प्रिय मित्रों,

राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर मैं अपने देशबंधुओं को शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं। आज के दिन हम उस महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद को याद करते हैं, जिन्होंने अपनी जादुई हॉकी स्टिक से पूरी दुनिया को मंत्रमुग्ध कर दिया था और समूचे विश्व में भारत के नाम का डंका बजा दिया था। इस वर्ष विविध खेलकूद प्रतिस्पर्धाओं में अवार्ड जीतने वाले अपने खिलाड़ियों को भी मैं इस अवसर पर शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं।

मुझे यकीन है कि हममे से हर किसी के मन में खेलकूद के साथ जुड़ी हुई कई यादें होंगी। याद होगा कि जब हमने पहली बार क्रिकेट का बल्ला अपने हाथ में थामा था। छोटे थे तो लगता था कि, व्याकरण, बीजगणित या इतिहास के लंबे पिरियेड के बजाय उतना ही वक्त यदि खेलकूद के लिए दिया जाता तो कितना अच्छा होता। भारत ने विश्व कप जीता या अन्य दूसरे पदक जीते, तब आप को कितनी खुशी हुई थी? चैम्पियंस लीग या ईपीएल फुटबाल का मैच चल रहा हो उस दिन ट्विटर या फेसबुक पर लॉग इन कर के तो देखिए, समझ आ जाएगा कि जोश और जज्बा किसे कहते हैं!

मैं मानता हूं कि अंग्रेजी भाषा के तीन ‘सी’ – कैरेक्टर, कम्यूनिटी और कंट्री (चरित्र, समाज और देश) – खेलकूद के साथ बड़ी अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं।

यदि खेलकूद आप के जीवन का हिस्सा नहीं है तो आपका व्यक्तित्व सर्वांगीण नहीं कहा जा सकता। मैं निश्चित तौर पर मानता हूं कि, “जो खेले, वो खिले।” बिना खेलकूद के खेलभावना भी नहीं हो सकती। प्रत्येक खेल हमें कुछ न कुछ प्रदान करता है। खेल का दोहरा लाभ है, एक तो वह हमारे कौशल को विकसित करता है और दूसरा वह हमारे व्यक्तित्व का विकास भी करता है। और इसीलिए स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि, “गीता के अध्ययन के बजाय फुटबाल खेलकर आप स्वर्ग के ज्यादा निकट पहुंच सकते हैं।” हम सभी समाज में रहते हैं और समाज में परस्पर सहिष्णुता और भाईचारे का माहौल बनाने के लिए खेलकूद से बेहतर माध्यम शायद ही दूसरा कोई मिले।

खेल हमें परस्पर एकता का पाठ पढ़ाता है, परस्पर सौहार्द रखना सीखाता है, क्योंकि जब हम बतौर एक टीम खेलते हैं तब यह भूल जाते हैं कि हमारा साथी खिलाड़ी किस जाति, धर्म या संप्रदाय का है। उसके आर्थिक हालात की ओर भी हमारा ध्यान नहीं जाता। बस, हमारी टीम जीते यही हमारे लिए महत्वपूर्ण होता है। मैंने ऐसे कई आजीवन मित्र देखे हैं जिनकी मित्रता की शुरुआत खेल के मैदान से हुई थी।

