PM Modi addresses Indian Community in Singapore
PM applauds the Indian Diaspora for being a living example of Vasudhaiva Kutumbakam - the whole world is 1 family
India can learn a lot from Singapore, cleanliness is one of them: PM 
PM pitches for Make in India in defence. Says we have opened up FDI upto 49% in defence sector
Today the world looks towards India with great faith: PM 
FDI is needed to First Develop India: PM
There is an increase in FDI since we have taken office: PM
Indian currency must gain more respect globally: PM
We have begun a movement, we are working on skill development with Singapore, Germany, USA:  PM
We want to provide 24x7 electricity to everyone in India: PM
We want renewable energy, wind energy & nuclear energy: PM
We have set a target of producing 175 GW renewable energy: PM
Declaration of International Yoga Day on June 21st by UN brought the world together to celebrate yoga as holistic health care: PM

नमस्‍ते, वणक्‍कम, दीपावली का पर्व अभी-अभी गया, लेकिन मुझे बताया गया कि Little India ने इस बार दीपावली की रोशनी एक हफ्ते तक उसको extend कर दिया। मैं इसके लिए सभी Singaporeans का हृदय से आभार व्‍यक्‍त करता हूं। मैं सिंगापुर पहले भी आया हूं। पहले भी Indian Community के साथ मिलने का बातें करने का मुझे अवसर मिला है। लेकिन आज का ये नजारा हिन्‍दुस्‍तान में बैठ करके कोई सोच भी नहीं सकता है कि सिंगापुर का ये मूड है। मैं हृदय से आप सबका धन्‍यवाद करता हूं आज पूरे विश्‍व में भारत की जो छवि बनी है, पूरा विश्‍व भारत की तरफ एक विश्‍वास के भाव से देख रहा है उसका कारण, उसका कारण, उसका कारण मोदी नहीं है। उसका कारण विदेशों में बसे हुए आप मेरे भारतीय भाई-बहन हैं। आप लोगों ने दुनिया के जिस देश में गए, जिस धरती पर पहुंचे, जान-पहचान थी या नहीं थी, हालात अनुकूल थे या प्रतिकूल थे, आपने उस धरती को अपना बना लिया। आपने उस देश के लोगों के साथ आप ऐसे मिल गए ऐसे मिल गए, जैसे दूध में शक्‍कर मिल जाती है।

हम कभी सुना करते थे, पढ़ा करते थे इतिहास में कि पारसी कौम जब सबसे पहले हिन्‍दुस्‍तान की धरती पर आए, गुजरात के किनारे पर आए और उस समय के हिन्‍दु राजा थे जदीराणा, ये विदेश से आए थे, कौन है क्‍या है जानते नहीं थे। क्‍यों आए थे पता नहीं था लेकिन उन्‍होंने समुंदर में से मैसेज भेजा तो राजा ने एक दूध का गिलास भरा हुआ उनको भेज दिया। और उसमें मैसेज ये था कि जैसे ये गिलास में दूध पूरी तरह भरा हुआ है और बिल्‍कुल जगह नहीं है, मैं आपको यहां कैसे समाऊंगा? ये Symbolic मैसेज था। तो पारसियों ने क्‍या किया, उस दूध में चीनी मिला दी, शक्‍कर मिला दी और वो दूध का कटोरा वापिस भेजा और उन्‍होंने राजा को संदेश दिया कि हम विदेश की धरती से आए हैं, संकटों के मारे आए हैं लेकिन जैसे इस भरे हुए दूध से भरे गिलास में जगह न होने के बावजूद भी चीनी जैसे उसमें मिल गई हम भी मिल जाएंगे और हम और मिठास भर देंगे। हिन्‍दुस्‍तानी भी जहां गया उसने वहां के जीवन के साथ अपने आचरण के द्वारा, अपने व्‍यवहार के द्वारा, उस समाज में वो ऐसे घु‍लमिल गया कि हर किसी को अपना लगने लगा, अपने लगने लगा। दुनिया के कई देशों से पता चलता है कि अगर अड़ौस-पड़ौस में कोई Indian आता है तो खुशी महसूस करते हैं। उनको लगता है अच्‍छा भई कोई Indian हमारे पड़ौस में आया है। और वो अपने बच्‍चों को प्रेरित करते हैं कि जरा तुम Indian बच्‍चों से दोस्‍ती करो।

ये, ये, इस, आपके इस व्‍यवहार के कारण और सदियों से हमारे देशवासी जहां गए, वहां वे एक अपनापन की महक ले करके गए, अपने बन करके रहे, हर किसी को गले लगा करके रहे और ये सदियों से परंपरा चली आ रही है। इसी के कारण भारत जब सोने की चिडि़या था तब भी किसी को भी आंख में खटकता नहीं था। और हमारे बुरे दिन आए तब भी किसी ने हमें हड़दूत नहीं किया था, अपमानित नहीं किया था क्‍योंकि सदियों से हमारे लोगों ने ये प्‍यार, ये अपनापन, इसी का मूलमंत्र ले करके और हमने सिर्फ शास्‍त्रों में पढ़ा था, ऐसा नहीं है। वसुधैव कुटुम्‍बकम् से वेदकाल से हमारे यहां उद्घोष चला आ रहा है। लेकिन भारतीयों ने सच्‍चे अर्थ में वसुधैव कुटुम्‍बकम् Whole world is one family, इस मंत्र को जी करके दिखाया है। और उसी के कारण आज विश्‍व में भारतीयों के प्रति, भारत के प्रति कहीं कोई आशंका का माहौल नहीं होता है, अपनेपन की श्‍वास होती है और इसलिए मैं विश्‍व भर में फैले हुए मेरे सभी भारतीय भाइयों-बहनों का आदरपूर्वक अभिनंदन करता हूं।

मैं गत मार्च महीने में एक दिन के लिए सिंगापुर आया था। जिस महापुरुष ने इस सिंगापुर को बनाया, अपने खून-पसीने से बनाया। अपने-आप को खपा दिया। एक छोटा सा मछुआरों का गांव आज विश्‍व के समृद्ध देशों की बराबरी कर रहा हो, ऐसा सिंगापौर बन गया। ऐसे महापुरुष स्‍वर्गीय Lee Kuan Yew, उनकी अंत्‍येष्टि के लिए, अंतिम दर्शन के लिए मैं आया था। जब सिंगापुर को याद करते हैं एक विश्‍वास पैदा होता है।

अगर कुछ करने का माजा है तो होके रहता है। अगर सपने है और सपनों के लिए समर्पण है तो सिद्धि आपके चरण चूमने के लिए तैयार रहती है। प्रसिद्धि और सिद्धि में बहुत बड़ा फर्क होता है। कुछ भी करने पर प्रसिद्धि तो मिल जाती है लेकिन सिद्धि के लिए तो सिर्फ तपस्‍या, यही एक मार्ग होता है और जिन्‍होंने प्रसिद्धि का रास्‍ता अपनाया है वो कभी कुछ सिद्धि नहीं कर पाए हैं। कुछ समय तक सुर्खियों में जगह बना सकते हैं लेकिन धरती पर बदलाव नहीं ला सकते हैं सिंगापुर वो एक उदाहरण है कि 50 साल के कार्यकाल में एक ही generation की आंखों के सामने एक देश को कहां से कहां पहुंचाया जा सकता है, इसका ये उत्‍तम उदाहरण है। भारत महान देश है, भारत विशाल देश है, सवा सौ करोड़ देशवासियों का देश है। सब कुछ है फिर भी सिंगापुर से बहुत कुछ सीखना भी है।

आज से 50 साल पहले, 60 साल पहले जिस महापुरुष को एक विचार आया – सिंगापुर की सफाई, स्‍वच्‍छता, cleanliness। अब क्‍या हमारा देश ये काम नहीं कर सकता क्‍या, करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए? यहां के नागरिकों की भूमिका है कि नहीं है? और मुझे महात्‍मा गांधी जीवन भर एक बात के लिए बड़े आग्रही थे – स्‍वच्‍छता के लिए। और वो तो यहां तक कह दिया था कि मुझे आजादी और स्‍वच्‍छता दोनों में से पहले प्राथमिकता देनी है तो मैं स्‍वच्‍छता को दूंगा।

आज भारत में सबका एक मन बना है। हर किसी को लग रहा है कि हमारा देश ऐसा नहीं होना चाहिए। गंदगी में बहुत गुजारा कर लिया। दुनिया बदल रही है, हिन्‍दुस्‍तान को बदलना चाहिए कि नहीं बदलना चाहिए। और अच्‍छी बात यह है कि सवा सौ करोड़ देशवासियों ने बदलने का मन बना लिया है। कोई देश न सरकारों से बनते है न सरकारों से बढ़ते है, देश बनते है जन-जन की इच्‍छा से, जन-जन के संकल्‍प से, जन-जन के पुरुषार्थ से] जन-जन के त्‍याग और तपस्‍या से, पीढ़िया खप जाती है तब एक राष्‍ट्र का निर्माण होता है। आज भारत में वो मिजाज पैदा हुआ है। हर भारतीय को लगने लगा है हम देश को आगे बढ़ाएंगे, देश को आगे ले जाएंगे। हम उस युग में जी रहे हैं कि जिस युग में अगर कुछ मिला है तो छोड़ने का मन कभी नहीं करता है। हम travel करते हो और travel करते समय हमारी सीट reserve हो, हम सीट पर बैठे हो, बगल की सीट खाली हो, हमने अपने बैग वहां रख दिए हो, अखबार रख दिए हो, कुछ सामान रख दिया हो। वो सीट अपनी नहीं है, लेकिन किसी और को आने में देर हुई है, हमने सब रखा है और जब वो आ जाए तो ऐसा मन खट्टा हो जाता है। किसी और का.. ये मूलभूत प्रवृत्‍ति है, लेकिन मैंने मेरे देशवासियों का जो मिजाज देखा है, भारत के लोगों ने क्‍या मन बनाया है।

