Co-operative, not Coercive Federalism for Strong Republic

Published By : Admin | January 25, 2012 | 09:30 IST

प्रिय मित्रों,

26जनवरी, 1950 का दिन हमारे देश के इतिहास का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण दिन है। इसी दिन दुनिया का सबसे विस्तृत हमारे भारत देश का संविधान अमल में आया। डॉ. बाबासाहब अंबेडकर की अगवानी में हमारी संस्कृति के आदर्शों, मूल्यों और देश के लोगों की आकांक्षाओं को संविधान में शामिल किया गया। स्वतंत्र भारत के प्रथम आम चुनाव के आयोजन को भी इस वर्ष 60 वर्ष पूर्ण होंगे। लोकतंत्र होने की शुरुआत से ही हमने दुनिया को दिखा दिया है कि भारत का लोकतंत्र वाइब्रेंट लोकतंत्र है और बालिग मताधिकार के वैश्विक नियम के अमल में हमने कोई कमी नहीं रखी। ब्रिटेन को वन मैन-वन वोट और वन वोट फॉर ऑल की विभावनायुक्त मेग्ना कार्टा सहित ढेरों सुधार कानूनों के अमल में सदियों लग गए। अमेरिका ने 20वीं सदी की शुरुआत में स्त्रियों को मताधिकार दिया जबकि अफ्रीकन अमेरिकन्स को 1964 में मताधिकार दिया गया। संविधान सभा में शामिल हमारे पुर्वजों की दूरदृष्टि के परिणामस्वरुप भारत के पूर्ण न्यायिक लोकतंत्र का उल्लेखनीय विकास हुआ है।

संविधान के निर्माताओं ने अपनी सूझबूझ से सरकार को संघीय स्वरुप दिया, जिसमें केन्द्र और राज्य को देश के विकास के लिए समान भागीदार माना गया। भारतीय राज्यों की Federal In Structure, Unitary In Spirit उक्ति ऐसे ही प्रचलित नहीं हुई। प्रचुर विविधताओं वाला हमारा भारत देश एक वाइब्रेंट लोकतंत्र के बिना जीवंत नहीं रह सकता। दिल्ली में बैठी केन्द्र सरकार विभिन्न राज्यों की उनकी क्षमताओं और आवश्यकताओं को हमेशा न्याय नहीं दे सकती। जबकि राज्य सरकार लोगों के ज्यादा करीब है और इसलिए ही वह लोगों की आवश्यकताओं को ज्यादा अच्छे तरीके से समझ सकती है और सुशासन के माध्यम से उनकी अपेक्षाओं का निवारण ज्यादा अच्छे रूप से कर सकती है।

लेकिन सिर्फ और सिर्फ दिल्ली की गद्दी पर बैठे राजाओं की इच्छाओं की पुष्टि के लिए देश की संघीय प्रणाली पर संवैधानिक मूल्यों के ह्रास समान कुठाराघात हो रहा है जो अत्यंत चिंताजनक है। योजनाबद्घ रूप से देश की लोकतांत्रिक प्रणाली को तहस-नहस किया जा रहा है, ऐसा नजर आ रहा है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश का प्रशासन एक पारिवारिक पीढ़ी की तरह चलाया नहीं जा सकता। इस प्रकार का प्रशासन देश को अराजकता और विनाशकता की तरफ ले जाएगा।

अनेक तरीकों से देश की संघीय प्रणाली पर आक्रमण किया जा रहा है। दुर्भाग्य से केन्द्र को जिन मामलों में हिम्मत दिखलानी चाहिए वहां वह दुर्बल साबित हो रहा है। देश आतंकवाद और नक्सलवाद जैसे जोखिमों का शिकार हुआ है, फिर भी केन्द्र महत्वपूर्ण कदम उठाने में ढील कर रहा है। गुजरात विधानसभा में गुजकोक विधेयक तीन-तीन बार पारित हुआ, इसके बावजूद केन्द्र ने चार वर्षों से उसे लटका कर रखा है। संविधान में कानून और व्यवस्था से संबद्घ मामले स्पष्ट रूप से राज्यों की सूची में दर्शाए गए हैं फिर भी केन्द्र इसमें दखलअंदाजी करता है। जो सरकार मात्र वोट बैंक की राजनीति के आधार पर जीवित हो, उससे और आशा भी क्या रखी जा सकती है?

