कुर्सी-भक्त सरकारों ने किया किसानों को बेहालः मुख्यमंत्री
समग्र आदिवासी पट्टे में सिंचाई के लिए ३४०० करोड़ का प्रोजेक्ट बनाया
मध्य गुजरात के कृषि महोत्सव में उमड़ा आदिवासी समाज
गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने गत ४०-५० वर्ष के शासन में भूतकाल की कुर्सी-भक्ति करने वाली सरकारों ने खेती और किसानों की जो बेहाली की उसकी कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि उनकी सरकार ने कुर्सी-भक्ति नहीं वरन कृषि-भक्ति कर कृषि क्रांति को अंजाम दिया है। वनवासी क्षेत्र लीमखेड़ा में आयोजित कृषि महोत्सव में उमड़ी आदिवासी जनता के आनंद में सहभागी बनते हुए श्री मोदी ने कहा कि अंबाजी से उमरगाम तक के समग्र आदिवासी पट्टे में सिंचाई के लिए ३४०० करोड़ रुपये का सिंचाई का विशेष प्रोजेक्ट बनाया है।समस्त गुजरात में १४ मई से शुरू हुए नौवें कृषि महोत्सव अभियान के अंतर्गत आज मध्य गुजरात के दाहोद जिले के लीमखेड़ा में आयोजित कृषि मेले और पशु स्वास्थ्य मेले का मुख्यमंत्री ने उद्घाटन किया। महोत्सव में शिरकत करने के लिए किसान एवं पशुपालकों समेत विराट संख्या में आदिवासी उमड़ पड़े थे। वनवासी क्षेत्र की इस किसान शक्ति का अभिवादन कर श्री मोदी ने कृषि के ऋषि यानी प्रगतिशील किसानों का सम्मान किया। इस मौके पर आणंद कृषि विश्वविद्यालय में अध्ययनरत और कृषि विज्ञान में स्नातक की शिक्षा हासिल करने विदेश से यहां आए विद्यार्थियों ने मुख्यमंत्री का गर्मजोशी से स्वागत किया। आदिवासी क्षेत्र में मिशन मंगलम की सखी मंडल की बहनों ने भी कृषि महोत्सव में अपना कौशल दिखाया है। जिसकी सफलतागाथा की श्री मोदी ने सराहना की।
उन्होंने कहा कि समूचे गुजरात में इस झुलसती गर्मी के बीच भी कृषि महोत्सव की तपस्या का यज्ञ करने वाले किसानों के साथ यह सरकार भी गांव-गांव की खाक छान रही है और किसानों के कल्याण के लिए सभी जिलों में परिश्रम कर रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि चुनाव के दौरान वोट मांगने के लिए राजनेता जब गांव की ओर कूच करते हैं तो वह कुर्सी हासिल करने का राजनीतिक कार्यक्रम होता है। लेकिन गुजरात के कृषि महोत्सव ने यह साबित किया है कि यह सरकार खेती के लिए, किसानों के लिए खेत-खेत घूम रही है।श्री मोदी ने कहा कि जिन्हें कुर्सी में रुचि थी, उन्हें किसानों की खुशी में रुचि नहीं थी। जिन्होंने ५० वर्ष के शासन में महज कुर्सी-भक्ति ही की, उन्होंने ही किसानों की दुर्दशा की है। जबकि हमनें कुर्सी-भक्ति नहीं बल्कि कृषि-भक्ति कर किसानों की आय को दोगुना किया है। दूध उत्पादन की बिक्री से हुई आय पशुपालन से जुड़ी बहनों के हाथ में पहुंची है। नारी सशक्तिकरण का सबसे बड़ा काम ग्रामीण इलाकों में दूध के कुशल कारोबार से हुआ है। किसानों को मार्गदर्शन देते हुए उन्होंने कहा कि बंटवारे की वजह से जब जमीन के टुकड़े होते हैं, ऐसे में गरीब किसान को चाहिए कि वह देनदार बनने के बजाय ग्रीनहाउस जैसी वैज्ञानिक और आधुनिक खेती की ओर विमुख हो। खेती के विकास के लिए छोटे किसानों को सक्षम बनाने की जरूरत पर बल देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि गुजरात के आर्थिक विकास की सफलता के लिए राज्य के छोटे उद्योगों के विकास की तरह ही छोटे-सीमांत और कम आय वाले किसानों के आर्थिक विकास पर ध्यान केन्द्रित किया है।
