प्रिय मित्रों,

भारत ने अपना मत दे दिया है.

लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव खत्म ही हुआ है और भारत के लोगों का फैसला इन हजारों इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में बंद है. मतों की गिनती 16 मई को होगी, लेकिन हमें आज ही निर्विवाद रूप से विजेताओं के बारे में पता है और वो है भारत की जनता! एक बार फिर, भारत की जीत हुई है, चुनावी प्रक्रिया की जीत हुई है और लोकतंत्र की भावना उल्लासित है.

मैं इस विशालकाय अभियान को पूरा करने के लिए चुनाव आयोग के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करना चाहता हूं. मैं उन अनगिनत चुनावकर्मियों, सुरक्षा जवानों और पुलिसकर्मियों को धन्यवाद देता हूं और सलाम करता हूं,  जिनके बिना कोई भी चुनाव संभव नहीं हैं.

Narendra Modi blogs on the conclusion of 2014 Lok Sabha Elections

ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान हमने कुछ अप्रिय घटनाओं का समाना किया, जिसमें कई जानें गईं. मैं उन सभी लोगों को सलाम करता हूं जो शहीद हुए और उनके परिवारों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं. ये बहादुर लोग लोकतंत्र के लिए जिए और उसके लिए ही प्राणों को न्योछावर कर दिया. ये सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है कि उनका बलिदान व्यर्थ न जाए.

इतिहास 2014 के चुनावों को ऐतिहासिक और परंपरागत चुनाव में आमूल-चूल बदलाव के लिए याद रखेगा. आम तौर पर सत्ताधारी दल चुनाव अभियान का एजेंडा तय करता है, लेकिन पहली बार ऐसा नहीं हुआ. एजेंडा तय करना तो दूर की बात है, सत्ताधारी पार्टी ने न तो सक्रिय पहल की और न ही उत्तरदायित्व को स्वीकार किया. पूरे चुनाव अभियान के दौरान वो केवल हालात के मुताबिक प्रतिक्रिया व्यक्त करती रही. 

मुझे इस तथ्य से बेहद खुशी मिलती है कि एनडीए विकास और सुशासन के अपने एजेंडे पर  दृढ़ बना रहा. हम इतने पर ही नहीं रुके; हमने सफलतापूर्वक इन दोनों मुद्दों को चुनाव अभियान का केंद्र बिंदु बनाया. हां, इन मुद्दों से भटकाने की कोशिशें तो हुईं लेकिन हम दृढ़ बने रहे. इसका नतीजा ये हुआ कि जो लोग हमारे प्रशंसक थे, उन्होंने कहा कि हम अच्छा काम कर रहे हैं और जो हमारी आलोचना करना चाहते थे वो कहते रहे कि 'हम भाजपा शासित राज्यों के मुकाबले बेहतर कर रहे हैं.' निश्चित रूप से चुनाव सकारात्मक मुद्दों के आधार पर लड़ा जाना चाहिए और मुझे खुशी है कि हम पूरे विमर्श को इस तरह आगे बढ़ाने में कामयाब रहे ताकि लोगों को चुनाव करने में मदद मिले.

2014 लोकसभा चुनावों को बढ़े हुए मतदान के लिए याद किया जाएगा. प्रत्येक चरण का मतदान समाप्त होने के बाद मैं उत्सुकतापूर्वक मतदान के आंकड़ों का इंतजार करता था और मतदान में तेज बढ़ोतरी को देखकर निरपवाद रूप से मेरी खुशी बढ़ जाती. चाहें शहर हो या गांव, वृद्ध हो या युवा, पुरुष हो या महिलाएं, सभी से बढ़चढ़ कर वोट दिया. ज्यादातर स्थानों पर इस समय भीषण गर्मी थी, कुछ स्थानों पर बारिश हो रही थी और पर्वतीय क्षेत्रों में कुछ स्थानों पर ठंड थी, लेकिन इनमें से कुछ भी लोगों के बाहर निकलने और मतदान करने से रोक नहीं सका.

