नमस्ते,
अगर आपको मिले बिना मैं जाता तो मेरी यात्रा अधूरी रहती। अलग-अलग स्थानों से आप समय निकाल करके आए हैं। वो भी working day होने के बावजूद भी आए हैं। ये भारत के प्रति आपका जो प्यार है, भारत के प्रति आपका जो लगाव है उसी का परिणाम है कि हम सब इस एक छत के नीचे आज इकट्ठे हुए है। मैं सबसे पहले तो आपको विशेष रूप से बधाई देना चाहता हूं। क्योंकि मैं भारत के बाहर जहां भी जाता हूं। तो भारतीय समुदाय के दर्शन का प्रयास जरूर करता हूं। लेकिन आज आप लोगों ने जो discipline दिखाई है इसके लिए मेरी तरफ से बहुत-बहुत बधाई। ये अपने आप में एक बहुत बड़ी ताकत होती है वरना इतनी सारी संख्या और इतने आराम से मैं सबको मिल पाऊं ये अपने आप मेरे लिए बहुत खुशी का अवसर है और इसके लिए आप सब बधाई के पात्र है, अभिनंदन के पात्र है।
मेरा इस देश में पहली बार आना हुआ है लेकिन भारत के लिए ये भू-भाग बहुत ही महत्वपूर्ण है और जब से प्रधानमंत्री के रूप में कार्य करने की आप लोगों ने मुझे जो जिम्मेवारी दी है। प्रारंभ से ही हमने act east policy इस पर बल दिया है। क्योंकि एक प्रकार से हम इन देशों में बहुत नजदीकी महसूस करते है। सहज रूप से अपनापन महसूस करते है। कुछ-न-कुछ कारणों से, कुछ-न-कुछ मात्रा में, कुछ-न-कुछ विरासत के कारण एक emotional binding हमारे बीच में है। शायद ही यहां के कोई देश ऐसे होंगे जिनके विषय में रामायण अपरिचित हों, राम अपरिचित हों, शायद ही बहुत कम देश होंगे कि जिन्हें बुद्ध के प्रति श्रद्धा न हो। ये अपने आप में एक बहुत बड़ी विरासत है और इस विरासत को संवारने का, सजाने का काम भारतीय समुदाय जो यहां रहता है वो बहुत बखूबी कर सकता है। एक काम एक embassy करती है। उससे अनेक गुणा काम एक सामान्य भारतीय कर सकता है। और मैंने अनुभव किया है कि दुनिया भर में आज हर भारतीय गौरव के साथ सर उठा करके आंख में आंख मिलाकर के गौरव के साथ भारतीय होने की बात करता है। किसी भी देश के लिए ये एक बहुत बड़ी पूंजी होती है। और विश्व भर में फैला हुआ भारतीय समुदाय और भारत के लोग सदियों से देशाटन करने की वृत्ति प्रवृत्ति के रहे हैं। सदियों पहले हमारे पूर्वज निकले हैं। और भारत की एक विशेषता रही है। हम जहां गए जिसे मिले उसे अपना बना लिया। ये छोटी चीज नहीं है अपनापन बचाए रखते हुए हर किसी को अपना बना लेना ये तब संभव होता है। भीतर एक दृढ़ आत्मविश्वास होता है। और आप लोग जहां गए हैं वहां उस दृढ़ आत्मविश्वास का परिचय करवाया है। आप कहीं पर भी होंगे कितने ही सालों से बाहर होंगे कितनी ही पीढि़यों से बाहर रहे होंगे हो सकता है, भाषा का नाता टूट भी गया हो, लेकिन अगर भारत में कुछ बुरा होता है तो आपको भी नींद नहीं आती है। और कुछ अच्छा हुआ है तो आप भी फूले नहीं समाते हैं। और इसलिए वर्तमान सरकार का एक निरंतर प्रयास है कि देश को विकास की उन ऊंचाइयों पर ले जाएं जिससे हम विश्व की बराबरी कर सकें और अगर एक बार बराबरी करने का सामर्थ्य प्राप्त कर लिया मैं नहीं मानता हूं कि हिन्दुस्तान को आगे बढ़ने से कोई रोक पाएगा। कठिनाईयां जो होती हैं वो एक बराबरी के स्टेज पर पहुंचने तक होती हैं। और एक बार उन कठिनाईयों को पार कर लिया फिर तो level playing field मिल जाता है। और भारतीयों के दिल, दिमाग, भुजाओं में वो दम है। कि फिर उसको आगे जाने से कोई रोक नहीं पाएगा। और इसलिए पिछले तीन-साढे-तीन साल से सरकार का लगातार ये प्रयास रहा है कि भारत का जो सामर्थ्य है सवा सौ करोड़ देशवासियों की जो शक्ति है, भारत के पास जो प्राकृतिक संसाधन है। भारत के पास जो सांस्कृतिक विरासत है। भारत के लोग जिन्होंने किसी भी युग में कोई भी युग निकाल दीजिए। सौ साल पहले, पांच सौ साल पहले, हजार साल पहले, पांच हजार साल पहले, इतिहास में एक भी घटना नजर नहीं आती है कि हमनें किसी का बुरा किया हो।