हमने गुजरात के खेल महाकुंभ के दौरान ऐसी ही एकता और सामाजिक सौहार्द के वातावरण को उजागर होते देखा था। गुजरात के हर क्षेत्र से, हर उम्र के लोगों ने विविध खेल स्पर्धाओं में भाग लिया था। वर्ष २०१२-१३ के खेल महाकुंभ में लाखों खिलाड़ियों ने हिस्सा लेकर एक नया रिकार्ड बनाया। मौजूदा वर्ष के खेल महाकुंभ में हम अंडर-१२ की नई श्रेणी शुरू करने जा रहे हैं, जिससे युवा प्रतिभाओं को बाहर आने का मौका मिल मिलेगा। प्रतिभावान युवा खिलाड़ी खेल की दुनिया में अपना ख्वाब साकार कर सके, इसके लिए सरकार उनके विवध व्यय भी वहन करेगी। कुछ वर्ष पूर्व हमने विकलांग खिलाड़ियों को भी खेल महाकुंभ में शामिल किया था। बात कुछ ऐसी है कि, विकलांग युवा खिलाड़ियों का एक समूह जो चीन में एक टुर्नामेंट जीतकर आया था, वह मुझसे मिलने आया। मैंने उनके साथ दो घंटे का वक्त बिताया, उनके साथ वार्तालाप किया... यह अवसर मेरे दिल को छू गया। हमने तय किया कि विकलांग खिलाड़ियों को भी अधिकतम अवसर प्रदान किए जाएं ताकि वे खेल के मैदान पर अपना जलवा बिखेर सकें। इसके पश्चात हमनें खेल महाकुंभ में उनका समावेश करने का निर्णय किया। खेल महाकुंभ २०१२-१३ में हजारों विकलांग खिलाड़ियों ने अपने जबर्दस्त खेल से लोगों को अचरज में डाल दिया।

एक पदक या एक ट्रॉफी अपने देश को देने के लिए एक महान भेंट है। निश्चित तौर पर, खेलकूद के क्षेत्र में सफलता हासिल करना राष्ट्रीय गर्व के समान है। जब कोई राष्ट्र ओलंपिक या विश्व कप जैसी स्पर्धाओं का आयोजन करता है, तब खेल के साथ उस देश की संस्कृति भी उससे संलग्न हो जाती है। देश अपनी संस्कृति और इतिहास को समग्र विश्व के समक्ष पेश कर सकता है। ऐसे आयोजनों की वजह से अर्थव्यवस्था को बल मिलता है और पर्यटकों की संख्या में भी बढ़ोतरी होती है। लिहाजा, हमारे युवा खिलाड़ियों के मन में खेलभावना का विकास हो, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।

खेल महाकुंभ के अलावा गुजरात ने एक स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी की स्थापना की है, जो समग्र देश की खेल क्षेत्र की प्रतिभाओं को विकसित करने के लिए एक अनन्य पहल है। इसके अलावा खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए हर जिले में स्पोर्ट्स स्कूल की स्थापना की जाएगी। शिक्षा के साथ खेल को संकलित कर बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है। स्वामी विवेकानंद की १५०वीं जयंती के तहत खेलों को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य के साथ गुजरात के हर कोने में विवेकानंद युवा केन्द्रों की स्थापना की गई है। युवाओं को स्पोर्ट्स किट वितरित किए गए हैं। इन सारे प्रयासों के बावजूद हमें अभी भी बहुत कुछ करना है। मुझे ज्ञात हुआ है कि शैक्षिक दबाव के चलते लोगों का ध्यान खेलकूद से घटा है और जिस वक्त बच्चे पढ़ नहीं रहे होते हैं, उस वक्त वे अपने कंप्यूटर पर गेम्स खेल रहे होते हैं। यह हमारी बड़ी विफलता है। चलिए, एक ऐसा वातावरण सृजित करें और ऐसे अवसर खड़े करें ताकि प्रत्येक बालक कुछ समय के लिए घर से बाहर निकल कर खेलने जाए। कंप्यूटर टेबल पर बैठ कर स्कोर बनाने की बजाय क्रिकेट के मैदान पर छक्का ठोकना या फिर फुटबाल के मैदान में गोल दागना क्या ज्यादा अच्छा नहीं है? दूसरा अच्छा आइडिया यह है कि एक पूरा परिवार थोड़ा समय निकाल कर साथ मिलकर कोई खेल खेले।

मुझे पता है कि ऐसे कई खिलाड़ी हैं जो अत्यंत प्रतिभाशाली हैं लेकिन वित्तीय एवं पर्याप्त साधन के अभाव के चलते उन्हें मौके से हाथ धोना पड़ा। सरकार के रूप में हम प्रयास कर ही रहे हैं, लेकिन इस कार्य में मुझे आपके सहयोग की भी आवश्यकता है।

