Place : महात्मा मंदीर, गांधीनगर  Date:17 अगस्त - 2013

मंच पर विराजमान मंत्री परिषद के मेरे साथी श्रीमान् भूपेन्द्र सिंह जी चुडासमा, श्री जयंती भाई, हरियाणा से पधारे हुए मंत्री श्री धर्मवीर जी, मंत्री श्री गोविंद भाई, केन्द्र सरकार से पधारे सभी अधिकारी, देश के भिन्न भिन्न राज्यों से आए हुए प्रशासनिक अधिकारी और ग्रामीण विकास के लिए प्रयत्नरत सभी मेरे प्यारे देशवासियों..!

आज इस महात्मा मंदिर में एक लघु ग्रामीण भारत का मुझे दर्शन हो रहा है। हिन्दुस्तान के 26 राज्यों से और चार केन्द्र शासित प्रदेशों से करीब पाँच हजार प्रतिनिधि इस समारोह में मौजूद हैं और इसलिए मैं कहता हूँ कि एक लघु ग्रामीण भारत आज मेरे सम्मुख बैठा है। सरदार पटेल, महात्मा गांधी, दयानंद सरस्वती की इस पवित्र भूमि पर मैं आप सबका हृदय से स्वागत करता हूँ..! एक राज्य के निमंत्रण पर इतनी बड़ी मात्रा में देश के कोने-कोने से आप सबका आना हम सबके लिए गर्व की बात है, संतोष की बात है..!

इस कार्यक्रम की रचना के पीछे मूल विचार ये था कि 2012-13 का ये वर्ष पंचायती राज व्यवस्था की गोल्डन जुबली का ईयर है। आज से पचास वर्ष पूर्व गुजरात ने पंचायती राज व्यवस्था को लागू करने की दिशा में कदम उठाए थे। और जब भी पंचायती राज व्यवस्था की बात आती है तब बलवंत राय मेहता का नाम सबसे ऊपर दिखाई देता है जिनके नेतृत्व में, जिनकी सोच के कारण पंचायती राज व्यवस्था का एक खाका खड़ा हुआ और धीरे-धीरे-धीरे वो विकसित होता गया। आज देश के इस क्षेत्र में काम करने वाले सभी लोग मिल बैठ कर के हम पंचायती राज व्यवस्था को और अधिक सुदृढ़ कैसे कर सकें, ग्रामीण विकास की हमारी गति को और अधिक तेज कैसे बनाएं, ग्रामीण विकास की हमारी संकल्पना को और अधिक व्यापक कैसे बनाएं, ग्रामीण विकास की हमारी संकल्पना से ग्रामीण जीवन में क्वालिटी ऑफ लाइफ में कैसे परिवर्तन आए, जीवन स्तर और जीवन के मापदंड में किस प्रकार से नई ऊंचाइयों को हम पार कर सकें... इन सभी बातों का हम विचार-विमर्श करेंगे और मुझे विश्वास है कि आप सबका अनुभव, आप सबका ज्ञान, विविधताओं से भरे हुए हिन्दुस्तान के प्रतिनिधि के तौर पर इस विचार-विमर्श से इस क्षेत्र में काम करने वाले आप सभी को नई प्रेरणा का अवसर मिलेगा, नए उमंग और उत्साह का अवसर मिलेगा..!

ग्रामीण विकास की जब जब चर्चा होती है तो महात्मा गांधी का स्मरण होना स्वाभाविक है। महात्मा गांधी की विदाई के इतने वर्ष हो गए, उसके बाद भी मैं अनुभव से कह सकता हूँ कि ग्रामीण विकास में पूज्य बापू का जो दर्शन था वो आज भी शत प्रतिशत प्रस्तुत है, रिलेंवेंट है..! अगर हम आग्रह पूर्वक पूज्य बापू ने जो ग्राम स्वराज की कल्पना की थी उसको लेटर एंड स्पिरिट में लागू कर पाए होते, तो शायद ग्रामीण विकास के क्षेत्र में हम शहरों से भी बहुत आगे निकल जाते..! आज हम जिस जगह पर बैठ कर चिंतन कर रहे हैं, ये स्थान है ‘महात्मा मंदिर’। गुजरात जब अपना गोल्डन जुबली ईयर मना रहा था तब गांधीनगर में गांधी जी के नाम से कोई एक व्यवस्था विकसित हो इस सोच में से महात्मा मंदिर के विचार का जन्म हुआ था। जिस कक्ष में आप बैठे हैं, उसका ये एक पूरा हिस्सा ऐसा है कि किसी भी हिन्दुस्तानी को गर्व हो ऐसी एक घटना उसमें जुड़ी हुई है। इसका पूरा निर्माण सिर्फ 180 दिन में पूरा हुआ था..! हमारे देश में इसको मिरेकल माना जाए, लेकिन ये इस बात का सबूत है कि भारत के सामान्य मानवी के अंदर कितना सामर्थ्य भरा पड़ा है। अगर सही तरीके से उस सामर्थ्य को काम में लाया जाए तो कितना बड़ा परिणाम दे सकते हैं। वरना 180 दिन में घर की दीवार भी हमारे देश में बनाना दिक्कत होती है, इतना बड़ा स्मारक 180 दिनों में बनाया है..! और मैं आपसे आग्रह करूंगा, मैं पूरे स्मारक की नहीं, मैं इस हिस्से की बात कर रहा हूँ, पूरा स्मारक तो बहुत बड़ा है। और इसकी दूसरी विशेषता ये है कि जब इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ तो जमीन में हमने नींव रखने से पहले गुजरात के सभी गाँवों से सरपंचों को बुलाया और उनसे आग्रह किया कि आप अपने गाँव की पवित्र मिट्टी और गाँव का पवित्र जल ला कर के इसमें डालिए। हमने सभी राज्यों से वहाँ की पवित्र नदी का जल और वहाँ की मिटटी के लिए प्रार्थना की थी, हमने दुनिया के सभी देशों से प्रार्थना की थी, जहाँ कोई ना कोई हिन्दुस्तानी रहता है तो वहाँ की नदी का पवित्र जल और वहाँ की मिटटी..! एक प्रकार से इस भवन के नीचे जमीन में गुजरात के सभी गाँवों की, हिन्दुस्तान के सभी राज्यों की, दुनिया के सभी देशों की पवित्र मिट्टी और जल इसमें समाहित है क्योंकि गांधी जी एक विश्व मानव थे और इसलिए उनकी स्मृति में महात्मा मंदिर बन रहा है तो विश्व का भी किसी ना किसी रूप में इसके अंदर कोई ना कोई जुड़ाव होना चाहिए, उस कल्पना को साकार करने का हमने प्रयास किया था..!

उसी प्रकार से अभी आपने एक फिल्म देखी, सरदार पटेल का स्टेच्यू हम बनाने जा रहे हैं। ये दुनिया का सबसे बड़ा स्टेच्यू बनेगा, ‘स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी’ से इसकी ऊंचाई दोगुना ज्यादा होगी। सरदार पटेल की तीन बातों को हम कभी भूल नहीं सकते। वे एक लौह पुरूष थे, किसान थे और उन्होंने देश की एकता के लिए अविरल काम किया था और इसलिए उस स्टेच्यू का नाम दिया है ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’..! सारे हिन्दुस्तान को एक किया उन्होंने, सारे राजा-महाराजाओं को हिन्दुस्तान की मुख्य धारा में ला दिया। वे किसान थे, महात्मा गांधी के आंदोलन में किसानों को जोड़ने का एक बहुत बड़ा काम उन्होंने किया था। बारडोली का सत्याग्रह आज भी दुनिया में मशहूर है। और वे लौह पुरूष थे, वे दृढ़ संकल्प करने वाले महापुरूष थे। और इसलिए सरदार पटेल के स्टेच्यू का जो निर्माण होगा उसमें भी हम पूरे हिन्दुस्तान को जोड़ना चाहते हैं, किसान को जोड़ना चाहते हैं और लौह पुरूष का स्मरण करवाना चाहते हैं और इसलिए तय किया है कि ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ बनेगा उसके पूर्व हिन्दुस्तान के सभी गाँव से हम लोहा दान में मांगेगे..! हर गाँव से एक पीस, सात लाख गाँव हैं, सात लाख गाँव से सात लाख लोहे का टुकड़ा मांगेगे। लेकिन कोई कहे कि हमारे गाँव में बहुत पुरानी तलवार है, ले जाओ, नहीं..! कोई कहे कि हमारे गाँव में तोप है, ले जाइए, पूरा सरदार साहब का स्टेच्यू तो एक ही तोप से बन जाएगा, नहीं..! हमें तो वो लोहा चाहिए जो किसान ने अपने खेत में, खेती करने के लिए औजार के रूप में उपयोग किया हो उसका टुकड़ा चाहिए, क्योंकि वे किसान थे, क्योंकि वो लौह पुरूष थे, क्योंकि उन्होंने हिन्दुस्तान की एकता का काम किया था इसलिए सात लाख गांवों से लोहा इक्कठा करके, उसको मेल्ट करके फिर उसका उपयोग पूरे प्रोजेक्ट में हम करना चाहते हैं ताकि हर हिन्दुस्तानी को लगे कि इतने बड़े भव्य स्मारक में कहीं ना कहीं मेरा गाँव भी मौजूद है..! राष्ट्रीय एकता की भावना जगाने का प्रयास ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ के जरिए हम कर रहे हैं..! 31 अक्टूबर के बाद गुजरात के सभी गाँवों तक पहुंचने का प्रयास हम करने वाले हैं, सभी राज्यों से हम मदद मांगने वाले हैं, हर गाँव के लोगों से हम मदद मांगने वाले हैं और उसके माध्यम से एक महान कार्य भारत माँ के चरणों में समर्पित करने का हम लोगों का प्रयास है..!

National Conference on Panchayati Raj & Rural Development

महात्मा गांधी ने ग्रामीण स्वराज्य के लिए, ग्राम राज्य के लिए बहुत ही दीर्घ दृष्टि के साथ हम लोगों का मार्गदर्शन किया है। गांधी जी का आग्रह रहता था गाँव में सफाई, गाँव में शिक्षा, गाँव में आरोग्य, गाँव में अस्पृश्यता से मुक्ति, गाँव में रोजगार, स्वावलंबन। ये मूलभूत बातें थी जो महात्मा गांधी ने लगातार हमसे कही थी। आज भी हम गांधी जी की इन बातों को लेकर के चलें और उस पर बल दें तो मैं नहीं मानता हूँ कि गाँवों से लोग शहर की ओर जाने के लिए कभी सोचेंगे, ऊपर से शहर से लोग गाँव की तरफ जाने की दिशा में प्रयास करेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है..!