मैंने एक बार एक छोटी-सी बात कही, देशवासियों के सामने। मैंने कहा कि आप जो घर में गैस का चूल्‍हा जलाते हैं, वो जो गैस का सिलेंडर आता है, उस पर करीब 500 रुपए सरकार सब्‍सिडी के रुप में देती है। आप ऐसे परिवार के हो जिनमें 500 रुपए तो चाय-पानी पर खर्च कर देते हैं। आप से सब्‍सिडी क्‍यों लेते हो, क्‍या आप ये सब्‍सिडी छोड़ नहीं सकते। इतना सा मैंने कहा था और आज मैं गर्व के साथ कहता हूं मेरे देश के 40 लाख परिवारों ने गैस सब्‍सिडी छोड़ दी। बगल की कुर्सी न छोड़ने का जो मन रहता था वो आज सब्‍सिडी छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है और वो भी महात्‍मा गांधी कुछ कहे, लाल बहादुर शास्‍त्री कुछ कहे और देश कर ले, ये तो हमारे गले उतरता है, लेकिन मुझ जैसा एक सामान्‍य मानवीय, एक चाय बेचने वाला, ये देश के सामने एक बात रखे और मेरा देश इस बात को सर-आँखों पर उठा ले तब मेरा मन कहता है, ये देश नई ऊंचाइयों पर जाकर के रहेगा, ये देश स्‍वामी विवेकानंद जी ने जो सपना देखा था कि मैं मेरी भारत माता को विश्‍व गुरु के रूप में देख रहा हूं। मैं विश्‍वास से कहता हूं कि अब हिन्‍दुस्‍तान विवेकानंद जी के सपनों को साकार करने के लिए सज हो चुका है। जितनी विविधताएं, जितनी विशेषताएं, जितने किंतु परंतु हिन्‍दुस्‍तान में है, उतने ही सिंगापुर में है, उसके बावजूद भी हर कोई सिंगापोरियन है। हर कोई सिंगापुर बनाने में लगा हुआ है, हर कोई कंधे से कंधा मिलाकर के काम कर रहा है। हम भी इस बात में सिंगापुर से बहुत कुछ सीखना चाहते हैं। वसुधैव कुटुम्‍बकम, जिस धरती से मंत्र निकला, वहां भी जन-जन मेरे परिवार का है, हर कोई मेरा अपना है। वही भाव देश को आगे बढ़ाने की ताकत बनता है और उसी को आगे बढ़ाने की दिशा में हम लगातार कोशिश कर रहे हैं। सारी दुनिया को किस प्रकार से हिन्‍दुस्‍तान की तरफ, मैं पिछले दिनों विश्‍व के बहुत सारे नेताओं से मिला हूं। मैं जब चुनाव के मैदान में था तो मुझे पत्रकारों ने पूछा था कि आपकी विदेश नीति कैसी होगी? और मैं देख रहा था चुनाव के समय, पत्रकार बहुत बुद्धिमान होते हैं और बड़े चतुर भी होते हैं। तो जब मैं चुनाव अभियान करता था तो उनको मालूम था कि मोदी की weaknesses क्‍या है। वो बराबर लेकर के आते थे। तो उनको लगता था कि ये गुजरात जैसे छोटे राज्‍य में काम करता है, इसे हिन्‍दुस्‍तान का कोई अनुभव नहीं है, विदेश का तो सवाल ही नहीं होता। तो मुझे वो हर दूसरा-तीसरा सवाल घुमाकर के विदेश नीति पर ले आते थे। अब उस समय मैं चुनाव के कैम्‍पेन में था मैं उनको विदेश नीति क्‍या समझाऊ? लेकिन वो बराबर पकड़ लेते थे और उनको ये समझ आता था कि इसमें ये बंदा weak है और वो घुमा फिराकर मुझे वहीं ले जाते थे। तो फिर मैं इतना ही कहता था कि देखिए भाई जब हमें इस जिम्‍मेवारी को निर्वाह करने की नौबत आएगी तब क्‍या करना है वो देखेंगे, लेकिन मैं इतना विश्‍वास देता हूं, न हम आंख झुकाकर के बात करेंगे और न ही हम आंख दिखाकर के बात करेंगे, हम दुनिया से आंख मिलाकर बात करेंगे। आज 18 महीने के बाद मेरे प्‍यारे देशवासियों मैंने जो वादा किया था, वो निभाया है, न हिन्‍दुस्‍तान आंख झुकाकर के बात करता है, न कभी हिन्‍दुस्‍तान किसी को आंख दिखाने की कोशिश करता है, लेकिन हिन्‍दुस्‍तान आत्‍मविश्‍वास से भरा हुआ है, वो आंख मिलाकर के बात करता है। बराबरी से बात करता है और उसका एक परिणाम भी है। आज पूरा विश्‍व भारत के साथ बराबरी का व्‍यवहार कर रहा है। सारे विश्‍व को सवा सौ करोड़ देशवासियों वाला देश क्‍या होता है, उसकी ताकत क्‍या होती है, अब विश्‍व पहचानने भी लगा है, अनुभव भी करने लगा है। अब विश्‍व ये नहीं सोचता है कि भारत एक बहुत बड़ा बाजार है, हम अपना माल बेचने के लिए पहुंच जाएंगे, वो सोच बदल चुकी है। अब उसको लगता है, मौका मिल जाए तो हिन्‍दुस्‍तान के साथ पार्टनरशिप कर ले, भागीदारी कर ले। और ये अुनभव अब आ रहा है। इन दिनों हर क्षेत्र में ये अनुभव आ रहा है। 

भारत में विदेश का पूंजी निवेश एक बात निश्‍चित है। यहां बैठा हुआ कोई व्‍यक्‍ति ऐसा चाहता है कि हिन्‍दुस्‍तान जैसा है वैसा ही रहे, कोई चाहता है। हर कोई चाहता है न देश में बदलाव आए, हर कोई चाहता है देश आगे बढ़े, हर कोई चाहता है देश आधुनिक बने, हर कोई चाहता है देश से गरीबी मिटे, हर कोई चाहता है देश में नौजवान को रोजगार मिले। इस काम को पूरा करना है तो जहा से जो शक्‍ति मिले वो लेनी चाहिए कि नहीं लेनी चाहिए। अगर परिवार में कोई बीमार है और विेदेश की दवाई से काम चलने वाला है तो लानी चाहिए कि नहीं लानी चाहिए, बीमारी ठीक करनी चाहिए कि नहीं करनी चाहिए।

भारत में भी बहुत बड़ी मात्रा में विदेश पूंजी की जरूरत है। Foreign direct investment की आवश्‍यकता है और जब मैं FDI कहता हूं तो मेरे दिमाग में FDI एक साथ दो विषय लेकर चलती है। दुनिया की नजरों में FDI है foreign direct investment। लेकिन उस समय मेरे दिमाग में है – first develop India. और इसलिए FDI to FDI, foreign direct investment to first develop India. अब मुझे बताइए आप कितने ही सालों से पड़ोसी के बराबर-बराबर रहते हो और कभी अचानक 5-10 हजार की जरूरत पड़ गई और गए तो दे देगा क्‍या? वो कहेगा हां-हां बिलकुल, मैं तो मदद जरूर करूंगा। आप लोग ऐसा करो, आपके भाईसाहब बाहर गए है Monday को आएंगे, फिर मैं कुछ करूंगा। ऐसा ही करते हैं न, 10 हजार रुपया भी कोई बगल में देने के लिए तैयार नहीं होता। आज foreign direct investment में मैं जब सत्‍ता पर आया उसके पहले जो स्‍थिति थी, उसकी तुलना में 40% growth हुआ है 40%। हमें ये रुपयों की क्‍यों जरूरत है, कागज पर दिखाने के लिए नहीं। हमें बदलाव लाना है।

आज हमारे देश की रेलवे, मुझे बताइए रेलवे का इतना बड़ा नेटवर्क है, इतना बढ़िया नेटवर्क। दुनिया के कई देश जिसकी जनसंख्‍या है उससे ज्‍यादा लोग हमारे यहां एक समय रेल के डिब्‍बे में होते हैं। लेकिन समय रहते रेल आधुनिक होनी चाहिए कि नहीं होनी चाहिए, स्‍पीड बढ़नी चाहिए कि नहीं बढ़नी चाहिए। रेल की लंबाई बढ़नी चाहिए कि नहीं बढ़नी चाहिए, सेवाएं सुधरनी चाहिए कि नहीं सुधरनी चाहिए। अगर दुनिया के पास technology है, दुनिया के पास पैसे हैं, दुनिया के पास भारत एक अवसर है तो हमें मौका देना चाहिए कि नहीं देना चाहिए। मैं आज दुनिया में जो-जो देश रेलवे के लिए काम कर रहे हैं, उन सबसे मिला हूं, मैं कहा रहा हूं आइए। आधुनिक से आधुनिक technology लाइए और मेरे लिए रेलवे ये सिर्फ transportation नहीं है, मेरे लिए रेलवे transformation का engine है, हिन्‍दुस्‍तान के transformation का engine है। मैंने उसकी ताकत को जाना है, पहचाना है और आज विश्‍व भर के लोग। इसलिए हमने पहली बार देश में रेलवे को 100% foreign direct investment के लिए open up कर दिया है। नई technology आएगी, नई स्‍पीड आएगी, परिवर्तन आएगा और सबसे बड़ी बात।

