प्रिय मित्रों,
चुनाव में मतदाता सभी उम्मीदवारों को ठुकरा सके इसके लिए निगेटिव वोटिंग के विकल्प का समावेश करने का निर्देश आज सुबह माननीय उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग को दिया है।
मैं इस फैसले का हार्दिक स्वागत करता हूं। मुझे इस बात का यकीन है कि इसका हमारी राज्य व्यवस्था तंत्र पर दीर्घकालिक असर पड़ेगा साथ ही लोकतंत्र को और भी ज्यादा वाइब्रेंट बनाने के लिए चुनाव सुधार की दिशा में यह एक मजबूत कदम साबित होगा।
मित्रों, लम्बे वक्त से मैं चुनावों में राइट टू रिजेक्ट का प्रावधान लागू करने को लेकर आवाज उठा रहा था। इसके बिना हमारे व्यवस्था तंत्र में कुछ कमी-सी खल रही थी। वर्तमान में किसी एक बैठक पर यदि दस उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे होते हैं तो हम मतदाता को उन दस में से किसी एक का चुनाव करने पर मजबूर करते हैं। न्यायालय के इस फैसले से मतदाता को अपना रोष व्यक्त करने और सभी उम्मीदवारों को ठुकराने का एक विकल्प मिला है। अब मतदाता यह संदेश दे सकता है कि, हमें उम्मीदवार या उम्मीदवारों की पार्टी या पार्टी की नीतियां नापसन्द है। इसके चलते राजनैतिक दलों को एक मजबूत संदेश मिलेगा कि क्या वजह है कि लोग उन्हें स्वीकार नहीं कर रहे हैं, और इस मामले पर विचार करने के लिए पार्टियां मजबूर होंगी। लिहाजा इससे सभी पार्टियां ज्यादा जवाबदार बनेंगी।
आने वाले चुनावों में राइट टू रिजेक्ट आने वाला है, इसके लागू होने को लेकर कुछ राजनीतिक दलों के मेरे मित्र संशय व्यक्त कर रहे हैं, हालांकि मुझे इस पर कोई आश्चर्य नहीं। हमने अनिवार्य मतदान को लेकर एक विधेयक भी पेश किया था, और राइट टू रिजेक्ट का भी उसमें समावेश किया गया था। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने इसका पूरजोर विरोध किया था। यह विधेयक वर्ष २००८ और वर्ष २००९ में यानी दो बार मंजूर किया गया था, परन्तु बाद में माननीय राज्यपाल द्वारा उसे रोक कर रखा गया था।
अनिवार्य मतदान के भी कई लाभ हैं जिससे हमारा लोकतंत्र और भी मजबूत हो सकता है। इसके चलते लोगों का यह भय भी कम होगा कि चुनाव महज धनशक्ति का प्रदर्शन बनकर रह गए हैं। कई नागरिक चुनावों के दौरान किए जाने वाले मनमाने खर्च को लेकर परेशानी का अनुभव करते हैं। हालांकि अनिवार्य मतदान की वजह से चुनावों के पीछे जो बेहिसाब और बेतुका खर्च होता है, उस पर लगाम लगेगी, क्योंकि मतदाता तो अब वैसे भी वोट डालने के लिए पोलिंग बुथ तक आने ही वाला है। हममें से कई लोगों के मन में यह सवाल उठेगा कि राइट टू रिजेक्ट और अनिवार्य मतदान जैसे कदम अभिव्यक्ति की आजादी के हमारे अधिकार का भंग है। नहीं, इस संबंध में मैं यह कहूंगा कि यह आपकी अभिव्यक्ति प्रस्तुत करने की दिशा में एक मजबूत अवसर है। फिलहाल आप अपनी पसन्द के व्यक्ति या पार्टी का चुनाव कर अभिव्यक्ति के आपके अधिकार का आधा ही उपयोग कर रहे हैं। भविष्य में आप उम्मीदवारों को ठुकराकर भी अपने अभिव्यक्ति के अधिकार का पूर्ण रूप से उपयोग कर सकेंगे।
और ऐसा नहीं है कि इसमें मतदाताओं से कुछ छीन लिया जा रहा है। बच्चों को अनिवार्य रूप से स्कूल भेजने का जब हम समर्थन करते हैं, तो क्या इसका मतलब यह है कि हम उनके बचपन को छिन रहे हैं।
एक बार किसी ने महात्मा गांधी से पूछा कि लोगों के मूलभूत अधिकार क्या हैं? जवाब में गांधी जी ने कहा था कि लोगों के मूलभूत अधिकारों के साथ उनकी मूलभूत कर्तव्य की भी बात करनी चाहिए। जब हम अपने कर्तव्य अच्छी तरह निभाते हैं तब हमारे अधिकार भी अपने आप सुरक्षित हो जाते हैं। और जब हम अपने कर्तव्य सही ढंग से निभाते हैं तो हमारा लोकतंत्र भी सुरक्षित हो जाता है।
परन्तु मित्रों, राइट टू रिजेक्ट और अनिवार्य मतदान को लेकर चर्चा करना अच्छी बात है लेकिन अगर आपने बतौर मतदाता अपने नाम का पंजीयन नहीं कराया है तो यह सभी चर्चाएं अर्थहीन होगी। मुझे यह बताया गया है कि १८ से २४ वर्ष वाले नौजवानों ने बड़ी तादाद में अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज नहीं कराया है। इससे दुर्भाग्यपूर्ण बात दूसरी नहीं हो सकती। चुनाव आयोग द्वारा देश के सभी राज्यों में मतदाता पंजीयन के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है। आप सभी से मेरी गुजारिश है कि इस अभियान में शामिल होकर बतौर मतदाता अपना नाम अवश्य दर्ज कराएं। यह बात भी उतनी ही सच है कि हमारे कई अनिवासी भारतीय (एनआरआई) मित्र जिनके पास भारतीय पासपोर्ट है, इस बात से अनजान हैं कि वे भी चुनावों में मतदान कर सकते हैं। लिहाजा, एनआरआई मित्रों से मेरा निवेदन है कि वे चुनाव आयोग की वेबसाइट पर जाएं और मतदाता के रूप में अपना नाम दर्ज कराएं।
लोकतंत्र हम सभी के द्वारा ही ज्यादा मजबूत बन सकता है। सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्देश एक अद्भुत कदम है, लेकिन अब जरूरत इस बात की है कि हम साथ आएं और इस निर्देश को अमल में लाएं। ताकि हमारा लोकतंत्र और मजबूत बने तथा हमारा देश आने वाले वर्षों में बेहतर तरीके से उभरकर सामने आए।
नरेन्द्र मोदी