हमें गाँवों को अधिकार देने पड़ेंगे, गाँवों को हमें आर्थिक निर्णय की प्रक्रिया में जोड़ना पड़ेगा। हमारे यहाँ गुजरात में पहले ग्राम पंचायत में कुछ खर्चा करना होता था तो काफी समय चिट्ठी-चपाटी में चला जाता था। हमने एक निर्णय किया कि पांच लाख रूपये तक कोई भी काम करना है तो ग्रामसभा खुद तय करे और आगे बढ़े..! उसको ऊपर जाने की जरूरत नहीं है..! और गाँव वाले सही करेंगे..! हमारे यहाँ ट्राइबल गांवों के लिए एक छोटा सा प्रयोग किया। गुजरात पेटर्न के नाम से आज भी वो पूरे देश में प्रसिद्घ है और आज भी जहाँ-जहाँ पर ट्राइबल इलाके के विकास की बात होती है तो गुजरात पैटर्न को एक मॉडल के रूप में, मापदंड के रूप में लिया जाता है..! उस गुजरात पैटर्न के अंदर हमने ट्राइबल एरिया डेवलपमेंट के लिए अलग से बजट दिया और हर ट्राइबल विलेज के अंदर कमेटियां बनाई और उन कमेटियों को कहा कि आप निर्णय करो कि आपको गाँव में क्या चाहिए। गांधीनगर में बैठ कर अगर हम निर्णय करते हैं, हम सोचते है कि ये बनाएंगे तो गाँव वाला कहता है कि हमें इसकी जरूरत नहीं, हमें उसकी जरूरत है। फिर सरकार कहती है कि नहीं, हमने तो निर्णय कर लिया है, आपको यही करना होगा और उसके कारण काम होते नहीं हैं, काम उलझ जाते हैं, पैसे पड़े रहते हैं या फिर बेकार चले जाते हैं..! हमने ट्राइबल बेल्ट के अंदर गाँवों वालों को अधिकार दिया और हमारा अनुभव ये रहा है कि उस ट्राइबल कमेटी के माध्यम से विकास के जो काम तय होते हैं वो सचमुच में उनके लिए जो आवश्यक होते हैं वही काम वो पंसद करते हैं और पूरे गाँव को पता होता है कि हमारे गाँव में ये काम होने वाला है, इसलिए ट्रांसपरेंसी की गांरटी होती है। हर किसी की नजर रहती है कि गाँव में क्या काम हो रहा है, कैसे हो रहा है, जितने रूपये दिये गए उस प्रकार से हो रहा है या नहीं हो रहा है और इसलिए पाई-पाई का उपयोग होता है। और पिछले दस वर्षों में मैं कहता हूँ कि ट्राइबल विलेजिज के डेवलपमेंट में लाखों काम अरबों-खरबों रूपयों के खर्च से, गाँव की उस ट्राइबल कमेटी के माध्यम से हुए हैं..! टोटल डिसेंट्रलाइजेशन..! उनको गाइडलाइन दिया, उनको करने के लिए कहा और उन्होंने करके दिखाया..! और इसलिए ग्रामीण विकास में विकेन्द्रीकरण को जितना हम बल देते हैं, जितना सत्ताधिकार हम उन तक पहुंचाते हैं, जितनी जिम्मेदारी उन पर डालते हैं, उतनी ही काम की गति भी बढ़ती है और परिणाम भी मिलता है..!

हमारे यहाँ भूकंप के बाद पुनर्निर्माण एक बहुत बड़ी चैलेंज थी। अगर हम गांधीनगर से बैठ कर ही सारे निर्णय करने जाते तो मैं नहीं मानता हूँ कि इतनी बड़ी मात्रा में हम कुछ कर पाते। लेकिन हमने क्या किया..? सबसे पहले हमने स्ट्रेटजी तय की कि अगर भूकंप के बाद लाइफ में नॉर्मलसी लानी है, तो अगर एक बार स्कूल जल्दी से चालू हो जाए तो नॉर्मलसी लाने में सुविधा होगी, बच्चे स्कूल जाने शुरू हो जाए तो एक माहौल बदल जाएगा..! तो पहले टेंट लगाया, कि स्कूल चालू करो..! फिर क्या किया..? स्कूल के भवन तो टूट गए थे, बच्चों के पास किताबें नहीं थी, कुछ बचा नहीं था... हमने गाँवों में कमेटियाँ बनाई, गाँव की समितियाँ बनाई। गाँव के 10-12 जो प्रमुख लोग थे उनको बैठा दिया। उनको कह दिया कि स्कूल आपको बनाना है, ये डिजाइन है, ये पैसे हैं..! मटैरियल बैंक बनाया, उस मैटेरियल बैंक से उनको लोहा चाहिए, सीमेंट चाहिए, ईंट चाहिए, मिट्टी चाहिए, जो चाहिए वो मैटिरियल बैंक से मिल जाएगा। मैसंस चाहिए तो मैसंस का ट्रेनिंग सेंटर खोल दिया, आप अपने लड़कों को मैसंस के ट्रेनिंग सेंटर में भेजिए..! मैंसंस का ट्रेनिंग हो गया और गाँव को बता दिया कि ये पैसे हैं, आप पूरा करो..! हमारा अनुभव ये रहा कि गाँव के लोगों ने समय से पहले स्कूल का निर्माण किया। सरकार ने तीन कमरे सोचे थे, उन्होंने चार कमरे बनाए..! हमने अगर दो सौ स्क्वेयर मीटर में काम कहा था तो उन्होंने ढाई सौ स्क्वेयर मीटर में किया और खुद के गाँव की जमीन दान में दे दी..! हमने एक मंजिला कहा था तो उन्होंने दो मंजिला बनाई..! गाँव के बच्चों के लिए था इसलिए मजबूती में कोई कोताही नहीं बरती, क्योंकि बच्चों के भविष्य के साथ जुड़ा था, इनका लगाव था..! और मित्रों, मैं गर्व से कहता हूँ कि भूकंप में उनके खुद के घर टूट चुके थे, खुद का सब कुछ बर्बाद हो चुका था, लेकिन उन गाँव वालों को जब ये सामाजिक दायित्व दिया तो उन्होंने सरकार बनाए उससे सौ गुना अच्छी स्कूलें बनाई और सरकार बनाएं उससे जल्दी बनाई..! इतना ही नहीं, आज जब भ्रष्टाचार की चर्चा हो रही है उस काल खंड में, हर परिवार को कोई ना कोई नुकसान हुआ था, हर एक को कोई ना कोई मदद की जरूरत थी, उसके बावजूद भी गाँव की उन कमेटियों ने स्कूल बनने के बाद जितने पैसे बचे थे वो पैसे सरकार में वापिस जमा करवाए..! मित्रों, ये छोटी घटना नहीं है..! ये हमारे हिन्दुस्तान के गाँव की आत्मा की आवाज है..! हमारे देश के गाँव में आज भी प्रमाणिकता पड़ी है, हमारे देश के गाँव में आज भी ईमानदारी का वास है, उस शक्ति को अगर हम पहचानें, उस शक्ति को अगर हम स्वीकार करें और उनको अगर हम समार्थ्य दें तो हम कितना बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं ये हमारे सामने उदारहण मौजूद है..!

पंचायती राज व्यवस्था भी..! देश के लिए जितना महात्मय लोकसभा का है, उतना ही महात्मय गाँव के लिए ग्रामसभा का होना चाहिए, लोकसभा से ग्रामसभा को कम नहीं मानना चाहिए..! अगर लोकसभा देश का भविष्य तय करती है तो ग्रामसभा गाँव का भविष्य तय करती है..! ग्रामसभा को प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए, उसके हर शब्द को इज्जत मिलनी चाहिए, उसकी हर सोच को गंभीरता से लेना चाहिए। और जब पूरी व्यवस्था में ग्रामसभा एक कर्मकांड ना बनते हुए, एक जीवन्त इकाई जब बनती है, ग्रामसभा की सोच राज्य को सोचने के लिए मजबूर करती है तो मैं मानता हूँ कि राज्य के निर्णय भी गाँव की सोच से विपरीत कभी नहीं हो सकते हैं, गति में थोड़ा फर्क हो सकता है, कॉन्ट्राडिक्शन नहीं हो सकता है। और अगर सब मिलकर हम एक दिशा में चलें तो हम विकास की नई ऊचाइयों को बहुत तेजी से पार कर सकते हैं..!

