प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 30 जून को स्वराज्य को एक बेबाक साक्षात्कार में 2014 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) से सत्ता ग्रहण करने के समय राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सामने आई चुनौतियों, आर्थिक सुधारों के प्रति इसके दृष्टिकोण विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र की इकाईयों के निजीकरण पर दृष्टिकोण, भारतीय बैंकिंग प्रणाली को पटरी पर लाने, 2019 में एनडीए के खिलाफ महागठबंधन से मिलने वाली राजनीतिक चुनौतियों, एनडीए के सहयोगी दलों की समस्या, कश्मीर संकट, प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में कथित रूप से शक्ति के केन्द्रीकरण तथा भारतीय जनता पार्टी की टैलेंट में कमी तथा अन्य विषयों के बारे में चर्चा की।
साक्षात्कार में मोदी ने निम्नलिखित बिंदु रखे:
एक, अर्थव्यवस्था उनकी कल्पना से अधिक खराब थी और बजट के आंकड़े संदेहास्पद थे। सरल तरीके से कहें तो उन्होंने माना कि पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम द्वारा पेश आंकड़ा सरकार के वित्त का सही वक्तव्य नहीं था। लेकिन मोदी ने निर्णय लिया कि वह इन आंकड़ों के साथ कोई राजनीतिक खेल नहीं खेलेंगे, क्योंकि देश इस संकट को बढ़ाने का बोझ सह नहीं सकता।
दो, रोजगार के अभाव पर उन्होंने कहा कि “एक लाख से अधिक रोजगार मिले हैं, प्रश्न रोजगार पर डाटा अभाव का है” पहले इसे सुलझाने की जरूरत है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) का डाटा औपचारिक क्षेत्र में रोजगार वृद्धि दिखाता है, अनौपचारिक क्षेत्र में भी वृद्धि हुई होगी, क्योंकि मुद्रा ऋणों से रोजगार सृजन हुआ है। उन्होंने कहा “नौकरियों को मापने की हमारी परम्परागत प्रणाली नये भारत की नई अर्थव्यवस्था में नये रोजगारों को मापने में पर्याप्त नहीं है”।
तीन, किसानों का संकट तथा किसानों की आय को दोगुनी करने के वायदे पर चौतरफा रणनीति के साथ काम किया जा रहा है, जिसमें लागत मूल्य में कटौती करना, उत्पादों का मूल्य बढ़ाना, फसल और फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसानों को कम से कम सुनिश्चित करना और आय के अन्य साधन बढ़ाना शामिल हैं। उन्होंने स्वराज्य से कहा “यदि आप हमारी नीतिगत कार्रवाई को नजदीक से देखें तो उनका उद्देश्य किसान को हर कदम पर- बीज से बाजार तक मदद देना है”।
स्वराज्य के संपादकीय निदेशक आर. जगन्नाथन, सीईओ प्रसन्ना विश्वनाथन तथा प्रकाशक अमर गोविंदराजन को दिए गए साक्षात्कार के पहले भाग का पूरा पाठ इस प्रकार है- वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) पर मोदी के विचार से संबंधित साक्षात्कार का हिस्सा भारतीय इतिहास में सबसे बड़े कर सुधार की पहली वर्षगांठ पर 1 जुलाई को प्रकाशित हुआ था। मोदी ने 2014 में चिदम्बरम की बजट बाजीगरी पर क्यों नहीं बोला
स्वराज्यः 2014 में हमने सोचा कि मोदी सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति पर श्वेत पत्र पेश करेगी, लेकिन इस तरह का कुछ नहीं हुआ। आपने ऐसा क्यों नहीं किया?
नरेन्द्र मोदीः आप बिल्कुल सही हैं, जब आप कहते हैं कि विभिन्न विशेषज्ञों और राजनीतिक पंडितों की राय थी कि देश में आर्थिक स्थिति पर एक श्वेत पत्र प्रकाशित किया जाना चाहिए।
2014 में भारतीय जनता पार्टी के चुनाव अभियान का एक प्रमुख एजेंडा भारतीय व्यवस्था के शून्य प्रदर्शन को उजागर करना था। दुर्भाग्यवश एक “अर्थशास्त्री” प्रधानमंत्री और “सर्व ज्ञाता” वित्त मंत्री के अंतर्गत।
हम सभी जानते थे कि अर्थव्यवस्था की स्थिति डांवाडोल है, लेकिन क्योंकि हम सरकार में नहीं थे, इसलिए स्वभाविक रूप से हमारे पास अर्थव्यवस्था की स्थिति का पूरा ब्यौरा नहीं था। लेकिन सरकार बनाने के बाद जब हमने देखा तो हमें झटका लगा।
अर्थव्यवस्था की स्थिति उम्मीद से अधिक खराब थी। चीजें भयावह हो गई थीं, यहा तक कि बजट के आंकड़े संदेह के दायरे में थे।
स्वराज्यः आपने इन संदिग्ध बातों को क्यों नहीं उठाया?
