प्रगति की जड़ें : गुजरात के समग्र विकास के लिए वृक्षारोपण
प्रिय दोस्तों,श्रावण के पवित्र महीने की ‘पवित्रा बारस’ के शुभ अवसर पर मैं कल इस साल के ‘वन महोत्सव’ का उद्धाटन करने जा रहा हूँ। पिछले कुछ सालों में वन महोत्सव के वार्षिक आयोजनों ने गुजरात की सामाजिक वानिकी में नई अवधाराणाओं को नया अर्थ दिया है। यह हमारे दृढ़ संकल्प तथा प्रतिबद्घता को दर्शाता है कि हम हमारी भावी पीढ़ी को हम एक हमारे द्वारा बोई गई हरियाली की विरासत दे सकें।
इस वर्ष के वन महोत्सव के उद्घाटन के लिए मैं पंचमहल की सतरामपुर तालुका में बसेï एक खूबसूरत पहाड़ी गांव मानगढ़ जा रहा हूं। मानगढ़ की भूमि ने ऐसे सपूत पैदा किए है जिन्होंने अन्याय से भरे औपनिवेशिक साम्राज्यवाद के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाया। 1913 में अंग्रेजों ने बड़ी बर्बरता पूर्वक 1507 आदिवासियों को तब मार डाला था जब वे अंतहीन शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए एकत्र हुए थे। यह घटना हमें क्रूर जलियांवाला बाग कांड की भी याद दिलाती है। 1857 की क्रांति के बाद यह पहला अवसर था जब देशभक्ति की चिंगारी गुजरात के लोगों में पूरी तीव्रता, समर्पण तथा आदर्शवाद के साथ सुलग उठी थी।
अपने आध्यात्मिक उपदेशों से साहस के प्रवाहक तथा प्रेरणादायी नेतृत्व देने वाले गोïविंद गुरू आदिवासियों का नेतृत्व कर रहे थे। उन्होंने आदिवासियों की आजादी, हक तथा आत्म सम्मान के लिए काम किया । उन्होंने अपने लोगों के बीच जागृति पैदा करने के लिए अथक कार्य किया ताकि उनका समुदाय भी बाकी समाज की तरह ही विकसित हो सके।
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इस वर्ष के वन महोत्सव के उद्घाटन के लिए मैं पंचमहल की सतरामपुर तालुका में बसेï एक खूबसूरत पहाड़ी गांव मानगढ़ जा रहा हूं। मानगढ़ की भूमि ने ऐसे सपूत पैदा किए है जिन्होंने अन्याय से भरे औपनिवेशिक साम्राज्यवाद के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाया। 1913 में अंग्रेजों ने बड़ी बर्बरता पूर्वक 1507 आदिवासियों को तब मार डाला था जब वे अंतहीन शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए एकत्र हुए थे। यह घटना हमें क्रूर जलियांवाला बाग कांड की भी याद दिलाती है। 1857 की क्रांति के बाद यह पहला अवसर था जब देशभक्ति की चिंगारी गुजरात के लोगों में पूरी तीव्रता, समर्पण तथा आदर्शवाद के साथ सुलग उठी थी।
गोविंद गुरू सच में वह शख्स थे जो अपने समय से आगे थे। गोविंद गुरू जैसे लोगों द्वारा दिए गए योगदान आज भी समय यादों के प्रवाह में बसा हुआ है तथा यह कुछ ऐसा है जो इतिहास के पन्नों से कभी मिटाया नहीं जा सकता। भारत को आजाद करवाने की दिशा में गोविंद गुरू सिंह जैसे सपूतों के योगदान को गुजरात के लोग कभी नहीं भूला पाएंगे।
आज जब हम मानगढ़ से ‘वन महोत्सव - 2012’ की शुरूआत करने जा रहे हैं, हम ऐसे बहादुरों को अपनी दिल से श्रृद्वांजलि देते हैं जिन्होंने सच और न्याय की वेदी पर अपना बलिदान दे दिया। इन शूरवीरों को श्रृद्घांजलि के रूप में 1507 वृक्षों तथा विभिन्न प्रदर्शन के साथ एक गोविंद गुरू स्मृति वन बनाया जाएगा। हमारे आदिवासी दोस्तों की प्रकृति के साथ यह एकता सर्वविदित है और मैं मानता हूं कि यह कदम दूसरों को ना सिर्फ गोविंद गुरू जैसा बनने के लिए प्रेरणा देगा बल्कि जंगलों के संरक्षण के लिए भी लोगों को प्रेरित करेगा।
