Text of Prime Minister’s ‘Mann ki Baat’ on All India Radio

Published By : Admin | December 14, 2014 | 11:49 IST

मेरे प्यारे देशवासियों,

आज फिर मुझे आप से मिलने का सौभाग्य मिला है। आपको लगता होगा कि प्रधानमंत्री ऐसी बातें क्यों करता है। एक तो मैं इसलिए करता हूँ कि मैं प्रधानमंत्री कम, प्रधान सेवक ज्यादा हूँ। बचपन से मैं एक बात सुनते आया हूँ और शायद वही ‘मन की बात’ की प्ररेणा है। हम बचपन से सुनते आये हैं कि दुःख बांटने से कम होता है और सुख बांटने से बढ़ता है। ‘मन की बात’ में, मैं कभी दुःख भी बांटता हूँ , कभी सुख भी बांटता हूँ। मैं जो बातें करता हूँ वो मेरे मन में कुछ पीड़ाएं होती हैं उसको आपके बीच में प्रकट करके अपने मन को हल्का करता हूँ और कभी कभी सुख की कुछ बातें हैं जो आप के बीच बांटकर के मैं उस खुशी को चौगुना करने का प्रयास करता हूँ।

मैंने पिछली बार कहा था कि लम्बे अरसे से मुझे हमारी युवा पीढ़ी की चिंता हो रही है। चिंता इसलिए नहीं हो रही है कि आपने मुझे प्रधानमंत्री बनाया है, चिंता इसलिए हो रही है कि किसी मां का लाल, किसी परिवार का बेटा, या बेटी ऐसे दलदल में फंस जाते हैं तो उस व्यक्ति का नहीं, वो पूरा परिवार तबाह हो जाता है। समाज, देश सब कुछ बरबाद हो जाता है। ड्रग्स, नशा ऐसी भंयकर बीमारी है, ऐसी भंयकर बुराई है जो अच्छों अच्छों को हिला देती है।

मैं जब गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में काम करता था, तो कई बार मुझे हमारे अच्छे-अच्छे अफसर मिलने आते थे, छुट्टी मांगते थे। तो मैं पूछता था कि क्यों ? पहले तो नहीं बोलते थे, लेकिन जरा प्यार से बात करता था तो बताते थे कि बेटा बुरी चीज में फंसा है। उसको बाहर निकालने के लिए ये सब छोड़-छाड़ कर, मुझे उस के साथ रहना पड़ेगा। और मैंने देखा था कि जिनको मैं बहुत बहादुर अच्छे अफसर मानता था, वे भी सिर्फ रोना ही बाकी रह जाता था। मैंनें ऐसी कई माताएं देखी हैं। मैं एक बार पंजाब में गया था तो वहां माताएं मुझे मिली थी। बहुत गुस्सा भी कर रही थी, बहुत पीड़ा व्यक्त कर रही थीं।

हमे इसकी चिंता समाज के रूप में करनी होगी। और मैं जानता हूँ कि बालक जो इस बुराई में फंसता है तो कभी कभी हम उस बालक को दोशी मानते हैं। बालक को बुरा मानते हैं। हकीकत ये है कि नशा बुरा है। बालक बुरा नही है, नशे की लत बुरी है। बालक बुरा नही है हम अपने बालक को बुरा न माने। आदत को बुरा मानें, नशे को बुरा मानें और उससे दूर रखने के रास्ते खोजें। बालक को ही दुत्कार देगें तो वो और नशा करने लग जाएगा। ये अपने आप में एक Psycho-Socio-Medical problem है। और उसको हमें Psycho-Socio-Medical problem के रूप में ही treat करना पड़ेगा। उसी के रूप में handle करना पड़ेगा और मैं मानता हूँ कि कुछ समस्याओं का समाधान मेडिकल से परे है। व्यक्ति स्वंय, परिवार, यार दोस्त, समाज, सरकार, कानून, सब को मिल कर के एक दिशा में काम करना पड़ेगा। ये टुकड़ों में करने से समस्या का समाधान नहीं होना है।