जो लोगों विदेशों में जाते हैं उनको तो बराबर मालूम है आपकी जेब में लाखों रुपए पड़े हो, लेकिन कहीं एक चाय भी पीनी है तो मिलती है क्‍या? जब तक डॉलर नहीं होगा, चाय नहीं मिलती है। रुपया का डॉलर करना पड़ता है, रुपया का पाउंड करना पड़ता है, करना पड़ता है कि नहीं करना पड़ता है? अरे वो टैक्‍सी वाला भी कहेगा यार रुपया मेरे काम का क्‍या है भाई ये तो कागज है, मेरे काम का क्‍या है। तुम डॉलर में लाओ। भारत की करेंसी उसकी इज्‍जत बढ़नी चाहिए कि नहीं बढ़नी चाहिए, विश्‍व भारत की करेंसी को भी उतना ही सम्‍मान दे, ये हम चाहते हैं कि नहीं चाहते हैं? पहली बार लंदन के stock exchange में rupee bond के लिए हम लोग आगे बढ़े। रेलवे के लिए अब rupee bond दुनिया का कोई भी व्‍यक्‍ति रुपयों में invest कर सकता है और उसको रुपयों में वापिस मिल सकता है। ये रुपयों की इज्‍जत का कमाल है, वर्ना या तो गोल्‍ड चलता था, या डॉलर या पाउंड चलते थे। आज दुनिया के बाजार में हम रुपयों के रूप में enter कर रहे हैं। इसका कारण ये है कि पूरे विश्‍व में एक विश्‍वास पैदा हुआ है। ये जो rupee bond हमने लागू किया, अभी मैं जब UK गया था, अभी तक बहुत लोगों को पल्‍ले ही नहीं पड़ा है कि करके क्‍या आया है मोदी। अब आज मैं समझा रहा हूं तो शायद चर्चा शुरू होगी। rupee bond अपने आप में भारत की आर्थिक संपन्‍नता का एक महत्‍वपूर्ण मिसाल है और हिन्‍दुस्तान के हर नागरिक को इसे गौरव के रूप में देखना चाहिए और इसको उजागर करना चाहिए। तभी तो भारत की ताकत बढ़ती है। हम ही अपने आप को कोसते रहेंगे तो दुनिया हमारी तरफ क्‍यों देखेगी। इसलिए आत्‍मविश्‍वास के साथ एक समाज के रूप में विश्‍व के सामने हमारी एक पहचान बने, ताकत खड़ी हो, उस दिशा में हमारा प्रयास है।

आज हिन्‍दुस्‍तान में रक्षा के क्षेत्र में हमें सब चीजें import करनी पड़ती है, बाहर से लानी पड़ती है। अब आज के युग में क्‍या सवा सौ करोड़ देशवासियों को हम असुरक्षित रख सकते हैं, उनके नसीब पर छोड़ सकते हैं? देश के सवा सौ करोड़ देशवासियों को सुरक्षा की गारंटी होनी चाहिए कि नहीं होनी चाहिए? अब उसके लिए हमारे सेना के जवान डंडा लेकर के खड़ा हो जाएगा तो काम चलेगा क्‍या? उसको भी शक्‍ति संपन्‍न औजारों से ताकतवर बनाना पड़ेगा कि नहीं बनाना पड़ेगा? लेकिन क्‍या हम आजादी के 70 साल के बावजूद भी हर चीज बाहर से लाएंगे क्‍या, हर चीज import करेंगे क्‍या ? क्‍या सवा सौ करोड़ देशवासी बना नहीं सकते क्‍या? आपको हैरानी होगी, सुरक्षा के क्षेत्र में पुलिस वालों के पास एक साधन होता है – अश्रु गैस, tear gas. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए वो tear gas छिड़कते हैं। आंसू निकलते हैं तो फिर आंदोलनकारी भागते है। हम रोने के लिए भी बाहर से लाते हैं। अब रोना कि हंसना मुझे समझ नहीं आता है। ये स्‍थिति बदलनी चाहिए। भारत का बहुत एक धन defence के लिए जो चीजें हम import करते हैं उसमें खर्च हो जाता है। भारत के पास नौजवान है, भारत के पास talent है, भारत के पास raw material है, भारत की आवश्‍यकता है। क्‍यों न हमारे defence equipment हिन्‍दुस्‍तान में क्‍यों नहीं बनने चाहिए और इसलिए मैंने बीड़ा उठाया है कि भारत में रक्षा क्षेत्र में भारत अपने कदमों पर खड़ा हो और इसके लिए हमने foreign direct investment को पहली बार 49% open up कर दिया है और हमने ये भी कहा है कि अगर उत्‍तम कक्षा की technology अगर उसमें involve है तो हम उसको 100% foreign direct investment के लिए open up कर देंगे। लोग आएंगे भारत में पूंजी लगाएंगे और भारत के नौजवान शस्‍त्रार्थ बनाएंगे, वो हमारी भी रक्षा करेंगे और कही भेजना है तो भेज भी पाएंगे और इसलिए दुनिया के देश आज हमारे साथ समझौता कर रहे हैं। एक समय ऐसा था कि defence में कुछ भी खरीददारी करनी है तो हर बार corruption के आरोप लग जाते थे। इसलिए या तो निर्णय नहीं होता था, या निर्णय होता था तो कहीं न कहीं से कोई बू आती थी। 18 महीने हो गए, हमने एक के बाद एक निर्णय किए, transparency के साथ निर्णय किए और अब तक कोई हमारे ऊपर उंगली नहीं उठा पा रहा है, देश की रक्षा के लिए आवश्‍यक है।

हमारा देश दुनिया में जिन देशों के पास समृद्धि है उनके सामने एक कठिनाई भी है। दुनिया के बहुत देश ऐसे भी है जो आर्थिक संपन्‍नता की ऊंचाइयों पर पहुंच चुके हैं। लेकिन उन देशों में बुढ़ापा घर कर गया है। जवानी नहीं बची है। भारत अकेला देश ऐसा है, जो दुनिया के जवान देशों में है। भारत की 65 प्रतिशत जनसंख्‍या; 800 मिलियन लोग, 35 साल से कम उम्र के है। जो देश जवानी से लबालब भरा हुआ हो उसके सपने भी जवान होते हैं, संकल्‍प भी जवान होते हैं, इरादे भी जवान होते हैं और पुरुषार्थ भी जवान होता है। हमें demographic dividend मिला हुआ है, लेकिन ये ताकत में तब बदलेगा जब हमारे नौजवान के हाथों में हुनर होगा, skill हो, रोजगार के अवसर हो, अगर वो नहीं है तो ये 35 साल की उम्र का नौजवान लंबे समय तक इंतजार नहीं कर सकता है और इसलिए देश को ये 65 प्रतिशत नौजवान है, उनकी शक्‍ति को भारत के निर्माण में लगाना है और इसलिए हमने अभियान चलाया है skill development और skill development में सिंगापुर का ITES, उसके साथ मिलकर के हम काम कर रहे हैं। हम जर्मनी जिसने skill development में काम किया है उसके साथ काम कर रहे हैं, हम USA के साथ काम कर रहे हैं। दुनिया के देशों से जिन्‍होंने skill development में महारत हासिल की है, उसके पास जो उत्‍तम है उसे हम लाना चाहते हैं। फिर उसमें जो, हमारे लोग उसमें तो ताकतवर है, जोड़ देंगे नया। हम बहुत तेजी से आगे निकल सकते हैं और इसलिए विश्‍व के साथ जब संबंध जोड़ते हैं तो ये ताकत हमारे काम आती है।

हमारे यहां बहुत बड़ी मात्रा में Universities, Colleges खुलते चले जा रहे हैं। private भी बहुत आ रहे हैं। लेकिन faculty नहीं मिलती है। खुल तो जाता है, student भी आ जाते हैं। हमने एक योजना बनाई ज्ञान। हमने विश्‍व भर में रहने वाले लोगों से कहा विशेषकर के भारतीय समुदाय को कहा कि आप जब आपके यहां मौसम खराब रहता हो, बड़ी कड़ाके की ठंड रहती हो, बर्फ रहता हो, तकलीफ से गुजारा करना पड़ता हो तो उस समय आप भारत चले आइए। 6 महीने हमारे यहां रहिए बच्‍चों को पढ़ाइए, 6 महीने उधर चले जाइए। जब हमारे यहां गर्मी शुरू हो तो वहां चले जाना। हमने USA के साथ समझौता किया और मुझे खुशी है कि बहुत बड़ी मात्रा में, सैंकड़ों की तादाद में बड़े-बड़े विद्वान भारतीय मूल के भी और विदेशी भी जो रिटायर्ड हुए हैं, वे आज भारत में आकर के पढ़ाने के लिए तैयार हुए हैं, हमारी नई पीढ़ी को शिक्षित करने के लिए।

कहने का मेरा तात्‍पर्य यह है कि मेरी कोशिश यह है कि दुनिया में जो श्रेष्‍ठ है हिन्‍दुस्‍तान में होना चाहिए और हमारा जो श्रेष्‍ठ है उसमें दुनिया का श्रेष्‍ठ जुड़ना चाहिए। इसलिए हमारी कोशिश यह है कि हमारा देश, हमारे नौजवान उसकी शक्‍ति को जोड़कर के हम आगे बढ़ना चाहते हैं।

