आज एक एसा कार्यक्रम है जिसमें दुनिया में एग्रीकल्चर सेक्टर में जिन्होंने सविशेष काम किया है ऐसे सात देश, इज़राइल है, इटली है, यू.एस.ए. है... यानि सात देश आज गुजरात के इस कार्यक्रम में भागीदार हैं। ये अपने आप में हम कृषि को कहाँ ले जाना चाहते हैं उसका एक उत्तम उदाहरण है। ये एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें गुजरात-बाहर से करीब 2000 किसान आज इस समारंभ में मौजूद हैं, जो गुजरात-बाहर से आए हैं। गुजरात बाहर से यह हमारा पहला प्रयास है। कृषि के क्षेत्र में इस प्रकार का इनिशियेटिव लेने का यह हमारे गुजरात का पहला प्रयास है, जिसमें देश और दुनिया को जोडऩे की हमारी कोशिश है। और पहले प्रयास में यहाँ गुजरात समेत 11 स्टेट्स, गयारह स्टेट्स इसके भागीदार बने हैं। मैं स्वागत करता हूँ, तमिलनाडु के प्रतिनिधियों का, जो तमिलनाडु से आए हैं... कम से कम तालियाँ बजाईए, ताकि लोगों को पता चले कि तमिलनाडु यहाँ है..! मध्यप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, अंदमान निकोबार... उस छोर से भी किसान आए हैं, महाराष्ट्र.... दे आर इन मैक्सिमम नंबर, एंड इवन जम्मू-कश्मीर..! ये अपने आप में इस कार्यक्रम के स्वरूप और सफलता को दर्शाता है। मेरी भाषा आज थोड़ी मिली जुली रहेगी, क्योंकि कुछ विदेश के मित्र आए हैं, उनके सामने भी कुछ बातें मैं बताना चाहता हूँ। अन्य राज्यों से भी आए हैं, इसलिए मेरे गुजरात के मित्र, मेरे किसान भाई मुझे क्षमा करें। मैं आज अगर हिन्दी में बोलता हूँ, लेकिन हमारे गुजरात के किसान को हिन्दी समझने में कोई दिक्कत नहीं होती है, वो भली-भांति हर बात समझ लेता है।

देवियों और सज्जनों, इस सम्मेलन का हिस्सा बन कर मुझे बहुत खुशी हो रही है। इस तरह के सम्मेलन आम नहीं होते हैं। यह एक बहुत ही विशेष अवसर है। यह सम्मेलन कृषि उत्पादकों, मशीनरी उत्पादकों, निर्यातकों, वैज्ञानिकों तथा टेक्नोक्रेट्स का एक दुलर्भ जमाव है। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि इस सम्मेलन के दौरान आप कृषि क्षेत्र में सुधार की संभावनाओं का विस्लेषण करने और नई जानकारीयों का अन्वेषण करने जा रहे हैं। इससे निश्चित तौर पर हमें गुजरात के अंदर लाभ मिलेगा। साथ ही, मुझे यकीन है कि इस कार्यक्रम में हुए विचार-विमर्श से एक बड़े वैश्विक समुदाय को कृषि क्षेत्र के लिए बेहतर तरीके खोजने में मदद मिलेगी। ऐसे मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए गुजरात से बेहतर जगह नहीं हो सकती है। गुजरात ने कृषि क्षेत्र में पिछले एक दशक में एक बहुत रोचक लेबोरेटरी तथा कम भूमिक्षेत्र को विकसित किया है। फिर से, 2 से 3% के राष्ट्रीय औसत विकास दर के सामने, गुजरात के कृषि क्षेत्र में लगातार एक दशक से ज्यादा समय तक 10% से वृद्धि हुई है। वर्षा पर निर्भर कृषि से हम सिंचाई के पानी पर निर्भर कृषि की ओर बढ़े हैं। भूमिगत जल के दोहन से हम धरातल के जल की पर्याप्तता की ओर अग्रसर हुए हैं। निर्वाहन खेती से हम नकदी फसलों की ओर बढ़े हैं। सिंचाई के पानी की बर्बादी से हम माइक्रो इरीगेशन की ओर बढ़े हैं। रसायनों के अधिक मात्रा में प्रयोग से हम वैज्ञानिक जानकारी के लिए ‘सॉइल हैल्थ कार्ड’ तैयार किए हैं। हमारे किसानों की आय पिछले एक दशक में सात गुना बढ़ गई है। एक उपेक्षित क्षेत्र से हमारा कृषि क्षेत्र एक केन्द्रित क्षेत्र बन गया है तथा यह सम्मेलन उसका एक उदाहरण है। अन्यथा, इसे ‘वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट’ के हिस्से के रूप में आयोजित नहीं किया गया होता। हम यह कर रहे हैं क्योंकि यह क्षेत्र एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है और हम जानते हैं कि हम इससे भी बेहतर कर सकते हैं। हम खेती के मशीनीकरण, उत्पादकता में वृद्धि, कृषि के लिए मूलभूत व्यवस्थाएँ तैयार करना तथा अंतत: मूल्यवर्धन, संरक्षण, पैकेजिंग तथा मार्केटिंग के संदर्भ में काफी बेहतर करना चाहते हैं। इसके अलावा, वर्तमान वैश्वीकृत परिवेश में भी कृषि तथा इससे जुड़ी सभी संबंधित क्रियाओं में एक समग्रतावादी दृष्टिकोण की जरूरत है। कृषि और उद्योगों के बीच आगे और पीछे की कड़ियों को मजबूत बनाना आवश्यक बन गया है। मित्रों, आप तो जानते हैं कि कृषि क्षेत्र मानवता के लिए भी बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह ना केवल महत्वपूर्ण है बल्कि आज हमारा पेट भरता है तथा एक तरह से हमारा निर्माण करता है कि हम स्वस्थ रहें। इसके अलावा, हमें कृषि समृद्घि को सक्षम करने के मार्ग इस तरह से ढूंढ़ने होंगे कि धरती तथा जल जैसे हमारे प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन ना हो जाए। भारत जैसे देश के लिए तो यह क्षेत्र और भी अधिक महत्वपूर्ण है। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। यह भारतीय नीति निर्माण में अपना एक विशेष स्थान रखती है, ना केवल इसके जी.डी.पी. में सहयोग के कारण, बल्कि इसलिए भी कि जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा इस क्षेत्र पर निर्भर है। भारत की लगभग 60% आबादी कृषि पर सीधे निर्भर करती है। मित्रों, पिछले दशक में गुजरात भारत के सबसे प्रगतिशील राज्यों में से एक के रूप में उभरा है, चाहे वो औद्योगिक क्षेत्र में हो या फिर कृषि क्षेत्र में। देश के औद्योगिक उत्पादन में अच्छा योगदान देते हुए गुजरात औद्योगिक क्षेत्र में लगातार तेजी से प्रगति कर रहा है। और उसके साथ-साथ, गुजरात ने जिस तरह से देश में कृषि को देखा जाता है उस नजरिए को भी बदला है।