मैंने अभी असम में डी जी पी की Conference रखी थी। मैंने उनके सामने मेरी इस पीड़ा को आक्रोश के साथ व्यक्त किया था। मैंने पुलिस डिपार्टमेंट में इसकी गम्भीर बहस करने के लिये, उपाय खोजने के लिए कहा है। मैंने डिपार्टमेंट को भी कहा है कि क्यों नहीं हम एक टोल-फ्री हैल्पलाईन शुरू करें। ताकि देश के किसी भी कोने में, जिस मां-बाप को ये मुसीबत है कि उनके बेटे में उनको ये लग रहा है कि ड्रग की दुनिया में फंसा है, एक तो उनको दुनिया को कहने में शर्म भी आती है, संकोच भी होता है, कहां कहें? एक हैल्पलाईन बनाने के लिए मैंने शासन को कहा है। वो बहुत ही जल्द उस दिशा में जरूर सोचेंगे और कुछ करेंगे।

उसी प्रकार से, मैं जानता हूँ ड्रग्स तीन बातों को लाता है और मैं उसको कहूँगा, ये बुराइयों वाला Three D है - मनोरंजन के Three D की बात मैं नहीं कर रहा हूँ।

एक D है Darkness, दूसरा D है Destruction और तीसरा D है Devastation।

नशा अंधेरी गली में ले जाता है। विनाश के मोड़ पर आकर खड़ा कर देता है और बर्बादी का मंजर इसके सिवाय नशे में कुछ नहीं होता है। इसलिये इस बहुत ही चिंता के विषय पर मैंने चर्चा की है।

जब मैंने पिछले ‘मन की बात’ कार्यक्रम में इस बात का स्पर्श किया था, देश भर से करीब सात हजार से ज्यादा चिट्ठियां मुझे आकाशवाणी के पते पर आईं। सरकार में जो चिट्ठियां आईं वो अलग। ऑनलाइन, सरकारी पोर्टल पर, MyGov.in पोर्टल पर, हजारों ई-मेल आए। ट्विटर, फेसबुक पर शायद, लाखों कमेन्ट्स आये हैं। एक प्रकार से समाज के मन में पड़ी हुई बात, एक साथ बाहर आना शुरू हुआ है।

मैं विशेषकर, देश के मीडिया का भी आभारी हूँ कि इस बात को उन्होनें आगे बढ़ाया। कई टी. वी. ने विशेष एक-एक घंटे के कार्यक्रम किये हैं और मैंने देखा, उसमें सिर्फ सरकार की बुराइयों का ही कार्यक्रम नहीं था, एक चिन्ता थी और मैं मानता हूं, एक प्रकार से समस्या से बाहर निकलने की जद्दो-जहद थी और उसके कारण एक अच्छा विचार-विमर्श का तो माहौल शुरू हुआ है। सरकार के जिम्मे जो बाते हैं, वो भी Sensitised हुई हैं। उनको लगता है अब वे उदासीन नहीं रह सकते हैं।

मैं कभी-कभी, नशे में डूबे हुए उन नौजवानों से पूछना चाहता हूँ कि क्या कभी आपने सोचा है आपको दो घंटे, चार घंटे नशे की लत में शायद एक अलग जिन्दगी जीने का अहसास होता होगा। परेशानियों से मुक्ति का अहसास होता होगा, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि जिन पैसों से आप ड्रग्स खरीदते हो वो पैसे कहां जाते हैं? आपने कभी सोचा है? कल्पना कीजिये! यही ड्रग्स के पैसे अगर आतंकवादियों के पास जाते होंगे! इन्हीं पैसों से आतंकवादी अगर शस्त्र खरीदते होंगे! और उन्हीं शस्त्रों से कोई आतंकवादी मेरे देश के जवान के सीने में गोलियां दाग देता होगा! मेरे देश का जवान शहीद हो जाता होगा! तो क्या कभी सोचा है आपने? किसी मां के लाल को मारने वाला, भारत मां के प्राण प्रिय, देश के लिए जीने-मरने वाले, सैनिक के सीने में गोली लगी है, कहीं ऐसा तो नहीं है न? उस गोली में कहीं न कहीं तुम्हारी नशे की आदत का पैसा भी है, एक बार सोचिये और जब आप इस बात को सोचेंगे, मैं विश्वास से कहता हूँ, आप भी तो भारत माता को प्रेम करते हैं, आप भी तो देश के सैनिकों को सम्मान करते हैं, तो फिर आप आतंकवादियों को मदद करने वाले, ड्रग-माफिया को मदद करने वाले, इस कारोबार को मदद कैसे कर सकते हैं।

कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि जब जीवन में निराशा आ जाती है, विफलता आ जाती है, जीवन में जब कोई रास्ता नहीं सूझता, तब आदमी नशे की लत में पड़ जाता है। मुझे तो ऐसा लगता है कि जिसके जीवन में कोई ध्येय नहीं है, लक्ष्य नहीं है, उंचे इरादे नहीं हैं, एक वैक्यूम है, वहां पर ड्रग का प्रवेश करना सरल हो जाता है। ड्रग से अगर बचना है, अपने बच्चे को बचाना है तो उनको ध्येयवादी बनाइये, कुछ करने के इरादे वाले बनाइये, सपने देखने वाले बनाइये। आप देखिये, फिर उनका बाकी चीजों की तरफ मन नही लगेगा। उसको लगेगा नहीं, मुझे करना है।

आपने देखा होगा, जो खिलाड़ी होता है...ठण्ड में रजाई लेकर सोने का मन सबका करता है, लेकिन वो नहीं सोता है। वो चला जाता है खुले मैदान में, सुबह चार बजे, पांच बजे चला जाता है। क्यों ? ध्येय तय हो चुका है। ऐसे ही आपके किसी बच्चे में, ध्येयवादिता नहीं होगी तो फिर ऐसी बुराइयों के प्रवेश का रास्ता बन जाता है।

मुझे आज स्वामी विवेकानन्द के वो शब्द याद आते हैं। हर युवा के लिये वो बहुत सटीक वाक्य हैं उनके और मुझे विश्वास है कि वाक्य, बार-बार गुनगुनायें स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा है - ‘एक विचार को ले लो, उस विचार को अपना जीवन बना लो। उसके बारे में सोचो, उसके सपने देखो। उस विचार को जीवन में उतार लो। अपने दिमाग, मांसपेशियां, नसों, शरीर के प्रत्येक हिस्से को उस विचार से भर दो और अन्य सभी विचार छोड़ दो’।

विवेकानन्द जी का यह वाक्य, हर युवा मन के लिये है, बहुत काम आ सकता है और इसलिये, मैं युवकों से कहूँगा ध्येयवादी बनने से ही बहुत सी चीजों से बचा जा सकता।

कभी-कभी यार दोस्तों के बीच रहते हैं तो लगता है ये बड़ा Cool है। कुछ लोगों को लगता है कि ये Style statement है और इसी मन की स्थिति में कभी- कभी पता न रहते हुए ही, ऐसी गम्भीर बीमारी में ही फंस जाते हैं। न ये Style statement है और न ये Cool है। हकीकत में तो ये बरबादी का मंजर है और इसलिए हम सब के हृदय से अपने साथियों को जब नशे के गौरव गान होते हो, अब अपने अपने मजे की बाते बताते हो, तालियां बजाते हो, तब ‘No’ कहने की हिम्मत कीजिए, reject करने की हिम्मत कीजिए, इतना ही नही, उनको भी ये गलत कर रहे हो, अनुचित कर रहे हो ये कहने की आप हिम्मत जताइए।

मैं माता- पिता से भी कहना चाहता हूँ। हमारे पास आज कल समय नही हैं दौ़ड़ रहे हैं। जिंदगी का गुजारा करने के लिए दौड़ना पड़ रहा है। अपने जीवन को और अच्छा बनाने के लिये दौड़ना पड़ रहा है। लेकिन इस दौड़ के बीच में भी, अपने बच्चों के लिये हमारे पास समय है क्या ? क्या कभी हमने देखा है कि हम ज्यादातर अपने बच्चों के साथ उनकी लौकिक प्रगति की ही चर्चा करते हैं? कितने marks लाया, exam कैसे गई, ज्यादातर क्या खाना है ? क्या नहीं खाना है ? या कभी कहाँ जाना है? कहां नहीं जाना है , हमारी बातों का दायरा इतना सीमित है। या कभी उसके हृदय के भीतर जाकर के अपने बच्चों को अपने पास खोलने के लिये हमने अवसर दिया है? आप ये जरूर कीजिये। अगर बच्चे आपके साथ खुलेंगे तो वहां क्या चल रहा है पता चलेगा। बच्चे में बुरी आदत अचानक नहीं आती है, धीरे धीरे शुरू होती है और जैसे-जैसे बुराई शुरू होती है तो घर में उसका बदलाव भी शुरू होता है। उस बदलाव को बारीकी से देखना चाहिये। उस बदलाव को अगर बारीकी से देखेंगे तो मुझे विश्वास है कि आप बिल्कुल beginning में ही अपने बालक को बचा लेंगे। उसके यार दोस्तों की भी जानकारी रखिये और सिर्फ प्रगति के आसपास बातों को सीमित न रखें। उसके जीवन की गहराई, उसकी सोच, उसके तर्क, उसके विचार उसकी किताब, उसके दोस्त, उसके मोबाइल फोन्स....क्या हो रहा है? कहां उसका समय बीत रहा है, अपने बच्चों को बचाना होगा। मैं समझता हूं जो काम मां-बाप कर सकते हैं वो कोई नहीं कर सकता। हमारे यहां सदियों से अपने पूर्वजों ने कुछ बातें बड़ी विद्वत्तापूर्ण कही हैं। और तभी तो उनको स्टेट्समैन कहा जाता है। हमारे यहां कहा जाता है -

