माननीय सभापति जी, नए जनादेश के बाद आज पहली बार राज्यसभा के सभी आदरणीय सदस्यों के बीच अपनी बात करने का मुझे अवसर मिला है। पहले से अधिक जन-समर्थन के साथ और अधिक विश्वास के साथ हमें दोबारा देश की सेवा करने का अवसर देशवासियों ने दिया है। मैं सबका आभार प्रकट करता हूँ। लेकिन इस जो दूसरे टर्म के प्रारंभ में ही हमारे इस सदन के आदरणीय सदस्य मदनलाल जी हमारे बीच नहीं रहे। मैं उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
राज्य सभा के हर सत्र में अरुण जी की वाकपटुता... उसको सुनने के लिए हर कोई सदस्य बड़ा उत्सुक रहता है। लेकिन वो इन दिनों स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं बहुत ही जल्दी स्वस्थ होकर के फिर से हमें वो सौभाग्य प्राप्त होगा मुझे विश्वास है। नेता के रूप में श्रीमान थावर चंद जी गहलोत सदन में हम सबका मार्गदर्शन करेंगे। मैं उनका भी अभिनदंन करता हूं। पिछले दो दिन से जो चर्चा चल रही है, उस चर्चा में श्रीमान गुलाम नबी आजाद जी, श्रीमान दिग्विजय सिंह जी, हमारे मित्र श्री डी. राजा जी, श्री डेरेक ओ ब्रायन जी, श्री रामगोपाल यादव जी, श्री माजिद मेमन जी, श्री रामदास अठावले जी, श्री टी.के. रंगराजन जी, श्री जे.पी. नड्डा जी, स्वपन दासगुप्ता जी करीब 50 मान्य सदस्यों ने इस चर्चा को समृद्ध किया है।
सबने अपने-अपने तरीके से अपनी बात बताई है- कहीं खट्टापन भी था, कहीं तीखापन भी था, कहीं व्यंग्य भी था, कहीं आक्रोश भी था, कहीं पर रचनात्मक सुझाव भी थे, कहीं जनता-जनार्दन का अभिवादन भी था। हर प्रकार के भाव यहां प्रकट हुए हैं। और कुछ लोग वो भी थे जिनको मैदान में जाने का मौका नहीं मिला, तो वहां जो गुस्सा निकलना चाहिए था वो शायद यहां निकाला, तो ये भी देखा।
माननीय सभापति जी, ये चुनाव बहुत खास रहा है। कई दशकों के बाद दुबारा एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनना....भारत के मतदाताओं के मन में राजनीतिक स्थिरता का महात्मय क्या है। एक परिपक्व मतदाता की इसमें सुगंध महसूस होती है और ये सिर्फ इस चुनाव में हुआ है ऐसा नहीं है। लगातार पिछले कुछ चुनाव जो हुए हैं देश में उसमें हमारे देश के मतदाताओं ने किसी भी दल को स्थान दिया लेकिन बहुत एक स्थिरता को बल दिया है। ये अपने आप में लोकतंत्र की बहुत ही सुखद निशानी है।
संगठन का काम करता था तब भी बहुत चुनाव अभियानों को देखा है, चुनाव संचालन किए हैं। प्रत्यक्ष जनप्रतिनिधि क्षेत्र में आने के बाद चुनाव लड़ना...लड़ाने का भी अवसर मिला है। लेकिन बहुत कम ऐसे अवसर आते हैं जबकि चुनाव स्वयं जनता जर्नादन लड़ती है। 2019 का चुनाव एक प्रकार से दलों से भी परे देश की जनता लड़ रही थी। देश की जनता ने पूरे चुनाव को अपने सर पर उठा लिया था और जनता खुद सरकार के कामों की बात लोगों तक पहुंचाती थी। जिसे लाभ नहीं पहुंचा वो भी इस विश्वास से बात कर रहा था कि उसको मिला है मुझे भी मिलने वाला है। ये जो विश्वास है इस चुनाव के नतीजों में एक बहुत बड़ी अहम उसकी विशेषता है..... और मेरा सौभाग्य है कि मुझे देश के कोने-कोने में जनता-जर्नादन के दर्शन करने का अवसर मिला है.... स्वयं जाकर के आर्शीवाद लेने का अवसर मिला है।
लेकिन आदरणीय सभापति जी, भारत का एक परिपक्व लोकतंत्र हो, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हो, चुनाव अपने आप में लोकतांत्रिक विश्व के लिए बहुत बड़ी अहमियत रखता है। उसकी global value होती है। उस समय अपनी सोच की मर्यादाओं के कारण, विचारों में पनपी हुई विकृति के कारण इतने बडे जनादेश में हम ये कह दें कि आप तो चुनाव जीत गए हैं लेकिन देश चुनाव हार गया...... मैं समझता हूं कि इससे बड़ा भारत के लोकतंत्र का अपमान नहीं हो सकता। इससे बड़ा जनता जर्नादन का अपमान नहीं हो सकता है।
ये एक सामान्य वाक्य नहीं है ये एक गंभीर रूप से देश के लोगों को सोचने के लिए मजबूर करने वाली बातें हैं। और जब ये बात कही जाती है.... कि लोकतंत्र हार गया, देश हार गया तो मैं जरूर पूछना चाहूंगा कि क्या वायनाड में हिन्दुस्तान हार गया क्या? क्या रायबरेली में हिन्दुस्तान हार गया क्या? क्या बहरामपुर में, तिरूवनंतपुर में हिन्दुस्तान हार गया क्या? और अमेठी में क्या हिन्दुस्तान हार गया क्या? ये कौन सा तर्क है यानी कांग्रेस हारी तो देश हार गया। मतलब देश यानी कांग्रेस... कांग्रेस यानी देश.... अहंकार की एक सीमा होती है। अहंकार होना ही नहीं चाहिए सीमा का कहां सवाल है मैं जरा जानना चाहूंगा 17 राज्य 55-60 साल तक देश में सरकार चलाने वाला दल 17 राज्यों में एक सीट नहीं जीत पाया... क्या हम आसानी से कह देंगे...देश हार गया?
मैं समझता हूं कि इस प्रकार की भाषा बोलकर के हमनें मतदाताओं के विवेक पर ठेस पहुंचाई है। देश के मतदाताओं को हमने कठघरे में खड़ा कर दिया है। हमारी आलोचना मैं समझ सकता हूं और लोकतंत्र में वो स्वीकार्य भी है। इतना ही नहीं आलोचना सम्मानित है, लेकिन देश के मतदाताओं का इस प्रकार से अपमान बहुत पीड़ा देता है और तब जाकर के हो सकता है मेरी वाणी में कोई आक्रोश भरे शब्द भी हों लेकिन वो मेरे दल के लिए नहीं है.. इस देश के परिपक्व लोकतंत्र के लिए हैं। भारत के संविधान निर्माताओं की समझदारी के लिए हैं।
हम इस चुनाव को देखे हैं 40-45 degree temperature और लोग दिन-दिन भर कतार में खड़े थे। 80-90 साल के बुर्जुग हाथ में लाठी ले करके वोट करने के लिए जा रहे थे। कई ऐसे चुनाव के काम की जिम्मेवारी संभालने वाले अधिकारी, दो दिन पहले मां की मृत्यु हुई है लेकिन चूंकि चुनाव के अधिकारी की इनकी जिम्मेदारी है, वो ईवीएम मशीन का दफ्तर उठा करके किसी गांव में गया है ड्यूटी करने के लिए। कितने-कितने लोगों की तपस्या के बाद ये चुनाव होता है और हम ऐसे ही देश के मतदाताओं का अपमान करते हैं।
हम उससे आगे बढ़ गए हैं, पता नहीं हमारे मन को क्या हो गया हमने ये भी कह दिया देश के किसानों का अपमान कर दिया। हमने यहां तक कह दिया देश का किसान बिकाऊ है, दो-दो हजार रुपये की योजना के कारण किसानों के वोट खरीद लिए गए हैं। मैं मानता हूं इस देश के किसान को ऐसे अपमानित नहीं करना चाहिए। मेरे देश का किसान...हमारे देश का किसान बिकाऊ नहीं है। हमारा देश का किसान तो वो है जो अन्न पैदा करता है, खाली मजदूरी करके अन्न पैदा करता है वो कभी सोचता नहीं है कि मैंने मेहनत करके जो अन्न पैदा किया है वो किसके पेट में जाएगा... गरीब के पेट में जाएगा कि अमीर के पेट में जाएगा वो कभी नहीं सोचता है। उस किसान के लिए हम यह कह दें मैं समझता हूं कि 15 करोड़ किसान परिवारों को आपने अपमानित किया है इस प्रकार गलत भाषा का इस्तेमाल करके कि दो-दो हजार की स्कीम के कारण वो बिक गए।
