उत्तम मापदंडों से अदालतों की ग्रेडिंग होनी चाहिए
फास्ट ट्रैक कोर्ट की बंद योजना पर पुनर्विचार जरूरी
अदालतों के उत्तम फैसलों की टेक्नोलॉजी आधारित लोकशिक्षा पर बल
ग्राम न्यायालयों के बजाय तहसील अदालतों का नेटवर्क देश में सुदृढ़ करें
जुवेनाइल जस्टिस को असरदार बनाने पर जोर
न्यायिक प्रक्रिया और न्याय व्यवस्थापन के लिए गुणात्मक न्यायिक सुधार द्वारा आम आदमी को न्याय की अनुभूति कराएं
गुजरात ने नये आयामों से न्याय प्रक्रिया में सुधारात्मक कदमों की सफलतारूप पहल की है
मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज नई दिल्ली में राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की परिषद में ज्यादा गुणवत्तायु्क्त न्यायिक प्रक्रिया के लिए न्याय प्रणाली में गुणात्मक न्यायिक सुधारों की हिमायत की। भारत की न्याय प्रणाली में विभिन्न अदालतों का तहसील से लेकर राज्य स्तर तक ग्रेडिंग करने का प्रेरक सुझाव देते हुए उन्होंने कहा कि कोर्ट की विविध कैटेगरी की ग्रेडिंग के लिए स्टैण्डर्डाइजेशन के पैरामीटर्स तय करने चाहिएं।मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत की अदालतों ने ऐसे अनेक उत्तम फैसले दिए हैं जो दूरगामी असरों वाले तथा प्रभावी साबित हुए हैं। ऐसे फैसलों के न्यायिक असर तथा उनकी सामाजिक स्वीकृति के लिए लोकशिक्षा जरूरी है और तकनीक के जरिए इसके लिए व्यापक प्लेटफार्म खड़ा किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि देश के गरीब एवं आम नागरिकों को उचित समय पर न्याय मिलने की अनुभूति करानी हो तो वर्तमान न्याय प्रक्रिया और प्रबंधन, दोनों में गुणात्मक सुधार करने की आवश्यकता है। गुजरात में न्याय तंत्र और राज्य सरकार की इस दिशा में सकारात्मक भूमिका की वजह से न्याय प्रक्रिया में ढांचागत सुधार और न्याय में होने वाले विलंब को दूर करने की अनेक पहल की गई है, जिसके फलदायी परिणाम मिले हैं।
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आयोजित न्याय विषयक राष्ट्रीय परिषद में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री अल्तमस कबीर और भारत सरकार के कानून मंत्री भी मौजूद थे।
गुजरात के मुख्यमंत्री ने फास्ट ट्रैक कोर्ट की जरूरत को लेकर भारत सरकार से अनुरोध करते हुए कहा कि, केन्द्र सरकार ने फास्ट ट्रैक कोर्ट की योजना को बंद कर दिया है, इस संबंध में पुनर्विचार करने की जरूरत है। श्री मोदी ने कहा कि भारत सरकार की ओर से शुरू की गई फास्ट ट्रैक कोर्ट योजना को एकाएक बंद कर दिया गया और सर्वोच्च न्यायालय के दखल के बाद बढ़ाई गई उसकी अवधि भी मार्च-२०११ को समाप्त हो गई। उन्होंने कहा कि गुजरात में तकरीबन १६६ फास्ट ट्रैक अदालतें कार्यरत थीं जिनमें चार लाख मामलों का निपटारा किया गया। आम आदमी को भी इन अदालतों में त्वरित न्याय का विश्वास था, इसके बावजूद योजना को बंद कर दिया गया। ऐसे में गुजरात सरकार ने अपने स्वयं के कोष से ४५ फास्ट ट्रैक अदालतें चालू रखी हैं। इस सन्दर्भ में केन्द्रीय कानून मंत्री ने त्वरित अदालतों की उपयोगिता को लेकर श्री मोदी के विचारों का समर्थन किया।मुख्यमंत्री ने वर्ष-२००९ में आयोजित ऐसी ही राष्ट्रीय परिषद में ग्राम न्यायालय योजना शुरू करने के मामले में हुई चर्चा का उल्लेख करते हुए कहा कि ग्राम न्यायालय का प्रकल्प फलदायी साबित नहीं हुआ है और उस वक्त उनके द्वारा व्यक्त की गई शंका आज सच साबित हो रही है। देश के लगभग चार राज्यों में ही तकरीबन १५२ ग्राम न्यायालय चल रहे हैं। जबकि इसके सक्षम विकल्प के तौर पर गुजरात सरकार ने तहसील अदालतों के व्यापक नेटवर्क की व्यवस्था विकसित की है। इन तहसील अदालतों द्वारा समय-समय पर सप्ताह में एक बार मोबाइल कैम्प आयोजित कर तहसील स्तर तक न्याय की प्रक्रिया का नेटवर्क खड़ा किया जा सकता है। लिहाजा, ग्राम न्यायालय के बजाय मुख्यमंत्री ने तहसील अदालत को उत्तम विकल्प के तौर पर स्वीकारने का अनुरोध किया।
इस सन्दर्भ में गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने तहसील अदालत की उपयोगिता का समर्थन करते हुए कहा कि, राज्य की १८३ तहसीलों में तहसील अदालतें कार्यरत हैं और शेष तहसीलों में भी ऐसी अदालतें कार्यरत की जाएंगी। नतीजतन आम आदमी को २० किमी. के दायरे में अदालती सुविधाएं उपलब्ध करायी जा सकेंगी। केन्द्रीय कानून मंत्री ने तहसील अदालत के प्रकल्प से सहमति दर्शाते हुए प्राथमिक चरण में मोबाइल तहसील कोर्ट शुरू करने की मंशा जतायी।
