India is poised to continue its trajectory of success: PM Modi

Published By : Admin | November 17, 2023 | 20:44 IST
PM Modi urges the media to educate the public about the problematic use of artificial intelligence in generating 'deepfake' content
PM Modi expresses the belief that India's advancement is unstoppable, and the nation is poised to continue its trajectory of success
PM Modi reiterates his commitment to transform India into a 'Viksit Bharat,' emphasizing that these are not merely words but a ground reality

आप सब को दीपावली के पावन पर्व की अनेक-अनेक शुभकामनाएं। छठ का पर्व भी अब राष्ट्रीय पर्व बन गया है तो वो और खुशी की बात है। मैं देख रहा हूँ कि पहले कुछ राज्यों के पर्व ज्यादातर वहीं तक सीमित रहते थे। लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की दुनिया का जैसे-जैसे प्रभाव बढ़ा है, उसका एक बात नजर आ रही है जैसे नवरात्रि- मैं देख रहा हूं कि ग्लोबल हो। दुर्गा पूजा- तो ग्लोबल हो गई है, इवेन काइट फ्लाइंग.. तो एक अच्छा संकेत है। छठ पूजा भी मैं देख रहा हूँ कि हिंदुस्तान के हर कोने में उसका महात्म्य है। ये ठीक है कि उसके मूलभूत तत्वों की चर्चा बहुत कम होती है। क्योंकि इसमें सबसे बड़ा संदेश ये है कि, कहा तो जाता है कि मनुष्य का स्वभाव है उगते सूरज की पूजा करना, लेकिन छठ पूजा उत्सव है जो डूबते सूरज की पूजा करना भी सीखाता है। और ये जीवन के लिए बहुत बड़ा संदेश है उसमें। तो इन सभी त्योहारों की मेरी तरफ से आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। बहुत कठिन समय से दुनिया गुजरी। कोविड ने, मानव जाति के इतिहास में जो बहुत बड़ी चीजें दर्दनाक है, उसमें से वो एक कालखंड रहा। और उस कालखंड के कारण हमारी जो व्यवस्थाएं होती है, जो नियमितता होती है, वह भी खंडित हुईं। तो पहले तो मैं जब यहां पार्टी का मैं संगठन का काम करता था, 11- अशोक रोड में रहता था, तब भी ऐसे अवसर पर सबसे मिलना हो जाता था। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी एक मौका मिलता था लेकिन वो भी बीच में बहुत बड़ा गैप हो गया। लेकिन मैं देख रहा हूँ कि इस बार पूरी तरह, वो जो दबाव था कोविड का, पूरी तरह मुक्ति का आनंद इस बार उत्सवों में नजर आया है। सब दूर उत्सव उसी प्रकार से मनाए गए हैं।

लेकिन उस कालखंड में हमने कुछ साथियों को भी खोया। मैं व्यक्तिगत रूप से जिन पत्रकार मित्रों को जानता था, उनको खोया, कुछ उनके परिवारजनों को खोया, वो भी मुझे जानकारी मिली। और जब मैं इन दिनों, एक बात मैं जानता नहीं कि आज ऐसा विषय मुझे कहना चाहिए कि नहीं कहना चाहिए। लेकिन मैं अनुभव कर रहा हूं कि पिछले दिनों छोटी आयु के कुछ पत्रकारों को हमने खोया है। वैसे तो हमलोग दुनिया को पढ़ाते हैं, हम पढ़े-लिखे हैं तभी तो पढ़ाते हैं। लेकिन 40 के बाद कम से कम एक रेग्युलर मेडिकल चेकअप होना चाहिए। और जैसे हम लोगो की पब्लिक लाइफ है तो आपकी भी उतनी ही गति से पब्लिक लाइफ तनावपूर्ण और आपा-धापी की रहती है। हम कोई ऐसी व्यवस्था विकसित कर सकते हैं कि जिसमें मेडिकल चेकअप के लिए सरकार भी कोई व्यवस्था करे, आपके बिजनेस हाउसेस हैं वो भी कोई व्यवस्था करे, लेकिन 40 के बाद, हमारे फील्ड के जितने भी साथी हैं, उनके परिवारजन भी हैं। हम एक रेगुलर मेडिकल चेकअप का, क्योंकि मैं सचमुच में बहुत हैरान हूं कि 40-50 की आयु के लोग को हमने खो दिए हैं। ओर ये बड़ा ही दर्दनाक था जी। और कोविड वाले ही नहीं इसके सिवाय वाले भी खोए... तो ये मन को, जिसको जानते हैं, सालों से जानते हैं, कभी मिले नहीं, लेकिन देखते है उनकी बातों को सुनते हैं, कभी पढ़ते हैं तो एक लगाव तो होता ही है, वह आत्मीय संबंध होता है। और उनका जाना एक तरह से मन को पीड़ा देता है। मैं चाहूंगा की मेरी इंडिया टीम और आपके कुछ लोग मिलकर के इस पर हम कुछ अगर बना सकते हैं तो मुझे खुशी होगी कोई व्यवस्था हम विकसित करें।