भाइयों और बहनों, इन बातों के साथ मैं कुछ बातें और भी बताना चाहता हूँ। हम लोग ‘वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट’ करतें हैं। उस समिट के साथ, हम हर बार कोई ना कोई स्पेशल इवेन्ट भी रखते हैं। जब हमने 2007 में वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट किया था, तो उसके पूर्व हमने इन्फोर्मेशन टैक्नोलॉजी के लिए एक अलग ग्लोबल समिट किया था। जब हमने 2009 में और 2011 में वाइब्रेंट समिट किये, तो दोनों समय हमने नॉलेज को आधार बना करके युनिवर्सिटीस् के साथ, नॉलेज पार्टनर्स के साथ, राउंड टेबल कान्फरेंस करके उस हमारे इन्वेस्ट्मेन्ट समिट को एक नया रूप दिया था। जब हम 2013 में, जनवरी महीने में वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट करने जा रहे हैं तब, हमने सोचा कि इस वर्ष उसी वाइब्रेंट समिट के हिस्से के रूप में, पहले हम एग्रीकल्चर सेक्टर को ध्यान में रखते हुए एक डेडिकेटेड ‘वाइब्रेंट समिट फॉर एग्रीकल्चर सेक्टर’ करें और उसी का परिणाम है कि आज हम सब बैठ कर के एग्रीकल्चर सेक्टर में हम क्या कर सकते हैं उसका विचार-विमर्श करने जा रहे हैं। हमारे देश में इस प्रकार का यह पहला इनिशियेटिव है जो किसी राज्य ने लिया हो और इसकी सफलता को देखते हुए, क्योंकि इसको हमने ज्यादा हाइप नहीं किया, बहुत लो प्रोफाइल शुरू किया था। ये आज इतना बड़ा समारोह हो रहा है, अब तक अखबार में इसके संबंध में एक लाइन भी नहीं छपी है, टी.वी. में भी कोई खबर नहीं आई है। उसके बावजूद भी 11 प्रदेश और हजारों की तादाद में किसानों का यहाँ होना, सात देशों की पार्टनरशिप होना, ये अपने आप में कितना मेटिक्युलस्ली, साइलेन्ट्ली इस काम को हमने ऑर्गेनाइज़ किया होगा, कितना महत्व दिया होगा, इसका आपको अंदाज आ सकता है। और इसकी सफलता को देखते हुए, मैं आज आप सबको बताना चाहता हूँ कि दुनिया में सबसे बड़ा एग्रीकल्चर फेयर इज़राइल करता है, और हर तीन वर्ष में एक बार करता है। और दुनिया के सौ से अधिक देश इज़राइल के उस काम में जुड़ते हैं। हमारे हिंदुस्तान से भी इज़राइल के एग्रीकल्चर फेयर को देखने के लिए हर वर्ष 15 से 20 हज़ार किसान, अपना जेब का खर्चा करके वहाँ जाते हैं। गुजरात से भी 1200, 1500, 2000 किसान इज़राइल के एग्रीकल्चर फेयर को देखने के लिए जाते हैं। करोड़ों रूपया खर्च, हमारा किसान, हमारे देश का किसान, भारत के एग्रीकल्चर में कुछ नया लाने के लिए, कुछ सीखने के लिए इज़राइल जाता है। भाइयों-बहनों, गुजरात सरकार ने तय किया है कि अब हम आगे, जैसे हम ‘वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट’ करते हैं, उसी प्रकार से, अलग से, एवरी थ्री ईयर्स, इज़राइल भी हर तीन साल में एक बार करता है, हम भी हर तीन साल में एक बार, इसी लेवल का, इज़राइल के लेवल का ‘वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल एग्रीकल्चर इवेंट’ हम करेंगे, और उसमें कृषि के क्षेत्र में दुनिया में जितने नए संशोधन हुए हैं, दुनिया में जितनी नई प्रगति हुई है, हर तीन वर्ष में एक बार इसी ‘महात्मा मंदिर’ में, किसानों के लिए मैं मेला लगाऊंगा और हिंदुस्तान भर के किसान, कृषि क्षेत्र में हम कैसे आगे बढ़ें...

हमारे देश में कुछ मान्यताएं बन गई हैं, गुजरात ने उन मान्याताओं को बदलने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। हमारे देश में खेती तो ऐसे ही होती है, एक एकर में इतना ही पैदा होता है, अरे भइया, ये ज्वार किया है तो ज्वार के बिना कुछ हो नहीं सकता है... ऐसी एक निराशा की मानसिकता घर कर गई है। हमने गुजरात के एक्सपीरियंस से देखा है कि हमारे यहाँ भी आज से दस साल पहले मान्यता यही थी। एक जमाना था कि जब माना जाता था कि उत्तम खेती, मध्यम व्यापार और कनिष्ठ नौकरी। ये कहावत हमारे यहाँ हर घर में थी, लेकिन धीरे-धीरे स्थिति क्या बनी..? किसान के परिवार में अगर तीन बच्चे हैं, तो बाप सोचता है ये जो होनहार बच्चा है, पढ़ा-लिखा और समझदार बच्चा है, उसको बोलो कहीं सरकार में बाबू बन जाए। ये दूसरा थोड़ा ठीक है... चलो, उसको कोई छोटी-मोटी दुकान लगवा दो, पान का ठेका लगा दो, व्यापार में लगा दो, काम कर लेगा..! ये जो बुद्धु बच्चा है घर में तीसरा, कम क्षमता है, चलो उसको खेती के काम में लगा देता हूँ..! घर में भी यह सोच बन गई थी कि भाई, कृषि से कुछ निकलने वाला नहीं है, पेट भरने वाला नहीं है, घर चलने वाला नहीं है, छोड़ो यार, कृषि की तरफ इन्वेस्टमेंट करने की जरूरत नहीं है। जो बच्चा कम क्षमता वाला है, उसी को उसमें लगा दो। ये सोच बन गई थी किसी जमाने में..! भाइयों-बहनों, हमने ये बीड़ा उठाया है, जो सदियों पहले हमारे पूर्वज कहते थे कि अगर उतम से उत्तम कोई काम है तो वह खेती है, कृषि है, हम फिर से एक बार उसको पुनर्स्थापित करना चाहते हैं कि हिंदुस्तान जैसे देश में अगर उत्तम से उत्तम करने जैसा कोई काम है, तो वह खेती है। और मैंने देखा है, अभी कई किसान भाई-बहनों को मुझे सम्मानित करने का अवसर मिला। बहुत कम किसान उसमें ऐसे थे, जो पचास-पचपन की उम्र से ऊपर के थे। अधिकतम किसान नौजवान थे। धोती-कुर्ते में नहीं थे, सिर पर पगड़ी वाले नहीं थे, जींस का पैंट पहना हुआ था। यानि, नौजवान कृषि की ओर आकर्षित हुआ है, कृषि में नया प्रयोग करना चाहता है, उसने कृषि को महत्व दिया है, इसका जीता-जागता उदाहरण हमने अभी अपने मंच पर देखा है। अगर ये संभावनाएं बढ़ी हैं, तो हम लोगों का दायित्व बनता है कि हम कृषि को कैसे आगे बढ़ाएं..!

भाईयों-बहनों, पहले तो कृषि के विषय में सरकार भी सोचती थी, देश की सरकार भी सोचती थी, तो क्या सोचती थी? कि भाई, फसल खराब ना हो जाए ये देखो। उससे ज्यादा सोचा नहीं जाता था..! भारत सरकार का जो एग्रीकल्चर डिपार्टमेन्ट होता है, राज्य सरकार का जो एग्रीकल्चर डिपार्टमेन्ट होता है, कोई एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी होती है, एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट होता है, एग्रीकल्चर इंजीनियर होता है, एग्रो इन्फ्रास्ट्रक्चर होता है, एग्रो फंडिग होता है... इन सारे विषयों का हमारे देश में कोई तालमेल ही नहीं था। जिसका डिपार्टमेंट है वह बैठ कर अपना ऑफिस चला रहा है। युनिवर्सिटी वालों को लगता था कि हमें बी.एस.सी. (एग्रीकल्चर) बच्चे पैदा कर-कर के छोड़ देने हैं, बस..! यह सब टुकड़ों में ही चलता था। गुजरात सरकार ने सबको एक करने का, सबको एक प्लेटफार्म पर लाने का प्रयास किया। हमने कृषि महोत्सव के माध्यम से कृषि क्षेत्र की जितनी विधाएं है, जितनी शक्तियां है, जितनी सोच हैं, जितने अनुभव हैं, जितनी आशाएं हैं सबको जोड़ने का एक काम किया और एक नया विश्वास पैदा किया और सरकार एक कैटलिटिक एजेंट के रूप में, एक उद्दीपक की तरह उन सब के बीच में जुड़ी। और जुड़ने का परिणाम यह हुआ कि देश कृषि विकास को 3% से आगे नहीं ले जा रहा है, गुजरात जैसा प्रदेश जो कुदरत पर जीता है, जिसके पास नदियां नहीं है, उस गुजरात ने पूरा एक दशक 10% से ज्यादा कृषि विकास दर करके दुनिया के लोगों को भी अचंभे में डाल दिया है। इज़राइल की खेती की बहुत बड़ी तारीफ होती है, लेकिन इज़राइल के कांसुलेट जनरल ने जब यह सुना अभी मंच पर कि गुजरात 10% है, तो उन्हें आश्चर्य हुआ। यानि इज़राइल के लोगों को भी सरप्राइज हो रहा है कि यह गुजरात कैसे 10% पहुंचा है..! भाइयों-बहनों, गुजरात अगर पहुंच सकता है, तो हिंदुस्तान भी पहुंच सकता है। और भाइयों-बहनों, हमने सपना देखा है, अगर हम सपने देखें तो स्थितियां बदली जा सकती हैं..!

