प्रिय मित्रों,

आज अपने सुदृढ़ लोकतंत्र के विकास की पराकाष्ठा का एक बार फिर से सफलतापूर्वक निदर्शन हुआ है। पिछले कई सप्ताह से पांच राज्यों, मिजोरम, दिल्ली, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश के लोगों ने नयी विधानसभाओं के लिए मतदान किया है। इसके बाद और दो राज्यों गुजरात और तमिलनाडु में भी उपचुनाव की आहत सुनायी दे रही है।

इसका श्रेय भारत के चुनाव आयोग को जाता है जिसे अभूतपूर्व रूप से चुनाव करवाने के लिए शुभकामनाएं दी जानी चाहिए। चुनाव प्रक्रिया में शामिल हुए तमाम अधिकारियों को मैं शुभकामनाएं देना चाहता हूं और सुरक्षा जवानों, पुलिस अधिकारियों, अग्निशमन दलों ने शांतिपूर्ण मतदान के लिए विभिन्न राज्यों में चुस्त व्यवस्था को थके बगैर निभाया है। विषम मौसम की चुनौतियों के बीच भी इन तमाम बहादुर महिलाओं और पुरुषों ने प्रत्येक सामान्य नागरिक भी सवैंधानिक अधिकार समान मताधिकार का उपयोग कर सके, ऐसी व्यवस्था की थी।

जब आप चुनाव आयोग और अन्य अधिकारियों द्वारा किए गए भगीरथ कार्य के दायरे पर ध्यान केन्द्रित करते हैं तब इसे पूरा करना कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। चुनाव में 11 करोड़ और 650 विधानसभा क्षेत्रों को शामिल किया गया था जिनमें 1.30 लाख मतदान केन्द्र और कई तो सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण थे ऐसे स्थान भी थे। इनमें रेगिस्तान से लेकर घने जंगल, पर्वतीय क्षेत्र, निरंतर धूलभरे वातावरण वाले शहर भी हैं। मतदाताओं को भी अपनी भूमिका सुधारने की जरूरत है। पूरा श्रेय चुनाव आयोग को जाता है। किसी भी अन्य लोकतंत्र में सुनायी ना दिया हो ऐसी व्यवहार कुशलता और दृढ़ता चुनाव आयोग लेकर आया था। 100 प्रतिशत मतदाताओं को मतदाता पर्ची और पांच राज्यों को मिलाकर कुल 98.8-100 प्रतिशत मतदाता पहचानपत्रों का वितरण करवाया गया।

कई युवा मित्र पूछ सकते हैं कि इसमें खास क्या है? आयोजनात्मक स्तर पर कार्य किया गया है, स्थानीय से लेकर लोकसभा चुनाव तक कई चुनावों का मैं गवाह बना हूं। कुछ समय पूर्व की स्थिति कुछ अलग नहीं थी। चुनाव कागज आधारित थे और हिंसा असामान्य मामला ना था । बूथ कैप्चरिंग, बोगस वोटिंग, बूथ रैगिंग चुनाव की भाषा में आम बात थी। चुनाव आयोग ने ना सिर्फ सौ प्रतिशत मतदान(जिसका दावा विकसित देश भी नहीं करते) पर ध्यान केन्द्रित किया बल्कि चुनावी हिंसा और चुनाव के दौरान अन्य कई विक्षेपों को भी कम किया।

इसमें सबसे बड़ी उपलब्धि यह दिखाई दी कि मतदाता, खास तौर पर युवा और पहली बार मतदान कर रहे मतदाता मतदान के लिए पहुंच जाते हैं। इसका परिणाम यह आया कि मतदाताओं के पंजीकरण और मतदान दोनों में वृद्धि हुई है। इसमें मत ना देने को लेकर बेफिक्र बन जाने या दुविधा में रहने की जरूरत नहीं है। छतीसगढ़ जैसे नक्सल प्रभावित प्रदेशों या मिजोरम जैसे क्षेत्रों में हुए मतदान पर नजर डालें तो यह लोगों में लोकतंत्र के प्रति तीव्र विश्वास दर्शाता है। हमारे नागरिक मतदान प्रक्रिया में किस तरह व्यस्त रहे, इसकी मुझे बड़ी खुशी है और मैं गम्भीरता से चाहता हूं कि यह चलन जारी रहे।