साथियों,
ये माहौल इन दिनों इतना विविधता भरा है। और मैंने देखा है कि दीपावली की पर्व में रसोई घर भी बहुत बीज़ी होता है। भांति-भांति की चीजे बनती है। और मैं देख रहा हूँ कि इस बार खबरों के रसोई जो है, उसमें भी भरपूर मसाला है। क्योंकि पांच राज्य तो आपके हाथ में है ही है। वर्ल्ड कप भी है और आप में से कुछ लोगों को संकट की घड़ी में भी जाना पड़ा है। रिपोर्टिंग के लिए युद्ध भूमि में जाना पड़ा है। तो मसाला भरपूर है जी। लेकिन उस सोशल मीडिया भी नया मसाला आपको परोसता रहता है तो उसके कारण आपको जो रिपोर्टर्स हैं, उनके लिए मुसीबत बहुत बढ़ गई है। वरना गांव या दूर दराज जिलों में जो रिपोर्टर थे। वो ही आपके लिए अल्टीमेट वर्ल्ड था उसने जो भेजा आप मानते थे यार अपना आदमी है सही बताया होगा। लेकिन उसी समय एक सोशल मीडिया में नजर पड़ता है उस डिस्ट्रिक्ट से खबर है ये नहीं आ रही है, ये नहीं है वो है तो फिर आप उसको कहते हैं यार तू क्या भेजता है? तो प्रेशर उसका बढ़ रहा है और मैंने देखा है कि काफी मीडिया हाउस की एफिशियंसी इसलिए भी बढ़ रही है कि सोशल मीडिया की मदद से वो डिस्ट्रिक्ट लेवल की चीजों को वेरिफाइ कर रहा है। एक बड़ा बदलाव नजर आ रहा है। और मुझे पक्का विश्वास है कि ये बदलते हुए खास करके टेक्नोलॉजी की दुनिया है उसका प्रभाव बहुत तेजी से हमारी सभी व्यवस्था में बढ़कर आए। दो-तीन चीजें हैं जिसपर मैं आपकी मदद चाहता हूं। और मैं आशा करता हूँ कि, और मदद इसलिए चाहता हूं। और कोई किसी से इसलिए मांगता है कि जब पता है कि मदद मिलेगी। वो ऐसे ही सोने का जाल कोई पानी में नहीं डालता है। मैं तो नहीं डालता हूं। और मेरा भरोसा इसलिए है कि स्वच्छता का अभियान जो है, उसको जीस प्रकार से मीडिया ने तवज्जो दी, चाहे वो प्रिंट हो, चाहे वो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो। एक प्रकार से उसको हरेक ने अपना काम माना और उसमें कभी पूर्णविराम नहीं आने दिया। उसमें नए-नए रंग भरते चले गए। उसमें लगातार उस व्यवस्था को, उस आंदोलन को, उस भावना को प्राणवान बनाया है, और इसके लिए मैं जब भी मौका मिलता है मीडिया जगत का अभिनन्दन करता हूं, धन्यवाद करता हूं, लेकिन उसमें मुसीबत ये हुई कि मेरी अपेक्षाएं बढ़ती गई। पहले तो अगर आप ये न करते तो मैं कहता ही नहीं, यार इनको क्या कहे, लेकिन अब आप करते हैं तो कहने का मन करता है।

