जीवन में हम बहुत कम ऐसे लोगों से मिलते हैं, जिनके निकट जाते ही मन-मस्तिष्क एक सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। ऐसे व्यक्तियों का स्नेह, उनका आशीर्वाद, हमारी बहुत बड़ी पूंजी होता है। संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज मेरे लिए ऐसे ही थे। उनके समीप अलौकिक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता था। आचार्य विद्यासागर जी जैसे संतों को देखकर ये अनुभव होता था कैसे भारत में आध्यात्म किसी अमर और अजस्र जलधारा के समान अविरल प्रवाहित होकर समाज का मंगल करता रहता है।

आज मुझे, उनसे हुई मुलाकातें, उनसे हुआ संवाद, सब बार-बार याद आ रहा है। पिछले साल नवंबर में छत्तीसगढ़ में डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी जैन मंदिर में उनके दर्शन करने जाना मेरे लिए परम सौभाग्य की बात थी। तब मुझे जरा भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि आचार्य जी से मेरी यह आखिरी मुलाकात होगी। वह पल मेरे लिए अविस्मरणीय बन गया है। इस दौरान उन्होंने काफी देर तक मुझसे बातें कीं। उन्होंने पितातुल्य भाव से मेरा ख्याल रखा और देश सेवा में किए जा रहे प्रयासों के लिए मुझे आशीर्वाद भी दिया। देश के विकास और विश्व मंच पर भारत को मिल रहे सम्मान पर उन्होंने प्रसन्नता भी व्यक्त की थी। अपने कार्यों की चर्चा करते हुए वह काफी उत्साहित थे। इस दौरान उनकी सौम्य दृष्टि और दिव्य मुस्कान प्रेरित करने वाली थी। उनका आशीर्वाद आनंद से भर देने वाला था, जो हमारे अंतर्मन के साथ-साथ पूरे वातावरण में उनकी दिव्य उपस्थिति का अहसास करा रहा था। उनका जाना उस अद्भुत मार्गदर्शक को खोने के समान है, जिन्होंने मेरा और अनगिनत लोगों का मार्ग निरंतर प्रशस्त किया है।

भारतवर्ष की ये विशेषता रही है कि यहां की पावन धरती ने निरंतर ऐसी महान विभूतियों को जन्म दिया है, जिन्होंने लोगों को दिशा दिखाने के साथ-साथ समाज को भी बेहतर बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। संतों और समाज सुधार की इसी महान परंपरा में संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी का प्रमुख स्थान है। उन्होंने वर्तमान के साथ ही भविष्य के लिए भी एक नई राह दिखाई है।

उनका संपूर्ण जीवन आध्यात्मिक प्रेरणा से भरा रहा। उनके जीवन का हर अध्याय, अद्भुत ज्ञान, असीम करुणा और मानवता के उत्थान के लिए अटूट प्रतिबद्धता से सुशोभित है।

संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज जी सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन और सम्यक चरित्र की त्रिवेणी थे। उनके व्यक्तित्व की सबसे विशेष बात ये थी कि उनका सम्यक दर्शन जितना आत्मबोध के लिए था, उतना ही सशक्त उनका लोक बोध भी था। उनका सम्यक ज्ञान जितना धर्म को लेकर था, उतना ही उनका चिंतन लोक विज्ञान के लिए भी रहता था।

करुणा, सेवा और तपस्या से परिपूर्ण आचार्य जी का जीवन भगवान महावीर के आदर्शों का प्रतीक रहा, उनका जीवन, जैन धर्म की मूल भावना का सबसे बड़ा उदाहरण रहा। उन्होंने जीवन भर अपने काम और अपनी दीक्षा से इन सिद्धांतों का संरक्षण किया। हर व्यक्ति के लिए उनका प्रेम, ये बताता है कि जैन धर्म में ‘जीवन’ का महत्व क्या है। उन्होंने सत्यनिष्ठा के साथ अपनी पूरी आयु तक ये सीख दी कि विचारों, शब्दों और कर्मों की पवित्रता कितनी बड़ी होती है। उन्होंने हमेशा जीवन के सरल होने पर जोर दिया। आचार्य जी जैसे व्यक्तित्वों के कारण ही, आज पूरी दुनिया को जैन धर्म और भगवान महावीर के जीवन से जुड़ने की प्रेरणा मिलती है।

