प्रिय मित्रों,

शिक्षक दिवस के अवसर पर मैनें गुजरात के 1.5 करोड़ से भी अधिक विद्यार्थियों और शिक्षकों के साथ वार्तालाप किया था। उस रोचक बातचीत के दौरान अहमदाबाद की एक विद्यार्थी ने मुझसे यह सवाल किया कि उसके परिवार के एक सदस्य की धुम्रपान की आदत छुड़ाने के लिए उसे कैसे कदम उठाने चाहिएं।

इस सवाल में हरेक बेटियों की चिंता समाहित थी और सवाल ह्रदय की गहराइयों से पूछा गया था! छोटी उम्र से ही बेटी इस बात का खयाल रखती है कि कौन-सी बातें उसके परिवार के लिए अच्छी हैं। लेकिन यह सवाल महज बेटियों तक ही सीमित नहीं है। अन्य लाखों लोग, विशेषकर हमारी माताएं और बेटियां गुटखा और सिगरेट की आदत और उसके दुष्प्रभावों से अपने परिवार को बचाने के लिए प्रयासरत हैं, क्योंकि ये आदत उनके परिवारों के टूटने का कारण बन जाती हैं।

यह बताते हुए मुझे खुशी हो रही है कि गुजरात सरकार ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। आप जानते होंगे कि 11 सितंबर, 2012 से गुटखा के इस्तेमाल पर समूचे राज्य में प्रतिबंध लगाया गया है। हम एक ऐसे समाज की रचना करने को प्रतिबद्घ हैं, जहां स्वास्थ्य के लिए हानिकारक गुटखा के सेवन की वजह से किसी भी महिला के विधवा होने की नौबत न आए। हम उस दिन की कल्पना को साकार करना चाहते हैं जब गुटखा सेवन की वजह से किसी बालक को अपने पिता का साया या फिर किसी माता को अपना पुत्र न गंवाना पड़े।

11 सितंबर, 1893 को शिकागो में आयोजित वैश्विक धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने अपने ओजस्वी भाषण से सबको अभिभूत कर दिया था। 119 वर्ष पूर्व जैसे स्वामी विवेकानंद ने समग्र विश्व को भारतीय संस्कृति के माध्यम से अभिभूत कर दिया था- जीत लिया था, इस विशेष दिवस से हम गुटखा के अनिष्ट को दूर करने का अभियान शुरू करें।

आप मानते हैं उससे कहीं ज्यादा गुटखा हानिकारक है। आप को यह जानकर आश्चर्य होगा कि गुटखा की कीमत बादाम से भी ज्यादा है। हालांकि जिन्हें गुटखा खाने की आदत है वह इस बात को कभी नहीं समझेंगे और अपने पतन के रास्ते पर बढ़ते चले जाएंगे, जहां से कभी लौट पाना मुमकिन नहीं। हमें स्वयं से यह सवाल पूछना चाहिए कि, गुटखा पर बर्बाद किया जाने वाला पैसा क्या मानव जीवन के मूल्य से भी बढक़र है? न सिर्फ मनुष्य बल्कि गायें भी गुटखा की शिकार बन रहीं हैं। अक्सर देखा गया है कि गायें भी गुटखा के पैकेट खाती हैं, जो उनके स्वास्थ्य पर गंभीर असर डालता है। लिहाजा, गुटखा को ना कहने से आप मानव जीवन के साथ-साथ गो माता को भी बचा सकेंगे।