5 वर्ष लौ लीजिये

दस लौं ताड़न देई

5 वर्ष लौ लीजिये

दस लौं ताड़न देई

सुत ही सोलह वर्ष में

मित्र सरिज गनि देई

सुत ही सोलह वर्ष में

मित्र सरिज गनि देई

कहने का तात्पर्य है कि बच्चे की 5 वर्ष की आयु तक माता-पिता प्रेम और दुलार का व्यवहार रखें, इसके बाद जब पुत्र 10 वर्ष का होने को हो तो उसके लिये डिसिप्लिन होना चाहिये, डिसिप्लिन का आग्रह होना चाहिये और कभी-कभी हमने देखा है समझदार मां रूठ जाती है, एक दिन बच्चे से बात नहीं करती है। बच्चे के लिये बहुत बड़ा दण्ड होता है। दण्ड मां तो अपने को देती है लेकिन बच्चे को भी सजा हो जाती है। मां कह दे कि मैं बस आज बोलूंगी नहीं। आप देखिये 10 साल का बच्चा पूरे दिन परेशान हो जाता है। वो अपनी आदत बदल देता है और 16 साल का जब हो जाये तो उसके साथ मित्र जैसा व्यवहार होना चाहिये। खुलकर के बात होनी चाहिये। ये हमारे पूर्वजों ने बहुत अच्छी बात बताई है। मैं चाहता हूं कि ये हमारे पारिवारिक जीवन में इसका कैसे हो उपयोग।

एक बात मैं देख रहा हूं दवाई बेचने वालों की। कभी कभी तो दवाईयों के साथ ही इस प्रकार की चीज आ जाती हैं जब तक डॉक्टर के Prescription के बिना ऐसी दवाईयां न दी जायें। कभी कभी तो कफ़ सिरप भी ड्रग्स की आदत लेने की शुरूआत बन जाता है। नशे की आदत की शुरूआत बन जाता है। बहुत सी चीजे हैं मैं इसकी चर्चा नहीं करना चाहता हूं। लेकिन इस डिसिप्लिन को भी हमको स्वीकार करना होगा।

इन दिनों अच्छी पढ़ाई के लिये गांव के बच्चे भी अपना राज्य छोड़कर अच्छी जगह पर एडमिशन के लिये बोर्डिंग लाइफ जीते हैं, Hostel में जीते हैं। मैंने ऐसा सुना है कि वो कभी-कभी इस बुराइयों का प्रवेश द्वार बन जाता है। इसके विषय में शैक्षिक संस्थाओं ने, समाज ने, सुरक्षा बलों ने सभी ने बड़ी जागरूकता रखनी पड़ेगी। जिसकी जिम्मेवारी है उसकी जिम्मेवारी पूरा करने का प्रयास होगा। सरकार के जिम्मे जो होगा वो सरकार को भी करना ही होगा। और इसके लिये हमारा प्रयास रहना चाहिये।