मुख्यमंत्री ने गुजरात में सांध्य अदालतों की सफलता को प्रेरक करार देते हुए कहा कि राज्य में १०२ सांध्य अदालतों द्वारा अब तक नौ लाख मामलों में गरीबों को न्याय दिया गया है। समग्र देश में गुजरात ने सांध्य अदालतों को लेकर पहल की है। श्री मोदी ने कहा कि पांच वर्ष पूर्व उन्होंने अदालतों में लंबित मामलों और न्याय तंत्र पर उसके बोझ की गंभीर समस्या के निराकरण के लिए तीन प्रकार के सुझाव दिए थे। इसके तहत, अदालतों के दैनंदिन कामकाज का समय बढ़ाने, सांध्य अदालतें स्थापित करने और अदालतों के अवकाश समय (वेकेशन) में कटौती करने जैसे सुझाव शामिल थे। गुजरात में न्याय तंत्र के सहयोग से इन तीनों ही मामलों में पहल की गई और उसके फलदायी नतीजे भी मिले।
सूचना-प्रौद्योगिकी का अदालतों की न्यायिक प्रक्रिया और प्रबंधन में उपयोग करने की जरूरत पर बल देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि गुजरात उच्च न्यायालय ने सुगठित कंप्यूटर टेक्नोलॉजी नेटवर्क कार्यरत किया है, जिसका लाभ न्याय क्षेत्र से संबंधित सभी लोगों को मिल रहा है। ज्यादातर जिला अदालतें जी-स्वान (गुजरात-स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क) कनेक्टिविटी से जुड़ी हुई हैं और राज्य की सभी तहसील स्तर की अदालतों के बार एसोसिएशन के लिए कानून संबंधित पुस्तकों की ई-लाइब्रेरी का नेटवर्क भी खड़ा किया है।मुख्यमंत्री श्री मोदी ने अदालतों के न्यायाधीश सिर्फ और सिर्फ गुणवत्तायुक्त न्याय प्रणाली की प्रक्रिया में पूर्ण रूप से कार्यरत रहें, इसके लिए कोर्ट मैनेजमेंट के न्यायिक सुधार का सुझाव देते हुए कहा कि, अदालतों में गैर-न्यायिक स्टाफ (नॉन ज्युडिशियल स्टाफ) की नियुक्ति कर कोर्ट मैनेजमेंट की अलग व्यवस्था खड़ी करनी चाहिए। गुजरात ने इस दिशा में पहल की है और उच्च न्यायालय में दो कोर्ट मैनेजर तथा प्रत्येक जिला अदालत में एक-एक समेत कुल मिलाकर २५ कोर्ट मैनेजर की गैर-न्यायिक व्यवस्था खड़ी की गई है।
वर्तमान दौर में अपराध में टेक्नोलॉजी के उपयोग और साइबर क्राइम जैसे जटिल अपराधों की बढ़ रही संख्या के मद्देनजर क्राइम डिटेक्शन के लिए वैज्ञानिक स्तर पर न्यायिक प्रक्रिया के प्रशिक्षण की जरूरत बतलाते हुए श्री मोदी ने इस सन्दर्भ में गुजरात में फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी और रक्षाशक्ति यूनिवर्सिटी के संयोजन से न्याय तंत्र के लिए भी विशेष प्रकार के प्रशिक्षण का प्रबंध किया है। उन्होंने सुझाव दिया कि अन्य राज्यों की अदालतें भी इसका लाभ ले सकती हैं। मुख्यमंत्री ने राज्य की अदालतों में प्रादेशिक भाषा में न्यायिक प्रक्रिया और सुनवाई शुरू करने संबंधी सुधार पर जोर देते हुए कहा कि भारत के संविधान में भी देश की प्रादेशिक भाषाओं के महत्तम उपयोग के लिए स्पष्ट निर्देश दिये गए हैं, ऐसे में न्यायिक अदालतों में भी प्रादेशिक भाषा में कामकाज होना चाहिए जो मुवक्किलों और आम आदमी को समझ आए।
मुख्यमंत्री ने जुवेनाइल जस्टिस और बच्चों से संबंधित अपराधों के लिए न्यायिक प्रक्रिया में गुणवत्तायुक्त सुधार और व्यवस्थापन संबंधी प्रेरक सुझाव दिये। उन्होंने कहा कि देश में चिल्ड्रन ऑब्जर्वेशन होम, ओल्ड एज होम, बाल संरक्षण गृह जैसी अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं। इन्हें एक छत तले लाकर एक ही कैम्पस में ऐसे बच्चों के संस्कार सिंचन और सुधारात्मक कदम संबंधी व्यवस्था विकसित की जानी चाहिए। गुजरात ने इस दिशा में पहल की है। गुमशुदा बच्चों की ट्रेसिंग के लिए उन्होंने टेक्नोलॉजी व्यवस्था पर जोर दिया और सुझाव दिया कि देश के विभिन्न राज्यों में अनाथ आश्रमों, बाल संरक्षण गृहों और ऑब्जर्वेशन होम में आने वाले बच्चों की डाटा बैंक तैयार की जानी चाहिए। भारत सरकार को चाहिए कि वह इस संबंध में टेक्नोलॉजी आधारित एक अलहदा मैकेनिज्म खड़ा करे।
परिषद में गुजरात के विधि मंत्री भूपेन्द्रसिंह चूड़ास्मा, राज्य मंत्री प्रदीपसिंह जाडेजा, कानून विभाग के सचिव, तथा मुख्यमंत्री के अतिरिक्त प्रधान सचिव जी.सी. मुर्मु सहित गुजरात सरकार के नई दिल्ली स्थित निवासी आयुक्त भरत लाल भी मौजूद थे।