Knowledge is immortal and is relevant in every era: PM Modi

Published By : Admin | May 14, 2016 | 13:13 IST
QuoteAt Simhasth Kumbh convention, we are seeing birth of a new effort: PM
QuoteWe belong to a tradition where even a Bhikshuk says, may good happen to every person: PM
QuoteWe should tell the entire world about the organising capacity of an event like the Kumbh: PM
QuoteLets hold Vichar Kumbh every year with devotees...discuss why we need to plant trees, educate girl child: PM

हम लोगों का एक स्वभाव दोष रहा है, एक समाज के नाते कि हम अपने आपको हमेशा परिस्थितियों के परे समझते हैं। हम उस सिद्धांतों में पले-बढ़े हैं कि जहां शरीर तो आता और जाता है। आत्मा के अमरत्व के साथ जुड़े हुए हम लोग हैं और उसके कारण हमारी आत्मा की सोच न हमें काल से बंधने देती है, न हमें काल का गुलाम बनने देती है लेकिन उसके कारण एक ऐसी स्थिति पैदा हुई कि हमारी इस महान परंपरा, ये हजारों साल पुरानी संस्कृति, इसके कई पहलू, वो परंपराए किस सामाजिक संदर्भ में शुरू हुई, किस काल के गर्भ में पैदा हुई, किस विचार मंथन में से बीजारोपण हुआ, वो करीब-करीब अलब्य है और उसके कारण ये कुंभ मेले की परंपरा कैसे प्रारंभ हुई होगी उसके विषय में अनेक प्रकार के विभिन्न मत प्रचलित हैं, कालखंड भी बड़ा, बहुत बड़ा अंतराल वाला है।

कोई कहेगा हजार साल पहले, कोई कहेगा 2 हजार साल पहले लेकिन इतना निश्चित है कि ये परंपरा मानव जीवन की सांस्कृतिक यात्रा की पुरातन व्यवस्थाओं में से एक है। मैं अपने तरीक से जब सोचता हूं तो मुझे लगता है कि कुंभ का मेला, वैसे 12 साल में एक बार होता है और नासिक हो, उज्जैन हो, हरिद्वार हो वहां 3 साल में एक बार होता है प्रयागराज में 12 साल में एक बार होता है। उस कालखंड को हम देखें तो मुझे लगता है कि एक प्रकार से ये विशाल भारत को अपने में समेटने का ये प्रयास ये कुंभ मेले के द्वारा होता था। मैं तर्क से और अनुमान से कह सकता हूं कि समाज वेदता, संत-महंत, ऋषि, मुनि जो हर पल समाज के सुख-दुख की चर्चा और चिंता करते थे। समाज के भाग्य और भविष्य के लिए नई-नई विधाओं का अन्वेषण करते थे, Innovation करते थे। इन्हें वे हमारे ऋषि जहां भी थे वे बाह्य जगत का भी रिसर्च करते थे और अंतर यात्रा को भी खोजने का प्रयास करते थे तो ये प्रक्रिया निरंतर चलती रही, सदियों तक चलती रही, हर पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रही लेकिन संस्कार संक्रमण का काम विचारों के संकलन का काम कालानुरूप विचारों को तराजू पर तौलने की परंपरा ये सारी बातें इस युग की परंपरा में समहित थी, समाहित थी।

एक बार प्रयागराज के कुंभ मेले में बैठते थे, एक Final decision लिया जाता था सबके द्वारा मिलकर के कि पिछले 12 साल में समाज यहां-यहां गया, यहां पहुंचा। अब अगले 12 साल के लिए समाज के लिए दिशा क्या होगी, समाज की कार्यशैली क्या होगी किन चीजों की प्राथमिकता होगी और जब कुंभ से जाते थे तो लोग उस एजेंडा को लेकर के अपने-अपने स्थान पर पहुंचते थे और हर तीन साल के बाद जबकि कभी नासिक में, कभी उज्जैन में, कभी हरिद्वार में कुंभ का मेला लगता था तो उसका mid-term appraisal होता था कि भई प्रयागराज में जो निर्णय हम करके गए थे तीन साल में क्या अनुभव आया और हिंदुस्तान के कोने-कोने से लोग आते थे।

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30 दिन तक एक ही स्थान पर रहकर के समाज की गतिविधियों, समाज की आवश्यकताएं, बदलता हुआ युग, उसका चिंतन-मनन करके उसमें फिर एक बार 3 साल का करणीय एजेंडा तय होता था। In the light of main Mahakumbh प्रयागराज में होता था और फिर 3 साल के बाद दूसरा जब कुंभ लगता था तो फिर से Review होता था। एक अद्भुत सामाजिक रचना थी ये लेकिन धीरे-धीरे अनुभव ये आता है कि परंपरा तो रह जाती है, प्राण खो जाता है। हमारे यहां भी अनुभव ये आया कि परंपरा तो रह गई लेकिन समय का अभाव है, 30 दिन कौन रहेगा, 45 दिन कौन रहेगा। आओ भाई 15 मिनट जरा डुबकी लगा दें, पाप धुल जाए, पुण्य कमा ले और चले जाए।

ऐसे जैसे बदलाव आय उसमें से उज्जैन के इस कुंभ में संतों के आशीर्वाद से एक नया प्रयास प्रारंभ हुआ है और ये नया प्रयास एक प्रकार से उस सदियों पुरानी व्यवस्था का ही एक Modern edition है और जिसमें वर्तमान समझ में, वैश्विक संदर्भ में मानव जाति के लिए क्या चुनौतियां हैं, मानव कल्याण के मार्ग क्या हो सकते हैं। बदलते हुए युग में काल बाह्य चीजों को छोड़ने की हिम्मत कैसे आए, पुरानी चीजों को बोझ लेकर के चलकर के आदमी थक जाता है। उन पुरानी काल बाह्य चीजों को छोड़कर के एक नए विश्वास, नई ताजगी के साथ कैसे आगे बढ़ जाए, उसका एक छोटा सा प्रयास इस विचार महाकुंभ के अंदर हुआ है।

जो 51 बिंदु, अमृत बिंदु इसमें से फलित हुए हैं क्योंकि ये एक दिन का समारोह नहीं है। जैसे शिवराज जी ने बताया। देश औऱ दुनिया के इस विषय के जानकार लोगों ने 2 साल मंथन किया है, सालभर विचार-विमर्श किया है और पिछले 3 दिन से इसी पवित्र अवसर पर ऋषियों, मुनियों, संतों की परंपरा को निभाने वाले महान संतों के सानिध्य में इसका चिंतन-मनन हुआ है और उसमें से ये 51 अमृत बिंदु समाज के लिए प्रस्तुत किए गए हैं। मैं नहीं मानता हूं कि हम राजनेताओं के लिए इस बात को लोगों के गले उतारना हमारे बस की बात है। हम नहीं मानते हैं लेकिन हम इतना जरूर मानते हैं कि समाज के लिए निस्वार्थ भाव से काम करने वाले लोग चाहे वो गेरुए वस्त्र में हो या न हो लेकिन त्याग और तपस्था के अधिष्ठान पर जीवन जीते हैं। चाहे एक वैज्ञानिक अपनी laboratory में खपा हुआ हो, चाहे एक किसान अपने खेत में खपा हुआ हो, चाहे एक मजदूर अपना पसीना बहा रहा हे, चाहे एक संत समाज का मार्गदर्शन करता हो ये सारी शक्तियां, एक दिशा में चल पड़ सकती हैं तो कितना बड़ा परिवर्तन ला सकती हैं और उस दिशा में ये 51 अमृत बिंदु जो है आने वाले दिनों में भारत के जनमानस को और वैश्विक जनसमूह को भारत किस प्रकार से सोच सकता है और राजनीतिक मंच पर से किस प्रकार के विचार प्रभाग समयानुकूल हो सकते हैं इसकी चर्चा अगर आने वाले दिनों में चलेगी, तो मैं समझता हूं कि ये प्रयास सार्थक होगा।

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हम वो लोग हैं, जहां हमारी छोटी-छोटी चीज बड़ी समझने जैसी है। हम उस संस्कार सरिता से निकले हुए लोग हैं। जहां एक भिक्षुक भी भिक्षा मांगने के लिए जाता है, तो भी उसके मिहिल मुंह से निकलता है ‘जो दे उसका भी भला जो न दे उसका भी भला’। ये छोटी बात नहीं है। ये एक वो संस्कार परम्परा का परिणाम है कि एक भिक्षुक मुंह से भी शब्द निकलता है ‘देगा उसका भी भला जो नहीं देगा उसका भी भला’। यानी मूल चिंतन तत्वभाव यह है कि सबका भला हो सबका कल्याण हो। ये हर प्रकार से हमारी रगों में भरा पड़ा है। हमी तो लोग हैं जिनको सिखाया गया है। तेन तत्तेन भूंजीथा। क्या तर के ही भोगेगा ये अप्रतीम आनन्द होता है। ये हमारी रगों में भरा पड़ा है। जो हमारी रगों में है, वो क्या हमारे जीवन आचरण से अछूता तो नहीं हो रहा है। इतनी महान परम्परा को कहीं हम खो तो नहीं दे रहे हैं। लेकिन कभी उसको जगजोड़ा किया जाए कि अनुभव आता है कि नहीं आज भी ये सामर्थ हमारे देश में पड़ा है।