मतदान पंजीकरण को प्रोत्साहन देने वाले गैर सरकारी समूहों, सभ्य समाज समूहों, सोशियल मीडिया और उद्योग गृहों जैसे असरदार समूहों को मैं शुभकामनाएं देता हूं। प्रेरित हुआ हूं। हमारे लोकतंत्र को मजबूत बनाने वाले यह सकारात्मक कदम हैं।

मतदान पंजीकरण में वृद्धि किस तरह की जाए, इस बारे में कुछ सृजनात्मक विचार मेरे मन में आये हैं। सरकारी अधिकारियों द्वारा और गुजरात के बाहर से आये उन लोगों के मार्फत हम गुजरात में एक संशोधनात्मक बदलाव के साक्षी बने। पंचमहाल जिले में एलपीजी सिलेंडरों पर एसवीईईपी (सिस्टमेटिक वोटर्स एज्युकेशन एंड इलेक्ट्रोरल पार्टिशिपेसन) मेसेज दिये जाते थे। अहमदाबाद के डॉक्टर्स की दवा पर्ची पर एसवीईईपी मेसेज की सील लगाई जाती थी। साबरकांठा जिले में महिलाओं की रैली आयोजित की जाती थी। अगर कोई महिला विवाह का रजिस्ट्रेशन करवाती थी तो उसका मतदान पंजीकरण करवाने के लिए पंचायत विभाग द्वारा खास ध्यान आकृष्ट किया जाता था। वर्ष 2010 में शिक्षा विभाग द्वारा जारी किएगये परिपत्र के द्वारा कॉलेजों और शैक्षणिक संस्थाओं को आग्रह किया जाता था कि संस्था में प्रवेश के समय मतदाता पंजीकरण जरूर करवाएं। हमारे राज्य के चुनाव अधिकारियों द्वारा इस प्रकार के अनेक विचारों की सिलसिलेवार चर्चा करने के बाद उसकी बात दस्तावेज के द्वारा चुनाव आयोग के समक्ष रखी जाती थी। मैं यह दस्तावेज आपके समक्ष रख रहा हूं।

मतदाता पंजीकरण में वृद्धि किस तरह की जा सकती है, इस बारे में आपके पास कोई सृजनात्मक विचार और अनुभव हों तो मेहरबानी करके उसे इस ब्लॉग में विद्यमान कमेंट सेक्शन में पेश करें। मैं खुद इन्हें पढ़ने में रूचि रखता हूं और यदि वह दिलचस्प होंगे तो उस विचार का आगामी उपयोग किया जा सकता है।

चुनाव आयोग द्वारा उठाये गये कदमों में से सबसे ज्यादा संशोधनात्मक कदम अर्थात् 25 जनवरी को राश्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाना। इसी दिन मतदान पंजीकरण और चुनाव अधिकारियों के प्रयासों को सम्मान देकर पुरस्कार प्रदान कर उसका उत्सव मनाया जाता है। इस उत्सव के अंतर्गत अपना पवित्र फर्ज निभाते वक्त जान गंवाने वाले या घायल होने वाले लोगों के परिवार का सम्मान करने पर भी हमें विचार करना चाहिए।

चुनाव आयोग का मैं आभार मानकर तथा जिनका भविष्य अभी ईवीएम में बन्द है और जिनकी गणना आगामी 8 दिसम्बर को होने वाली है उन तमाम उम्मीदवारों को मैं शुभकामनाएं देकर पूर्णविराम करता हूं।

आपका

नरेन्द्र मोदी

 

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रण उत्सव – प्रकृति, परंपरा और प्रचीनता का उत्सव
December 21, 2024

कच्छ का सफेद रण आपको आमंत्रित कर रहा है।

कच्छ के इस उत्सव पर्व से जुड़कर एक नए अनुभव के साक्षी बनिए।

और रण के इस उत्सव में प्रकृति, परंपरा और प्रचीनता के रंगों को जीवन का हिस्सा बनाइए।

भारत के सबसे पश्चिमी छोर पर स्थित कच्छ, विरासत और बहुसंस्कृति की भूमि है। कच्छ का सफेद रण और इसकी जीवंतता किसी का भी मन मोह लेती है। चांदनी रात में कच्छ के इस रण का अनुभव और अलौकिक हो जाता है, दिव्य हो जाता है। कच्छ की ये धरती जितनी सुंदर है, इसकी कला और शिल्प भी उतना ही विशेष है।