यहां मैं खासतौर से युवाओं के मतदान में हुई बढ़ोतरी का जिक्र करना चाहता हूं. थोड़ा पीछे जाएं तो मतदान के प्रति ज्यादातर नवयुवकों को बहुत अधिक जागरुक नहीं माना जाता था. आज ये बात इतिहास बन चुकी है. आज मतदान को लेकर जागरुकता है और इसे तर्कसंगत माना जाता है. कोई भी मतदान के दिन फेसबुक और ट्विटर को लॉग इन करके देख सकता है कि बड़ी संख्या में मेरे युवा मित्र सेल्फी को शेयर कर रहे हैं. ये बेहद सकारात्मक संकेत है और मुझे उम्मीद है कि ये रुझान आने वाले दिनों में भी जारी रहेंगे.

पूरे चुनाव अभियान के दौरान, मैं स्थानीय लोगों और स्थानीय मसलों से जुड़ सका और ऐसा करके मुझे बहुत अधिक खुशी मिली. इस स्तर पर स्थानीय भावनाओं से जुड़ाव, सोशल मीडिया के बिना संभव नहीं था.

ये पहला चुनाव था जहां, सोशल मीडिया ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आने वाले वर्षों के दौरान इस माध्यम की भूमिका बढ़ेगी ही. हमारी पार्टी, हमारा अभियान और निजी तौर पर मुझे सोशल मीडिया से बहुत अधिक लाभ मिला. ये सूचनाओं का प्रत्यक्ष साधन बन गया और इससे हमें कई मुद्दों पर किसी पक्षपात के बिना स्थानीय नब्ज के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली. कहा जाता है कि किसी संगठन की सफलता इस बात पर निर्भर है कि जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं और शुभचिंतकों से शीर्ष स्तर को कितनी सटीक और समयबद्ध जानकारी मिल रही है. इसके साथ ही जमीनी स्तर पर काम कर रहे लोगों को स्पष्ट और समयबद्ध दिशानिर्देश मिलने भी उतने ही ज़रूरी हैं. सोशल मीडिया के आगमन से संगठनात्मक कार्यप्रणीली से ये सिद्धान्त और अधिक मजबूत हुए हैं. 

एक अन्य बात जिसके लिए हमें तहेदिल से सोशल मीडिया को धन्यवाद देना चाहिए वो ये है कि एकदम शुरुआती स्तर पर ही तोड़मरोड़ कर तैयार किए गए झूठ और अर्ध-सत्यों को रोकने का काम किया. इससे पहले चुनावों के दौरान हम ऐसे लोगों को देखते थे जिनका झूठ समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंच जाता था. एक ऐसे दौर में जब संचार से साधन कम थे, वो अपने पूरे भाषणों और आधे-अधूरे वादों के सहारे बच सकते थे. सोशल मीडिया ने इसे बदल दिया है!  आज सूचना और सोशल मीडिया के युग में उनके माइक से निकलने वाला झूठ उनके मंचों से आगे नहीं निकल पाता है, फिर दूसरों तक पहुंचना तो बहुत दूर की बात है. आने वाले दिनों में सोशल मीडिया की ताकत और बढ़ेगी. 

मैं चुनाव के प्रत्येक पहलू की खबरें देने के लिए मीडिया के मित्रों को धन्यवाद देता हूं. देश के प्रत्येक हिस्से में मीडिया सक्रिय था और हमें नवीनतम घटनाओं के प्रति सजग बनाए हुए था. मैं हालांकि महसूस करता हूं कि चुनावों को लेकर जारी बहस और विमर्श को बेहतर बनाने असीमित गुंजाइश है. ठीक इसी समय जारी चुनावी हंसी-मजाक और हाजिर जवाबी के चलते हमारे चेहरों पर मुस्कान भी दिखाई दी.

लोकसभा चुनावों के साथ ही उड़ीसा, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश में विधानसभा के चुनाव भी हुए. आंध्र प्रदेश के दो नवगठित राज्यों ने अपनी विकास यात्रा आरंभ की. लोकसभा अभियान के चलते इन सभी राज्यों के स्थानीय मुद्दों पर उस तरह चर्चा नहीं हुई, जैसी की आर्दश  रूप में होनी चाहिए. मैं देश भर में कहीं भी गया तो मैंने इन चुनावी राज्यों के बारे में अपने अनुभवों का उल्लेख किया.