हम सबको याद है यहाँ जिनकी आयु 55-60 साल की हुई होगी, उन सबको पुरानी कथाएं याद होंगी। हमारे देश में पेट भरने के लिए नेहरू के जमाने में पी.एच.480 गेहूँ विदेश से लाना पड़ता था। पंडित नेहरू के जमाने में हिंदुस्तान को पेट भरने के लिए हिंदुस्तान में अन्न पैदा नहीं होता था, अन्न बाहर से लाना पड़ता था। पी.एच.480 गेहूँ गुजरात के बंदरगाहों पर आते थे और पूरे देश में जाते थे। सरकार की आधी मशीनरी इस बात में बिज़ी रहती थी कि बंदरगाहों पर माल कब पहुंचेगा, वह माल कब उठाया जाएगा, उस माल को हिंदुस्तान के कोने-कोने में कैसे पहुंचाया जाएगा... सरकार की आधी मशीनरी उसी में लगी रहती थी। वह दिन हिंदुस्तान ने देंखे हैं, आजाद हिंदुस्तान ने देखें हैं। लेकिन एक लाल बहादुर शास्त्री आए, और लाल बहादुर शास्त्री ने मंत्र दिया ‘जय जवान, जय किसान’..! और लाल बहादुर शास्त्री ने हिंदुस्तान के किसानों को कहा कि मेरा देश कृषि प्रधान हो, मेरे देश के किसानों में इतना दम हो और हिंदुस्तान को पेट भरने के लिए दुनिया की ओर देखना पड़े यह स्थिति मुझे मंजूर नहीं है, हमें कुछ करना चाहिए। उन्होंने हिंदुस्तान के किसानों से आह्वान किया और भारत के किसानों ने लाल बहादुर शास्त्री के शब्दों पर अपना जीवन लगा दिया और अन्न के भंडार भर दिए। मेरे देश के किसान ने रात-दिन पसीना बहाया, हिंदुस्तान में अन्न के भंडार भर दिए और उसके बाद इस देश को पेट भरने के लिए कभी विदेशों से कुछ लाने की जरूरत नहीं पड़ी। यह काम मेरे देश के किसानों ने किया है। यही जमीन, यही पानी, यही पद्धति, लेकिन सही नेतृत्व मिला तो देश का किसान खड़ा हो गया और देश के अन्न के भंडार भर दिए..! भाईयों-बहनों, क्या हम अपना ही पेट भरने के लिए पैदा हुए हैं क्या..? मेरे किसान भाइयों-बहनों, 11 राज्य के किसान मेरे सामने बैठे हैं। मैं गुजरात जैसे एक छोटे से राज्य का मुख्यमंत्री, आपका सेवक, मैं आपके दिलों में एक प्रश्र उठाना चाहता हूँ, मैं आपसे आह्वान करना चाहता हूँ, क्या हिंदुस्तान, हिंदुस्तान का किसान, सिर्फ अपना ही पेट भरने के लिए पैदा हुआ है? नहीं..! क्या हिंदुस्तान का किसान सिर्फ हिन्दुस्तानियों का पेट भरने के लिए पैदा हुआ है? नहीं..! भाइयों-बहनों, मेरे देश का किसान सपना देखे, पूरा हिंदुस्तान सपना देखे कि हम पूरे यूरोप का पेट भरने की ताकत रखते हैं, पूरे यूरोप का..! हम इतने आगे बढ़ें, इतने आगे बढ़ें कि यूरोप के लोगों को चावल चाहिए, गेहूँ चाहिए, सब्जी चाहिए, तो हिंदुस्तान के किसान पर निर्भर रहना पड़े। हिंदुस्तान का किसान जब तक भेजे नहीं तब तक उसका पेट ना भर पाए, इतनी ताकत हमें दिखानी चाहिए। सपना देखना चाहिए, हम पूरे यूरोप को खाना दे सकते हैं, पूरे यूरोप को खिला सकते हैं, यह सपना देख कर के हमने हमारे एग्रीकल्चर सेक्टर को आगे बढ़ाना चाहिए। और उसके लिए देश को जो करना पड़े, जो नीतियां लानी पड़े, वह लानी चाहिए। अगर हम मरते-मरते यह कहेंगे कि नहीं यार, चलो अपना घर चल जाए तो ठीक है, तो फिर प्रगति नहीं होगी। प्रगति तब होती है जब कुछ नया करने का इरादा हो, प्रगति तब होती है..! लाल बहादुर शास्त्री ने हिंदुस्तान को पेट भरने की ताकत तो दे दी, अब समय की मांग है और इस वाइब्रेंट गुजरात की समिट से, इस एग्रीकल्चर समिट से हम एक ऐसा संकल्प लेकर जाएं कि हम पूरे यूरोप को फीड कर सकें। हम पूरे यूरोप का राइस बाउल क्येां नहीं बन सकते, हम पूरे यूरोप का वेजिटेबल बाउल क्यों नहीं बन सकते, हम पूरे यूरोप का व्हीट बाउल क्यों नहीं बन सकते..? बनने का सामर्थ्य इस देश के किसानों में है, सपना वो देखना चाहिए। अगर उस सपने को पूरा करना है तो हमें एग्रीकल्चर टेक्नोलोजी में चेन्ज लाना पड़ेगा, हमारी पुरानी परंपराओं को बदलना पड़ेगा। फ्लड इरीगेशन से निकलना पड़ेगा और माइक्रो इरीगेशन की ओर जाना पड़ेगा।

मैं कुछ साल पहले एग्रीकल्चर फेयर में इज़राइल गया था और मैंने विश्व के लोगों के सामने एक प्रेज़न्टेशन रखा था कि गुजरात क्या सोचता है..! और उस प्रेज़न्टेशन का मेरा सेन्ट्रल आइडिया था उसमें मैंने कहा था कि हमने तय किया है ‘पर ड्रॉप, मॉर क्रॉप’..! ‘पर ड्रॉप, मॉर क्रॉप’, एक-एक जल बिंदु से, एक-एक बूँद भर पानी से हम अनाज पैदा करना चाहते हैं। कोई बूँद पानी की हम गंवाना नहीं चाहते, हर बूँद से कुछ ना कुछ पैदावार करना चाहते हैं। ‘पर ड्रॉप, मॉर क्रॉप’ का सपना हमनें संजोया है। और मुझे खुशी है कि मेरे गुजरात में 1960 से 2001 तक चालीस साल में एक हज़ार हैक्टेयर भूमि में भी माइक्रो इरीगेशन नहीं था, स्प्रिंक्लर्स नहीं थे, ड्रिप इरीगेशन नहीं था.., भाइयो-बहनों, पिछले दस साल लगातार जो हमने जो कोशिश की है, आज मेरे किसान भाइयों-बहनों ने मुझे जो सहयोग दिया, हमारी बात को मान लिया उसका नतीजा यह है कि चालीस साल में एक हज़ार हैक्टेयर में मुश्किल से माइक्रो इरीगेशन हुआ था, इन दिनों सात लाख हैक्टेयर भूमि में माइक्रो इरीगेशन हो रहा है..! कहाँ चालीस साल में एक हज़ार और कहाँ दस साल में सात लाख हैक्टेयर माइक्रो इरीगेशन..! पानी बचा रहे हैं, खेती में सुधार हुआ है। अभी मैं हमारे गुजरात के कुछ बंधु जो अवार्ड लेने आए थे, उसमें से एक बंधु का परिचय इज़राइल के काउन्सलर को कराया। मैंने कहा यह नौजवान है जिसने ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में अपना नाम स्थापित कर दिया है। मैंने कहा, एक एकर भूमि में सबसे ज्यादा पटेटो पैदा करने का काम उसने दुनिया में करके दिखाया है, करीब-करीब 88 टन आलू, 88 टन आलू... दुनिया का रिकार्ड तोड़ दिया। अभी आपके सामने से यहाँ होकर गए हैं, वहाँ बैठे हैं। यह ताकत हमारे लोगों में हैं और हम यह परिवर्तन लाना चाहते हैं।