मित्रों, गुजरात को गुटखा रूपी राक्षस से बचाने के लिए सरकार के प्रयासों में अधिक से अधिक सहयोग की अपेक्षा है! हमारी जिन्दगी से गुटखा को दूर कर युवाओं को कैन्सर के रोग से बचाने के लिए हम सब को मिल-जुलकर काम करना होगा। मुझे यकीन है कि सही दिशा में मदद और मार्गदर्शन से यह संभव होगा। लेकिन यदि आप सोचते हैं कि महज चेतावनी देने से गुटखा खाने की आदत छूट जाएगी, तो यह आपकी भूल है। गुटखा की आदत छुड़ाने के लिए आपको दूसरे उपाय भी आजमाने होंगे। जैसे कि, यदि आपके परिवार के किसी सदस्य को गुटखा खाने की तीव्र इच्छा हो तो, आप उसके साथ बाहर सैर पर निकलें या मधुर संगीत सुनें या फिर साथ बैठकर चाय या कॉफी पीने के बहाने उनका ध्यान बांटें। धीरे-धीरे आप देखेंगे कि उनके गुटखा सेवन में कमी आ रही है। आप उन्हें ऐसे मरीजों की तस्वीरें बताएं जिन्हें गुटखा खाने की वजह से कैन्सर हुआ है। मुझे विश्वास है कि एक बार ऐसी तस्वीरें देखने के बाद वे गुटखा सेवन को लेकर अवश्य पुन:विचार करेंगे। आपका प्यार, भावनाएं और देखभाल उन्हें इस आदत से बाहर निकलने में मददगार होंगी।

और इसलिए ही मैंने आपको इस अभियान से जुड़ने का आमंत्रण दिया है। मैं आपसे विनती करता हूं कि अपना फोन उठाएं और 8000980000 पर मिस कॉल करें। इसके अलावा यदि आपके पास गुटखा के नुकसान से संबंधित फोटोग्राफ्स या मूवी हों तो उसे अन्य लोगों को बताएं। आप निबंध लिखकर या इस विषय पर लघु फिल्म या पोस्टर तैयार कर उसे वेबसाइट पर रख सकते हैं, ताकि सभी लोग उसे देख सकें। सोशल मीडिया के उपयोगकर्ता प्त नो टू गुटखा टैग के साथ गुटखा के दुष्प्रभाव और उसकी आदत छुड़ाने के लिए योग्य संदेश भेज सकते हैं। यह बताता है कि हमारे द्वारा उठाया गया एक छोटा कदम बड़ा बदलाव ला सकता है।

जूनागढ़ में स्वाधीनता दिवस समारोह के मौके पर मैंने गुटखा पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी, तब मैंने सोचा न था कि इतने बड़े स्तर पर सहयोग प्राप्त होगा। जूनागढ़ में घोषणा के तुरंत बाद ही समारोह में उपस्थित एक स्वतंत्रता सेनानी ने मुझे गुटखा का पैकेट देकर कहा कि, आज से गुटखा बंद। अनेक बहनों ने सहयोग व्यक्त करते हुए मुझे पत्र लिखा है। मेरे लिए यह ह्रदयस्पर्शी अनुभव था।

मुझे भरोसा है कि हम साथ मिलकर स्वस्थ गुजरात का निर्माण करेंगे, जहां गुटखा एक इतिहास बनकर रह जाएगा।

 

आपका,

नरेन्द्र मोदी

 

 

Gutka Mukti Abhiyan- A historic step!
Seers from different faiths extend support to Gutka Mukti Abhiyan
Extend solidarity with Gutka Mukti Abhiyan
If you don't stop Gutka , you can't stop Cancer

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राष्ट्र निर्माण के ‘अटल’ आदर्श की शताब्दी
December 25, 2024

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं...लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं? अटल जी के ये शब्द कितने साहसी हैं...कितने गूढ़ हैं। अटल जी, कूच से नहीं डरे...उन जैसे व्यक्तित्व को किसी से डर लगता भी नहीं था। वो ये भी कहते थे... जीवन बंजारों का डेरा आज यहां, कल कहां कूच है..कौन जानता किधर सवेरा...आज अगर वो हमारे बीच होते, तो वो अपने जन्मदिन पर नया सवेरा देख रहे होते। मैं वो दिन नहीं भूलता जब उन्होंने मुझे पास बुलाकर अंकवार में भर लिया था...और जोर से पीठ में धौल जमा दी थी। वो स्नेह...वो अपनत्व...वो प्रेम...मेरे जीवन का बहुत बड़ा सौभाग्य रहा है।