हां,  ये एक कड़े संघर्ष वाला चुनाव था. इसमें खुशियों भरे छण भी थे और साथ ही तल्खी भरे छण भी आए. अब तल्खी को दूर करने और चुनाव अभियान की धूल को पीछे छोड़ते हुए आने देखने का वक्त है. इस बात की परवाह किए बिना कि 16 तारीख को कौन जीतता है, अरबों भारतीयों के सपनों को कोई आधात नहीं होना चाहिए. ये सही है कि हमारे राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की विचारधाराएं अलग-अलग हैं, लेकिन हमारा लक्ष्य एक है- भारत के लिए काम करना और अपने युवाओं की आकाक्षांओं को पूरा करना.

ये आगे की ओर देखने का सही समय है. ये एक दूसरे से जुड़ने का समय है. आइए राजनीति की जगह लोगों को, निराशा की जगह उम्मीद को, चोट पहुंचाने की जगह मरहम लगाने को, अलगाव की जगह सभी को साथ लेने को और भेदभाव की जगह विकास को तरजीह दें. ये द्विपक्षीय समझौते की भावना के अनुकूल है कि चुनाव अभियान के बीच हम इन बातों से भटक जाएं, लेकिन अब इस पर एक बार फिर लौटने का समय है.

निजी तौर पर ये अभियान एक अनूठी यात्रा रही. कुछ दिनों पहले मैंने अपने एक ब्लॉग में बताया था कि किस तरह ये एक व्यापक, अभिनव और संतुष्टिदायक यात्रा थी. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे जैसा कोई व्यक्ति खुद को आज यहां पाएगा. ये लोकतंत्र की शक्ति है और ये भारत माता की शक्ति है. मैं उन सभी लोगों को दिल से धन्यवाद देना चाहता हूं जो इस यात्रा का हिस्सा बने. आपके समर्थन और आलोचनाओं ने इस यात्रा को अत्यधिक जीवंत बना दिया. मैं खासतौर से उन सुरक्षा बलों को धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने सुरक्षा व्यवस्था की दृष्टि से विभिन्न रैलियों के लिए मेरे साथ या मुझसे पहले यात्रा की. यदि नरेंद्र मोदी इतनी अधिक रैलियों को सम्बोधित कर सका और बड़ी संख्या में लोगों से मिल सका तो इसका बहुत अधिक श्रेय उन्हें जाता है.

मैं अपनी बात भाजपा तथा एनडीए के अपने सभी साथी उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं के प्रति कुछ शब्दों से समाप्त करना चाहूंगा- आपको प्रयासों और साथ के लिए धन्यवाद. मैं आप सभी को 16 मई के दिन सर्वश्रेष्ठ परिणामों के लिए शुभकामनाएं देता हूं. आइए 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' की ओर यात्रा प्रारंभ करें और एक ऐसा भारत बनाएं जिस पर हमारे महापुरुषों को गर्व हो.

आपका,

नरेंद्र मोदी

Explore More
140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी

लोकप्रिय भाषण

140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी
India eyes potential to become a hub for submarine cables, global backbone

Media Coverage

India eyes potential to become a hub for submarine cables, global backbone
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
एकता का महाकुंभ, युग परिवर्तन की आहट
February 27, 2025

महाकुंभ संपन्न हुआ...एकता का महायज्ञ संपन्न हुआ। जब एक राष्ट्र की चेतना जागृत होती है, जब वो सैकड़ों साल की गुलामी की मानसिकता के सारे बंधनों को तोड़कर नव चैतन्य के साथ हवा में सांस लेने लगता है, तो ऐसा ही दृश्य उपस्थित होता है, जैसा हमने 13 जनवरी के बाद से प्रयागराज में एकता के महाकुंभ में देखा।

|

22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में मैंने देवभक्ति से देशभक्ति की बात कही थी। प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान सभी देवी-देवता जुटे, संत-महात्मा जुटे, बाल-वृद्ध जुटे, महिलाएं-युवा जुटे, और हमने देश की जागृत चेतना का साक्षात्कार किया। ये महाकुंभ एकता का महाकुंभ था, जहां 140 करोड़ देशवासियों की आस्था एक साथ एक समय में इस एक पर्व से आकर जुड़ गई थी।