मोदीः जब सारी बातें सामने आई तो हमारे पास दो विकल्प थे – राजनीति से प्रेरित होना (राजनीतिक लिहाज से) या राष्ट्रनीति से निर्देशित होना (भारत के हित को सबसे पहले रखना)।
आपको याद होगा, मैंने चुनाव अभियान के दौरान साफ-साफ कहा था “सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं झूकने दूंगा” हमारी सरकार ने यह वचन पूरा किया है।
हमारे लिए 2014 में अर्थव्यवस्था की स्थिति पर राजनीति या राजनीति करना काफी सरल और राजनीतिक रूप से फायदेमंद था। हम ऐतिहासिक चुनाव जीते थे, इसलिए स्पष्ट रूप से विभिन्न स्तरों पर उम्मीद थी। कांग्रेस पार्टी और उनके सहयोगी बड़े संकट में थे। यहां तक कि मीडिया के लिए भी यह महीनों चलने वाली खबर थी।
दूसरी ओर राष्ट्रनीति थी, जहां राजनीति से अधिक सुधार की आवश्यकता थी।
यह कहने की आवश्यकता नहीं कि राजनीति को पहले रखने के बदले हमने “इंडिया फस्ट” की सोच को प्राथमिकता दी। हम समस्याओं को दबा कर रखना नहीं चाहते थे, हमारी दिलचस्पी समस्याओं के समाधान में थी। हमने सुधार, सुदृढ़ता और भारतीय अर्थव्यवस्था को बदलने पर फोकस किया।
स्वराज्यः क्या आय घोषणा ने चीजों को और खराब किया है?
मोदीः भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट के ब्यौरों पर विश्वास नहीं हो रहा था। इनमें संकट पैदा करने की क्षमता थी।
2014 में उद्योग धंधे बाहर जा रहे थे। भारत कमजोर पांच में था। विशेषज्ञ मानते थे कि ब्रिक्स का ‘आई’ अक्षर ध्वस्त हो जाएगा। लोगों में संतोष और निराशा की भावना थी।
अब इन सब के बीच, नुकसान के जटिल विवरण देने वाले श्वेत पत्र की कल्पना कीजिए। यह संकट को कम करने के बदले दोगुना कर देता।
विभिन्न क्षेत्रों में अनेक बारूदी सुरंगें बिछाई गई थीं। हमने इस असहज सत्य को स्वीकार किया और पहले ही दिन से काम पर लग गए, ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनाई जा सके।
हमने अनेक राजनीतिक आरोपों का सहन किया। हमने राजनीतिक नुकसान को स्वीकार किया। यह सुनिश्चित किया कि देश को कोई नुकसान न हो।
हमारे दृष्टिकोण के सकारात्मक परिणाम सभी के लिए देखने लायक हैं। आज भारत विकास संभावनाओं वाली मजबूत बुनियादों के साथ विश्व अर्थव्यवस्था में तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। विदेशी निवेश सबसे अधिक है, जीएसटी ने टैक्स व्यवस्था को क्रांतिकारी बना दिया है। भारत पहले की तुलना में कारोबारी सहजता का स्थान हो गया है और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हम विश्वास और आशा का अप्रत्याशित स्तर देख रहे हैं।
यदि राज्यै लाखों रोजगारों का सृजन कर रहे हैं, तो क्या। ऐसा हो सकता है कि केन्द्र् रोजगारों का कतई सृजन नहीं कर रहा है?
स्वराज्यः हम इन मुद्दों पर विचार-विमर्श करेंगे, लेकिन सबसे पहली चुनौती ‘रोजगार सृजन’ ही है। नौकरियां आखिरकार कहां हैं? विपक्षी दल इस प्रश्न् के जरिए सरकार पर आक्षेप लगाने का अवसर ढूंढ रहे हैं….
मोदी : इस मुद्दे पर मेरा यही कहना है कि ‘नौकरियों की कमी’ से कहीं ज्या दा ‘नौकरियों पर आंकड़ों की कमी’ की समस्याि है। यह स्वा भाविक ही है कि हमारे विपक्षी दल इस बारे में अपनी इच्छामनुसार तस्वीसर पेश करने और हम पर आरोप मढ़ने के लिए इस अवसर से लाभ उठाएंगे। नौकरियों के मुद्दे पर हम पर आरोप मढ़ने के लिए मैं अपने विपक्षी दलों पर दोषारोपण नहीं कर रहा हूं क्योंमकि किसी के भी पास नौकरियों के सटीक आंकड़े नहीं हैं। नौकरियों को मापने की हमारी पारंपरिक प्रणाली इतनी अच्छीे नहीं है कि वह नए भारत की नई अर्थव्यरवस्थाइ में नए रोजगारों का आकलन कर सके।
स्वराज्यः यदि ऐसा है, तो हम रोजगारों का आकलन कैसे करते हैं? हम इसके स्थान पर क्याक कर सकते हैं?