जिस देश के पास जब मैं दुनिया के देश के लोगों से मिलता हूं और जब मैं उनको बताता हूं कि प्रथम विश्वयुद्ध और दूसरा विश्वयुद्ध न हमें किसी की जमीन लेनी थी न हमें कहीं झंडा फहराना था। न हमें दुनिया को कब्जा करना था लेकिन शांति की तलाश में मेरे देश के डेढ़ लाख से ज्यादा जवानों ने शहादत दी थी। प्रथम विश्वयुद्ध और दूसरे विश्वयुद्ध में शांति के लिए लेना-पाना कुछ नहीं शांति के लिए डेढ़ लाख हिन्दुस्तानी शहादत मोल ले कोई भी भारतीय सीना तानकर के कह सकता है कि हम लोग दुनिया को देने वाले लोग है लेने वाले लोग नहीं और छीनने वाले तो कतई ही नहीं।
आज विश्व में Peace keeping Force United Nations से जुड़ा हुआ कोई भी हिन्दुस्तानी गर्व कर सकता है। कि आज दुनिया में हर जगह पर कहीं अशांति पैदा होती है तो UN के द्वारा Peace keeping Force जाकर के वहां शांति बनाए रखने के लिए अपनी भूमिका अदा करते हैं। पूरे विश्व में Peace keeping Forces में सबसे ज्यादा योगदान करने वाले कोई हैं तो हिन्दुस्तान के सिपाही है। आज भी दुनिया के अनेक ऐसे अशांत क्षेत्रों में भारत के जवान तैनात हैं। बुद्ध और गांधी की धरती शांति उनले मात्र कोई शब्द नहीं है। हम वो लोग हैं जिन्होंने शांति जीकर के दिखाया है। शांति को हमने पचाया है। शांति हमारी रगो में है। और तभी तो हमारे पूर्वजों ने वसुधैव कुटुम्बकम- विश्व एक परिवार है। ये मंत्र हमें दिया। जो मंत्र हमने जीकर के दिखाया है। लेकिन ये सारी बातों का सामर्थ्य दुनिया तब स्वीकार करती है जब भारत मजबूत हो, भारत सामर्थ्यवान हो, भारत जीवन के हर क्षेत्र में नई ऊंचाइयों को प्राप्त करने वाला गतिशील हो। तब जाकर के विश्व स्वीकार करता है। तत्व ज्ञान कितना ही ऊंचा क्यों न हो, इतिहास कितना ही भव्य क्यों न हो, विरासत कितनी ही महान क्यों न हो, वर्तमान उतना ही उज्ज्वल, तेजस्वी और पराक्रमी होना चाहिए तब जाकर के दुनिया जिगती है। और इसलिए हमारे भव्य भूतकाल से प्रेरणा लेना उससे पाठ पड़ना वो जितना ही महत्वपूर्ण है उतना ही 21वीं सदी अगर एशिया की सदी मानी जाती है। तो ये हम लोगों का कर्तव्य बनता है कि 21वीं सदी हिन्दुस्तान की सदी बने । और मुश्किल मुझे नहीं लगता है। तीन साल, साढे तीन साल के अनुभव के बाद मैं कहता हूं। ये भी संभव है। पिछले दिनों आपने देखा होगा भारत से जहां तक सरकार का संबंध है। सकारात्मक खबरें आती रहती है अब डर नहीं रहता है कि हां पता नहीं कोई negative खबर आ जाएगी तो ऑफिस जाएंगे तो लोग क्या पूछेगें। अब घर से निकलते ही विश्वास, नहीं नहीं- हिन्दुस्तान से अच्छी खबरें ही आएंगी। सवा सौ करोड़ का देश है। उसकी मुख्य धारा जो है। समाज की मुख्यधारा हो, सरकार की मुख्यधारा हो। वो सकारात्मकता के इर्द-गिर्द ही चल रही है। positivity के इर्द-गिर्द ही चल रही है। हर बार फैसले देश हित में लिए जा रहे है विकास को ध्यान में रख करके लिए जा रहे है। सवा सौ करोड़ का देश आजादी के 70 साल बाद अगर 30 करोड़ परिवार बैंकिंग व्यवस्था से बाहर हो। तो देश की economy कैसे चलेगी।