अब आप में से यहां बहुत लोग होंगे जिनको शायद अपने गांव में बिजली का संकट रहता होगा, जिस गांव से 24 घंटे बिजली तो नसीब ही नहीं होती होगी। वो दिन याद है न कि सब भूल गए। आजादी के 70 साल के बाद क्‍या मेरा देशवासी उसे बिजली मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए, 24 घंटे बिजली मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए? उसको मोबाइल फोन तो मिल जाता है कि लेकिन चार्जिंग के लिए दूसरे गांव जाना पड़ता है। ये स्‍थिति बदलनी है, बस बदलनी है और हम सच्‍चाई से मुंह नहीं मोड़ सकते। ये हकीकत है कि आज भी मेरे देश के लाखों परिवार, करोड़ों परिवार, हजारों गांव बिजली के संकट से जूझ रहे हैं। अगर मुझे आधुनिक हिन्‍दुस्‍तान बनाना है, हमारे बच्‍चे स्‍कूलों में कंप्‍यूटर चलना, अगर उनको सीखाना है तो बिजली की जरूरत तो पड़ेगी। हमने बीड़ा उठाया है 2022, जब भारत की आजादी के 75 साल होंगे। देश आजादी के 75 साल मनाता होगा तब हिन्‍दुस्‍तान में हर परिवार को 24 घंटे बिजली, 365 दिन मिलेगी और एक तरफ दुनिया ग्‍लोबल वार्मिंग के कारण परेशान है। दुनिया दबाव डाल रही है कि कोयले से बिजली पैदा मत करो। हम भी चाहते हैं कि दुनिया के सुख में हम भी जुड़े क्‍योंकि हम तो वो लोग है जिन्‍होंने सदियों से पर्यावरण की रक्षा की है। हम ही तो लोग है जिन्‍होंने पौधे में परमात्‍मा देखा था। हम ही तो लोग है जो जीव में शिव के दर्शन करते हैं। इस महान परंपरा से निकले हुए हम लोग हैं और इसलिए हमारे लिए तो पर्यावरण ये हमारी सांसों की तरह हमारे साथ जुड़ा हुआ है और इसलिए हम मानव जाति को नुकसान हो ऐसा कभी सोच नहीं सकते और महात्‍मा गांधी से बढ़कर के पर्यावरण का कोई ambassador नहीं हो सकता है। environment का कोई ambassador नहीं हो सकता है। शायद दुनिया में अपने जीवन काल में कम से कम कार्बन foot print वाला कोई इंसान होगा, मैं कहता हूं शायद महात्‍मा गांधी अकेले होंगे और इसलिए हम ऊर्जा तो चाहते हैं लेकिन दुनिया के लिए कोई संकट भी पैदा नहीं करना चाहते। भारत ने सपना देखा है 2030 तक 40% बिजली non fossil के माध्‍यम से होगी, कोयले के माध्‍यम से नहीं होगी। मतलब ये जो छोटे-छोटे टापू देश हैं न जिनको डर लग रहा है कि समंदर का अगर स्‍तर बढ़ गया तो डूब जाएंगे, हम आपको डूबने नहीं देंगे। हमसे जो हो सकता है वो हिन्‍दुस्‍तान करेगा क्‍योंकि हम वसुधैव कुटुम्‍बकम वाले हैं। और इसलिए nuclear energy चाहिए, renewal energy चाहिए, hydro चाहिए, solar चाहिए, wind चाहिए, biomass में से निकलना चाहिए। अब ये चीजें जो हैं खर्चीली है। हम अगर nuclear energy में जाना चाहते हैं, हमे यूरेनियम चाहिए। यूरेनियम इसलिए नहीं मिलता है कि आपको जरूरत है या आपके पास पैसे है। यूरेनियम आजकल जब मिलता है जब आप पर विश्‍व का भरोसा हो कि आप इसका शांति के लिए ही उपयोग करेंगे और किसी पाप को आप भाग नहीं करोगे तब जाकर के दुनिया यूरेनियम देती है। भारत ने ये विश्‍वास पैदा किया है। हमारी आवश्‍यकता के अुनसार दुनिया के नए-नए देश अब हमें यूरेनियम देने के लिए तैयार हो गए। पिछले 18 महीने में कजाखिस्‍तान कहो, कनाडा कहो, ऑस्‍ट्रेलिया कहो इन्‍होंने भारत को Civil nuclear energy के लिए, हमारे साथ करार किए और कुछ लोगों को डिलीवरी देना शुरू कर दिया।

हम भारत के लोग जब बिजली की बात करते हैं तो ज्‍यादा से ज्‍यादा पहले तो यूनिट पे चर्चा करते थे, कितने यूनिट बिजली, कितना दाम वगैरह। थोड़ा आगे बढ़े, तो हम मेगावाट पर सोचने लगे भई इतना मेगावाट, इतना मेगावाट। भारत ने कभी बिजली के क्षेत्र में मेगावाट से आगे सोचा ही नहीं। हमने पहली बार फैसला किया है hundred seventy five gigawatt, Hundred seventy five gigawatt renewable energy. बड़ी सामान्‍य बुद्धि का विषय होता है। हम लोग स्‍कूल में जब exam देते थे तो टीचर क्‍या सिखाते थे? टीचर सिखाते थे कि exam में जाते हो तो देखा भाई जो सरल सवाल है उसको पहले उठाओ। ये ही सिखाते थे ना? मेरे टीचर ने तो ये ही सिखाया था। आपको भी वैसे ही सिखाया होगा कि जो easy question है उसको पहले address करो और जो कठिन है तो बाद में समय बच जाये तब देख लेना। ये होता है ना? मुझे बताइए हमारे पास कितना सूरज तपता है, करीब-करीब 365 दिन सूरज तपता हो और हम बच्‍चों को भी environment बढि़या ढंग से सिखाते हैं। हर मां बच्‍चे को कहती है कि ये चांदा तेरा मामा है और सूरज तेरा दादा है। लेकिन हमने कभी उस दादा की उंगली पकड़कर के चलना सीखा नहीं। क्‍यों न सूर्य शक्‍ति हमारे जैसे देश की विकास का बड़ा स्‍तंभ बन सकता है और इसलिए solar energy पर हम बल दे रहे हैं। 100 gigawatt solar energy, wind energy, biomass. मेरा जो clean India movement है न, 500 शहरों का जो कूड़ा-कचरा है, गंदगी हैं उसमें से बिजली पैदा करना, भले ही महंगी पड़े, लेकिन मेरा साफ शहर बनना चाहिए।

अब इन चीजों के लिए विदेशों से धन चाहिए, विदेशों से technology चाहिए, विदेशों से manufacturing करने वाले लोग चाहिए, जिन लोगों की इन चीजों में मास्‍टरी है वो लोग चाहिए, और मैं बड़े आनंद से कह सकता हूं कि आज दुनिया को भारत के hundred seventy five gigawatt renewable energy में इतना आकर्षण पैदा हुआ है, विश्‍व के राजनेताओं को ताज्‍जुब हो रहा है और विश्‍व के पूंजी निवेशकों को एक नया अवसर नजर आ रहा है कि वो भारत में आकर के बिजली के उत्‍पादन के अंदर हमारे साथ जुड़ने के लिए तैयार हो रहे हैं।

दुनिया के साथ संबंध होते हैं, वो संबंध goody-goody बातों से नहीं होते हैं। विश्‍व या तो आपका लोहा मानता है, या विश्‍व अपनेपन की भाषा समझता है। आज मैं संतोष के साथ कहता हूं कि विश्‍व के साथ भारत ने ऐसे संबंधों को बनाने का रूप लिया है। आप मुझे बताइए, पश्चिम एशिया के देशों में जो तूफान चल रहा है, निर्दोषों को मौत के घाट उतारा जा रहा है, आतंकवाद अपनी चरम सीमा पर है। उन देशों में 70 लाख हिन्‍दस्‍तानी रहते हैं, 70 लाख, seven million. आप मुझे बताइए आप सिंगापुर में रहते हैं इसलिए बहुत जल्‍द बात को समझोगे। क्‍या उनको उनके नसीब पे छोड़ देना चाहिए क्‍या? उन पर संकट आएगा तो किसी तरफ देखेंगे? किसकी तरफ देखेंगे? वे मुसीबत में होंगे तो किसकी तरफ देखेंगे? और तब भारत ये कहे के बेटे तुम तो चले गए थे अब क्‍या याद कर रहे हो, चलेगा क्‍या? अगर कहीं से आवाज उठती है, कहीं से एक भी सिसकी सुनाई देती है तो दूसरे ही पल उसको ये ही आवाज सुनाई देनी चाहिए कि चिंता मत करो, भारत है ना। कहीं पर भी सिसकी सुनाई दे, उसको ये ही आवाज सुनाई देनी चाहिए, हां भारत है ना। और एक बार उसके कान में स्‍वर गूंजता है तो वो निश्चिंत हो जाता है, ठीक है संकट के बादल आए हैं लेकिन मेरा देश मुझे बचा लेगा। और तब, ये विश्‍व के रिश्‍ते काम आते हैं, संबंध काम आते हैं। यमन हो, ईराक हो, हजारों की तादाद में हमारे भारतीय भाई-बहन फंसे थे, even हमारी केरल की Nurses बहनें, जीवन और मौत के बीच वो पल उन्‍होंने कैसे बिताए होंगे हम कल्‍पना कर सकते हैं।

लेकिन विश्‍व के साथ जो संबंध जुड़े हैं दुनिया के कुछ देशों से प्रार्थना की कि देखिए इसमें क्‍या मदद कर सकते हैं और मैं आज संतोष के साथ कह सकता हूं उन देशों ने हमारी इन बच्चियों को ला करके केरल तक पहुंचाने में हमारी भरपूर मदद की है। यमन में हमारे हजारों लोग फंसे थे, हम तीन महीने से उनको कह रहे थे कि भई निकलो, निकलो, निकलो। लेकिन कोई निकलने को तैयार नहीं था। ये बाहर जो रहते हैं इतनी बात ध्‍यान रखें भई। कितना हम समझाऐं वो, नहीं नहीं साहब वो तो देखा जाएगा। क्‍योंकि इतने प्‍यार से रहते थे, इतनी निकटता थी, उनको शक ही नहीं था कि कभी कोई मुसीबत आ सकती है? लेकिन चारों तरफ Bombarding शुरू हुआ। हमने दुनिया के कुछ देशों के लोगों के साथ मैंने फोन पर बात की। और आज मैं संतोष के साथ कहना हूं दुनिया के उन देशों ने हमारी मदद की और हम हजारों की तादाद में हमारे सभी यमन में फंसे हुए नागरिकों को ले करके वापिस आए। ईराक हो, लीबिया हो, यमन हो, विश्‍व के साथ संबंध आज के युग में हर पल, हर समय आवश्‍यकता होती है। अरे कभी-कभार नेपाल में हमारे यात्री चले जाएं और एक बस गड्ढे में पड़ जाए, अगर नेपाल सरकार के साथ नाता नहीं होगा तो उन बेचारों का कौन देखेगा? विश्‍व के साथ संबंध बनाने का प्रयास और formality से नहीं चलता, आज युग बदल चुका है, जीवंत नाता होना अनिवार्य होता है और तब जा करके हमारे देशवासियों की जिंदगी दांव पर लगी हो तब वो संबंध काम आ जाते हैं और उनकी जिंदगी बच जाती है।