मोदी: जब हम अपने देश में रोजगार सृजन के रुख पर गौर करते हैं तो हमें यह बात अवश्यब ही ध्यांन में रखनी चाहिए कि आज हमारे देश के युवाओं के अनगिनत हित और आकांक्षाएं हैं। उदाहरण के लिए, देश में लगभग 3 लाख ग्रामीण स्तारीय उद्यमीि हैं जो देश भर में साझा सेवा केन्द्रों का संचालन कर रहे हैं और इसके साथ ही अपेक्षाकृत अधिक रोजगार सृजित कर रहे हैं। स्टारर्ट-अप्सी भी बड़ी संख्याक में रोजगारों का सृजन कर रहे हैं। देश में लगभग ऐसे 15,000 स्टासर्ट-अप्सय हैं जिनकी मदद सरकार ने किसी न किसी रूप में अवश्ये की है। आने वाले समय में कई और स्टािर्ट-अप्स में परिचालन शुरू हो जाएगा। विभिन्नअ प्रकार की समग्र सेवाएं संचालित करने वाली कंपनियां हजारों लोगों को नौकरियां देती हैं।
यदि हम रोजगार के आंकड़ों पर नजर डालें तो ईपीएफओ के पेरोल डेटा से यह पता चलता है कि सितंबर 2017 से लेकर अप्रैल 2018 तक की अवधि में 41 लाख से भी अधिक औपचारिक रोजगारों का सृजन हुआ है। ईपीएफओ डेटा पर आधारित अध्य यन के अनुसार, पिछले वर्ष औपचारिक क्षेत्र में 70 लाख से भी अधिक नौकरियों का सृजन हुआ।
आप यह जानते हैं कि सभी नौकरियों में लगभग 80 प्रतिशत का योगदान अनौपचारिक क्षेत्र ही करता है। हम यह भी जानते हैं कि औपचारिक क्षेत्र में रोजगार सृजन होने पर इसका सकारात्मैक असर अनौपचारिक क्षेत्र में भी रोजगार सृजन पर पड़ता है। यदि आठ महीनों में औपचारिक क्षेत्र में 41 लाख रोजगारों का सृजन हुआ है तो औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्र में कुल मिलाकर कितने रोजगारों का सृजन हुआ होगा?
स्वराज्यः लेकिन विशेषज्ञ नौकरियों के आकलन के इस तरीके पर अब भी संशय करते हैं…
मोदी : भारत में आजादी से लेकर पिछले साल जुलाई तक लगभग 66 लाख पंजीकृत उद्यम थे। सिर्फ एक साल में 48 लाख नए उद्यमों का पंजीकरण कराया गया है। क्याफ इससे अर्थव्येवस्था का और ज्याादा औपचारिकरण और बेहतर नौकरियों का सृजन नहीं होगा?
‘मुद्रा (सूक्ष्म ऋण)’ के तहत 12 करोड़ से ज्याऔदा ऋण दिए गए हैं। क्याी यह मानना अनुचित होगा कि प्रत्येसक ऋण ने कम से कम एक व्यतक्ति के लिए आजीविका के साधन का सृजन नहीं किया होगा?
पिछले एक साल में एक करोड़ से भी अधिक मकानों का निर्माण किया गया है। इससे कितने रोजगारों का सृजन हुआ होगा? यदि प्रति माह सड़कों का निर्माण दोगुना हो गया है, यदि रेलवे, राजमार्गों, विमानन क्षेत्र इत्या्दि में उल्लेुखनीय विकास हुआ है तो इससे क्याो पता चलता है? क्याय समान अनुपात में अपेक्षाकृत अधिक संख्यास में लोगों को रोजगार दिए बिना ही यह संभव हो पाया है?
हाल ही में पेश की गई एक अंतर्राष्ट्री य रिपोर्ट से यह पता चला है कि भारत में कितनी तेजी से गरीबी घट रही है। क्याट आपका यह मानना है कि लोगों को रोजगार मिले बगैर ही यह संभव हो पाया है?
स्वलराज्य : लेकिन आपके विरोधी इन आंकड़ों पर संशय करते हैं….
मोदी : रोजगार सृजन को लेकर राजनीतिक बहस में सामंजस्यआ का अभाव देखा जा रहा है। हमारे पास राज्यर सरकारों द्वारा पेश किए गए आंकड़े उपलब्धर हैं। उदाहरण के लिए, कर्नाटक की पिछली सरकार ने 53 लाख रोजगार सृजित होने का दावा किया है। इसी तरह पश्चिम बंगाल सरकार ने दावा किया है कि उसने पिछले कार्यकाल में 68 लाख रोजगार सृजित किए। ऐसे में सवाल यह उठता है कि यदि सभी राज्या बड़ी संख्याक में रोजगारों का सृजन कर रहे हैं, तो क्याड यह माना जा सकता है कि देश में रोजगारों का सृजन नहीं हो रहा है? क्यात यह संभव है कि राज्यश तो रोजगारों का सृजन कर रहे हैं, लेकिन केन्द्रा रोजगारों का कतई सृजन नहीं कर रहा है?
वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए चार-आयामी रणनीति
स्वराज्यः अब हम किसानों के मुद्दे पर चर्चा करते हैं क्योंंकि किसानों में भारी नाराजगी है। हर सरकार सामान्य त: यही दावा करती है कि वह किसानों के लिए प्रतिबद्ध है। आप ऐसा क्याय कर रहे हैं जो पिछली सरकार की तुलना में कुछ अलग हट कर है?
मोदी : हमने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्या रखा है, ताकि हमारे किसान समृद्ध हो सकें और खेती-बाड़ी लाभप्रद साबित हो।
हमारे देश के किसानों को समृद्ध करने के लिए उनकी आमदनी के स्रोतों को बढ़ाने और उनके जोखिमों को कम करने की जरूरत है।
हम किसानों की आय दोगुनी करने के लिए इस चार-आयामी रणनीति पर काम कर रहे हैं: कच्चेि माल की लागत कम करना, उपज की वाजिब कीमतें सुनिश्चित करना, फसलों की कटाई के दौरान एवं कटाई के बाद भी न्यूसनतम नुकसान सुनिश्चित करना तथा आय सृजन के और भी अधिक अवसर सृजित करना। यदि आप हमारे नीतिगत उपायों पर अत्यंअत ध्यातनपूर्वक गौर करेंगे तो आप पाएंगे कि इनका उद्देश्यज हर कदम पर किसानों की मदद करना है - ‘बीज से बाजार तक’।
पिछली सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिए 1.21 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया था, जबकि हमने पांच वर्षों की अवधि में 2.12 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया है। यही नहीं, पिछली सरकार के विपरीत हमारी पहल केवल फाइलों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि इनकी झलक खेतों में भी स्पलष्टी देखी जा सकती है।
स्वराज्यः क्या आप इसके उदाहरण दे सकते हैं...?
मोदी : यदि आप यह जानना चाहते हैं कि हमारी सरकार के कार्यकाल में आखिरकार क्याय बदला है, तो आप कई वर्षों से किसानों की जो स्थिति बनी हुई थी उसे याद करें। किसानों को ऐसी खेती-बाड़ी के लिए विवश होना पड़ता था जो वैज्ञानिक ढंग से नहीं की जाती थी, उन्हेंि यूरिया प्राप्ता करने के लिए लाठियां खानी पड़ती थीं, उनके पास कोई समुचित बीमा कवर नहीं था और न ही उन्हेंय अपनी उपज की वाजिब कीमतें मिला करती थीं।
वैज्ञानिक ढंग से खेती-बाड़ी सुनिश्चित करने के लिए किसानों को अब मृदा स्वा स्य्ा कार्ड उपलब्धए कराए गए हैं। यूरिया का अभाव एवं भारी किल्लसत अब बीते जमाने की बात हो गई है। यही नहीं, नीम लेपित यूरिया से उत्पाअदकता निरंतर बढ़ रही है। अब प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के जरिए किसानों को समग्र रूप से फसल बीमा कवर प्राप्त् हो गया है।
स्वराज्यः न्यूमनतम समर्थन मूल्यों के बारे में आपका क्याा कहना है?
मोदी : किसानों को अब न केवल अपनी लागत का 1.5 गुना न्यूरनतम समर्थन मूल्यव (एमएसपी) के रूप में मिल रहा है, बल्कि उनके लिए अब ई-नाम (इलेक्ट्रॉ निक राष्ट्री य कृषि बाजार जो किसानों को मूल्यि, उत्पानदन और बाजार से संबंधित सूचनाएं उपलब्धर कराता है) के जरिए वाजिब मूल्य प्राप्तप करने के कई और रास्तेक भी खुल गए हैं।
मैं निजी क्षेत्र से यह अनुरोध करना चाहता हूं कि वह कृषि क्षेत्र में अपना निवेश बढ़ाए। भारत के कृषि क्षेत्र में हुए कुल निवेश में निजी क्षेत्र का योगदान केवल 1.75 प्रतिशत ही है। प्रौद्योगिकी से लेकर खाद्य प्रसंस्कदरण तक और आधुनिक मशीनरी से लेकर अनुसंधान तक कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र के लिए व्यारपक संभावनाएं हैं। यदिल हमारे देश के किसानों की कड़ी मेहनत एवं दृढ़ संकल्पा को निजी क्षेत्र की बाजार समझ और सर्वोत्तम वैश्विक तौर-तरीकों साथ मिल जाए तो इससे किसान और निजी क्षेत्र दोनों ही लाभान्वित होंगे।
निजीकरण पर कुछ भी संकोच नहीं
स्वराज्यः हाल ही में आपने विभिन्नक मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए भारत के कॉरपोरेट जगत की हस्तियों के साथ बैठक की थी। आपने उनसे क्याक कहा और उन्हों ने आपसे क्या कहा? क्यां उन्हेंए वस्तुे एवं सेवा कर (जीएसटी), दिवाला प्रक्रिया इत्याादि को लेकर कोई शिकायत है?