मैं हैरान हूं मीडिया को भी गालियां दी थी। मीडिया के कारण चुनाव जीते जाते हैं। हम कहां खड़े है.... मीडिया के कारण चुनाव जीते जाते हैं... मीडिया बिकाऊ है क्या? मीडिया को कोई खरीद लेता है क्या? और खरीद करके करते हैं? और जिन राज्यों में क्या तमिलनाडू में भी यही लागू होगा क्या? क्या केरल में यही लागू होगा क्या? हम उन बातों को करें जिन बातों का सदन में बोली गई बातों का अपना एक महत्व होता है... हम कुछ भी कहते रहते हैं और ठीक है अखबारों में हेडलाइन मिल जाएगी लेकिन भारत का लोकतंत्र जिसमें दुनिया में उसकी एक प्रतिष्ठा है, हमें गर्व होना चाहिए। भारत की चुनाव प्रक्रिया विश्व में भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाने का एक बहुत बड़ा अवसर होती है और इस अवसर को हमने खोना नहीं चाहिए। जब Election Commission से जुड़े हुए लोग मुझे मिले थे तब मैंने उनसे कहा था जो निर्वतमान होते थे वो जब मिलने आए उनको कहता था। मैंने कहा कि हमारे लिए ऐसी बड़ी अमानत है ये ... चुनाव प्रक्रिया और व्यवस्थाएं विश्व के सामने जानी चाहिए।
आप कल्पना कर सकते हैं कितनी विशालता और व्यापकता 10 लाख polling station 40 लाख से ज्यादा ईवीएम मशीन, 650 राजनीतिक दल, 8 हजार से ज्यादा candidates ...कितना बड़ा रूप, व्यापकता हम इस बात को दुनिया के सामने रखें कितना गर्व हो सकता है... दुनिया को आश्चर्य होगा। मैं समझता हूं कि हम अपने निजी राजनीतिक कारणों से हम इस प्रकार से कहे कि इस चुनाव में एक बहुत बड़ी बात नजर आई है... हमारी बहन-बेटियों ने जो कमाल किया है, हमारे देश में चुनाव पहले से होते हैं, महिलाओं को मतदान पहले से मिला हुआ है। लेकिन हमने देखा है कि हमेशा पुरूष और स्त्री के मतदान में करीब-करीब 9-10 प्रतिशत का margin रहता था। पुरूष का मतदान करीब-करीब 9 प्रतिशत ज्यादा रहता था। पहली बार ये करीब-करीब जीरो हो गया है। ये अपने-आप में भारत के लोकतंत्र की एक उज्ज्वल निशानी है। हम उसमें से उन चीजों को देखें और इस बार खुशी है कि करीब 78 सांसद महिला हमारी बहनें चुनकर के आई हैं।
इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और एनडीए के लोग जीत करके आए हैं इतना ही नहीं है... इस चुनाव की विशेषता है कि नार्थ हो, साऊथ हो, ईस्ट हो, वेस्ट हो सभी कोनें में बहुमत के साथ बीजेपी और एनडीए जीत करके आई है। ऐसा नहीं कि एक कोने में है... सब दूर, उसको हमें स्वीकृति मिली है।
जो लोग हार गए हैं जिनके सपने चूर-चूर हो चुके हैं, जिनके अहंकार को चोट पहुंची है। वो देश के मतदाताओं का अभिवादन नहीं कर पाते होंगे लेकिन मैं सर झुकाकर के भारत के कोटि-कोटि मतदाताओं का अभिवादन करता हूं, अभिनंदन करता हूं उनका धन्यवाद करता हूं और भारत के लोकतांत्रिक प्रक्रिया को निभाने वाली उस व्यवस्था के साथ जुड़े हुए छोटे-मोटे सब अफसर, सिक्योरिटी के लोग, Election Commission, ये सब अभिनंदन के अधिकारी हैं, मैं उनका अभिनदंन करता हूं।
आदरणीय सभापति जी, यहां पर ईवीएम की चर्चा भी काफी हो रही है और एक नई बीमारी शुरू हुई है। मुझे माफ करना, ईवीएम को लेकर के सवाल उठाए जाते हैं, बहाने बनाए जाते हैं। सभापति जी कभी हम भी सदन में दो रह गए थे और हमको ये बार-बार कहा जाता दो या तीन बस, दो या तीन बस कह कहकर हमारी मजाक उड़ाई जाती थी। इतने बुरे दिन हमने देखे थे, लेकिन हमारा कार्यकर्ताओं पर भरोसा था। हमारा विचार पर भरोसा था, देश की जनता पर भरोसा था और परिश्रम करने की, त्याग करने की पराकाष्ठा करने की हमारी तैयारी थी, उस निराशाजनक वातावरण में विश्वास पैदा कर करके हमने पार्टी को फिर से खड़ा किया। हमसे हमारे आगे की पीढ़ी ने काम किया, लेकिन करके दिखाया और यही तो नेतृत्व की कसौटी होती है।
हमने उस समय पोलिंग बूथ कैंप में ये हुआ था, फलाना हुआ था, ढिगना हुआ था ... इसलिए हम हार गए, इतना रोना धोना नहीं हुआ... हार गए फिर से काम करेंगे पुन:श्चर्यओम हम निकल पड़े। और हम परिणाम भी लेकर आते चले आए हैं। लेकिन जब स्वयं पर भरोसा नहीं होता है, सामर्थ्य का अभाव होता है तब फिर बहाने खोजे जाते हैं और इसलिए आत्मचिंतन करने की जिनकी तैयारी नहीं है, दोष स्वीकारने की तैयारी नहीं है, अपनी गलतियों को स्वीकार करने की तैयारी नहीं है। वो फिर ईवीएम को ढूंढते है, ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा जाए.... ताकि फिर अपने साथियों के सामने तो कम से कम हम बता सकते हैं देखो-देखो हमने बहुत अच्छा काम किया है हम नहीं हारे हैं वो तो ईवीएम के कारण हारे हैं।
मैं समझता हूं इस प्रकार से न हम राजनीतिक कैडर का भला करते है, राजनीति कैडर को निराश करने से कोई फायदा नहीं है। हिम्मत है तो आगे आइए पूरी कैडर को तैयार कीजिए फिर और चुनाव एक थोड़ा पूरा है और चुनाव आने वाले हैं। इस प्रकार की निराशा का क्या मतलब है और इसलिए मान्य सभापति जी... पहला एक समय था चुनाव की प्रक्रिया हमने सब प्रकार की देखी है, चुनाव प्रक्रियाओं में सुधार होता गया है। प्रांरभिक जो चुनाव हुए 1952 के बाद ... ये शुरू के कालखंड के महीनों महीनों तक चलते थे बोक्स लेकर के गांव-गांव जाते थे। पुराने लोग जो हम तो उस समय बहुत बच्चे थे लेकिन जो सुना है उसमें से सुधार करते-करते यहां पहुंचे हैं।
एक निरंतर प्रक्रिया है सुधार की और इसलिए उस सुधार प्रक्रिया को...और पहले का जमाना देख लीजिए क्या था। चुनाव के बाद अखबारों की हेडलाइन क्या होती थी..अखबारों की हेडलाइन ये होती थी कि इतनी हिंसा हुई, इतने लोग मारे गए, इतने booth capture हुए, ये तीन मेन न्यूज रहती थीं। आज ईवीएम के कारण... खबर एक ही होती है कि पहले की तुलना में मतदान कितने प्रतिशत बढ़ा है। ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है। और हम जानते है पहले कैसा होता था.. booth capture करना, लूट करना, जो दबंग लोग थे उन्हीं के हाथ में था। और जब से सही अर्थ में लोकतंत्र की प्रक्रिया आई है। ऐसे लोगों का हारने का क्रम भी तभी से शुरू हुआ है। इसलिए उनको उस वापिस जगह पर जाना है। देश- लोकतंत्र को इस प्रकार से दबोचने की प्रक्रिया में मदद नहीं कर सकता है।
