कैप्टन को श्रद्धांजलि!

Published By : Admin | January 3, 2024 | 08:41 IST

कुछ दिन पहले हमने एक बेहद ही सम्मानित और प्रतिष्ठित आइकॉन तिरु विजयकांत जी को खो दिया। वह वास्तव में सभी के लिए एक कैप्टन थे- एक व्यक्ति जिसने अपना जीवन दूसरों की भलाई के लिए जिया, जरूरतमंद लोगों को नेतृत्व और हीलिंग टच प्रदान किया। व्यक्तिगत रूप से कैप्टन एक बहुत ही प्रिय मित्र थे - ऐसे व्यक्ति जिनके साथ मुझे कई अवसरों पर बातचीत और निकटता से काम करने का मौका मिला।

कैप्टन बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। भारतीय सिनेमा जगत में बहुत कम सितारों ने विजयकांत जी जैसी अमिट छाप छोड़ी है। उनके प्रारंभिक वर्षों और सिनेमाई कार्यों से प्रेरित होने के लिए बहुत कुछ है। साधारण शुरुआत से लेकर तमिल सिनेमा की ऊंचाइयों तक का उनका सफर सिर्फ स्टारडम की कहानी नहीं है, बल्कि अथक प्रयास और अटूट समर्पण की कहानी है। उन्होंने प्रसिद्धि के लिए सिनेमा की दुनिया में कदम नहीं रखा। उनकी यात्रा जुनून और दृढ़ता से प्रेरित थी। उनकी प्रत्येक फिल्म ने न केवल मनोरंजन किया, बल्कि अपने समय के सामाजिक लोकाचार को भी दर्शकों के व्यापक वर्ग के साथ गहराई से प्रतिबिंबित किया।

कैप्टन की भूमिकाएं और उन्होंने उन भूमिकाओं को कैसे निभाया, यह आम नागरिक के संघर्षों के बारे में उनकी गहरी समझ को उजागर करता है। उन्होंने अक्सर ऐसे चरित्रों को चित्रित किया जो अन्याय, भ्रष्टाचार, हिंसा, उग्रवाद और आतंकवाद के खिलाफ लड़े और वंचितों के लिए खड़े हुए। इन गुणों को उन्होंने वास्तविक जीवन में भी अपनाया। यह कहना उचित होगा कि उनकी फिल्में समाज का दर्पण होती थीं, जो उसके गुणों और दोषों को दर्शाती थीं। मनोरंजन और सामाजिक संदेश के इस अनूठे मिश्रण ने उन्हें दूसरों से अलग खड़ा कर दिया।

यहां मैं ग्रामीण जीवन और संस्कृति के प्रति उनके प्रेम को विशेष रूप से उजागर करना चाहता हूं। अपार प्रसिद्धि पाने और दुनिया भर में यात्रा करने के बाद भी, ग्रामीण जीवन और पारंपरिक लोकाचार के प्रति उनका प्रेम बना रहा। ऐसा लगता है कि उनकी फ़िल्में उनके ग्रामीण अनुभव को बारीकी से दर्शाती हैं । उन्होंने ग्रामीण परिवेश के बारे में शहरी लोगों की समझ को बेहतर बनाने के लिए अक्सर अनुकरणीय प्रयास किए।

लेकिन कैप्टन का असर सिल्वर स्क्रीन तक ही सीमित नहीं रहा। उन्होंने राजनीति की दुनिया में कदम रखा और अधिक व्यापक तरीके से समाज की सेवा करना चाहते थे। उन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में तब प्रवेश किया जब तमिलनाडु की राजनीति पर दो दिग्गजों - अम्मा जयललिता जी और कलैग्नार करुणानिधि जी का वर्चस्व था। ऐसे में तीसरा विकल्प प्रस्तुत करना अद्वितीय तो था ही, लेकिन यह विंटेज कैप्टन ही थे जो अपनी शर्तों पर काम करते थे! राष्ट्रवाद और सामाजिक न्याय पर उनका अपना जोर, देसिया मुरपोक्कू द्रविड़ कड़गम (DMDK) की विचारधारा में प्रतिबिंबित हुआ, जिसकी स्थापना उन्होंने 2005 में की थी। जब भी वह बोलते थे तो कोई भी उनके ऑन-स्क्रीन व्यक्तित्व के साथ समानताओं को देख सकता था, जो अक्सर दलितों के हितों की वकालत करते थे। तमिलनाडु की अत्यधिक द्विध्रुवीय और प्रतिस्पर्धी राजनीति में, उनकी पार्टी के गठन के अपेक्षाकृत कम समय में ही वह 2011 में प्रमुख विपक्षी नेता बन गए।