आज गुजरात, हमारा किसान वेजिटेबल एक्सपोर्ट करने लगा है, फ्रूट्स एक्सपोर्ट करने लगा है। कच्छ, जो रेगिस्तान था, आज दुनिया के बाजार मैंगो एक्सपोर्ट कर रहा है..! हमारा बारडोली, सरदार पटेल के नाम के साथ जुड़ा हुआ, आज दुनिया में किसी को भिंडी खानी है तो बारडोली की भिंडी फेमस हो गई है। यह मेरे किसानों ने किया है। मेरा किसान कल तक यह सोचता था कि गन्ने की खेती के लिए भरपूर पानी चाहिए। हम उनके पीछे लगे, समझाने लगे। और किसान को भाषणों से नहीं समझाया जा सकता, किसानों को उपदेश देने से काम नहीं चलता है। किसानों का स्वभाव है, जब तक अपनी आंखों से वह देखता नहीं है, तब तक वह स्वीकार नहीं करता। किसी भी प्रयोग को वह खुद जांचता नहीं है, परखता नहीं हैं, क्योंकि उसके लिए तो अगर यह प्रयोग करने जाए और साल बेकार हो गया तो बच्चे भूखे मर जाएंगे, इसलिए किसान हिम्मत नहीं कर सकता। हमने प्रयोग किया, हमारी शुगर को-ओपरेटिव सोसायटियों के माध्यम से, कि फ्लड इरीगेशन की जरूरत नहीं है, माइक्रो इरीगेशन से भी गन्ने की खेती हो सकती है..! और आज मेरे गुजरात के अंदर, जहाँ दक्षिण गुजरात में पानी उपलब्ध है, उसके बावजूद भी आज मेरे किसान वहाँ पर माइक्रो इरीगेशन से शुगरकेन करने लगे हैं, इसका फायदा कितना हुआ है..! हिंदुस्तान के शुगरकेन में जितना शुगर कन्टेंट होता है, उससे गुजरात में माइक्रो इरीगेशन से जो शुगरकेन पैदा करता है, उसका शुगर कन्टेन्ट ज्यादा होता है। उसमें से शक्कर ज्यादा निकलती है। यह काम गुजरात के किसानों ने करना शुरू किया है। भाइयों-बहनों, अनेक प्रयेाग, अब सेायाबीन में मध्य प्रदेश, जांबुआ, इंदौर, उज्जैन, वो पट्टा था जो फेमस था। मेरे दाहोद के आदिवासियों ने, पंचमहाल के आदिवासी किसानों ने, छोटी जमीन में, बीघा-दो बीघा जमीन थी, उन्होंने फैसला किया कि हमें सोयाबीन की खेती करनी है और आज सोयाबीन एक्सपोर्ट करने की पोजिशन में मेरा आदिवासी किसान आ गया है..! फूलों की खेती करने लगा है, दुनिया में जो बहुत से महंगे फूल होते हैं, उन महंगे फूलों की खेती ‘ग्रीन हाउस’ के माध्यम से मेरे गाँव का गरीब किसान करने लगा है। कम मात्रा में क्यों ना हो, लेकिन एक सही दिशा में हमारी शुरूआत हुई है। और यह हमको मान के चलना पड़ेगा कि जैसे फैक्टरी में पैदा होने वाली, उत्पादित होने वाली हर चीज़, उसको ग्लोबल इकॉनामी का इम्पेक्ट होता है, ग्लोबल मार्केट का इम्पेक्ट होता है, ग्लोबल कंज्यूमर का इम्पेक्ट होता है, उसी प्रकार से एग्रीकल्चर को भी ग्लोबल इकॉनामी का इम्पेक्ट होता ही है, ग्लोबल मार्केट का भी असर होता है और इसलिए हमारा किसान भले गाँव में बैठा हो लेकिन विश्व का कृषि अर्थकारण जैसे चलता है, उसमें हमारे हिंदुस्तान के गाँव का किसान टिक पाएगा या नहीं टिक पाएगा, वह हमें नजरअंदाज नहीं करना होगा, मगर उसको ध्यान में रखते हुए हमारे किसान को ताकतवर बनाना पड़ेगा, हमारे किसान को मजबूत बनाना पड़ेगा। अगर यह सपना देखते हैं, तो स्थितियां बदली जा सकती हैं।

मेरी किसान भाइयों से भी प्रार्थना है, कि पहले गाय इतना ही दूध देती थी वह तो ऐसा ही है, यानि एक बीघा जमीन में इतनी ही फसल होती थी, मेरे बाप-दादा के जमाने में भी यही होता था... भाइयों-बहनों, ऐसी सोच से बाहर आना होगा। अब जमीन तो बढ़ने वाली नहीं है, जो जमीन है उसी में उत्पादन बढ़ाना पड़ेगा। अगर उसमें पहले, 200 किलो पैदावार होती थी, तो उतनी ही जमीन में 400 किलो पैदावार कैसे हो..? और यह आज के विज्ञान के युग में, टेक्नोलोजी के युग में, अब ये सब कुछ संभव है। हमें हमारी प्रोडक्टिविटी बढ़ानी पड़ेगी। और उसमें हमने एक प्रयोग किया ‘सॉइल हैल्थ कार्ड’ का। आज हिंदुस्तान में नागरिकों के पास भी अपना हैल्थ कार्ड नहीं है। उसका आरोग्य कैसा है, उसका स्वास्थ्य कैसा है, उसकी तबीयत कैसी है, उसका कोई कार्ड हिंदुस्तान के नागरिक के पास नहीं है, लेकिन गुजरात के किसान के पास उसकी जमीन की तबीयत कैसी है, जमीन का स्वास्थ्य कैसा है उसका हैल्थ कार्ड उसके पास उपलब्ध है..! उसके कारण उसको पता चलता है कि मेरी जमीन किस क्रॉप के लिए, किस काम के लिए अनुकूल है, मेरी जमीन के अंदर क्या कमियां है जिसके कारण मुझे कौन सी दवाइयाँ डालनी चाहिए, मेरी जमीन में क्या कमियां है जिसके कारण मुझे कौन सा फर्टिलाइजर डालना चाहिए, कितना डालना चाहिए... ये सोइल हैल्थ कार्ड के कारण, मेरे गुजरात में सामान्य रूप से किसान का जो वेस्ट होता था, जैसे 15,000, 20,000 रूपया साल का, सिर्फ वो सॉयल हैल्थ कार्ड के कारण बच गया। भारत सरकार ने भी गुजरात की तर्ज पर हिंदुस्तान के सभी किसानों को सॉइल हैल्थ कार्ड देने का तय किया है। वो कब दे पाएंगे मैं नहीं जानता हूँ, वह कहाँ फंसे रहते हैं वह हम सबको मालूम है..! इसलिए कब किसान की बारी आएगी उनके कारोबार में, कोयले से निकलने के बाद जब किसान की तरफ देखेंगे, तब जा कर के सॉइल हैल्थ कार्ड का मामला यहाँ तक पहुंच पाएगा। अभी तो वह कोयले में फंसे पड़े हैं और देश का भी पता नहीं मुंह काला हो रहा है। पता नहीं, कब बचेंगे हम उनसे..! लेकिन भाइयों-बहनों, दिल्ली भले कोयले में डूबा हो, हम तो किसान में डूबे हुए हैं। हमारे लिए किसान सब कुछ है, हमारे लिए गाँव सब कुछ है। हमारा किसान प्रगति करे यही हमारा सपना है और उसी को लेकर के हम आगे बढ़ रहे हैं। और इसलिए जिस प्रकार से उत्पादन में बदलाव, उसी प्रकार से आवश्यकता है, जो पैदावार हुई है उसका रख रखाव।

एक जमाना ऐसा था कि किसान को घर में कोई अवसर हो, बेटी की शादी करवानी हो, और जमीन बेचने जाता था तो कोई लेने वाला नहीं मिलता था। बेचारे को तीन-चार जगह हाथ पैर जोडऩे पड़ते थे। यहाँ तक कहना पड़ता था कि ठीक है, आधे पैसे दे दो, लेकिन जमीन ले लो, मुझे बेटी की शादी करवानी है। आज हमने गुजरात में ऐसी स्थिति पैदा की है कि एक बहुत बड़ी गाड़ी लेकर के, एक कोट पैंट पहन कर के कोई बड़ा आदमी जमीन लेने आता है, तो किसान अपनी खटिया पर बैठा-बैठा बोल देता है कि आज मेरा मूड नहीं है, अगले मंगलवार को आना..! आज मैं जमीन नहीं देना चाहता, ना कह देता है..! यह मिज़ाज लाया जा सकता है, किसान की ये ताकत लाई जा सकती है। कल लोग उसको जमीन कम पैसे में देने के लिए मजबूर करते थे, लेकिन आज किसान तय करता है कि इससे कम में जमीन नहीं मिलेगी, जाओ..! और मेरे गुजरात का किसान तो व्यापारी भी है। वह अगर यहाँ 50 बीघा जमीन बेचता है, तो उससे आधे पैसों में 200 बीघा जमीन कहीं दूर खरीद लेता है। इसलिए दूर की जमीन का भी दाम बढ़ता चला जा रहा है। मेरे किसान की ताकत बढ़ रही है। पहले उसकी जमीन पर बैंक से लाख रूपया भी नहीं मिलता था, आज उतनी ही जमीन से वह एक करोड़ रुपया कर्ज ले पा रहा है। जमीन के दाम बढ़ने से किसान की ताकत बढ़ी है।