कच्छ के लोगों का आतिथ्य भाव तो सारी दुनिया जानती है। हर वर्ष लाखों पर्यटक इस धरती पर आते हैं और कच्छ के लोग उतने ही उत्साह से उनका स्वागत करते हैं। अतिथियों के सम्मान और उनके अनुभवों को संवारने के लिए कच्छ का हर परिवार पूरे आदर भाव से काम करता है। रण उत्सव, कच्छ की इसी आतिथ्य परंपरा और स्थानीय कला का उत्सव है। इस जीवंत उत्सव में, हमें इस क्षेत्र की अनोखी संस्कृति, प्राकृतिक सौंदर्य, स्थानीय जनभावनाओं और कलाओं से जुड़ने का अवसर मिलता है।

इस पोस्ट के माध्यम से मैं विश्व भर के अतिथियों को रण उत्सव 2024-25 के लिए व्यक्तिगत आमंत्रण दे रहा हूं। आप सब अपने परिवार के साथ यहां आएं, यहां की संस्कृति और अनुभवों से जुड़ें, तो मुझे बहुत प्रसन्नता होगी। इस बार रण उत्सव 1 दिसंबर 2024 से लेकर 28 फरवरी 2025 तक आयोजित हो रहा है। इसके अलावा रण की टेंट सिटी मार्च 2025 तक पर्यटकों के लिए खुली रहेगी।

ये टेंट सिटी आपको कच्छ के अनुभवों से, यहां के विराट आतिथ्य से, भारत की संस्कृति से और प्रकृति के नए अनुभवों से जोड़ेगी। मैं पूरे विश्वास से कहता हूं, कच्छ के रण उत्सव का अनुभव आपके जीवन का सबसे अलौकिक और अविस्मरणीय अनुभव बनेगा।

कच्छ की इस टेंट सिटी में पर्यटकों के अनुरूप अनेक सुविधाओं को शामिल किया गया है। जो लोग रिलैक्स करने के लिए यहां आ रहे हैं, उन्हें यहां एक अलग अनुभव मिलेगा। संस्कृति और इतिहास के नए रंगों को खोज रहे लोगों के लिए, रण उत्सव एक इंद्रधनुष जैसा होगा।

देखिए, रण उत्सव की गतिविधियों का आनंद लेने के अलावा आप यहां और क्या-क्या कर सकते हैं:

सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा भारत का गौरव स्थल धोलावीरा यहीं पास में स्थित है। ये यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट है, जहां आपको भारत की प्राचीन सभ्यता से जुड़ने का अवसर मिलेगा।

जिन लोगों को प्रकृति और स्थापत्य कला से प्रेम हो, उनके लिए काला डूंगर का विजय विलास पैलेस एक अद्भुत अनुभव का स्थान होगा।

सफेद नमक के मैदानों से घिरी रोड टू हैवन, अपने मनोरम दृश्यों से हर पर्यटक का मन मोह लेती है। 30 किलोमीटर लंबी ये सड़क खावड़ा और धोलावीरा को आपस में जोड़ती है और इसपर यात्रा करना बहुत ही खास अनुभव होता है।

18वीं शताब्दी का लखपत फोर्ट हमें प्राचीन भारत के गौरव से जोड़ता है।

माता नो मढ़ आशापुरा मंदिर कच्छ की धरती पर हमारी आध्यात्मिक चेतना का शक्ति तीर्थ बन जाता है।

श्यामजी कृष्ण वर्मा स्मारक और क्रांति तीर्थ पर श्रद्धांजलि अर्पित करके अपने स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ सकते हैं।

और इन सब के साथ, रण उत्सव कच्छ की इस यात्रा में आप हस्तशिल्प के एक अद्भुत संसार से जुड़ सकते हैं। इस हस्तशिल्प मेले में हर उत्पाद की एक अलग पहचान है। ये उत्पाद कच्छ के लोगों की कलाओं से पूरी दुनिया को जोड़ते हैं।

कुछ समय पहले ही मुझे स्मृति वन के लोकार्पण का उत्सव मिला था। जिन लोगों ने 26 जनवरी 2001 के विनाशकारी भूकंप में अपना जीवन बनाया, ये उनकी स्मृतियों का स्मारक है। यहां दुनिया का सबसे खूबसूरत संग्रहालय है, जिसे 2024 का UNESCO Prix Versailles Interiors World Title मिला है! यह भारत का एकमात्र ऐसा संग्रहालय है, जिसे यह विशेष उपलब्धि हासिल हुई है। यह स्मारक हमें हमेशा याद दिलाता है कि कैसे बहुत विपरीत और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी हमारा मन, हमारी भावनाएं हमें फिर से आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं।