वर्ष २०२० के ओलंपिक में भारत ढेर सारे पदक जीते इस उद्देश्य के साथ खिलाड़ियों को वित्तीय सहायता देने और उन्हें तैयार करने के लिए औद्योगिक घराने एक कोष बनाएं तो कैसा रहेगा? इसे वे अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का एक हिस्सा मान सकते हैं। इसी तरह, हमारे एनआरआई मित्र जो अपनी मातृभूमि को मदद करने में कभी पीछे नहीं रहते, वे भी इसी तर्ज पर अपना योगदान दे सकते हैं या फिर किसी स्पर्धा को प्रायोजित कर और अपने गांव में खेलकूद के लिए जरूरी ढांचा खड़ा करने में भी मददगार साबित हो सकते हैं।

चलिए, हम सभी प्रण लें कि बच्चों को एक आनंदपूर्ण और उत्साह से लबरेज बचपन और जवानी की भेंट दें ताकि राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित हो ऐसे भव्य भविष्य की बुनियाद रखी जा सके।

 

 

नरेन्द्र मोदी

 

Watch : Shri Narendra Modi speaks during the opening ceremony of Khel Mahakumbh 2011 in Vadodara

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एकता का महाकुंभ, युग परिवर्तन की आहट
February 27, 2025

महाकुंभ संपन्न हुआ...एकता का महायज्ञ संपन्न हुआ। जब एक राष्ट्र की चेतना जागृत होती है, जब वो सैकड़ों साल की गुलामी की मानसिकता के सारे बंधनों को तोड़कर नव चैतन्य के साथ हवा में सांस लेने लगता है, तो ऐसा ही दृश्य उपस्थित होता है, जैसा हमने 13 जनवरी के बाद से प्रयागराज में एकता के महाकुंभ में देखा।

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22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में मैंने देवभक्ति से देशभक्ति की बात कही थी। प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान सभी देवी-देवता जुटे, संत-महात्मा जुटे, बाल-वृद्ध जुटे, महिलाएं-युवा जुटे, और हमने देश की जागृत चेतना का साक्षात्कार किया। ये महाकुंभ एकता का महाकुंभ था, जहां 140 करोड़ देशवासियों की आस्था एक साथ एक समय में इस एक पर्व से आकर जुड़ गई थी।

तीर्थराज प्रयाग के इसी क्षेत्र में एकता, समरसता और प्रेम का पवित्र क्षेत्र श्रृंगवेरपुर भी है, जहां प्रभु श्रीराम और निषादराज का मिलन हुआ था। उनके मिलन का वो प्रसंग भी हमारे इतिहास में भक्ति और सद्भाव के संगम की तरह ही है। प्रयागराज का ये तीर्थ आज भी हमें एकता और समरसता की वो प्रेरणा देता है।

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बीते 45 दिन, प्रतिदिन, मैंने देखा, कैसे देश के कोने-कोने से लाखों-लाख लोग संगम तट की ओर बढ़े जा रहे हैं। संगम पर स्नान की भावनाओं का ज्वार, लगातार बढ़ता ही रहा। हर श्रद्धालु बस एक ही धुन में था- संगम में स्नान। मां गंगा, यमुना, सरस्वती की त्रिवेणी हर श्रद्धालु को उमंग, ऊर्जा और विश्वास के भाव से भर रही थी।

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प्रयागराज में हुआ महाकुंभ का ये आयोजन, आधुनिक युग के मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स के लिए, प्लानिंग और पॉलिसी एक्सपर्ट्स के लिए, नए सिरे से अध्ययन का विषय बना है। आज पूरे विश्व में इस तरह के विराट आयोजन की कोई दूसरी तुलना नहीं है, ऐसा कोई दूसरा उदाहरण भी नहीं है।