मोदी : उद्योगपतियों के साथ बैठक काफी लंबी चली। भारत सरकार ने उनके समक्ष एक प्रस्तुगति पेश की। हमने भारतीय अर्थव्य वस्थाो और आगे की राह से संबंधित विभिन्नय पहलुओं पर खुलकर चर्चाएं कीं। इन चर्चाओं के दौरान अनेक रचनात्मुक सुझाव उभर कर सामने आए।
इस दौरान जिन मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ वे इस बात पर केन्द्रित थे कि भारत के विकास में कॉरपोरेट क्षेत्र कैसे और ज्याइदा योगदान कर सकता है। उदाहरण के लिए आप कृषि क्षेत्र पर गौर करें। मैंने इस साक्षात्का र के दौरान एक अन्यष सवाल के जवाब में यह कहा है कि भारत में कृषि क्षेत्र में कॉरपोरेट क्षेत्र की भागीदार बेहद कम है। मेरे विचार में यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें व्या पक बदलाव होने चाहिए।
हमने रक्षा क्षेत्र में और ज्या दा भारतीय उद्यमों की भागीदारी सुनिश्चित करने की जरूरत पर विचार-विमर्श किया। भारत सरकार ने और अधिक एफडीआई की गुंजाइश सुनिश्चित करने, बाधाओं को कम करने, इत्या दि सहित कई सुधारों को इस क्षेत्र में लागू किया है, अत: कॉरपोरेट जगत को इससे लाभ उठाना चाहिए और इसके साथ ही निवेश करना चाहिए। देश की आजादी के बाद इतने साल गुजर गए हैं, तो आखिरकार भारत में रक्षा निर्माण के क्षेत्र में और ज्यािदा क्षमताएं क्योंभ नहीं होनी चाहिए?
उद्योगपतियों का कहना है कि हम जो कर रहे हैं (जीएसटी और दिवालियापन अदालतों के जरिए बैंक ऋणों का समाधान जैसे सुधार) उससे कारोबार से गलत चीजें हट रही हैं और यह कारोबार की दृष्टि से अच्छाक है।
स्वराज्यः क्याा आपको ऐसा नहीं लगता है कि आप इन दो क्षेत्रों में और बेहतर कर सकते थे: भारत के बैंकों की समस्यायएं सुलझाना। बैंकों को नई पूंजी वर्ष 2017-18 में उपलब्धय कराने के बजाय आपने वर्ष 2014 में ही यह कदम क्यों नहीं उठाया था? यही नहीं, निजीकरण भी आधे-अधूरे मन से किया गया है। हाल ही में एयर इंडिया के निजीकरण में मिली विफलता का उदाहरण दिया जा सकता है...
मोदी : आप गलत हैं।
हमें बैंकों की इस समस्याै का पता वर्ष 2014 में ही चल गया था। बैंक अधिकारियों के साथ एक सम्मे।लन पुणे में आयोजित किया गया था जिसमें शीर्ष अधिकारियों ने भाग लिया था। मैंने उनसे कहा था कि वे प्रोफेशनल रुख के साथ अपना काम करें और इस क्षेत्र को समस्याकओं से मुक्ते करें। मैंने उन्हें यह आश्वा सन दिया था कि दिल्लीथ से फोन करके उनके कामकाज को प्रभावित करने का जो सिलसिला लंबे समय से चला आ रहा था वह हमारी सरकार के कामकाज का तरीका कतई नहीं है। इससे वास्तहविक स्थिति को सामने लाने में मदद मिली है।
इससे पहले, यदि किसी पर 500 करोड़ रुपये का बकाया होता था और जब उसे चुकाने का समय आता था तो दिल्ली0 से उसे 500 करोड़ रुपये का एक और ऋण देने के लिए फोन आता था, ताकि वह पिछले ऋण को चुका सके। यह सिलसिला लंबे समय तक चला। हमने इस पर रोक लगा दी। यही कारण है कि पुराने ऋणों को फंसे कर्जों (एनपीए) के रूप में दर्शाना पड़ा।
अब दिवाला एवं दिवालियापन संहिता की मदद से कई कारोबारियों को अपनी-अपनी कंपनियों के मालिकाना हक से हाथ धोना पड़ा है क्योंेकि वे बैंकों की बकाया रकम चुकाने में विफल रहे थे।
इससे पहले बैंकों के विलय की केवल चर्चाएं होती रही थीं, लेकिन इस पर अमल नहीं किया गया। हालांकि, हम इस दिशा में आगे बढ़ चुके हैं। क्याम आप पांच बैंकों के विलय से अवगत नहीं हैं?