मैं यह भी चाहता हूं ये जो चिट्ठियां आई हैं बड़ी रोचक, बड़ी दर्दनाक चिट्ठियां भी हैं और बड़ी प्रेरक चिट्ठियां भी हैं। मैं आज सबका उल्लेख तो नहीं करता हूं, लेकिन एक मिस्टर दत्त करके थे, जो नशे में डूब गये थे। जेल गये, जेल में भी उन पर बहुत बंधन थे। फिर बाद में जीवन में बदलाव आया। जेल में भी पढ़ाई की और धीरे धीरे उनका जीवन बदल गया। उनकी ये कथा बड़ी प्रचलित है। येरवड़ा जेल में थे, ऐसे तो कईयों की कथाएं होंगी। कई लोग हैं जो इसमें से बाहर आये हैं। हम बाहर आ सकते हैं और आना भी चाहिये। उसके लिये हमारा प्रयास भी होना चाहिये, उसी प्रकार से। आने वाले दिनों में मैं Celebrities को भी आग्रह करूंगा। चाहे सिने कलाकार हों, खेल जगत से जुड़े हुए लोग हों, सार्वजनिक जीवन से जुड़े हुए लोग हों। सांस्कृतिक सन्त जगत हो, हर जगह से इस विषय पर बार-बार लोगों को जहां भी अवसर मिले, हमें जागरूक रखना चाहिये। हमें संदेश देते रहना चाहिये। उससे जरूर लाभ होगा। जो सोशल मीडिया में एक्टिव हैं उनसे मैं आग्रह करता हूं कि हम सब मिलकर के Drugs Free India hash-tag के साथ एक लगातार Movement चला सकते हैं। क्योंकि इस दुनिया से जुड़े हुए ज्यादातर बच्चे सोशल मीडिया से भी जुड़े हुए हैं। अगर हम Drugs Free India hash-tag, इसको आगे बढायेंगे तो एक लोकशिक्षा का एक अच्छा माहौल हम खड़ा कर सकते हैं।

मैं चाहता हूं कि इस बात को और आगे बढायें। हम सब कुछ न कुछ प्रयास करें, जिन्होंने सफलता पाई है वो उसको Share करते रहें। लेकिन मैंने इस विषय को इसलिये स्पर्श किया है मैंने कहा कि दुख बांटने से दुख कम होता है। देश की पीड़ा है, ये मैं कोई उपदेश नहीं दे रहा हूं और न ही मुझे उपदेश देने का हक है। सिर्फ अपना दुख बांट रहा हूं, या तो जिन परिवारों में ये दुख है उस दुख में मैं शरीक होना चाहता हूं। और मैं एक जिम्मेवारी का माहौल Create करना चाहता हूं। हो सकता है इस विषय में मत-मतान्तर हो सकते हैं। लेकिन कहीं से तो शुरू करना पड़ेगा।

मैंने कहा था कि मैं खुशियां भी बांटना चाहता हूं। मुझे गत सप्ताह ब्लाइंड क्रिकेट टीम से मिलने का मौका मिला। World Cup जीत कर आये थे। लेकिन जो मैंने उनका उत्साह देखा, उनका उमंग देखा, आत्मविश्वास देखा, परमात्मा ने जिसे आंखें दिये है, हाथ-पांव दिये हैं सब कुछ दिया है लेकिन शायद ऐसा जज्बा हमारे पास नहीं है, जो मैंने उन ब्लांइड क्रिकेटरों में देखा था। क्या उमंग था, क्या उत्साह था। यानि मुझे भी उनसे मिलकर उर्जा मिली। सचमुच में ऐसी बातें जीवन को बड़ा ही आनंद देता है।

पिछले दिनों एक खबर चर्चा में रही। जम्मू कश्मीर की क्रिकेट टीम ने मुम्बई जाकर के मुम्बई की टीम को हराया। मैं इसे हार-जीत के रूप में नहीं देख रहा हूं। मैं इस घटना को दूसरे रूप में देख रहा हूँ। पिछले लम्बे समय से कश्मीर में बाढ़ के कारण सारे मैदान पानी से भरे थे। कश्मीर संकटों से गुजर रहा है हम जानते हैं कठिनाइयों के बीच भी इस टीम ने जो Team- Spirit के साथ, बुलन्दी के के हौसले के साथ, जो विजय प्राप्त किया है वो अभूतपूर्व है और इसलिये कठिनाइंयां हैं, विपरीत परिस्थितियां हो, संकट हो उसके बाद भी लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जा सकता है, ये जम्मू कश्मीर के युवकों ने दिखाया है और इसलिये और इसलिये मुझे इस बात को सुन करके विशेष आनन्द हुआ, गौरव हुआ और मैं इन सभी खिलाडि़यों को बधाई देता हूं।