2001 में पहली बार मैं मुख्यमंत्री बना..! 7 अक्टूबर को मैं मुख्यमंत्री बना और 11 अक्टूबर को मैंने पहली प्रेस कांन्फ्रेस की थी, 11 अक्टूबर जयप्रकाश नारायण जी का जन्म दिन था और उस दिन मैंने दो घोषणाएं की थी। मुख्यमंत्री के नाते मैं नया था, मुझे कारोबार का कोई एक्सपीरियंस नहीं था, लेकिन उस समय मैंने दो घोषणाएं की थी। एक, हम ग्रामसभाओं का महात्मय बढ़ाएंगे, ग्रामसभाओं को अधिक अच्छे ढंग से करने के लिए नियम से जोड़ेंगे और दूसरा हमने कहा था, उस समय हमारे यहाँ दस हजार गाँवों में पंचायती चुनाव होने वाले थे। भूकंप के बाद का वो कालखंड था। एक प्रकार से हम आर्थिक रूप से काफी टूट चुके थे। साइक्लोन, अकाल, भूकंप... ना जाने कुदरत की जितनी आपत्तियाँ होती हैं, सारी आपत्तियाँ आकर के हमारे दरवाजे पर आ पड़ी थी..! निराशा का माहौल था, गुजरात मौत की चादर ओढ़ कर सोया था, लग रहा था कि अब हम खड़े नहीं हो पाएंगे..! और उस समय दस हजार पंचायतों के चुनावों को फेस करना था। हमने एक छोटा सा विषय रखा था, ‘समरस ग्राम’..! और ये विचार महात्मा गांधी के विचारों का परिणाम था। आचार्य विनोबा भावे लगातार इसी बात को कहते थे कि लोकसभा का चुनाव होता है तो गाँव दुश्मनी में नहीं बदलता, एसेंबली का चुनाव होता है तो गाँव में दुश्मनी के बीज नहीं बोए जाते हैं, लेकिन जब पंचायत के चुनाव होते हैं तो गाँव के हर घर में दुश्मनी के बीज बोए जाते हैं, ब्याह की हुई बेटी ससुराल से वापिस आ जाती है, गाँव दो टुकड़ों में बंट जाता है, एक दूसरे को मारने पर तुले होते हैं, गाँव का विकास पूरी तरह तबाह हो जाता है और इसलिए विनोबा जी कहा करते थे कि विधानसभा के चुनाव को समझ सकते हैं, लोकसभा के चुनाव को समझ सकते हैं, लेकिन ग्राम पंचायत के चुनाव मिलजुल कर सर्व सम्मति से क्यों ना हो..? गाँव मिलबैठ कर के अपना फैसला क्यों ना करे..? मित्रों, इसके लिए हमने ‘समरस ग्राम’ की योजना बनाई। उस समरस गाँव की योजना के तहत हमने गाँवों को कहा कि जो गाँव मिलजुल कर रिर्जवेशन के सारे नॉर्म्स का पालन करते हुए अपने गाँव की रचना करता है उसको हम विकास राशि के रूप में दो लाख रूपया देंगे..! मुझे याद है, उन दिनों में हम पर बहुत आलोचनाएं हुई, हमले हुए, यहाँ तक कह दिया गया कि ये अनडेमोक्रेटिक है..! अब मैं नया-नया मुख्यमंत्री था, चारों तरफ से आक्रमण हुआ था, सब लोग मौका देख कर के मैदान में आए थे। ईश्वर की कृपा से मैं डिगा नहीं, सरदार पटेल की मिट्टी की संतान हैं, डिगना-विगना हम नहीं जानते..! तो हमने उनको ललकारा। हमने कहा कि 51-49 तो डेमोक्रेसी है, 60-40 भी डेमोक्रेसी है, 80-20 डेमोक्रेसी है तो 100-0 डेमोक्रेसी क्यों नहीं हो सकती..? वो डेमोक्रेसी का पूर्ण रुप है अगर सर्वसम्मति का माहौल बनता है तो..! और मैं आज गर्व से कहता हूँ कि उस पहले प्रयोग में 45% इकाइयाँ ऐसी थी, जिन्होंने समरस ग्राम बनने का संकल्प किया और विकास की यात्रा में जुटे..! और उसका एक परिणाम ये हुआ कि गाँव के अंदर जो जीत कर के आते थे वो अहंकार से भरे रहते थे कि देखिए हमने तुमको गिरा दिया और इसलिए काम करते समय भी जिनको पराजित किया है उस इलाके की उपेक्षा करते थे। जब सर्वसम्मति से बने तो उनका अहंकार तो कहीं रहा नहीं, वो उपर से गाँव को ज्यादा समर्पित हो गए, गाँव के सामने झुक कर के चलने लगे, गाँव के सब लोगों को संतोष हो उस प्रकार के निर्णय करने लगे..! पूरे वर्क कल्चर में बदलाव आ गया, सोच में बदलाव आ गया..! और वो प्रयोग आज भी हमारे यहाँ चल रहा है। मूल विचार तो गांधी जी का था, विनोबा जी के माध्यम से प्रकट हुआ था, लेकिन आज भी गुजरात में समरस गाँव होते हैं और करीब-करीब 40-50% गाँव सहमति के साथ अपनी बॉडी बनाते हैं..!

National Conference on Panchayati Raj & Rural Development

इतना ही नहीं, कुछ गाँवों ने कहा कि इस बार हमारे यहाँ सरपंच के रूप में महिला रिजर्वेशन है, तो गाँववालों ने तय किया कि अगर सरपंच महिला है तो सभी मैंबर भी महिला ही रखेंगे, उनको काम करने का मौका देंगे..! मित्रों, आज महिला सशक्तिकरण की बात होती है तब कोई कानून ना होने के बावजूद भी गुजरात में ढाई सौ से अधिक गाँव ऐसे हैं जिन गाँवों में गाँव के पुरुषों ने तय किया कि हम कोई उम्मीदवारी नहीं करेंगे, गाँव की पूरी बॉडी में सब की सब महिलाएं होंगी, गाँव का संचालन और विकास महिलाएं करेंगी..! ढाई सौ से अधिक गाँव ऐसे हैं जहाँ पूरे कारोबार में एक भी पुरूष का रोल नहीं है। और जब ये तय हुआ तो हमने भी कहा कि वहाँ पटवारी भी महिला को ही अपोइन्ट करेंगे..! हमने एक अलग कमेटी बनाई जिससे महिला पंचायतों को जरा और मार्गदर्शन मिले, जरा और मदद मिले। और मैं हैरान हूँ मित्रों, जो बात गांधी जी ने कही थी वो बात गाँव की महिलाएं कहने लगी..!

एक बार मुझे खेड़ा डिस्ट्रिक्ट से महिलाओं का एक डेलिगेशन मिलने के लिए आया। वो पंचायत की चुनी हुई प्रतिनिधि थी और गाँव में वो सभी महिलाएं पंचायत संभालती थी, एक भी पुरूष नहीं था और वो सब मिलने आई। तो सरपंच महिला थी, ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी, सातवीं-आठवीं कक्षा तक पढ़ी-लिखी होगी..! और बहुत आत्मविश्वास के साथ बैठी थी। मुख्यमंत्री के सामने मुख्यमंत्री से ज्यादा आत्मविश्वास उनका मुझे दिखाई दे रहा था..! मुझे इतना गर्व हुआ कि मेरे से पूछा गया, मैंने उनसे पूछा कि आप सरपंच बने, क्या करोगे आप लोग..? तो मुझे लगता था कि शायद वो ये कहेगी कि हम गाँव में सफाई करेंगे, हम गाँव में मेल-जोल से लोग रहे ऐसा करेंगे..! मेरे लिए हैरानी थी मित्रों, इस देश में किसी के भी लिए उन महिलाओं ने जो एजेंडा दिया, उससे बड़ा कोई एजंडा नहीं हो सकता है..! उन्होंने मुझे कहा कि हम पाँच साल में कुछ ऐसा करना चाहते हैं कि हमारे गाँव में कोई गरीब न रहे..! एक गाँव की चुनी हुई महिलाएं, सातवीं-आठवीं से अधिक कोई पढ़ी-लिखी नहीं थी, उनका सपना था कि हम गाँव में ऐसा कुछ करना चाहते हैं कि अब पाँच साल के भीतर-भीतर हमारे गाँव में एक भी परिवार गरीब न रहे..! मैंने पूछा कि कैसे करोगे..? तो बोले, हम कोई न कोई रोजगार शुरू करना चाहते हैं, कोई आर्थिक प्रवृत्ति करना चाहते हैं..! वो मुझसे रास्ते के लिए पैसे मांगने नहीं आए, पानी की बिजली का बिल माफ करो ऐसा कहने के लिए नहीं आए, टैक्स में जरा ज्यादा हमको फायदा करो ऐसा कहने के लिए नहीं आए..! उन्होंने कहा, आप कोई ऐसी येाजाना हमें दो ताकि वहाँ आर्थिक प्रवृति बढ़े। अगर मेरे गाँव के अंदर आर्थिक प्रवृति बढ़ेगी, रोजगार उपलब्ध होगा तो मेरे गाँव में कोई गरीब नहीं रहेगा..! मैं मानता हूँ कि उस गाँव की महिलाओं का जो सपना था, उससे बड़ा कोई सपना हिन्दुस्तान की बड़ी से बड़ी सरकार का भी नहीं हो सकता..!

मित्रों, हम कल्पना करें कि हमारे देश में छोटे से छोटे स्थान पर बैठे हुए लोग भी किस प्रकार से काम करते हैं..! और हमने देखा है, एक गाँव की महिला सरपंच मुझे मिलने आई थी, उस गाँव के प्रतिनिधि के रूप में। मैंने कहा बताईए, आपका क्या प्रोजेक्ट है..? उन्होंने मुझे बड़ा मजेदार कहा, उन्होंने कहा कि हमने तय किया है कि हमारे गाँव में जितने भी घर हैं, हर एक को हम 100% शौचालय वाला बना देंगे। एक भी घर ऐसा नहीं होगा जहाँ शौचालय ना हो और एक भी परिवार की माँ-बहन ऐसी ना हो जिसको अपनी शौच क्रिया के लिए खुले में जाना पड़े और उसको शर्मिंदगी से जिंदगी जीनी पड़े..! मित्रों, ग्रामीण विकास में आजादी के इतने सालों के बाद क्या हमें पीड़ा नहीं होती है कि हमारी माता-बहनों को शौच क्रिया के लिए खुले में जाना पड़े..? उनकी इज्जत मर्यादाओं को चिंता हो..! और बेचारी दिन के उजाले में जाती नहीं है, दिन भर परेशानियाँ भोगती है, बीमार हो जाती है और अंधेरे का इंतजार करती है..! हम जैसा देश, गांधी जी के सपनों को पूरा करने का संकल्प किया हुआ देश..! और इसलिए मैंने एक बार नारा दिया था। और जिस प्रकार की मेरी छवि है तो मेरे इस नारे के कारण कई लोगों से नाराजगी की संभावना भी रही। मैंने ये कहा था, पहले शौचालय, बाद में देवालय..! मित्रों, ये कहने में बहुत बड़ी हिम्मत लगती है, लेकिन मैंने ये आग्रह से कहा था कि पहले शौचालय बाद में देवालय..! क्या हम संकल्प करके नहीं जा सकते कि हम हमारे गाँव के हर घर में शौचालय के लिए पूरी कोशिश करेंगे..? गुजरात में हमने एक अभियान उठाया है, 80-90% काम हमने पूरा कर दिया है और जो थोड़ा बचा है वो भी पूरा कर देंगे..!

मित्रों, हमने ग्रामीण विकास में एक बात कही है। देखिए, जिम्मेवारी का भी तत्व रहना चाहिए। ये जो देश में चैरेटी वाला मामला चला है ना, रुपए बांटते चलो..! क्यों..? क्योंकि चुनाव जीतने के अलावा और कोई काम ही नहीं बचा इनके पास..! मित्रों, ठोस विकास होना चाहिए, जो लोगों को अपने पैरों पर खड़े रहने की ताकत दे, गाँव की अपनी इकोनॉमी डेवलप हो..! ये अगर नहीं होगा तो हम कितना ही डालते जाएंगे, स्थितियाँ नहीं बदलेंगी। हमने गाँवों को एक छोटा सा सुझाव दिया कि आप गाँव में सफाई का टैक्स लागू कीजिए और गाँव के जो नेता होते हैं वो गाँव में सफाई का टैक्स लगाने के लिए तैयार नहीं होते हैं..! क्यों..? तो फिर हम अगला चुनाव हार जाएंगे..! हमने कहा, चुनाव की चिंता छोड़ो भाई, गाँव की चिंता करो..! सफाई का टैक्स लगाइए, बहुत छोटा, एक पैसा, दो पैसा, बहुत ज्यादा लगाने की जरूरत नहीं है, लेकिन आदत डालो और आप जितना टैक्स लगाओगे मैं उसका मैंचिंग ग्रांट आपको दूंगा और गाँव में सफाई को प्राथमिकता दो..! मित्रों, चीजों को बदला जा सकता है..!

