एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेन्द्र मोदी के राजनैतिक विरोधियों में एक-एक दिन बीतने के साथ निराशा और लोगों द्वारा खारिज किए जाने का भय बढ़ता जा रहा है। उनका हरेक झूठ पकड़ा जा रहा है, फिर भी, आज वे श्री मोदी की जातिगत स्थिति को लेकर एक नया झूठ बोल रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि ‘मोढ घाँची’ जाति और यह उप जाति गुजरात सरकार की उस सूची (25-बी) में शामिल है जिसमें 146 सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी और अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) को रखा गया है। पूर्व में, मंडल कमीशन ने गुजरात में सर्वेक्षण के बाद इंडेक्स 91 (ए) के अंतर्गत ओबीसी जातियों की एक सूची तैयार की थी जिसमें ‘मोढ घाँची’ जाति शामिल थी। गुजरात राज्य के लिए जारी भारत सरकार की 105 ओबीसी जातियों की सूची में भी ‘मोढ घाँची’ जाति सम्मिलित है।
गुजरात सरकार द्वारा इस उप-जाति को ओबीसी सूची में शामिल करने की अधिसूचना 25 जुलाई 1994 को जारी की गई थी। स्मरण रहे कि उस समय राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और श्री छबिलदास मेहता मुख्यमंत्री थे। यही उप-जाति 4 अप्रैल 2000 की भारत सरकार की अधिसूचना में ओबोसी के रूप में सम्मिलित की गई। जब ये दोनों अधिसूचनाएँ जारी हुईं, श्री नरेन्द्र मोदी उस समय कहीं पर भी सत्ता में नहीं थे और न ही उनके पास कोई कार्यकारी पद था।
वर्ष 2002 की जिस अधिसूचना की बात गुजरात के पूर्व विपक्षी नेता कर रहे हैं, वह वर्ष 2000 की भारत सरकार की अधिसूचना का रीन्फोर्समेंट मात्र है। ये नेता स्वयं 1991 से 1995 तक गुजरात सरकार में राज्य मंत्री थे। अपनी सरकार द्वारा लिए गए फैसलों को इस तरह भूल जाना आश्चर्य की बात है। इससे ये बुनियादी सवाल उठता है कि क्या वे नेता और वह पार्टी समाज के वंचित वर्गों से जुड़ी समस्याओं के प्रति चयनात्मक विस्मृति और गंभीर तिरस्कार की बीमारी से ग्रस्त नहीं हैं।