तीर्थराज प्रयाग के इसी क्षेत्र में एकता, समरसता और प्रेम का पवित्र क्षेत्र श्रृंगवेरपुर भी है, जहां प्रभु श्रीराम और निषादराज का मिलन हुआ था। उनके मिलन का वो प्रसंग भी हमारे इतिहास में भक्ति और सद्भाव के संगम की तरह ही है। प्रयागराज का ये तीर्थ आज भी हमें एकता और समरसता की वो प्रेरणा देता है।

|

बीते 45 दिन, प्रतिदिन, मैंने देखा, कैसे देश के कोने-कोने से लाखों-लाख लोग संगम तट की ओर बढ़े जा रहे हैं। संगम पर स्नान की भावनाओं का ज्वार, लगातार बढ़ता ही रहा। हर श्रद्धालु बस एक ही धुन में था- संगम में स्नान। मां गंगा, यमुना, सरस्वती की त्रिवेणी हर श्रद्धालु को उमंग, ऊर्जा और विश्वास के भाव से भर रही थी।

|

प्रयागराज में हुआ महाकुंभ का ये आयोजन, आधुनिक युग के मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स के लिए, प्लानिंग और पॉलिसी एक्सपर्ट्स के लिए, नए सिरे से अध्ययन का विषय बना है। आज पूरे विश्व में इस तरह के विराट आयोजन की कोई दूसरी तुलना नहीं है, ऐसा कोई दूसरा उदाहरण भी नहीं है।

पूरी दुनिया हैरान है कि कैसे एक नदी तट पर, त्रिवेणी संगम पर इतनी बड़ी संख्या में करोड़ों की संख्या में लोग जुटे। इन करोड़ों लोगों को ना औपचारिक निमंत्रण था, ना ही किस समय पहुंचना है, उसकी कोई पूर्व सूचना थी। बस, लोग महाकुंभ चल पड़े...और पवित्र संगम में डुबकी लगाकर धन्य हो गए।

|

मैं वो तस्वीरें भूल नहीं सकता...स्नान के बाद असीम आनंद और संतोष से भरे वो चेहरे नहीं भूल सकता। महिलाएं हों, बुजुर्ग हों, हमारे दिव्यांग जन हों, जिससे जो बन पड़ा, वो साधन करके संगम तक पहुंचा।

|

और मेरे लिए ये देखना बहुत ही सुखद रहा कि बहुत बड़ी संख्या में भारत की आज की युवा पीढ़ी प्रयागराज पहुंची। भारत के युवाओं का इस तरह महाकुंभ में हिस्सा लेने के लिए आगे आना, एक बहुत बड़ा संदेश है। इससे ये विश्वास दृढ़ होता है कि भारत की युवा पीढ़ी हमारे संस्कार और संस्कृति की वाहक है और इसे आगे ले जाने का दायित्व समझती है और इसे लेकर संकल्पित भी है, समर्पित भी है।

इस महाकुंभ में प्रयागराज पहुंचने वालों की संख्या ने निश्चित तौर पर एक नया रिकॉर्ड बनाया है। लेकिन इस महाकुंभ में हमने ये भी देखा कि जो प्रयाग नहीं पहुंच पाए, वो भी इस आयोजन से भाव-विभोर होकर जुड़े। कुंभ से लौटते हुए जो लोग त्रिवेणी तीर्थ अपने साथ लेकर गए, उस जल की कुछ बूंदों ने भी करोड़ों भक्तों को कुंभ स्नान जैसा ही पुण्य दिया। कितने ही लोगों का कुंभ से वापसी के बाद गांव-गांव में जो सत्कार हुआ, जिस तरह पूरे समाज ने उनके प्रति श्रद्धा से सिर झुकाया, वो अविस्मरणीय है।

|

ये कुछ ऐसा हुआ है, जो बीते कुछ दशकों में पहले कभी नहीं हुआ। ये कुछ ऐसा हुआ है, जो आने वाली कई-कई शताब्दियों की एक नींव रख गया है।

प्रयागराज में जितनी कल्पना की गई थी, उससे कहीं अधिक संख्या में श्रद्धालु वहां पहुंचे। इसकी एक वजह ये भी थी कि प्रशासन ने भी पुराने कुंभ के अनुभवों को देखते हुए ही अंदाजा लगाया था। लेकिन अमेरिका की आबादी के करीब दोगुने लोगों ने एकता के महाकुंभ में हिस्सा लिया, डुबकी लगाई। 