आप देखिए, आज हमारे गाँव में पशुपालन रोजीरोटी का एक महत्वपूर्ण काम है। लेकिन उस पशु के लिए कोई व्यवस्था है क्या..? कोई सोचता ही नहीं है..! और पशु के लिए कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण गाँव की व्यवस्था, अव्यवस्था में बदल जाती है। हमने एक छोटा सा प्रयोग शुरू किया है, एनिमल होस्टल..! अब बच्चों के होस्टल हो ये तो लोग समझ सकते हैं, पशु का भी छात्रालय हो सकता है क्या..? हमने किया है..! यहीं नजदीक में है, कल शायद आपमें से कुछ लोग जाने वाले हैं देखने के लिए..! गाँव के नजदीक में सरकार ने जमीन दी, गाँव के करीब 900 पशु उस छात्रालय में रहते हैं। अब घर के बाहर एक भी पशु खड़ा नही होता। पहले क्या होता था..? एक छोटा सा घर हो, आगे थोड़ी जगह हो, चार पशु हो तो पशु भी बेचारे अपना दिन क्रम बदल लेते थे, एडजस्टमेंट कर लेते थे, स्टेगरिंग सिस्टम लाते थे..! जगह कम होने के कारण दो पशु खड़े रहते थे और दो सो जाते थे, फिर दो पशु खड़े रहते थे और दो सो जाते थे, ऐसे ही गुजारा करते थे..! मित्रों, हम बारीकी से देखें तो उनके अंदर भी कितनी सोच समझ होती है, दो पशु खड़े रहते थे और दो सो जाते थे..! अब उसके पास जमीन नहीं थी, किसी और के घर के आगे बांध नहीं सकता था, करे क्या बेचारा..? पशु छात्रालय बनने के कारण सारे गाँव के पशु वहाँ आ गए। महिलाएं जो 24 घंटे बच्चों कि चिंता नहीं करती थी, लेकिन पशु की करती थी। बच्चा उसकी सेकंड प्रायोरिटी थी, पशु उसकी फर्स्ट प्रायोरिटी थी..! क्योंकि दया का भाव भी था, माँ का हृदय भी था और अबोल पशु की चिंता करना उसके संस्कार थे और आजीविका का साधन भी था..! बच्चा बाद में पशु पहले, ये स्थिति थी और महिलाएं उसी में लगी रहती थी। मित्रों, हमने उसमें बदलाव लाया। अब क्या हुआ, वो बेचारी तीन-चार घंटे होस्टल चली जाती है, वहाँ अपने पशु की संभाल लेती है, दूध दुहना है, खाना है, पिलाना है, बाकी नौकरों से करवा लेती हैं वहाँ। सारा पशु छात्रालय का काम चार नौकरों से चल जाता है और वो महिला पूरा दिन फ्री रहती है। अब वो कोई न कोई आर्थिक प्रवृति करती हैं, बच्चों की देखभाल करती हैं, पूरे गाँव में सफाई रहती है, आरोग्य की सारी समस्याएं दूर हो गई हैं, ऊपर से हॉस्टल में फर्टीलाइजर, गैस, बिजली, मिल्क प्रोडक्शन अतिरिक्त..! गाँव की इनकम में 20% इजाफा हुआ है, बीस परसेंट..! मित्रों, ये छोटी बात नहीं है..! क्या हम गाँव-गाँव गोबर बैंक नहीं बना सकते..? गाँव का सारा गोबर एक बैंक में जमा किया जाए, जैसे पैसे बैंक में जमा करते हैं उस तरह से, और साल भर के बाद जितना जमा किया है उस हिसाब से उसको फर्टीलाइजर वापिस मिल जाए..! जमा किये हुए गोबर से जो गैस उत्पादन हो, उससे जो इनकम हो वो गाँव में बांट ली जाए..! गाँव कैसे सेल्फ सफिशियेंट बने उस पर हम जितना ध्यान देंगे और हमें गाँव को आर्थिक प्रवृति का केन्द्र बनाना चाहिए। ग्राम राज्य का सपना तब पूरा होता है जब गाँव स्वयं आर्थिक प्रवृति का केन्द्र बने, उत्पादन का केन्द्र बने..!

मित्रों, आज हिन्दुस्तान का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर शहरों में ही सीमित होता चला गया है और लोगों को भी लगता है कि ये ठीक है..! भाइयों-बहनों, अगर भारत जैसे देश का विकास करना है तो हमें लघु उद्योगों के माध्यम से, कॉटेज इंडस्ट्रीज के माध्यम से गाँव के अंदर पूरा जाल बिछाना पड़ेगा और उसके लिए उनको जो चाहिए अगर वो वहाँ पहुँच रहा है तो मार्केट की सुविधाएं उपलब्ध करवाना मुश्किल नहीं है। लेकिन अगर स्किल हो, रिसोर्स हो, रॉ मैटेरियल हो, इन्फ्रास्ट्रक्चर हो, सफिशियेंट पावर सप्लाई हो, तो गाँव की ताकत है, गाँव देश के विकास में बहुत बड़ा कान्ट्रीब्यूशन कर सकता है और खेती के सिवाय भी अनेक काम गाँव में किये जा सकते हैं..!

अब देखिए, हमारे यहाँ गाँवों में 24 घंटे बिजली देने का काम हुआ, ‘ज्योतिग्राम योजना’..! और मुझे खुशी है कि मध्य प्रदेश ने भी ‘अटल ज्योति’ के नाम से इसी काम को आगे बढ़ाया। मध्य प्रदेश भी शायद निकट भविष्य में सभी गाँव में 24 घंटे बिजली देने में सफल हो जाएगा। कई जिलों में उन्होंने ये काम पूरा कर दिया। गाँव में जो बिजली जाती है वो बिजली सिर्फ उजाला लेकर आती है ऐसा नहीं है, वो जीवन का नया दर्शन लेकर आती है, जीवन में एक नई ज्योत प्रकटाने आती है..! जब हमने ज्योतिग्राम योजना का लोकापर्ण किया तो उसके साथ हमने बिजली के माध्यम से किन-किन टैक्नोलॉजी को ग्रामीण विकास में लाया जा सकता है उसके निदर्शन किये। कुम्हार जो बेचारा पहले हाथ से काम करता था, अब बिजली का उपयोग करने लगा। धोबी पहले कोयले जलाता था, अब बिजली का उपयोग करने लग गया। कारपेंटर वगैरह सब बिजली के उपयोग से, साधनों के माध्यम से अपनी प्रोडक्टिविटी बढ़ाने लगे। गाँव के जीवन में बिजली आने से मूल्य वृद्घि की सुविधाएं बढ़ने लगी। किसान भी पहले हरी मिर्ची पैदा करता था, अब लाल मिर्ची बना कर के, लाल मिर्ची का पाउडर बना कर के पैकेट में पैक करके बेचने लग गया। जो चीजों से वो तीन लाख रूपया कमाता था, वो बीस-बाइस लाख रूपया कमाने लग गया। मित्रों, मूल्य वृद्घि खेती के क्षेत्र में कैसे हो उस पर हम किस प्रकार से किसानों को बल दें..! दूध है, दूध बेचें तो पैसा कम आता है, दूध की मूल्य वृद्घि करें, उसकी कोई प्रोडक्ट बनाएं तो पैसे ज्यादा मिलते हैं। आलू बेचें तो कम पैसा मिलता है, वेफर्स बेचें तो ज्यादा पैसा मिलता है। आम बेचें तो कम पैसा मिलता है, आम का अचार बनाकर बेचें तो ज्यादा पैसा मिलता है। किसान आसानी से मूल्य वृद्घि कैसे कर सके और पूरे ग्रामीण अर्थकारण को हम जितना बढावा देंगे उतना ही हमारा देश समृद्घ होने वाला है। बेरोजगारी का बोझ गाँव खुद रोजगारी में परिवर्तित करके, आर्थिक बोझ गाँव सहन कर सके इतनी ताकत पड़ी हुई है..!

मित्रों, कानून में भी बहुत बड़े सुधारों की आवश्यकता है। आप में से कई लोगों को पता नहीं होगा, हमारे देश में एक नियम है लेकिन पिछले साठ-सत्तर साल में किसी भी सरकार ने इस नियम का पालन नहीं किया है, उस परंपरा को नहीं निभाया और इस देश का दुर्भाग्य है कि इस पर किसी ने आवाज नहीं उठाई..! जमीन के संबंध में जितने भी कानून और व्यवस्थाएं विकसित हुई वो टोडरमल के सुधारों के नाम से जानी जाती है। एक परंपरा और नियम है कि हर तीस साल में एक बार जितनी भी जमीन है उसको नापना चाहिए, जमीन के टुकड़ों कि दिशाएं तय होनी चाहिए, उसका क्षेत्रफल तय होना चाहिए, उसकी मालिकी तय होनी चाहिए, उस जमीन की क्या हालत है उसको जानना चाहिए, हर तीस साल में एक बार ये होना चाहिए। आज मुझे दुख के साथ कहना है मित्रों, पिछले सौ साल से हिन्दुस्तान में ये काम नहीं हुआ है..! उसके कारण आज से पचास साल पहले जहाँ खेत था और कभी नदी ने रास्ता बदल दिया और वहाँ नदी बन गई, खेत की जमीन चली गई, लेकिन सरकारी दफ्तर पर आज भी खेत है, नदी नहीं है, क्यों..? क्योंकि ये जो काम होना चाहिए वो नही किया। मित्रों, आज मैं संतोष के साथ कहता हूँ कि गुजरात पहला राज्य है जिसने जमीन नापने का एक बहुत बड़ा अभियान चलाया। हम सैटेलाइट सिस्टम का उपयोग कर रहे हैं, आधुनिक टैक्नोलॉजी का उपयोग कर रहे हैं। कौन उसका मालिक है, उसकी जमीन कितनी है, किस दिशा में कहाँ कौन सा कोना पड़ता है, जमीन के अंदर तालाब है, कुआं है, नहीं है, नदी से कितना दूर है, सारी चीजें..! और पूरे गाँव का निकाल कर के गाँव के सामने रखा जाता है, किसी को ऑब्जेक्शन हो तो वो लिखता है। एक प्रकार से गाँव की अपनी जमीन कितनी है, किसान की मालिकी की जमीन कितनी है, औरों की जमीन कौन सी है, कहाँ है, उसका पूरा खाका तैयार हो रहा है। अपनी संपत्ति का अगर हमें मालूम नहीं होगा, हमारी जागीर का हमें पता नहीं होगा तो हम योजनाएं बना नहीं सकते। और बड़ी सफलता पूर्वक इन दिनों गुजरात में ये काम चल रहा है..!

