितियों और दिशा-निर्देशों की समीक्षा होती थी। 12 पूर्णकुंभ होते-होते, यानि 144 साल के अंतराल पर जो दिशा-निर्देश, जो परंपराएं पुरानी पड़ चुकी होती थीं, उन्हें त्याग दिया जाता था, आधुनिकता को स्वीकार किया जाता था और युगानुकूल परिवर्तन करके नए सिरे से नई परंपराओं को गढ़ा जाता था। 

144 वर्षों के बाद होने वाले महाकुंभ में ऋषियों-मुनियों द्वारा, उस समय-काल और परिस्थितियों को देखते हुए नए संदेश भी दिए जाते थे। अब इस बार 144 वर्षों के बाद पड़े इस तरह के पूर्ण महाकुंभ ने भी हमें भारत की विकासयात्रा के नए अध्याय का संदेश दिया है। ये संदेश है- विकसित भारत का। 

जिस तरह एकता के महाकुंभ में हर श्रद्धालु, चाहे वो गरीब हों या संपन्न हों, बाल हो या वृद्ध हो, देश से आया हो या विदेश से आया हो, गांव का हो या शहर का हो, पूर्व से हो या पश्चिम से हो, उत्तर से हो दक्षिण से हो, किसी भी जाति का हो, किसी भी विचारधारा का हो, सब एक महायज्ञ के लिए एकता के महाकुंभ में एक हो गए। एक भारत-श्रेष्ठ भारत का ये चिर स्मरणीय दृश्य, करोड़ों देशवासियों में आत्मविश्वास के साक्षात्कार का महापर्व बन गया। अब इसी तरह हमें एक होकर विकसित भारत के महायज्ञ के लिए जुट जाना है।

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साथियों,

आज मुझे वो प्रसंग भी याद आ रहा है जब बालक रूप में श्रीकृष्ण ने माता यशोदा को अपने मुख में ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे। वैसे ही इस महाकुंभ में भारतवासियों ने और विश्व ने भारत के सामर्थ्य के विराट स्वरूप के दर्शन किए हैं। हमें अब इसी आत्मविश्वास से एक निष्ठ होकर, विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने के लिए आगे बढ़ना है।

भारत की ये एक ऐसी शक्ति है, जिसके बारे में भक्ति आंदोलन में हमारे संतों ने राष्ट्र के हर कोने में अलख जगाई थी। विवेकानंद हों या श्री ऑरोबिंदो हों, हर किसी ने हमें इसके बारे में जागरूक किया था। इसकी अनुभूति गांधी जी ने भी आजादी के आंदोलन के समय की थी। आजादी के बाद भारत की इस शक्ति के विराट स्वरूप को यदि हमने जाना होता, और इस शक्ति को सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की ओर मोड़ा होता, तो ये गुलामी के प्रभावों से बाहर निकलते भारत की बहुत बड़ी शक्ति बन जाती। लेकिन हम तब ये नहीं कर पाए। अब मुझे संतोष है, खुशी है कि जनता जनार्दन की यही शक्ति, विकसित भारत के लिए एकजुट हो रही है।

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वेद से विवेकानंद तक और उपनिषद से उपग्रह तक, भारत की महान परंपराओं ने इस राष्ट्र को गढ़ा है। मेरी कामना है, एक नागरिक के नाते, अनन्य भक्ति भाव से, अपने पूर्वजों का, हमारे ऋषियों-मुनियों का पुण्य स्मरण करते हुए, एकता के महाकुंभ से हम नई प्रेरणा लेते हुए, नए संकल्पों को साथ लेकर चलें। हम एकता के महामंत्र को जीवन मंत्र बनाएं, देश सेवा में ही देव सेवा, जीव सेवा में ही शिव सेवा के भाव से स्वयं को समर्पित करें।