भाइयों-बहनों, जो लोग झूठ फैलाते हैं, जो लोग हमारे गुजरात को दिन-रात बदनाम करने की कोशिश करते हैं, मैं उनको चुनौति देता हूँ। यह गुजरात अकेला राज्य हिंदुस्तान में ऐसा है कि जहाँ कृषि विकास भी हुआ और औद्योगिक विकास भी हुआ। हमारे यहाँ इन्ड्रस्ट्रियल डेवलपमेंट भी हुआ और एग्रीकल्चर डेवलपमेंट भी हुआ। आम तौर पर इन्ड्रस्ट्रियल डेवलपमेंट होता है तो कृषि की जमीन कम हो जाती है। लेकिन गुजरात एक ऐसा प्रदेश है कि जहाँ इन्ड्रस्ट्रियल डवलपमेंट भी बढ़ा और कृषि योग्य भूमि में भी 37 लाख हैक्टेयर भूमि का इजाफा हुआ है। 37 लाख हैक्टेयर से भी ज्यादा जमीन कृषि योग्य हमने बनाई है। हमने किसानों को ताकतवर बनाने का काम किया है। भाइयों-बहनों, झूठ बोलने से खेत में पैदावार नहीं होती है। आप इंसान को गुमराह कर सकते हो, पर फसल की पैदावार में बदलाव नहीं ला सकते हो। हमारा सपना है एग्रीकल्चर सेक्टर में बदलाव लाना। भाइयों-बहनों, आज यही समिट, मेरी वाइब्रेंट समिट होती तो इतनी संख्या नहीं होती, इससे कम होती है। लेकिन उसकी तस्वीर पहले पेज पर बहुत बड़ी छपती है, क्योंकि उसके अंदर बहुत बड़े-बड़े उद्योगपति आते हैं। लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण मेरे लिए यह समिट है। यह मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण समिट है। भले ही जिनकी तस्वीर कभी टी.वी. पर दिखती नहीं होगी, जिनका नाम अखबार में नहीं आता होगा, जिनकी तस्वीर कभी अखबार में नहीं छपती होगी, यह मेरे फार्मर, मेरे किसान यहाँ पर जो हैं, यह मेरे देश की ताकत है, यही सच्ची ताकत है और इसलिए हमने इस वाइब्रेंट समिट को किया है और इसी के भरोसे हम कृषि क्षेत्र में टेक्नोलोजी लाना चाहते हैं, हम कृषि क्षेत्र में एज्यूकेशन लाना चाहते हैं, हम कृषि क्षेत्र में ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट को लाना चाहते हैं। भाइयों-बहनों, मैं देश भर के किसान पुत्रों को कहना चाहता हूँ, हम गुजरात के अंदर इंगलैंड के साथ मिलकर के एक ऐसी इंस्टीट्यूशन का निर्माण करना चाहते हैं कि जिसमें कृषि में ग्रेज्यूएशन करने के बाद, पोस्ट ग्रेज्यूएशन और पी.एच.डी. करने के लिए वह गुजरात आएं। इज़राइल के साथ मिल कर हम एक ऐसी इंस्टिट्यूट खड़ी करेंगे जिसमें उनको प्रेक्टिकल फार्मिंग के साथ सारी चीज़ें सिखाएंगे और उनको पी.एच.डी. की डिग्री इज़राइल की यूनिवर्सिटी से दिलवाएंगे, ऐसी एक इंस्टिट्यूट का जन्म हम आने वाले दिनों में गुजरात में करना चाहते हैं। संशोधन के क्षेत्र में यह काम देश को करना चाहिए था, लेकिन दिल्ली की सरकार क्या करेगा पता नहीं है और हम उसके लिए इंतजार करने नहीं बैठ सकते। हम गुजरात में करना चाहते हैं और मेरी आज ही इज़राइल के लोगों से वार्ता फाइनल रूप में आ गई है, आने वाले दिनों में हम उसका फैसला करके हम देश और दुनिया के लिए एक नया नजराना देंगे।

मैं फिर एक बार, इस महत्पूर्ण कार्यक्रम का, गुजरात के इस महत्वपूर्ण अभियान का आज मैं प्रारंभ कर रहा हूँ, और सिर्फ आज के लिए प्रारंभ कर रहा हूँ ऐसा नहीं है, इज़राइल की तरह हम भी हर तीन साल में एक बार ग्लोबल लेवल का एक एग्रीकल्चर फेयर करेंगे, एग्रीकल्चर मैन्यूफैक्चरिंग में जो लोग हैं, टेक्निकली में जो लोग एडवांस है, उन सबको बुलाएंगे और मेरे देश के किसान को इज़राइल जाना ना पड़े, वह दुनिया की सारी अच्छी चीजें हिंदुस्तान में देख सकें, सीख सकें और प्रयोग कर सकें इसके लिए अच्छी उर्वरा भूमि हम इस महात्मा मंदिर को बनाने का फैसला कर रहे हैं। और मैं निमंत्रण देता हूँ कि तीन साल के बाद फिर इस प्रकार का कार्यक्रम हो, और अधिक मात्रा में मेरे किसान आएं और किसानों को जो सिखना हो, जो चाहिए, जो इन्फोर्मेशन चाहिए वह सारी देने का काम, और जरूरी नहीं कि सिर्फ गुजरात के किसान, हिंदुस्तान के किसी भी कोने से किसान आएगा, वह मेरे गुजरात का भाई है। यह सरदार पटेल की भूमि है, सरदार पटेल किसानों के नेता थे। सरदार पटेल की उस विरासत को हम निभाएंगे और उस विरासत के आधार पर हिंदुस्तान के हर किसान का गुजरात पर अधिकार है, सरदार पटेल पर उसका अधिकार है तो गुजरात पर भी उसका अधिकार है, वह काम हम करके देंगे, इसी अपेक्षा के साथ आप सभी को मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं..!

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मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | 'मन की बात', यानि देश के सामूहिक प्रयासों की बात, देश की उपलब्धियों की बात, जन-जन के सामर्थ्य की बात, ‘मन की बात' यानि देश के युवा सपनों, देश के नागरिकों की आकांक्षाओं की बात | मैं पूरे महीने, 'मन की बात' का इंतजार करता रहता हूँ, ताकि, आपसे सीधा संवाद कर सकूँ । कितने ही सारे संदेश, कितने ही messages ! मेरा पूरा प्रयास रहता है कि ज्यादा- से-ज्यादा संदेश को पढूँ, आपके सुझावों पर मंथन करूँ ।

साथियो, आज बड़ा ही खास दिन है - आज NCC दिवस है | NCC का नाम सामने आते ही हमें स्कूल-कॉलेज के दिन याद आ जाते हैं | मैं स्वयं भी NCC Cadet रहा हूँ, इसलिए, पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि इससे मिला अनुभव मेरे लिए अनमोल है | 'NCC' युवाओं में अनुशासन, नेतृत्व और सेवा की भावना पैदा करती है । आपने अपने आस-पास देखा होगा, जब भी कहीं कोई आपदा होती है, चाहे बाढ़ की स्थिति हो, कहीं भूकंप आया हो, कोई हादसा हुआ हो, वहाँ, मदद करने के लिए NCC के cadets जरूर मौजूद हो जाते हैं । आज देश में NCC को मजबूत करने के लिए लगातार काम हो रहा है । 2014 में करीब 14 लाख युवा NCC से जुड़े थे | अब 2024 में, 20 लाख से ज्यादा युवा NCC से जुड़े हैं | पहले के मुकाबले पाँच हजार और नए स्कूल-कॉलेजों में अब NCC की सुविधा हो गई है, और सबसे बड़ी बात, पहले NCC में girls cadets की संख्या करीब 25% (percent) के आस-पास ही होती थी | अब NCC में girls cadets की संख्या करीब-करीब 40% (percent) हो गई है | बॉर्डर किनारे रहने वाले युवाओं को ज्यादा से ज्यादा NCC से जोड़ने का अभियान भी लगातार जारी है । मैं युवाओं से आग्रह करूंगा कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में NCC से जुड़ें | आप देखिएगा आप किसी भी career में जाएं, NCC से आपके व्यक्तित्व निर्माण में बड़ी मदद मिलेगी |