दो दिन पहले यूनाइटेड नेशन ने, योग को, पूरा विश्व 21 जून को योग दिवस के रूप में माने इसके लिये स्वीकृति दी है। भारत के लिये बहुत ही गौरव का, आनन्द का अवसर है। सदियों से हमारे पूर्वजों ने इस महान परम्परा को विकसित किया था, उससे आज विश्व जुड़ गया। योग व्यक्तिगत जीवन में तो लाभ करता था, लेकिन योग ने ये भी दिखा दिया वो दुनिया को जोड़ने का कारण बन सकता है। सारी दुनिया योग के मुद्दे पर यू.एन. में जुड़ गई। और मैं देख रहा हूं कि सर्वसम्मति से प्रस्ताव दो दिन पहले पारित हुआ। और 177 देश, Hundred and Seventy Seven Countries Co-Sponsor बनी। भूतकाल में नेल्सन मंडेला जी के जन्म दिन को मनाने का निर्णय हुआ था। तब Hundred and Sixty Five Countries Co- Sponsor बनी थी। उसके पूर्व International Toilet Day के लिये प्रयास हुआ था तो Hundred and Twenty Two Countries Co- Sponsor हुई थी। उससे पहले 2 अक्तूबर को Non-Violence Day के लिये Hundred and Forty Countries Co- Sponsor बनी थी। इस प्रकार के प्रस्ताव से Hundred and Seventy Seven Countries ने Co-Sponsor बनना यानि एक World Record हो गया है। दुनिया के सभी देशों का मैं आभारी हूं जिन्होंने भारत की इस भावना का आदर किया। और विश्व योग दिवस मनाने का निर्णय किया। हम सबका दायित्व बनता है कि योग की सही भावना लोगों तक पहुंचे।

पिछले सप्ताह मुझे मुख्यमंत्रियों की मीटिंग करने का अवसर मिला था। मुख्यमंत्रियों की मीटिंग तो 50 साल से हो ही रही है, 60 साल से हो रही है। लेकिन इस बार प्रधानमंत्री के निवास स्थान पर मिलना हुआ और उससे भी अधिक हमने एक Retreat का कार्यक्रम प्रारंभ किया, जिसमें हाथ में कोई कागज नहीं, कोई कलम नहीं, साथ में कोई अफसर नहीं, कोई फाइल नहीं। सभी मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बराबर के मित्र के रूप में बैठे। दो ढाई घण्टे तक समाज के, देश के भिन्न भिन्न विषयों पर बहुत गम्भीरतापूर्वक बातें की, हल्के फुल्के वातावरण में बातें कीं। मन खोलकर के बातें कीं। कहीं उसको राजनीति की छाया नहीं दी। मेरे लिये ये बहुत ही आनन्ददायक अनुभूति थी। उसको भी मैं आपके बीच Share करना चाहता हूं।

पिछले सप्ताह मुझे Northeast जाने का अवसर मिला। मैं तीन दिन वहां रहा। मैं देश के युवकों को विशेष आग्रह करता हूं कि आपको अगर ताज महल देखने का मन करता है, आपको अगर सिंगापुर देखने का मन करता है, आपको कभी दुबई देखने का मन करता है। मैं कहता हूं दोस्तो, प्रकृति देखनी है, ईश्वर का प्राकृतिक रूप देखना है तो आप Northeast जरूर जाइये। मैं पहले भी जाता था। लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में जब गया, तो वहां की शक्ति को पहचानने का प्रयास किया। अपार शक्तियों की संभावनाओं से भरा हुआ हमारा Northeast है। इतने प्यारे लोग हैं, इतना उत्तम वातावरण है। मैं सचमुच में बहुत आनन्द लेकर आया हूं। कभी कभी लोग पूछते हैं न? मोदी जी आप थकते नहीं हैं क्या? मैं कहता हूं Northeast जाकर के तो लगता है कि कहीं कोने भी थकान हुई होगी, वो भी चली गई। इतना मुझे आनन्द आया। और जो प्यार दिया वहां के लोगों ने जो मेरा स्वागत सम्मान वो तो एक बात है। लेकिन जो अपनापन था वो सचमुच में, मन को छूने वाला था, दिल को छूने वाला था। मैं आपको भी कहूंगा, ये सिर्फ मोदी को ही ये मजा लेने का अधिकार नहीं है भारत के हर देश वासी को है। आप जरूर इसकी मजा लीजिये।