पूरी दुनिया हैरान है कि कैसे एक नदी तट पर, त्रिवेणी संगम पर इतनी बड़ी संख्या में करोड़ों की संख्या में लोग जुटे। इन करोड़ों लोगों को ना औपचारिक निमंत्रण था, ना ही किस समय पहुंचना है, उसकी कोई पूर्व सूचना थी। बस, लोग महाकुंभ चल पड़े...और पवित्र संगम में डुबकी लगाकर धन्य हो गए।

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मैं वो तस्वीरें भूल नहीं सकता...स्नान के बाद असीम आनंद और संतोष से भरे वो चेहरे नहीं भूल सकता। महिलाएं हों, बुजुर्ग हों, हमारे दिव्यांग जन हों, जिससे जो बन पड़ा, वो साधन करके संगम तक पहुंचा।

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और मेरे लिए ये देखना बहुत ही सुखद रहा कि बहुत बड़ी संख्या में भारत की आज की युवा पीढ़ी प्रयागराज पहुंची। भारत के युवाओं का इस तरह महाकुंभ में हिस्सा लेने के लिए आगे आना, एक बहुत बड़ा संदेश है। इससे ये विश्वास दृढ़ होता है कि भारत की युवा पीढ़ी हमारे संस्कार और संस्कृति की वाहक है और इसे आगे ले जाने का दायित्व समझती है और इसे लेकर संकल्पित भी है, समर्पित भी है।

इस महाकुंभ में प्रयागराज पहुंचने वालों की संख्या ने निश्चित तौर पर एक नया रिकॉर्ड बनाया है। लेकिन इस महाकुंभ में हमने ये भी देखा कि जो प्रयाग नहीं पहुंच पाए, वो भी इस आयोजन से भाव-विभोर होकर जुड़े। कुंभ से लौटते हुए जो लोग त्रिवेणी तीर्थ अपने साथ लेकर गए, उस जल की कुछ बूंदों ने भी करोड़ों भक्तों को कुंभ स्नान जैसा ही पुण्य दिया। कितने ही लोगों का कुंभ से वापसी के बाद गांव-गांव में जो सत्कार हुआ, जिस तरह पूरे समाज ने उनके प्रति श्रद्धा से सिर झुकाया, वो अविस्मरणीय है।

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ये कुछ ऐसा हुआ है, जो बीते कुछ दशकों में पहले कभी नहीं हुआ। ये कुछ ऐसा हुआ है, जो आने वाली कई-कई शताब्दियों की एक नींव रख गया है।

प्रयागराज में जितनी कल्पना की गई थी, उससे कहीं अधिक संख्या में श्रद्धालु वहां पहुंचे। इसकी एक वजह ये भी थी कि प्रशासन ने भी पुराने कुंभ के अनुभवों को देखते हुए ही अंदाजा लगाया था। लेकिन अमेरिका की आबादी के करीब दोगुने लोगों ने एकता के महाकुंभ में हिस्सा लिया, डुबकी लगाई। 

आध्यात्मिक क्षेत्र में रिसर्च करने वाले लोग करोड़ों भारतवासियों के इस उत्साह पर अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि अपनी विरासत पर गौरव करने वाला भारत अब एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ रहा है। मैं मानता हूं, ये युग परिवर्तन की वो आहट है, जो भारत का नया भविष्य लिखने जा रही है।

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साथियों,

महाकुंभ की इस परंपरा से, हजारों वर्षों से भारत की राष्ट्रीय चेतना को बल मिलता रहा है। हर पूर्णकुंभ में समाज की उस समय की परिस्थितियों पर ऋषियों-मुनियों, विद्वत् जनों द्वारा 45 दिनों तक मंथन होता था। इस मंथन में देश को, समाज को नए दिशा-निर्देश मिलते थे। 

