बसंत- वसंत का आगमन
बेहद व्यस्तता के बावजूद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक जिज्ञासु पाठक हैं और उन्हें लिखना बेहद पसंद है, चाहे वह गद्य हो या कविताएं।
प्रधानमंत्री ने बसंत के ऊपर एक कविता की रचना की है जिसका नाम है ‘वसंत का आगमन’। इस कविता को गायक पार्थिव गोहिल ने अपनी सुरों में पिरोया है। यहां पर वह कविता है और साथ ही उस गाने का वीडियो लिंक भी।
प्रकृति के दूतों की मीठी गान, खेत जो लेते हैं ताजी सांस, फूलों का खिलना..... ये सभी चीजें बसंत के आगमन की सूचना देते हैं; और कैलेण्डर कहता है कि अब बसंत आ गया है। ऐसे समय में ही श्री नरेंद्र मोदी के अंदर छुपा एक कवि जागृत हो जाता है और यह कविता रूप लेती है......
एक शुभचिंतक द्वारा कविता के अनुवाद का हिन्दी संस्करण–
अंत में आरंभ है, आरंभ में है अंत,
हिय में पतझर के कूजता वसंत।
सोलह बरस की वय, कहीं कोयल की लय, किस पर है उछल रहा पलाश का प्रणय ?
लगता हो रंक भले, भीतर श्रीमंत
हिय में पतझर के कूजता वसंत।
किसकी शादी है, आज यहाँ बन में ? फूट रहे, दीप-दीप वृक्षों के तन में
देने को आशीष आते हैं संत,
हिय में पतझर के कूजता वसंत।
एक शुभचिंतक द्वारा कविता के अनुवाद का अंग्रेजी संस्करण–
All that begins meets an end, Every end onsets a new beginning,
From the heart of autumn Rises the spring…
At sweet sixteen, melody of a cuckoo within On whom showers romance, the flowers of spring?
Appearing poor, but rich within…
From the heart of autumn Rises the spring…
Who’s getting wedded in woods? Each tree is lit in festive moods!
Bestowed with divine blessing
From the heart of autumn Rises the spring…