आज 25 दिसंबर का ये दिन भारतीय राजनीति और भारतीय जनमानस के लिए एक तरह से सुशासन का अटल दिवस है। आज पूरा देश अपने भारत रत्न अटल को, उस आदर्श विभूति के रूप में याद कर रहा है, जिन्होंने अपनी सौम्यता, सहजता और सहृदयता से करोड़ों भारतीयों के मन में जगह बनाई। पूरा देश उनके योगदान के प्रति कृतज्ञ है। उनकी राजनीति के प्रति कृतार्थ है।

21वीं सदी को भारत की सदी बनाने के लिए उनकी एनडीए सरकार ने जो कदम उठाए, उसने देश को एक नई दिशा, नई गति दी। 1998 के जिस काल में उन्होंने पीएम पद संभाला, उस दौर में पूरा देश राजनीतिक अस्थिरता से घिरा हुआ था। 9 साल में देश ने चार बार लोकसभा के चुनाव देखे थे। लोगों को शंका थी कि ये सरकार भी उनकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाएगी। ऐसे समय में एक सामान्य परिवार से आने वाले अटल जी ने, देश को स्थिरता और सुशासन का मॉडल दिया। भारत को नव विकास की गारंटी दी।

वो ऐसे नेता थे, जिनका प्रभाव भी आज तक अटल है। वो भविष्य के भारत के परिकल्पना पुरुष थे। उनकी सरकार ने देश को आईटी, टेलीकम्यूनिकेशन और दूरसंचार की दुनिया में तेजी से आगे बढ़ाया। उनके शासन काल में ही, एनडीए ने टेक्नॉलजी को सामान्य मानवी की पहुंच तक लाने का काम शुरू किया। भारत के दूर-दराज के इलाकों को बड़े शहरों से जोड़ने के सफल प्रयास किये गए। वाजपेयी जी की सरकार में शुरू हुई जिस स्वर्णिम चतुर्भुज योजना ने भारत के महानगरों को एक सूत्र में जोड़ा वो आज भी लोगों की स्मृतियों पर अमिट है। लोकल कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए भी एनडीए गठबंधन की सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसे कार्यक्रम शुरू किए। उनके शासन काल में दिल्ली मेट्रो शुरू हुई, जिसका विस्तार आज हमारी सरकार एक वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के रूप में कर रही है। ऐसे ही प्रयासों से उन्होंने ना सिर्फ आर्थिक प्रगति को नई शक्ति दी, बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों को एक दूसरे से जोड़कर भारत की एकता को भी सशक्त किया।

जब भी सर्व शिक्षा अभियान की बात होती है, तो अटल जी की सरकार का जिक्र जरूर होता है। शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मानने वाले वाजपेयी जी ने एक ऐसे भारत का सपना देखा था, जहां हर व्यक्ति को आधुनिक और गुणवत्ता वाली शिक्षा मिले। वो चाहते थे भारत के वर्ग, यानि ओबीसी, एससी, एसटी, आदिवासी और महिला सभी के लिए शिक्षा सहज और सुलभ बने।

उनकी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कई बड़े आर्थिक सुधार किए। इन सुधारों के कारण भाई-भतीजावाद में फंसी देश की अर्थव्यवस्था को नई गति मिली। उस दौर की सरकार के समय में जो नीतियां बनीं, उनका मूल उद्देश्य सामान्य मानवी के जीवन को बदलना ही रहा।