स्वराज्यः आप निजीकरण के लिए ज्या दा इच्छु क प्रतीत नहीं होते हैं... हाल ही में एयर इंडिया के निजीकरण में मिली विफलता इसका स्प ष्टय उदाहरण है।
मोदी : मैं आपसे अपने तथ्यों की जांच करने का अनुरोध करता हूं। हमारी सरकार ने व्या पक विनिवेश किया है। आप इस बारे में और ज्याीदा शोध कर सकते हैं तथा आप भी इसी निष्कबर्ष पर पहुंचेंगे।
जहां तक एयर इंडिया का सवाल है, सरकार ने इस दिशा में पूरी ईमानदारी के साथ काम किया है। आपको इससे जुड़ी बिक्री पेशकश को समर्थन न मिलने और नीतिगत निर्णय के बीच के अंतर को समझना होगा। हमने कैबिनेट स्तगर पर न केवल एयर इंडिया, बल्कि कई और (घाटे में चल रही) सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों को भी बेचने को मंजूरी दे दी है। यह अपने आप में कई तरह से ऐतिहासिक है। इन्हें बेचने में लगने वाले समय और प्रक्रिया के कारण ही इन सभी को अभी तक बेचा नहीं जा सका है। हम इस तरह का कोई भी बिक्री सौदा नहीं करना चाहते हैं जिसके मद्देनजर हम पर यह आरोप लगाया जाए कि हमने अमुक कंपनी को महज इतनी राशि में ही बेच दिया, जबकि इससे कहीं ज्या दा राशि हमें मिल सकती थी। हालांकि, यह बिल्कु ल सच है कि इन सभी की रणनीतिक बिक्री करने के नीतिगत निर्णय पहले ही लिए जा चुके हैं। ‘न्यू।नतम सरकार, अधिकतम गवर्नेंस’ का मोदी आइडिया
स्वराज्यः वर्ष 2014 से पहले आप ‘न्यूैनतम सरकार, अधिकतम गवर्नेंस’ की चर्चा किया करते थे, क्या आप इस लक्ष्य की ओर बढ़ने के तरीकों के बारे में विस्तार से बता सकते हैं? इस नारे से वास्तेव में आपका क्याै आशय था?
मोदी : मेरा सदा से ही यह मानना रहा है और मैंने कई अवसरों पर यह कहा है कि सरकारों पर कम निर्भरता ही आगे बढ़ने का तरीका है।
सरकार ऐसी होनी चाहिए जो उत्पारदकता बढ़ाए और प्रक्रियाओं को अनुकूल बनाए। सरकार को एक सुविधाप्रदाता, न कि अड़ंगेबाज या अवरोधक की भूमिका निभानी चाहिए।
हमने पिछले चार वर्षों के दौरान इस दर्शन पर अमल किया है। प्रौद्योगिकी इस लक्ष्यक की प्राप्ति में महत्व।पूर्ण भूमिका निभाती है।
‘न्यूगनतम सरकार, अधिकतम गवर्नेंस’ का मुख्यभ उद्देश्य लोगों के जीवन को तरह-तरह की बाधाओं से मुक्तद करना है, जो सरकार द्वारा उत्पन्न् की जाने वाली बाधाओं को दूर करके और लोगों को अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करने की आजादी देने से ही संभव है।
स्वराज्यः क्या आप इसके उदाहरण दे सकते हैं?
मोदी : विभिन्न प्रमाण पत्रों की ‘स्वउयं-सत्यानपित’ प्रतियां पेश करने की अनुमति देना इसका एक स्प ष्टर उदाहरण है। इससे पहले लोगों को नोटरी या राजपत्रित अधिकारियों की तलाश करनी पड़ती थी और उनसे सत्या पन के लिए अनुरोध करना पड़ता था। अक्सीर, लोगों को इसके लिए 50 अथवा 100 रुपये देने पड़ते थे। अब हमने यह साबित कर दिया है कि सरकार अपने देश की जनता पर भरोसा करती है। इस तरह से हमने सरकारी अनिवार्यताओं की एक जरूरत कम कर दी है और इससे करोड़ों लोगों को बड़ी राहत मिली है।
जहां एक ओर कई सरकारें नए कानून बनाने पर गर्व करती हैं, वहीं दूसरी ओर मुझे पुरातन कानूनों को समाप्तर कर देने पर गर्व है। अब तक 1000 से भी अधिक पुरातन कानूनों को समाप्तद किया जा चुका है।
हमने तृतीय एवं चतुर्थ स्त रों की सरकारी नौकरियों के लिए साक्षात्का र की अनिवार्यता को भी समाप्तअ कर दिया है। इस तरह से भी हमने सरकारी अनिवार्यताओं की एक जरूरत कम कर दी है, इसके जरिए भाई-भतीजावाद एवं भ्रष्टाकचार करने का एक अवसर कम कर दिया है और इसके साथ ही हमने ईमानदार अभ्यार्थियों के मनोबल को काफी बढ़ा दिया है।
हमने विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) को भंग कर दिया है और ज्याददातर एफडीआई मंजूरियां अब ऑटोमैटिक या स्वकत: रूट के जरिए ही प्राप्ता होती हैं।
स्वराज्यः‘कारोबार में सुगमता’ के बारे में आपका क्याा कहना है?