किसी समय इस देश के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने देश को आहवान किया था कि सप्ताह में एक दिन शाम का खाना छोड़ दीजिए। देश को अन्न की जरूरत है। और इस देश के कोटी-कोटी लोगों ने तेन त्यक्तेन भुंजीथा इसको अपने जीवन में चरितार्थ करके, करके दिखाया था। और कुछ पीढ़ी तो लोग अभी भी जिन्दा हैं। जो लालबहादुर शास्त्री ने कहा था। सप्ताह में एक दिन खाना नहीं खाते हैं। ऐसे लोग आज भी हैं। तेन त्यक्तेन भुंजीथा का मंत्र हमारी रगों में पला है। पिछले दिनों में ऐसे ही बातों-बातों में मैंने पिछले मार्च महीने में देश के लोगों के सामने एक विषय रखा था। ऐसे ही रखा था। रखते समय मैंने भी नहीं सोचा था कि मेरे देश के जनसामान्य का मन इतनी ऊंचाइयों से भरा पड़ा है। कभी-कभी लगता है कि हम उन ऊंचाईयों को पहुंचने में कम पड़ जाते हैं। मैंने इतना ही कहा था। अगर आप सम्पन्न हैं, आप समर्थ हैं, तो आप रसोई गैस की सब्सिडी क्या जरूरत है छोड़ दीजिये न। हजार-पंद्रह सौ रुपये में क्या रखा है। इतना ही मैंने कहा था। और आज मैं मेरे देश के एक करोड़ से ज्यादा परिवारों के सामने सर झुका कर कहना चाहता हूं और दुनिया के सामने कहना चाहता हूं। एक करोड़ से ज्यादा परिवारों ने अपनी गैस सब्सिडी छोड़ दी। तेन त्यक्तेन भुंजीथा । और उसका परिणाम क्या है। परिणाम शासन व्यवस्था पर भी सीधा होता है। हमारे मन में विचार आया कि एक करोड़ परिवार गैस सिलेंडर की सब्सिडी छोड़ रहे हैं तो इसका हक़ सरकार की तिजोरी में भरने के लिये नहीं बनता है।

ये फिर से गरीब के घर में जाना चाहिए। जो मां लकड़ी का चूल्हा जला कर के एक दिन में चार सौ सिगरेट जितना धुआं अपने शरीर में ले जाती है। उस मां को लकड़ी के चूल्हे से मुक्त करा के रसोई गैस देना चाहिए और उसी में से संकल्प निकला कि तीन साल में पांच करोड़ परिवारों को गैस सिलेंडर दे कर के उनको इस धुएं वाले चूल्हे से मुक्ति दिला देंगे।

यहाँ एक चर्चा में पर्यावरण का मुद्दा है। मैं समझता हूं पांच करोड़ परिवारों में लकड़ी का चूल्हा न जलना ये जंगलों को भी बचाएगा, ये कार्बन को भी कम करेगा और हमारी माताओं को गरीब माताओं के स्वास्थ्य में भी परिवर्तन लाएगा। यहां पर नारी की एम्पावरमेंट की बात हुई नारी की dignity की बात हुई है। ये गैस का चूल्हा उसकी dignity को कायम करता है। उसकी स्वास्थ्य की चिंता करता है और इस लिए मैं कहता हूं - तेन त्यक्तेन भुंजीथा । इस मंत्र में अगर हम भरोसा करें। सामान्य मानव को हम इसका विश्वास दिला दें तो हम किस प्रकार का परिवर्तन प्राप्त कर सकते हैं। ये अनुभव कर रहे हैं।

हमारा देश, मैं नहीं मानता हूं हमारे शास्त्रों में ऐसी कोई चीज है, जिसके कारण हम भटक जाएं। ये हमलोग हैं कि हमारी मतलब की चीजें उठाते रहते हैं और पूर्ण रूप से चीजों को देखने का स्वभाव छोड़ दिया है। हमारे यहां कहा गया है – नर करनी करे तो नारायण हो जाए - और ये हमारे ऋषियों ने मुनियों ने कहा है। क्या कभी उन्होंने ये कहा है कि नर भक्ति करे तो नारायण हो जाए। नहीं कहा है। क्या कभी उन्होंने ये कहा है कि नर कथा करे तो नारायण हो जाए। नहीं कहा। संतों ने भी कहा हैः नर करनी करे तो नारायण हो जाए और इसीलिए ये 51 अमृत बिन्दु हमारे सामने है। उसका एक संदेश यही है कि नर करनी करे तो नारायण हो जाए। और इसलिए हम करनी से बाध्य होने चाहिए और तभी तो अर्जुन को भी यही तो कहा था योगः कर्मसु कौशलम्। यही हमारा योग है, जिसमें कर्म की महानता को स्वीकार किया गया है और इसलिए इस पवित्र कार्य के अवसर पर हम उस विचार प्रवाह को फिर से एक बार पुनर्जीवित कर सकते हैं क्या तमसो मा ज्योतिरगमय। ये विचार छोटा नहीं है। और प्रकाश कौनसा वो कौनसी ज्योति ये ज्योति ज्ञान की है, ज्योति प्रकाश की है। और हमी तो लोग हैं जो कहते हैं कि ज्ञान को न पूरब होता है न पश्चिम होता है। ज्ञान को न बीती हुई कल होती है, ज्ञान को न आने वाली कल होती है। ज्ञान अजरा अमर होता है और हर काल में उपकारक होता है। ये हमारी परम्परा रही है और इसलिए विश्व में जो भी श्रेष्ठ है इसको लेना, पाना, पचाना internalize करना ये हमलोगों को सदियों से आदत रही है।

हम एक ऐसे समाज के लोग हैं। जहां विविधताएं भी हैं और कभी-कभी बाहर वाले व्यक्ति को conflict भी नजर आता है। लेकिन दुनिया जो conflict management को लेकर के इतनी सैमिनार कर रही है, लेकिन रास्ते नहीं मिल रहे। हमलोग हैं inherent conflict management का हमें सिखाया गया है। वरना दो extreme हम कभी भी नहीं सोच सकते थे। हम भगवान राम की पूजा करते हैं, जिन्होंने पिता की आज्ञा का पालन किया था। और हम वो लोग हैं, जो प्रहलाद की भी पूजा करते हैं, जिसने पिता की आज्ञा की अवमानना की थी। इतना बड़ा conflict, एक वो महापुरुष जिसने पिता की आज्ञा को माना वो भी हमारे पूजनीय और एक दूसरा महापुरुष जिसने पिता की आज्ञा क का अनादर किया वो भी हमारा महापुरुष।

हम वो लोग हैं जिन्होंने माता सीता को प्रणाम करते हैं। जिसने पति और ससुर के इच्छा के अनुसार अपना जीवन दे दिया। और उसी प्रकार से हम उस मीरा की भी भक्ति करते हैं जिसने पति की आज्ञा की अवज्ञा कर दी थी। यानी हम किस प्रकार के conflict management को जानने वाले लोग हैं। ये हमारी स्थिति का कारण क्या है और कारण ये है कि हम हठबाधिता से बंधे हुए लोग नहीं हैं। हम दर्शन के जुड़े हुए लोग हैं। और दर्शन, दर्शन तपी तपाई विचारों की प्रक्रिया और जीवन शैली में से निचोड़ के रूप में निकलता रहता है। जो समयानुकूल उसका विस्तार होता जाता है। उसका एक व्यापक रूप समय में आता है। और इसलिए हम उस दर्शन की परम्पराओं से निकले हुए लोग हैं जो दर्शन आज भी हमें इस जीवन को जीने के लिए प्रेरणा देता है।

यहां पर विचार मंथन में एक विषय यह भी रहा – Values, Values कैसे बदलते हैं। आज दुनिया में अगर आप में से किसी को अध्ययन करने का स्वभाव हो तो अध्ययन करके देखिये। दुनिया के समृद्ध-समृद्ध देश जब वो चुनाव के मैदान में जाते हैं, तो वहां के राजनीतिक दल, वहां के राजनेता उनके चुनाव में एक बात बार-बार उल्लेख करते हैं। और वो कहते हैं – हम हमारे देश में families values को पुनःप्रस्थापित करेंगे। पूरा विश्व, परिवार संस्था, पारिवारिक जीवन के मूल्य उसका महत्व बहुत अच्छी तरह समझने लगा है। हम उसमें पले बड़े हैं। इसलिये कभी उसमें छोटी सी भी इधर-उधर हो जाता है तो पता नहीं चलता है कि कितना बड़ा नुकसान कर रहे हैं। लेकिन हमारे सामने चुनौती है कि values और values यानी वो विषय नहीं है कि आपकी मान्यता और मेरी मान्यता। जो समय की कसौटी पर कस कर के खरे उतरे हैं, वही तो वैल्यूज़ होते हैं। और इसलिए हर समाज के अपने वैल्यूज़ होते हैं। उन values के प्रति हम जागरूक कैसे हों। इन दिनों मैं देखता हूं। अज्ञान के कारण कहो, या तो inferiority complex के कारण कहो, जब कोई बड़ा संकट आ जाता है, बड़ा विवाद आ जाता है तो हम ज्यादा से ज्यादा ये कह कर भाग जाते हैं कि ये तो हमारी परम्परा है। आज दुनिया इस प्रकार की बातों को मानने के लिए नहीं है।

