प्रिय मित्रों,

आज भारत के सच्चे सपूत डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर की पुण्य तिथि पर मैं उन्हें नमन करता हूं।

डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर के जीवनकाल पर यदि दृष्टि डालें तो हम देख सकते हैं कि उनमें बेमिसाल संकल्पशक्ति, सामाजिक न्याय के प्रति अटूट प्रतिबद्धता और अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए किसी भी तरह के अवरोध को पार करने का गजब का शौर्य था। समाज के पिछड़े वर्ग से आने के चलते उन्हें अनेकों बार अपमान और पीड़ा का कड़वा घूंट पीना पड़ा था। लेकिन सिर्फ इसी वजह से शिक्षा हासिल करने और जन कल्याण के लिए जीवन समर्पित करने के अपने उच्च उद्देश्य से वे डिगे नहीं। एक तेजस्वी वकील, विद्वान, लेखक और बेहिचक अपनी राय व्यक्त करने वाले एक स्पष्टवक्ता बौद्धिक के रूप में उन्होंने ख्याति अर्जित की।

वे भारतीय संविधान की रचना के लिए बनी मसौदा समिति के अध्यक्ष थे। आज भी हम उन्हें देश के संविधान की रचना का विराट कार्य करने के लिए याद करते हैं। बाद में उन्होंने स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री के तौर पर भी अपनी सेवाएं दीं थी।

आज अवसर है सामाजिक न्याय के आदर्शों तथा मूल्यों को याद करने का और इन मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त कर उन्हें जीवन में उतारने का, जिनकी डॉ. अम्बेडकर ने हिमायत की थी। आज अवसर है डॉ. अम्बेडकर के सपनों के भारत का निर्माण करने का, जहां व्यक्ति को वर्ग के चश्मे से नहीं बल्कि समाज हित में उसके योगदान के आधार पर आंका जाए।

सर्वसमानता का भाव डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर के दिल के सबसे करीब था। आजादी के इतने वर्षों बाद भी क्या आज हम समाज के वंचित वर्ग के लोगों को सुनिश्चित तरीके से सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक न्याय प्रदान कर सके हैं? इस मामले में अभी काफी कुछ करना शेष है। विकास की यात्रा में एक भी व्यक्ति वंचित न रह जाए, यह सुनिश्चित करना हमारी जवाबदारी है। गरीबतम व्यक्ति को भी जब तक लाभ नहीं मिलता तब तक कोई भी कानून या सुधार पर्याप्त नहीं है। हमें शिक्षा के अवसर बढ़ाने पर जोर देना चाहिए, जिससे समाज के वंचित वर्ग के लोगों को स्वावलंबी बनने का सामर्थ्य मिलेगा। इसके अलावा हमें उद्यमिता को भी प्रोत्हासन देना चाहिए ताकि वे अपने चुने हुए क्षेत्र में अपने स्वप्नों और आकांक्षाओं को साकार करने के लिए आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ सकें।

डॉ. अम्बेडकर सहित संविधान सभा के अन्य महानुभावों ने हमें एक ऐसा संविधान दिया है जो दुनिया के सबसे विस्तृत संविधानों में से एक है। डॉ. अम्बेडकर द्वारा प्रदत्त संविधान के मूल्यों के जतन की हमारी प्रतिबद्धता को आज हम एक बार फिर व्यक्त करें।

मैं यहां ऐसे दो मामलों का जिक्र करना चाहूंगा जिनकी पिछले दशक के दौरान दुर्दशा हुई है।

पहला मामला है भारत के संघीय ढांचे का। डॉ. अम्बेडकर ने एक मजबूत संघीय तंत्र का का ख्वाब देखा था, जिसमें राज्यों के अधिकारों की रक्षा की जाती हो और देश के विकास के लिए

केन्द्र और राज्य साथ मिलकर काम करते हों। उन्होंने सत्ता के विकेन्द्रीकरण की परिकल्पना संघीय तंत्र के मार्गदर्शक सिद्धांत के तौर पर की थी।