ऐसे मामलों में जिसमें केन्द्र के पास राज्यों के साथ मित्रतापूर्ण और सहयोगी व्यवहार की अपेक्षा रखी जाती है, वहां उल्टे केन्द्र बारंबार राज्यों को दबाता है। ऐसी कोई भी संवैधानिक संस्था नहीं है जिसका उपयोग केन्द्र ने राज्यों को दबाने के लिए न किया हो। गैर यूपीए राज्यों को राज्यपाल के माध्यम से निशान बनाया गया हो, ऐसे ढेरों उदाहरण हैं। विरोध पक्ष सत्ता में हो, ऐसे राज्यों को कमजोर बनाकर राजनैतिक लाभ लेने के लिए अन्य कई संस्थाओं का दुरुपयोग भी केन्द्र करता है। अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है ऐसी नियुक्तियां करने से पहले मुख्यमंत्री के साथ विचार-विमर्श नहीं किया जाता, बल्कि इन कानूनों को दरकिनार कर नियुक्तियां की जाती हैं।

संविधान में दर्शायी गई समवर्ती सूची के मामले में सलाह-मार्गदर्शन लेने के मकसद से पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सरकारिया आयोग बनाया था। लेकिन आज दशकों बीत जाने के बावजूद सरकारिया आयोग के सुझावों पर अमल नहीं हुआ है। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) ने राज्यों के साथ कोई विचार-विमर्श किए बगैर कम्यूनल वायोलेंस विधेयक बना दिया है। इस प्रकार का विधेयक देश में शांति के वातावरण को ध्वस्त करेगा। लेकिन केन्द्र के सत्ताधीशों को इसकी कोई परवाह नहीं है। इस प्रकार के मामलों में अगर राज्यों के सुझाव लिए जाएं और इसके अमलीकरण का जिम्मा सौंपा जाए तो ज्यादा अच्छे परिणाम हासिल किए जा सकते हैं।

आर्थिक मामलों में तो संघीय प्रणाली का ज्यादा विनाश किया जा रहा है। जनता की भलाई के नाम पर तथा जनअधिकारों के नाम पर ज्यादा से ज्यादा धन का प्रवाह दिल्ली की ओर बहाया जा रहा है। वित्त आयोग ने धन के अत्यंत बड़े स्रोतों का आवंटन केन्द्र को किया है। जबकि राज्यों को बिल्कुल मामूली हिस्सा दिया गया है। जनकेन्द्री योजनाओं की घोषणा कर उसके अमल की आर्थिक जिम्मेदारी राज्यों के सिर पर डाल देने में केन्द्र माहिर हो गया है। राज्यों को धन देकर केन्द्र उन पर उपकार करता है, ऐसा नहीं है। ऐसा धन हासिल करना तो विकास के लिए राज्य का अधिकार है।

आज देश की अर्थव्यवस्था कमजोर है और देश व्यापक भूखमरी और महंगाई से त्रस्त है, ऐसे में भी केन्द्र राजनीति कर रहा है। अनाज के संग्रहित भंडार को बाहर लाने के लिए केन्द्र सरकार देश भर में छापेमारी कर रही है, जिसमें से ज्यादातर छापेमारी गैर यूपीए शासित राज्यों में की जा रही हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि भारत के सबसे बड़े राज्यों में ज्यादातर में यूपीए का शासन है और यूपीए शासित राज्यों में किसानों की आत्महत्या के मामले ज्यादा संख्या में सामने आ रहे हैं।

आज यह चिन्ता मैं आपके समक्ष व्यक्त कर रहा हूं, यह सिर्फ मुख्यमंत्री होने के नाते ही नहीं है बल्कि भारत का एक आम नागरिक होने के नाते भी है। ऐसा क्यों है कि, प्रत्येक पार्टी के मुख्यमंत्री भारत के संघीय ढांचा पर होने वाले बारंबार हमलों पर गंभीर चिंता जता रहे हैं? अब समय आ चुका है कि केन्द्र समझे कि राज्यों को उनके अधिकार देने से केन्द्र कमजोर नहीं होगा। राज्य केन्द्र के साथ सहयोग में और समान दर्जे में काम करे और उसके हुकुम पालक बनकर न रह जाएं। दबावपूर्वक नहीं बल्कि सहयोगपूर्वक लोकतंत्र हमारे देश का मानदंड बनना चाहिए।

मित्रों, गणतंत्र पर्व पर मैं आप सबको शुभकामनाएं देता हूं। इस मौके पर चलिए, हम सब अनेकता में एकता की विभावना को चरितार्थ करते हुए एक सच्चे संघीय भारत के निर्माण का संकल्प करें। चलिए, सबका साथ-सबका विकास मंत्र के साथ हम सब गांधीजी की सुराज्य की संकल्पना को साकार करें। यही संविधान के निर्माताओं को दी गई सच्ची श्रद्घांजलि होगी। 