माननीय सभापति जी, आज इस सदन के माध्यम से मैं देश के सामने भी बात बताना चाहता हूं कि ईवीएम सबसे पहले 1977 में इसकी चर्चा प्रारंभ हुई। और तब तो हम राजनीति में कहीं नजर नहीं आते थे हम तो बहुत दूर बैठे थे जी। 1977 में चर्चा शुरू हुई थी। 1982 में पहली बार इसका प्रयोग किया गया, 1988 में हम नहीं थे। इसी सदन में बैठे हुए उस समय के महानुभावों ने कानूनन इस व्यवस्था को स्वीकृति दी, कानून बनाया। इतना ही नहीं 1992 में कांग्रेस के ही नेतृत्व में इस ईवीएम को लेकर के सारे rules बनाए गए। यानी ये इस प्रकार से जो कहते हैं कि ये हमने किया, हमने किया, हमने किया तो ये भी तो आप ही ने किया था, अब आप हार गए इसलिए अब रो रहे हो।
ये क्या तरीका है और इसलिए मैं समझता हूं और ईवीएम से इस देश में अब तक विधान सभाओं के जो चुनाव हुए हैं, state assemblies के 113 चुनाव हुए है ईवीएम मशीन से और यहां उपस्थित करीब-करीब सभी दलों को उसी ईवीएम से चुनाव जीत करके सत्ता में आने का या सत्ता में भागीदारी होने का अवसर मिला है। 113, असेंबली के चुनाव हुए। चार लोकसभा के जनरल इलेक्शन हुए हैं उसमें भी दल बदले, अलग-अलग लोग जीत करके आए हैं। और आज पराजय के लिए हम इस प्रकार की बाते करते हैं।
2001 के बाद विभिन्न हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी ईवीएम को लेकर के मसले उठाए गए हैं। सारे परीक्षण के बाद ईवीएम पर सारी चीजों में सभी देश की न्यायपालिकाओं ने अपना positive verdict दे दिया है।
2017 में जब इतना बड़ा हो-हल्ला हुआ क्योंकि पराजित लोगों की ईको सिस्टम अभी काम कर रही है। चारों तरफ हो-हल्ला खड़ा हुआ। और Election Commission ने खुद ने challenge रूप में कहा कि मैं एक रखता हूं आप आइए गलत है तो हमें सिद्ध करके दिखाइए। जो लोग आज ईवीएम के गीत गा रहे हैं, रोना रो रहे हैं, एक भी दल वहां गया नहीं है। दो पार्टियां गई हैं एनसीपी एंड सीपीआई, लेकिन उन्होंने भी question नहीं किया उन्होंने कहा कि हमें जरा समझाइए how EVM operates सिर्फ समझने का प्रयास किया लेकिन कम से कम एनसीपी और सीपीआई के लोग गए बाकि लोग तो Election Commission के निमंत्रण के बाद भी गए नहीं। जिस पर वो शक कर रहे थे।
और ये अप-प्रचार और एक प्रकार की एक निश्चित प्रकार का Vested interest ग्रुप इतना बड़ा तूफान खड़ा किया तो उस हवा में हमारे लोग भी आ गए थे। हम भी मानने लग गए थे कि ईवीएम में कुछ गड़बड़ है। हमारी पार्टी में से भी ये आवाज उठी थी, लेकिन हमने ईमानदारी से उसके सत्य तक पहुंचने का प्रयास भी किया। टेक्नोलॉजी को समझने का भी प्रयास किया और हमने खुद ने भी ईवीएम के विषय में शक किया था, जब सारी चीजें समझे तो हमारी पार्टी में भी उस विचार को मानने वालों को समझाया गया जो गलत रास्ते पर थे, और हमने सही रास्ते पर चले। टेक्नोलॉजी है समझनी चाहिए। समझ कर उसको आगे बढ़ाना चाहिए।
आदरणीय सभापति जी, फिर वीवीपैट की बात आई थी ... बार-बार सुप्रीम कोर्ट में गए पूरे चुनाव के वातावरण को derail करने के लिए उसेां एक साधन बनाया गया! हर शाम election commission में जाओ हो-हल्ला करो, मीडिया में जगह ले लो। सामान्य मतदाता के मन में विश्वास पैदा करके के बाद अविश्वास पैदा करने का वातावरण बनाया गया। वीवीपैट का क्या हुआ.. जितनी आशंकाओं को लेकर के गए, हम सब साक्षी हैं कि वीवीपैट ने फिर एक बार ईवीएम की ताकत को बढ़ा दिया। परिणाम सामने हैं।
मैं हैरान हूं कांग्रेस पार्टी के लिए, इसलिए मुझे कहना पड़ता है कि आपने इतने सालों तक शासन किया है। देश की एक मुख्यधारा राजनीति की आपके पास रही है लंबे अरसे तक.... अनुभव से आज मुझे कहना पड़ेगा कि आपकी कुछ न कुछ ऐसी problem है कि आप विजय भी नहीं पचा पाते। आजादी के इतने साल इतनी विजय प्राप्त हुए आप विजय नहीं पचा पा रहे हैं। और 2014 से मैं लगातार देख रहा हूं आप पराजय को स्वीकार भी नहीं कर पाते हैं। मैं नहीं मानता हूं कि ये कोई healthy growth हो रहा है। और भारत में, लोकतंत्र में हर दल का अपना एक स्थान है, महत्व है, उसका आदरपूर्वक सम्मान होना चाहिए और उसके प्रति हमारी शुभकामनाएं होनी चाहिए, हर दल के प्रति, तभी तो लोकतंत्र चलता है। लेकिन न हम पराजय को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं और न ही हम विजय को पचाने का सामर्थ्य रखते हैं। और वो भी अभी मध्यप्रदेश में क्या हुआ अभी तो विजय हुआ और कुछ ही दिनों में ऐसी खबरें आने लगीं हैरान हो जाते हैं जी। और इसलिए कृपा करके चुनाव के reforms की भी काफी बातें हुई हैं। हम 1952 से लेकर आज तक लगातार चुनाव में reform होते ही रहे हैं और हम होते रहने चाहिए।
और मैं मानता हूं इसकी चर्चा भी लगातार होती रहनी चाहिए और उसके अंदर खुले मन से चर्चा होनी चाहिए बंधे मन से होने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन out right ये कह देना कि एक देश, एक चुनाव के हम पक्ष में नहीं हैं, अरे चर्चा तो करो भाई। आपके विचार होंगे मैं मानता हूँ जी कि जितने बडे-बड़े नेता हैं, व्यक्तिगत जब भी मिला हूँ, सबने कहा है यार ये बीमारी से तो मुक्त होना चाहिए। पाँच साल में एक बार चुनाव आएं, महीना-दो महीना चुनाव का उत्सव चले, फिर सब काम में लगें। ये बात सबने बताई है। सार्वजनिक रूप से stand लेने में दिक्कत होती होगी। क्या ये समय की मांग नहीं है कि हमारे देश में कम से कम मतदाता सूची तो एक हो। पहले 18 और 21- दो मतदान के अलग-अलग होने के कारण- अब 18 सबका मतदान है। आज देश का दुर्भाग्य है जितने चुनाव उतनी मतदाता सूची। कितना देश का खर्च हो रहा है। कितना manpower उस मतदाता सूची में लग रहा है।
राज्य और केंद्र मिल करके कानून बनाएँ और तय करें भई एक ही मतदाता..और में बता दूँ पंचायतों के चुनाव वाली मतदाता सूचियाँ होती हैं, उसमें एक भी मतदाता छूटता नहीं है। क्योंकि वहाँ एक-एक वोट की कीमत होती है क्योंकि 30-40 वोट से हार-जीत होती है। अगर वो मतदाता सूची हो, हमारी मतदाता सूची में कभी समस्या ही नहीं आएगी। उसी प्रकार से polling station, मतदाताओं को हर बार याद करना पड़ता है उसको पता होना चाहिए कि भाई तुम्हारा ये स्कूल का वो कमरा है तुम्हारा...ये व्यवस्थाएं क्यों किफायती नहीं हो सकतीं। और इसलिए election के reforms अनिवार्य हैं, होते रहने चाहिए।