आध्यात्मिक क्षेत्र में रिसर्च करने वाले लोग करोड़ों भारतवासियों के इस उत्साह पर अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि अपनी विरासत पर गौरव करने वाला भारत अब एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ रहा है। मैं मानता हूं, ये युग परिवर्तन की वो आहट है, जो भारत का नया भविष्य लिखने जा रही है।

|

साथियों,

महाकुंभ की इस परंपरा से, हजारों वर्षों से भारत की राष्ट्रीय चेतना को बल मिलता रहा है। हर पूर्णकुंभ में समाज की उस समय की परिस्थितियों पर ऋषियों-मुनियों, विद्वत् जनों द्वारा 45 दिनों तक मंथन होता था। इस मंथन में देश को, समाज को नए दिशा-निर्देश मिलते थे। 

इसके बाद हर 6 वर्ष में अर्धकुंभ में परिस्थितियों और दिशा-निर्देशों की समीक्षा होती थी। 12 पूर्णकुंभ होते-होते, यानि 144 साल के अंतराल पर जो दिशा-निर्देश, जो परंपराएं पुरानी पड़ चुकी होती थीं, उन्हें त्याग दिया जाता था, आधुनिकता को स्वीकार किया जाता था और युगानुकूल परिवर्तन करके नए सिरे से नई परंपराओं को गढ़ा जाता था। 

144 वर्षों के बाद होने वाले महाकुंभ में ऋषियों-मुनियों द्वारा, उस समय-काल और परिस्थितियों को देखते हुए नए संदेश भी दिए जाते थे। अब इस बार 144 वर्षों के बाद पड़े इस तरह के पूर्ण महाकुंभ ने भी हमें भारत की विकासयात्रा के नए अध्याय का संदेश दिया है। ये संदेश है- विकसित भारत का। 

जिस तरह एकता के महाकुंभ में हर श्रद्धालु, चाहे वो गरीब हों या संपन्न हों, बाल हो या वृद्ध हो, देश से आया हो या विदेश से आया हो, गांव का हो या शहर का हो, पूर्व से हो या पश्चिम से हो, उत्तर से हो दक्षिण से हो, किसी भी जाति का हो, किसी भी विचारधारा का हो, सब एक महायज्ञ के लिए एकता के महाकुंभ में एक हो गए। एक भारत-श्रेष्ठ भारत का ये चिर स्मरणीय दृश्य, करोड़ों देशवासियों में आत्मविश्वास के साक्षात्कार का महापर्व बन गया। अब इसी तरह हमें एक होकर विकसित भारत के महायज्ञ के लिए जुट जाना है।

|

साथियों,

आज मुझे वो प्रसंग भी याद आ रहा है जब बालक रूप में श्रीकृष्ण ने माता यशोदा को अपने मुख में ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे। वैसे ही इस महाकुंभ में भारतवासियों ने और विश्व ने भारत के सामर्थ्य के विराट स्वरूप के दर्शन किए हैं। हमें अब इसी आत्मविश्वास से एक निष्ठ होकर, विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने के लिए आगे बढ़ना है।

भारत की ये एक ऐसी शक्ति है, जिसके बारे में भक्ति आंदोलन में हमारे संतों ने राष्ट्र के हर कोने में अलख जगाई थी। विवेकानंद हों या श्री ऑरोबिंदो हों, हर किसी ने हमें इसके बारे में जागरूक किया था। इसकी अनुभूति गांधी जी ने भी आजादी के आंदोलन के समय की थी। आजादी के बाद भारत की इस शक्ति के विराट स्वरूप को यदि हमने जाना होता, और इस शक्ति को सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की ओर मोड़ा होता, तो ये गुलामी के प्रभावों से बाहर निकलते भारत की बहुत बड़ी शक्ति बन जाती। लेकिन हम तब ये नहीं कर पाए। अब मुझे संतोष है, खुशी है कि जनता जनार्दन की यही शक्ति, विकसित भारत के लिए एकजुट हो रही है।

|

वेद से विवेकानंद तक और उपनिषद से उपग्रह तक, भारत की महान परंपराओं ने इस राष्ट्र को गढ़ा है। मेरी कामना है, एक नागरिक के नाते, अनन्य भक्ति भाव से, अपने पूर्वजों का, हमारे ऋषियों-मुनियों का पुण्य स्मरण करते हुए, एकता के महाकुंभ से हम नई प्रेरणा लेते हुए, नए संकल्पों को साथ लेकर चलें। हम एकता के महामंत्र को जीवन मंत्र बनाएं, देश सेवा में ही देव सेवा, जीव सेवा में ही शिव सेवा के भाव से स्वयं को समर्पित करें।