दो चीज़े मुझे लगती है। एक- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण, और उसमें भी डीप फेक के कराण जो एक नया संकट आ रहा है। भारत का बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जिसके पास वेरिफिकेशन के लिए या ऑथेंटिफिकेशन के लिए उसके पास को पैरालेल व्यवस्था नहीं है। और बाय एंड लार्ज आजादी की लड़ाई से लेकर के भारत में जिस चजों से मीडिया शब्द जुड़ता है उसकी एक इज्जत है। जैसे कोई भी व्यक्ति को गेरुए कपड़े है, तो हमारे यहां स्वाभाविक रूप से विरासत में इज्जत मिल जाती है उसको। वैसा मीडिया को भी है। एक विरासत का लाभ उसको मिलता है। और उसके कारन डीप-फेक भी हो तो भी वो भरोसा कर लेता है, यार ऐसे थोड़े ही आया होगा, कुछ तो होगा। और ये बहुत बड़े संकट की तरफ ले जाएगा समाज को और शायद वो असंतोष की आग भी बहुत तेजी से फैला सकता है। समाज जीवन की व्यवस्थाओं को और यह बहुत मुश्किल काम होता है, बहुत मुश्किल काम होता है। मान लीजिए कहीं कोई एक गलत चीज़ ने कोई समस्या पैदा कर दी। अगर सरकार को वहाँ पहुंचना है तो डिस्टेंस भी तो तो मैटर करता है। अब आपको तो डिस्टेन्स समय मैटर ही नहीं करता है, तुरंत पहुँच जाता है। अगर लोगों को एजुकेट कर सकते हैं हम हमारे कार्यक्रमों के द्वारा की आखिर है क्या? आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कैसे काम कर रहा है? डीप फेक क्या कर सकता है? और कितना बड़ा संकट पैदा कर सकता है? और उसमें जो चाहे वो बना सकते हैं जी ।

मैंने अभी एक वीडियो देखा है जिसमें मैं घर में गरबे कर रहा हूं। और मैं खुद भी देख रहा क्या बढ़िया बनाया है। जबकि मैं स्कूल एज के बाद मुझे मौका नहीं मिला कभी। स्कूल में बहुत अच्छा खेलता था गरबे, बहुत ही अच्छा खेलता था, लेकिन बाद में कभी मौका नहीं मिला। लेकिन अभी जैसे आज ही बनाया ऐसा वीडियो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की ताकत है, जिसने बना के रख दिया है और चल रहा है, और जो मुझे प्यार करते है वो भी इसको फॉर्वर्ड कर रहे हैं? मैं औरों का उदाहरण देना नहीं चाहता हूँ इसलिए मैंने दिया नहीं। मैंने अपना ही दिया, लेकिन एक चिंता का विषय है जी। हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हम जैसे सोसाइटी जो विविधताओँ से भरी है, पहले मूवी आते थे, एक आध कहावत उस मूवी में आ जाए, आती थी चली जाती थी। आज एक-आध कहावत आ जाए तो पूरी मूवी चलना बंद हो जाए, मुश्किल हो जाता है। कि तुमने उस समाज का अपमान किया, वो उस किया तिगुना किया, वो अरबों खरबों, करोड़ों रुपये कुछ भी खर्च किए हो कोई पूछने वाले नहीं है तुम जवाब दो कि तुमने ये क्या किया, ये हाल है। ऐसे में आप, इस शास्त्र को तो समझाने से तो कोई लाभ बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन उसके प्रभाव क्या हो रहे हैं उदाहरणों के साथ तो कोई भी वैसे, मुझे जब इस विषय को आगे बढ़ाने वाले चैट जेपीटी के लोग मिले थे तो मैंने उनको कहा था कि जैसे सिगरेट पे आता है कि इट्स कैंसरस। पीना या नहीं पीना ये तुम्हारी मर्जी लेकिन लिखा हुआ रहता है। ये हेल्थ के लिए हेजार्ड है ऐसा लिखा हुआ रहता है। मैंने कहा कि तुम्हारा जो भी चैट जेपीटी का उपयोग करता है या इस प्रकार से उपयोग करता है तो वहां आना चाहिए कि डीप फेक, फिर उसे देखे आनंद करे जो करना हो वो करे लेकिन आना चाहिए। उन्होंने भी कहा साहब मुझे भी बड़ी चिंता है कि मैंने कर तो दिया, लेकिन कैसे रुकेगा? तो ये बड़ा चिंता का विषय है।