अच्छा, हमारे देश में पहले एक देश एक चुनाव होता था जी। ये बाद में गड़बड़ होने के बाद derail हुआ है और उसका सबसे अधिक benefit आप लोगों को मिला है और उसका विरोध। कुछ लोग ऐसे तर्क देते हैं जी, जिस तर्क में कोई दम नहीं। कहते हैं मतदाता एक कैसे निर्णय करेगा? अभी उड़ीसा सबसे बड़ा उदाहरण है। उड़ीसा में ग्रामीण इलाका ज्यादा है। उड़ीसा एकदम बहुत ही विकसित और ऐसा तो राज्य नहीं है। भारत के जिन राज्यों को अभी भी विकास की राह में लाने के लिए मेहनत करनी पड़े- ऐसे राज्यों है। वहाँ के मतदाताओं ने लोकसभा के लिए एक मतदान किया, विधानसभा के लिए दूसरा मतदान किया। इसका मतलब हमारे मतदाताओं को एक ही समय विवेक-बुद्धि का पूरा ज्ञान है। मैं तो कुछ तो सीटें ऐसी हैं कि जहाँ नीचे की सभी असेम्बली सीटें विधानसभा में गईं बीजेडी को और लोकसभा में उन्होंने बीजेपी को दीं। ये maturity है हमारे देश में। हम उनका अनादर कर रहे हैं।
कुछ लोग कहते हैं... ये कैसा भ्रम फैलाया गया कि अगर साथ चुनाव होंगे तो regional पार्टियाँ खत्म हो जाएंगी। जहाँ-जहाँ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ हुए हैं, उस सब जगह पर प्रादेशिक जीते हैं, देख लीजिए इतिहास पूरा। प्रादेशिक जीते हैं। अभी आन्ध्र का चुनाव हुआ, प्रादेशिक जीतकर आए हैं। उड़ीसा का चुनाव हुआ- ;;;; जीतकर आए हैं। देश के मतदाताओं को समझ है, उनकी समझ पर शक न करें। और इसलिए इस प्रकार के जो हम चर्चा... चर्चा के बाद नहीं होगा, नहीं होगा, लेकिन हम पहले से ही कहें- ए, बिल्कुल नहीं, हम नहीं घुसने देंगे, ये तरीका लोकतंत्र में नहीं होता है, खुले मन से बात होनी चाहिए, हर प्रयास का स्वागत होना चाहिए, प्रयास के अंदर हमें अपनी भूमिका बतानी चाहिए। लेकिन हम पहले से ही दरवाजे बंद करें तो कभी बदलाव नहीं आता है, और भारत के मतदाता का नीर-क्षीर विवेक जो है उस पर हम कभी भी शक न करें, ये मेरा मत है।
कभी-कभी ये मैं सोच रहा हूँ क्या सिर्फ ईवीएम का विरोध करते हैं हम? जी नहीं, हमने विरोधी दल का मतलब मुझे लगता है कि letter and spirit में पकड़ लिया है। विरोधी यानी विरोध ही करना, opposition मतलब opposition ही करना। मुझे याद है इसी सदन में मैं बैठा था और विद्वान लोग ऐसा भाषण कर रहे थे, बड़े-बड़े अपने-आपको ऐसा मानते हैं, जब भगवान बुद्धि बाँटने निकला तो वो ही पहले कतार में खड़े थे। ऐसे-ऐसे लोग यहाँ बैठे हैं। और उन्होंने कहा कि हमारे देश में digital transaction संभव नहीं है, गरीब आदमी को digital कैसे, मोबाइल कैसे फोन कैसे पकड़ेगा? ऐसे-ऐसे भाषण हुए थे। मैं हैरान हूँ जी, उसका भी हमने विरोध किया।
हमने आधार का विरोध किया। आप जब थे- आधार महान। हम जब आधार से corruption को कम करने की कोशिश कर रहे हैं तो आधार संकट हो गया। हम सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खटखटाएँ, आधार को रोकने के लिए कोशिश करें। हम अगर आधुनिक भारत बनाना चाहते हैं, नया इंडिया बनाना चाहते हैं, क्या हम technology से कितना दूर भागेंगे? Safeguard के लिए सचेत प्रयास करना technology की requirement है और उसमें technology provide करती है। समय से provide करती है। लेकिन हम चीजों से भागते रहेंगे।
GST, उसका विरोध, ईवीएम- उसका विरोध, डिजिटल- उसका विरोध, V-map- उसका विरोध, हर चीज में ये नकारात्मकता और इस पर आज एक बहुत कारणों की चर्चा होती है। मुझे क्षमा करना- इस सदन में जिन दलों का व्यवहार पिछले पाँच साल....मैं राज्यसभा की बात कर रहा हूँ- रुकावट डालने का रहा है, अडंगे डालने का रहा है- जन-सामान्य के निर्णय से बैठी हुई सरकार को काम न करने का रहा है, उन सबको देशवासियों ने सजा दी है। यानी राज्यसभा में जो गतिविधि होती है, आज देश का मतदाता इतना समझदार है, वो भी इन चीजों को नोटिस कर रहा है। और अपना नतीजा देते समय सिर्फ लोकसभा में किसने क्या-किया- उस पर नहीं, राज्यसभा में किसने क्या किया- उसके आधार पर भी वोट कर रहा है, ये इस चुनाव में देखा गया है। और उससे आने वाले पाँच साल का सबक सीखने के लिए अवसर है। सबके लिए है कि हम राज्यसभा में चुनी हुई सरकार की बातों को कहाँ-कहाँ रोकते हैं, इसका जवाब देना पड़ेगा।
मैं हैरान हूँ, अब न्यू इंडिया का विरोध होने लग गया है। क्या कारण है? मैं ये तो समझ सकता हूँ भई न्यू इंडिया में तुम्हारी जो दस बातें हैं- पाँच तो ठीक हैं, पाँच बेकार हैं। मैं ये तो समझ सकता हूँ कोई ये कहे भई न्यू इंडिया का concept देश को आगे बढ़ना है लेकिन अमेरिका ने ये नहीं किया था, ढिकने ने ये नहीं किया था, ये हमको भी नहीं करना है। अरे! कौन क्या करता है छोड़ो यार, हम पाँच हजार साल पुराना देश है, दुनिया की एक महान परम्परा लेकर आए हुए लोग हैं। औरों ने क्या किया, क्या नहीं किया- छोड़ दीजिए, हमें आगे बढ़ना है और दुनिया के अंदर हमने अपना नाम ऊँचा करना है, ये काम करना है।
सवा सौ करोड़ का अपना देश है, क्यों ना सपना देखें। हम ये कह सकते हैं भई ये दस ठीक नहीं हैं, हमारी ये पाँच ठीक हैं, उसके लिए प्रयास करें, लेकिन देश के लोगों को निराशा की ओर धकेलने का पाप न करें। हम उसमें modify करें, हम उसमें सुधार करें, हम उसमें कहें ये चार ठीक हैं, ये चार ठीक नहीं हैं- ये सब एक लोकतंत्र की परम्परा में अकार्य है। लेकिन out right इस प्रकार से हम कहेंगे और हमें तो पुराना old India चाहिए, क्यों भई? इसलिए वो old India जहाँ कैबिनेट के निर्णय को पत्रकार परिषद में फाड़ दिया जाए, वो old India चाहिए हमें? हमें वो old India चाहिए कि सैर-सपाटे के लिए पूरे नौसेना काम में मदद में आ जाए, ऐसा old India चाहिए हमें? हमें वो old India चाहिए कि जो जल, थल, नभ- घोटाले ही घोटाले की खबरों से देश परेशान रहे? क्या ऐसा क्या, हमें वो old India चाहिए, जो टुकड़े-टुकड़े गैंग को समर्थन करने के लिए पहुँच जाए? ऐसे old India की जरूरत है क्या?
रेल में रिजर्वेशन के लिए घंटों खड़ा रहना पड़े, जब तक बिचौलिया न आए, रेल रिजर्वेशन न बने, क्या ऐसा old India चाहिए हमें? क्या हमें ऐसा old India चाहिए कि गैस कनेक्शन के लिए एमपी के घर के बाहर कतार ले करके खड़ा रहना पड़े? एमपी 25 कूपन को ले करके मारा-मारा घूमता रहे, क्या ऐसा old India हमको चाहिए? हमें कैसा old India चाहिए- पासपोर्ट के लिए महीनों तक का इंतजार करना पड़े, क्या वो old India हमको चाहिए? क्या हमें वो old India चाहिए जिसमें इंस्पेक्टर राज हो? हमें वो old India चाहिए जिसके अंदर इंटरव्यू चलते रहें, peon का भी इंटरव्यू, ड्राइवर का भी इंटरव्यू, चौकीदार का भी इंटरव्यू और फिर इंटरव्यू के नाम पर corruption, क्या वो old India चाहिए?