मैंने 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान कैप्टन के साथ काम किया था जब हमारी पार्टियाँ गठबंधन में लड़ी थीं और 18.5% से अधिक वोट हासिल किए थे- जो कि 1989 के चुनावों के बाद किसी भी मुख्य क्षेत्रीय पार्टी के बिना किसी भी राष्ट्रीय गठबंधन को मिले सबसे अधिक वोट थे! मुझे सलेम में की गई हमारी संयुक्त रैली अच्छी तरह से याद है - जहां मैंने उनकी ओजस्वी वाकपटूता (Oratory) कला और लोगों के साथ उनका जुड़ाव देखा था। 2014 में जब एनडीए की सरकार बनी तो वह सबसे खुश लोगों में से थे। मैं सेंट्रल हॉल में उनकी खुशी को कभी नहीं भूल सकता जब 2014 की चुनाव जीत के बाद एनडीए नेता मिले थे।

प्रोफेशनल उपलब्धियों के परे विजयकांत जी का जीवन युवाओं को बहुमूल्य सीख देता है। सबसे विशेष रूप से - रेजिलिएंस की शक्ति, कभी हार न मानने वाला रवैया और पूर्ण समर्पण के माध्यम से किसी भी चुनौती पर काबू पाने की क्षमता। उनका विशाल हृदय वाला स्वभाव भी उतना ही प्रेरणादायक है। वह परोपकार के लिए जाने जाते थे - उन्होंने अपनी प्रसिद्धि और संसाधनों का उपयोग कई तरीकों से समाज को वापस देने के लिए किया। वह हमेशा चाहते थे कि तमिलनाडु और पूरा भारत हेल्थकेयर और एजुकेशन में अग्रणी बने।

विजयकांत जी के निधन से कई लोगों ने अपना सबसे पसंदीदा सितारा खो दिया और कई लोगों ने अपना प्रिय नेता खो दिया, लेकिन मैंने एक प्रिय मित्र खो दिया है - एक ऐसा मित्र जिसकी गर्मजोशी और बुद्धिमत्ता अद्भूत थी। वह अपने पीछे एक ऐसा शून्य छोड़ गए हैं जिसे भरा नहीं जा सकता। 'कुरल' इस बारे में बात करता है कि कैसे साहस, उदारता, बुद्धि और उत्साह, एक सफल नेता के चार आवश्यक गुण हैं। कैप्टन ने वास्तव में इन गुणों को मूर्त रूप दिया और यही कारण है कि उनका इतना व्यापक सम्मान है। उनकी विरासत उनके प्रशंसकों के दिलों, तमिल सिनेमा के इतिहास और सार्वजनिक सेवा के गलियारों में जीवित रहेगी और हम सभी के लिए प्रगति और सामाजिक न्याय के उनके विजन को साकार करने के लिए काम करते रहेंगे।

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राष्ट्र निर्माण के ‘अटल’ आदर्श की शताब्दी
December 25, 2024

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं...लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं? अटल जी के ये शब्द कितने साहसी हैं...कितने गूढ़ हैं। अटल जी, कूच से नहीं डरे...उन जैसे व्यक्तित्व को किसी से डर लगता भी नहीं था। वो ये भी कहते थे... जीवन बंजारों का डेरा आज यहां, कल कहां कूच है..कौन जानता किधर सवेरा...आज अगर वो हमारे बीच होते, तो वो अपने जन्मदिन पर नया सवेरा देख रहे होते। मैं वो दिन नहीं भूलता जब उन्होंने मुझे पास बुलाकर अंकवार में भर लिया था...और जोर से पीठ में धौल जमा दी थी। वो स्नेह...वो अपनत्व...वो प्रेम...मेरे जीवन का बहुत बड़ा सौभाग्य रहा है।