हमने वैज्ञानिक आधार पर अपनी बातों को दुनिया के सामने रखना पड़ेगा। और इसलिये यही तो कुम्भ के काल में ये विचार-विमर्श आवश्यकता है, जो हमारे मूल्यों की, हमारे विचारों की धार निकाल सके।

हम जानते हैं कभी-कभी जिनके मुंह से परम्परा की बात सुनते हैं। यही देश ये मान्यता से ग्रस्त था कि हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने संतों ने समुद्र पार नहीं करना चाहिए। विदेश नहीं जाना चाहिए। ये हमलोग मानते थे। और एक समय था, जब समुद्र पार करना बुरा माना जाता था। वो भी एक परम्परा थी लेकिन काल बदल गया। वही संत अगर आज विश्व भ्रमण करते हैं, सातों समुद्र पार करके जाते हैं। परम्पराएं उनके लिए कोई रुकावट नहीं बनती हैं, तो और चीजों में परम्पराएं क्यों रुकावट बननी चाहिए। ये पुनर्विचार करने की आवश्यकता है और इसलिए परम्पराओं के नाम पर अवैज्ञानिक तरीके से बदले हुए युग को, बदले हुए समाज को मूल्य के स्थान पर जीवित रखते हुए उसको मोड़ना, बदलना दिशा देना ये हम सबका कर्तव्य बनता है, हम सबका दायित्व बनता है। और उस दायित्व को अगर हम निभाते हैं तो मुझे विश्वास है कि हम समस्याओं का समाधान खोज सकते हैं।

आज विश्व दो संकटों से गुजर रहा है। एक तरफ ग्लोबल वार्मिंग दूसरी तरफ आतंकवाद। क्या उपाय है इसका। आखिर इसके मूल पर कौन सी चीजें पड़ी हैं। holier than thou तेरे रास्ते से मेरा रास्ता ज्यादा सही है। यही तो भाव है जो conflict की ओर हमें घसीटता ले चला जा रहा है। विस्तारवाद यही तो है जो हमें conflict की ओर ले जा रहा है। युग बदल चुका है। विस्तारवाद समस्याओं का समाधान नहीं है। हम हॉरीजॉन्टल की तरह ही जाएं समस्याओं का समाधान नहीं है। हमें वर्टिकल जाने की आवश्यकता है अपने भीतर को ऊपर उठाने की आवश्यकता है, व्यवस्थाओं को आधुनिक करने की आवश्यकता है। नई ऊंचाइयों को पार करने के लिए उन मूल्यों को स्वीकार करने की आवश्यकता होती है और इसलिये समय रहते हुए मूलभूत चिंतन के प्रकाश में, समय के संदर्भ में आवश्यकताओं की उपज के रूप में नई विधाओं को जन्म देना होगा। वेद सब कुछ है लेकिन उसके बाद भी हमी लोग हैं जिन्होंने वेद के प्रकाश में उपनिषदों का निर्माण किया। उपनिषद में बहुत कुछ है। लेकिन समय रहते हमने भी वेद के प्रकाश में उपनिषद, उपनिषद के प्रकाश में समृति और स्रुति को जन्म दिया और समृति और स्रुतियां, जो उस कालखंड को दिशा देती है, उसके आधार पर हम चलें। आज हम में किसी को वेद के नाम भी मालूम नहीं होंगे। लेकिन वेद के प्रकाश में उपनिषद, उपनिषद के प्रकाश में श्रुति और समृति वो आज भी हमें दिशा देती हैं। समय की मांग है कि अगर 21वीं सदी में मानव जाति का कल्याण करना है तो चाहे वेद के प्रकाश में उपनिषद रही हो, उपनिषद के प्रकाश में समृति और श्रुति रही हो, तो समृति और श्रुति के प्रकाश में 21वीं सदी के मानव के कल्याण के लिए किन चीजों की जरूरत है ये 51 अमृत बिन्दु शायद पूर्णतयः न हो कुछ कमियां उसमें भी हो सकती हैं। क्या हम कुम्भ के मेले में ऐसे अमृत बिन्दु निकाल कर के आ सकते हैं।

मुझे विश्वास है कि हमारा इतना बड़ा समागम। कभी – कभी मुझे लगता है, दुनिया हमे कहती है कि हम बहुत ही unorganised लोग हैं। बड़े ही विचित्र प्रकार का जीवन जीने वाले बाहर वालों के नजर में हमें देखते हैं। लेकिन हमें अपनी बात दुनिया के सामने सही तरीके से रखनी आती नहीं है। और जिनको रखने की जिम्मेवारी है और जिन्होंने इस प्रकार के काम को अपना प्रोफेशन स्वीकार किया है। वे भी समाज का जैसा स्वभाव बना है शॉर्टकट पर चले जाते हैं। हमने देखा है कुम्भ मेला यानी एक ही पहचान बना दी गई है नागा साधु। उनकी फोटो निकालना, उनका प्रचार करना, उनका प्रदर्शन के लिए जाना इसीके आसपास उसको सीमित कर दिया गया है। क्या दुनिया को हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि हमारे देश के लोगों की कितनी बड़ी organizing capacity है। क्या ये कुम्भ मेले का कोई सर्कुलर निकला था क्या। निमंत्रण कार्ड गया था क्या।

हिन्दुस्तान के हर कोने में दुनिया में रहते हुए भारतीय मूल के लोगों को कोई इनविटेशन कार्ड गया था क्या। कोई फाइवस्टार होटलों का बुकिंग था क्या। एक सिपरा मां नदी के किनारे पर उसकी गोद में हर दिन यूरोप के किसी छोटे देश की जनसंख्या जितने लोग आते हों, 30 दिन तक आते हों। जब प्रयागराज में कुंभ का मेला हो तब गंगा मैया के किनारे पर यूरोप का एकाध देश daily इकट्ठा होता हो, रोज नए लोग आते हों और कोई भी संकट न आता हो, ये management की दुनिया की सबसे बड़ी घटना है लेकिन हम भारत का branding करने के लिए इस ताकत का परिचय नहीं करवा रहे हैं।

मैं कभी-कभी कहता हूं हमारे हिंदुस्तान का चुनाव दुनिया के लिए अजूबा है कि इतना बड़ा देश दुनिया के कई देशों से ज्यादा वोटर और हमारा Election Commission आधुनिक Technology का उपयोग करते हुए सुचारु रूप से पूरा चुनाव प्रबंधन करता है। विश्व के लिए, प्रबंधन के लिए ये सबसे बड़ा case study है, सबसे बड़ा case study है। मैं तो दुनिया की बड़ी-बड़ी Universities को कहता हूं कि हमारे इस कुंभ मेले की management को भी एक case study के रूप में दुनिया की Universities को study करना चाहिए।

हमने अपने वैश्विक रूप में अपने आप को प्रस्तुत करने के लिए दुनिया को जो भाषा समझती है, उस भाषा में रखने की आदत भी समय की मांग है, हम अपनी ही बात को अपने ही तरीके से कहते रहेंगे तो दुनिया के गले नहीं उतरेगी। विश्व जिस बात को जिस भाषा में समझता है, जिस तर्क से समझता है, जिस आधारों के आधार पर समझ पाता है, वो समझाने का प्रयास इस चिंतन-मनन के द्वारा तय करना पड़ेगा। ये जब हम करते हैं तो मुझे विश्वास है, इस महान देश की ये सदियों पुरानी विरासत वो सामाजिक चेतना का कारण बन सकती है, युवा पीढ़ी के आकर्षण का कारण बन सकती है और मैं जो 51 बिंदु हैं उसके बाहर एक बात मैं सभी अखाड़े के अधिष्ठाओं को, सभी परंपराओं से संत-महात्माओं को मैं आज एक निवेदन करना चाहता हूं, प्रार्थना करना चाहता हूं। क्या यहां से जाने के बाद हम सभी अपनी परंपराओं के अंदर एक सप्ताह का विचार कुंभ हर वर्ष अपने भक्तों के बीच कर सकते हैं क्या।

मोक्ष की बातें करें, जरूर करें लेकिन एक सप्ताह ऐसा हो कि जहां धरती की सच्चाइयों के साथ पेड़ क्यों उगाना चाहिए, नदी को स्वच्छ क्यों रखना चाहिए, बेटी को क्यों पढ़ाना चाहिए, नारी का गौरव क्यों करना चाहिए वैज्ञानिक तरीके से और देश भर के विधिवत जनों बुलाकर के, जिनकी धर्म में आस्था न हो, जो परमात्मा में विश्वास न करता हो, उसको भी बुलाकर के जरा बताओ तो भाई और हमारा जो भक्त समुदाय है। उनके सामने विचार-विमर्श हर परंपरा में साल में एक बार 7 दिन अपने-अपने तरीके से अपने-अपने स्थान पर ज्ञानी-विज्ञानी को बुलाकर के विचार-विमर्श हो तो आप देखिए 3 साल के बाद अगला जब हमारा कुंभ का अवसर आएगा और 12 साल के बाद जो महाकुंभ आता है वो जब आएगा आप देखिए ये हमारी विचार-मंथन की प्रक्रिया इतनी sharpen हुई होगी, दुनिया हमारे विचारों को उठाने के लिए तैयार होगी।