मैं हैरान हूँ जी, हम देश की जनता, हिन्दुस्तान को पुराने दौर में ले जाने के लिए कतई तैयार नहीं हैं। देश की जनता अपने सपनों के अनुरूप नए भारत की प्रतीक्षा कर रहा है और हम सबने सामूहिक प्रयत्नों से सामान्य मानवी के इन सपनों को पूरा करने के लिए हमने प्रयास करना चाहिए और मुझे विश्वास है कि वो प्रयास हम कर सकते हैं और ला सकते हैं।
हमने कोशिश की है। पहले- या तो दीया जलाओ, रिबन काटो, या नीति घोषित करो- उसी को सरकार का काम माना जाता था। Last mile delivery ये जैसे हमारी जिम्मेदारी नहीं थी उस पूरे कल्चर को हमने बदला है। हमने नीति भी बदली है, हमने रणनीति बदली, हमने वृत्ति और प्रवृत्ति को भी बदला है। उसका परिणाम है...अब यहाँ कहा जाता है हमने किया, हमने किया, लेकिन गरीबों के लिए घर पहले भी बनते थे- क्या यूपीए के समय नहीं बनते थे, बनते थे। हमने भी बनाए, आप कहेंगे- क्या नया किया? नया ये किया कि आप पाँच साल में 25 लाख बनाते थे, हम पाँच साल में डेढ़ करोड़ बनाते हैं- ये बदलाव है। और इसलिए मैं समझता हूँ हमने जो नए सिरे से वातावरण बनाने की कोशिश की है, सरकारीकरण से बाहर निकल करके हमने सरलीकरण को बल दिया है। और यही है आप...हमने देखा है आजादी के इतने सालों के बाद आजाद भारत का जो सपना था- उन सपनों की रुकावटें क्या बनीं- अभाव, प्रभाव और दबाव। सरकार ने ऐसी व्यवस्थाएँ कीं या तो कुछ लोगों को अभाव में जीना पड़ा, कुछ लोग प्रभाव के कारण हड़प करते गए और कुछ लोग दबाव के कारण उस रास्ते पर जाने के लिए मजबूर हो गए।
देश के स्वस्थ विकास के लिए अभाव की चिंता सरकार जरूर करे लेकिन प्रभाव और दबाव के बीच देश के सामान्य मानवी को कुचलने न दिया जाए और इसलिए हमने उस रणनीति को अपनाया है। और उस रणनीति को आगे ले जाने का हमारा प्रयास रहा है। हम सामान्य मानवी के सशक्तिकरण की ओर काम कर रहे हैं। पाँच साल पहले करोड़ों घरों के पास बिजली नहीं थी। गैस के चूल्हे नहीं थे, शौचालय नहीं थे। ये छोटी-छोटी चीजें- मैं हैरान हूँ कुछ लोगों को लगता है ये कोई भारत सरकार है, उनको तो बहुत बड़ा-बड़ा करना चाहिए, big reform, यही बातें होती थीं। देश छोटी-छोटी चीजों से बदलता है जी। हमें छोटी चीजों के लिए शर्म नहीं आनी चाहिए, हम बड़े नहीं बन गए हैं। हम छोटों के बीच से आए हैं। उन छोटों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान बड़े परिणाम ला सकता है। और इसलिए हमने काम करना शुरू किया है।
ये बात निश्चित है कि हमने पाँच साल सामान्य मानवी की आवश्यकताओं को पूरा करने की दिशा में सरकारी तंत्र को उस दिशा में ढालने का भरपूर प्रयास किया है। बहुत एक मात्रा में परिणाम भी नजर आए हैं। लेकिन अब देश का मिजाज- ये पाँच साल आवश्यकताओं से ज्यादा aspiration की पूर्ति का है। और मैं मानता हूँ हम भाग्यवान हैं- चाहें हम राजनीतिक जीवन में हों, सार्वजनिक जीवन में हो, व्यापार उद्योग में हों, शिक्षा में हो, कहीं पर भी हों; हम एक भाग्यवान कालखंड में हैं, जब हिन्दुस्तान का सामान्य मानवी aspirations ले करके जी रहा है। और जब जन-सामान्य के अंदर aspiration होता है तब काम की गति बहुत बढ़ती है, विकास बहुत तेजी से होता है; ये सौभाग्य के पल आए हैं और इसलिए हम सबका दायित्व बनता है कि हम कोई भी निर्णय करें- जन-सामान्य के जो acceleration of aspiration है, उसको अनुरूप हम अपने-आपको escalate कर सकते हैं। ये समय की मांग है और मैं मानता हूँ कि उस दिशा में जाने के लिए हमने प्रयास करना चाहिए।
मैं हैरान हूँ, नकारात्मकता, विरोधवाद इस हद तक गया- शौचालय की बात- उसकी मजाक उड़ाओ; स्वच्छता की बात- उसकी मजाक उड़ाओ; जन-धन एकाउंट-उसकी मजाक उडाओ; योगा का कार्यक्रम- उसकी मजाक उड़ाओ; मेक इन इंडिया-उसकी मजाक उड़ाओ- यानी एक प्रकार से हर चीज में नकारात्मकता को देश ने भलीभांति देखा है। और भलीभांति इस देश की... जो हम तो नहीं दे पाए। क्योंकि अभी भी राज्यसभा में हमको तो कौन बोलेगा इसके लिए भी हाथ-पैर जोड़ने पड़ते हैं कि भाई आज मुझे विदेश जाना है, मुझे समय दीजिए, उसमें भी हाथ-पैर जोड़ने पड़ते हैं, कितना अहंकार है हमारा, कितना अहंकार है। जहां हुआ है, उनको मालूम है- सबका दोष नहीं है। जिसका, सबका दोष है और इसलिए ये स्थिति हम लोकतंत्र में एक-दूसरे का सम्मान करें।
हम जानते हैं, यहां हमारा बहुमत नहीं है; हम जानते हैं हमारा बहुमत नहीं है, हम जानते हैं बहुमत हमारा नहीं है और इसलिए जनता-जनार्दन ने जो निर्णय किया है उसका गला घोंटने का प्रयास नहीं होना चाहिए, माननीय सभापति जी। पाँच साल हमने लगातार सहन किया है। देश का नुकसान हुआ, हमें दर्द हुआ है। देश का नुकसान हुआ, हमें दर्द हुआ है। हमने सहा है, और इसलिए सभापति जी हम आपसे protection चाहते हैं क्योंकि देश की जनता ने अपने aspiration पूरे करने के लिए लोकसभा में हमको बहुत बड़ी जिम्मेदारी दी है। राज्यसभा का federal sector भी कहता है कि उन aspirations के अनुकूल हमें सहायता मिलनी चाहिए। और मैं चाहूँगा कि आप इस बात को ले करके हमारे साथ न्याय करेंगे, यही मेरी अपेक्षा रहेगी।
हम न्यू इंडिया का जो सपना ले करके चले रहे हैं, 5 trillion dollar की economy की बात। यहाँ बताया गया कि 2014 तक 2 trillion था, अभी बताया गया 2.80 trillion हो गया है। मतलब की आजादी के इतने सालों में 2 trillion हुआ, लेकिन 5 साल के अंदर करीब-करीब आधा बढ़ गया। अगर 5 साल में आधा बढ़ सकता है तो आने वाले पाँच साल में और बढ़ सकता है जी। और दूसरा- हमारे मन में ये भाव नहीं होना चाहिए कि 5 trillion का target क्यों रखते हो, हमारे मन में ये होना चाहिए कि इस 5 trillion के लिए चलो भई हम मिल करके दौड़ते हैं। दस काम हमारी जहाँ राज्य सरकारें, वहाँ हम जरा जोर लगाएँगे। वहाँ पर हम economy को बढाने की कोशिश करेंगे। जहाँ आपकी राज्य सरकारें हैं, वहाँ आप कीजिए, हम सब मिल के करें, हिन्दुस्तान 5 trillion के क्लब में जाए, यहाँ कोई ऐसा नहीं होगा जिसको दुख होगा। हरेक को आनंद होगा। और इसलिए सकारात्मक विचारों को लाइए, हम स्वीकार करने के लिए तैयार हैं, हम सुनने के लिए तैयार हैं। क्योंकि हम वो लोग नहीं हैं कि जो ये मानते हैं कि बुद्धि बांटने आया तब मैं ही अकेला था। जी नहीं, हम तो आपसे भी सीखने के लिए तैयार हैं, क्योंकि देश चलाना है, देश का भला करना है जी। और इसलिए मैं चाहता हूँ कि हम इन बातों को ले करके एक नए भारत के लिए चलें।
यहाँ पर और भी कुछ विषय आए हैं जिसका मैं जरूर उल्लेख करना चाहूँगा। सदन में कहा गया कि झारखंड mob lynching और mob violence का अड्डा बन गया है। माननीय सभापति जी, युवक की हत्या का दुख यहां है, सबको है, मुझे भी है और होना भी चाहिए। दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा भी मिलनी चाहिए। लेकिन, क्या एक झारखंड राज्य को दोषी बता देना, ये शोभा देता है क्या? फिर तो हमें वहाँ भी अच्छा काम करने वाले लोग ही नहीं मिलेंगे जी। जो बुरा हुआ है, बुरा करते हैं, उनको isolate करें और उनको न्यायिक प्रक्रिया के द्वारा जो भी कर सकते हैं करें, लेकिन सबको कटघरे में खड़े करके राजनीति तो कर लेंगे, लेकिन स्थितियाँ नहीं सुधार पाएंगे।
और इसलिए पूरे झारखंड को बदनाम करने का हम में से किसी को हक नहीं है जी। वो भी हमारे देश के नागरिक हैं, वहाँ भी सज्जनों की भरमार है जी। और इसलिए, और अपराध होने पर उचित रास्ता कानून और न्याय से संविधान, कानून और व्यवस्थाएँ पूरी तरह से इसके लिए सक्षम हैं। और उसका उपाय भी कानूनी व्यवस्था है, न्यायिक प्रक्रिया है। और उसके लिए हम जितना कर सकते हैं, करना चाहिए, पीछे नहीं हटना चाहिए।
हिंसा में दुनिया में terrorism का जो सबसे बड़ा नुकसान किया है, वो good terrorism और bad terrorism ने किया है, मेरा terrorism, तेरा terrorism , इसने किया है। वैसे भी ये हिंसा की घटनाओं को भी हमने- चाहे वो घटना झारखंड में होती हो, चाहे वो घटना पश्चिम बंगाल में होती हो, चाहे वो घटना केरल में होती हो- हमारा एक ही मानदंड होना चाहिए, तभी हिंसा को हम रोक पाएँगे। तभी हिंसा करने वालों को सबक मिलेगा कि इस एक मुद्दे पर ये देश एक है। सब राजनीतिक दल हैं, सबकी सोचे हैं, अब ये देश में ऐसा कुछ नहीं चलेगा। और मैं मानता हूँ, हम उस जिम्मेदारी को निभाएँ।
