नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय राजनीति को नया आयाम दिया है
भारत में राजनीतिक आन्दोलनों की उत्पति चार वैचारिक मार्गों से हुई है। सबसे पहला ऐतिहासिक वैचारिक मार्ग था भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जो आज की कांग्रेस पार्टी के रूप में मौजूद है। कम्युनिस्ट आन्दोलन जिसकी उत्पत्ति तत्कालीन रूसी गणराज्य और कुछ हद तक आज के चीन से हुई, लेकिन आज यह व्यवहारिक रूप से भारत में अप्रसांगिक हो गया है। समाजवादी आन्दोलन की उत्पत्ति राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण से जुड़ी है लेकिन यह उत्तरोत्तर संकीर्ण क्षेत्रीय या जाति आधारित पार्टियों में बंट गया और आज राष्ट्रीय स्तर पर इसकी अहमियत मामूली है। क्षेत्रीय दल और हाल में बनी राजनीतिक पार्टियां भी राष्ट्रीय स्तर पर दावा पेश नहीं कर सकते। 2014 के चुनाव से पूर्व भारत में राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक परिदृष्य कुछ ऐसा था कि जिसमें कांग्रेस हावी थी और भाजपा की स्थिति एक सुपर क्षेत्रीय दल जैसी थी।
2014 के लोक सभा चुनाव के नतीजे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के पक्ष में रहे। किसी भी व्यक्ति को इन नतीजों को समझने के लिए यह मानना जरूरी है कि किस तरह भाजपा राष्ट्रीय परिदृष्य पर काबिज हुई और कैसे उसने दक्षिण में अपनी खोयी हुई जमीन फिर हासिल की और पूर्वोत्तर में अपनी जगह बनायी। इसके ठीक उलट कांग्रेस की तस्वीर बन गयी है। कांग्रेस सीटें उसके इतिहास में अब तक की न्यूनतम हैं और कांग्रेस अब एक सुपर क्षेत्रीय दल बनकर रह गयी है जिसकी बड़े राज्यों में कोई उपस्थित नहीं है।
कांग्रेस एक सुपर-क्षेत्रीय दल के रूप में सिमट गयी है, उसकी बड़े राज्यों में उपस्थित भी नहीं है
कांग्रेस के खात्मे पर विचार कीजिए-
जम्मू कश्मीर से लेकर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और राष्ट्रीय राजधानी जैसे उत्तरी राज्यों में इसका एक भी लोक सभा सदस्य नहीं है।
कांग्रेस उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में सिमटकर सिंगल डिजिट में आ गयी है।
पश्चिमी भारत में देखें तो राजस्थान, गुजरात और गोवा में इसका एक भी सदस्य नहीं है। जबकि कभी कांग्रेस का गढ़ रहे महाराष्ट्र में पार्टी सिंगल डिजिट में ही है।
दक्षिण में तमिलनाडु और सीमांध्रा में उसकी एक भी सीट नहीं है जबकि कर्नाटक और तेलंगाना में वह सिंगल डिजिट में सिमट गयी है।
पूर्व में झारखंड, नागालैंड, उड़ीसा, त्रिपुरा और सिक्कम में कांग्रेस की एक भी लोक सभा सीट नहीं है/ अधिकांश संघ शासित राज्यों ने भी कांग्रेस को पीठ दिखा दी है।
कांग्रेस का आज इस कदर अपयश है कि किसी भी राज्स में इसकी सीटें डबल डिजिट में नहीं हैं, वहीं जयललिता की अन्नाद्रमुक और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस लोक सभा में मुख्य विपक्षी पार्टी बनने के लिए इसे चुनौती दे रही हैं।