वनबंधु कल्याण योजना की रूपरेखा पेश करते हुए श्री मोदी ने कहा कि गत पांच वर्ष के दौरान १५००० करोड़ रुपये कद की इस योजना को सफलता मिलने के बाद अब ४०,००० करोड़ रुपये के आवंटन से इसे अमल में लाया जा रहा है। गुजरात में नई पीढ़ी के नौजवानों के खेती के क्षेत्र से जुड़ने की मिसाल पेश करते हुए उन्होंने कहा कि ये नौजवान महज परंपरागत खेती ही नहीं बल्कि ऑर्गेनिक और मूल्यवर्द्धित खेती के जरिए तगड़ी आय कमा रहे हैं। आदिवासी क्षेत्र में कृषि महोत्सव से खेती और किसानों की आर्थिक स्थिति में आए बड़े बदलाव का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि कुपोषण दूर करने वाले मूंगे के वृक्ष की खेती ने आदिवासी खेती को पोषण की ताकत दी है। इसी तरह एक बीघा जमीन में ग्रीन हाउस बनाकर मूल्यवान केसर की खेती विकसित की है। इन सफलताओं के कृषि महोत्सव के जरिए आदिवासियों तक ले जाना है। उन्होंने कहा कि आदिवासी किसान अब उत्तम फूलों की खेती के जरिए अपनी फुलवारी की खूश्बु हिन्दुस्तान में फैला रहा है, यह कृषि क्रांति नहीं तो और क्या है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज से दस वर्ष पूर्व मध्य गुजरात के गरीब आदिवासी किसान रोजी-रोटी के लिए सड़क निर्माण कार्य में मजदूरी करने के लिए पलायन करते थे और बमुश्किल अपना पेट भरते थे। वहीं, आज आदिवासी किसान खेती में अपना पसीना बहा रहा है। इस सरकार ने वनलक्ष्मी योजना बनाई। इसके तहत अपनी जमीन पर वृक्ष उगाकर उसे काटने की मंजूरी हासिल कर सकता है। डांग के किसान इस तरह वृक्ष बेचकर लाखों रुपये कमाने लगे हैं। जंगल में आग लगने की घटनाएं अब गुजरात में नहीं होती क्योंकि जंगल के वृक्षों के सूखे पत्ते से जैविक खाद बनाकर आदिवासी सखी मंडल की बहनें आर्थिक प्रवृत्ति कर रही हैं। श्री मोदी ने पशु स्वास्थ्य मेले का निरीक्षण करते हुए कहा कि जीवदया के संस्कारों को समर्पित इस सरकार ने पशुओं को पीड़ा से मुक्त करने के लिए लेसर पद्धति से शस्त्रक्रिया करने की शुरूआत की है। सखी मंडल की बहनों को बधाई देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि मक्के का बीज बाजार में १६० रुपये में मिलता था। सखी मंडल की बहनों ने तालीम हासिल कर मक्के का संशोधित बीज तैयार किया है जिसकी कीमत ३० रुपये है। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने कृषि को समाज विज्ञान के साथ जोड़ा है। बेटी का जन्म हो तब एक वृक्ष बोकर बेटी के साथ उसका भी पालन-पोषण कर बेटी के विवाह का सारा खर्च इस वृक्ष को बेचकर निकाला जा सकता है। श्री मोदी ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि नौ वर्ष से दिल्ली में बैठी केन्द्र की वर्तमान सरकार ने खेतीबाड़ी के लिए खाद का एक किलो उत्पादन भी नहीं बढ़ाया है। इतना ही नहीं, गुजरात के किसानों को जरूरत के मुताबिक खाद देने में भी केन्द्र अन्याय कर रहा है।
मुख्यमंत्री ने जिले के प्रगतिशील किसानों का सम्मान भी इस मौके पर किया। तहसील स्तर के बेस्ट आत्मा फार्मर्स अवार्ड किसानों को प्रदान किये गए। जिसके तहत १०००० रुपये तथा प्रमाण पत्र किसानों को दिये गए। श्री मोदी ने कृषि प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए विभिन्न स्टॉलों का जायजा लिया और गुजरात की कृषि विकास गाथा और आणंद कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किए गए नवीन संशोधनों की जानकारी विस्तार से हासिल की। दाहोद जिले के प्रभारी मंत्री और राज्य के शिक्षा मंत्री भूपेन्द्रभाई चूड़ास्मा और आदिजाति मंत्री गणपतभाई वसावा ने भी अपने विचार व्यक्त किये। लीमखेड़ा के विधायक और पूर्व मंत्री जसवंतसिंह भाभोर ने स्वागत भाषण दिया।
इस अवसर पर कृषि मंत्री बाबूभाई बोखीरिया, श्रम मंत्री लीलाधरभाई वाघेला, सांसद भरतसिंह परमार, बालकृष्णभाई शुक्ल, विधायक निर्मलाबेन वाघवाणी, मनीषाबेन वकील, दिनेशभाई पटेल, सतीषभाई पटेल, जेठाभाई भरवाड़, संजय पटेल, जयंतीभाई राठवा, योगेशभाई पटेल, जितेंद्र सुखड़िया, बालकृष्णभाई पटेल, बचुभाई खाबड़, रमेशभाई कटारा, दाहोद जिला पंचायत अध्यक्ष शंकरभाई अमलियार सहित आमंत्रित महानुभाव, जिला कलक्टर, जिला विकास अधिकारी और बड़ी संख्या में आदिवासी, किसान और जनता उपस्थित थी।