राजनीतिक स्कोर के लिए बहुत से क्षेत्र हैं, उसका हम उपयोग करें। और इसलिए, और मैं मानता हूँ- देश के हर नागरिक की सुरक्षा की गारंटी- ये हमारा संवैधानिक दायित्व है। साथ-साथ मानवता के प्रति हमारी संवेदनशील जिम्मेदारी भी है, उसको हम कभी नकार नहीं सकते हैं। और उसी भावना को ले करके हम आगे चलते हैं। और मैं बताता हूँ, सबका साथ-सबका विकास, इस मंत्र को ले करके हम चले थे, लेकिन पाँच साल के अखंड, एकनिष्ठ पुरुषार्थ ने, जनता-जनार्दन ने उसमें एक अमृत भर दिया- वो अमृत है सबका विश्वास।
सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास- ये अमृत, पाँच साल के हमारे कार्यकलाप से देश की जनता ने अमृत रूपी इसमें जोड़ा है। लेकिन हमारे आजाद साहब को कुछ धुंधला नजर आ रहा है। जब तक राजनीतिक चश्मों से चीजें देखी जाएंगी तो धुंधला ही नजर आएगा। और इसलिए मैं समझता हूँ कि इन राजनीतिक चश्मे उतार करके हम देखना शुरू करेंगे तो धुंधला नजर नहीं आएगा, उज्ज्वल भविष्य नजर आएगा।
यहाँ पर हमें काफी उपदेश दिया गया। कभी-कभी तो अखबार में चीजें आ जाती हैं, लेकिन जब मेरे सांसदों की मंगलवार को मीटिंग होती है, मैं सार्वजनिक रूप से बोलचाल में जो भी करते हुए देखता हूँ, आक्रोश व्यक्त करता हूँ। सुधारने का प्रयास करता हूँ। यहाँ पर हमें समझाया गया कि फलाने ने ऐसा किया था, ढिंकने ने ऐसा किया, अधिकृत उम्मीदवार को हरा दिया गया तो एक independent को candidate बना करके जीता दिया गया था। अब वो तो आप कुछ पार्टियों का इतिहास है, राष्ट्रपति के उम्मीदवार को भी हरा देते हैं। तो ये तो अपनी-अपनी राजनीति है और वे बाबा साहेब अम्बेडकर को हराने के लिए जी-जान से जुट जाते हैं। इसलिए ऐसे उदाहरणों से...और इसलिए इन उदाहरणों के माध्यम से उपदेश देने से पहले जरा अपने गिरेबान में देखें।
जब दिल्ली की सड़़कों पर गले में तार लटका करके सिक्खों को जिंदा जला दिया जाता था, और जिन लोगों के नाम मुखर हो करके आए, हर प्रकार से चर्चा हुई, वो लोग आज भी उस पार्टी में हैं, आज भी उस पार्टी में हैं, सम्मानित पदों पर हैं, संवैधानिक पदों पर हैं। अगर यही आपके आदर्श और नीतियाँ रहती थीं तो उपदेश देने से पहले अपने गिरेबान में झाँकने की जरूरत है। तब हम ये सब चीजें भूल जाते हैं, तब हम ये भूल जाते हैं और इसलिए... और ऐसे तो कई उदाहरण मिलेंगे। राजनीतिक जय-पराजय का संकट हो- दस दिन के लिए निकाल देते हैं पार्टी से और फिर गले लगा लेते हैं, कई उदाहरण मिलेंगे। बड़े-बड़े लोगों के नाम हैं और इसलिए कृपा करके उपदेश देने से पहले...।
लेकिन मैं मानता हूँ सार्वजनिक जीवन में हम कोई ऐसे बडे तीसमार खाँ नहीं हैं कि हमको कुछ भी बोलने का right मिल जाता है। मेरी पार्टी के सदस्यों से भी मैं यही कहता हूँ, हमें कोई अधिकार नहीं है किसी के लिए कुछ भी बोलने का। हमें मर्यादाओं का पालन करना पड़ेगा। सार्वजनिक जीवन के नियमों का पालन करना पड़ेगा। किसी भी दल के हों, मेरे दल के लोगों को विशेष हक से कहना चाहता हूँ। ये शोभा नहीं देता है, ये मेरा मत है और मैंने सार्वजनिक रूप से इसको कहा है। लेकिन कोशिश करेंगे तो कभी न कभी सुधार भी होगा, और हम कोशिश करते रहते हैं।
यहाँ पर एक ही चिंता का विषय है क्रेडिट का, बड़ा भारी है। हम तो सब क्रेडिट आपको ही दिए हुए हैं, तभी तो आए हैं। आप ही का तो पराक्रम था तभी तो आए हैं, वरना कौन जानता था इतना। लेकिन मैं पूछना चाहता हूँ यहां NRC की चर्चा हुई है, क्या उसका क्रेडिट आप नहीं लेंगे? क्यों भाग रहे हो भाई? आप भी तो उसकी भी तो क्रेडिट लीजिए।
राजीव गांधी- उस सरकार ने Assam accord में NRC स्वीकार किया था। NRC उस समय का है। बाद में सुप्रीम कोर्ट का intervene करना पड़ा और हमको सुप्रीम कोर्ट ने आदेश किया, हम लागू कर रहे हैं। Accord….क्रेडिट लीजिए ना। अब वोट भी लेना है और क्रेडिट भी लेना है, फिर आधा बोलना और आधा छोड़ना, ऐसा नहीं चलता है जी। कुछ तो जरा, कुछ तो खुल करके बात बताइए। और हम बताते हैं, देश हित में NRC का जो उसी समय जो निर्णय हुआ था, उसको लागू करने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं और हम पूरी मेहनत से करेंगे। हमारे लिए ये वोट बैंक की राजनीति नहीं है, देश की एकता, अखंडता और उज्ज्वल भविष्य जुड़ा हुआ मुद्दा है, और हम करेंगे।
यहाँ पर सरदार साहब को याद किया गया, मुझे अच्छा लगा, और ये बात हम सब मानते हैं। हो सकता है, हमारे कांग्रेस के लोग इस बात को नहीं मानेंगे। हम अभी भी मानते हैं कि सरदार साहब अगर देश के पहले प्रधानमंत्री होते तो जम्मू-कश्मीर समस्या न होती। हम अभी भी मानते हैं कि सरदार साहब देश के पहले प्रधानमंत्री होते तो हिन्दुस्तान के गांवों की आज जो जद्दोजहद है, वो नहीं होती, चित्र अलग होता। ये हमारी सोच है, गलत हो सकती है, हमारी सोच है। लेकिन इस बात में कोई मतभेद नहीं हो सकता है कि सरदार साहब ने 500 से ज्यादा रियासतों को एक किया, इसमें कोई मतभेद नहीं हो सकता है। और सरदार साहब थे जिसको कांग्रेस पार्टी ने देश का पहला गृहमंत्री बनाया था। सरदार साहब थे, जो जीवन भर कांग्रेस के लिए जिए, कांग्रेस के लिए जूझे, कांग्रेस के लिए ही उन्होंने अपना जीवन खत्म किया। वो शुद्ध कांग्रेसी थे, लेकिन मैं हैरान हूँ....।
अच्छा जब गुजरात में चुनाव होता है तो सरदार साहब पोस्टर में दिखते हैं, लेकिन देश में कहीं नजर नहीं आते। आप ही की पार्टी के थे भाई, क्या तकलीफ है आपको? लेकिन मैं एक बात आज कहना चाहता हूँ, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सरदार वल्लभ भाई पटेल, कांग्रेस पार्टी ने जिसको गृहमंत्री बनाया, दुनिया का सबसे ऊँचा statue, statue of unity, मैं आग्रह करूँगा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कम से कम एक बार जा करके जरा श्रद्धासुमन दे करके आ जाएं। सरदार साहब कांग्रेस के थे आप ऑन कीजिए ना, आप ऑन कीजिए और मैं चाहूँगा गुलाम नबी जी कुछ दिन गुजारिए गुजरात में।
देखिए, कभी क्या होता है, पहले एक बड़ा interesting बताता हूँ हमारे यहाँ पुराने डीएम कैसे चलते हैं। कहीं डैम होगा, एयरपोर्ट होगा तो कहते हैं फोटो निकालने की मना है। अब आज technology ऐसी है कि वो space में से गली में खड़े हुए स्कूटर के नंबर की फोटो निकाल सकते हैं। लेकिन पुराने कानून लटके पड़े हैं। तो जो सरदार सरोवर डैम जब overflow होता था, तब तक बना नहीं था तो overflow होता था। उधर दिग्विजय सिंह की सरकार चलती थी। तो ये लोगों को वहां जाने नहीं देते थे। ऐसे में मैं मुख्यमंत्री बना, अब मैंने कहा ये नियम बंद करो भाई। और लोगों को आने दो और फोटो भी निकालने दो। शुरू किया... फिर ये तय किया कि..अच्छा टिकट रखा थोड़ा ताकि थोड़ा हिसाब-किताब रहे इन लोगों का Parking देने की व्यवस्था हो। फिर ये कहा कि जब पाँच लाख वहाँ नंबर होगा, जब 5 लाख visitor होगा, उसको हम सम्मानित करेंगे। और मुझे खुशी से कहना है कि जो 5 लाखवाँ नंबर का इनाम प्राप्त करने वाला बारामूला का couple था, जो शादी के बाद निकला था और वहाँ उसने फोटो ली थी। देखिए, चीजों को कैसे बदला जा सकता है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि आप भी कभी सरदार साहब के statue पर, Congress working committee में करें जी वहां। अच्छा लगेगा, कांग्रेस के थे जी। हमें तो देश के महापुरुष के नाते हमने जो श्रद्धांजलि देनी है, हम देते रहेंगे।
मैं हैरान हूँ, आजाद साहब आप तो health minister रहे हैं। कभी-कभी हमें advertisement और जागरूकता अभियान दोनों में थोड़ा अंतर करना चाहिए। जो behavioral change का विषय होता है ना, वो advertisement गर्वनमेंट का advertisement नहीं माना जाता है। आप बच्चों को कहो भई हाथ धो करके खाना खाओ, उसके लिए एक advertisement campaign करना पड़ता है। खर्चा तो सरकार को देना पड़ता है, लेकिन वो सरकार की advertisement नहीं है जी। आपको भी जब epidemic हुआ, जब health minister थे, आपको भी बहुत सारी advertisement देनी पड़ी कि भई इस epidemic में गरम पानी उबाल कर पिओ, डिकना करो, फलाना करो, देना पड़ता है। इसको अगर आप advertising कहें, बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ को इसके साथ जोड़ दें, ठीक नहीं कर रहे हो। आप तो कम से कम ऐसा मत करो, इतने साल आप सरकार में रहे हो।
लेकिन दुख तब होता है कि मनरेगा के नाम पर कोई मिट्टी उठा करके फेंकने जा रहा है। तीन साल तक देश को advertising किया गया, मनरेगा वो कोई behavioral change का काम नहीं था, लेकिन एक नेता को प्रस्थापित करने के लिए सरकारी खजाने से advertising किया गया था। इसको देश भूल नहीं सकता है जी। लोगों को हाथ धो करके खाना खाओ ये behavioral change है, इसमें हम जागरूकता अभियान और प्रचार अभियान में अंतर देखें, वरना तो देश में बदलाव लाने के काम कैसे करोगे जी, कैसे करोगे?