साथियो, विकसित भारत के निर्माण में युवाओं का रोल बहुत बड़ा है | युवा मन जब एकजुट होकर देश की आगे की यात्रा के लिए मंथन करते हैं, चिंतन करते हैं, तो निश्चित रूप से इसके ठोस रास्ते निकलते हैं । आप जानते हैं 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर देश 'युवा दिवस' मनाता है । अगले साल स्वामी विवेकानंद जी की 162वीं जयंती है | इस बार इसे बहुत खास तरीके से मनाया जाएगा | इस अवसर पर 11-12 जनवरी को दिल्ली के भारत मंडपम में युवा विचारों का महाकुंभ होने जा रहा है, और इस पहल का नाम है 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue’ | भारत-भर से करोड़ों युवा इसमें भाग लेंगे | गाँव, block, जिले, राज्य और वहाँ से निकलकर चुने हुए ऐसे दो हजार युवा भारत मंडपम में 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue' के लिए जुटेंगे | आपको याद होगा, मैंने लाल किले की प्राचीर से ऐसे युवाओं से राजनीति में आने का आहवान किया है, जिनके परिवार का कोई भी व्यक्ति और पूरे परिवार का political background नहीं है, ऐसे एक लाख युवाओं को, नए युवाओं को, राजनीति से जोड़ने के लिए देश में कई तरह के विशेष अभियान चलेंगे | ‘विकसित भारत Young Leaders Dialogue' भी ऐसा ही एक प्रयास है । इसमें देश और विदेश से experts आएंगे | अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हस्तियाँ भी रहेंगी | मैं भी इसमें ज्यादा-से-ज्यादा समय उपस्थित रहूँगा | युवाओं को सीधे हमारे सामने अपने ideas को रखने का अवसर मिलेगा | देश इन ideas को कैसे आगे लेकर जा सकता है? कैसे एक ठोस roadmap बन सकता है? इसका एक blueprint तैयार किया जाएगा, तो आप भी तैयार हो जाइए, जो भारत के भविष्य का निर्माण करने वाले हैं, जो देश की भावी पीढ़ी हैं, उनके लिए ये बहुत बड़ा मौका आ रहा है | आइए, मिलकर देश बनाएं, देश को विकसित बनाएं ।

मेरे प्यारे देशवासियों, ‘मन की बात’ में, हम अक्सर ऐसे युवाओं की चर्चा करते हैं | जो निस्वार्थ भाव से समाज के लिए काम कर रहे हैं ऐसे कितने ही युवा हैं जो लोगों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान निकालने में जुटे हैं | हम अपने आस-पास देखें तो कितने ही लोग दिख जाते है, जिन्हें, किसी ना किसी तरह की मदद चाहिए,कोई जानकारी चाहिए I मुझे ये जानकर अच्छा लगा कुछ युवाओं ने समूह बनाकर इस तरह की बात को भी address किया है जैसे लखनऊ के रहने वाले वीरेंद्र हैं, वो बुजुर्गों को Digital life certificate के काम में मदद करते हैं I आप जानते हैं कि नियमों के मुताबिक सभी Pensioners को साल में एक बार Life Certificate जमा कराना होता है I 2014 तक इसकी प्रक्रिया यह थी इसे बैंकों में जाकर बुजुर्ग को खुद जमा करना पड़ता था आप कल्पना कर सकते हैं कि इससे हमारे बुजुर्गों को कितनी असुविधा होती थी I अब ये व्यवस्था बदल चुकी है I अब Digital Life Certificate देने से चीजें बहुत ही सरल हो गई हैं, बुजुर्गों को बैंक नहीं जाना पड़ता I बुजुर्गों को Technology की वजह से कोई दिक्कत ना आए, इसमें, वीरेंद्र जैसे युवाओं की बड़ी भूमिका है I वो, अपने क्षेत्र के बुजुर्गों को इसके बारे में जागरूक करते रहते हैं I इतना ही नहीं वो बुजुर्गों को tech savvy भी बना रहे हैं ऐसे ही प्रयासों से आज Digital Life certificate पाने वालों की संख्या 80 लाख के आँकड़े को पार कर गई है I इनमें से दो लाख से ज्यादा ऐसे बुजुर्ग हैं, जिनकी आयु 80 के भी पार हो गई है I

साथियो, कई शहरों में ‘युवा’ बुजुर्गों को Digital क्रांति में भागीदार बनाने के लिए भी आगे आ रहे हैं I भोपाल के महेश ने अपने मोहल्ले के कई बुजुर्गों को Mobile के माध्यम से Payment करना सिखाया है I इन बुजुर्गों के पास smart phone तो था, लेकिन, उसका सही उपयोग बताने वाला कोई नहीं था I बुजुर्गों को Digital arrest के खतरे से बचाने के लिए भी युवा आगे आए हैं I अहमदाबाद के राजीव, लोगों को Digital Arrest के खतरे से आगाह करते हैं I मैंने ‘मन की बात’ के पिछले episode में Digital Arrest की चर्चा की थी I इस तरह के अपराध के सबसे ज्यादा शिकार बुजुर्ग ही बनते हैं I ऐसे में हमारा दायित्व है कि हम उन्हें जागरूक बनाएं और cyber fraud से बचने में मदद करें I हमें बार-बार लोगों को समझाना होगा कि Digital Arrest नाम का सरकार में कोई भी प्रावधान नहीं है - ये सरासर झूठ, लोगों को फ़साने का एक षड्यन्त्र है मुझे खुशी है कि हमारे युवा साथी इस काम में पूरी संवेदनशीलता से हिस्सा ले रहे हैं और दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं I

मेरे प्यारे देशवासियो, आजकल बच्चों की पढ़ाई को लेकर कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं | कोशिश यही है कि हमारे बच्चों में creativity और बढ़े, किताबों के लिए उनमें प्रेम और बढ़े - कहते भी हैं ‘किताबें’ इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं, और अब इस दोस्ती को मजबूत करने के लिए, Library से ज्यादा अच्छी जगह और क्या होगी | मैं चेन्नई का एक उदाहरण आपसे share करना चाहता हूं | यहां बच्चों के लिए एक ऐसी library तैयार की गई है, जो, creativity और learning का Hub बन चुकी है | इसे प्रकृत् अरिवगम् के नाम से जाना जाता है | इस library का idea, technology की दुनिया से जुड़े श्रीराम गोपालन जी की देन है | विदेश में अपने काम के दौरान वे latest technology की दुनिया से जुड़े रहे | लेकिन, वो, बच्चों में पढ़ने और सीखने की आदत विकसित करने के बारे में भी सोचते रहे | भारत लौटकर उन्होंने प्रकृत् अरिवगम् को तैयार किया | इसमें तीन हजार से अधिक किताबें हैं, जिन्हें पढ़ने के लिए बच्चों में होड़ लगी रहती है | किताबों के अलावा इस library में होने वाली कई तरह की activities भी बच्चों को लुभाती हैं | Story Telling session हो, Art Workshops हो, Memory Training Classes, Robotics Lesson या फिर Public Speaking, यहां, हर किसी के लिए कुछ-न-कुछ जरूर है, जो उन्हें पसंद आता है |