दूसरी मेरी एक अपेक्षा है जीसको मैं समझता हूं कि आप जरूर मदद कर सकते हैं। किसी भी समाज में, व्यक्ति में, राष्ट्र जीवन में कुछ पल आते हैं, कुछ कालखंड आता है। जो हमें बहुत बड़ी ऊँचाई पर जाने के लिए जम्प दे देता है। आज मैं जो वैश्विक परिस्थितियां देख रहा हूँ, जिस जगह पर हूं वहां ज्यादा गहराई में देखने का अवसर मिलता है। मैं समझता हूँ शायद ऐसा काल हम लोगों के सामने हम देख पा रहे हैं। हमारा ये कालखंड उस भव्यता की तरफ जाने वाला कालखंड से जुड़ा हुआ है। विकसित भारत की बात ये शब्द नहीं है दोस्तों, ये जमीनी सच्चाई है। पूरी संभावना है। अब जैसे इस बार वोकल फॉर लोकल आप सबने भी मेरी मदद की। ठीक है, अभी तो लोगो का दिमाग दिए तक रहता है उनको लगता है वोकल फॉर लोकल मतलब दीया खरीदना। उन्हें ये मालूम नहीं कि मैं गणेश चतुर्थी में छोटी आंख वाले गणेशजी क्यों लेता हूं और कहां से लेता हूं ? हमारे देश के गणेश जी तो छोटी आंखों की हो ही नहीं सकते। लेकिन लेता है पता नहीं उसको। अगर हम वोकल फॉर लोकल, इस विषय को जितना बल दिया, और मैं इस छठ पूजा के साथ जोड़ करके हिसाब लगाऊं, तो इस एक वीक में साढ़े चार लाख करोड़ से ज्यादा का कारोबार हुआ है। ये देश के लिए बहुत बड़ी बात बात है और उसमें हर छोटे मोटे व्यक्ति की जिंदगी में कमाई होती है। और मैं इसी ताकत के आधार पर कहता हूँ की हम विकसित भारत के विषय को बहुत सफलतापूर्वक आगे बढ़ा सकते हैं, लेकिन उसके लिए एक विश्वास पैदा करना होता है, सकारात्मक चीजों से लोगों को, किसी की वाहवाही करने की जरूरत नहीं है। असत्य को दबाने की जरूरत नहीं है, वो मैं आपसे अपेक्षा भी नहीं करूंगा। लेकिन जो चीजों में सामर्थ्य है, जो देश को आगे बढ़ा सकता है, ऐसी चीजों को हम बल दे सकते हैं और ये भी सही है कि विकास आर्थिक पावतें ये अब केंद्र में रहने वाली है आने वाले 25 साल तक। क्योंकि विश्व भी हमारा मूल्यांकन उस बात पर कर रहा है और इन दिनों जहां हम हैं और जिस प्रकार से बढ़ रहे हैं, विश्व उसको स्वीकार कर रहा है। मैं अभी आपके बीच आया हूं, लेकिन मैं चुनाव के मैदान से नहीं आया हूं, मैं ग्लोबल साउथ समिट में से आया हूँ। 130 देशों का ग्लोबल साउथ समिट में होना, ये अपनेआप में, मैं मानता हूं जो आपके यहाँ जो विदेश मंत्रालय की चीजें देखता होंगे उन्हें लगता होगा कि भाई ये बहुत बड़ी बात है। यानि, कुछ तो है जिसके कारण यह हो रहा है। हम, 2047, विकसित भारत का मिजाज, आप देखिए, दांडी यात्रा, भारत का मीडिया का ध्यान बहुत कम गया था।