जब अभी पेरिस में पुरा विश्व climate को लेकर के चिंतित था, भारत ने एक अहम भूमिका निभाई और भारत ने उन मूल्यों को प्रस्तावित करने का प्रयास किया। एक पुस्तक भी प्रसिद्ध हुई कि प्रकृति के प्रति प्रेम का धार्मिक जीवन में क्या-क्या महत्व रहा है और पेरिस के, दुनिया के सामने life style को बदलने पर बल दिया, ये पहली बार हुआ है।

हम वो लोग हैं जो पौधे में भी परमात्मा देखते हैं, हम वो लोग हैं जो जल में भी जीवन देखते हैं, हम वो लोग हैं जो चांद और सूरज में भी अपने परिवार का भाव देखते हैं, हम वो लोग हैं जिनको... आज शायद अंतरराष्ट्रीय Earth दिवस मनाया जाता होगा, पृथ्वी दिवास मनाया जाता होगा लेकिन देखिए हम तो वो लोग हैं जहां बालक सुबह उठकर के जमीन पर पैर रखता था तो मां कहती थी कि बेटा बिस्तर पर से जमीन पर जब पैर रखते हो तो पहले ये धरती मां को प्रणाम करो, माफी मांगों, कहीं तेरे से इस धरती मां को पीढ़ा न हो हो जाए। आज हम धरती दिवस मनाते हैं, हम तो सदियों से इस परंपरा को निभाते आए हैं।

हम ही तो लोग हैं जहां मां, बालक को बचपन में कहती है कि देखो ये पूरा ब्रहमांड तुम्हारा परिवार है, ये चाँद जो है न ये चाँद तेरा मामा है। ये सूरज तेरा दादा है। ये प्रकृति को अपना बनाना, ये हमारी विशेषता रही है।

सहज रूप से हमारे जीवन में प्रकृति का प्रेम, प्रकृति के साथ संघर्ष नहीं, सहजीवन के संस्कार हमें मिले हैं और इसलिए जिन बिंदुओं को लेकर के आज हम चलना चाहते हैं। उन बिंदुओं पर विश्वास रखते हुए और जो काल बाह्य है उसको छोड़ना पड़ेगा। हम काल बाह्य चीजों के बोझ के बीच जी नहीं सकते हैं और बदलाव कोई बड़ा संकट है, ये डर भी मैं नहीं मानता हूं कि हमारी ताकत का परिचय देता है। अरे बदलाव आने दो, बदलाव ही तो जीवन होता है। मरी पड़ी जिंदगी में बदलाव नहीं होता है, जिंदा दिल जीवन में ही तो बदलाव होता है, बदलाव को स्वीकार करना चाहिए। हम सर्वसमावेशक लोग हैं, हम सबको जोड़ने वाले लोग हैं। ये सबको जोड़ने का हमारा सामर्थ्य है, ये कहीं कमजोर तो नहीं हो रहा अगर हम कमजोर हो गए तो हम जोड़ने का दायित्व नहीं निभा पाएंगे और शायद हमारे सिवा कोई जोड़ पाएगा कि नहीं पाएगा ये कहना कठिन है इसलिए हमारा वैश्विक दायित्व बनता है कि जोड़ने के लिए भी हमारे भीतर जो विशिष्ट गुणों की आवश्यकता है उन गुणों को हमें विकसित करना होगा क्योंकि संकट से भरे जन-जीवन को सुलभ बनाना हम लोगों ने दायित्व लिया हुआ है और हमारी इस ऋषियों-मुनियों की परंपरा ज्ञान के भंडार हैं, अनुभव की एक महान परंपरा रही है, उसके आधार पर हम इसको लेकर के चलेंगे तो मुझे पूरा विश्वास है कि जो अपेक्षाएं हैं, वो पूरी होंगी। आज ये समारोह संपन्न हो रहा है।

मैं शिवराज जी को और उनकी पूरी टीम को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं इतने उत्तम योजना के लिए, बीच में प्रकृति ने कसौटी कर दी। अचानक आंधी आई, तूफान सा बारिश आई, कई भक्त जनों को जीवन अपना खोना पड़ा लेकिन कुछ ही घंटों में व्यवस्थाओं को फिर से ठीक कर दी। मैं उन सभी 40 हजार के करीब मध्य प्रदेश सरकार के छोटे-मोटे साथी सेवारत हैं, मैं विशेष रूप से उनको बधाई देना चाहता हूं कि आपके इस प्रयासों के कारण सिर्फ मेला संपन्न हुआ है, ऐसा नहीं है। आपके इन उत्तम प्रयासों के कारण विश्व में भारत की एक छवि भी बनी है। भारत के सामान्य मानव के मन में हमारा अपने ऊपर एक विश्वास बढ़ता है इस प्रकार के चीजों से और इसलिए जिन 40 हजार के करीब लोगों ने 30 दिन, दिन-रात मेहनत की है उनको भी मैं बधाई देना चाहता हूं, मैं उज्जैनवासियों का भी हृदय से अभिनंदन करना चाहता हूं, उन्होंने पूरे विश्व का यहां स्वागत किया, सम्मान किया, अपने मेहमान की तरह सम्मान किया और इसलिए उज्जैन के मध्य प्रदेश के नागरिक बंधु भी अभिनंदन के बहुत-बहुत अधिकारी हैं, उनको भी हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं और अगले कुंभ के मेले तक हम फिर एक बार अपनी विचार यात्रा को आगे बढ़ाएं इसी शुभकामनाओं के साथ आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, फिर एक बार सभी संतों को प्रणाम और उनका आशीर्वाद, उनका सामर्थ्य, उनकी व्यवस्थाएं इस चीज को आगे चलाएगी, इसी अपेक्षा के साथ सबको प्रणाम।

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लाभार्थी - सर आज मैं शेयर करना चाहूंगा मेरा स्टोरी जो की एक पेट हॉबी से कैसा की मैं एंटरप्रेन्योर बना और मेरा जो बिजनेस वेंचर है उसका नाम है K9 वर्ल्ड, जहां पर हम लोग हर प्रकार के पेट सप्लाईज, मेडिसिंस और पेट्स प्रोवाइड करवाते हैं सर। सर मुद्रा लोन मिलने के बाद सर हम लोगों ने काफी सारे फैसिलिटी स्टार्ट किए, जैसे की पेट बोर्डिंग फैसिलिटी स्टार्ट किए हम लोग, जो भी like पेट पेरेंट्स है अगर वो कहीं बाहर जा रहे हैं सर, तो हमारे पास वो छोड़कर जा सकते हैं और उनके पेट हमारे यहां पर रहते हैं होमली एनवायरमेंट में सर। पशुओं के लिए मेरा जो like प्रेम है, वो सर अलग ही है, like मैं खुद खाऊं ना खाऊं, वह मैटर नहीं करता, बट उनको खिलाना है सर।

प्रधानमंत्री - तो घर में सब लोग तंग आ जाते होंगे आपसे?

लाभार्थी - सर इसके लिए मैं अपने सारे डॉग्स के साथ सेपरेट, सेपरेट like स्टे है, सेपरेट स्टे है, और मैं आपको भी बहुत धन्यवाद बोलना चाहूंगा सर, बिकॉज़ सर आप ही के कारण काफी सारे जो पशुप्रेमी हैं और NGO वर्कर्स है, अभी वो अपना काम सर ओपनली कर पाते हैं, बिना कोई रोक-टोक के ओपनली कर पाते हैं सर। मेरा जो निवास है वहां पर सर टोटली mentioned है, अगर आप पशुप्रेमी नहीं है, सर आप अलाउड नहीं है।

प्रधानमंत्री - यहां आने के बाद काफी आपकी पब्लिसिटी हो जाएगी?

लाभार्थी - सर ओबवियसली।

प्रधानमंत्री - आपका हॉस्टल छोटा पड़ जाएगा।

लाभार्थी - पहले जहां पर मैं महीने में 20000 कमा पाता था, सर अभी वहां पर मैं महीने में 40 से 50 हजार कमा पाता हूं।

प्रधानमंत्री - तो अभी आप एक काम कीजिए, जो बैंक वाले थे।

लाभार्थी - हां जी सर।

प्रधानमंत्री - जिसके समय आपको लोन मिला, एक बार उन सबको बुलाकर के आपके सारे चीज दिखाइए और उनको धन्यवाद कीजिए, उन बैंक वालों का, की देखिए आपने मेरे पर भरोसा किया और यह काम जो ज्यादा लोग हिम्मत नहीं करते, आपने मुझे लोन दिया, देखिए मैं कैसा काम कर रहा हूं।

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लाभार्थी - डेफिनेटली सर।

प्रधानमंत्री – तो उनको अच्छा लगेगा कि हां उन्होंने कोई अच्छा काम किया है।

लाभार्थी - वह ना एक माहौल को वह जो एकदम पिन ड्राप साइलेंस माहौल होता है कि पीएम का ओरा है उसको उन्होंने थोड़ा सा तोड़ा और वह हमारे साथ थोड़ा सा घुले-मिले, तो वह एक चीज मुझे बहुत अट्रैक्टिव लगी उनकी और दूसरी सबसे इंपोर्टेंट चीज कि वह बहुत ही ज्यादा गुड लिस्नर है।

लाभार्थी - I am Gopikrishnan, Entrepreneur based of mudra loan from Kerala. Pradhan Mantri Mudra Yojana has transformed me into a successful entrepreneur. My business continues to thrive bring renewable energy solutions to households and offices while creating job opportunities.