आज 25 दिसंबर का ये दिन भारतीय राजनीति और भारतीय जनमानस के लिए एक तरह से सुशासन का अटल दिवस है। आज पूरा देश अपने भारत रत्न अटल को, उस आदर्श विभूति के रूप में याद कर रहा है, जिन्होंने अपनी सौम्यता, सहजता और सहृदयता से करोड़ों भारतीयों के मन में जगह बनाई। पूरा देश उनके योगदान के प्रति कृतज्ञ है। उनकी राजनीति के प्रति कृतार्थ है।

21वीं सदी को भारत की सदी बनाने के लिए उनकी एनडीए सरकार ने जो कदम उठाए, उसने देश को एक नई दिशा, नई गति दी। 1998 के जिस काल में उन्होंने पीएम पद संभाला, उस दौर में पूरा देश राजनीतिक अस्थिरता से घिरा हुआ था। 9 साल में देश ने चार बार लोकसभा के चुनाव देखे थे। लोगों को शंका थी कि ये सरकार भी उनकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाएगी। ऐसे समय में एक सामान्य परिवार से आने वाले अटल जी ने, देश को स्थिरता और सुशासन का मॉडल दिया। भारत को नव विकास की गारंटी दी।

वो ऐसे नेता थे, जिनका प्रभाव भी आज तक अटल है। वो भविष्य के भारत के परिकल्पना पुरुष थे। उनकी सरकार ने देश को आईटी, टेलीकम्यूनिकेशन और दूरसंचार की दुनिया में तेजी से आगे बढ़ाया। उनके शासन काल में ही, एनडीए ने टेक्नॉलजी को सामान्य मानवी की पहुंच तक लाने का काम शुरू किया। भारत के दूर-दराज के इलाकों को बड़े शहरों से जोड़ने के सफल प्रयास किये गए। वाजपेयी जी की सरकार में शुरू हुई जिस स्वर्णिम चतुर्भुज योजना ने भारत के महानगरों को एक सूत्र में जोड़ा वो आज भी लोगों की स्मृतियों पर अमिट है। लोकल कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए भी एनडीए गठबंधन की सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना जैसे कार्यक्रम शुरू किए। उनके शासन काल में दिल्ली मेट्रो शुरू हुई, जिसका विस्तार आज हमारी सरकार एक वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के रूप में कर रही है। ऐसे ही प्रयासों से उन्होंने ना सिर्फ आर्थिक प्रगति को नई शक्ति दी, बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों को एक दूसरे से जोड़कर भारत की एकता को भी सशक्त किया।

जब भी सर्व शिक्षा अभियान की बात होती है, तो अटल जी की सरकार का जिक्र जरूर होता है। शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मानने वाले वाजपेयी जी ने एक ऐसे भारत का सपना देखा था, जहां हर व्यक्ति को आधुनिक और गुणवत्ता वाली शिक्षा मिले। वो चाहते थे भारत के वर्ग, यानि ओबीसी, एससी, एसटी, आदिवासी और महिला सभी के लिए शिक्षा सहज और सुलभ बने।

उनकी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कई बड़े आर्थिक सुधार किए। इन सुधारों के कारण भाई-भतीजावाद में फंसी देश की अर्थव्यवस्था को नई गति मिली। उस दौर की सरकार के समय में जो नीतियां बनीं, उनका मूल उद्देश्य सामान्य मानवी के जीवन को बदलना ही रहा।