यहाँ आयुष्मान भारत योजना पर भी सवाल उठाए गए। पिछले पाँच साल में सभी राजनीतिक दलों के MP’s एक बात को लेकर मुझे लोकसभा और राज्यसभा के जब भी मिले हैं, मेरी बधाई की है, मेरा अभिनंदन किया है, किस बात के लिए। अपने इलाके से किसी बीमार व्यक्ति के लिए उन्होंने चिट्ठी लिखी थी और प्रधानमंत्री राहत कोष से उसको मदद मिले। मैंने नियम बनाया था hundred percent...कुछ मत देखो भाई गरीब के लिए। और करीब-करीब सभी दल के सभी MP मेरे पास आते थे।
आयुष्मान भारत योजना की ताकत क्या है वो उस MP को मालूम है जिसने अपने इलाके के उस गरीब को मदद के लिए प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी। आज करीब-करीब जीरो चिट्ठी हो गई है। किसी MP की चिट्ठी नहीं, क्योंकि उसको मालूम है किे उसको आयुष्मान भारत से फायदा मिल रहा है इसलिए अब प्रधानमंत्री कार्यालय जाने की जरूरत नहीं है। ये बड़ा बदलाव अब उस आयुष्मान भारत- 30 लाख लोगों ने उसका लाभ उठाया।
हां- हम जनप्रतिनिधि हैं, लोगों के बीच में जाते हैं, कोई नेगेटिव चीज हमारे ध्यान में आई या कुछ कमी ध्यान में आई, मैं बताता हूँ हम सब मिल करके उसको सुधारें। आप मेरा ध्यान आकर्षित कीजिए। आयुष्मान भारत योजना को जितना हम सशक्त बनाएँगे, सच्चे अर्थ में इस देश के गरीब को हम और गरीब होने से बचा सकते हैं। वरना गरीब अगर न्यू मिडिल क्लास की दिशा में जा रहा है, पैर रख रहा है, घर में एक बीमारी आई, उसकी पूरी 20 साल की मेहनत पानी में चली जाएगी। हम बहुत बड़ा मानवता का काम होगा, इसलिए आयुष्मान भारत की आलोचना करने के बजाय, और उसकी क्रेडिट मोदी ले जाएगा, अब मिल गए भाई...चुनाव का नतीजा आ गया...अब काम करो। 2024 के लिए नए काम ले करके जाने वाला हूँ मैं, आप चिन्ता मत कीजिए। और इसलिए मैं चाहूँगा कि इसको जरा हम करें।
यहाँ पर बिहार के चमकी बुखार की भी चर्चा हुई है। हम सभी के लिए दुख की बात है और शर्मिन्दगी की बात है कि आधुनिक युग के अंदर...और मैं मानता हूँ पिछले सात दशक में सरकारों के रूप में और समाज के रूप में हमारी जो कुछ विफलताएँ हैं, उसमें ये एक सबसे बड़ी विफलता है; उन विफलताओं में से एक विफलता है और इसको हम सबने गंभीरता से लेना होगा। मैं समझता हूँ कि कुछ जगह पर जैसे ईस्टर्न यूपी में इन दिनों अच्छी स्थिति नजर आ रही है फिर भी Claim नहीं कर सकते हैं, लेकिन अच्छी स्थिति नजर आ रही है।
जिन बातों को ले करके पकड़ा है- टीकाकरण का काम हो, vaccination का काम हो, सरक्षित मातृत्व का... इन सारी चीजों पर हम बल दे रहे हैं। मुझे विश्वास है कि ये जो दुखद स्थिति है, मैं राज्य सरकार के निरंतर संपर्क में हूँ। मैंने हमारे देश के आरोग्य मंत्री को भी तुंरत वहाँ दौड़ाया था। और मिल करके मदद कर करके उसमें जितना भी जल्दी हो सके संकट में से सबको बाहर निकाल सकें। पोषण हो, टीकाकरण हो, सुरक्षित मातृत्व हो, आयुष्मान भारत योजना का लाभ हो; इन सारी चीजों का जितना ज्यादा हम प्रचार करेंगे, ऐसे संकटों से हम बचा पाएंगे। और आज एक राज्य में है तो कल किसी और राज्य में हो सकता है। हमने ही एक Pro-active हो करके ऐसी समस्याओं से लोगों को बचाने के लिए काम करना होगा।
सबका साथ-सबका विकास, ये जब मैं बात करता हूँ, ये राजनीतिक Slogan नहीं है। हमारे देश में कुछ भूभाग भी हैं, जो विकास से पीछे रह गए हैं। हमने 112 aspiration district identify किए, parameter के आधार पर किए हैं। राजनीति के दबाव में जीने वाले कुछ राज्यों ने उसमें भी अपने हाथ ऊपर कर दिए। मैं हैरान हूँ क्यों ऐसा करते हैं, कौन सी राजनीति है इसमें। लेकिन उसके कारण क्या हुआ... वरना ये राज्य.. भई मुझे जब गुजरात में मैं था, हमारे यहाँ कच्छ जिले में किसी को भी appointment करो तो वो रोता काला पानी की सजा हो गई, कोई अफसर जाने को तैयार नहीं था। अब तो खैर कच्छ जिला देश के तेज गति से बढ़ने वाले जिलों में आ गया है, आज की स्थिति नहीं...किसी जमाने में था। वैसे हिन्दुस्तान में हर राज्य में एक-दो, एक-दो जिले होते हैं। तो वहाँ posting मतलब वो अफसर बेकार, ढिगना...ऐसे ही...। उस साइक्लोजी को बदलने के लिए यंग अफसरों को लगाइए, राज्यों के साथ मेरी बात हुई। यंग अफसरों को लगाया है और इन 112 जिलों का daily monitoring होता है। कई parameter पर सुधार आ रहे हैं। सबका साथ-सबका विकास का मेरा मतलब यही रहा कि भई जो पीछे रह जाते हैं उनको एक बार average की स्थिति में ले आएं हम। एक बार average की स्थिति में ले आएंगे तो फिर उनका विश्वास बढ़ेगा तो फिर वो भी आगे आने की कोशिश करेंगे।
North-East, नॉर्थ-ईस्ट को हमने जितना ध्यान देना चाहिए, किसी न किसी कारण से वो...लेकिन पिछले पाँच साल पूरा फोकस किया गया है। एक वातावरण बना है। हमने इसको और बल देने की आवश्यकता है। Politically कोई गेम... वरना वहाँ से एक-एक एमपी या किसी भी इतने बड़े देश की सरकारों को एक-एक एमपी हो, मेरे लिए एमपी का मुद्दा नहीं था; मेरे लिए नॉर्थ-ईस्ट इस देश के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण इकाई है। देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए महत्वपूर्ण इकाई है। और इसलिए पिछले पाँच सालों में काफी..यानी मंत्रियों को compulsory था वहाँ जाना। और सिर्फ state capital पर नहीं, एक रात रुक करके किसी न किसी district में जाना। इसके पीछे मेरी सोच ये थी कि सबका साथ-सबका विकास का मतलब है कि भौगोलिक रूप से भी देश में सभी क्षेत्रों का विकास होना चाहिए।
इन दिनों मैंने अभी सर्वे किया पानी का। करीब two hundred and twenty six district ऐसे ध्यान में आए हैं जहाँ पानी के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है। किस राज्य में हैं ये मेरा मिशन नहीं है, parameter के आधार पर। अब मैं सबको mobilize कर रहा हूँ, आपकी भी मदद चाहूँगा कि हम पानी के काम को कैसे बल दें। MPLED fund में भी पानी को priority कैसे दें। उन कामों को कैसे दें। एक बार हम देश को इस समस्या से देश को बाहर लाएं, क्योंकि पानी की समस्या से देश को बाहर लाना चाहिए और पानी के संबंध में समाज को जागरूक करना भी उतना ही जरूरी है ताकि भविष्य में भी आने वाली पीढ़ियों को पानी के संकट से बचाया जाए। और इसलिए जल शक्ति मंत्रालय भी अलग बनाया गया है, उसकी दिशा में भी काम हो रहा है।