अगली ‘मन की बात’ होगी तब तो 2015 आ जायेगी। 2014 का ये मेरा शायद ये आखिरी कार्यक्रम है। मेरी आप सबको क्रिसमस की बहुत बहुत शुभकामनायें हैं। 2015 के नववर्ष की मैं Advance में आप सबको बहुत बहुत शुभकामनायें देता हूं। मेरे लिये ये भी खुशी की बात है कि मेरे मन की बात को Regional Channels की जो Radio Channels हैं आपके जो प्रादेशिक चैनल हैं उसमें जिस दिन सुबह मेरे ‘मन की बात’ होती है उस दिन रात को 8 बजे प्रादेशिक भाषा में होती है। और मैंने देखा है कुछ प्रादेशिक भाषा में तो आवाज भी मेरे जैसे कुछ लोग निकालते हैं। मैं भी हैरान हूं कि इतना बढि़या काम हमारे आकाशवाणी के साथ जो कलाकार जुड़े हुए हैं वो कर रहे हैं मैं उनको भी बधाई देता हूं। और ये लोगों तक पहुंचने के लिये मुझे बहुत ही अच्छा मार्ग दिखता है। इतनी बड़ी मात्रा में चिट्ठियां आई हैं। इन चिट्ठियों को देखकर के हमारे आकाशवाणी ने इसका जरा एक तरीका ढूंढा है। लोगों को सहूलियत हो इसलिये उन्होंने पोस्ट-बॉक्स नम्बर ले लिया है। तो ‘मन की बात’ पर अगर आप कुछ बात कहना चाहते हैं तो आप पोस्ट-बॉक्स पर लिख सकते है अब।

मन की बात

पोस्ट बॉक्स 111, आकाशवाणी

नई दिल्ली

मुझे इंतजार रहेगा आपके पत्रों का। आपको पता नहीं है, आपके पत्र मेरे लिये प्रेरणा बन जाते हैं। आपके कलम से निकली एक-आध बात देश के काम आ सकती है। मैं आपका आभारी हूं। फिर हम 2015 में जनवरी में किसी न किसी रविवार को जरूर 11 बजे मिलेंगे बाते करेंगे।

बहुत बहुत धन्यवाद।

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Dr. Manmohan Singh will always be remembered as a kind person, a learned economist and a leader dedicated to reforms: PM
December 27, 2024
Dr. Singh's life teaches future generations how to rise above adversity and achieve great heights: PM
Dr. Singh will always be remembered as a kind person, a learned economist, and a leader dedicated to reforms: PM
Dr. Singh's distinguished parliamentary career was marked by his humility, gentleness, and intellect: PM
Dr. Singh always rose above party politics, maintaining contact with individuals from all parties and being easily accessible to everyone: PM

The demise of former Prime Minister Dr. Manmohan Singh ji has deeply pained our hearts. His passing is a tremendous loss for us as a nation. Coming to Bharat during the time of partition after losing so much, and achieving remarkable success in every field of life, is no ordinary feat. His life serves as a lesson for future generations on how to rise above hardships and challenges to reach great heights.

He will always be remembered as a kind-hearted individual, a scholarly economist, and a leader dedicated to reforms. As an economist, he served the Government of Bharat in various capacities. During a challenging time, he played the role of the Governor of the Reserve Bank of India. As the Finance Minister in the government of former Prime Minister and Bharat Ratna Shri P.V. Narasimha Rao ji, he steered the country out of a financial crisis and paved the way for a new economic direction. His contributions as the Prime Minister towards the country’s development and progress will always be cherished.

His commitment to the people and the nation's development will forever be held in high regard. Dr. Manmohan Singh ji's life was a reflection of honesty and simplicity. He was an extraordinary parliamentarian. His humility, gentleness, and intellect defined his parliamentary life. I remember mentioning earlier this year, when his tenure in the Rajya Sabha ended, that his dedication as a Member of Parliament is an inspiration to all. Even during crucial moments of parliamentary sessions, he would attend in a wheelchair and fulfil his parliamentary duties.

Despite being educated at some of the world's most prestigious institutions and holding numerous top positions in the government, he never forgot the values of his humble background. Rising above partisan politics, he always maintained connections with people across party lines and remained approachable to everyone. During my tenure as Chief Minister, I had open discussions with Dr. Manmohan Singh ji on various national and international issues. Even after coming to Delhi, I would frequently meet and converse with him. I will always remember our discussions about the country and our meetings. Recently, I spoke to him on his birthday.

In this difficult moment, I extend my condolences to his family. On behalf of all the citizens of the country, I pay tribute to Dr. Manmohan Singh ji.