वो जैन समुदाय के साथ ही अन्य विभिन्न समुदायों के भी बड़े प्रेरणास्रोत रहे। विभिन्न पंथों, परंपराओं और क्षेत्रों के लोगों को उनका सानिध्य मिला, विशेष रूप से युवाओं में आध्यात्मिक जागृति के लिए उन्होंने अथक प्रयास किया।

शिक्षा का क्षेत्र उनके हृदय के बहुत करीब रहा है। बचपन में सामान्य विद्याधर से लेकर आचार्य विद्यासागर जी बनने तक की उनकी यात्रा ज्ञान प्राप्ति और उस ज्ञान से पूरे समाज को प्रकाशित करने की उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दिखाती है। उनका दृढ़ विश्वास था कि शिक्षा ही एक न्यायपूर्ण और प्रबुद्ध समाज का आधार है। उन्होंने लोगों को सशक्त बनाने और जीवन के लक्ष्यों को पाने के लिए ज्ञान को सर्वोपरि बताया। सच्चे ज्ञान के मार्ग के रूप में स्वाध्याय और आत्म-जागरूकता के महत्त्व पर उनका विशेष जोर था। इसके साथ ही उन्होंने अपने अनुयायियों से निरंतर सीखने और आध्यात्मिक विकास के लिए निरंतर प्रयास करने का भी आग्रह किया था।

संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज की इच्छा थी कि हमारे युवाओं को ऐसी शिक्षा मिले, जो हमारे सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित हो। वह अक्सर कहा करते थे कि चूंकि हम अपने अतीत के ज्ञान से दूर हो गए हैं, इसलिए वर्तमान में हम अनेक बड़ी चुनौतियों से जूझ रहे हैं। अतीत के ज्ञान में वो आज की अनेक चुनौतियों का समाधान देखते थे। जैसे जल संकट को लेकर वो भारत के प्राचीन ज्ञान से अनेक समाधान सुझाते थे। उनका यह भी विश्वास था कि शिक्षा वही है, जो स्किल डवलपमेंट और इनोवेशन पर अपना ध्यान केंद्रित करे।

आचार्य जी ने कैदियों की भलाई के लिए भी विभिन्न जेलों में काफी कार्य किया था। कितने ही कैदियों ने आचार्य जी के सहयोग से हथकरघा का प्रशिक्षण लिया। कैदियों में उनका इतना सम्मान था कि कई कैदी रिहाई के बाद अपने परिवार से भी पहले आचार्य विद्यासागर जी से मिलने जाते थे।

संत शिरोमणि आचार्य जी को भारत देश की भाषायी विविधता पर बहुत गर्व था। इसलिए वह हमेशा युवाओं को स्थानीय भाषाएं सीखने के लिए प्रोत्साहित करते थे। उन्होंने स्वयं भी संस्कृत, प्राकृत और हिंदी में कई सारी रचनाएं की हैं। एक संत के रूप में वे शिखर तक पहुंचने के बाद भी जिस प्रकार जमीन से जुड़े रहे, ये उनकी महान रचना ‘मूक माटी’ में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। इतना ही नहीं, वे अपने कार्यों से वंचितों की आवाज भी बने।

संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज जी के योगदान से स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में भी बड़े परिवर्तन हुए हैं। उन्होंने उन क्षेत्रों में विशेष प्रयास किया, जहां उन्हें ज्यादा कमी दिखाई पड़ी। स्वास्थ्य को लेकर उनका दृष्टिकोण बहुत व्यापक था। उन्होंने शारीरिक स्वास्थ्य को आध्यात्मिक चेतना के साथ जोड़ने पर बल दिया, ताकि लोग शारीरिक और मानसिक रूप, दोनों से स्वस्थ रह सकें।