दुनिया के किसी एक देश में कोई एक भारतीय की जान चली जाए तो पूरा हिंदुस्‍तान बेचैन हो जाता है, हजारों की जान बच जाएं तो खुशी कितनी हो सकती है इसका आप अंदाज लगा सकते हो भाई। और इसलिए हमारी ये कोशिश रही है कि भारत विकास की नई ऊंचाइयों को पार करे और आज वो जमाना नहीं है कि आपने चार देशों के साथ दोस्‍ती बना ली तो गाड़ी चल जाएगी। पहले तो दुनिया दो गुटों में बंटी हुई थी, आप किसी गुट के साथ दोस्‍ती कर लो तो वो गुट आपकी रखवाली कर लेता था। आज वो युग नहीं है। आज पूरा विश्‍व Inter-dependent हो गया है। कोई भी दुनिया का देश Isolated नहीं रह सकता है और कोई भी दुनिया का देश अकेला ही सब कर लूंगा, दुनिया का समृद्ध से समृद्ध देश होगा, ताकतवर से ताकतवर देश होगा, लेकिन छोटे से छोटे देश पर भी वो dependent होता है। पूरी दुनिया Inter-dependent है। भारत ने अगर दुनिया में आगे बढ़ना है, भारत ने अपनी जगह बनानी है तो Inter-dependent इस दुनिया के अंदर हमने भी अपने संबंधों को ताजगी देनी पड़ती है। देश छोटा, कितना ही छोटा क्‍यों न हो, लेकिन union में उसकी ताकत होती है। आप कल्‍पना कर सकते हैं, मैं हिंदुस्‍तान के वासियों को कहूं कि गैस की Subsidy छोड़ दो, 40 लाख लोग Gas Subsidy छोड़ दें, भारत का वक्‍त कैसा बदला है।

अगर हिंदुस्‍तान ये कहे कि दुनिया नाक पकड़ ले, योगा करे, हमने किसी को कान पकड़ने के लिए नहीं कहा है। 21 जून को पूरा विश्‍व अंतर्राष्‍ट्रीय योगा दिवस मनाए। कौन भारतीय होगा जिसको इस बात का गर्व नहीं हुआ होगा भाइयो, बहनों। जिस दिन Neil Armstrong ने चन्‍द्रमा पर पग रखा होगा, सिर्फ American नहीं, विश्‍व की मानव जात ने गौरव अनुभव किया होगा। आज जब 21 जून को पूरा विश्‍व Holistic Health Care को ले करके योगा दिवस बनाने के लिए आगे आ जाए, कोई बंधन नहीं, कोई रंग नहीं, कोई रूप नहीं, कोई परंपरा नहीं, कोई सम्‍प्रदाय नहीं, कोई बाधाएं नहीं, एक मन से योगा के लिए विश्‍व तैयार हो गया। और दुनिया की पहली घटना है कि इतने कम समय में, United Nation में ये प्रस्‍ताव पारित हुआ, इतने देशों ने इसको Co-sponsor किया, और दुनिया के इतने देशों ने इसको बनाया। सिगापुर ने भी बड़े धूमधाम से योगा दिवस बनाया। अब ये कोई, मोदी कोई योगा लाया है क्‍या? ये तो था ही था। लेकिन हमें हमारे पर भरोसा नहीं था क्‍योंकि हम संकोच करते थे, यार किसी को कहेंगे तो पता नहीं वो नाक चढ़ा देगा, और पता नहीं इंकार कर देगा तो, अगर हमारा अपने-आप में विश्‍वास हो तो दुनिया हमारे साथ चलने के लिए तैयार होती है। दुनिया भी, दुनिया भी शांति की तलाश में है, दुनिया भी संतोष की तलाश में है, कोई तो आएं जो अंगुली पकड़ करके चलाएं, दुनिया चलने के लिए तैयार है और भारत, भारत आज तैयार हुआ है विश्‍व के साथ कंधे से कंधा मिला करके तैयार हुआ है, चल सकता है भारत।

भाइयों, बहनों मेरा एक ही काम लेकर के मैं निकला हूं और उस काम को पूरा करने के लिए मुझे आपका आशीर्वाद चाहिए। सवा सौ करोड़ देशवासियों के आशीर्वाद के साथ-साथ विश्‍व में फैले हुए मेरे भारत के प्‍यारे भाइयों-बहनों, आपके आशीर्वाद चाहिए। और वो काम है, एक ही काम करना है मुझे, विकास, विकास, विकास। और वो विकास जो गरीब के आंसू पोंछने की ताकत रखता हो, वो विकास जो नौजवान को रोजगार देता हो, वो विकास जो किसान की जिंदगी में खुशहाली लाता हो, वो विकास जो हमारी माताओं-बहनों को empower करता हो, वो विकास जो एकता और अखंडता के मंत्र को ले करके विश्‍व के अंदर सिर ऊंचा करके खड़ा रह सकता हो, वैसा विकास करने का सपना ले करके मैं चला हूं। भारत आगे बढ़े इतना काफी नहीं है, भारत आधुनिक बने ये भी उतना ही आवश्‍यक है। हम सिर्फ, कभी-कभी क्‍या होता है, आप देखा होगा, किसी senior citizen को आप मिलोगे, 70 साल की उम्र हो गई होगी, 80 साल की उम्र हो गई होगी, पोते-पोतियां नमस्‍ते करने जाएंगे तो वो क्‍या करता है, आओ बैठो, देखो मैं जब 30 साल का था ना ऐसा करता था और बच्‍चों ने ये बात दस बार सुनी होगी, तो जब दादा बुलाते हैं तो बच्‍चे भाग जाते हैं। उनको लगता है कि ये दादा अब फिर कुछ कथा सुनाएंगे। ऐसा हम देखते हैं, परिवार के जीवन में हम देखते हैं। बालक भी लंबे समय तक पुराने पराक्रमों को सुनने के लिए तैयार नहीं हैं।

मैं देशवासियों को ये कहने की हिम्‍मत करता हूं आज, हमारे पूर्वजों ने जो परा‍क्रम किए हैं, वो हमारी प्रेरणा के कारण बन सकते हैं लेकिन हमारे पूर्वजों के पराक्रम पर गीत गाते-गाते हम गुजारा नहीं कर सकते हैं। हमने अपने युग में, हमने पूर्वजों के पराक्रम से प्ररेणा ले करके अपने वर्तमान को भी उज्‍जवल करना है, और भविष्‍य की मजबूत नींव डालना ये हमारा दायित्‍व बनता है। सिर्फ महान संस्‍कृति, महान परंपरा, पांच हजार साल का उज्‍ज्‍वल इतिहास, इसी के गीत गाते रहें और पड़ोसी को कभी पानी भी पिलाने को तैयार न हों, ऐसा कभी मेरा देश नहीं हो सकता है। और इसलिए पूवर्जों के पराक्रम, महान संस्‍कृति, महान परंपरा, उसकी जो उत्‍तम चीजें हैं, उसको हमें प्रेरणा लेनी है लेकिन अपने पसीने से वर्तमान को भरना है। अपनी इच्‍छाशक्ति से इसकी मजबूत नींव डालनी है ताकि आने वाली पीढ़ी ये न कहे कि आपने पूर्वजों ने तो बहुत कर के गये, तुम बताओ बेटे तुमने क्‍या किया? ये सवाल का जवाब देने का हमारे में हौसला होना चाहिए ऐसा हिंदुस्‍तान बनाना है। अपने सामर्थ्‍य से, अपने पराक्रम से, अपने पुरुषार्थ से, अपने त्‍याग से, अपनी तपस्‍या से, हमने हमारे देश को बनाना चाहिए, हमने हमारे देश को आगे बढ़ाना चाहिए और हमारे जो मूल्‍य हैं, सांस्‍कृतिक विरासतें हैं उसको विश्‍व को परिचित कराना चाहिए, ये जब तक हम संतुलन नहीं करते, दुनिया हमें स्‍वीकार नहीं करेगी।

मुझे विश्‍वास है कि विकास के इन सपनों को ले करके जो हम चल रहे हैं, उसमें आपका पूरा-पूरा योगदान रहेगा। भारत का गौरव बढ़ाने के लिए हम जहां हों, जहां भी हों हम जरूर अपनी तरफ से प्रयास करते रहें। दुनिया को देने के लिए इस देश के पास बहुत कुछ है। अनेक संकटों के बाद भी आज भी सीना तान करके खड़े रहने की हम में हिम्‍मत है। लेकिन सीना सीना तानना पड़े, दिन आने नहीं चाहिए। और वो तब होता है, जब हम अपने वर्तमान को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए पुरुषार्थ करते हैं, सामूहिक पुरुषार्थ करते हैं, सामर्थ्‍य के साथ चलते हैं, तब जा करके परिणाम मिलता है।

सिंगापुर को हर किसी ने बनाया है, हर कोई बना रहा है, और सिंगापुर भी अगल-बगल के मुल्‍कों को बनाने की ताकत रखता है। मैं सिंगापुर को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, इस सिंगापुर की विकास यात्रा को मैं नमन करता हूं। इस सिंगापुर ने, सिंगापुर सचमुच में सौ-सौ सलाम करने वाला देश बन गया है, मैं उसको मेरी तरफ से बहुत-बहुत बधाई देता हूं और सवा सौ करोड़ का देश हिंदुस्‍तान वो भी उमंग और उत्‍साह के साथ आगे बढ़ेगा इसी एक संकल्‍प के साथ मैं फिर एक बार सभी को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं, बहुत-बहुत धन्‍यवाद करता हूं। धन्‍यवाद। Thank You.

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મારા પ્રિય દેશવાસીઓ, નમસ્કાર. 2025 બસ હવે તો આવી જ ગયું છે, દરવાજે ટકોરા મારી જ રહ્યું છે. 2025માં 26 જાન્યુઆરીએ આપણા બંધારણને લાગુ થવાનાં 75 વર્ષ થવા જઈ રહ્યાં છે. આપણા બધા માટે ખૂબ જ ગૌરવની વાત છે. આપણા બંધારણના ઘડવૈયાઓએ આપણને જે બંધારણ સોંપ્યું છે તે સમયની દરેક કસોટી પર ખરું ઉતર્યું છે. બંધારણ આપણા માટે માર્ગદર્શક પ્રકાશ છે, આપણું માર્ગદર્શક છે. ભારતના બંધારણના કારણે જ હું આજે અહીં છું, તમારી સાથે વાત કરી રહ્યો છું. આ વર્ષે 26 નવેમ્બરે બંધારણ દિવસથી એક વર્ષ ચાલનારી અનેક પ્રવૃત્તિઓ શરૂ થઈ છે. દેશના નાગરિકોને બંધારણના વારસા સાથે જોડવા માટે constitution75.com નામથી એક વિશેષ વેબસાઇટ પણ બનાવવામાં આવી છે. તેમાં તમે બંધારણની પ્રસ્તાવના વાંચીને તમારો વીડિયો અપલૉડ કરી શકો છો. અલગ-અલગ ભાષાઓમાં બંધારણ વાંચી શકો છો, બંધારણ વિશે પ્રશ્ન પણ પૂછી શકો છો. ‘મન કી બાત’ના શ્રોતાઓને, શાળામાં ભણનારાં બાળકોને, કૉલેજમાં જનારા યુવાનોને, મારો અનુરોધ છે કે આ વેબસાઇટ પર જરૂર જઈને જુઓ, તેનો હિસ્સો બનો.