प्रधानमंत्री - आप जब दुबई से वापस आए तो आपका प्लान क्या था?

लाभार्थी – मैं वापस आया कि मैं यह मुद्रा लोन के बारे मैं मेरे को इनफॉरमेशन मिला था, इसलिए मैं वह कंपनी resign किया है।

प्रधानमंत्री - अच्छा आपको वहीं पता चला था?

लाभार्थी – हां। और रिजाइन करके, इधर आकर फिर यह मुद्रा लोन को अप्लाई करके, यह शुरू किया है।

प्रधानमंत्री - एक घर पर सूर्यघर का काम पूरा करने में कितना दिन लगता है?

लाभार्थी – अभी मैक्सिमम दो दिन।

प्रधानमंत्री - 2 दिन में एक घर का काम कर लेते हैं।

लाभार्थी – काम करते है।

प्रधानमंत्री - आपको डर लगा हो कि ये पैसे में दे नहीं पाऊंगा, तो क्या होगा, मां-बाप भी डांटते होंगे, ये दुबई से घर वापस चला आया, क्या होगा?

लाभार्थी – मेरी मां को थोड़ा टेंशन था, लेकिन वह भगवान की कृपा से सब कुछ हो गया।

प्रधानमंत्री - उन लोगों का क्या रिएक्शन है जिनको पीएम सूर्यघर से अब मुफ्त बिजली मिल रही है, क्योंकि केरल में घर नीचे होते हैं, पेड़ बड़े होते हैं, सूर्य बहुत कम आता है, बारिश भी रहती है, तो उनको कैसा लग रहा है?

लाभार्थी – ये लगाने के बाद उन लोगों को बिल कितना 240-250 के अंदर ही आता है। 3000 वालों को अभी 250 rupees का अंदर ही आता है बिल।

प्रधानमंत्री - अभी आप हर महीने कितने का काम करते हैं? अकाउंट कितना होगा?

लाभार्थी – ये अमाउन्ट मेरे को...

प्रधानमंत्री - नहीं इनकम टैक्स वाला नहीं आएगा, डरो मत, डरो मत।

लाभार्थी – ढाई लाख मिल रहा है।

प्रधानमंत्री – ये वित्त मंत्री मेरे बगल में बैठे हैं, मैं उनको बताता हूं, वह आपके यहां इनकम टैक्स वाला नहीं आएगा।

लाभार्थी – ढाई लाख से ऊपर मिलते हैं।

लाभार्थी – सपने वो नहीं जो हम सोते वक्त देखते हैं, सपने वो होते हैं जो हमें सोने नहीं देते हैं। मुसीबतें होंगी और मुश्किलें भी आएंगी, जो संघर्ष करेगा, वही सफलता पाएगा।

लाभार्थी – I am the founder of हाउस ऑफ़ पुचका. घर पर खाना-वाना बनाते थे तो हाथों में टेस्ट अच्छा था, तो सबने सजेस्ट किया कि आप कैफे फील्ड में जाओ। फिर उसमें रिसर्च करके पता चला कि प्रॉफिट मार्जिन वगैरा भी अच्छा है, तो फूड कॉस्ट वगैरा मैनेज करेंगे, तो आप एक सक्सेसफुल बिजनेस रन कर सकते हैं।

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प्रधानमंत्री - एक यूथ, एक जनरेशन है, कुछ पढ़ाई की तो उनको लगता है कि नहीं-नहीं मैं तो कहीं नौकरी करके सेटल हो जाऊंगा, रिस्क नहीं लूंगा। आप में रिस्क टेकिंग कैपेसिटी है।

लाभार्थी – जी।

प्रधानमंत्री - तो आपके रायपुर के भी दोस्त होंगे और corporate वर्ल्ड के दोस्त होंगे, स्टूडेंट दोस्त भी होंगे। उन सब में इसकी क्या चर्चा है? क्या सवाल पूछते हैं? उनको क्या लगता है? ऐसा कर सकते हैं? करना चाहिए, उनको भी आगे आने का मन करता है?

लाभार्थी – सर मैं जैसे कि अभी मेरी ऐज 23 ईयर्स है, तो मेरे पास अभी रिस्क टेकिंग एबिलिटी भी है, और टाइम भी है, तो यही समय होता है, मैं ना यूथ को लगता है कि हमारे पास फंडिंग नहीं है, बट वह गवर्नमेंट स्कीम्स के बारे में अवेयर नहीं है, तो मैं अपनी साइड से यहीं उन्हें सजेशन देना चाहूंगी, आप थोड़ा रिसर्च करो, जैसे मुद्रा लोन भी है, वैसे पीएम ईजीपी लोन भी है, कई लोन जो आपको विदाउट mortgage मिल रहे हैं, तो अगर आप में पोटेंशियल है तो आप जब ड्रॉप करो, क्योंकि sky has no limits for you, तो आप बिजनेस करिए और जितना चाहे उतना grow कर सकते हैं।

लाभार्थी – सीढ़ियां उन्हें मुबारक हो जिन्हें छत तक जाना है, अपनी मंजिल आसमान है रास्ता हमें खुद बनाना है। I am MD, Mudasir Naqasbandi, the owner of Bake My Cake, Baramulla Kashmir. We have become job creators from job seekers with the successful business. We have provided stable jobs for 42 persons from remote areas of Baramulla.

प्रधानमंत्री - आप इतना बहुत तेजी से प्रोग्रेस कर रहे हैं, जिस बैंक ने आपको लोन दिया, लोन देने से पहले आपकी स्थिति क्या थी?

लाभार्थी – Sir, overall that was 2021 before this I was not in lacs or crores, I was just in thousands.

प्रधानमंत्री – आपके यहां भी यूपीआई का उपयोग होता है?

लाभार्थी – सर शाम को जब कैश चेक करते है तो I get very disappointed because 90% transactions UPI होती है, and we have just 10% of cash in hand.

लाभार्थी – एक्चुअली मुझे वह बहुत ज्यादा पोलाइट लगे और ऐसा लग ही नहीं कि He is the Prime Minister of our country, ऐसा लग रहा था कोई हमारे साथ का और हमें गाइड कर रहा है, So वह एक humbleness उनकी तरफ से show हुआ।

प्रधानमंत्री - सुरेश आपको यह कहां से जानकारी मिली, पहले क्या काम करते थे, परिवार में पहले से क्या काम है?

लाभार्थी – सर पहले से मैं जॉब करता था।

प्रधानमंत्री – कहां पर?

लाभार्थी – वापी में, और 2022 में फिर मुझे ख्याल आया कि जॉब से कुछ होने वाला नहीं है, तो खुद का बिजनेस स्टार्ट करू।

प्रधानमंत्री - वापी में जो आप डेली ट्रेन में जाते थे, रोजी-रोटी कमाते थे, वह ट्रेन की जो दोस्ती बड़ी गजब होती है, तो ये....

लाभार्थी – सर मैं सिलवासा में रहता हूं और जॉब में वापी में करता था, अब मेरा सिलवासा में ही है।

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प्रधानमंत्री - मैं जानता हूं सब अप-डाउन वाली गैंग हैं वो, लेकिन वह लोग अब पूछते होंगे कि तुम ये कैसे कमाने लग गए हो, क्या कर रहे हो? उनमें से किसी का मन करता है कि वह भी मुद्रा लोन ले, कहीं जाए?

लाभार्थी – हां सर अभी रिसेंटली जब मैं यहां पर आ रहा था, तो मेरा एक फ्रेंड ने भी वही मेरे को बोला कि अगर हो सके तो मुझे भी थोड़ा गाइड करना मुद्रा लोन के लिए।

प्रधानमंत्री - सबसे पहले तो मेरे घर में आप सबका आने के लिए मैं धन्यवाद करता हूं। हमारे यहां शास्त्रों में कहा जाता है कि जब मेहमान घर में आते हैं और उनके चरण रज पड़ती है तो घर पवित्र हो जाता है। तो मैं बहुत स्वागत करता हूं आपका। आप सबके भी कुछ अनुभव होंगे, किसी का कोई बहुत इमोशनल ऐसा अनुभव हो, अपना काम करते हुए। अगर किसी को कहने का मन करता है तो मैं सुनना चाहता हूं

लाभार्थी – सर सबसे पहले मैं सिर्फ आपसे इतना कहना चाहूंगी, चूंकि आप मन की बात कहते भी और सुनते भी हैं, तो आपके सामने एक बहुत छोटे शहर रायबरेली की महिला व्यापारी खड़ी है, जो इस बात का प्रमाण है कि आपके सहयोग और समर्थन से जितना फायदा MSMEs को हो रहा है, मतलब मेरे लिए बहुत ही भावनात्मक समय है यहां पर आना और हम आपसे वादा करते हैं कि हम भारत को विकसित भारत मिलकर बनाएंगे, जिस तरीके का आप सहयोग और बिल्कुल बच्चों की तरह ट्रीट कर रहे हैं आप MSMEs को, चाहे हमें लाइसेंस लेने में जो प्रॉब्लम्स आती थीं, गवर्नमेंट से वह नहीं होती हैं, या फंडिंग को लेकर...