हमने बीड़ा उठाया प्रधानमंत्री जनधन योजना शुरू की और जीरो बैंलेस हो तो भी bank account खोलना है, बैंक वालो को परेशानी हो रही थी। और Manila में तो बैंक का क्या दुनिया है, सबको पता है। बैंक वाले मुझसे झगड़ा कर रहे थे कि साहब कम-से-कम स्टेशनरी का पैसा तो लेने दो। मैंने कहा ये देश के गरीबों का हक है। उनको बैंक में सम्मान भर entry मिलनी चाहिए। वो बेचारा सोचता था। वो बेचारा सोचता था। ये बैंक एयर कंडीशन बाहर वो दो बड़े बंदूक वाले खड़े हैं वो गरीब जा पाएगा कि नहीं जा पाएगा। और फिर साहूकार के पास चला जाता था। और साहूकार क्या करता है ये हम जानते है। 30 करोड़ देशवासियों को जीरो बैंलेस से account खोला और कभी-कभी आपने अमीर कोम देखा होगा। मैंने अमीरों को भी देखा है, अमीरों की गरीबी को भी देखा है। आपने गरीबो को भी देखा होगा लेकिन मैंने गरीबों की अमीरी को देखा है। zero balance bank account खोले थे। लेकिन आज मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि उन जनधन account में आज उन गरीबों को saving की आदत लगी पहले बेचारे घर में गेंहू में पैसे छुपा के रखते थे, गद्दे के नीचे रखते थे और वो भी अगर पति की आदतें खराब हों तो कहीं और खर्चा कर देता था। वो डरती रहती थीं माताएं। आपको जान करके खुशी होगी। इतने कम समय में उन जनधन account में 67 thousand crore rupees गरीबों का saving हुआ है। देश की अर्थव्यवस्था की मूलधारा में गरीब सक्रीय भागीदार हुआ है। अब ये छोटा परिवर्तन नहीं है जी, जो शक्ति, सामर्थ्य, व्यवस्था के बाहर था वो आज व्यवस्था के केंद्र बिंदु में आ गया।
ऐसे अनेक initiative हैं जो कभी चर्चा तक में नहीं थे, किसी की कल्पना में भी नहीं थे, कुछ लोगों को तो ये problem है कि भई ऐसा भी हो सकता है क्या? हमने लोगों ने तय करके रख लिया गया था। अपना देश है, जैसा है, वैसा है चलेगा, क्यों चलेगा भई अगर सिंगापुर स्वच्छ हो सकता है, फिलीपीनस स्वच्छ हो सकता है, मनीला स्वच्छ हो सकता है तो हिन्दुस्तान स्वच्छ नहीं हो सकता है क्या? देश का कौन नागरिक होगा जो गंदगी में रहना पंसद करता होगा। कोई नहीं चाहता है। लेकिन किसी ने initiative लेना पड़ता है। किसी ने जिम्मेवारी लेनी पड़ती है। सफलता विफलता की चिंता किए बिना काम हाथ में लेना पड़ता है। महात्मा गांधी जी ने जहां से छोड़ा था वहीं से हमने आगे लेने का प्रयास किया है। और मैं कहता हूं आज करीब हिन्दुस्तान में सवा दो लाख से अधिक गांव open defecation free हो गए हैं। तो एक तरफ समाज के सामान्य मानवी को quality of life में कैसे बदलाव आया।
अब हमारे देश में आप में से जो लोग पिछले 20, 25, 30 साल में भारत से यहां आए होंगे। या अभी भी भारत से संपर्क में होंगे तो आपको पता होगा। कि हमारे यहां गैस का सैलेंडर लेना घर में गैस का कनेक्शन लेना ये बहुत बड़ा काम माना जाता था और घर में अगर गैस कनेक्शन आ जाए, सैलेंडर आ जाए तो अड़ोस-पड़ोस में ऐसा माहौल बनता था जैसे Mercedes गाड़ी आई है। यानि बहुत बड़ा achievement माना जाता था। कि हमारे घर में अब गैस का कनेक्शन आ गया और गैस का कनेक्शन इतनी बड़ी चीज हुआ करती थी हमारे देश में कि parliament के member को 25 कूपन मिलते थे। इस चीज के लिए- कि आपके parliamentary area में आप साल में 25 परिवारों को oblige कर सकते हैं। बाद में वो क्या करते थे वो कहना नहीं चाहता हूं अखबार में आता था। यानि गैस सिलेंडर का कनेक्शन आपको याद होगा 2014 में जब parliament का चुनाव हुआ तो उस समय एक तरफ बीजेपी थी एक तरफ कांग्रेस पार्टी थी। भारतीय जनता पार्टी ने मुझे