हमारा ऐसा द्रढ़ता से मानना है कि गुजरात सरकार की हर पहल पूर्ण रूप से एक जन आंदोलन होना चाहिए। इससे ज्यादा पुण्य की बात और कोई नहीं हो सकती कि लोगों की ताकत इसमें पूरी तरह से सक्रीय रूप से शामिल हो। इस संदर्भ में, हम यह सुनिश्चित करेंगे कि सभी बड़ी सरकारी पहल केवल राज्य की राजधानी तक ही सीमित ना रहे बल्कि वह बाहर के लोगों तक भी पहुंचे। वन महोत्सव कोई अपवाद नहीं है, आपको यह जानकर खुशी होगी कि वर्ष 2005 से यह महोत्सव गुजरात के विभिन्न हिस्सों मे आयोजित किया जा रहा है। जिस पर वहां की संस्कृति तथा एतिहासिक धरोहर का आर्शीवाद रहा है। जहां हमने एक ‘वन’ के रुप में अपनी स्थायी यादों में पीछे छोड़ दिया है जो हमें एक सांस्कृतिक तथा पर्यटन स्थल के रूप में अपनी सेवाएं देने का हक रखता है, चाहे वह गांधीनगर का ‘पुनीत वन’ (2004) हो, अंबाजी का ‘मांगल्य वन’ (2005) हो, तारंगा का ‘तीर्थंकर वन’ (2006) हो, सोमनाथ का ‘हरिहर वन’ (2007) हो, चोटिला का ‘भक्ति वन’ (2008) हो, शामलाजी का ‘श्यामल वन’ (2009) हो, पालिताना का ‘पावक वन’ (2010) हो या पावगढ़ का ‘विरासत वन’ (2011). यह सच में हमारी संस्कृति और इतिहास के साथ एक अपनी जड़ों को और मजबूत बनाने का एक सुनहरा अवसर है।
गुजरात पूरे राज्य में हरियाली को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है । अभी एक हफ्ता पहले, मुझे समाचार पत्र की एक खबर को पढ़ कर बहुत खुशी हुई थी, जिसमें यह कहा गया था कि गांधीनगर देश में पेड़ों की राजधानी है। नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि गुजरात की राजधानी का 53.9% हिस्सा पेड़ों से ढका हुआ है। यहां पर शहर में हर 100 लोगों के प्रति 416 पेड़ हैं। हमारे देश के भौगोलिक क्षेत्र में केवल 2.82% क्षेत्र में ही पेड़ हैं, जबकि गुजरात में यह आंकड़ा 4% है। सन 2003 में हमारे पास वन क्षेत्र से बाहर 25.1 करोड़ पेड़ थे, जो आंकड़ा सन 2009 तक 26.9 करोड़ तक पहुंच गया है। आने वाले दस वर्षों में यह आंकड़ा 35 करोड़ के पार पहुंचने की दिशा में हम काम कर रहे हैं। वास्तव में, मुझे आपको यह बताते हुए खुशी हो रही है कि गांधीनगर, वडोदरा तथा भावनगर ऐसे शहर हैं, जो देश के हरे भरे शहरों से ज्यादा हरियाली समेटे हुए हैं।
दोस्तों, प्रकृति की पूजा करना हमारी समृद्घ संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। हमारी संस्कृति में इस बात पर विश्वास किया जाता है कि भगवान पेड़ में निवास करते हैं! मुझे यह विश्वास है कि ‘वन महोत्सव’ का यह प्रयास गुजरात को हरा भरा तथा सुंदर बनाने में सफल रहेगा। हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए - दरअसल कई बार में माता-पिता से कहता हूँ कि घर में एक कन्या के पैदा होने पर दो पौधे लगाएं।
गोविंद गुरु पर किताब की एक प्रति और “गुजरात के शहरी क्षेत्रों में पेड़ों के आवरण की स्थिति” का एक रिपोर्ट मैं संलग्र कर रहा हूँ. मैं वन विभाग को शहरी क्षेत्रों में पेड़ों की स्थिति के बारे में ऐसी महत्वपूर्ण रिपोर्ट प्रस्तुत करने पर बधाई देना चाहता हूँ। मुझे विश्वास है कि आप भी इस काम के बारे में पढ़ कर खुशी महसूस करेंगे।
आपका
नरेन्द्र मोदी
ई-बुक - मानगढ क्रांति के नायक - श्री गोविंद गुरु
ई-बुक - गुजरात के शहरी क्षेत्रों में पेड़ों के आवरण की स्थिति