मित्रों, कुछ तो ऐसे पुराने कानून हैं जिसके कारण हमारा गाँव का किसान बहुत परेशान है। हमने बहुत क्रांतिकारी रूप से रिफॉर्म कि दिशा में कदम उठाए..! मित्रों, हमारे देश में रिफॉर्म कि चर्चा हो रही है, लेकिन वो रिफॉर्म का दायरा रूपयों-पैसों से ज्यादा जुड़ा हुआ है, उस रिफॉर्म का दायरा बड़े-बड़े उद्योगों को प्रोत्साहन देने की दिशा में ज्यादा जुड़ा हुआ है..! मित्रों, सच्चे अर्थों में रिफॉर्म की आवश्यकता हो तो रिफॉर्म की प्राथमिकता में ग्रामीण व्यक्ति के लाभ के लिए कौन से रिफॉर्म कर रहे हैं, उसकी कठिनाइयों को दूर करने के लिए रिफॉर्म का हमारा रास्ता क्या है, हमारी पुरानी घिसी-पिटी व्यवस्थाएं जो काल बाह्य हो चुकी हैं, उस से गाँव के लोगों को मुक्ति मिले उसके लिए हम क्या कर सकते हैं, इस पर हमें बल देना चाहिए..! और उसमें सबसी बड़ी रूकावट होती है, रेवेन्यू के कानून। और रेवेन्यू कानून बदलने में लोग डरते हैं क्योंकि वो 200-300 साल पुराने कानून पड़े हैं। उन कानूनों में बदलाव चाहिए..!

हमारे यहाँ एक ‘टुकड़ा धारा’ था। हमारा किसान इतना परेशान था कि उसकी जमीन का एक छोटा टुकड़ा है... क्योंकि बेटे, बेटे के बेटे, जमीन बंटती गई, भाइयों में जमीन बंटती गई, चाचा-मामा में बंटती गई और जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े रह गए..! अगर वो जमीन का टुकड़ा बेचना चाहता था तो नियम ये था कि बगल वाला जो किसान है उसी को उसे वो देना पड़ेगा, किसी ओर को नहीं दे सकता था..! और बगल वाला उसका एक्सप्लोइटेशन करता था। दस रूपया बाजार में चलता हो, तो वो कहता था आठ रूपया दूंगा..! और वो बेचारा उसे रखे तो भी बेमतलब था, और बेचे तो भी बेमतलब था। अब ये कानून के कारण था..! हमने वो टुकड़ा धारा को समाप्त कर दिया और अब वो जमीन का टुकड़ा जिस किसी को बेचना चाहे, बेच सकता है। उसको कलेक्टर की परमीशन की जरूरत पड़ती थी, वो लेने की जरूरत नही है, तुम उसके मालिक हो, जो करना है करो..! और उसके कारण वो जो चाहता था वो मूल्य आज उसे मिलने लगा, उसकी मजबूरी दूर हो गई..!

मित्रों, पहले हमारे यहाँ कानून था कि परिवार में पिताजी ने अगर भाइयों को जमीन बांटी, बहनों को बांटी, बच्चों को बांटी तो उसका भी रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता था और रजिस्ट्रेशन का भी टैक्स इतना होता था, कभी दस हजार, कभी बारह हजार, कभी पन्द्रह हजार रूपया... तो फिर वो किसान सोचता था कि भाई, चलो हम तो भाई-बहन हैं, चिट्ठी लिख देते हैं। तो वो सिर्फ चिट्ठी लिख देते थे, कोई कानूनी कार्रवाई नहीं करते थे और बाद में बीस-पच्चीस साल बाद उनके परिवार में कोई तनाव पैदा होता था तो मामला कोर्ट-कचहरी का बनता था और उस कागज को कोई मानता नहीं था..! ऐसा किया क्यों..? वो दस-पन्द्रह हजार रूपये बचाने के लालच में कर दिया, भाई-भाई के भरोसे के कारण कर दिया..! मित्रों, वक्त बदलता गया, उसके कारण परिवारों में कोर्ट-कचहरी का इतना टकराव पैदा हो गया, परिवार की पूरी शक्ति वकीलों को फी देने में जा रही है। हमने कानून बदल दिया। हमने कहा कि यदि खून का रिश्ता है, एक ही रक्त के संबंध में जमीन ले-बेचनी है तो आपको वो टैक्स नहीं देना पड़ेगा, सिर्फ सौ रूपया फी दे दीजिए और आप अपनी जमीन बदल सकते हैं..! सारा काम कागजी हो गया, अब परिवारों के अंदर कोई दुविधा नहीं रही..!

मित्रों, बहुत तेजी से डेवलपमेंट हो रहा है। डेवलपमेंट के कारण जमीन लेनी पड़ती है। रोड्स बनाने हैं तो जमीन चाहिए, अस्पताल बनाने हैं तो जमीन चाहिए, स्कूल बनाना है तो जमीन चाहिए, लोगों को घर बनाना है तो जमीन चाहिए..! लेकिन कभी-कभी सरकार जमीन एक्वायर करती है तो एक आद परिवार ऐसा होता है जिसकी सारी जमीन चली जाती है। अब वो बेचारा जाएगा कहाँ..? जिस किसान की पाँच एकड़ भूमि हो और पाँचों एकड़ भूमि किसी प्रोजेक्ट में चली जाएगी तो वो क्या करेगा..? हमने एक निर्णय किया कि जिस दिन हम उसकी जमीन लेंगे उसी दिन उसके किसान होने के हक का एक एक्स्ट्रा पत्र उसको देंगे। भले ही उसके पास जमीन नहीं है लेकिन किसान होने का उसका हक जारी रहेगा और दो साल के भीतर-भीतर नजदीक में कहीं पर भी अगर वो जमीन ले लेता है तो आजीवन किसान के रूप में परिवर्तन होगा, किसान के रूप में उसके हक कोई छीन नहीं सकता, ये व्यवस्था की..! और उसके कारण आज हमारे किसानों को पैसा भी मिल रहा है, किसान होने का हक भी चालू रहता है और कहीं ना कहीं सस्ती जमीन लेकर के पहले अगर पाँच एकड़ भूमि है तो आज वो पन्द्रह एकड़ भूमि का मालिक बनता जा रहा है..! अगर सरकार सामान्य मानवी की आवश्यकताओं की पूर्ति करे, विशेषकर के इन जमीन के कानूनों का जितना सरलीकरण हम करें, जितना तेजी से हम रिफॉर्म करें, हमारे किसानों को जितना संकटों को मुक्त करवाएं, गाँव के उतने ही झगड़े मुक्त हो जाएंगे..!

मित्रों, जैसे हमने गुजरात में समरस गाँव की कल्पना की, उसी प्रकार से गोकुल ग्राम की कल्पना की। उस गोकुल ग्राम के तहत हमने गाँव के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर बल दिया। मिनिमम 8-10 आइटम तय की। हर गाँव में पंचायत घर होना चाहिए, हर गाँव में पंचायत घर तक जाने का रास्ता होना चाहिए, हर गाँव में पंचवटी होनी चाहिए, हर गाँव में पीने के पानी की व्यवस्था... ऐसे आठ-दस इन्फ्रास्ट्रक्चर से संबंधित पैरामीटर तय किये और हर गाँव में गोकुल ग्राम का काम किया, करीब-करीब सभी गाँव में उस काम को हमने पूरा कर दिया। फिर हमने सोचा कि हमारा गाँव आज भले गाँव रहा हो, लेकिन गाँव के लोगों की सोच अब ग्रामीण सोच नहीं है, ये मूलभूत परिवर्तन हमको समझना पड़ेगा। स्ट्रक्चर वाइज, जनसंख्या की दृष्टि से वो गाँव है, लेकिन सोच की दृष्टि से वो शहर से पीछे नहीं है..! शहर का नौजवान जो सोचता है, गाँव का नौजवान भी वहीं सोचता है..! शहर की महिला जो सोचती है, गाँव की महिला भी वहीं सोचने लगी है..! आज शहर में ही ब्यूटी पार्लर होते हैं ऐसा नहीं, मैं देख रहा हूँ गुजरात में तो गाँव में भी ब्यूटी पार्लर चल रहे हैं..! सोच पहुँची है मित्रों, हम माने या ना माने, दिमाग में बदलाव के बीज वटवृक्ष बन चुके हैं और इसलिए हम जब विकास का मॉडल करें तब, ये जो ग्रामीण व्यक्ति के एस्पीरेशन्स हैं उन एस्पीरेशन्स को हमें पकड़ना पड़ेगा। उसकी आशा-आकांशाओं के अनुकूल हमें सुविधाएं विकसित करनी पड़ेगी..!

