गुजरात के मुख्यमंत्री का प्रधानमंत्री को पत्र
गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर केन्द्रीय गृह मंत्री श्री सुशील कुमार शिन्दे द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के युवाओं की आतंकवाद के आरोप में हुई गिरफ्तारी की भूमिका की जांच करने के लिए राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर दिए गए सुझावों पर कड़ा विरोध जताया है। श्री मोदी ने कहा कि राजनैतिक लाभ के लिए अल्पसंख्यकों को आकर्षित करने के निश्चित उद्देश्य के साथ किया गया यह एक निर्लज्ज प्रयास है। इतना ही नहीं, संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है। कानून के समक्ष समानता के अधिकार की जड़ में यह कुठाराघात है। उन्होंने कहा कि अपराध अपराध ही होता है, आरोपी के धर्म या जाति से उसका कोई लेना-देना नहीं है।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने आतंकवाद के आरोप में मामला चलाए बिना जेल में मौजूद अल्पसंख्यक युवाओं की भूमिका की जांच हेतु जांच समिति गठित करने के लिए राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर कहा है। इस मुद्दे पर आक्रोश व्यक्त करते हुए श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि, ‘मेरा आपसे निवेदन है कि आप इस मामले में हस्तक्षेप करें एवं गृह मंत्री को समझाइश दें कि वे सिर्फ अल्पसंख्यक पर ही ध्यान न दें। वे जो कह रहे हैं वह संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है, और ‘कानून के समक्ष समानता के अधिकार’ के मूल में कुठाराघात के समान है।’ उन्हें याद दिलाया जाना चाहिए कि गृह मंत्री ने संविधान के प्रति वफादारी की शपथ ली है।
संविधान की धारा १४ प्रत्येक नागरिक को ‘समानता का अधिकार’ देती है। व्यक्ति किस धर्म में आस्था रखता है या किस जाति में उसने जन्म लिया है, इस आधार पर आतंकवाद के मामलों की जांच करने का गृह मंत्री का सुझाव निश्चित ही असंवैधानिक है। अपराध अपराध ही होता है, उसका अपराधी के धर्म या जाति के साथ कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के धर्म के आधार पर उसका अपराधी या बेकसूर होना तय नहीं किया जा सकता।
गुजरात के मुख्यमंत्री ने कहा कि यदि गृह मंत्री वास्तव में यह मानते हैं कि किसी निश्चित समुदाय के युवाओं को आतंकी मामलों में गलत तरीके से पकड़ा जा रहा है, तो उन्हें अनिवार्य रूप से संविधान के दायरे में रहकर इसका निराकरण लाना चाहिए। सभी आतंकी मामलों के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें गठित की जानी ही इसका सर्व स्वीकृत उपाय है। इससे आतंकी मामलों में संलिप्त वास्तविक अपराधी को दोषी करार देने और उसे दंडित करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही एक निश्चित समय में निर्दोष लोग भी छूट जाएंगे। इस तरह के रूख से आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई ज्यादा मजबूत बनेगी और युवाओं की गलत तरीके से गिरफ्तारी भी टलेगी। इसके चलते ‘सभी को न्याय, किसी का भी तुष्टीकरण नहीं’ यह सुनिश्चित हो सकेगा।
“समीक्षा समिति गठित करने के गृह मंत्री का प्रस्तावित निर्देश असंवैधानिक होने के अलावा फौजदारी कानून के प्रावधानों के भी खिलाफ हैं। फौजदारी कानून के तहत जिस मामले में आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका हो ऐसे लंबित मामलों को वापस लेने के लिए समीक्षा समिति का प्रावधान नहीं किया गया है,” ऐसा मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में कहा है।
गृह मंत्री ने अपने पत्र में लिखा था कि, ‘अल्पसंख्यक समुदाय के किसी भी व्यक्ति की गलत तरीके से गिरफ्तारी की गई हो तो गलती करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ फौरन कड़ा कदम उठाया जाना चाहिए। और गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को न सिर्फ तत्काल मुक्त करना चाहिए, बल्कि उसे योग्य मुआवजा भी प्रदान कर उसके पुनर्वास द्वारा उसे मुख्य धारा में शामिल करना चाहिए।’ श्री शिंदे को पता होगा कि पुलिस एवं सार्वजनिक व्यवस्था का मामला राज्य का विषय है और जांच की कार्यवाही उसी का अभिन्न हिस्सा है, ऐसा मुख्यमंत्री ने कहा।
भारत के संविधान की धारा ४४ के मुताबिक भारत के सभी हिस्सों में समान नागरिक संहिता का अमल हो, इसके लिए राज्यों को प्रयत्नशील रहना चाहिए। आजादी के बाद हमने समान नागरिक संहिता की दिशा में कोई खास काम नहीं किया है, लेकिन शुक्र है कि हमारे पास कम से कम एक समान क्रिमिनल प्रोसीजर कोड तो है। हमारी फौजदारी न्यायिक प्रणाली ने आरोपी के धर्म और अन्य मामलों को कभी ध्यान में नहीं लिया है। गृह मंत्री के सुझाव अयोग्य हैं और उससे हमारा देश और पीछे जाएगा। राजनैतिक लाभ के लिए सिद्धांतों के साथ कभी भी समझौता नहीं करना चाहिए।
गृह मंत्री सार्वजनिक तौर पर कहते हैं कि आतंकी मामलों में विश्वासपात्र जानकारियों को ध्यान में लिए बगैर अल्पसंख्यक समुदाय के युवाओं को गलत तरीके से फंसाया जा रहा है। हालांकि, सार्वजनिक तौर पर इस तरह का बयान अयोग्य है। इस तरह के बयान देश की न्यायिक प्रणाली के संबंध में गलत संदेश देते हैं और कानून के शासन की प्रक्रिया पर भी वे गलत असर डालते हैं।
श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री को केन्द्रीय गृह मंत्री के इस प्रकार के सुझावों की कार्यवाही को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने को फौरन ही मामले में दखल देने की मांग की है।