मैं विशेष रूप से आने वाली पीढ़ियों से यह आग्रह करूंगा कि वे राष्ट्र निर्माण के प्रति संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की प्रतिबद्धता के बारे में व्यापक अध्ययन करें। वे हमेशा लोगों से किसी भी पक्षपातपूर्ण विचार से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हित पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया करते थे। वे मतदान के प्रबल समर्थकों में से एक थे और मानते थे कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति है। उन्होंने हमेशा स्वस्थ और स्वच्छ राजनीति की पैरवी की। उनका कहना था- ‘लोकनीति लोभसंग्रह नहीं, बल्कि लोकसंग्रह है।’, इसलिए नीतियों का निर्माण निजी स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि लोगों के कल्याण के लिए होना चाहिए।

आचार्य जी का गहरा विश्वास था कि एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण उसके नागरिकों के कर्तव्य भाव के साथ ही अपने परिवार, अपने समाज और देश के प्रति गहरी प्रतिबद्धता की नींव पर होता है। उन्होंने लोगों को सदैव ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और आत्मनिर्भरता जैसे गुणों को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया। ये गुण एक न्यायपूर्ण, करुणामयी और समृद्ध समाज के लिए आवश्यक हैं। आज जब हम विकसित भारत के निर्माण की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं कर्तव्यों की भावना और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है।
ऐसे कालखंड में जब दुनियाभर में पर्यावरण पर कई तरह के संकट मंडरा रहे हैं, तब संत शिरोमणि आचार्य जी का मार्गदर्शन हमारे बहुत काम आने वाला है। उन्होंने एक ऐसी जीवनशैली अपनाने का आह्वान किया, जो प्रकृति को होने वाले नुकसान को कम करने में सहायक हो। यही तो ‘मिशन लाइफ’ है जिसका आह्वान आज भारत ने वैश्विक मंच पर किया है। इसी तरह उन्होंने हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि को सर्वोच्च महत्त्व दिया। उन्होंने कृषि में आधुनिक टेक्नोलॉजी अपनाने पर भी बल दिया। मुझे विश्वास है कि वो नमो ड्रोन दीदी अभियान की सफलता से बहुत खुश होते।

संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी, देशवासियों के हृदय और मन-मस्तिष्क में सदैव जीवंत रहेंगे। आचार्य जी के संदेश उन्हें सदैव प्रेरित और आलोकित करते रहेंगे। उनकी अविस्मरणीय स्मृति का सम्मान करते हुए हम उनके मूल्यों को मूर्त रूप देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह ना सिर्फ उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि होगी, बल्कि उनके बताए रास्ते पर चलकर राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त होगा।

Explore More
140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी

लोकप्रिय भाषण

140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी
5 Days, 31 World Leaders & 31 Bilaterals: Decoding PM Modi's Diplomatic Blitzkrieg

Media Coverage

5 Days, 31 World Leaders & 31 Bilaterals: Decoding PM Modi's Diplomatic Blitzkrieg
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
भारत के रतन का जाना...
November 09, 2024

आज श्री रतन टाटा जी के निधन को एक महीना हो रहा है। पिछले महीने आज के ही दिन जब मुझे उनके गुजरने की खबर मिली, तो मैं उस समय आसियान समिट के लिए निकलने की तैयारी में था। रतन टाटा जी के हमसे दूर चले जाने की वेदना अब भी मन में है। इस पीड़ा को भुला पाना आसान नहीं है। रतन टाटा जी के तौर पर भारत ने अपने एक महान सपूत को खो दिया है...एक अमूल्य रत्न को खो दिया है।

आज भी शहरों, कस्बों से लेकर गांवों तक, लोग उनकी कमी को गहराई से महसूस कर रहे हैं। हम सबका ये दुख साझा है। चाहे कोई उद्योगपति हो, उभरता हुआ उद्यमी हो या कोई प्रोफेशनल हो, हर किसी को उनके निधन से दुख हुआ है। पर्यावरण रक्षा से जुड़े लोग...समाज सेवा से जुड़े लोग भी उनके निधन से उतने ही दुखी हैं। और ये दुख हम सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में महसूस कर रहे हैं।