साथियो, हैदराबाद में ‘Food for Thought’ Foundation ने भी कई शानदार libraries बनाई हैं | इनका भी प्रयास यही है कि बच्चों को ज्यादा-से-ज्यादा विषयों पर ठोस जानकारी के साथ पढ़ने के लिए किताबें मिलें | बिहार में गोपालगंज के ‘Prayog Library’ की चर्चा तो आसपास के कई शहरों में होने लगी है | इस library से करीब 12 गांवों के युवाओं को किताबें पढ़ने की सुविधा मिलने लगी है, साथ ही ये, library पढ़ाई में मदद करने वाली दूसरी जरूरी सुविधाएँ भी उपलब्ध करा रही है | कुछ libraries तो ऐसी हैं, जो, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में students के बहुत काम आ रही हैं | ये देखना वाकई बहुत सुखद है कि समाज को सशक्त बनाने में आज library का बेहतरीन उपयोग हो रहा है | आप भी किताबों से दोस्ती बढ़ाइए, और देखिए, कैसे आपके जीवन में बदलाव आता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, परसों रात ही मैं दक्षिण अमेरिका के देश गयाना से लौटा हूं | भारत से हजारों किलोमीटर दूर, गयाना में भी, एक ‘Mini भारत’ बसता है | आज से लगभग 180 वर्ष पहले, गयाना में भारत के लोगों को, खेतों में मजदूरी के लिए, दूसरे कामों के लिए, ले जाया गया था | आज गयाना में भारतीय मूल के लोग राजनीति, व्यापार, शिक्षा और संस्कृति के हर क्षेत्र में गयाना का नेतृत्व कर रहे हैं | गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली भी भारतीय मूल के हैं, जो, अपनी भारतीय विरासत पर गर्व करते हैं | जब मैं गयाना में था, तभी, मेरे मन में एक विचार आया था - जो मैं ‘मन की बात’ में आपसे share कर रहा हूं | गयाना की तरह ही दुनिया के दर्जनों देशों में लाखों की संख्या में भारतीय हैं | दशकों पहले की 200-300 साल पहले की उनके पूर्वजों की अपनी कहानियां हैं | क्या आप ऐसी कहानियों को खोज सकते हैं कि किस तरह भारतीय प्रवासियों ने अलग-अलग देशों में अपनी पहचान बनाई! कैसे उन्होंने वहाँ की आजादी की लड़ाई के अंदर हिस्सा लिया! कैसे उन्होंने अपनी भारतीय विरासत को जीवित रखा? मैं चाहता हूं कि आप ऐसी सच्ची कहानियों को खोजें, और मेरे साथ share करें | आप इन कहानियों को NaMo App पर या MyGov पर #IndianDiasporaStories के साथ भी share कर सकते हैं |

साथियो, आपको ओमान में चल रहा एक extraordinary project भी बहुत दिलचस्प लगेगा | अनेकों भारतीय परिवार कई शताब्दियों से ओमान में रह रहे हैं | इनमें से ज्यादातर गुजरात के कच्छ से जाकर बसे हैं | इन लोगों ने व्यापार के महत्वपूर्ण link तैयार किए थे | आज भी उनके पास ओमानी नागरिकता है, लेकिन भारतीयता उनकी रग-रग में बसी है | ओमान में भारतीय दूतावास और National Archives of India के सहयोग से एक team ने इन परिवारों की history को preserve करने का काम शुरू किया है | इस अभियान के तहत अब तक हजारों documents जुटाए जा चुके हैं | इनमें diary, account book, ledgers, letters और telegram शामिल हैं | इनमें से कुछ दस्तावेज तो सन् 1838 के भी हैं | ये दस्तावेज, भावनाओं से भरे हुए हैं | बरसों पहले जब वो ओमान पहुंचे, तो उन्होंने किस प्रकार का जीवन जिया, किस तरह के सुख-दुख का सामना किया, और, ओमान के लोगों के साथ उनके संबंध कैसे आगे बढ़े - ये सब कुछ इन दस्तावेजों का हिस्सा है | ‘Oral History Project’ ये भी इस mission का एक महत्वपूर्ण आधार है | इस mission में वहां के वरिष्ठ लोगों ने अपने अनुभव साझा किए हैं | लोगों ने वहाँ अपने रहन-सहन से जुड़ी बातों को विस्तार से बताया है |

साथियो ऐसा ही एक ‘Oral History Project’ भारत में भी हो रहा है | इस project के तहत इतिहास प्रेमी देश के विभाजन के कालखंड में पीड़ितों के अनुभवों का संग्रह कर रहें हैं | अब देश में ऐसे लोगों की संख्या कम ही बची है, जिन्होंने, विभाजन की विभीषिका को देखा है | ऐसे में यह प्रयास और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है |

साथियो, जो देश, जो स्थान, अपने इतिहास को संजोकर रखता है, उसका भविष्य भी सुरक्षित रहता है | इसी सोच के साथ एक प्रयास हुआ है जिसमें गांवों के इतिहास को संजोने वाली एक Directory बनाई है | समुद्री यात्रा के भारत के पुरातन सामर्थ्य से जुड़े साक्ष्यों को सहेजने का भी अभियान देश में चल रहा है | इसी कड़ी में, लोथल में, एक बहुत बड़ा Museum भी बनाया जा रहा है, इसके अलावा, आपके संज्ञान में कोई manuscript हो, कोई ऐतिहासिक दस्तावेज हो, कोई हस्तलिखित प्रति हो तो उसे भी आप, National Archives of India की मदद से सहेज सकते हैं |

साथियो, मुझे Slovakia में हो रहे ऐसे ही एक और प्रयास के बारे में पता चला है जो हमारी संस्कृति को संरक्षित करने और उसे आगे बढ़ाने से जुड़ा है | यहां पहली बार Slovak language में हमारे उपनिषदों का अनुवाद किया गया है | इन प्रयासों से भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव का भी पता चलता है | हम सभी के लिए ये गर्व की बात है कि दुनिया-भर में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिनके हृदय में, भारत बसता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, अब मैं आपसे देश की एक ऐसी उपलब्धि साझा करना चाहता हूं जिसे सुनकर आपको खुशी भी होगी और गौरव भी होगा, और अगर आपने नहीं किया है, तो शायद पछतावा भी होगा | कुछ महीने पहले हमने ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान शुरू किया था | इस अभियान में देश-भर के लोगों ने बहुत उत्साह से हिस्सा लिया | मुझे ये बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि इस अभियान ने सौ करोड़ पेड़ लगाने का अहम पड़ाव पार कर लिया है | सौ करोड़ पेड़, वो भी, सिर्फ पाँच महीनों में - ये हमारे देशवासियों के अथक प्रयासों से ही संभव हुआ है | इससे जुड़ी एक और बात जानकर आपको गर्व होगा | ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान अब दुनिया के दूसरे देशों में भी फैल रहा है | जब मैं गयाना में था, तो वहां भी, इस अभियान का साक्षी बना | वहां मेरे साथ गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली, उनकी पत्नी की माता जी, और परिवार के बाकी सदस्य, ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान में शामिल हुए |

साथियो, देश के अलग-अलग हिस्सों में ये अभियान लगातार चल रहा है | मध्य प्रदेश के इंदौर में ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान के तहत, पेड़ लगाने का record बना है - यहां 24 घंटे में 12 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए गए | इस अभियान की वजह से इंदौर की Revati Hills के बंजर इलाके, अब, green zone में बदल जाएंगे | राजस्थान के जैसलमेर में इस अभियान के द्वारा एक अनोखा record बना - यहां महिलाओं की एक टीम ने एक घंटे में 25 हजार पेड़ लगाए | माताओं ने मां के नाम पेड़ लगाया और दूसरों को भी प्रेरित किया। यहां एक ही जगह पर पाँच हज़ार से ज़्यादा लोगों ने मिलकर पेड़ लगाए - ये भी अपने आप में एक रिकॉर्ड है । ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के तहत कई सामाजिक संस्थाएँ स्थानीय जरूरतों के हिसाब से पेड़ लगा रही हैं । उनका प्रयास है कि जहां पेड़ लगाए जाएँ वहाँ पर्यावरण के अनुकूल पूरा Eco System Develop हो । इसलिए ये संस्थाएँ कहीं औषधीय पौधे लगा रहीं हैं, तो कहीं, चिड़ियों का बसेरा बनाने के लिए पेड़ लगा रहीं हैं । बिहार में ‘JEEViKA Self Help Group’ की महिलाओं ने 75 लाख पेड़ लगाने का अभियान चला रहीं हैं । इन महिलाओं का focus फल वाले पेड़ों पर है, जिससे आने वाले समय में आय भी की जा सके ।