हमारे यहाँ, पहले ही मैंने कहा है five trillion dollar economy बनानी है। यहां दिवालिया कानून को ले करके चर्चा काफी हुई। Fugitives economic offenders act के विषय में Insolvency and Bankruptcy इस कानून का असर ऐसा है, तीन लाख करोड़ रुपया, just कानून बनने के कारण बैंकों में जमा वापस आया है, तीन लाख करोड़ रुपया। वरना ये ले जाते तो उनको परवाह ही नहीं थी, कोई पूछने वाला नहीं है। अब पता चला है कि हमारी management भी चली जाती है, हमारी गाड़ियां और बिजनेस कॉल की टूर भी चली जाती हैं, कोई न कोई वहाँ रख करके बैठ जाता है। एक वातावरण पैदा हुआ है, हम इसमें से सकारात्मकता देखें और उसमें से रास्ता निकालने का हमारा प्रयास है। हम सब मिल करके इसको करें और मुझे विश्वास है, ये जो प्रयास किए गए हैं, उसका परिणाम मिलेगा। यहां पर cooperative federalism की बात हुई है। मैं मानता हूँ भारत के संविधान निर्माताओं ने बहुत ही दीर्घ दृष्टि के साथ हमें एक ऐसा दस्तावेज दिया है कि हम देश को एक रखते हुए आगे बढ़ सकते हैं।
Co-operative competitive federalism स्पर्धा का वातावरण राज्यों में बनाना आवश्यक है। लेकिन मैं समझता हूँ कि हम जिस मंत्र को ले करके चले और मैंने अभी उसको व्याख्यायित किया था एक NARA - National ambition with regional aspirations. इस NARA के मंत्र को ले करके मैंने कहा था कि हमने देश को आगे बढ़ाना चाहिए। लेकिन सवाल ये है कि इस देश में कुछ ऐसे मुद्दे नहीं हो सकते जिसमें हमारी सहमति हो? ऐसा तो नहीं हो सकता जीँ? क्या हम उन सहमति मुद्दों को ले करके देश में एक वातावरण create कर सकते हैं क्या?
गांधी-150 और आजादी-75 एक अवसर है। हम उसको अवसर के रूप में कैसे ले करके जा सकते हैं, हमें करना चाहिए। लेकिन ये राज्यसभा भी क्या उस federal structure का हिस्सा है क्या? क्या कि हम एक स्वतंत्र इकाई हैं? जी नहीं हम भी उस व्यवस्था का एक पुर्जा हैं। और लोकसभा में देश की जनता ने चुन करके भेजा है। लेकिन चूंकि यहाँ नंबर नहीं है इसलिए हर काम को ऐसे रोक कर बैठेंगे...ठीक है, हमको नीचा दिखाने में आपको आनंद आता है, खुशी की बात है, लेकिन देश का... मैं किसी की आलोचना नहीं करता, मैं सिर्फ analyses कर रहा हूँ।
पिछले पाँच साल में बहुत से होने वाले काम हमने अटका दिए हैं। आप मुझे बताइए, जो बिल lapse हुए लोकसभा में, क्योंकि राज्यसभा ने पारित नहीं किया...अब वो लोकसभा के अंदर दोबारा होंगे, फिर से लोकसभा में खर्चा होगा, देश के tax payer का पैसा लगेगा, घंटों जान वाले हैं, तब जा करके होगा। यही काम हमारी राज्य सभा कर सकती है और ये भी healthy federal structure का ही हिस्सा है। हम federal structure के spirit को ले करके राज्यसभा का दायित्व भी बनता है और मैं समझता हूँ कि हमने उस दायित्व की ओर आगे बढ़ना पड़ेगा।
और हमारी बात मानें या न मानें, आपकी मर्जी, उसके लिए मुझे कुछ कहना नहीं है। लेकिन मैं मानता हूँ कि हमारे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब दा की बात को हमने सबने मानना चाहिए। मुझे भी मानना चाहिए, आपने भी मानना चाहिए, आपने भी। प्रणब दा ने बहुत बड़ी स्पष्ट बात कही थी It is that the majority has got the mandate to rule and the minority has got the mandate to oppose. मैं नहीं मानता हूँ इसमें कोई मतभेद है। लेकिन पूर्व राष्ट्रपति जी ने आगे कहा- but nobody has got the mandate to obstruct. मैं समझता हूँ हमने इस मंत्र को ले करके चलना चाहिए, तभी जा करके सच्चे अर्थ में federal structure...और आप तो राज्यों के जीते-जागते प्रतिनिधि हैं। राज्यों के aspirations को आपकी अभिव्यक्ति का अवसर मिलता है। यहां दल से उठ करके आपके राज्य के हित में आपकी आवाज उठनी चाहिए।
ये बात सही है कि भारत जैसा देश है- सब चीजें सब राज्यों को एक साथ मिल जाएँ, ऐसा होता नहीं है। किसी को पहले मिलेगा, किसी को बाद में मिलेगा। किसी को शायद मिलना संभव भी न हो। ऐसा होता रहता है, पहले भी ऐसा हुआ है। लेकिन इसके लिए हम संख्या के बल पर, हम देश के सारे कामों को रोक दें, और मुझे मालूम है पिछली बार जब सदन पूरा हुआ तो आनंद जी और गुलाम नबी जी, दोनों मुझे कह रहे थे, साहब कुछ करना पड़ेगा। एकाध राज्य का एक issue और एक एमपी खड़ा हो करके सारा रोक दे, तो कैसे चलेगा। ये दोनों मुझे कह रहे थे, और सही बात है।
मैं समझता हूँ हमने मिल करके सदन को चलाना, सदन को आगे बढ़ाना, देश को आगे बढ़ाना, इस काम को ले करके चलना होगा। मेरा ये भी कहना है कि, हमारा ये भी कहना है कि गांधी-150 और आजादी-75- एक ऐसी प्रेरणा के केंद्र बिंदु हमारे पास हैं, ऐसी तारीख हैं, ऐसी तवारीख है- हम सब मिल करके एक ऐसा नेतृत्व दे सकते हैं देश को जो जन-सामान्य को कुछ न कुछ करने के लिए आगे ले आए, कर्तव्य भाव को जगाएँ, हर कोई कुछ न कुछ छोड़ने के लिए तैयार हो और वो हो सकता है। अगर स्कूलों में हम इतना सिखा दें कि भई हाथ धो करके ही खाना खाएंगे। नियम बनाएं- चलिए गांधी-150 मैं मेरे जीवन में नियम बनाता हूँ और मैं इसको ये करूँगा। कोई कहेगा भई मैं छोटा बच्चा हूँ, लेकिन मैं जूठन नहीं छोडूँगा, मैं खाना waste नहीं करूँगा।
हमारे किसान के मन में भाव जगे कि भई मैं पहले जितना यूरिया उपयोग करता था, ये मेरी भारत मां की जमीन की सेहत के लिए मैं ten percent यूरिया कम करूँगा। छोटी, छोटी, छोटी चीजें... 1942-1947 का कालखंड देखिए, गांधीजी ने ऐसी छोटी-छोटी-छोटी चीजों से हर किसी को जिम्मेदार बनाया था। उसी चीज को हम... हमारा नया कुछ करने की जरूरत नहीं है, उसी model को ले करके आज के जमाने में हम कैसे आगे बढ़ें? हम तय करें कि हमने कुछ न कुछ छोड़ना है, देश के लिए छोड़ना है, कर्तव्य भाव जगाना है। अगर हम सब मिल करके नेतृत्व करें, जो सपने हैं भारत को आगे ले जाने के, नया भारत बनाने के जो सपने हैं, उसका model हरेक का अपना हो सकता है, लेकिन देश को पुरानी अवस्था में नहीं रखा जा सकता है। देश के युवा पीढ़ी के सपनों के अनुकूल देश को बनाना होगा।
मुझे विश्वास है कि जो चर्चा हुई है, उसमें से जो श्रेष्ठ है, उस अमृत को ले करके हम चलें, देश के कल्याण के लिए कुछ न कुछ कदम उठाएं।
मैं फिर एक बार इस चर्चा में सबने जो हिस्सा लिया, उनका धन्यवाद करता हूँ। राष्ट्रपति जी के अभिभाषण पर मैं धन्यवाद करते हुए मैं आप सबका धन्यवाद करते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूँ।
बहुत-बहुत धन्यवाद।