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भारत के रतन का जाना...
November 09, 2024

आज श्री रतन टाटा जी के निधन को एक महीना हो रहा है। पिछले महीने आज के ही दिन जब मुझे उनके गुजरने की खबर मिली, तो मैं उस समय आसियान समिट के लिए निकलने की तैयारी में था। रतन टाटा जी के हमसे दूर चले जाने की वेदना अब भी मन में है। इस पीड़ा को भुला पाना आसान नहीं है। रतन टाटा जी के तौर पर भारत ने अपने एक महान सपूत को खो दिया है...एक अमूल्य रत्न को खो दिया है।

आज भी शहरों, कस्बों से लेकर गांवों तक, लोग उनकी कमी को गहराई से महसूस कर रहे हैं। हम सबका ये दुख साझा है। चाहे कोई उद्योगपति हो, उभरता हुआ उद्यमी हो या कोई प्रोफेशनल हो, हर किसी को उनके निधन से दुख हुआ है। पर्यावरण रक्षा से जुड़े लोग...समाज सेवा से जुड़े लोग भी उनके निधन से उतने ही दुखी हैं। और ये दुख हम सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में महसूस कर रहे हैं।

युवाओं के लिए, श्री रतन टाटा एक प्रेरणास्रोत थे। उनका जीवन, उनका व्यक्तित्व हमें याद दिलाता है कि कोई सपना ऐसा नहीं जिसे पूरा ना किया जा सके, कोई लक्ष्य ऐसा नहीं जिसे प्राप्त नहीं किया जा सके। रतन टाटा जी ने सबको सिखाया है कि विनम्र स्वभाव के साथ, दूसरों की मदद करते हुए भी सफलता पाई जा सकती है।

 रतन टाटा जी, भारतीय उद्यमशीलता की बेहतरीन परंपराओं के प्रतीक थे। वो विश्वसनीयता, उत्कृष्टता औऱ बेहतरीन सेवा जैसे मूल्यों के अडिग प्रतिनिधि थे। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह दुनिया भर में सम्मान, ईमानदारी और विश्वसनीयता का प्रतीक बनकर नई ऊंचाइयों पर पहुंचा। इसके बावजूद, उन्होंने अपनी उपलब्धियों को पूरी विनम्रता और सहजता के साथ स्वीकार किया।

दूसरों के सपनों का खुलकर समर्थन करना, दूसरों के सपने पूरा करने में सहयोग करना, ये श्री रतन टाटा के सबसे शानदार गुणों में से एक था। हाल के वर्षों में, वो भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम का मार्गदर्शन करने और भविष्य की संभावनाओं से भरे उद्यमों में निवेश करने के लिए जाने गए। उन्होंने युवा आंत्रप्रेन्योर की आशाओं और आकांक्षाओं को समझा, साथ ही भारत के भविष्य को आकार देने की उनकी क्षमता को पहचाना।

भारत के युवाओं के प्रयासों का समर्थन करके, उन्होंने नए सपने देखने वाली नई पीढ़ी को जोखिम लेने और सीमाओं से परे जाने का हौसला दिया। उनके इस कदम ने भारत में इनोवेशन और आंत्रप्रेन्योरशिप की संस्कृति विकसित करने में बड़ी मदद की है। आने वाले दशकों में हम भारत पर इसका सकारात्मक प्रभाव जरूर देखेंगे।

रतन टाटा जी ने हमेशा बेहतरीन क्वालिटी के प्रॉडक्ट...बेहतरीन क्वालिटी की सर्विस पर जोर दिया और भारतीय उद्यमों को ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करने का रास्ता दिखाया। आज जब भारत 2047 तक विकसित होने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, तो हम ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करते हुए ही दुनिया में अपना परचम लहरा सकते हैं। मुझे आशा है कि उनका ये विजन हमारे देश की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करेगा और भारत वर्ल्ड क्लास क्वालिटी के लिए अपनी पहचान मजबूत करेगा।

रतन टाटा जी की महानता बोर्डरूम या सहयोगियों की मदद करने तक ही सीमित नहीं थी। सभी जीव-जंतुओं के प्रति उनके मन में करुणा थी। जानवरों के प्रति उनका गहरा प्रेम जगजाहिर था और वे पशुओं के कल्याण पर केन्द्रित हर प्रयास को बढ़ावा देते थे। वो अक्सर अपने डॉग्स की तस्वीरें साझा करते थे, जो उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा थे। मुझे याद है, जब रतन टाटा जी को लोग आखिरी विदाई देने के लिए उमड़ रहे थे...तो उनका डॉग ‘गोवा’ भी वहां नम आंखों के साथ पहुंचा था।