साथियो, इस अभियान से जुड़कर कोई भी व्यक्ति अपनी माँ के नाम पर पेड़ लगा सकता है । अगर माँ साथ है तो उन्हें साथ लेकर आप पेड़ लगा सकते हैं, नहीं तो उनकी तस्वीर साथ में लेकर आप इस अभियान का हिस्सा बन सकते हैं । पेड़ के साथ आप अपनी Selfie भी mygov.in पर पोस्ट कर सकते हैं । माँ, हम सबके लिए जो करती है हम उनका ऋण कभी नहीं चुका सकते, लेकिन, एक पेड़ माँ के नाम लगाकर हम उनकी उपस्थिति को हमेशा के लिए जीवंत बना सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आप सभी लोगों ने बचपन में गौरेया या Sparrow को अपने घर की छत पर, पेड़ों पर चहकते हुए ज़रूर देखा होगा । गौरेया को तमिल और मलयालम में कुरुवी, तेलुगु में पिच्चुका और कन्नड़ा में गुब्बी के नाम से जाना जाता है । हर भाषा, संस्कृति में, गौरेया को लेकर किस्से-कहानी सुनाए जाते हैं । हमारे आसपास Biodiversity को बनाए रखने में गौरेया का एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है, लेकिन, आज शहरों में बड़ी मुश्किल से गौरेया दिखती है । बढ़ते शहरीकरण की वजह से गौरेया हमसे दूर चली गई है । आज की पीढ़ी के ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिन्होंने गौरेया को सिर्फ तस्वीरों या वीडियो में देखा है । ऐसे बच्चों के जीवन में इस प्यारी पक्षी की वापसी के लिए कुछ अनोखे प्रयास हो रहे हैं । चेन्नई के कूडुगल ट्रस्ट ने गौरेया की आबादी बढ़ाने के लिए स्कूल के बच्चों को अपने अभियान में शामिल किया है । संस्थान के लोग स्कूलों में जाकर बच्चों को बताते हैं कि गौरेया रोज़मर्रा के जीवन में कितनी महत्वपूर्ण है । ये संस्थान बच्चों को गौरेया का घोंसला बनाने की training देते है । इसके लिए संस्थान के लोगों ने बच्चों को लकड़ी का एक छोटा सा घर बनाना सिखाया । इसमें गौरेया के रहने, खाने का इंतजाम किया । ये ऐसे घर होते हैं जिन्हें किसी भी इमारत की बाहरी दीवार पर या पेड़ पर लगाया जा सकता है । बच्चों ने इस अभियान में उत्साह के साथ हिस्सा लिया और गौरेया के लिए बड़ी संख्या में घोंसला बनाना शुरू कर दिया । पिछले चार वर्षों में संस्था ने गौरेया के लिए ऐसे दस हज़ार घोंसले तैयार किए हैं । कूडुगल ट्रस्ट की इस पहल से आसपास के इलाकों में गौरेया की आबादी बढ़नी शुरू हो गई है। आप भी अपने आसपास ऐसे प्रयास करेंगे तो निश्चित तौर पर गौरेया फिर से हमारे जीवन का हिस्सा बन जाएगी ।

साथियो, कर्नाटका के मैसुरू की एक संस्था ने बच्चों के लिए ‘Early Bird’ नाम का अभियान शुरू किया है । ये संस्था बच्चों को पक्षियों के बारे में बताने के लिए खास तरह की library चलाती है । इतना ही नहीं, बच्चों में प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का भाव पैदा करने के लिए ‘Nature Education Kit’ तैयार किया है। इस Kit में बच्चों के लिए Story Book, Games, Activity Sheets और jig-saw puzzles हैं । ये संस्था शहर के बच्चों को गांवों में लेकर जाती है और उन्हें पक्षियों के बारे में बताती है । इस संस्था के प्रयासों की वजह से बच्चे पक्षियों की अनेक प्रजातियों को पहचानने लगे हैं । ‘मन की बात’ के श्रोता भी इस तरह के प्रयास से बच्चों में अपने आसपास को देखने, समझने का अलग नज़रिया विकसित कर सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आपने देखा होगा, जैसे ही कोई कहता है ‘सरकारी दफ्तर’ तो आपके मन में फाइलों के ढ़ेर की तस्वीर बन जाती है | आपने फिल्मों में भी ऐसा ही कुछ देखा होगा | सरकारी दफ्तरों में इन फाइलों के ढ़ेर पर कितने ही मजाक बनते रहते हैं, कितनी ही कहानियां लिखी जा चुकी हैं | बरसों-बरस तक ये फाइलें Office में पड़े-पड़े धूल से भर जाती थीं, वहां, गंदगी होने लगती थी - ऐसी दशकों पुरानी फाइलों और Scrap को हटाने के लिए एक विशेष स्वच्छता अभियान चलाया गया | आपको ये जानकर खुशी होगी कि सरकारी विभागों में इस अभियान के अद्भुत परिणाम सामने आए हैं | साफ-सफाई से दफ्तरों में काफी जगह खाली हो गई है | इससे दफ्तर में काम करने वालों में एक Ownership का भाव भी आया है | अपने काम करने की जगह को स्वच्छ रखने की गंभीरता भी उनमें आई है |

सथियो, आपने अक्सर बड़े-बुजुर्गों को ये कहते सुना होगा, कि जहां स्वच्छता होती है, वहां, लक्ष्मी जी का वास होता है | हमारे यहाँ ‘कचरे से कंचन’ का विचार बहुत पुराना है | देश के कई हिस्सों में ‘युवा’ बेकार समझी जाने वाली चीजों को लेकर, कचरे से कंचन बना रहे हैं | तरह-तरह के innovation कर रहे हैं | इससे वो पैसे कमा रहे हैं, रोजगार के साधन विकसित कर रहे हैं | ये युवा अपने प्रयासों से sustainable lifestyle को भी बढ़ावा दे रहे हैं | मुंबई की दो बेटियों का ये प्रयास, वाकई बहुत प्रेरक है | अक्षरा और प्रकृति नाम की ये दो बेटियाँ, कतरन से फैशन के सामान बना रही हैं | आप भी जानते हैं कपड़ों की कटाई-सिलाई के दौरान जो कतरन निकलती है, इसे बेकार समझकर फेंक दिया जाता है | अक्षरा और प्रकृति की Team उन्हीं कपड़ों के कचरे को Fashion Product में बदलती है | कतरन से बनी टोपियां, Bag हाथों-हाथ बिक भी रही है |

साथियो, साफ-सफाई को लेकर UP के कानपुर में भी अच्छी पहल हो रही है | यहाँ कुछ लोग रोज सुबह Morning Walk पर निकलते हैं और गंगा के घाटों पर फैले Plastic और अन्य कचरे को उठा लेते हैं | इस समूह को ‘Kanpur Ploggers Group’ नाम दिया गया है | इस मुहिम की शुरुआत कुछ दोस्तों ने मिलकर की थी | धीरे-धीरे ये जन भागीदारी का बड़ा अभियान बन गया | शहर के कई लोग इसके साथ जुड़ गए हैं | इसके सदस्य, अब, दुकानों और घरों से भी कचरा उठाने लगे हैं | इस कचरे से Recycle Plant में tree guard तैयार किए जाते हैं, यानि, इस Group के लोग कचरे से बने tree guard से पौधों की सुरक्षा भी करते हैं|

साथियो, छोटे-छोटे प्रयासों से कैसी बड़ी सफलता मिलती है, इसका एक उदाहरण असम की इतिशा भी है | इतिशा की पढ़ाई-लिखाई दिल्ली और पुणे में हुई है | इतिशा corporate दुनिया की चमक-दमक छोड़कर अरुणाचल की सांगती घाटी को साफ बनाने में जुटी हैं | पर्यटकों की वजह से वहां काफी plastic waste जमा होने लगा था | वहां की नदी जो कभी साफ थी वो plastic waste की वजह से प्रदूषित हो गई थी | इसे साफ करने के लिए इतिशा स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम कर रही है | उनके group के लोग वहां आने वाले tourist को जागरूक करते हैं और plastic waste को collect करने के लिए पूरी घाटी में बांस से बने कूड़ेदान लगाते हैं |

साथियो, ऐसे प्रयासों से भारत के स्वच्छता अभियान को गति मिलती है | ये निरंतर चलते रहने वाला अभियान है | आपके आस-पास भी ऐसा जरूर होता ही होगा | आप मुझे ऐसे प्रयासों के बारे में जरूर लिखते रहिए |

साथियो, ‘मन की बात’ के इस episode में फिलहाल इतना ही | मुझे तो पूरे महीने, आपकी प्रतिक्रियाओं, पत्रों और सुझावों का खूब इंतजार रहता है | हर महीने आने वाले आपके संदेश मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा देते हैं | अगले महीने हम फिर मिलेंगे, ‘मन की बात’ के एक और अंक में - देश और देशवासियों की नई उपलब्धियों के साथ, तब तक के लिए, आप सभी देशवासियों को, मेरी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं |

बहुत-बहुत धन्यवाद |