प्रधानमंत्री - आप चुनाव लड़ना चाहती हैं?

लाभार्थी – नहीं-नहीं सर यह सिर्फ मेरी मन की बात है जो मैंने आपसे बोली है, जी-जी क्योंकि मुझे ऐसा लगा कि यह प्रॉब्लम पहले मैं फेस कर रही थी, कि लोन वगैरा जब लेने जाते थे तो मना होता था।

प्रधानमंत्री - आप यह बताइए, आप करती क्या है?

लाभार्थी – बेकरी-बेकरी

प्रधानमंत्री - बेकरी

लाभार्थी – जी-जी।

प्रधानमंत्री - अभी कितना पैसा आप कमाती हो?

लाभार्थी – सर जो महीने का मेरा टर्न ओवर हो रहा है वह ढाई से तीन लाख रुपए का हो रहा है।

प्रधानमंत्री – अच्छा, और कितने लोगों को काम देती है?

लाभार्थी – सर हमारे पास 7 से 8 लोगों का ग्रुप है।

प्रधानमंत्री – अच्छा।

लाभार्थी – जी।

लाभार्थी – सर मेरा नाम लवकुश मेहरा है, मैं भोपाल मध्य प्रदेश से हूं। चूंकि पहले मैं जॉब करता था सर, किसी के यहां नौकरी करता था तो नौकर था सर, आपने हमारी गारंटी ली है सर, मुद्रा लोन के माध्यम से और सर आज हम मालिक बन गए सर। मैंने, एक्चुअली मैं एमबीए हूँ। और फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री का मुझे बिल्कुल नॉलेज नहीं था। मैंने 2021 में अपना काम चालू किया और सर मैंने पहले बैंकों को अप्रोच किया, मुझे 5 लाख की उन्होंने सीसी लिमिट मुद्रा लोन की दी। लेकिन सर मुझे डर ये लगता था कि पहली बार इतना बड़ा लोन ले रहे हैं, पटा पाएंगे कि नहीं पटा पाएंगे। तो मैं उसमें से तीन-साढे तीन लाख ही खर्च करता था सर। आज की डेट में सर 5 लाख से साढ़े 9 लाख का मेरा मुद्रा लोन हो गया है और मेरा फर्स्ट ईयर 12 लाख का टर्नओवर था, जो कि आज के डेट में लगभग more than 50 लाख हो गया।

प्रधानमंत्री - आपके अन्य मित्र होंगे उनको लगता है कि भई जीवन का यह भी एक तरीका है

लाभार्थी – यस सर।

प्रधानमंत्री - आखिरकार मुद्रा योजना यह कोई मोदी की वाहा-वाही के लिए नहीं है, मुद्रा योजना मेरे देश के नौजवानों को अपने पैरों पर खड़े रहने की हिम्मत और उनका हौसला बुलंद होता चले, मैं रोजी-रोटी कमाने के लिए क्यों भटकूंगा, मैं 10 लोगों को रोजी-रोटी दूंगा।

लाभार्थी – जी सर

प्रधानमंत्री - यह मिजाज पैदा करना है, यह आपके अगल-बगल के लोगों के अनुभव में आता है?

लाभार्थी – यस सर। मेरा जो गांव है- बाचावानी मेरा एक गांव है भोपाल से लगभग 100 किलोमीटर। वहां कम से कम दो-तीन लोगों ने किसी ने कोई ऑनलाइन डिजिटल की शॉप खोली है, किसी ने कोई फोटो स्टूडियो के लिए उन्होंने भी एक-एक, दो-दो लाख का लोन लिया है और मैंने उनकी हेल्प भी की है सर। Even मेरे जो फ्रेंड्स है सर....

प्रधानमंत्री - क्योंकि अब आप लोगों से मेरी अपेक्षा है, आप लोगों को रोजगार तो दें, लेकिन आप लोगों को कहिए की कोई गारंटी के बिना पैसा मिल रहा है, घर में क्यों बैठे हो, जाओ भई, बैंक वालों को परेशान करो।

लाभार्थी – मैंने सिर्फ इस मुद्रा लोन की वजह से अभी रिसेंटली 6 महीने पहले 34 लाख का अपना खुद का घर लिया है।

प्रधानमंत्री – ओ हो।

लाभार्थी – इतना मैं 60-70 हजार की जॉब करता था, आज मैं per month more than 1.5 lakh खुद का कमाता हूं सर।

प्रधानमंत्री - चलिए, बहुत-बहुत बधाई आपको।

लाभार्थी – और सब आपकी वजह से Thank You So Much Sir.

प्रधानमंत्री – खुद की मेहनत काम करती है भाई।

लाभार्थी – मोदी जी का ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगा हमको कि हम प्रधानमंत्री जी से बात कर रहे हैं। ऐसे लगा की कोई हमारे घर का, परिवार का बड़ा कोई सदस्य हमसे बात कर रहा है। वो किस तरीके से यह मतलब नीचे उनकी जो मुद्रा लोन की स्कीम जो चल रही है उसमें कैसे हम लोग सफल हुए हैं, वह पूरी कहानी उन्होंने समझी। उन्होंने जिस तरह से हमको मोटिवेट किया कि आप भी उस मुद्रा लोन के और भी लोगों को अवेयर कीजिए ताकि और empower और लोग अपना व्यापार स्टार्ट कर सके।

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लाभार्थी – मैं भावनगर गुजरात से आया हूं।

प्रधानमंत्री - सबसे छोटे लगते हैं आप?

लाभार्थी – यस सर।

प्रधानमंत्री – इस सारी टोली में?

लाभार्थी – मैं फाइनल ईयर में हूं और 4 महीने....

प्रधानमंत्री - तुम पढ़ते और कमाते हो?

लाभार्थी – यस।

प्रधानमंत्री – शाबाश!

लाभार्थी – मैं आदित्य टेक लैब का फाउंडर हूं जिसमें मैं 3D प्रिंटिंग, रिवर्स इंजीनियरिंग और रैपिड प्रोटो टाइपिंग और साथ-साथ में थोड़ा रोबोटिक्स का वर्क भी करता हूं, क्योंकि मैं फाइनल ईयर mekatronix स्टूडेंट हूं, तो ऑटोमेशन और वो सब में ज्यादा रहता है। तो जैसे की मुद्रा लोन से मुझे ये, जैसे कि अभी मेरी ऐज 21 है तो उसमें स्टार्ट करने में सुना था बहुत की लोन लेने का प्रोसेस बहुत कंपलेक्स है, इस साल में नहीं मिलेगी, कौन बिलीव करेगा, अभी तो एक-दो साल जॉब का एक्सपीरियंस करो, बाद में लोन मिलेगी। तो जैसे सौराष्ट्र ग्रामीण बैंक है वहां हमारे भावनगर में तो वहां जाकर मैंने मेरा आइडिया, कि मैं क्या करना चाहता हूं, वह सब बताया, तो उन लोगों ने कहा की ठीक है, आपको मुद्रा लोन जो किशोर कैटिगरी है 50000 से 5 लाख तक उसके अंडर, तो मैंने 2 लाख की लोन ली और 4 महीने से मैं शुरू करा उसको, तो सोम से शुक्रवार तक मैं कॉलेज जाता हूं और बाद में वीकेंड्स में भावनगर रहकर मेरा वर्क पेंडिंग है वह खत्म कर देता हूं और अभी मैं महीने का 30 से 35000 कमा रहा हूं सर।

प्रधानमंत्री – अच्छा।

लाभार्थी – हां।

प्रधानमंत्री – कितने लोग काम करते हैं?

लाभार्थी – अभी मैं रीमोटली वर्क करता हूं।

प्रधानमंत्री – तुम दो दिन काम करते हो।

लाभार्थी – मैं रीमोटली वर्क करता हूं, मम्मी पापा है घर पर, वह पार्ट टाइम में मेरी हेल्प कर देते हैं। फाइनेंशियल सपोर्ट तो मिलता है मुद्रा लोन से, बट खुद में जो बिलीव करना है ना, Thank You Sir!

लाभार्थी – अभी हम मनाली में अपना बिजनेस कर रहे हैं! सबसे पहले मेरे हस्बैंड सब्जी मंडी में काम करते थे फिर शादी के बाद जब मैं उनके साथ गई तो मैंने उनको कहा कि किसी के पास काम करने से अच्छा है हम दोनों एक दुकान खोलते हैं, सर फिर हमने सब्जी की दुकान की तो सर जैसे सब्जी रखते रहे धीरे-धीरे मतलब सर लोग बोलने लगे, आटा-चावल रखो, फिर सर पंजाब नेशनल बैंक का स्टाफ हमारे पास सब्जी लेने आता था, तो मैंने ऐसे उनसे बात की कि अगर हमने पैसे लेने हो, क्या हमें मिलेंगे, तब उन्होंने पहले मना कर दिया, मतलब यह 2012-13 की बात है, फिर मैंने बोला ऐसे.....