रतन टाटा जी का जीवन इस बात की याद दिलाता है कि लीडरशिप का आकलन केवल उपलब्धियों से ही नहीं किया जाता है, बल्कि सबसे कमजोर लोगों की देखभाल करने की उसकी क्षमता से भी किया जाता है।

रतन टाटा जी ने हमेशा, नेशन फर्स्ट की भावना को सर्वोपरि रखा। 26/11 के आतंकवादी हमलों के बाद उनके द्वारा मुंबई के प्रतिष्ठित ताज होटल को पूरी तत्परता के साथ फिर से खोलना, इस राष्ट्र के एकजुट होकर उठ खड़े होने का प्रतीक था। उनके इस कदम ने बड़ा संदेश दिया कि – भारत रुकेगा नहीं...भारत निडर है और आतंकवाद के सामने झुकने से इनकार करता है।

व्यक्तिगत तौर पर, मुझे पिछले कुछ दशकों में उन्हें बेहद करीब से जानने का सौभाग्य मिला। हमने गुजरात में साथ मिलकर काम किया। वहां उनकी कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर निवेश किया गया। इनमें कई ऐसी परियोजनाएं भी शामिल थीं, जिसे लेकर वे बेहद भावुक थे।

जब मैं केन्द्र सरकार में आया, तो हमारी घनिष्ठ बातचीत जारी रही और वो हमारे राष्ट्र-निर्माण के प्रयासों में एक प्रतिबद्ध भागीदार बने रहे। स्वच्छ भारत मिशन के प्रति श्री रतन टाटा का उत्साह विशेष रूप से मेरे दिल को छू गया था। वह इस जन आंदोलन के मुखर समर्थक थे। वह इस बात को समझते थे कि स्वच्छता और स्वस्थ आदतें भारत की प्रगति की दृष्टि से कितनी महत्वपूर्ण हैं। अक्टूबर की शुरुआत में स्वच्छ भारत मिशन की दसवीं वर्षगांठ के लिए उनका वीडियो संदेश मुझे अभी भी याद है। यह वीडियो संदेश एक तरह से उनकी अंतिम सार्वजनिक उपस्थितियों में से एक रहा है।

कैंसर के खिलाफ लड़ाई एक और ऐसा लक्ष्य था, जो उनके दिल के करीब था। मुझे दो साल पहले असम का वो कार्यक्रम याद आता है, जहां हमने संयुक्त रूप से राज्य में विभिन्न कैंसर अस्पतालों का उद्घाटन किया था। उस अवसर पर अपने संबोधन में, उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि वो अपने जीवन के आखिरी वर्षों को हेल्थ सेक्टर को समर्पित करना चाहते हैं। स्वास्थ्य सेवा एवं कैंसर संबंधी देखभाल को सुलभ और किफायती बनाने के उनके प्रयास इस बात के प्रमाण हैं कि वो बीमारियों से जूझ रहे लोगों के प्रति कितनी गहरी संवेदना रखते थे।

मैं रतन टाटा जी को एक विद्वान व्यक्ति के रूप में भी याद करता हूं - वह अक्सर मुझे विभिन्न मुद्दों पर लिखा करते थे, चाहे वह शासन से जुड़े मामले हों, किसी काम की सराहना करना हो या फिर चुनाव में जीत के बाद बधाई सन्देश भेजना हो।

अभी कुछ सप्ताह पहले, मैं स्पेन सरकार के राष्ट्रपति श्री पेड्रो सान्चेज के साथ वडोदरा में था और हमने संयुक्त रूप से एक विमान फैक्ट्री का उद्घाटन किया। इस फैक्ट्री में सी-295 विमान भारत में बनाए जाएंगे। श्री रतन टाटा ने ही इस पर काम शुरू किया था। उस समय मुझे श्री रतन टाटा की बहुत कमी महसूस हुई।

आज जब हम उन्हें याद कर रहे हैं, तो हमें उस समाज को भी याद रखना है जिसकी उन्होंने कल्पना की थी। जहां व्यापार, अच्छे कार्यों के लिए एक शक्ति के रूप में काम करे, जहां प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता को महत्व दिया जाए और जहां प्रगति का आकलन सभी के कल्याण और खुशी के आधार पर किया जाए। रतन टाटा जी आज भी उन जिंदगियों और सपनों में जीवित हैं, जिन्हें उन्होंने सहारा दिया और जिनके सपनों को साकार किया। भारत को एक बेहतर, सहृदय और उम्मीदों से भरी भूमि बनाने के लिए आने वाली पीढ़ियां उनकी सदैव आभारी रहेंगी।