मोदी : ‘कारोबार में सुगमता’ सुनिश्चित करने के लिए हमने कई कदम उठाए हैं। पहले विभिन्नर श्रम कानूनों के तहत 56 रजिस्टहरों में विभिन्ना जानकारियों को दर्ज करना आवश्य क माना जाता था, जबकि अब उनके स्थाान पर सिर्फ 5 सामान्यम रजिस्ट,रों की ही जरूरत रह गई है। इसी तरह पहले 36 फॉर्म आवश्यकक माने जाते थे, लेकिन इनकी संख्याई घटाकर अब सिर्फ 12 कर दी गई है। सभी मौजूदा श्रम कानूनों को सरल एवं तर्कसंगत बनाया जा रहा है और इन सभी का विलय चार श्रम संहिताओं में कर दिया गया है।
किसी भी कंपनी के गठन की प्रक्रियाओं को सरल बना दिया गया है और अब सिर्फ 24 घंटों में भी किसी कंपनी का गठन करना संभव हो गया है।
नगरपालिका प्राधिकरणों से भवन निर्माण की मंजूरी लेने की प्रक्रियाओं की संख्या भी घटा दी गई है। इसके लिए अब दिल्ली में 24 के बजाय सिर्फ 8 और मुम्ब ई में 37 के बजाय केवल 8 मंजूरियां ही आवश्यकक रह गई हैं। भवन निर्माण के सभी चरणों में आवेदन करने से लेकर मंजूरी देने तक की समूची प्रक्रिया को ऑनलाइन कर दिया गया है और अब इसके लिए व्यमक्तिगत तौर पर किसी दफ्तर में जाने अथवा संबंधित व्येक्ति से मिलने की आवश्यरकता नहीं रह गई है। हलफनामा की अनिवार्यता भी समाप्त कर दी गई है और अब इसका स्थागन ई-अंडरटेकिंग ने ले लिया है। यह व्य वस्थाब सभी स्था नीय शहरी निकायों में सुनिश्चित की जा रही है।
इसी तरह हमने पर्यावरणीय मंजूरियों के लिए ऑनलाइन आवेदन करने एवं मंजूरी देने की प्रणाली भी शुरू की है, जिन्हेंर प्राप्तह करने में पहले कई दिन लग जाया करते थे।
जीएसटी में सूचना प्रौद्योगिकी की मदद से ‘इंस्पेनक्टेर राज’ को समाप्तई करने की व्यसवस्थाि की गई है। रिटर्न भरने से लेकर रिफंड तक सारे कार्य ऑनलाइन होते हैं।
श्रम सुविधा पोर्टल पर विभिन्न श्रम अनुपालनों को एक ही स्थािन पर लॉग-इन किया जा सकता है। श्रम निरीक्षकों को कंपनियों के यहां एकाएक पहुंचने से मना कर दिया गया है। इसके बजाय वे अब कम्यू पह टरीकृत प्रणाली द्वारा निर्देशित होते हैं। इस प्रणाली के तहत उन्हें उद्देश्य विशेष के मानदंडों के आधार पर निरीक्षण के लिए भेजा जाता है।
ज्याेदातर सरकारी योजनाओं में हमने डीबीटी (प्रत्य।क्ष लाभ अंतरण) अथवा नकद हस्तांातरण के जरिए धनराशि का हस्तांभतरण सुनिश्चित करके सरकारी अनिवार्यताओं की एक जरूरत कम कर दी है।
मैं सरकार द्वारा किए गए इस तरह के कई उपायों को गिना सकता हूं, लेकिन शायद आपके यहां इसके लिए जगह (स्पेिस) की कमी पड़ जाएगी। अत: हमें अगले प्रश्न पर चर्चा करनी चाहिए।
क्या हमें दूध और मर्सिडीज पर एक ही कर दर तय करनी चाहिए?