नरेन्द्र मोदी के प्रचार अभियान ने कांग्रेस को इस तरह तहस-नहस कर दिया है। इस तरह नरेन्द्र मोदी ने भाजपा के चुनावी परिदृष्य को पूरी तरह बदल दिया है।
नरेन्द्र मोदी ने एक नया सामाजिक गठबंधन बुना हैलोक सभा की 543 सीटो में से रिकार्ड 282 सीटें जीतकर नरेन्द्र मोदी पहले गैर-कांग्रेसी नेता हैं जो अपनी पार्टी को लोक सभा में सामान्य बहुमत दिलाने में कामयाब रहे हैं। यह ऐसी उपलब्धि है जो अब तक विशेष तौर से गांधी-नेहरु खानदान के नाम ही रही है।
अगर हवा भाजपा के राष्ट्रीय प्रसार की कहानी बताती है तो जीत की जनसांख्यिकीय जटिलता भाजपा की राष्ट्रीय गहराई की असली कहानी बयां करती है।
भाजपा ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 84 सीटों में से 40 पर जीत दर्ज की। इस तरह एससी सीटों में से 47 प्रतिशत पर भाजपा ने जीत दर्ज की और कई सीटों पर तो दलित महिलाएं चुनकर आयीं हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 27 पर जीत दर्ज की जो कि 69 प्रतिशत हैं।
विभिन्न दलों के गठबंधन के रूप में एनडीए ने एससी के लिए आरक्षित सीटों में से 62 प्रतिशत तथा एसटी के लिए आरक्षित सीटों में से 70 प्रतिशत पर जीत दर्ज की।
28 महिला सांसदों के साथ भाजपा ने एक नया बेंचमार्क सेट किया कि इसके 10 प्रतिशत सदस्य महिलाएं हैं।
नरेन्द्र मोदी ने न सिर्फ भाजपा को अकल्पनीय जीत दिलायी है बल्कि यह कामयाबी उन्होंने उममीदों की लहर पर सवार होकर हासिल की है जिसे भाजपा विगत में नहीं कर सकी। नरेन्द्र मोदी की भाजपा ने पूर्व की सभी राजनीतिक रुढि़यों को तोड़ दिया है जो 1980 के दशक में वाजपेयी/आडवाणी के युग और तत्कालीन जन संघ से जुड़ी थीं। नरेन्द्र मोदी ने जो सामाजिक गठजोड़ बुना है वह जनसांख्यिकीय रूप, भौगोलिक विस्तार, लैंगिक समता और इसके जनादेश के मामले में विशेष है।उम्मीद और आकांक्षाओं के इस जनादेश से ही नरेन्द्र मोदी की टीम को आकार मिलना चाहिए
यह जनादेश नरेन्द्र मोदी के लिए विभिन्न जाति, धर्म और क्षेत्र से ऊपर उठकर आबादी के बड़े भाग की नयी उम्मीदों को पूरा करने का है। इसने उन्हें भारत को एक नयी दिशा में ले जाने को सशक्त किया है। ऐसा करते समय उन्हें किसी भी प्रकार के तुच्छ कार्य और दवाब में नहीं आना होगा।
यह जनादेश उस व्यापक राजनीति आन्दोलन में भी बदलाव के युग की शुरुआत है जिसने 1950 के दशक में जनसंघ को जन्म दिया और 1980 के दशक में भाजपा को। अगर इसकी पहली पीढ़ी डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय थे तो दूसरी पीढ़ी अटल बिहारी वाजपेयी और एल के आडवाणी का युग थी। अब नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी पीढ़ी का आगाज हुआ है। भारत के शासन के लिए राष्ट्रीय जनादेश होने के साथ ही उनके पास अब राजनीतिक जनादेश भी है जिससे वह इस आन्दोलन को नया रूप देकर अपने सुशासन के दर्शन को प्रदर्शित कर सकते हैं।
एक अरब सपने और उम्मीदें अब नरेन्द्र मोदी की ओर देख रहे हैं। जब वह अपनी सरकार बनायेंगे तो इन्हीं सपनों और उम्मीदों से ही उनकी टीम को आकार मिलना चाहिए न कि किसी और चीज से।