हमने ज्योतिग्राम किया तो गाँव के जीवन में बहुत बदलाव आया, गाँव से शहर की ओर जाने की स्थिति में बदलाव आया। उसके बाद हमने किया, ई-ग्राम विश्व ग्राम..! हिन्दुस्तान में गुजरात एकमात्र राज्य ऐसा है जिसके हर गाँव में ब्राडबेंड कनेक्टिविटी है, ऑप्टीकल फाइबर नेटवर्क है..! जो सुविधा शहर के लोगों को है, इंटरनेट है, मोबाइल है, कम्प्यूटर है, वीडियो कान्फ्रेंस है, सब... सारी सुविधाएं हमने गाँव में दी। आज गुजरात का गाँव अमेरिका में बैठे अपने परिवारजनों से ‘स्काइप’ पर बात करता है, पूरे परिवार के अवसरों को दिखाता है। यहाँ शादी है, रिश्तेदार अगर अमेरिका से नहीं आए हैं तो ऑनलाइन वो शादी के समारोह में उनको शरीक कर देता है। ये गाँव के जीवन में बदलाव आया है। टैक्नोलॉजी का लाभ उसको भी मिला है। उसका परिवर्तन आया है। मैंने ऐसे गाँव देखे हैं कि जहाँ के शमशान में सीसीटीवी कैमरा लगे हैं, ऑनलाइन वीडियो कैमरा लगे हैं और गाँव के किसी रिश्तेदार का वहाँ अग्नि संस्कार हो रहा है और अमेरिका से उसका परिवार नहीं आ सका तो उस अग्नि संस्कार के अंदर वो अपने गाँव में शरीक होता है। इस प्रकार से उनके मन में भी टैक्नोलॉजी की ओर जाने की इच्छा जगी है। हमें ग्रामीण विकास को करना है तो आधुनिक से आधुनिक टैक्नोलॉजी उनको उपलब्ध करवानी चाहिए..! और वो ज्यादा खर्चीला मामला नहीं है। कम्यूनिकेशन टैक्नोलॉजी जितनी ज्यादा हम उपलब्ध करवाएंगे, गाँव टूटने बंद हो जाएंगे, गाँव के जीवन में एक नया परिवर्तन आएगा। उसके मन में जो सोच बदली है, उस सोच के अनुसार गाँव भी बदलेगा और हम उसके पूरक बनेंगे और इसलिए हमने ई-ग्राम विश्व ग्राम की योजना बनाई। ये टैक्नोलॉजी सैट-अप होने के बाद बच्चों की शिक्षा के लिए हम लाँग डिस्टेंस एज्यूकेशन का उपयोग करने लगे। अगर गाँव में टीचर अच्छा नहीं है तो गांधीनगर से सैटेलाइट के माध्यम से उस क्लास के अंदर पढ़ा सकते हैं। टैक्नोलॉजी का लाभ हुआ, बच्चों की शिक्षा में परिवर्तन आया। ये किया जा सकता है..!

इतना ही नहीं, गाँव के व्यक्ति के सामने एक संकट होता है कि वो अपनी शिकायत किसको करे..? क्योंकि गाँव वालों के लिए तो वो पटवारी ही उसका मुख्यमंत्री होता है..! पटवारी की इच्छा नहीं हुई तो गाँव का भला नहीं हो सकता है। गाँव वाले को शिकायत करनी है तो किसको करे, कैसे करे, बेचारा..? उसको पता तक नहीं होता है कि कहाँ जाएं..! मित्रों, हमने दो-तीन रिफॉर्म किये। एक, पंचायत राज व्यवस्था से जो चलता था उसमें हम गोल्डन जुबली ईयर के अंदर ए.टी.वी.टी. कॉन्सेप्ट लाए, ‘अपना तालुका, वाइब्रेंट तालुका’..! पहले जिला इकाई थी जो निर्णय करती थी, अब हमने दो-दो तहसीलों को क्लब करके एक प्लानिंग करने वाली, इम्पलीमेंटेशन करने वाली एक नई व्यवस्था खड़ी की है, और अधिक डिसेन्ट्रलाइज किया है और ग्रामसभा में जो सुझाव आते हैं उन सुझावों को विकास का आधार मानना चाहिए, ये नियम से किया है। और पूरे स्ट्रक्चर में ए.टी.वी.टी. कॉन्सेप्ट ला कर के ग्रामीण व्यवस्था को और सुदृढ करने का प्रयास किया है..!

एक और काम किया है, मित्रों। मैं मानता हूँ कि लोकतंत्र की सबसे बड़ी अगर कोई ताकत होती है तो वो ताकत होती है ‘ग्रीवेंस रिड्रेसल सिस्टम’, हम आम आदमी की शिकायतों का समाधान कैसे करें, फरियाद निवारण कैसे करें, जितनी अच्छी ये व्यवस्था होगी, उतनी ही डेमोक्रेसी स्ट्रेन्दन होगी..! और इसलिए हम ‘स्वागत ऑनलाइन’ कार्यक्रम करते हैं जिसको यूनाइटेड नेशन ने अवॉर्ड दिया है..! गाँव का आदमी ऑनलाइन अपनी शिकायत कर सकता है। उसको गाँव से शहर तक आना नहीं पड़ता है, तहसील या जिले तक जाना नहीं पड़ता है। मित्रों, आज लाखों की तादाद में इन शिकायतों का समाधान ऑनलाइन हो रहा है। और हमारे गाँव को हमने इतना एम्पावर किया है हमने कि कभी किसी गाँव की या गाँव के किसी व्यक्ति की समस्या का समाधान अगर नहीं हुआ तो कलेक्टर कचहरी में डी.एम. के सामने जा कर वो खड़ा हो जाता है..! पैर में जूते नहीं होते हैं, फटे कपड़े होते हैं, शरीर गंदा होता है, पढ़ा-लिखा नहीं है, लेकिन वो डी.एम. के सामने, कलेक्टर के सामने आँख में आँख मिला कर के बोलता है कि साब, आप ये करते हो कि नहीं करते हो, वरना मैं ऑनलाइन जाऊंगा..! जैसे ही वो कहता है कि मैं ऑनलाइन जाऊंगा, कलेक्टर खड़ा हो जाता है और कहता है कि आइए-आइए, बैठिए, क्या प्राबलम है आपको..! ये ताकत है टैक्नोलॉजी की..! हम टैक्नोलॉजी के माध्यम से हमारे गाँव के लोगों को एम्पावर कर सकते हैं और ये एम्पावरमेंट जो है वो आखिरकार परिवर्तन करने के लिए उसको जिम्मेवार बनाता है..!

मित्रों, हमने एक और काम किया, जैसे समरस गाँव किया..! हमने एक योजना बनाई। मित्रों, आज भी दुनिया के लोगों के लिए हमारे देश को समझना बहुत मुश्किल है। जो वेस्टर्न सोच के साथ पले बढ़े लोग हैं, हमारे देश के ही, वो भी हमारे देश की ताकत को नहीं जानते..! मित्रों, इतना बड़ा देश, सात लाख गाँव, सवा सौ करोड़ की जनसंख्या और आज कानून व्यवस्था की इतनी नई-नई झंझटें पैदा हो रही हैं..! इस बीच में भी ये देश ऐसा है कि सात लाख गाँव में सिर्फ पचास हजार पुलिस थाने हैं..! सिर्फ पचास हजार पुलिस थाने होने के बाद भी ये देश सुरक्षा की अनुभूति कर पा रहा है, गाँव सुरक्षा की अनुभूति कर रहा है। क्यों..? क्योंकि मिल-जुल के जीना, रहना ये हमारे ब्लड में है, ये हमारे संस्कार में हैं, ये हमारी बहुत बड़ी विरासत है..! कोई पुलिस का डंडा हमें ठीक नहीं रखता है, हमारे संस्कार हमें ठीक रखते हैं। कोई कानून से हम बंधे हैं इसलिए सही दिशा में जा रहे हैं ऐसा नहीं, हमारे संस्कार हैं जिसके कारण हम चल रहे हैं। वरना इतना बड़ा देश, कोई मानने को तैयार नहीं होगा कि सात लाख गाँव के देश में पचास हजार पुलिस थाने हो, फिर भी सात लाख का देश चल रहा है..! ये जन सामान्य की शक्ति है और इस शक्ति को पहचानने के लिए हमने एक योजना बनाई, ‘तीर्थ ग्राम-पावन ग्राम’..! जो गाँव में तीन साल तक कोई कोर्ट-कचहरी का केस ना हुआ हो, कोई पुलिस थाने में एफ.आई.आर. दर्ज ना हुई हो, कोई कोर्ट-कचहरी का केस नहीं चलता हो, ऐसे गाँव को हम ‘पावन ग्राम’ का सर्टीफिकेट देते हैं और स्पेशल राशि विकास के लिए देते हैं। जिस गाँव में पांच साल से ज्यादा समय तक एक भी ऐसी घटना ना घटी हो, तो उस गाँव को हम ‘तीर्थ ग्राम’ का सर्टीफिकेट देते हैं, उसको अधिक राशि देते हैं। और मित्रों, आज मेरे गुजरात में सैंकड़ों ऐसे गाँव हैं जहाँ पर पाँच-पाँच साल तक एक भी दंगा-फसाद नहीं हुआ है, एक भी एफ.आई.आर. नहीं हुई है, कोई तकलीफ नहीं हुई है..! कुछ गाँवों को तकलीफ हुई तो किस कारण से हुई..? एक्सीडेंट के कारण जो एफ.आई.आर. लिखी गई, उसके कारण वो बेचारा ‘तीर्थ ग्राम’ बनने से रह गया..! तो अभी हम कानून बदल रहे हैं कि अकस्मात होने के कारण अगर कोई कानूनी कार्रवाई होती है तो उसको इसके साथ नहीं जोड़ा जाएगा, क्योंकि एक्सीडेंट तो एक्सीडेंट होता है। मित्रों, अगर हम प्रोत्साहन दें तो लोग सुख-चैन से, भाईचारे से जीने के लिए तैयार होते हैं..! पावन ग्राम, तीर्थ ग्राम ये ऐसी कल्पनाएं हैं जो गाँव को विकास का नया मॉडल देती है..!

मित्रों, रिफॉर्म का केन्द्र गाँव होना चाहिए, रिफॉर्म का केन्द्र गाँव का सामान्य मानवी होना चाहिए, निर्णय शक्ति में गाँव को हिस्सेदार बनाना चाहिए, हम जितनी बड़ी मात्रा में इन मूलभूत बातों को लेकर के चलेंगे तो आज जब हम पंचायती राज व्यवस्था के 50 साल मना रहे हैं तब पूरी व्यवस्था सशक्त होगी और हमारा गाँव सशक्त होगा तभी देश सशक्त होगा, हमारा गाँव उत्पादन का केन्द्र बनेगा तो हिन्दुस्तान मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में आगे बढ़ेगा, हमारे गाँव में रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी, तो ही देश में से बेरोजगारी जाएगी, गाँव आर्थिक संपन्नता को प्राप्त करेगा, तब हिन्दुस्तान संपन्नता को प्राप्त करेगा और इसलिए आर्थिक संपन्नता के लिए भी गाँव को इकाई बना करके हम आगे चलते हैं तो हम बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं, इन्हीं शब्दों के साथ फिर एक बार मैं आप सबका स्वागत करता हूँ..! मुझे विश्वास है कि आज और कल ग्रामीण विकास, पंचायती राज व्यवस्था के लिए अनेक नए सुझावों के साथ हम लोग चर्चा-विचार करते रहेंगे, अनेक नई बातों की ओर चर्चा-विचार करते रहेंगे। फिर एक बार आप सबको बहुत-बहुत शुभ कामनाएं..!

भारत माता की जय..!

भारत माता की जय..!

भारत माता की जय..!