उनकी सरकार के कई ऐसे अद्भुत और साहसी उदाहरण हैं, जिन्हें आज भी हम देशवासी गर्व से याद करते है। देश को अब भी 11 मई 1998 का वो गौरव दिवस याद है, एनडीए सरकार बनने के कुछ ही दिन बाद पोकरण में सफल परमाणु परीक्षण हुआ। इसे ‘ऑपरेशन शक्ति’ का नाम दिया गया। इस परीक्षण के बाद दुनियाभर में भारत के वैज्ञानिकों को लेकर चर्चा होने लगी। इस बीच कई देशों ने खुलकर नाराजगी जताई, लेकिन तब की सरकार ने किसी दबाव की परवाह नहीं की। पीछे हटने की जगह 13 मई को न्यूक्लियर टेस्ट का एक और धमाका कर दिया गया। 11 मई को हुए परीक्षण ने तो दुनिया को भारत के वैज्ञानिकों की शक्ति से परिचय कराया था। लेकिन 13 मई को हुए परीक्षण ने दुनिया को ये दिखाया कि भारत का नेतृत्व एक ऐसे नेता के हाथ में है, जो एक अलग मिट्टी से बना है।

उन्होंने पूरी दुनिया को ये संदेश दिया, ये पुराना भारत नहीं है। पूरी दुनिया जान चुकी थी, कि भारत अब दबाव में आने वाला देश नहीं है। इस परमाणु परीक्षण की वजह से देश पर प्रतिबंध भी लगे, लेकिन देश ने सबका मुकाबला किया।

वाजपेयी सरकार के शासन काल में कई बार सुरक्षा संबंधी चुनौतियां आईं। करगिल युद्ध का दौर आया। संसद पर आतंकियों ने कायरना प्रहार किया। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले से वैश्विक स्थितियां बदलीं, लेकिन हर स्थिति में अटल जी के लिए भारत और भारत का हित सर्वोपरि रहा।

जब भी आप वाजपेयी जी के व्यक्तित्व के बारे में किसी से बात करेंगे तो वो यही कहेगा कि वो लोगों को अपनी तरफ खींच लेते थे। उनकी बोलने की कला का कोई सानी नहीं था। कविताओं और शब्दों में उनका कोई जवाब नहीं था। विरोधी भी वाजपेयी जी के भाषणों के मुरीद थे। युवा सांसदों के लिए वो चर्चाएं सीखने का माध्यम बनतीं।

कुछ सांसदों की संख्या लेकर भी, वो कांग्रेस की कुनीतियों का प्रखर विरोध करने में सफल होते। भारतीय राजनीति में वाजपेयी जी ने दिखाया, ईमानदारी और नीतिगत स्पष्टता का अर्थ क्या है।

संसद में कहा गया उनका ये वाक्य... सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए...आज भी मंत्र की तरह हम सबके मन में गूंजता रहता है।

वो भारतीय लोकतंत्र को समझते थे। वो ये भी जानते थे कि लोकतंत्र का मजबूत रहना कितना जरुरी है। आपातकाल के समय उन्होंने दमनकारी कांग्रेस सरकार का जमकर विरोध किया, यातनाएं झेली। जेल जाकर भी संविधान के हित का संकल्प दोहराया। NDA की स्थापना के साथ उन्होंने गठबंधन की राजनीति को नए सिरे से परिभाषित किया। वो अनेक दलों को साथ लाए और NDA को विकास, देश की प्रगति और क्षेत्रीय आकांक्षाओं का प्रतिनिधि बनाया।

पीएम पद पर रहते हुए उन्होंने विपक्ष की आलोचनाओं का जवाब हमेशा बेहतरीन तरीके से दिया। वो ज्यादातर समय विपक्षी दल में रहे, लेकिन नीतियों का विरोध तर्कों और शब्दों से किया। एक समय उन्हें कांग्रेस ने गद्दार तक कह दिया था, उसके बाद भी उन्होंने कभी असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया।

उन में सत्ता की लालसा नहीं थी। 1996 में उन्होंने जोड़-तोड़ की राजनीति ना चुनकर, इस्तीफा देने का रास्ता चुन लिया। राजनीतिक षड्यंत्रों के कारण 1999 में उन्हें सिर्फ एक वोट के अंतर के कारण पद से इस्तीफा देना पड़ा। कई लोगों ने उनसे इस तरह की अनैतिक राजनीति को चुनौती देने के लिए कहा, लेकिन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी शुचिता की राजनीति पर चले। अगले चुनाव में उन्होंने मजबूत जनादेश के साथ वापसी की।