जिम्मेवारी दी थी उस चुनाव का नेतृत्व करने के लिए। वहां पर एक मीटिंग हुई कांग्रेस पार्टी की और देश इंतजार कर रहा था कि वहां कोई तय होगा किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे। शाम को मीटिंग के बाद कांग्रेस की press conference हुई। उस press conference में क्या कहा गया कि ये कहा गया अगर हमारी 2014 में चुनाव हम जीतेगे तो हम साल भर में अभी जो 9 सिलेंडर देते हैं। हम 12 सिलेंडर देंगे याद है कि नहीं है आपको यानि 9 सिलेंडर की 12 सिलेंडर इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी चुनाव लड़ रही थी। यानि ये दूर की बात नहीं है 2014 तक सोच का यही दायरा था, जी और देश भी ताली बजा रहा था अच्छा अच्छा। बहुत अच्छा 9 के 12 मिल जाएंगे।
मोदी ने तय किया कि वो मैं गरीबों को दे दूंगा और 3 करोड़ परिवारों को मुफ्त में गैस कनेक्शन दिशा में हम सफलता पूर्वक आगे बढ़े। 3 करोड़ परिवारों को पहुंचा दिया। मेरा वायदा 5 करोड़ परिवार का है। भारत total परिवार 25 करोड़ है। 25 करोड़ परिवार उसमें से 5 करोड़ का वायदा है 3 करोड़ कर दिया है। अच्छा इसमें भी कुछ कमाल है जी अपने घर के लोग हैं तो कुछ बात बता सकता हूं। कभी-कभार सरकार की सब्सिडी जाती थी तो लगता था कि लोगों का भला होता होगा। तो मैंने क्या किया आकर के उसको आधार के साथ लिंक कर दिया। bio metric identification तो उसके कारण पता चला कि ऐसे-ऐसे लोगो के नाम पर गैस की सब्सिडी जाती थी जो पैदा ही नहीं हुए। मतलब कहां जाता होगा। मुझे बताइए कहां जाता होगा। किसी न किसी की जेब में तो जाता होगा न अब मैंने उस पर ब्रुश मार दिया बंद हो गया। सिर्फ इस प्रकार की सब्सिडी सही व्यक्ति को मिले, झूठे भूतिया लोग हैं जो पैदा ही नहीं हुए। उनको न मिले इतना सा काम किया बड़ा काम नहीं किया इतना सा ही किया परिणाम क्या हुआ मालूम है। 57 thousand crore rupees बच गया। और ये एक बार नहीं बचा ये हर वर्ष 57 thousand जाता था। अब बताइए कहां जाता था भई। अब जिनकी जेब में जाता था उनको मोदी कैसा लगेगा वो कभी फोटो निकालने के लिए आएगा क्या? आएगा क्या? वो मोदी को पसंद करेगा क्या? मुझे बताइए काम करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए? देश में बदलाव आना चाहिए कि नहीं चाहिए? कठोर निर्णय करने चाहिए कि नहीं करने चाहिए? देश को आगे ले जाना चाहिए कि नहीं ले जाना चाहिए?
आप लोग आकर के मुझे आर्शीवाद दे रहे हैं मैं आपको विश्वास दिलाता हूं। जिस मकसद के लिए देश ने मुझे काम दिया है उस मकसद को पूरा करने में मैं कोई कमी नहीं रखूगां। 2014 के पहले खबरें क्या आती थीं, कितना गया कोयले में गया, 2 जी में गया, ऐसे ही आता था ना। 2014 के बाद मोदी को क्या पूछा जाता है मोदी जी बताओ तो कितना आया? देखिए ये बदलाव है। वो एक वक्त था जब देश परेशान था कितना गया आज वक्त है कि देश खुशी की खबर सुनने के लिए पूछता रहता है मोदी जी बताइए न कितना आया।
हमारे देश में कोई कमी नहीं है दोस्तो देश को आगे बढ़ने के लिए हर प्रकार की संभावनाए है, हर प्रकार सामर्थ्य है, उसी बात को लेकर के कई महत्वपूर्ण नीतियां लेकर के हम चल रहे हैं। देश विकास की नई ऊंचाइयों को पार कर रहा है और जन भागीदारी से आगे बढ़ रहे हैं। सामान्य से सामान्य मानवी को साथ लेकर के चल रहे हैं और उसके परिणाम इतने अच्छे मिलेंगे कि आप भी अब लंबे समय तक यहां रहना पसंद नहीं करेंगे। तो मुझे अच्छा लगा इतनी बड़ी मात्रा में आकर के आपने आर्शीवाद दिए।
बहुत-बहुत धन्यवाद।