સાથીઓ, આગામી મહિને 13 તારીખે પ્રયાગરાજમાં મહાકુંભ પણ થવા જઈ રહ્યો છે. આ સમયે ત્યાં સંગમ તટ પર જબરદસ્ત તૈયારીઓ ચાલી રહી છે. મને યાદ છે, હમણાં કેટલાક દિવસો પહેલાં જ્યારે હું પ્રયાગરાજ ગયો હતો તો હેલિકૉપ્ટરથી પૂરું કુંભ ક્ષેત્ર જોઈને મન પ્રસન્ન થઈ ગયું હતું. કેટલું વિશાળ ! કેટલું સુંદર ! કેટલી ભવ્યતા !

સાથીઓ, મહાકુંભની વિશેષતા કેવળ તેની વિશાળતામાં જ નથી. કુંભની વિશેષતા તેની વિવિધતામાં પણ છે. આ આયોજનમાં કરોડો લોકો એકત્રિત થાય છે. લાખો સંતો, હજારો પરંપરાઓ, સેંકડો સંપ્રદાય, અનેક અખાડાઓ, દરેક આ આયોજનનો હિસ્સો બને છે. ક્યાંય કોઈ ભેદભાવ દેખાતો નથી, કોઈ મોટું નથી હોતું, કોઈ નાનું નથી હોતું. અનેકતામાં એકતાનું આવું દૃશ્ય વિશ્વમાં બીજે ક્યાંય જોવા નહીં મળે. આથી જ આપણો કુંભ એકતાનો મહા કુંભ પણ હોય છે. આ વખતનો મહા કુંભ પણ એકતાના મહા કુંભના મંત્રને સશક્ત કરશે. હું તમને બધાને કહીશ, જ્યારે આપણે કુંભમાં સહભાગી થઈએ તો એકતાના આ સંકલ્પને પોતાની સાથે લઈને પાછા જઈએ. આપણે સમાજમાં વિભાજન અને વિદ્વેષના ભાવને નષ્ટ કરવાનો સંકલ્પ પણ લઈએ. જો ઓછા શબ્દોમાં મારે કહેવું હોય તો હું કહીશ...

મહાકુંભ કા સંદેશ,

એક હો પૂરા દેશ...

અને જો બીજી રીતે કહેવું હોય તો કહીશ...

ગંગા કી અવિરલ ધારા,

ન બાંટે સમાજ હમારા...

સાથીઓ, આ વખતે પ્રયાગરાજમાં દેશ અને દુનિયાના શ્રદ્ધાળુ ડિજિટલ મહાકુંભના સાક્ષી પણ બનશે. ડિજિટલ નેવિગેશનની મદદથી તમને અલગ-અલગ ઘાટ, મંદિર, સાધુઓના અખાડા સુધી પહોંચવાનો રસ્તો મળશે. આ નેવિગેશન પ્રણાલિ તમને પાર્કિંગ સુધી પહોંચવામાં પણ મદદ કરશે. પહેલી વાર કુંભના આયોજમાં AI ચેટબોટનો પ્રયોગ થશે. AI ચેટબોટના માધ્યમથી 11 ભારતીય ભાષાઓમાં કુંભ સાથે જોડાયેલી દરેક પ્રકારની જાણકારી પણ મેળવી શકાશે. આ ચેટબોટથી કોઈ પણ લખાણ લખીને કે બોલીને કોઈ પણ પ્રકારની મદદ માગી શકે છે. સમગ્ર મેળા ક્ષેત્રને એઆઈથી સંચાલિત કેમેરાથી આવરી લેવામાં આવી રહ્યું છે. કુંભમાં જો કોઈ પોતાના પરિચિતથી વિખૂટો પડી જશે તો આ કેમેરાથી તેમને શોધવામાં પણ મદદ મળશે. શ્રદ્ધાળુઓને ડિજિટલ ખોયા-પાયા કેન્દ્રની સુવિધા પણ મળશે. શ્રદ્ધાળુઓને મોબાઇલ પર સરકાર માન્ય ટૂર  પેકેજ, ઉતારાની જગ્યા અને ઘરમાં ઉતારા વિશે પણ જાણકારી આપવામાં આવશે. તમે પણ મહાકુંભમાં જાવ તો આ સુવિધાઓનો લાભ ઉઠાવો અને હા, #EktaKaMahakumbhની સાથે પોતાની સેલ્ફી અવશ્ય અપલૉડ કરજો.

સાથીઓ, 'મન કી બાત' અર્થાત MKBમાં હવે વાત KTBની, જે વડીલો-વૃદ્ધો છે, તેમનામાંથી, ઘણા બધા લોકોને KTB વિશે જાણકારી નહીં હોય. પરંતુ જરા બાળકોને પૂછો. KTB તેમની વચ્ચે ખૂબ જ લોકપ્રિય છે. KTB અર્થાત કૃષ, તૃષ ઔર બાલ્ટીબૉય. તમને કદાચ ખબર હશે કે બાળકોની મનગમતી એનિમેશન શ્રેણી અને તેનું નામ છે KTB- ભારત હૈ હમ અને તેની બીજી સીઝન પણ આવી ગઈ છે. આ ત્રણ એનિમેશન પાત્રો આપણને ભારતીય સ્વતંત્રતા સંગ્રામના તે નાયક-નાયિકાઓ વિશે જણાવે છે જેની બહુ ચર્ચા થતી નથી. તાજેતરમાં તેની સીઝન-2 ખૂબ જ વિશેષ અંદાજમાં ગોવામાં ભારતના આંતરરાષ્ટ્રીય ફિલ્મોત્સવમાં રજૂ કરાઈ હતી. સૌથી શાનદાર વાત એ છે કે આ શ્રેણી ભારતની અનેક ભાષાઓમાં જ નહીં, પરંતુ વિદેશી ભાષાઓમાં પણ પ્રસારિત થાય છે. તેને દૂરદર્શનની સાથેસાથે અન્ય ઑટીટી મંચ પર પણ જોઈ શકાય છે.

સાથીઓ, આપણી એનિમેશન ફિલ્મોની, રેગ્યુલર ફિલ્મોની, ટીવી ધારાવાહિકોની લોકપ્રિયતા બતાવે છે કે ભારતના સર્જનાત્મક ઉદ્યોગમાં કેટલી ક્ષમતા છે. આ ઉદ્યોગ દેશની પ્રગતિમાં તો મોટું યોગદાન આપી જ રહ્યો છે, પરંતુ આપણા અર્થતંત્રને પણ નવી ઊંચાઈ પર લઈ જઈ રહ્યો છે. આપણો ફિલ્મ અને મનોરંજન ઉદ્યોગ ખૂબ જ વિશાળ છે. દેશની અનેક ભાષાઓમાં ફિલ્મો બને છે, ક્રિએટિવ કન્ટેન્ટ બને છે. હું આપણા ફિલ્મ અને મનોરંજન ઉદ્યોગને એટલા માટે પણ અભિનંદન આપું છું કારણકે તેણે 'એક ભારત - શ્રેષ્ઠ ભારત'ના ભાવને સશક્ત કર્યું છે.

સાથીઓ, વર્ષ 2024માં આપણે ફિલ્મ જગતની અનેક મહાન હસ્તીઓની 100મી જયંતી મનાવી રહ્યા છીએ. આ વિભૂતિઓએ ભારતીય સિનેમાને વિશ્વ સ્તર પર ઓળખ અપાવી છે. રાજ કપૂરજીએ ફિલ્મોના માધ્યમથી દુનિયાને ભારતના સૉફ્ટ પાવરથી પરિચિત કરાવ્યું. રફી સાહેબના અવાજમાં જે જાદૂ હતો તે દરેકના હૈયાને સ્પર્શી જતો હતો. તેમનો અવાજ અદ્ભુત હતો. ભક્તિ ગીત હોય કે રૉમેન્ટિક ગીત, દર્દભર્યાં ગીતો હોય, દરેક ભાવનાને તેમણે પોતાના અવાજથી જીવંત કરી દીધી. એક કલાકારના રૂપમાં તેમની મહાનતાનો અંદાજ એ વાત પરથી લગાવી શકાય છે કે આજની યુવા પેઢી પણ તેમનાં ગીતોને એટલી જ તલ્લીનતાથી સાંભળે છે- આ જ તો છે શાશ્વત કળાની ઓળખ. અક્કિનેની નાગેશ્વર રાવ ગારુએ તેલુગુ સિનેમાને નવી ઊંચાઈ સુધી પહોંચાડ્યું છે. તેમની ફિલ્મોએ ભારતીય પરંપરાઓ અને મૂલ્યોને સરસ રીતે પ્રસ્તુત કર્યાં. તપન સિંહાજીની ફિલ્મોએ સમાજને એક નવી દૃષ્ટિ આપી. તેમની ફિલ્મોમાં સામાજિક ચેતના અને રાષ્ટ્રીય એકતાનો સંદેશ રહેતો હતો. આપણા પૂરા ફિલ્મોદ્યોગ માટે આ હસ્તીઓનું જીવન પ્રેરણા જેવું છે.

