प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने 2017-18 से 2019-20 तक अगले तीन वर्षों के लिए केन्द्रीय क्षेत्र की ‘समेकितसिल्क उद्योग विकास योजना’’ को मंजूरी दे दी है।
इस योजना के चार भाग हैं –
अनुसंधान और विकास, प्रशिक्षण, प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण और सूचना प्रौद्योगिकी पहल।
अंडा संरचना और किसान विस्तार केंद्र।
बीज, धागे और रेशम उत्पादों के लिए समन्वय और बाजार विकास।
रेशम परीक्षण सुविधाओं, खेत आधारित और कच्चे रेशम के कोवे के बाद टेक्नोलॉजी उन्नयन और निर्यात ब्रांड का संवर्द्धन करने की श्रृंखला के अलावा गुणवत्ता प्रमाणन प्रणाली।
वित्तीय व्यय :
वर्ष 2017-18 से 2019-20 के तीन वर्षों में योजना के कार्यान्वयन के लिए 2161.68 करोड़ रूपए के कुल आवंटन की मंजूरी दी गई है। मंत्रालय केन्द्रीय रेशम बोर्ड के जरिए योजना को लागू करेगा।
प्रभाव :
इस योजना से रेशम का उत्पादन निम्नलिखित प्रक्रियाओं के साथ 2016-17 के दौरान 30348 मीट्रिक टन के स्तर से बढ़कर 2019-20 की समाप्ति तक 38500 मीट्रिक टन होने की उम्मीद है :
वर्ष 2020 तक आयात के विकल्प के रूप में प्रतिवर्ष 8,500 मीट्रिक टन बाइवोल्टाइन रेशम का उत्पादन।
वर्ष 2019-20 की समाप्ति तक रेशम का उत्पादन वर्तमान 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के स्तर से 111 किलोग्राम के स्तर तक लाने के लिए अनुसंधान और विकास।
बाजार की मांग को पूरा करने के लिए गुणवत्तापूर्ण रेशम के उत्पादन संबंधी मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अर्न्तगत उन्नत रीलिंग मशीनों (शहतूत के लिए स्वचालित रीलिंग मशीन; बेहतर रीलिंग / कताई मशीनरी और वन्य रेशम के लिए बुनियाद रीलिंग मशीनें) का बड़े पैमाने पर प्रसार।
इस योजना से महिला अधिकारिता को बढ़ावा मिलेगा और अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति तथा समाज के अन्य कमजोर वर्गों को आजीविका के अवसर मिलेंगे। इस योजना से 2020 तक 85 लाख से 1 करोड़ लोगों के लिए लाभकर रोजगार बढ़ाने में मदद मिलेगी।
पूर्व की योजना के मुकाबले सुधार :
इस योजना में पूर्व की योजना के मुकाबले निम्नलिखित सुधार किए गए है :
इस योजना का उद्देश्य 2022 तक रेशम उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करना है। इस लक्ष्य को हासिल करने पर, वर्ष 2022 तक भारत में उच्च कोटि के रेशम का उत्पादन 20,650 मीट्रिक टन तक पहुंच जाएगा, जो वर्तमान में 11,326 मीट्रिक टन है। इससे आयात घटकर शून्य हो जाएगा।
पहली बार उच्च श्रेणी की गुणवत्ता वाले रेशम के उत्पादन में सुधार पर स्पष्ट रूप से ध्यान दिया गया है। प्रस्ताव रखा गया है कि 2020 तक 4ए ग्रेड के रेशम का उत्पादन शहतूत के उत्पादन का वर्तमान 15 प्रतिशत के स्तर से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया जाए।
कार्यान्वयन की रणनीति रेशम उत्पादकों को अधिकतम लाभ देने के लिए स्पष्ट रूप से ग्रामीण विकास की मनरेगा, आरकेवीवाईऔर कृषि मंत्रालय की पीएमकेएसवाई जैसी अन्य मंत्रालयों की योजनाओंके साथ राज्य स्तर की योजनाओं के मिलन पर आधारित है।