साथियों, 

जब मैं काशी चुनाव के लिए गया था, तो मेरे अंतरमन के भाव शब्दों में प्रकट हुए थे, और मैंने कहा था- मां गंगा ने मुझे बुलाया है। इसमें एक दायित्व बोध भी था, हमारी मां स्वरूपा नदियों की पवित्रता को लेकर, स्वच्छता को लेकर। प्रयागराज में भी गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम पर मेरा ये संकल्प और दृढ़ हुआ है। गंगा जी, यमुना जी, हमारी नदियों की स्वच्छता हमारी जीवन यात्रा से जुड़ी है। हमारी जिम्मेदारी बनती है कि नदी चाहे छोटी हो या बड़ी, हर नदी को जीवनदायिनी मां का प्रतिरूप मानते हुए हम अपने यहां सुविधा के अनुसार, नदी उत्सव जरूर मनाएं। ये एकता का महाकुंभ हमें इस बात की प्रेरणा देकर गया है कि हम अपनी नदियों को निरंतर स्वच्छ रखें, इस अभियान को निरंतर मजबूत करते रहें।

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मैं जानता हूं, इतना विशाल आयोजन आसान नहीं था। मैं प्रार्थना करता हूं मां गंगा से...मां यमुना से...मां सरस्वती से...हे मां हमारी आराधना में कुछ कमी रह गई हो तो क्षमा करिएगा...। जनता जनार्दन, जो मेरे लिए ईश्वर का ही स्वरूप है, श्रद्धालुओं की सेवा में भी अगर हमसे कुछ कमी रह गई हो, तो मैं जनता जनार्दन का भी क्षमाप्रार्थी हूं।

साथियों,

श्रद्धा से भरे जो करोड़ों लोग प्रयाग पहुँचकर इस एकता के महाकुंभ का हिस्सा बने, उनकी सेवा का दायित्व भी श्रद्धा के सामर्थ्य से ही पूरा हुआ है। यूपी का सांसद होने के नाते मैं गर्व से कह सकता हूं कि योगी जी के नेतृत्व में शासन, प्रशासन और जनता ने मिलकर, इस एकता के महाकुंभ को सफल बनाया। केंद्र हो या राज्य हो, यहां ना कोई शासक था, ना कोई प्रशासक था, हर कोई श्रद्धा भाव से भरा सेवक था। हमारे सफाईकर्मी, हमारे पुलिसकर्मी, नाविक साथी, वाहन चालक, भोजन बनाने वाले, सभी ने पूरी श्रद्धा और सेवा भाव से निरंतर काम करके इस महाकुंभ को सफल बनाया। विशेषकर, प्रयागराज के निवासियों ने इन 45 दिनों में तमाम परेशानियों को उठाकर भी जिस तरह श्रद्धालुओं की सेवा की है, वह अतुलनीय है। मैं प्रयागराज के सभी निवासियों का, यूपी की जनता का आभार व्यक्त करता हूं, अभिनंदन करता हूं।

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साथियों, 

महाकुंभ के दृश्यों को देखकर, बहुत प्रारंभ से ही मेरे मन में जो भाव जगे, जो पिछले 45 दिनों में और अधिक पुष्ट हुए हैं, राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य को लेकर मेरी आस्था, अनेक गुना मजबूत हुई है।

140 करोड़ देशवासियों ने जिस तरह प्रयागराज में एकता के महाकुंभ को आज के विश्व की एक महान पहचान बना दिया, वो अद्भुत है।

देशवासियों के इस परिश्रम से, उनके प्रयास से, उनके संकल्प से अभीभूत मैं जल्द ही द्वादश ज्योतिर्लिंग में से प्रथम ज्योतिर्लिंग, श्री सोमनाथ के दर्शन करने जाऊंगा और श्रद्धा रूपी संकल्प पुष्प को समर्पित करते हुए हर भारतीय के लिए प्रार्थना करूंगा।

महाकुंभ का स्थूल स्वरूप महाशिवरात्रि को पूर्णता प्राप्त कर गया है। लेकिन मुझे विश्वास है, मां गंगा की अविरल धारा की तरह, महाकुंभ की आध्यात्मिक चेतना की धारा और एकता की धारा निरंतर बहती रहेगी।