युवाओं के लिए, श्री रतन टाटा एक प्रेरणास्रोत थे। उनका जीवन, उनका व्यक्तित्व हमें याद दिलाता है कि कोई सपना ऐसा नहीं जिसे पूरा ना किया जा सके, कोई लक्ष्य ऐसा नहीं जिसे प्राप्त नहीं किया जा सके। रतन टाटा जी ने सबको सिखाया है कि विनम्र स्वभाव के साथ, दूसरों की मदद करते हुए भी सफलता पाई जा सकती है।

 रतन टाटा जी, भारतीय उद्यमशीलता की बेहतरीन परंपराओं के प्रतीक थे। वो विश्वसनीयता, उत्कृष्टता औऱ बेहतरीन सेवा जैसे मूल्यों के अडिग प्रतिनिधि थे। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह दुनिया भर में सम्मान, ईमानदारी और विश्वसनीयता का प्रतीक बनकर नई ऊंचाइयों पर पहुंचा। इसके बावजूद, उन्होंने अपनी उपलब्धियों को पूरी विनम्रता और सहजता के साथ स्वीकार किया।

दूसरों के सपनों का खुलकर समर्थन करना, दूसरों के सपने पूरा करने में सहयोग करना, ये श्री रतन टाटा के सबसे शानदार गुणों में से एक था। हाल के वर्षों में, वो भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम का मार्गदर्शन करने और भविष्य की संभावनाओं से भरे उद्यमों में निवेश करने के लिए जाने गए। उन्होंने युवा आंत्रप्रेन्योर की आशाओं और आकांक्षाओं को समझा, साथ ही भारत के भविष्य को आकार देने की उनकी क्षमता को पहचाना।

भारत के युवाओं के प्रयासों का समर्थन करके, उन्होंने नए सपने देखने वाली नई पीढ़ी को जोखिम लेने और सीमाओं से परे जाने का हौसला दिया। उनके इस कदम ने भारत में इनोवेशन और आंत्रप्रेन्योरशिप की संस्कृति विकसित करने में बड़ी मदद की है। आने वाले दशकों में हम भारत पर इसका सकारात्मक प्रभाव जरूर देखेंगे।

रतन टाटा जी ने हमेशा बेहतरीन क्वालिटी के प्रॉडक्ट...बेहतरीन क्वालिटी की सर्विस पर जोर दिया और भारतीय उद्यमों को ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करने का रास्ता दिखाया। आज जब भारत 2047 तक विकसित होने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, तो हम ग्लोबल बेंचमार्क स्थापित करते हुए ही दुनिया में अपना परचम लहरा सकते हैं। मुझे आशा है कि उनका ये विजन हमारे देश की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करेगा और भारत वर्ल्ड क्लास क्वालिटी के लिए अपनी पहचान मजबूत करेगा।

रतन टाटा जी की महानता बोर्डरूम या सहयोगियों की मदद करने तक ही सीमित नहीं थी। सभी जीव-जंतुओं के प्रति उनके मन में करुणा थी। जानवरों के प्रति उनका गहरा प्रेम जगजाहिर था और वे पशुओं के कल्याण पर केन्द्रित हर प्रयास को बढ़ावा देते थे। वो अक्सर अपने डॉग्स की तस्वीरें साझा करते थे, जो उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा थे। मुझे याद है, जब रतन टाटा जी को लोग आखिरी विदाई देने के लिए उमड़ रहे थे...तो उनका डॉग ‘गोवा’ भी वहां नम आंखों के साथ पहुंचा था।

रतन टाटा जी का जीवन इस बात की याद दिलाता है कि लीडरशिप का आकलन केवल उपलब्धियों से ही नहीं किया जाता है, बल्कि सबसे कमजोर लोगों की देखभाल करने की उसकी क्षमता से भी किया जाता है।