महात्मा गाँधी जब दांडी.. भारत में उस समय जो भी मीडिया पैदा हुआ था वो सिर्फ आजादी की लड़ाई के लिए पैदा हुआ था। वो अंग्रेजों के खिलाफ़ जंग के लिए भी तैयार था। लेकिन उसके बावजूद भी उसको दांडी यात्रा की ताकत नजर नहीं आई थी। पहली बार जब एक विदेशी पत्रकार ने उसकी स्टोरी की उसके बाद देश में लोगों को चौकन्ना कर दिया कि ये क्या हो रहा है? वरना लगता यही था की यार छोटे से रूट पर ढाई सौ लोग चल रहे हैं। और एक चुटकी भर नमक उठाकर होना क्या है? क्योंकि उस पत्रकार ने लिखा था कि ये कोई बहुत बड़े रिवोल्यूशन का ये मजबूती है इसमें। और उसके बाद हिंदुस्तान के मीडिया ने भी उस चीज़ को और वो एक ऐसा टर्निंग प्वाइंट बन गया कि जिसने देश को विश्वास पैदा कर दिया कि अब आजादी लेकर रहेंगे। ये अपनेआप में बहुत बड़ा... मैं समझता हूँ कि को के संकट में, दुनिया की तुलना में हमारा जो कुछ भी अचीवमेंट है उसने भारत के लोगों में विश्वास पैदा किया है, दुनिया में भी पैदा किया है कि भारत अब रुकने वाला नहीं है। आप कैसे मदद कर सकते हैं? लोगों को कैसे मोटिवेट कर सकते हैं? आगे बढ़ने के सपने, अब जैसे साढ़े 13 करोड़ लोगों का 5 साल में गरीबी से बाहर आना, वो तो एक विषय, लेकिन इतने परिवार जब न्यू मिडिल क्लास बनते हैं तो उसके एसपेरेशन का लेवल अपर मिडल क्लास का होता है। वो भी चाहते है मेरे घर में टीवी आ जाए, कोई चाहता है अब पंखा नहीं ऐसी आ जाए, वो भी चाहता है चेयर नहीं सोफा आ जाए। जो उसके एस्पिरेशन है वो किसी की बराबरी में बैठने के होते हैं। वो चाहता है वो घर के बाहर साइकिल नहीं अब घर के बाहर गाड़ी खड़ी होनी चाहिए। ये नहीं, ये बहुत बड़ा उसका इको इफेक्ट होता है इस व्यवस्थाओं पर। और वो, मैं मानता हूँ आज जो इस दिवाली में इतना बड़ा मार्केट उसके पीछे एक कारण ये एस्पिरेशनल सोसाइटी है। जो बहुत तेजी से बराबरी करना चाहती है। और आज उसकी जेब में बैंक अकाउंट है, रुपे कार्ड है। रेहडी पटरी ठेले वाले लोग उनको, दो राउंड, तीन राउंड बैंक से लोन के लिए फोन प मैसेज आता है कि भाई तुम्हारा कारोबार अच्छा है, तुम और लोन ले लो। और एन पी एम हार्डली वन परसेंट। एक बड़ा इंटरेस्टिंग उदाहरण मैंने कई बार आपने मुझे सुना भी होगा, लेकिन मैं दोबारा उसको रिपीट करने में आपका समय ले रहा हूँ। मैं मध्य प्रदेश में शहडोल क्षेत्र में गया था। दो चीजे मुझे बड़ी ही यानी इंस्पायर कर गई। एक तो मेरा कार्यक्रम था, मैं एक आदिवासी गांव में समय बिताना चाहता था, तो मैं शहडोल के पास गया था। तो वहां पर वुमेन्स के सेल्फ हेल्प ग्रुप हैं।