Explore More
140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी

लोकप्रिय भाषण

140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी
Snacks, Laughter And More, PM Modi's Candid Moments With Indian Workers In Kuwait

Media Coverage

Snacks, Laughter And More, PM Modi's Candid Moments With Indian Workers In Kuwait
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
भारत और कुवैत का रिश्ता; सभ्यताओं, सागर और कारोबार का है: पीएम मोदी
December 21, 2024
कुवैत में प्रवासी भारतीयों की गर्मजोशी और स्नेह असाधारण है: प्रधानमंत्री
43 वर्षों के बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री कुवैत की यात्रा कर रहा है: प्रधानमंत्री
भारत और कुवैत के बीच सभ्यता, समुद्र और वाणिज्य का रिश्ता है: प्रधानमंत्री
भारत और कुवैत हमेशा एक-दूसरे के साथ खड़े रहे हैं: प्रधानमंत्री
भारत कुशल प्रतिभाओं की वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए पूरी तरह से सुसज्जित है: प्रधानमंत्री
भारत में स्मार्ट डिजिटल प्रणाली अब विलासिता की वस्तु नहीं रह गयी है, बल्कि यह आम आदमी के दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गयी है: प्रधानमंत्री
भविष्य का भारत वैश्विक विकास का केंद्र होगा, दुनिया का विकास इंजन होगा: प्रधानमंत्री
भारत, एक विश्व मित्र के रूप में, विश्व की भलाई के दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ रहा है: प्रधानमंत्री

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

नमस्कार,

अभी दो ढाई घंटे पहले ही मैं कुवैत पहुंचा हूं और जबसे यहां कदम रखा है तबसे ही चारों तरफ एक अलग ही अपनापन, एक अलग ही गर्मजोशी महसूस कर रहा हूं। आप सब भारत क अलग अलग राज्यों से आए हैं। लेकिन आप सभी को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सामने मिनी हिन्दुस्तान उमड़ आया है। यहां पर नार्थ साउथ ईस्ट वेस्ट हर क्षेत्र के अलग अलग भाषा बोली बोलने वाले लोग मेरे सामने नजर आ रहे हैं। लेकिन सबके दिल में एक ही गूंज है। सबके दिल में एक ही गूंज है - भारत माता की जय, भारत माता की जय I

यहां हल कल्चर की festivity है। अभी आप क्रिसमस और न्यू ईयर की तैयारी कर रहे हैं। फिर पोंगल आने वाला है। मकर सक्रांति हो, लोहड़ी हो, बिहू हो, ऐसे अनेक त्यौहार बहुत दूर नहीं है। मैं आप सभी को क्रिसमस की, न्यू ईयर की और देश के कोने कोने में मनाये जाने वाले सभी त्योहारों की बहुत बहुत शुभकानाएं देता हूं।

साथियों,

आज निजी रूप से मेरे लिए ये पल बहुत खास है। 43 years, चार दशक से भी ज्यादा समय, 43 years के बाद भारत का कोई प्रधानमंत्री कुवैत आया है। आपको हिन्दुस्तान से यहां आना है तो चार घंटे लगते हैं, प्रधानमंत्री को चार दशक लग गए। आपमे से कितने ही साथी तो पीढ़ियों से कुवैत में ही रह रहे हैं। बहुतों का तो जन्म ही यहीं हुआ है। और हर साल सैकड़ों भारतीय आपके समूह में जुड़ते जाते हैं। आपने कुवैत के समाज में भारतीयता का तड़का लगाया है, आपने कुवैत के केनवास पर भारतीय हुनर का रंग भरा है। आपने कुवैत में भारत के टेलेंट, टेक्नॉलोजी और ट्रेडिशन का मसाला मिक्स किया है। और इसलिए मैं आज यहां सिर्फ आपसे मिलने ही नहीं आया हूं, आप सभी की उपलब्धियों को सेलिब्रेट करने के लिए आया हूं।

साथियों,

थोड़ी देर पहले ही मेरे यहां काम करने वाले भारतीय श्रमिकों प्रोफेशनल्श् से मुलाकात हुई है। ये साथी यहां कंस्ट्रक्शन के काम से जुड़े हैं। अन्य अनेक सेक्टर्स में भी अपना पसीना बहा रहे हैं। भारतीय समुदाय के डॉक्टर्स, नर्सज पेरामेडिस के रूप में कुवैत के medical infrastructure की बहुत बड़ी शक्ति है। आपमें से जो टीचर्स हैं वो कुवैत की अगली पीढ़ी को मजबूत बनाने में सहयोग कर रही है। आपमें से जो engineers हैं, architects हैं, वे कुवैत के next generation infrastructure का निर्माण कर रहे हैं।

और साथियों,

जब भी मैं कुवैत की लीडरशिप से बात करता हूं। तो वो आप सभी की बहुत प्रशंसा करते हैं। कुवैत के नागरिक भी आप सभी भारतीयों की मेहनत, आपकी ईमानदारी, आपकी स्किल की वजह से आपका बहुत मान करते हैं। आज भारत रेमिटंस के मामले में दुनिया में सबसे आगे है, तो इसका बहुत बड़ा श्रेय भी आप सभी मेहनतकश साथियों को जाता है। देशवासी भी आपके इस योगदान का सम्मान करते हैं।

साथियों,

भारत और कुवैत का रिश्ता सभ्यताओं का है, सागर का है, स्नेह का है, व्यापार कारोबार का है। भारत और कुवैत अरब सागर के दो किनारों पर बसे हैं। हमें सिर्फ डिप्लोमेसी ही नहीं बल्कि दिलों ने आपस में जोड़ा है। हमारा वर्तमान ही नहीं बल्कि हमारा अतीत भी हमें जोड़ता है। एक समय था जब कुवैत से मोती, खजूर और शानदार नस्ल के घोड़े भारत जाते थे। और भारत से भी बहुत सारा सामान यहां आता रहा है। भारत के चावल, भारत की चाय, भारत के मसाले,कपड़े, लकड़ी यहां आती थी। भारत की टीक वुड से बनी नौकाओं में सवार होकर कुवैत के नाविक लंबी यात्राएं करते थे। कुवैत के मोती भारत के लिए किसी हीरे से कम नहीं रहे हैं। आज भारत की ज्वेलरी की पूरी दुनिया में धूम है, तो उसमें कुवैत के मोतियों का भी योगदान है। गुजरात में तो हम बड़े-बुजुर्गों से सुनते आए हैं, कि पिछली शताब्दियों में कुवैत से कैसे लोगों का, व्यापारी-कारोबारियों का आना-जाना रहता था। खासतौर पर नाइनटीन्थ सेंचुरी में ही, कुवैत से व्यापारी सूरत आने लगे थे। तब सूरत, कुवैत के मोतियों के लिए इंटरनेशनल मार्केट हुआ करता था। सूरत हो, पोरबंदर हो, वेरावल हो, गुजरात के बंदरगाह इन पुराने संबंधों के साक्षी हैं।

कुवैती व्यापारियों ने गुजराती भाषा में अनेक किताबें भी पब्लिश की हैं। गुजरात के बाद कुवैत के व्यापारियों ने मुंबई और दूसरे बाज़ारों में भी उन्होंने अलग पहचान बनाई थी। यहां के प्रसिद्ध व्यापारी अब्दुल लतीफ अल् अब्दुल रज्जाक की किताब, How To Calculate Pearl Weight मुंबई में छपी थी। कुवैत के बहुत सारे व्यापारियों ने, एक्सपोर्ट और इंपोर्ट के लिए मुंबई, कोलकाता, पोरबंदर, वेरावल और गोवा में अपने ऑफिस खोले हैं। कुवैत के बहुत सारे परिवार आज भी मुंबई की मोहम्मद अली स्ट्रीट में रहते हैं। बहुत सारे लोगों को ये जानकर हैरानी होगी। 60-65 साल पहले कुवैत में भारतीय रुपए वैसे ही चलते थे, जैसे भारत में चलते हैं। यानि यहां किसी दुकान से कुछ खरीदने पर, भारतीय रुपए ही स्वीकार किए जाते थे। तब भारतीय करेंसी की जो शब्दाबली थी, जैसे रुपया, पैसा, आना, ये भी कुवैत के लोगों के लिए बहुत ही सामान्य था।

साथियों,

भारत दुनिया के उन पहले देशों में से एक है, जिसने कुवैत की स्वतंत्रता के बाद उसे मान्यता दी थी। और इसलिए जिस देश से, जिस समाज से इतनी सारी यादें जुड़ी हैं, जिससे हमारा वर्तमान जुड़ा है। वहां आना मेरे लिए बहुत यादगार है। मैं कुवैत के लोगों का, यहां की सरकार का बहुत आभारी हूं। मैं His Highness The Amir का उनके Invitation के लिए विशेष रूप से धन्यवाद देता हूं।

साथियों,

अतीत में कल्चर और कॉमर्स ने जो रिश्ता बनाया था, वो आज नई सदी में, नई बुलंदी की तरफ आगे बढ़ रहा है। आज कुवैत भारत का बहुत अहम Energy और Trade Partner है। कुवैत की कंपनियों के लिए भी भारत एक बड़ा Investment Destination है। मुझे याद है, His Highness, The Crown Prince Of Kuwait ने न्यूयॉर्क में हमारी मुलाकात के दौरान एक कहावत का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था- “When You Are In Need, India Is Your Destination”. भारत और कुवैत के नागरिकों ने दुख के समय में, संकटकाल में भी एक दूसरे की हमेशा मदद की है। कोरोना महामारी के दौरान दोनों देशों ने हर स्तर पर एक-दूसरे की मदद की। जब भारत को सबसे ज्यादा जरूरत पड़ी, तो कुवैत ने हिंदुस्तान को Liquid Oxygen की सप्लाई दी। His Highness The Crown Prince ने खुद आगे आकर सबको तेजी से काम करने के लिए प्रेरित किया। मुझे संतोष है कि भारत ने भी कुवैत को वैक्सीन और मेडिकल टीम भेजकर इस संकट से लड़ने का साहस दिया। भारत ने अपने पोर्ट्स खुले रखे, ताकि कुवैत और इसके आसपास के क्षेत्रों में खाने पीने की चीजों का कोई अभाव ना हो। अभी इसी साल जून में यहां कुवैत में कितना हृदय विदारक हादसा हुआ। मंगफ में जो अग्निकांड हुआ, उसमें अनेक भारतीय लोगों ने अपना जीवन खोया। मुझे जब ये खबर मिली, तो बहुत चिंता हुई थी। लेकिन उस समय कुवैत सरकार ने जिस तरह का सहयोग किया, वो एक भाई ही कर सकता है। मैं कुवैत के इस जज्बे को सलाम करूंगा।