प्रधानमंत्री - आप यह 2012-2013 कह रहो हो, कोई पत्रकार को पता चलेगा तो आपको कहेंगे कि पुरानी सरकार को गाली दे रहे हैं।

लाभार्थी – तो फिर उन्होंने, नहीं-नहीं, फिर उन्होंने बोला कि आपके पास प्रॉपर्टी वगैरह है, मैंने बोला नहीं, जैसे ही यह मुद्रा लोन का पता चला ना जब, यह स्टार्ट हुआ 2015-16 में तब जैसे मैंने उनसे कहा कि ऐसे-ऐसे, उन्होंने खुद ही बताया हमें कि एक योजना चली है, अगर आपको चाहिए तो। सर मैंने बोला हमें चाहिए, तो उन्होंने हमें कोई कागज, पत्र कुछ नहीं मांगा। उन्होंने ढाई लाख रुपये हमें फर्स्ट टाइम दिये। वह ढाई लाख रुपये मैंने दो-ढाई साल में उनको वापस दिए, उन्होंने मुझे फिर ₹500000 दिये, फिर मैंने राशन की एक शॉप खोल ली, फिर वह दोनों शॉप मुझे छोटे पड़ने लगी, सर मेरा काम बहुत बढ़ने लगा, यानी कि जो मैं दो ढाई लाख साल में कमाती थी, आज मैं 10 से 15 लाख साल में काम रही हूं।

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प्रधानमंत्री – वाह।

लाभार्थी - फिर उन्होंने, मैंने 5 लाख भी कंप्लीट कर दिया, तो उन्होंने मुझे 10 लाख दिया, सर मैंने 10 लाख भी कंप्लीट कर दिया तो ढाई साल में ऐसे ही, तो अब उन्होंने मुझे 2024 नवंबर में 15 लाख दे दिया। और सर मेरा काम बहुत ज्यादा बढ़ रहा है और मुझे अच्छा लग रहा है कि अगर हमारे प्रधानमंत्री ऐसे हैं और अगर वह हमारा साथ दे रहे हैं, तो हम भी उनका साथ ऐसे ही देंगे, हम कहीं भी ऐसे गलत नहीं होने देंगे कि हमारा भी करियर खराब हो, कि हां जी उन लोगों ने ऐसे पैसे वापस नहीं दिए। बैंक वाले अब मैं, बैंक वाले तो बोले रहे थे 20 लाख ले लो, तो मैंने बोला अब हमें नहीं चाहिए, फिर भी उन्होंने बोला 15 लाख रखो जरूरत हो निकालो तो, ब्याज बढ़ेगा, नहीं निकालोगे तो नहीं बढ़ेगा। पर सर आपकी यह स्कीम मुझे बहुत अच्छी लगी।

लाभार्थी – I came from AP. I don’t know Hindi, but I will speak in Telugu.

प्रधानमंत्री - कोई बात नहीं अब तेलुगू बोलिए।

लाभार्थी – Is it sir!! I got married in 2009 sir. I remained as a housewife until 2019.I was trained with Regional training centre of Canara bank for thirteen days for the manufacturing of Jute bags.I got 2 lakhs loan under mudra yojana through the bank.I have started my business in November 2019. Canara bank people believed in me and sanctioned Rs.2 lakhs. They did not ask for any surety, no help was needed to get the loan. I got the loan sanctioned without any surety.In 2022 because of my loan repayment history, Canara bank has sanctioned additional Rs.9.5 lakhs. Now fifteen people are working under me.

प्रधानमंत्री – यानी 2 लाख से शुरू किया, साढ़े 9 लाख तक पहुंच गए।

लाभार्थी – Yes Sir!

प्रधानमंत्री – How many people are working with you?

लाभार्थी – 15 members sir.

प्रधानमंत्री – 15.

लाभार्थी – All are housewives and all are RCT (Rural self-employment centre) trainees.I used to be one of the trainees, now I am also one of the faculty. I am very much grateful for this opportunity. Thank you Thank you Thank you very much sir.

प्रधानमंत्री – Thank you, Thank You धन्यवाद।

लाभार्थी – सर मेरा नाम पूनम कुमारी है। सर मैं बहुत ही गरीब फैमिली से हूं, बहुत गरीब फैमिली थी हमारी, इतना गरीब....

प्रधानमंत्री – आप दिल्ली पहली बार है आई?

लाभार्थी – Yes Sir.

प्रधानमंत्री – वाह।

लाभार्थी – और मैं फ्लाइट में भी पहली बार बैठी हूं सर।

प्रधानमंत्री – अच्छा।

लाभार्थी – इतनी गरीबी थी मेरे यहां कि मैं अगर एक टाइम खाती थी तो दूसरा बार सोचना पड़ता था, लेकिन सर बहुत हिम्मत जुटा चुकी मैं किसान परिवार से हूं।

प्रधानमंत्री – आप बिल्कुल स्वस्थ होकर के।

लाभार्थी – क्योंकि मैं किसान परिवार से हूं तो मुझे बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता था तो मैंने अपने हस्बैंड से बात की, कि क्यों ना हम कुछ लोन लेकर के कुछ अपना ही बिजनेस शुरू करते हैं, तो मेरे हस्बैंड ने बोला कि है हां तुम बिल्कुल अच्छे से सजेशन दे रही हो, हमें करना चाहिए, तो मेरे हस्बैंड ने दोस्त वगैरह से बात की है तो उन लोगों ने बताया की मुद्रा लोन आपके लिए बहुत अच्छा रहेगा, आप करिए। फिर मैं बैंक वालों के पास गई वहां एसबीआई बैंक (जगह का नाम अस्पष्ट) फिर वो लोगों ने बताया कि हां आप ले सकते हैं बिना किसी भी वो कागजात के। तो सर मैं वहां से मुझे 8 लाख का स्वीकृत किया गया लोन और मैं बिजनेस शुरू की सर। मैं 2024 में ही ली हूं सर और बहुत अच्छा ग्रोथ हुआ सर।

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प्रधानमंत्री – क्या काम करती हो?

लाभार्थी – सर सीड्स का.. जिसमें मेरे हस्बैंड बहुत हेल्प करते हैं मार्केट का काम अधिकतर वो करते हैं मैं एक कर्मचारी भी रखी हूं सर।

प्रधानमंत्री – अच्छा।

लाभार्थी – यस सर। और बहुत आगे बढ़ रही हूं सर मुझे विश्वास है कि मैं जल्द ही लोन को ये कंप्लीट करूंगी, मुझे पूरा विश्वास है।

प्रधानमंत्री – तो अभी एक महीने का कितना कमा सकती है?

लाभार्थी – सर 60000 तक हो जाता है।

प्रधानमंत्री – अच्छा 60000 रुपया। तो परिवार को विश्वास हो गया?

लाभार्थी – बिल्कुल सर, बिल्कुल। आज मैं आत्मनिर्भर हूं आपकी इस योजना की वजह से।

प्रधानमंत्री – चलिए बहुत बढ़िया काम किया आपने।

लाभार्थी – Thank You Sir! मुझे आपसे बात करने की बहुत इच्छा थी सर, मुझे विश्वास नहीं था कि मैं, मैं भी मोदी जी से मिलने जा रही हूं, मुझे बिलीव ही नहीं हो रहा था। जब मैं यहां आ गई दिल्ली तो मुझे अरे रियली मैं जा रही हूं। Thank You Sir, मेरे हस्बैंड भी आने के लिए थे कि तुम जा रही हो चलो गुड लक।

प्रधानमंत्री – मुझे मेरा मकसद यही है कि मेरे देश का सामान्य-सामान्य नागरिक वो इतना विश्वास से भरा हुआ हो, मुसीबतें होती हैं, हर एक को होती हैं। जिंदगी में कठिनाइयां होती हैं। लेकिन अगर मौका मिले तो कठिनाइयों को परास्त करके जीवन को आगे बढ़ाना और मुद्रा योजना ने यही काम किया है।

लाभार्थी – Yes Sir!

प्रधानमंत्री – हमारे देश में बहुत कम लोग हैं, जिनको इन चीजों की समझ है कि साइलेंटली कैसे रेवोल्यूशन हो रहा है। ये बहुत बड़ा साइलेंट रेवोल्यूशन है।