સાથીઓ, હું તમને બીજી એક ખુશખબર આપવા માગું છું. ભારતની સર્જનાત્મક પ્રતિભાને દુનિયા સામે રાખવાનો એક ખૂબ જ મોટો અવસર આવી રહ્યો છે. આગામી વર્ષે આપણા દેશમાં પહેલી વાર વર્લ્ડ ઑડિયો વિઝ્યુઅલ એન્ટરટેઇનમેન્ટ સમિટ અર્થાત WAVES શિખર પરિષદનું આયોજન થવાનું છે. તમે બધાએ દાવોસ વિશે તો સાંભળ્યું હશે જ્યાં દુનિયાના આર્થિક ક્ષેત્રના મહારથીઓ ભેગા થાય છે. આ જ રીતે વેવ્સ સમિટમાં દુનિયા ભરના મીડિયા અને મનોરંજન જગતના દિગ્ગજો, સર્જનાત્મક વિશ્વના લોકો ભારત આવશે. આ શિખર પરિષદ ભારતને વૈશ્વિક સામગ્રી સર્જનનું કેન્દ્ર બનાવવાની દિશામાં એક મહત્ત્વપૂર્ણ ડગ છે. મને એ જણાવતાં ગર્વ થાય છે કે આ શિખર પરિષદની તૈયારીમાં આપણા દેશના યુવા સર્જકો પણ પૂરા જુસ્સા સાથે જોડાઈ રહ્યા છે. જ્યારે આપણે પાંચ ટ્રિલિયન ડૉલર અર્થતંત્રની તરફ આગળ વધી રહ્યા છીએ, ત્યારે આપણું સર્જનાત્મક અર્થતંત્ર એક નવી ઊર્જા લાવી રહી છે. હું ભારતના પૂરા મનોરંજન અને સર્જનાત્મક ઉદ્યોગને અનુરોધ કરીશ - ચાહે તમે યુવાન સર્જક હોય કે સ્થાપિત કલાકાર, બૉલિવૂડ સાથે જોડાયેલા હો કે પ્રાદેશિક સિનેમા સાથે, ટીવી ઉદ્યોગના વ્યાવસાયિક હોય કે એનિમેશનના નિષ્ણાત, ગેમિંગ સાથે જોડાયેલા હો કે મનોરંજન ટૅક્નૉલૉજીના શોધક, તમે બધા વેવ્સ સમિટનો હિસ્સો બનો.

મારા પ્રિય દેશવાસીઓ, તમે બધા જાણો છો કે ભારતીય સંસ્કૃતિનો પ્રકાશ આજે કેવી રીતે દુનિયાના ખૂણેખૂણે ફેલાઈ રહ્યો છે. આજે હું તમને ત્રણ મહા દ્વીપોના એવા પ્રયાસો વિશે જણાવીશ જે આપણી સાંસ્કૃતિક વિરાસતના વૈશ્વિક વિસ્તારના સાક્ષી છે. આ બધા એકબીજાથી માઇલો દૂર છે. પરંતુ ભારતને જાણવા અને આપણી સંસ્કૃતિ પાસેથી શીખવાની તેમની ધગશ એક સરખી છે.

સાથીઓ, ચિત્રકામનો સંસાર જેટલો રંગોથી ભરાયેલો હોય છે, તેટલો જ સુંદર હોય છે. તમારમાંથી જે લોકો ટીવીના માધ્યમથી 'મન કી બાત' સાથે જોડાયેલા છો, તેઓ અત્યારે કેટલાંક ચિત્રો ટીવી પર જોઈ શકે છે. આ ચિત્રોમાં આપણાં દેવી-દેવતા, નૃત્યની કળાઓ અને મહાન વિભૂતિઓને જોઈને તમને ઘણું સારું લાગશે. તેમાં તમને ભારતમાં મળી આવતાં જીવ-જંતુઓથી માંડીને બીજું પણ ઘણું બધું જોવા મળશે. તેમાં તાજમહલનું એક શાનદાર ચિત્ર પણ છે, જેને 13 વર્ષની એક બાળકીએ બનાવ્યું છે. તમને એ જાણીને નવાઈ લાગશે કે આ દિવ્યાંગ બાળકીએ પોતાના મોઢાની મદદથી આ ચિત્ર બનાવ્યું છે. સૌથી રસપ્રદ વાત એ છે કે આ ચિત્રકામને બનાવનારા ભારતના નહીં પણ ઇજિપ્તના વિદ્યાર્થીઓ છે. કેટલાંક અઠવાડિયાં પહેલાં ઇજિપ્તના લગભગ 23 હજાર વિદ્યાર્થીઓએ એક ચિત્રકામ સ્પર્ધામાં ભાગ લીધો હતો. ત્યાં તેમને ભારતની સંસ્કૃતિ અને બંને દેશોના ઐતિહાસિક સંબંધોને બતાવનારાં ચિત્રો બનાવવાનાં હતાં. હું આ સ્પર્ધામાં ભાગ લેનારા બધા યુવાનોની પ્રશંસા કરું છું. તેમની સર્જનાત્મકતાની જેટલી પણ પ્રશંસા કરવામાં આવે તે ઓછી છે.

સાથીઓ, દક્ષિણ અમેરિકાનો એક દેશ છે - પરાગ્વે. ત્યાં રહેનારા ભારતીયોની સંખ્યા એક હજારથી વધુ નહીં હોય. પરાગ્વેમાં એક અદ્ભુત પ્રયાસ થઈ રહ્યો છે. ત્યાં ભારતીય દૂતાવાસમાં એરિકા હ્યુબર આયુર્વેદની સલાહ નિઃશુલ્ક આપે છે. આયુર્વેદની સલાહ લેવા માટે આજે તેમની પાસે સ્થાનિક લોકો પણ મોટી સંખ્યામાં પહોંચી રહ્યા છે. એરિકા હ્યુબરે ભલે એન્જિનિયરિંગનો અભ્યાસ કર્યો હોય, પરંતુ તેમનું મન તો આયુર્વેદમાં જ વસે છે. તેમણે આયુર્વેદ સાથે જોડાયેલા કૉર્સ કર્યા હતા અને સમયની સાથે તેઓ તેમાં પારંગત થતાં ગયાં.

સાથીઓ, એ આપણા માટે બહુ ગર્વની વાત છે કે દુનિયાની સૌથી પ્રાચીન ભાષા તમિળ છે અને દરેક હિન્દુસ્તાનીને તેનો ગર્વ છે. દુનિયાભરના દેશોમાં તેને શીખનારાઓની સંખ્યા સતત વધી રહી છે. ગત મહિનાના અંતમાં ફિજીમાં ભારત સરકારના સહયોગથી તમિલ ટીચિંગ પ્રોગ્રામ શરૂ થયો. વિતેલાં 80 વર્ષોમાં આ પહેલો અવસર છે જ્યારે ફિજીમાં તમિલના પ્રશિક્ષિત શિક્ષકો આ ભાષા શીખવાડી રહ્યા છે. મને એ જાણીને સારું લાગ્યું કે આજે ફિજીમાં વિદ્યાર્થીઓ તમિળ ભાષા અને સંસ્કૃતિને શીખવામાં ઘણો રસ લઈ રહ્યા છે.

સાથીઓ, આ વાતો, આ ઘટનાઓ, માત્ર સફળતાની વાર્તાઓ નથી. તે આપણા સાંસ્કૃતિક વારસાની પણ ગાથાઓ છે. આ ઉદાહરણ આપણને ગર્વથી ભરી દે છે. કળાથી આયુર્વેદ સુધી અને ભાષાથી લઈને સંગીત સુધી, ભારતમાં એટલું બધું છે જે દુનિયામાં છવાઈ રહ્યું છે.

સાથીઓ, ઠંડીની આ ઋતુમાં દેશભરમાં રમતો અને ફિટનેસ સંદર્ભે અનેક પ્રવૃત્તિઓ થઈ રહી છે. મને આનંદ છે કે લોકો ફિટનેસને પોતાની દિનચર્યાનો હિસ્સો બનાવી રહ્યા છે. કાશ્મીરમાં Skiingથી લઈને ગુજરાતમાં પતંગબાજી સુધી, બધી જગ્યાએ, રમત અંગે ઉત્સાહ જોવા મળી રહ્યો છે. #SundayOnCycle અને #CyclingTuesday જેવાં અભિયાનોથી સાઇકલ ચલાવવાને પ્રોત્સાહન મળી રહ્યું છે.

સાથીઓ, હવે હું તમને એક એવી અનોખી વાત કરવા ઇચ્છું છું જે આપણા દેશમાં થઈ રહેલાં પરિવર્તન અને યુવા સાથીઓના જુસ્સા તેમજ ધગશનું પ્રતીક છે. શું તમે જાણો છો કે આપણા બસ્તરમાં એક અનોખી ઑલિમ્પિક શરૂ થઈ છે? જી હા, પહેલી વાર બસ્તર ઑલિમ્પિકથી બસ્તરમાં એક નવી ક્રાંતિ જન્મ લઈ રહી છે. મારા માટે એ ખૂબ જ ખુશીની વાત છે કે બસ્તર ઑલિમ્પિકનું સપનું સાકાર થયું છે. તમને પણ એ જાણીને સારું લાગશે કે તે એવા ક્ષેત્રમાં થઈ રહી છે જે ક્યારેક માઓવાદી હિંસાનું સાક્ષી રહ્યું છે. બસ્તર ઑલિમ્પિકનો શુભંકર છે- 'વન પાડો' અને 'પહાડી મેના'. તેમાં બસ્તરની સમૃદ્ધ સંસ્કૃતિની ઝલક જોવા મળે છે. આ બસ્તર ખેલ મહાકુંભનો મૂળ મંત્ર છે-

‘करसाय ता बस्तर बरसाए ता बस्तर’

