प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सुशासन का विज़न सिर्फ विकास तक सीमित नहीं है बल्कि इसमें पर्यावरण को लेकर जागरूकता और सतत विकास भी शामिल है। यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत भावी पीढ़ियों के लिए स्वच्छ एवं हरित पृथ्वी बनाने के लिए विश्व में एक अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत में एक ऐसे शासन का नेतृत्व किया है जिसमें पर्यावरण को प्राथमिकता दी गई। इसकी जरूरत थी और इसकी अपेक्षा भी थी। यह देखकर काफी अच्छा लगा कि उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए वैश्विक प्रयासों में भारत को नेतृत्व की भूमिका में आगे बढ़ाया है।
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर यह दोहराया जाना महत्त्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री मानते हैं कि लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने के लिए विकास अति आवश्यक है और विकास इस तरह से होना चाहिए जिसमें पर्यावरण का कोई स्थायी नुकसान न हो।
प्रधानमंत्री मोदी ने विभिन्न मौकों पर कहा है कि पर्यावरण को पवित्र मानने के भारतीय संस्कार हमारे ग्रह को संरक्षित करने और प्रकृति के साथ जुड़े रहने की हमारी सोच से स्वाभाविकतः जुड़े हुए हैं। वेदों के पवित्र और प्राचीन स्तोत्र से लेकर हमारे सांस्कृतिक इतिहास, प्रकृति प्रेम के विचारों से भरे हुए हैं। यहां तक कि आज भी भारत में ऐसा कम ही होगा कि कोई एक किलोमीटर की यात्रा कर ले और उसे एक प्राकृतिक धरोहर, जैसे - पेड़, नदी, पत्थर या यहां तक कि एक जानवर, जिसे ईश्वरीय दिव्य अवतार के रूप में पूजा जाता हो, देखने को न मिले।
गुजरात के मुख्यमंत्री के अपने कार्यकाल से ही नरेंद्र मोदी ने दिखाया है कि वे अपने समकालीन लोगों से काफी आगे हैं, जो पर्यावरण संरक्षण को न केवल एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बताते रहे हैं बल्कि पर्यावरण के अनुकूल नीतियों और शासन पर भी जोर देते रहे हैं। इस मामले में उन्होंने जो नेतृत्व और प्रतिबद्धता दिखाई है, वह कोई संयोग नहीं है बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनके उत्साह और ज़ज्बे का प्रतीक है।
प्रधानमंत्री मोदी ने जलवायु न्याय का मार्ग दिखाकर जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के वैश्विक अभियान में अपने नेतृत्व को मजबूत किया है। जलवायु न्याय से तात्पर्य है - जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने की ज़िम्मेदारी को विश्व के देशों द्वारा निष्पक्ष और समान रूप से साझा करना। विकासशील और उभरते हुए देशों को इतनी जगह दी जानी चाहिए ताकि वे विकास के अपने पथ पर अग्रसर रहें। उन्हें विकसित देशों द्वारा पर्याप्त रूप से वित्तीय एवं तकनीकी सहयोग मिल रहा है जिससे पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।
जलवायु न्याय एक परिकल्पना है जिसमें इस बात पर जोर है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सभी देशों पर एक तरीका थोपना विकासशील देशों के लिए अनुचित होगा।
यह जरुरी था कि उभरते देशों में से ही कोई देश जलवायु न्याय का नेतृत्व करे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वही किया। जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने में उभरते देशों की भागीदारी ज्यादा है क्योंकि उन्हें न सिर्फ पर्यावरण-अनुकूल नीतियां बनानी होंगी बल्कि यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनके लाखों गरीब नागरिकों को तेज एवं सतत विकास के माध्यम से गरीबी से बाहर निकाल लिया गया हो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैश्विक स्तर पर हर कार्यक्रम में जलवायु न्याय के साथ-साथ पर्यावरण को लेकर जागरूक नीतियों पर बल दे रहे हैं। वे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को नीति निर्माण और सतत विकास के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए, भारत के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, जिसमें 100 से अधिक ‘सौर अमीर देश’ शामिल हैं, जो कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच स्थित हैं। यह गठबंधन टिकाऊ ऊर्जा मॉडल को बढ़ावा देने के लिए इन देशों को सौर ऊर्जा के उपयोग के माध्यम से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक सहयोग मंच प्रदान करता है।