लाभार्थी – सर मैं और लोगों को भी कोशिश करती हूं मुद्रा योजना के बारे में बताऊ।

प्रधानमंत्री – औरों को समझाना चाहिए।

लाभार्थी –बिल्कुल सर।

प्रधानमंत्री – देखिए हमारे यहां जब हम छोटे थे तो सुनते थे, कि उत्तम खेती, मध्यम व्यापार और कनिष्ठ नौकरी.. ऐसा सुनते थे, नौकरी को आखिरी गिनते थे। धीरे-धीरे समाज की मनोस्थिति ऐसी बदल गई कि नौकरी सबसे पहले, पहला काम भाई कहीं मिल जाए बस सेटल हो जाए। जिंदगी की surety हो जाती है। व्यापार मध्यम ही रहा और लोग यहां तक पहुंच गए खेती तो सबसे आखिरी में। इतना ही नहीं किसान भी क्या करता है अगर उसके तीन बेटे हैं तो एक को कहते हैं भाई तू खेती संभालना दो को कहते हैं तुम जाओ भाई कहीं रोजी-रोटी कमाओ। ये अब आपको ये जो मध्यम वाला विषय है कि व्यापार को हमेशा मध्यम माना गया है। लेकिन आज भारत का युवा उसके पास जो एंटरप्रेन्योर स्किल है, अगर उसको हैंड होल्डिंग हो जाए थोड़ी उसको मदद मिल जाए, तो बहुत बड़े परिणाम लाता है और इस मुद्रा योजना में किसी सरकार के लिए भी ये आंख खोलने वाला विषय है ये। सबसे ज्यादा महिलाएं आगे आई हैं, सबसे ज्यादा लोन के लिए अप्लाई करने वाली महिलाएं, सबसे ज्यादा लोन प्राप्त करने वाली महिलाएं, और सबसे जल्दी रिपेमेंट करने वाली भी महिलाएं हैं। यानी ये एक नया क्षेत्र और विकसित भारत के लिए जो संभावना है ना वो इस शक्ति में पड़ी हुई है वो दिखाई दे रहा है और इसलिए मैं समझता हूं कि हमें एक वातावरण बनाना चाहिए, आप जैसे लोग जो सफल हुए हैं आपको पता है अब आपको किसी पॉलिटिशियन की चिट्ठी की जरूरत नहीं पड़ी होगी। किसी MLA, MP के घर पर चक्कर नहीं काटना पड़ा होगा, आपको मेरा विश्वास है किसी को एक रुपया भी देना नहीं पड़ा होगा। और बिना गारंटी को आपको पैसा मिलना और एक बार पैसा आए तो उसका सदुपयोग करना ये अपने आप में आपके जीवन में भी एक डिसिप्लिन ले आता है। वरना किसी को लगेगा यार ले लिया है चलो अब दूसरे शहर में चले जाए, कहां ढूंढता रहेगा वो बैंक वाला। ये जीवन को बनाने का एक अवसर देता है और मैं चाहता हूं कि मेरे देश के नौजवान ज्यादा से ज्यादा इस क्षेत्र में आए। आप देखिए 33 लाख करोड़ रुपया, ये देश के लोगों को बिना गारंटी दे दिए गए हैं। आप अखबार में तो पढ़ते होंगे, अमीरों की सरकार है। सभी अमीरों का टोटल लगा दोगे तो भी 33 लाख करोड़ नहीं मिला होगा उनको। मेरे देश के सामान्य मानवी को 33 लाख करोड़ रुपया आपके हाथ में दिए हैं, आप जैसे देश के होनहार युवा-युवतियों को दिए गए हैं। और इन सबने किसी ने एक को, किसी ने दो को, किसी ने 10 को, किसी ने 40-50 को रोजगार दिया है। यानी रोजगार देने का बहुत बड़ा काम ये इकोनॉमी को जनरेट करता है। उसके कारण प्रोडक्शन तो होता ही होता है, लेकिन जो सामान्य मानवी कमाता है तो उसको लगता है चलो पहले साल में एक शर्ट लेते थे अब दो ले लेंगे। बच्चों को पढ़ाने से संकोच करते थे अब चलो पढ़ाएंगे, तो ऐसी हर चीज का एक समाज जीवन में बड़ा लाभ होता है। अब इस योजना को 10 साल हो गए हैं। सामान्यतः सरकार में उसका स्वभाव क्या रहता है कि एक निर्णय करें, एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करे और घोषणा करे कि हम ऐसा करेंगे। उसके बाद कुछ लोगों को बुलाकर के दिया-विया जला दें, लोग ताली बजा दें, और अखबार वालों की चिंता करते रहते हैं तो अखबार में भी हेडलाइन छप जाए, और उसके बाद कोई पूछता नहीं है। ये सरकार ऐसी है कि एक योजना का 10 साल के बाद हिसाब लगा रही है, लोगों से पूछ रहे हैं कि भाई ठीक है हम तो कह रहे हैं कि ये हुआ लेकिन आप बताइए क्या हुआ। और जैसे मैं आपसे पूछ रहा हूं आज देश भर में आने वाले दिनों में ऐसे समूहों को मेरे सब साथी पूछने वाले हैं, उनसे मिलने वाले हैं, उनसे जानकारी लेने वाले हैं। और उसके कारण अगर कोई इसमें बदलाव लाना है, कुछ सुधार करना है तो वो उस दिशा में भी हम जाने वाले हैं। लेकिन हमारी कोशिश, अब देखिए लगातार शुरू में 50000 से 5 लाख किया। सरकार का कॉन्फिडेंस देखिए कि पहले सरकार भी सोचती थी, भाई 5 लाख से ऊपर मत दो डूब जाएंगे तो क्या करेंगे, ये तो मोदी के बाल नोच लेंगे सब लोग। लेकिन मेरे देश के लोगों ने मेरे विश्वास को तोड़ा नहीं, मेरा जो मेरे देशवासियों पर भरोसा था, उसको आप लोगों ने मजबूत किया। और उसके कारण मेरी हिम्मत हुई कि 50000 से 20 लाख पर पहुंच गए। ये निर्णय छोटा नहीं है, ये निर्णय तब होता है, जब उस योजना की सफलता और लोगों पर भरोसा और इसमें दोनों चीजें दिखती हैं। आप सबको बहुत शुभकामनाएं और मेरी आपसे अपेक्षा रहेगी, कि जैसे आप 5-10 लोगों को रोजगार देते हैं, वैसे 5-10 लोगों को मुद्रा योजना लेकर के कुछ अपना काम करने के लिए प्रेरित कीजिए, उनको हिम्मत दीजिए, ताकि उनको एक विश्वास बनेगा और देश में 52 करोड़ लोन दिए गए हैं, 52 करोड़ लोग नहीं होंगे जैसे सुरेश ने बताया कि उसने पहले ढाई लाख लिया, फिर 9 लाख लिया, तो दो लोन हुआ। लेकिन 52 करोड़ लोन, यानी अपने आप में बहुत बड़ा आंकड़ा है। दुनिया के किसी देश में ये सोच भी नहीं सकते हैं और इसलिए मैं कहता हूं और हमारी युवा पीढ़ी को हम तैयार करें, कि भाई आप खुद शुरू करो बहुत कुछ फायदा होगा। मुझे याद है, जब मैं गुजरात में था तो मेरा एक कार्यक्रम होता था- गरीब कल्याण मेला। लेकिन उसमें एक स्ट्रीट प्ले जैसा करते बच्चे अब मुझे गरीब नहीं रहना है, ऐसा एक लोगों को मोटिवेट करने वाला एक ड्रामा होता था, मेरे कार्यक्रम में। और फिर कुछ लोग स्टेज पर आकर के अपना जो राशन कार्ड होते थे और वो सब सरकार में वापस जमा कराते थे और कहते थे कि हम गरीबी से बाहर आ गए हैं, अब हमें फैसिलिटी नहीं चाहिए। फिर वो भाषण करते थे, कि मैंने कैसे ये परिस्थिति पलटी। तो एक बार मैं शायद वलसाड जिले में था, एक 8-10 लोगों की टोली आई और सबने अपना गरीबी वाली जितने बेनिफिट थे वो सरकार को सरेंडर किए। फिर उन्होंने अपना एक्सपीरियंस सुनाया, तो क्या था? वो आदिवासी लोग थे और आदिवासियों में वो भगत का काम भजन मंडली बजाना और शाम को गाना यही काम करते थे, तो वहां से उनको एक दो लाख रुपए का लोन मिला, तब तो ये मुद्रा योजना वगैरह नहीं थी, मेरी सरकार वहां एक स्कीम चलाती थी। उसमें से कुछ वो इंस्ट्रूमेंट लाए बजाने के, कुछ उनकी ट्रेनिंग हुई, इसमें से उन्होंने 10-12 लोगों की एक ये बैंड बाजे बजाने वालों की एक कंपनी बना दी। और शादी-ब्याह में फिर वो बजाने के लिए जाने लगे फिर उन्होंने अपना अच्छा यूनिफॉर्म बना दिया। और धीरे-धीरे-धीरे करके वो बहुत पॉपुलर हो गए और वो सब के सब अच्छी स्थिति में आ गए। हर कोई, हर महीने 50-60 हजार रुपए कमाने लग गया। यानी छोटी चीज भी कितना बड़ा बदलाव लाती है, मैंने अपनी आंखों के सामने ऐसी कई घटनाएं देखी हैं। और उसी में से मुझे इंस्पिरेशन मिलता है, आप ही लोगों में से मुझे इंस्पिरेशन मिलता है कि भाई हां, देखिए देश में ऐसी शक्ति एक में नहीं अनेकों में होगी, चलो ऐसा कुछ करते हैं। देश के लोगों को साथ लेकर के देश को बनाया जा सकता है। उनकी आशा-आकांक्षा परिस्थितियों का अध्ययन करके किया, ये मुद्रा योजना उसी का एक रूप है। मुझे विश्वास है कि आप लोग इस सफलता को और नई ऊंचाइयों तक ले जाएंगे और अधिकतम लोगों को लाभ हो, और समाज ने आपको दिया है, आपने भी समाज को देना चाहिए, ऐसा नहीं होना चाहिए कि भाई चलो अब मौज करें, कुछ ना कुछ हमें भी समाज के लिए करना चाहिए, जिसके कारण मन को एक संतोष मिलेगा।

चलिए बहुत-बहुत धन्यवाद।