संविधान के मूल्य संरक्षण में भी, उनके जैसा कोई नहीं था। डॉ. श्यामा प्रसाद के निधन का उनपर बहुत प्रभाव पड़ा था। वो आपात के खिलाफ लड़ाई का भी बड़ा चेहरा बने। इमरजेंसी केबाद 1977 के चुनाव से पहले उन्होंने ‘जनसंघ’ का जनता पार्टी में विलय करने पर भी सहमति जता दी। मैं जानता हूं कि ये निर्णय सहज नहीं रहा होगा, लेकिन वाजपेयी जी के लिए हर राष्ट्रभक्त कार्यकर्ता की तरह दल से बड़ा देश था, संगठन से बड़ा, संविधान था।

हम सब जानते हैं, अटल जी को भारतीय संस्कृति से भी बहुत लगाव था। भारत के विदेश मंत्री बनने के बाद जब संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण देने का अवसर आया, तो उन्होंने अपनी हिंदी से पूरे देश को खुद से जोड़ा। पहली बार किसी ने हिंदी में संयुक्त राष्ट्र में अपनी बात कही। उन्होंने भारत की विरासत को विश्व पटल पर रखा। उन्होंने सामान्य भारतीय की भाषा को संयुक्त राष्ट्र के मंच तक पहुंचाया।

राजनीतिक जीवन में होने के बाद भी, वो साहित्य और अभिव्यक्ति से जुड़े रहे। वो एक ऐसे कवि और लेखक थे, जिनके शब्द हर विपरीत स्थिति में व्यक्ति को आशा और नव सृजन की प्रेरणा देते थे। वो हर उम्र के भारतीय के प्रिय थे। हर वर्ग के अपने थे।

मेरे जैसे भारतीय जनता पार्टी के असंख्य कार्यकर्ताओं को उनसे सीखने का, उनके साथ काम करने का, उनसे संवाद करने का अवसर मिला। अगर आज बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है तो इसका श्रेय उस अटल आधार को है, जिसपर ये दृढ़ संगठन खड़ा है।

उन्होंने बीजेपी की नींव तब रखी, जब कांग्रेस जैसी पार्टी का विकल्प बनना आसान नहीं था। उनका नेतृत्व, उनकी राजनीतिक दक्षता, साहस और लोकतंत्र के प्रति उनके अगाध समर्पण ने बीजेपी को भारत की लोकप्रिय पार्टी के रूप में प्रशस्त किया। श्री लालकृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गजों के साथ, उन्होंने पार्टी को अनेक चुनौतियों से निकालकर सफलता के सोपान तक पहुंचाया।

जब भी सत्ता और विचारधारा के बीच एक को चुनने की स्थितियां आईं, उन्होंने इस चुनाव में विचारधारा को खुले मन से चुन लिया। वो देश को ये समझाने में सफल हुए कि कांग्रेस के दृष्टिकोण से अलग एक वैकल्पिक वैश्विक दृष्टिकोण संभव है। ऐसा दृष्टिकोण वास्तव में परिणाम दे सकता है।

आज उनका रोपित बीज, एक वटवृक्ष बनकर राष्ट्र सेवा की नव पीढ़ी को रच रहा है। अटल जी की 100वीं जयंती, भारत में सुशासन के एक राष्ट्र पुरुष की जयंती है। आइए हम सब इस अवसर पर, उनके सपनों को साकार करने के लिए मिलकर काम करें। हम एक ऐसे भारत का निर्माण करें, जो सुशासन, एकता और गति के अटल सिद्धांतों का प्रतीक हो। मुझे विश्वास है, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के सिखाए सिद्धांत ऐसे ही, हमें भारत को नव प्रगति और समृद्धि के पथ पर प्रशस्त करनें की प्रेरणा देते रहेंगे।