रतन टाटा जी ने हमेशा, नेशन फर्स्ट की भावना को सर्वोपरि रखा। 26/11 के आतंकवादी हमलों के बाद उनके द्वारा मुंबई के प्रतिष्ठित ताज होटल को पूरी तत्परता के साथ फिर से खोलना, इस राष्ट्र के एकजुट होकर उठ खड़े होने का प्रतीक था। उनके इस कदम ने बड़ा संदेश दिया कि – भारत रुकेगा नहीं...भारत निडर है और आतंकवाद के सामने झुकने से इनकार करता है।

व्यक्तिगत तौर पर, मुझे पिछले कुछ दशकों में उन्हें बेहद करीब से जानने का सौभाग्य मिला। हमने गुजरात में साथ मिलकर काम किया। वहां उनकी कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर निवेश किया गया। इनमें कई ऐसी परियोजनाएं भी शामिल थीं, जिसे लेकर वे बेहद भावुक थे।

जब मैं केन्द्र सरकार में आया, तो हमारी घनिष्ठ बातचीत जारी रही और वो हमारे राष्ट्र-निर्माण के प्रयासों में एक प्रतिबद्ध भागीदार बने रहे। स्वच्छ भारत मिशन के प्रति श्री रतन टाटा का उत्साह विशेष रूप से मेरे दिल को छू गया था। वह इस जन आंदोलन के मुखर समर्थक थे। वह इस बात को समझते थे कि स्वच्छता और स्वस्थ आदतें भारत की प्रगति की दृष्टि से कितनी महत्वपूर्ण हैं। अक्टूबर की शुरुआत में स्वच्छ भारत मिशन की दसवीं वर्षगांठ के लिए उनका वीडियो संदेश मुझे अभी भी याद है। यह वीडियो संदेश एक तरह से उनकी अंतिम सार्वजनिक उपस्थितियों में से एक रहा है।

कैंसर के खिलाफ लड़ाई एक और ऐसा लक्ष्य था, जो उनके दिल के करीब था। मुझे दो साल पहले असम का वो कार्यक्रम याद आता है, जहां हमने संयुक्त रूप से राज्य में विभिन्न कैंसर अस्पतालों का उद्घाटन किया था। उस अवसर पर अपने संबोधन में, उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि वो अपने जीवन के आखिरी वर्षों को हेल्थ सेक्टर को समर्पित करना चाहते हैं। स्वास्थ्य सेवा एवं कैंसर संबंधी देखभाल को सुलभ और किफायती बनाने के उनके प्रयास इस बात के प्रमाण हैं कि वो बीमारियों से जूझ रहे लोगों के प्रति कितनी गहरी संवेदना रखते थे।

मैं रतन टाटा जी को एक विद्वान व्यक्ति के रूप में भी याद करता हूं - वह अक्सर मुझे विभिन्न मुद्दों पर लिखा करते थे, चाहे वह शासन से जुड़े मामले हों, किसी काम की सराहना करना हो या फिर चुनाव में जीत के बाद बधाई सन्देश भेजना हो।

अभी कुछ सप्ताह पहले, मैं स्पेन सरकार के राष्ट्रपति श्री पेड्रो सान्चेज के साथ वडोदरा में था और हमने संयुक्त रूप से एक विमान फैक्ट्री का उद्घाटन किया। इस फैक्ट्री में सी-295 विमान भारत में बनाए जाएंगे। श्री रतन टाटा ने ही इस पर काम शुरू किया था। उस समय मुझे श्री रतन टाटा की बहुत कमी महसूस हुई।

आज जब हम उन्हें याद कर रहे हैं, तो हमें उस समाज को भी याद रखना है जिसकी उन्होंने कल्पना की थी। जहां व्यापार, अच्छे कार्यों के लिए एक शक्ति के रूप में काम करे, जहां प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता को महत्व दिया जाए और जहां प्रगति का आकलन सभी के कल्याण और खुशी के आधार पर किया जाए। रतन टाटा जी आज भी उन जिंदगियों और सपनों में जीवित हैं, जिन्हें उन्होंने सहारा दिया और जिनके सपनों को साकार किया। भारत को एक बेहतर, सहृदय और उम्मीदों से भरी भूमि बनाने के लिए आने वाली पीढ़ियां उनकी सदैव आभारी रहेंगी।