मुख्यमंत्री नरेन्द्रमोदी जलवायु परिवर्तन की चुनौती पर सेव ईस्ट-वेस्ट का फार्मूला सुझाया है। इस सन्दर्भ में उत्पन्न समस्याओं के निराकरण के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की हिमायत करते हुए कहा कि कोस्मेटिक चेन्ज या क्रान्तिवर्धक परिवर्तन जलवायु परिवर्तन की चुनौती के लिए कारगर नही होंगे।
मोदी गुरूवार से इसरो में शुरू हुई जियोमेटिक-2010 राष्ट्रीय परिषद के उद्घाटन समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। इण्डियन सोसायटी आफ जियोमेटिक्स व इसरो ने क्लाईमेट चेन्ज: कोस्टल इकोसिस्टम विषय पर तीन दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया है।
इस अवसर पर मोदी ने कहा कि गुजरात जैसे राज्य में करीब 1600 किलोमीटर लम्बे देश के सबसे लम्बे समुद्री किनारे में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन किए जाने से इकोसिस्टम का संवर्धन होगा। नदी जल शक्ति प्राचीन काल में मानवी सामाजिक संस्कृति के विकास की धारा रही है। विकास के आधुनिकी करण की यात्रा में हाइवे सोशल कल्चर विकसित हुआ है।
इस स्थिति में उर्जा (एनर्जी), वायु (एयर), भाप (स्टीम), परिवहन (ट्रान्सपोर्ट), पानी (वाटर), पर्यावरण (एनवायर्नमेन्ट), समाज (सोसायटी) व समय (टाईम) की बचत यानी "सेव ईस्ट-वेस्ट" के फार्मूले पर अमल किए जाने की जरूरत है। आयोजन में केन्द्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव शैलेष नायक, अन्तरिक्ष उपयोग केन्द्र के निदेशक आर.आर नवलुंडे, सेप्ट के अधिकारी व वैज्ञानिकों ने भी विचार व्यक्त किए।