उनकी सरकार के कई ऐसे अद्भुत और साहसी उदाहरण हैं, जिन्हें आज भी हम देशवासी गर्व से याद करते है। देश को अब भी 11 मई 1998 का वो गौरव दिवस याद है, एनडीए सरकार बनने के कुछ ही दिन बाद पोकरण में सफल परमाणु परीक्षण हुआ। इसे ‘ऑपरेशन शक्ति’ का नाम दिया गया। इस परीक्षण के बाद दुनियाभर में भारत के वैज्ञानिकों को लेकर चर्चा होने लगी। इस बीच कई देशों ने खुलकर नाराजगी जताई, लेकिन तब की सरकार ने किसी दबाव की परवाह नहीं की। पीछे हटने की जगह 13 मई को न्यूक्लियर टेस्ट का एक और धमाका कर दिया गया। 11 मई को हुए परीक्षण ने तो दुनिया को भारत के वैज्ञानिकों की शक्ति से परिचय कराया था। लेकिन 13 मई को हुए परीक्षण ने दुनिया को ये दिखाया कि भारत का नेतृत्व एक ऐसे नेता के हाथ में है, जो एक अलग मिट्टी से बना है।

उन्होंने पूरी दुनिया को ये संदेश दिया, ये पुराना भारत नहीं है। पूरी दुनिया जान चुकी थी, कि भारत अब दबाव में आने वाला देश नहीं है। इस परमाणु परीक्षण की वजह से देश पर प्रतिबंध भी लगे, लेकिन देश ने सबका मुकाबला किया।

वाजपेयी सरकार के शासन काल में कई बार सुरक्षा संबंधी चुनौतियां आईं। करगिल युद्ध का दौर आया। संसद पर आतंकियों ने कायरना प्रहार किया। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले से वैश्विक स्थितियां बदलीं, लेकिन हर स्थिति में अटल जी के लिए भारत और भारत का हित सर्वोपरि रहा।

जब भी आप वाजपेयी जी के व्यक्तित्व के बारे में किसी से बात करेंगे तो वो यही कहेगा कि वो लोगों को अपनी तरफ खींच लेते थे। उनकी बोलने की कला का कोई सानी नहीं था। कविताओं और शब्दों में उनका कोई जवाब नहीं था। विरोधी भी वाजपेयी जी के भाषणों के मुरीद थे। युवा सांसदों के लिए वो चर्चाएं सीखने का माध्यम बनतीं।

कुछ सांसदों की संख्या लेकर भी, वो कांग्रेस की कुनीतियों का प्रखर विरोध करने में सफल होते। भारतीय राजनीति में वाजपेयी जी ने दिखाया, ईमानदारी और नीतिगत स्पष्टता का अर्थ क्या है।

संसद में कहा गया उनका ये वाक्य... सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए...आज भी मंत्र की तरह हम सबके मन में गूंजता रहता है।

वो भारतीय लोकतंत्र को समझते थे। वो ये भी जानते थे कि लोकतंत्र का मजबूत रहना कितना जरुरी है। आपातकाल के समय उन्होंने दमनकारी कांग्रेस सरकार का जमकर विरोध किया, यातनाएं झेली। जेल जाकर भी संविधान के हित का संकल्प दोहराया। NDA की स्थापना के साथ उन्होंने गठबंधन की राजनीति को नए सिरे से परिभाषित किया। वो अनेक दलों को साथ लाए और NDA को विकास, देश की प्रगति और क्षेत्रीय आकांक्षाओं का प्रतिनिधि बनाया।

पीएम पद पर रहते हुए उन्होंने विपक्ष की आलोचनाओं का जवाब हमेशा बेहतरीन तरीके से दिया। वो ज्यादातर समय विपक्षी दल में रहे, लेकिन नीतियों का विरोध तर्कों और शब्दों से किया। एक समय उन्हें कांग्रेस ने गद्दार तक कह दिया था, उसके बाद भी उन्होंने कभी असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया।

उन में सत्ता की लालसा नहीं थी। 1996 में उन्होंने जोड़-तोड़ की राजनीति ना चुनकर, इस्तीफा देने का रास्ता चुन लिया। राजनीतिक षड्यंत्रों के कारण 1999 में उन्हें सिर्फ एक वोट के अंतर के कारण पद से इस्तीफा देना पड़ा। कई लोगों ने उनसे इस तरह की अनैतिक राजनीति को चुनौती देने के लिए कहा, लेकिन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी शुचिता की राजनीति पर चले। अगले चुनाव में उन्होंने मजबूत जनादेश के साथ वापसी की।