साथियों, 

जब मैं काशी चुनाव के लिए गया था, तो मेरे अंतरमन के भाव शब्दों में प्रकट हुए थे, और मैंने कहा था- मां गंगा ने मुझे बुलाया है। इसमें एक दायित्व बोध भी था, हमारी मां स्वरूपा नदियों की पवित्रता को लेकर, स्वच्छता को लेकर। प्रयागराज में भी गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम पर मेरा ये संकल्प और दृढ़ हुआ है। गंगा जी, यमुना जी, हमारी नदियों की स्वच्छता हमारी जीवन यात्रा से जुड़ी है। हमारी जिम्मेदारी बनती है कि नदी चाहे छोटी हो या बड़ी, हर नदी को जीवनदायिनी मां का प्रतिरूप मानते हुए हम अपने यहां सुविधा के अनुसार, नदी उत्सव जरूर मनाएं। ये एकता का महाकुंभ हमें इस बात की प्रेरणा देकर गया है कि हम अपनी नदियों को निरंतर स्वच्छ रखें, इस अभियान को निरंतर मजबूत करते रहें।

|

मैं जानता हूं, इतना विशाल आयोजन आसान नहीं था। मैं प्रार्थना करता हूं मां गंगा से...मां यमुना से...मां सरस्वती से...हे मां हमारी आराधना में कुछ कमी रह गई हो तो क्षमा करिएगा...। जनता जनार्दन, जो मेरे लिए ईश्वर का ही स्वरूप है, श्रद्धालुओं की सेवा में भी अगर हमसे कुछ कमी रह गई हो, तो मैं जनता जनार्दन का भी क्षमाप्रार्थी हूं।

साथियों,

श्रद्धा से भरे जो करोड़ों लोग प्रयाग पहुँचकर इस एकता के महाकुंभ का हिस्सा बने, उनकी सेवा का दायित्व भी श्रद्धा के सामर्थ्य से ही पूरा हुआ है। यूपी का सांसद होने के नाते मैं गर्व से कह सकता हूं कि योगी जी के नेतृत्व में शासन, प्रशासन और जनता ने मिलकर, इस एकता के महाकुंभ को सफल बनाया। केंद्र हो या राज्य हो, यहां ना कोई शासक था, ना कोई प्रशासक था, हर कोई श्रद्धा भाव से भरा सेवक था। हमारे सफाईकर्मी, हमारे पुलिसकर्मी, नाविक साथी, वाहन चालक, भोजन बनाने वाले, सभी ने पूरी श्रद्धा और सेवा भाव से निरंतर काम करके इस महाकुंभ को सफल बनाया। विशेषकर, प्रयागराज के निवासियों ने इन 45 दिनों में तमाम परेशानियों को उठाकर भी जिस तरह श्रद्धालुओं की सेवा की है, वह अतुलनीय है। मैं प्रयागराज के सभी निवासियों का, यूपी की जनता का आभार व्यक्त करता हूं, अभिनंदन करता हूं।

|

साथियों, 

महाकुंभ के दृश्यों को देखकर, बहुत प्रारंभ से ही मेरे मन में जो भाव जगे, जो पिछले 45 दिनों में और अधिक पुष्ट हुए हैं, राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य को लेकर मेरी आस्था, अनेक गुना मजबूत हुई है।

140 करोड़ देशवासियों ने जिस तरह प्रयागराज में एकता के महाकुंभ को आज के विश्व की एक महान पहचान बना दिया, वो अद्भुत है।

देशवासियों के इस परिश्रम से, उनके प्रयास से, उनके संकल्प से अभीभूत मैं जल्द ही द्वादश ज्योतिर्लिंग में से प्रथम ज्योतिर्लिंग, श्री सोमनाथ के दर्शन करने जाऊंगा और श्रद्धा रूपी संकल्प पुष्प को समर्पित करते हुए हर भारतीय के लिए प्रार्थना करूंगा।

महाकुंभ का स्थूल स्वरूप महाशिवरात्रि को पूर्णता प्राप्त कर गया है। लेकिन मुझे विश्वास है, मां गंगा की अविरल धारा की तरह, महाकुंभ की आध्यात्मिक चेतना की धारा और एकता की धारा निरंतर बहती रहेगी।