दुःख की बात यह है कि केन्द्र सरकार ही देश के संघीय ढांचे को तहस-नहस करने का प्रयास निरंतर करती रहती है। कुछ दिन पहले मैंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक का विरोध किया था और किस तरह से यह विधयेक संघीय ढांचे का उल्लंघन कर रहा है, इस संबंध में अपने विचार व्यक्त किए थे। ऐसा नहीं है कि इस मामले को लेकर मैंने पहली बार प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था। प्रस्तावित राष्ट्रीय आतंकवाद रोधी केन्द्र-एनसीटीसी और रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स एक्ट भी देश के संघीय ढांचे पर गंभीर हमले के समान है।

दूसरा मुद्दा वाणी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का है। डॉ. अम्बेडकर की प्रेरणा से हमारा संविधान भारत के प्रत्येक नागरिक को वाणी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विश्वास दिलाता है। जिन लोगों को अलग अभिप्राय स्वीकार नहीं हैं वे आज भी अभिप्राय की विविधता को प्रोत्साहन देने के बजाय उसे कूचलना पसंद करते हैं। दो वर्ष पूर्व आज ही के दिन यूपीए सरकार के एक मंत्री ने सोशल मीडिया को ‘चेतावनी’ दी थी। किसी भी तरह की राय और दिल्ली के शासकों के खिलाफ आवाज को योजनाबद्ध तरीके से शांत कर दिया जाता है। यहां तक कि चुनावी सर्वेक्षण और मीडिया की प्रतिकूल रिपोर्टों को भी छोड़ा नहीं जाता है। उम्मीद है कि दिल्ली के शासकों की ऐसी मानसिकता बदले।

चलिए, हम डॉ. अम्बेडकर को याद करें और उनके स्वप्न के भारत का निर्माण करने के लिए साथ मिलकर भगीरथ प्रयास करें।

आपका,

नरेन्द्र मोदी

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रण उत्सव – प्रकृति, परंपरा और प्रचीनता का उत्सव
December 21, 2024

कच्छ का सफेद रण आपको आमंत्रित कर रहा है।

कच्छ के इस उत्सव पर्व से जुड़कर एक नए अनुभव के साक्षी बनिए।

और रण के इस उत्सव में प्रकृति, परंपरा और प्रचीनता के रंगों को जीवन का हिस्सा बनाइए।

भारत के सबसे पश्चिमी छोर पर स्थित कच्छ, विरासत और बहुसंस्कृति की भूमि है। कच्छ का सफेद रण और इसकी जीवंतता किसी का भी मन मोह लेती है। चांदनी रात में कच्छ के इस रण का अनुभव और अलौकिक हो जाता है, दिव्य हो जाता है। कच्छ की ये धरती जितनी सुंदर है, इसकी कला और शिल्प भी उतना ही विशेष है।

कच्छ के लोगों का आतिथ्य भाव तो सारी दुनिया जानती है। हर वर्ष लाखों पर्यटक इस धरती पर आते हैं और कच्छ के लोग उतने ही उत्साह से उनका स्वागत करते हैं। अतिथियों के सम्मान और उनके अनुभवों को संवारने के लिए कच्छ का हर परिवार पूरे आदर भाव से काम करता है। रण उत्सव, कच्छ की इसी आतिथ्य परंपरा और स्थानीय कला का उत्सव है। इस जीवंत उत्सव में, हमें इस क्षेत्र की अनोखी संस्कृति, प्राकृतिक सौंदर्य, स्थानीय जनभावनाओं और कलाओं से जुड़ने का अवसर मिलता है।