साथियों,

हर सुख-दुख में साथ रहने की ये परंपरा, हमारे आपसी रिश्ते, आपसी भरोसे की बुनियाद है। आने वाले दशकों में हम अपनी समृद्धि के भी बड़े पार्टनर बनेंगे। हमारे लक्ष्य भी बहुत अलग नहीं है। कुवैत के लोग, न्यू कुवैत के निर्माण में जुटे हैं। भारत के लोग भी, साल 2047 तक, देश को एक डवलप्ड नेशन बनाने में जुटे हैं। कुवैत Trade और Innovation के जरिए एक Dynamic Economy बनना चाहता है। भारत भी आज Innovation पर बल दे रहा है, अपनी Economy को लगातार मजबूत कर रहा है। ये दोनों लक्ष्य एक दूसरे को सपोर्ट करने वाले हैं। न्यू कुवैत के निर्माण के लिए, जो इनोवेशन, जो स्किल, जो टेक्नॉलॉजी, जो मैनपावर चाहिए, वो भारत के पास है। भारत के स्टार्ट अप्स, फिनटेक से हेल्थकेयर तक, स्मार्ट सिटी से ग्रीन टेक्नॉलजी तक कुवैत की हर जरूरत के लिए Cutting Edge Solutions बना सकते हैं। भारत का स्किल्ड यूथ कुवैत की फ्यूचर जर्नी को भी नई स्ट्रेंथ दे सकता है।

साथियों,

भारत में दुनिया की स्किल कैपिटल बनने का भी सामर्थ्य है। आने वाले कई दशकों तक भारत दुनिया का सबसे युवा देश रहने वाला है। ऐसे में भारत दुनिया की स्किल डिमांड को पूरा करने का सामर्थ्य रखता है। और इसके लिए भारत दुनिया की जरूरतों को देखते हुए, अपने युवाओं का स्किल डवलपमेंट कर रहा है, स्किल अपग्रेडेशन कर रहा है। भारत ने हाल के वर्षों में करीब दो दर्जन देशों के साथ Migration और रोजगार से जुड़े समझौते किए हैं। इनमें गल्फ कंट्रीज के अलावा जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, मॉरिशस, यूके और इटली जैसे देश शामिल हैं। दुनिया के देश भी भारत की स्किल्ड मैनपावर के लिए दरवाज़े खोल रहे हैं।

साथियों,

विदेशों में जो भारतीय काम कर रहे हैं, उनके वेलफेयर और सुविधाओं के लिए भी अनेक देशों से समझौते किए जा रहे हैं। आप ई-माइग्रेट पोर्टल से परिचित होंगे। इसके ज़रिए, विदेशी कंपनियों और रजिस्टर्ड एजेंटों को एक ही प्लेटफॉर्म पर लाया गया है। इससे मैनपावर की कहां जरूरत है, किस तरह की मैनपावर चाहिए, किस कंपनी को चाहिए, ये सब आसानी से पता चल जाता है। इस पोर्टल की मदद से बीते 4-5 साल में ही लाखों साथी, यहां खाड़ी देशों में भी आए हैं। ऐसे हर प्रयास के पीछे एक ही लक्ष्य है। भारत के टैलेंट से दुनिया की तरक्की हो और जो बाहर कामकाज के लिए गए हैं, उनको हमेशा सहूलियत रहे। कुवैत में भी आप सभी को भारत के इन प्रयासों से बहुत फायदा होने वाला है।

साथियों,

हम दुनिया में कहीं भी रहें, उस देश का सम्मान करते हैं और भारत को नई ऊंचाई छूता देख उतने ही प्रसन्न भी होते हैं। आप सभी भारत से यहां आए, यहां रहे, लेकिन भारतीयता को आपने अपने दिल में संजो कर रखा है। अब आप मुझे बताइए, कौन भारतीय होगा जिसे मंगलयान की सफलता पर गर्व नहीं होगा? कौन भारतीय होगा जिसे चंद्रयान की चंद्रमा पर लैंडिंग की खुशी नहीं हुई होगी? मैं सही कह रहा हूं कि नहीं कह रहा हूं। आज का भारत एक नए मिजाज के साथ आगे बढ़ रहा है। आज भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी इकॉनॉमी है। आज दुनिया का नंबर वन फिनटेक इकोसिस्टम भारत में है। आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम भारत में है। आज भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता देश है।

मैं आपको एक आंकड़ा देता हूं और सुनकर आपको भी अच्छा लगेगा। बीते 10 साल में भारत ने जितना ऑप्टिकल फाइबर बिछाया है, भारत में जितना ऑप्टिकल फाइबर बिछाया है, उसकी लंबाई, वो धरती और चंद्रमा की दूरी से भी आठ गुना अधिक है। आज भारत, दुनिया के सबसे डिजिटल कनेक्टेड देशों में से एक है। छोटे-छोटे शहरों से लेकर गांवों तक हर भारतीय डिजिटल टूल्स का उपयोग कर रहा है। भारत में स्मार्ट डिजिटल सिस्टम अब लग्जरी नहीं, बल्कि कॉमन मैन की रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल हो गया है। भारत में चाय पीते हैं, रेहड़ी-पटरी पर फल खरीदते हैं, तो डिजिटली पेमेंट करते हैं। राशन मंगाना है, खाना मंगाना है, फल-सब्जियां मंगानी है, घर का फुटकर सामान मंगाना है, बहुत कम समय में ही डिलिवरी हो जाती है और पेमेंट भी फोन से ही हो जाता है। डॉक्यूमेंट्स रखने के लिए लोगों के पास डिजि लॉकर है, एयरपोर्ट पर सीमलैस ट्रेवेल के लिए लोगों के पास डिजियात्रा है, टोल बूथ पर समय बचाने के लिए लोगों के पास फास्टटैग है, भारत लगातार डिजिटली स्मार्ट हो रहा है और ये तो अभी शुरुआत है। भविष्य का भारत ऐसे इनोवेशन्स की तरफ बढ़ने वाला है, जो पूरी दुनिया को दिशा दिखाएगा। भविष्य का भारत, दुनिया के विकास का हब होगा, दुनिया का ग्रोथ इंजन होगा। वो समय दूर नहीं जब भारत दुनिया का Green Energy Hub होगा, Pharma Hub होगा, Electronics Hub होगा, Automobile Hub होगा, Semiconductor Hub होगा, Legal, Insurance Hub होगा, Contracting, Commercial Hub होगा। आप देखेंगे, जब दुनिया के बड़े-बड़े Economy Centres भारत में होंगे। Global Capability Centres हो, Global Technology Centres हो, Global Engineering Centres हो, इनका बहुत बड़ा Hub भारत बनेगा।

साथियों,

हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। भारत एक विश्वबंधु के रूप में दुनिया के भले की सोच के साथ आगे चल रहा है। और दुनिया भी भारत की इस भावना को मान दे रही है। आज 21 दिसंबर, 2024 को दुनिया, अपना पहला World Meditation Day सेलीब्रेट कर रही है। ये भारत की हज़ारों वर्षों की Meditation परंपरा को ही समर्पित है। 2015 से दुनिया 21 जून को इंटरनेशन योगा डे मनाती आ रही है। ये भी भारत की योग परंपरा को समर्पित है। साल 2023 को दुनिया ने इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर के रूप में मनाया, ये भी भारत के प्रयासों और प्रस्ताव से ही संभव हो सका। आज भारत का योग, दुनिया के हर रीजन को जोड़ रहा है। आज भारत की ट्रेडिशनल मेडिसिन, हमारा आयुर्वेद, हमारे आयुष प्रोडक्ट, ग्लोबल वेलनेस को समृद्ध कर रहे हैं। आज हमारे सुपरफूड मिलेट्स, हमारे श्री अन्न, न्यूट्रिशन और हेल्दी लाइफस्टाइल का बड़ा आधार बन रहे हैं। आज नालंदा से लेकर IITs तक का, हमारा नॉलेज सिस्टम, ग्लोबल नॉलेज इकोसिस्टम को स्ट्रेंथ दे रहा है। आज भारत ग्लोबल कनेक्टिविटी की भी एक अहम कड़ी बन रहा है। पिछले साल भारत में हुए जी-20 सम्मेलन के दौरान, भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर की घोषणा हुई थी। ये कॉरिडोर, भविष्य की दुनिया को नई दिशा देने वाला है।

साथियों,

विकसित भारत की यात्रा, आप सभी के सहयोग, भारतीय डायस्पोरा की भागीदारी के बिना अधूरी है। मैं आप सभी को विकसित भारत के संकल्प से जुड़ने के लिए आमंत्रित करता हूं। नए साल का पहला महीना, 2025 का जनवरी, इस बार अनेक राष्ट्रीय उत्सवों का महीना होने वाला है। इसी साल 8 से 10 जनवरी तक, भुवनेश्वर में प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन होगा, दुनियाभर के लोग आएंगे। मैं आप सब को, इस कार्यक्रम के लिए आमंत्रित करता हूं। इस यात्रा में, आप पुरी में महाप्रभु जगन्नाथ जी का आशीर्वाद ले सकते हैं। इसके बाद प्रयागराज में आप महाकुंभ में शामिल होने के लिए प्रयागराज पधारिये। ये 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलने वाला है, करीब डेढ़ महीना। 26 जनवरी को आप गणतंत्र दिवस देखकर ही वापस लौटिए। और हां, आप अपने कुवैती दोस्तों को भी भारत लाइए, उनको भारत घुमाइए, यहां पर कभी, एक समय था यहां पर कभी दिलीप कुमार साहेब ने पहले भारतीय रेस्तरां का उद्घाटन किया था। भारत का असली ज़ायका तो वहां जाकर ही पता चलेगा। इसलिए अपने कुवैती दोस्तों को इसके लिए ज़रूर तैयार करना है।

साथियों,

मैं जानता हूं कि आप सभी आज से शुरु हो रहे, अरेबियन गल्फ कप के लिए भी बहुत उत्सुक हैं। आप कुवैत की टीम को चीयर करने के लिए तत्पर हैं। मैं His Highness, The Amir का आभारी हूं, उन्होंने मुझे उद्घाटन समारोह में Guest Of Honour के रूप में Invite किया है। ये दिखाता है कि रॉयल फैमिली, कुवैत की सरकार, आप सभी का, भारत का कितना सम्मान करती है। भारत-कुवैत रिश्तों को आप सभी ऐसे ही सशक्त करते रहें, इसी कामना के साथ, फिर से आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद!

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय!

बहुत-बहुत धन्यवाद।