उसकी कुछ बहनों को उन्होंने बुलाया था और कुछ यूथ को बुलाया था। नौजवानों को। जब मैं नौजवानों से मिला तो मैंने पूछा आपका गांव? तो बोले मिनी ब्राज़ील है। अब मैं इतने साल मध्य प्रदेश में संगठन का काम किया था। मैं मुख्यमंत्री रहा, लेकिन मैंने कभी सुना नहीं था। मेरा कान सतर्क हो गया। मैंने कहा कि ये मिनी ब्राज़ील क्या है। बोले साहब हमारे हर गली में फुटबॉल क्लब है और बोले हमारी यहां, और एक कोई मुस्लिम सज्जन थे नाम उनका मैं भूल गया। वे पहले खेलते थे, फिर शायद उनको फिजिकल प्रॉब्लम हुआ, फिर वो फौज के रूप में काम किया। वे उस गांव के थे, उन्होंने इसको एक मिशन मोड में लिया और परिणाम ये कि, मुझे बता रहे थे कि साहब हमारे कुछ घर ऐसे हैं जहां की चार-चार पीढ़ी के लोग। फुटबॉल के नेशनल प्लेयर रहे हैं। और बोले हमारे यहां गांव में जब फुटबॉल का फेस्टिवल होता है, यार मैं एक बार फेस्टिवल करते हैं तो अगल-बगल के 20,000 लोग तो दर्शक होते हैं। छोटे बच्चे फुटबॉल। 80 साल के बुजुर्ग फुटबॉल। मैंने कहा भाई मानना पड़ेगा शायद ब्राजिल में भी ऐसा नहीं होगा। अब ये हमारे देश की ताकत है। दूसर- मैं उन महिलाओं को मिला। तो मैंने कहा आप लोगों को बुलाया तो इसे सेलेक्ट कैसे कर लिया ? तो बोले हमें बताया गया कि जो लखपति है वो आ सकते हैं। मैंने कहा ये क्या है? तो बोले हमारा जो वुमेन सेल्फ हेल्प ग्रुप हैं। हम पिछले 11 बहनें हैं किसी में 13 हैं तेरा हैं, और हम सभी लोग एक साल में एक लाख रुपये से ज्यादा कमाने वाली बहने हैं। ये मेरे लिए एक बड़ी खुशी की बात थी और उसी में से मैं इंस्पायर हो कर के मैंने भी एक टारगेट तय किया है। कि हम दो करोड़ महिलाएं जो वुमेन सेल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़ी है, दो करोड़ लखपति महिलाएं बनाने का काम एचीव करेंगे। दो करोड़ लखपति बनाने का यह ड्रीम देखने का इंस्पिरेशन मेरा वहां था। और ये सारे लोग कोई पांचवीं, आठवीं, नौवीं पड़े हुए थे। कोई ज्यादा पढ़े नहीं थे। मैंने एक बहन से पूछा, मैंने कहा बहन इतने पैसे कमा रहे हो तो क्या कर रहे हो? तो उसने कहा गहने खरीदे हैं। मेरा भी मुझे था शायद पहला जवाब तो यही आएगा और वो स्वाभाविक है कोई मैं अन्याय नहीं कर रहा हूँ, लेकिन स्वाभाविक था। क्योंकि उसको सुरक्षा दिखती है उसमें। जीवन की सुरक्षा का वो एक साधन है उसके लिए। वो मौसक का साधन नहीं है। हमारे यहाँ ये गलत सोच है।

उसको लगता है कि मेरे जीवन में संकट के समय ये काम आने वाला है तो इस सोशल सिक्योरिटी हमारे यहां। तो उसने मुझे कहा गहने खरीदना है मुझे, कुछ महीने के लिए। फिर एक दूसरी महीना ने हाथ ऊपर किया। मैंने कहा आपने क्या किया? आप क्या पढ़ी हैं, मैं आठवीं या नौवीं में कुछ बताया। 30-32 साल की उम्र होगी। बोली, मैं लखपति दीदी हूं। मैंने कहा क्या करती हो क्या किया पैसों का? बोले मेरे पति मजदूरी करते हैं, और वो साइकिल पर जाते हैं। तो मैंने उनके लिए स्कूटी खरीदी और उनको गिफ्ट की। एक आदिवासी महिला मुझे कह रही है कि मेरे पति मजदूरी करने के लिए साइकिल पर जाते हैं। मैंने उनके लिए स्कूटी खरीदी। अब मेरे लिए साइकिल और स्कूटी नहीं है। मेरे दिमाग में स्थिर होता है कि मेरा देश की ताकत यहां है। यह एस्पिरेशन जो है ना, ये मिज़ाज है वो मेरे देश को बदलेगा। फिर मैंने कहा आगे क्या हुआ उसका? बोली कि फिर मुझे किसी ने बताया कि हमको अब बैंक से लोन मिल सकता है क्योंकि हम एक लखपति हैं 2 साल से मैं इतना कमाती हूँ। तो बोले मैं बैंक वालों से मिली। अब मुझे कुछ आता नहीं थी, लेकिन मुझे किसी ने स्थानीय सरकार के किसी व्यक्ति ने मदद की। तो बोले मुझे पता चला कि मैं बैंक से लोन ले सकती हूं तो बोला मैंने सोचा कि मैं ट्रैक्टर के लिए लोन लूं। मैंने कह ये हिम्मत कहाँ से आई तुम्हारी, कहां साइकिल, कहां स्कूटी और कहां ट्रैक्टर?, बोले नहीं बैंक से पैसा मिलता था और मुझे लगता था कि मैं पैसे दे दूंगी वापस। तो बोले मैंने ट्रैक्टर लिया। मैंने ट्रैक्टर मेरे पति को गिफ्ट किया, मेरे पति को मैंने ड्राइविंग सिखवाया और बोले मेरे पति आजकल आठ से 10 गांवों में ट्रैक्टर से खेत जोतने की मजदूरी करते हैं।