संविधान के मूल्य संरक्षण में भी, उनके जैसा कोई नहीं था। डॉ. श्यामा प्रसाद के निधन का उनपर बहुत प्रभाव पड़ा था। वो आपात के खिलाफ लड़ाई का भी बड़ा चेहरा बने। इमरजेंसी केबाद 1977 के चुनाव से पहले उन्होंने ‘जनसंघ’ का जनता पार्टी में विलय करने पर भी सहमति जता दी। मैं जानता हूं कि ये निर्णय सहज नहीं रहा होगा, लेकिन वाजपेयी जी के लिए हर राष्ट्रभक्त कार्यकर्ता की तरह दल से बड़ा देश था, संगठन से बड़ा, संविधान था।

हम सब जानते हैं, अटल जी को भारतीय संस्कृति से भी बहुत लगाव था। भारत के विदेश मंत्री बनने के बाद जब संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण देने का अवसर आया, तो उन्होंने अपनी हिंदी से पूरे देश को खुद से जोड़ा। पहली बार किसी ने हिंदी में संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात कही। उन्होंने भारत की विरासत को विश्व पटल पर रखा। उन्होंने सामान्य भारतीय की भाषा को संयुक्त राष्ट्र के मंच तक पहुंचाया।

राजनीतिक जीवन में होने के बाद भी, वो साहित्य और अभिव्यक्ति से जुड़े रहे। वो एक ऐसे कवि और लेखक थे, जिनके शब्द हर विपरीत स्थिति में व्यक्ति को आशा और नव सृजन की प्रेरणा देते थे। वो हर उम्र के भारतीय के प्रिय थे। हर वर्ग के अपने थे।

मेरे जैसे भारतीय जनता पार्टी के असंख्य कार्यकर्ताओं को उनसे सीखने का, उनके साथ काम करने का, उनसे संवाद करने का अवसर मिला। अगर आज बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है तो इसका श्रेय उस अटल आधार को है, जिसपर ये दृढ़ संगठन खड़ा है।

उन्होंने बीजेपी की नींव तब रखी, जब कांग्रेस जैसी पार्टी का विकल्प बनना आसान नहीं था। उनका नेतृत्व, उनकी राजनीतिक दक्षता, साहस और लोकतंत्र के प्रति उनके अगाध समर्पण ने बीजेपी को भारत की लोकप्रिय पार्टी के रूप में प्रशस्त किया। श्री लालकृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गजों के साथ, उन्होंने पार्टी को अनेक चुनौतियों से निकालकर सफलता के सोपान तक पहुंचाया।

जब भी सत्ता और विचारधारा के बीच एक को चुनने की स्थितियां आईं, उन्होंने इस चुनाव में विचारधारा को खुले मन से चुन लिया। वो देश को ये समझाने में सफल हुए कि कांग्रेस के दृष्टिकोण से अलग एक वैकल्पिक वैश्विक दृष्टिकोण संभव है। ऐसा दृष्टिकोण वास्तव में परिणाम दे सकता है।

आज उनका रोपित बीज, एक वटवृक्ष बनकर राष्ट्र सेवा की नव पीढ़ी को रच रहा है। अटल जी की 100वीं जयंती, भारत में सुशासन के एक राष्ट्र पुरुष की जयंती है। आइए हम सब इस अवसर पर, उनके सपनों को साकार करने के लिए मिलकर काम करें। हम एक ऐसे भारत का निर्माण करें, जो सुशासन, एकता और गति के अटल सिद्धांतों का प्रतीक हो। मुझे विश्वास है, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के सिखाए सिद्धांत ऐसे ही, हमें भारत को नव प्रगति और समृद्धि के पथ पर प्रशस्त करनें की प्रेरणा देते रहेंगे।