तब और अब को बताने वाली तस्वीर:

करीब दो दशक पहले स्थितियां ऐसी थीं कि अगर आपको कच्छ आने का निमंत्रण मिलता, तो आप सोचते कि कोई मजाक कर रहा है। कारण ये था कि तब तक भारत के सबसे बड़े जिलों में से एक होने के बावजूद भी, कच्छ बहुत बेहाल स्तिथि में था। ये स्थितियां तब थीं, जब कच्छ में एक तरफ रेगिस्तान था, दूसरी तरफ पाकिस्तान था। लेकिन सुरक्षा और पर्यटन दोनों ही क्षेत्र में ये स्थान पिछड़ा हुआ था।

कच्छ ने 1999 में चक्रवात और 2001 में भीषण भूकंप का सामना किया था। यहां सूखे की समस्या रहती थी। खेती के पर्याप्त साधन नहीं थे। यही कारण था कि अन्य लोग इसके अच्छे भविष्य की सोच तक नहीं पाते थे।। लेकिन वो नहीं जानते थे कि कच्छ के लोगों की ऊर्जा, उनकी इच्छा शक्ति क्या है। दो दशकों में अपनी मेहनत से, कच्छ के लोगों ने अपना भाग्य बदला। 21वीं शताब्दी के शुरुआत से कच्छ में एक परिवर्तन की भी शुरुआत हुई।

हम सबने मिलकर कच्छ के समावेशी विकास पर काम किया। हमने Disaster Resilient Infrastructure बनाने पर फोकस किया। इसके साथ ही यहां ऐसी आजीविका पर जोर दिया, जिससे यहां के युवाओं को काम की तलाश में अपना घर ना छोड़ना पड़े।

यही कारण है कि 21वीं सदी के पहले दशक के अंत तक जो धरती सूखे के लिए जानी जाती थी, वह आज कृषि के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियों के पड़ाव पर है। यहां के आम सहित कई फल विदेशी बाजार में एक्सपोर्ट हो रहे हैं। कच्छ के हमारे किसान भाई-बहनों ने ड्रिप सिंचाई और अन्य तकनीकों से खेती को बहुत समृद्ध किया है। इससे पानी की हर बूंद के संरक्षण के साथ अधिकतम उत्पादकता सुनिश्चित हुई है।

गुजरात सरकार के औद्योगिक विकास पर जोर देने से इस जिले में निवेश को भी काफी बढ़ावा मिला है। हमने कच्छ के तटीय क्षेत्र का उपयोग करके इसे एक महत्वपूर्ण समुद्री व्यापार केंद्र के रूप में फिर से स्थापित करने का काम किया।

कच्छ में पर्यटन की संभावनाओं को और विस्तार देने के लिए 2005 में कच्छ रण उत्सव की शुरुआत की गई थी। आज यह स्थान एक Vibrant Tourism Centre बन चुका है। रण उत्सव को देश-विदेश के कई अवॉर्ड्स मिल चुके हैं।

हर साल धोरडो गांव में रण उत्सव का आयोजन होता है। ये प्रसन्नता और गर्व की बात है कि इस गांव को United Nations World Tourism Organization ने 2023 का बेस्ट टूरिज्म विलेज घोषित किया। इस गांव की संस्कृति, पर्यटन और यहां हुआ विकास हर देशवासी को गौरव से भर देता है।

मुझे विश्वास है कि आप सब भी, कच्छ की विरासत भूमि को देखने यहां आएंगे और अपनी इस यात्रा के अनुभवों से दूसरों को भी यहां आने की प्रेरणा देंगे। जब आप इन अनुभवों को सोशल मीडिया पर साझा करेंगे, तो पूरा विश्व भी इनसे जुड़ेगा। इस संस्कृति और आतिथ्य के भाव को जी सकेगा।

इसी आमंत्रण के साथ, मैं आप सभी को नववर्ष 2025 के लिए भी शुभकामनाएं देता हूं। आने वाला साल आपके और आपके परिवार के लिए सफलता, समृद्धि और आरोग्यपूर्ण जीवन लेकर आए, यही प्रार्थना है।