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन मौजूदा स्वच्छ सौर ऊर्जा तकनीकों के विकास और इसके विस्तार में तेजी लाने के लिए अवसरों की पहचान करता है। सौर ऊर्जा तकनीकों के विस्तार से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर बनेंगे एवं आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी क्योंकि सौर ऊर्जा को बड़े पैमाने पर अपनाने से विकासशील देशों के ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की संभावनाएं बढ़ती हैं और यह एक राष्ट्र के लिए फायदेमंद है। जैसा कि अक्सर देखा गया है, बिजली की उपलब्धता सीधे समुदायों को सशक्त बनाता है और उनकी सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
विकास और पर्यावरण संरक्षण की बात इस हद तक नहीं जानी चाहिए जहाँ हम इन दोनों को साथ लेकर आगे बढ़ने के बारे में न सोच पाएं। इसके लिए बेहतर संतुलन बिठाने की जरुरत है और इसके लिए भारत से बेहतर नेतृत्व और कौन कर सकता है। भारत, जहाँ प्राचीन विचारधाराओं का उद्भव हुआ है, जो अतिवाद की वर्जना करता है और सहिष्णुता पर बल देता है।
इस वैश्विक आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए नरेंद्र मोदी से बेहतर और कौन होता जिनके पास न केवल पर्यावरण-अनुकूल शासन का रिकार्ड है, बल्कि अपनी पुस्तक, “कन्वीनियेंट एक्शन - कंटीन्यूटी फॉर चेंज” में उन्होंने इस विषय पर अपनी गहरी समझ और अपना विज़न सबके साथ साझा किया है कि जलवायु परिवर्तन के क्या खतरे हैं एवं इन खतरों से कैसे निपटा जा सकता है।
हाल ही में, सेंट पीटर्सबर्ग इंटरनेशनल इकोनॉमिक फोरम में एक बातचीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि उन्होंने जिस न्यू इंडिया की कल्पना की है, वह उस प्राचीन भारतीय दर्शन पर आधारित होगा, जिसमें कहा गया है कि मनुष्य को प्रकृति का उपभोग करने का अधिकार है न कि इसका दोहन करने का। इस कार्यक्रम में ही उन्होंने कहा था कि भारत, पेरिस समझौता से इतर भी भविष्य की पीढ़ियों के लिए पृथ्वी को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत के नेतृत्व और प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में भी पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर लोगों को जागरूक करने के साथ-साथ इस पर विभिन्न कदम उठा रहे हैं। स्वच्छता के लिए उनकी पहल, स्वच्छ भारत, आज एक जन आंदोलन बन गया है जिसके परिणामस्वरूप लोग खुद को व्यवस्थित कर रहे हैं और अपने परिवेश और इसकी साफ-सफाई के प्रति और अधिक जागरूक हो रहे हैं।
मई 2017 में प्रसारित अपने लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम, मन की बात में प्रधानमंत्री ने लोगों को बताया कि संयुक्त राष्ट्र ने इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस के लिए जो थीम चुना है, वह है - लोगों का प्रकृति के साथ कनेक्ट। उन्होंने कहा कि प्रकृति से जुड़ने का अर्थ है - एक बेहतर ग्रह का पोषण करना। उन्होंने महात्मा गांधी के एक प्रेरक कथन को याद किया, “हम जो दुनिया नहीं देखेंगे, हमारा कर्त्तव्य है कि हम उसकी भी परवाह करें।
उन्होंने पुरातन को आधुनिकता के साथ जोड़ते हुए अथर्ववेद को प्रकृति और पर्यावरण का सबसे प्रामाणिक मार्गदर्शक शास्त्र बताया जिसमें कहा गया है, “पृथ्वी हमारी माता है और हम उनके पुत्र हैं।” हमारे कई त्योहारों में प्रकृति या प्राकृतिक तत्त्वों की पूजा की जाती है और हमें अपने पर्यावरण को बेहतर तरीके से समझने, इसे सराहने और इससे जुड़ने के लिए अपने मूल में वापस जाने की जरूरत है।
मन की बात के अपने रेडियो कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने प्रकृति और मानव के बीच संबंध के एक और पहलू पर जोर देते हुए कहा था, “प्रकृति से जुड़ने का अर्थ है - स्वयं से जुड़ना... प्रकृति की एक ताक़त होती है, आपने भी अनुभव किया होगा कि बहुत थक करके आए हो और एक गिलास पानी अगर मुंह पर छिड़क दें, तो कैसी ताज़गी आ जाती है। बहुत थक करके आए हो, कमरे की खिड़कियाँ खोल दें, दरवाज़ा खोल दें, ताज़ा हवा की सांस लें - एक नयी चेतना आती है। जिन पंच महाभूतों से शरीर बना हुआ है, जब उन पंच महाभूतों से संपर्क आता है, तो अपने आप हमारे शरीर में एक नयी चेतना प्रकट होती है, एक नयी ऊर्जा प्रकट होती है।” उनका मानना है कि हमारे पर्यावरण को संरक्षित करने का सबसे अच्छा तरीका है - पहले प्रकृति से जुड़ना और फिर उसके सौंदर्य और उसकी ताकत का एहसास करना।