बीमारी प्रतिरोधी रेशम के कीड़े, जीवधारी पौध में सुधार, उत्पादकता बढ़ाने संबंधी साधनों और रीलिंग और कताई के लिए सामग्री आदि से जुड़ी अनुसंधान और विकास परियोजनाओं का कार्य मंत्रालयों यानि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, कृषि और मानव संसाधन विकास मंत्रालयों के सहयोग से किया जाएगा।
विवरण :
योजना का प्रमुख उद्देश्य अनुसंधान और विकास के जरिए रेशम की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार लाना है। अनुसंधान और विकास का मुख्य जोर उन्नत क्रॉसब्रीड रेशम और आयात के विकल्प के रूप में बाइवोल्टाइन रेशम को बढ़ावा देना है ताकि भारत में बाइवोल्टाइन रेशम का उत्पादन इस स्तर तक बढ़ाया जा सके कि 2022 तक कच्चे रेशम का आयात नगण्य हो जाए और भारत रेशम उत्पादन में आत्मनिर्भर हो।
अनुसंधान और विकास में उन्नत जीवधारी पौध की किस्मों के विकास के जरिए प्रजाति में सुधार और प्रतिष्ठित राष्ट्रीय अनुसंधान संगठनों जैसे आईआईटी, सीएसआईआर, भारतीय विज्ञान संस्थान और जापान, चीन, बल्गारिया आदि में रेशम उत्पादन के अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ मिलकर अनुसंधान के जरिए बीमारी प्रतिरोधी रेशम कीट पालन में सुधार; कच्चे रेशम के कोवे से पूर्व और कोवे के बाद के क्षेत्रों में तकनीकी सुधार शामिल है। तकनीकी सुधार और सस्ते मशीनीकरण पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा। कुक्कुटों के भोजन के लिए रेशम के कीड़ों के उप-उत्पादों (प्यूपा), कॉस्मेटिक में इस्तेमाल के लिए सेरिसिनऔर बिना बुने वस्त्रों, रेशम डेनिम, रेशम निट आदि के विविधिकरण पर वर्धित मूल्य वसूली के लिए विशेष ध्यान दिया जाएगा।
अंडा क्षेत्र के अंतर्गत अंडा उत्पादन इकाइयों को मजबूत बनाया जाएगा ताकि बढ़े हुए रेशम उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के अलावा उत्पादन नेटवर्क में गुणवत्तापूर्ण मानकों को स्थापित किया जा सके। गुणवत्तापूर्ण अंडा ककूनों के उत्पादन के लिए चौकी कीटों के उत्पादन और आपूर्ति के लिए इनक्यूबेशन की सुविधाओं के साथ चौकी रियरिंग केंद्रों और गुणवत्तापूर्ण अंडों के लिए निजी ग्रेनियरों के लिए सहायता प्रदान की जाएगी। अन्य प्रयासों में नए शीत-भंडारण स्थापित करना, मोबाइल डिसइंफेक्शन इकाइयां प्रदान करना और मशीनीकरण के लिए उपकरण सहायता शामिल है।
सीड कानून के अंतर्गत पंजीकरण की प्रक्रिया और अंडा उत्पादन केंद्रों द्वारा रिपोर्टिंग, मूलभूत सीड फार्म, विस्तार केंद्रों को वेब आधारित सॉफ्टवेयर विकसित कर स्वचालित बनाया जाएगा। योजना के अंतर्गत सभी लाभान्वितों रेशम पालकों, सीड उत्पादकों चौकी रियररों को आधार से जोड़कर डीबीटी मोड में लाया जाएगा। शिकायतों के समय पर निवारण और सभी पहुंच कार्यक्रमों के लिए एक हेल्पलाइन स्थापित की जाएगी।
भारतीय रेशम के ब्रान्ड प्रमोशन को सिल्क मार्क द्वारा गुणवत्ता प्रमाणपत्र के जरिए न केवल घरेलू बाजार में बल्कि निर्यात बाजार में भी प्रोत्साहित किया जाएगा। रेशम के कीड़ों के अंडे, ककून और कच्चे रेशम को ककून परीक्षण केंद्र और रेशम परीक्षण केंद्रों की स्थापना कर बढ़ावा दिया जाएगा। उत्पाद और डिजाइन विकसित करने के लिए निफ्ट और एनआईडी के साथ सहयोग को मजबूत करने के प्रयास किए जा रहे है।