इसके बाद हर 6 वर्ष में अर्धकुंभ में परिस्थितियों और दिशा-निर्देशों की समीक्षा होती थी। 12 पूर्णकुंभ होते-होते, यानि 144 साल के अंतराल पर जो दिशा-निर्देश, जो परंपराएं पुरानी पड़ चुकी होती थीं, उन्हें त्याग दिया जाता था, आधुनिकता को स्वीकार किया जाता था और युगानुकूल परिवर्तन करके नए सिरे से नई परंपराओं को गढ़ा जाता था। 

144 वर्षों के बाद होने वाले महाकुंभ में ऋषियों-मुनियों द्वारा, उस समय-काल और परिस्थितियों को देखते हुए नए संदेश भी दिए जाते थे। अब इस बार 144 वर्षों के बाद पड़े इस तरह के पूर्ण महाकुंभ ने भी हमें भारत की विकासयात्रा के नए अध्याय का संदेश दिया है। ये संदेश है- विकसित भारत का। 

जिस तरह एकता के महाकुंभ में हर श्रद्धालु, चाहे वो गरीब हों या संपन्न हों, बाल हो या वृद्ध हो, देश से आया हो या विदेश से आया हो, गांव का हो या शहर का हो, पूर्व से हो या पश्चिम से हो, उत्तर से हो दक्षिण से हो, किसी भी जाति का हो, किसी भी विचारधारा का हो, सब एक महायज्ञ के लिए एकता के महाकुंभ में एक हो गए। एक भारत-श्रेष्ठ भारत का ये चिर स्मरणीय दृश्य, करोड़ों देशवासियों में आत्मविश्वास के साक्षात्कार का महापर्व बन गया। अब इसी तरह हमें एक होकर विकसित भारत के महायज्ञ के लिए जुट जाना है।

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साथियों,

आज मुझे वो प्रसंग भी याद आ रहा है जब बालक रूप में श्रीकृष्ण ने माता यशोदा को अपने मुख में ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे। वैसे ही इस महाकुंभ में भारतवासियों ने और विश्व ने भारत के सामर्थ्य के विराट स्वरूप के दर्शन किए हैं। हमें अब इसी आत्मविश्वास से एक निष्ठ होकर, विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने के लिए आगे बढ़ना है।

भारत की ये एक ऐसी शक्ति है, जिसके बारे में भक्ति आंदोलन में हमारे संतों ने राष्ट्र के हर कोने में अलख जगाई थी। विवेकानंद हों या श्री ऑरोबिंदो हों, हर किसी ने हमें इसके बारे में जागरूक किया था। इसकी अनुभूति गांधी जी ने भी आजादी के आंदोलन के समय की थी। आजादी के बाद भारत की इस शक्ति के विराट स्वरूप को यदि हमने जाना होता, और इस शक्ति को सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की ओर मोड़ा होता, तो ये गुलामी के प्रभावों से बाहर निकलते भारत की बहुत बड़ी शक्ति बन जाती। लेकिन हम तब ये नहीं कर पाए। अब मुझे संतोष है, खुशी है कि जनता जनार्दन की यही शक्ति, विकसित भारत के लिए एकजुट हो रही है।

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वेद से विवेकानंद तक और उपनिषद से उपग्रह तक, भारत की महान परंपराओं ने इस राष्ट्र को गढ़ा है। मेरी कामना है, एक नागरिक के नाते, अनन्य भक्ति भाव से, अपने पूर्वजों का, हमारे ऋषियों-मुनियों का पुण्य स्मरण करते हुए, एकता के महाकुंभ से हम नई प्रेरणा लेते हुए, नए संकल्पों को साथ लेकर चलें। हम एकता के महामंत्र को जीवन मंत्र बनाएं, देश सेवा में ही देव सेवा, जीव सेवा में ही शिव सेवा के भाव से स्वयं को समर्पित करें।