और बोले कि छह महीने के अंदर ट्रैक्टर के लोन की पूरी भरपाई हो जाएगी और मैं आज गर्व से कह सकती हूँ कि मेरा परिवार लखपति है। शहडोल के पास एक ट्राइबल गांव का ये मिज़ाज। एक आदिवासी 30- 32 साल की बेटी के मन में ये कॉन्फिडेंस। ये मुझे कहता है कि देश 2047 में विकसित हो करके रह सकता है अगर हम सब की ताकत लग जाए। और ये कोई किसी पार्टी का एजेंडा नहीं है, भले ही ये इस पार्टी के स्थान पर है, लेकिन पार्टी का कार्यक्रम नहीं है, देश का है और मुझे इसमें आपकी मदद चाहिए। अब उसमें कैसे, जैसे मान लीजिए आप ही तय करेंगे कि 10 ऐसे शहर देश में, वो आपके बिजनेस हाउसेस आज बड़े इवेंड करते हैं, इसी मुद्दे पर की इकॉनमी वन ट्रिलियन कब तक होगी और कैसे हो सकती है। इस शहर की चर्चा करते हैं। इस शहर की वन ट्रिलियन है तीन ट्रिलियन कैसे हो सकती है? बताइए आइए सब विद्वान आइये बैठिये मेरे साथ चर्चा कीजिए, आप बुलाइए अपने स्टूडियो पर आप सबमिट कीजिये। 10 सिटी सिर्फ 10 सिटी पकड़िए साहब। वहाँ आप 2 साल तक ये मोमेंटम लाइए, कोई न कोई बिज़नेस हाउस एक-दो समिट कर ले। हर महीने दो महीने कोई न कोई समिट हो रहा है, और विषय चर्चा में चल रहा है कि भाई इस शहर को मुझे मेरे राज्य का इकॉनमी का ड्राइविंग इंजन बना देना है। बन जाएगा जी। पक्का बच जाएगा। और इसलिए मुझे जो दूसरी मदद आपसे चाहिए वो दूसरी मदद मुझे ये चाहिए। ओर त्योहार में तो कुछ मांग भी सकते हैं, जी। और मैं तो ऐसा इंसान हूं, जीसको मांगने का पूरा हक है। और इसलिए मैं आपसे मांग रहा हूं। कि आप कुछ ना कुछ योजना बनाइए कि ये 10 शहर अपनी इकोनॉमी को डबल करने के लिए क्या कर सकते हैं? क्या योजना है, और वही ड्राइविंग फोर्स बनने वाला है, जी। मुझे पूरी समझ है इन चीजों की। मुझे उन विद्वानों की लिस्ट में मेरा नाम नहीं हो सकता है, लेकिन धरती के आंकड़े निकालोगे तो दिखाई दूंगा कहीं पर दोस्तों, पक्का दिखाई दूंगा और इसी विश्वास के साथ मैं आप सबसे दीपावली की और मैं गुजराती हूँ, हमारे लिए नया वर्ष होता है, आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूँ। आप के उज्ज्वल भविष्य के लिए आपकी व्यक्तिगत जीवन में भी इच्छित सारी सिद्धियां आपको प्राप्त हो, आपके परिवारजन को भी सुख, शांति, समृद्धि और उससे भी बड़ा संतोष मिले। इसी भावना के साथ आप सब आए। मैं आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ, बहुत बहुत धन्यवाद।

 

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