इस पोस्ट के माध्यम से मैं विश्व भर के अतिथियों को रण उत्सव 2024-25 के लिए व्यक्तिगत आमंत्रण दे रहा हूं। आप सब अपने परिवार के साथ यहां आएं, यहां की संस्कृति और अनुभवों से जुड़ें, तो मुझे बहुत प्रसन्नता होगी। इस बार रण उत्सव 1 दिसंबर 2024 से लेकर 28 फरवरी 2025 तक आयोजित हो रहा है। इसके अलावा रण की टेंट सिटी मार्च 2025 तक पर्यटकों के लिए खुली रहेगी।

ये टेंट सिटी आपको कच्छ के अनुभवों से, यहां के विराट आतिथ्य से, भारत की संस्कृति से और प्रकृति के नए अनुभवों से जोड़ेगी। मैं पूरे विश्वास से कहता हूं, कच्छ के रण उत्सव का अनुभव आपके जीवन का सबसे अलौकिक और अविस्मरणीय अनुभव बनेगा।

कच्छ की इस टेंट सिटी में पर्यटकों के अनुरूप अनेक सुविधाओं को शामिल किया गया है। जो लोग रिलैक्स करने के लिए यहां आ रहे हैं, उन्हें यहां एक अलग अनुभव मिलेगा। संस्कृति और इतिहास के नए रंगों को खोज रहे लोगों के लिए, रण उत्सव एक इंद्रधनुष जैसा होगा।

देखिए, रण उत्सव की गतिविधियों का आनंद लेने के अलावा आप यहां और क्या-क्या कर सकते हैं:

सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा भारत का गौरव स्थल धोलावीरा यहीं पास में स्थित है। ये यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट है, जहां आपको भारत की प्राचीन सभ्यता से जुड़ने का अवसर मिलेगा।

जिन लोगों को प्रकृति और स्थापत्य कला से प्रेम हो, उनके लिए काला डूंगर का विजय विलास पैलेस एक अद्भुत अनुभव का स्थान होगा।

सफेद नमक के मैदानों से घिरी रोड टू हैवन, अपने मनोरम दृश्यों से हर पर्यटक का मन मोह लेती है। 30 किलोमीटर लंबी ये सड़क खावड़ा और धोलावीरा को आपस में जोड़ती है और इसपर यात्रा करना बहुत ही खास अनुभव होता है।

18वीं शताब्दी का लखपत फोर्ट हमें प्राचीन भारत के गौरव से जोड़ता है।

माता नो मढ़ आशापुरा मंदिर कच्छ की धरती पर हमारी आध्यात्मिक चेतना का शक्ति तीर्थ बन जाता है।

श्यामजी कृष्ण वर्मा स्मारक और क्रांति तीर्थ पर श्रद्धांजलि अर्पित करके अपने स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ सकते हैं।

और इन सब के साथ, रण उत्सव कच्छ की इस यात्रा में आप हस्तशिल्प के एक अद्भुत संसार से जुड़ सकते हैं। इस हस्तशिल्प मेले में हर उत्पाद की एक अलग पहचान है। ये उत्पाद कच्छ के लोगों की कलाओं से पूरी दुनिया को जोड़ते हैं।

कुछ समय पहले ही मुझे स्मृति वन के लोकार्पण का उत्सव मिला था। जिन लोगों ने 26 जनवरी 2001 के विनाशकारी भूकंप में अपना जीवन बनाया, ये उनकी स्मृतियों का स्मारक है। यहां दुनिया का सबसे खूबसूरत संग्रहालय है, जिसे 2024 का UNESCO Prix Versailles Interiors World Title मिला है! यह भारत का एकमात्र ऐसा संग्रहालय है, जिसे यह विशेष उपलब्धि हासिल हुई है। यह स्मारक हमें हमेशा याद दिलाता है कि कैसे बहुत विपरीत और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी हमारा मन, हमारी भावनाएं हमें फिर से आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं।

तब और अब को बताने वाली तस्वीर:

करीब दो दशक पहले स्थितियां ऐसी थीं कि अगर आपको कच्छ आने का निमंत्रण मिलता, तो आप सोचते कि कोई मजाक कर रहा है। कारण ये था कि तब तक भारत के सबसे बड़े जिलों में से एक होने के बावजूद भी, कच्छ बहुत बेहाल स्तिथि में था। ये स्थितियां तब थीं, जब कच्छ में एक तरफ रेगिस्तान था, दूसरी तरफ पाकिस्तान था। लेकिन सुरक्षा और पर्यटन दोनों ही क्षेत्र में ये स्थान पिछड़ा हुआ था।

कच्छ ने 1999 में चक्रवात और 2001 में भीषण भूकंप का सामना किया था। यहां सूखे की समस्या रहती थी। खेती के पर्याप्त साधन नहीं थे। यही कारण था कि अन्य लोग इसके अच्छे भविष्य की सोच तक नहीं पाते थे।। लेकिन वो नहीं जानते थे कि कच्छ के लोगों की ऊर्जा, उनकी इच्छा शक्ति क्या है। दो दशकों में अपनी मेहनत से, कच्छ के लोगों ने अपना भाग्य बदला। 21वीं शताब्दी के शुरुआत से कच्छ में एक परिवर्तन की भी शुरुआत हुई।

हम सबने मिलकर कच्छ के समावेशी विकास पर काम किया। हमने Disaster Resilient Infrastructure बनाने पर फोकस किया। इसके साथ ही यहां ऐसी आजीविका पर जोर दिया, जिससे यहां के युवाओं को काम की तलाश में अपना घर ना छोड़ना पड़े।

यही कारण है कि 21वीं सदी के पहले दशक के अंत तक जो धरती सूखे के लिए जानी जाती थी, वह आज कृषि के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियों के पड़ाव पर है। यहां के आम सहित कई फल विदेशी बाजार में एक्सपोर्ट हो रहे हैं। कच्छ के हमारे किसान भाई-बहनों ने ड्रिप सिंचाई और अन्य तकनीकों से खेती को बहुत समृद्ध किया है। इससे पानी की हर बूंद के संरक्षण के साथ अधिकतम उत्पादकता सुनिश्चित हुई है।

गुजरात सरकार के औद्योगिक विकास पर जोर देने से इस जिले में निवेश को भी काफी बढ़ावा मिला है। हमने कच्छ के तटीय क्षेत्र का उपयोग करके इसे एक महत्वपूर्ण समुद्री व्यापार केंद्र के रूप में फिर से स्थापित करने का काम किया।

कच्छ में पर्यटन की संभावनाओं को और विस्तार देने के लिए 2005 में कच्छ रण उत्सव की शुरुआत की गई थी। आज यह स्थान एक Vibrant Tourism Centre बन चुका है। रण उत्सव को देश-विदेश के कई अवॉर्ड्स मिल चुके हैं।

हर साल धोरडो गांव में रण उत्सव का आयोजन होता है। ये प्रसन्नता और गर्व की बात है कि इस गांव को United Nations World Tourism Organization ने 2023 का बेस्ट टूरिज्म विलेज घोषित किया। इस गांव की संस्कृति, पर्यटन और यहां हुआ विकास हर देशवासी को गौरव से भर देता है।

मुझे विश्वास है कि आप सब भी, कच्छ की विरासत भूमि को देखने यहां आएंगे और अपनी इस यात्रा के अनुभवों से दूसरों को भी यहां आने की प्रेरणा देंगे। जब आप इन अनुभवों को सोशल मीडिया पर साझा करेंगे, तो पूरा विश्व भी इनसे जुड़ेगा। इस संस्कृति और आतिथ्य के भाव को जी सकेगा।

इसी आमंत्रण के साथ, मैं आप सभी को नववर्ष 2025 के लिए भी शुभकामनाएं देता हूं। आने वाला साल आपके और आपके परिवार के लिए सफलता, समृद्धि और आरोग्यपूर्ण जीवन लेकर आए, यही प्रार्थना है।