साथियों, 

जब मैं काशी चुनाव के लिए गया था, तो मेरे अंतरमन के भाव शब्दों में प्रकट हुए थे, और मैंने कहा था- मां गंगा ने मुझे बुलाया है। इसमें एक दायित्व बोध भी था, हमारी मां स्वरूपा नदियों की पवित्रता को लेकर, स्वच्छता को लेकर। प्रयागराज में भी गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम पर मेरा ये संकल्प और दृढ़ हुआ है। गंगा जी, यमुना जी, हमारी नदियों की स्वच्छता हमारी जीवन यात्रा से जुड़ी है। हमारी जिम्मेदारी बनती है कि नदी चाहे छोटी हो या बड़ी, हर नदी को जीवनदायिनी मां का प्रतिरूप मानते हुए हम अपने यहां सुविधा के अनुसार, नदी उत्सव जरूर मनाएं। ये एकता का महाकुंभ हमें इस बात की प्रेरणा देकर गया है कि हम अपनी नदियों को निरंतर स्वच्छ रखें, इस अभियान को निरंतर मजबूत करते रहें।

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मैं जानता हूं, इतना विशाल आयोजन आसान नहीं था। मैं प्रार्थना करता हूं मां गंगा से...मां यमुना से...मां सरस्वती से...हे मां हमारी आराधना में कुछ कमी रह गई हो तो क्षमा करिएगा...। जनता जनार्दन, जो मेरे लिए ईश्वर का ही स्वरूप है, श्रद्धालुओं की सेवा में भी अगर हमसे कुछ कमी रह गई हो, तो मैं जनता जनार्दन का भी क्षमाप्रार्थी हूं।

साथियों,

श्रद्धा से भरे जो करोड़ों लोग प्रयाग पहुँचकर इस एकता के महाकुंभ का हिस्सा बने, उनकी सेवा का दायित्व भी श्रद्धा के सामर्थ्य से ही पूरा हुआ है। यूपी का सांसद होने के नाते मैं गर्व से कह सकता हूं कि योगी जी के नेतृत्व में शासन, प्रशासन और जनता ने मिलकर, इस एकता के महाकुंभ को सफल बनाया। केंद्र हो या राज्य हो, यहां ना कोई शासक था, ना कोई प्रशासक था, हर कोई श्रद्धा भाव से भरा सेवक था। हमारे सफाईकर्मी, हमारे पुलिसकर्मी, नाविक साथी, वाहन चालक, भोजन बनाने वाले, सभी ने पूरी श्रद्धा और सेवा भाव से निरंतर काम करके इस महाकुंभ को सफल बनाया। विशेषकर, प्रयागराज के निवासियों ने इन 45 दिनों में तमाम परेशानियों को उठाकर भी जिस तरह श्रद्धालुओं की सेवा की है, वह अतुलनीय है। मैं प्रयागराज के सभी निवासियों का, यूपी की जनता का आभार व्यक्त करता हूं, अभिनंदन करता हूं।

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साथियों, 

महाकुंभ के दृश्यों को देखकर, बहुत प्रारंभ से ही मेरे मन में जो भाव जगे, जो पिछले 45 दिनों में और अधिक पुष्ट हुए हैं, राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य को लेकर मेरी आस्था, अनेक गुना मजबूत हुई है।

140 करोड़ देशवासियों ने जिस तरह प्रयागराज में एकता के महाकुंभ को आज के विश्व की एक महान पहचान बना दिया, वो अद्भुत है।

देशवासियों के इस परिश्रम से, उनके प्रयास से, उनके संकल्प से अभीभूत मैं जल्द ही द्वादश ज्योतिर्लिंग में से प्रथम ज्योतिर्लिंग, श्री सोमनाथ के दर्शन करने जाऊंगा और श्रद्धा रूपी संकल्प पुष्प को समर्पित करते हुए हर भारतीय के लिए प्रार्थना करूंगा।

महाकुंभ का स्थूल स्वरूप महाशिवरात्रि को पूर्णता प्राप्त कर गया है। लेकिन मुझे विश्वास है, मां गंगा की अविरल धारा की तरह, महाकुंभ की आध्यात्मिक चेतना की धारा और एकता की धारा निरंतर बहती रहेगी।