स्वराज्यः एक वर्ष पहले आपने जीएसटी लागू की थी और दावा किया था कि यह एक अच्छा और सरल कर है। हमारा मानना है कि यह निश्चित रूप से एक अच्छा कर है, लेकिन क्या यह वास्तव में सरल है? आपके आलोचक कहते हैं कि आदर्श स्थिति यह है कि कर में केवल एक ही एकल दर होनी चाहिए, जिसमें ऊपरी और निचली वाजिब स्लैब में केवल कुछ ही वस्तुएं होनी चाहिए।
मोदीः केवल एक ही स्लैब रखना बहुत सरल होता, लेकिन इसका अर्थ यह होता कि हम खाद्य वस्तुओं को शून्य प्रतिशत कर दरों पर नहीं रख सकते थे। क्या हमें दूध और मर्सिडीज पर एक ही कर दर तय करनी चाहिए? इसलिए, जब कांग्रेस के हमारे मित्र कहते हैं कि उन्होंने केवल एक ही जीएसटी दर रखी होती तो वास्तव में उनका कहना यह होता है कि वे खाद्य वस्तुओं और जिंसों पर, जिस पर वर्तमान में शून्य या पांच प्रतिशत कर है, 18 प्रतिशत कर लगाएंगे।
स्वराज्यः आपके अनुसार, अभी तक क्या लाभ हासिल हुए हैं?
मोदीः मुझे कुछ संख्याओं के साथ आरंभ करने दीजिए। आजादी के बाद से अब तक पंजीकृत उद्यमियों की कुल संख्या 66 लाख थी। जीएसटी लागू होने के केवल एक साल बाद, नये पंजीकृत उद्यमियों की संख्या 48 लाख है। लगभग 350 करोड़ इनवॉयस की प्रोसेसिंग की गई एवं 11 करोड़ रिटर्न भरे गए। क्या हम ऐसी संख्याओं को देख सकते थे, अगर जीएसटी वास्तव में बहुत जटिल रहा होता?
देश भर में चेक पोस्ट को समाप्त कर दिया गया है और राज्यों की सीमाओं पर अब कतारें नहीं लग रही हैं। न केवल ट्रक चालक बहुमूल्य समय की बचत कर रहे हैं, बल्कि लॉजिस्टिक्स क्षेत्र को भी बढ़ावा मिल रहा है और इससे हमारे देश की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी हो रही है। क्या ऐसा हुआ रहा होता, अगर जीएसटी वास्तव में जटिल रहा होता?
स्वराज्यः क्यों अभी भी व्यावसायियों एवं अर्थशास्त्रियों द्वारा इसकी इतनी आलोचना की जा रही है?
मोदीः जीएसटी एक व्यापक बदलाव था, जिसके लिए दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक प्रणालियों में से एक को पूरी तरह फिर से स्थापित किये जाने की आवश्यकता थी। इन सुधारों से 17 करों, 23 उपकरों को एकल कर में विलय कर दिया गया। जब इसे अंतिम रूप से लागू किया गया, तो हमारी कोशिश इसे सरल बनाने और प्रणाली की संवेदनशीलता सुनिश्चित करने की थी। जब इतने बड़े स्तर का कोई सुधार किया जाता है तो अकसर आरंभिक कठिनाइयां सामने आती हैं, लेकिन इन मुद्दों की न केवल पहचान की गई बल्कि वास्तविक समय में उन्हें दूर भी कर दिया गया।
स्वराज्यः एक साल के बाद भी जीएसटी पर कार्य अभी चल ही रहा है…
मोदीः जीएसटी एक उभरती प्रणाली है और हम राज्य सरकारों, लोगों, मीडिया आदि से फीडबैक के आधार पर इसे ठीक कर रहे हैं। लोगों, व्यापारियों आदि से मिले बहुत सारे फीडबैक को इसमें समावेशित किया गया है।
भारतीय सहकारी संघवाद की सर्वश्रेष्ठ झलक जीएसटी में दिख रही है। हमने राज्यों को एकजुट किया एवं सक्रियतापूर्वक एक सर्वसम्मति विकसित की, जिसे करने में पहले की सरकारें विफल रही थीं।
स्वराज्यः क्या जीएसटी की दरों में अभी और गिरावट आएगी?
मोदीः जहां तक दरों की बात है तो पहले कई दरें छुपी हुई थीं। अब आप जो देख रहे हैं वही भुगतान कर रहे हैं। सरकारों ने वस्तुओं के लगभग 400 समूहों पर करों में कमी कर दी है। वस्तुओं के लगभग 150 समूहों पर शून्य प्रतिशत कर दर है। अगर आप दरों पर गौर करें तो रोजमर्रा की ज्यादातर वस्तुओं पर दरों में वास्तव में कमी आई है। चाहे चावल हो, गेहूं, चीनी, मसालें आदि हों, अधिकांश मामले में लगाए जाने वाले कुल करों में कमी आई है। बड़ी संख्या में रोजाना के उपभोग की वस्तुओं में छूट दी गई है या उन पर पांच प्रतिशत का स्लैब है। लगभग 95 प्रतिशत वस्तुएं 18 प्रतिशत के स्लैब में/या उससे नीचे हैं।
जगन्नाथन स्वराज्य के संपादकीय निदेशक हैं। @TheJaggi पर ट्वीट करते हैं।