અર્થાત ‘ખેલેગા બસ્તર – જીતેગા બસ્તર’ |

પહેલી જ વારમાં બસ્તર ઑલિમ્પિકમાં સાત જિલ્લાના એક લાખ 65 હજાર ખેલાડીઓએ ભાગ લીધો છે. આ માત્ર એક આંકડો જ નથી- આ આપણા યુવાનોના સંકલ્પની ગૌરવ ગાથા છે. એથ્લેટિક્સ, તીરંદાજી, બૅડમિન્ટન, ફૂટબૉલ, હૉકી, વેઇટલિફ્ટિંગ, કરાટે, કબડ્ડી, ખો-ખો અને વૉલિબૉલ- દરેક રમતમાં આપણા યુવાનોએ પોતાની પ્રતિભાનો ધ્વજ લહેરાવ્યો છે. કારી કશ્યપજીની વાત મને ખૂબ જ પ્રેરિત કરે છે. એક નાના ગામથી આવતી કારીજીએ તીરંદાજીમાં રજત ચંદ્રક જીત્યો છે. તેઓ કહે છે- "બસ્તર ઑલિમ્પિકે આપણને માત્ર રમતનું મેદાન જ નહીં, જીવનમાં આગળ વધવાનો અવસર આપ્યો છે." સુકમાની પાયલ કવાસીજીની વાત પણ ઓછી પ્રેરણાદાયક નથી. ભાલા ફેંકમાં સુવર્ણ ચંદ્રક જીતનારી પાયલજી કહે છે, "અનુશાસન અને આકરી મહેનતથી કોઈ પણ લક્ષ્ય અસંભવ નથી." સુકમાના દોરનાપાલના પુનેમ સન્નાજીની વાત તો નવા ભારતની પ્રેરક કથા છે. એક સમયે નક્સલી પ્રભાવમાં આવેલા પુનેમજી આજે વ્હીલચૅર પર દોડીને ચંદ્રક જીતી રહ્યા છે. તેમનું સાહસ અને હિંમત દરેક માટે પ્રેરણા છે. કોડાગાંવના તીરંદાજ રંજૂ સોરીજીને 'બસ્તર યૂથ આઈકૉન' ચૂંટવામાં આવ્યા છે. તેમનું માનવું છે - બસ્તર ઑલિમ્પિક દૂરદૂરના યુવાનોને રાષ્ટ્રીય મંચ સુધી પહોંચવાનો અવસર આપી રહી છે.  

સાથીઓ, બસ્તર ઑલિમ્પિક માત્ર એક રમત આયોજન નથી. તે એક એવો મંચ છે જ્યાં વિકાસ અને રમતનો સંગમ થઈ રહ્યો છે. જ્યાં આપણા યુવાનો પોતાની પ્રતિભાને નિખારી રહ્યા છે અને એક નવા ભારતનું નિર્માણ કરી રહ્યા છે. હું તમને બધાને અનુરોધ કરું છું:

  • પોતાના ક્ષેત્રમાં આવાં રમત આયોજનોને પ્રોત્સાહિત કરો
  • # KhelegaBharat – JeetegaBharat સાથે પોતાના ક્ષેત્રની ખેલ પ્રતિભાઓની વાર્તાઓ લોકોને જણાવો.
  • સ્થાનિક ખેલ પ્રતિભાઓને આગળ વધવાનો અવસર આપો.

યાદ રાખો ખેલથી ન માત્ર શારીરિક વિકાસ થાય છે, પરંતુ તે ખેલદિલીથી સમાજને જોડવાનું પણ સશક્ત માધ્યમ છે. તો ખૂબ રમો- ખૂબ ખિલો.

મારા પ્રિય દેશવાસીઓ, ભારતની બે મોટી ઉપલબ્ધિઓ આજે વિશ્વનું ધ્યાન આકર્ષિત કરી રહી છે. તે સાંભળીને તમે પણ ગર્વ અનુભવશો. આ બંને સફળતાઓ સ્વાસ્થ્યના ક્ષેત્રમાં મળી છે. પહેલી ઉપલબ્ધિ મળી છે - મેલેરિયાની લડાઈમાં. મેલેરિયાની બીમારી ચાર હજાર વર્ષોથી માનવતા માટે એક મોટો પડકાર રહી છે. સ્વતંત્રતાના સમયે પણ આ આપણા સૌથી મોટા સ્વાસ્થ્ય પડકારોમાંનો એક હતી. એક મહિનાથી લઈને પાંચ વર્ષનાં બાળકોના પ્રાણ લેનારી બધી સંક્રામક બીમારીઓમાં મેલેરિયાનું ત્રીજું સ્થાન છે. આજે હું સંતોષથી કહી શકું છું કે દેશવાસીઓએ મળીને આ પડકારનો દૃઢતાથી સામનો કર્યો છે. વિશ્વ સ્વાસ્થ્ય સંગઠન- WHOનો રિપૉર્ટ કહે છે- "ભારતમાં વર્ષ 2015થી 2023ની વચ્ચે મેલેરિયાના મામલા અને તેનાથી થનારાં મૃત્યુમાં 80 ટકાનો ઘટાડો થયો છે." આ કોઈ નાની ઉપલબ્ધિ નથી. સૌથી સુખદ વાત એ છે કે આ સફળતા જન-જનની ભાગીદારીથી મળી છે. ભારતના ખૂણેખૂણાથી, દરેક જિલ્લાથી, દરેક જણ આ અભિયાનનો હિસ્સો બન્યું છે. આસામમાં જોરહાટના ચાના બગીચામાં મેલેરિયા ચાર વર્ષ પહેલાં સુધી લોકોની ચિંતાનું એક મોટું કારણ બનેલી હતી. પરંતુ જ્યારે તેના ઉન્મૂલન માટે ચાના બગીચામાં રહેનારાઓ એકસંપ થયા તો તેમાં ઘણી સીમા સુધી સફળતા મળવા લાગી. પોતાના આ પ્રયાસમાં તેમણે ટૅક્નૉલૉજી સાથે-સાથે સૉશિયલ મીડિયાનો પણ ભરપૂર ઉપયોગ કર્યો છે. આ જ રીતે હરિયાણાના કુરુક્ષેત્ર જિલ્લાએ મેલેરિયા પર નિયંત્રણ માટે બહુ સારું મૉડલ પ્રસ્તુત કર્યું. ત્યાં મેલેરિયા પર નિરીક્ષણ માટે જનભાગીદારી ઘણી સફળ રહી છે. નુક્કડ નાટક અને રેડિયો દ્વારા એવા સંદેશાઓ પર ભાર મૂકવામાં આવ્યો જેનાથી મચ્છરોના સંવર્ધનને ઓછું કરવામાં ઘણી સહાય મળી છે. દેશભરમાં આવા પ્રયાસોથી જ આપણે મેલેરિયા સામેની લડાઈને પહેલાં કરતાં વધુ ઝડપથી આગળ વધારી શક્યા છીએ.

સાથીઓ, આપણી જાગૃતિ અને સંકલ્પ શક્તિથી આપણે શું પ્રાપ્ત કરી શકીએ છીએ તેનું બીજું ઉદાહરણ છે કેન્સર સામેની લડાઈ. દુનિયાની પ્રસિદ્ધ મેડિકલ જર્નલ લાન્સેટનો અભ્યાસ ખરેખર ઘણો જ આશા વધારનારો છે. આ જર્નલ મુજબ, હવે ભારતમાં સમય પર કેન્સરનો ઉપચાર શરૂ થવાની સંભાવના ઘણી વધી ગઈ છે. સમય પર ઉપચારનો અર્થ છે - કેન્સરના દર્દીની સારવાર 30 દિવસોની અંદર જ શરૂ થઈ જવી અને તેમાં મોટી ભૂમિકા નિભાવી છે - 'આયુષ્માન ભારત યોજના'એ. આ યોજનાના કારણે કેન્સરના 90 ટકા દર્દીઓ સમય પર પોતાનો ઉપચાર શરૂ કરાવી શક્યા છે. આવું એટલા માટે થયું છે કારણકે અગાઉ પૈસાના અભાવના લીધે ગરીબ દર્દીઓ કેન્સરની તપાસમાં, તેના ઉપચારથી કતરાતા હતા. હવે 'આયુષ્માન ભારત યોજના' તેમના માટે મોટું બળ બની છે. હવે તેઓ આગળ વધીને પોતાનો ઉપચાર કરાવવા માટે આવી રહ્યા છે. 'આયુષ્માન ભારત યોજના'એ કેન્સરના ઉપચારમાં આવતી પૈસાની પરેશાનીને ઘણી હદ સુધી ઓછી કરી છે. એ પણ સારી વાત છે કે આજે સમય પર, કેન્સરના ઉપચાર અંગે, લોકો પહેલાં કરતાં વધુ જાગૃત થયા છે. આ ઉપલબ્ધિ જેટલી આપણા આરોગ્ય તંત્રની છે, ડૉક્ટરો, નર્સો અને ટૅક્નિકલ સ્ટાફની છે, તેટલી જ, તમારી- બધા મારા નાગરિક ભાઈઓ-બહેનોની પણ છે. બધાના પ્રયાસથી કેન્સરને હરાવવાનો સંકલ્પ વધુ મજબૂત થયો છે. આ સફળતાનો યશ એ બધાને મળે છે જેમણે જાગૃતિ ફેલાવવામાં પોતાનું મહત્ત્વપૂર્ણ યોગદાન આપ્યું છે.

કેન્સર સામે લડાઈનો એક જ મંત્ર છે- જાગરુકતા, કાર્યવાહી અને આશ્વાસન. જાગરુકતા એટલે કેન્સર અને તેનાં લક્ષણો પ્રત્યે જાગૃતિ, એક્શન (કાર્યવાહી) અર્થાત સમય પર તપાસ અને ઉપચાર, આશ્વાસન એટલે દર્દીઓ માટે દરેક મદદ ઉપલબ્ધ હોવાનો વિશ્વાસ. આવો, આપણે બધા મળીને કેન્સર વિરુદ્ધની આ લડાઈને ઝડપથી આગળ લઈ જઈએ અને વધુમાં વધુ દર્દીઓની મદદ કરીએ.

મારા પ્રિય દેશવાસીઓ, આજે હું તમને ઓડિશાના કાલાહાંડીના એક એવા પ્રયાસની વાત જણાવવા માગું છું, જે ઓછા પાણી અને ઓછાં સંસાધનો છતાં સફળતાની નવી ગાથા લખી રહ્યો છે. તે છે કાલાહાંડીની 'શાકભાજી ક્રાંતિ'. જ્યાં, ક્યારેક ખેડૂતો સ્થળાંતર કરવા માટે વિવશ હતા, ત્યાં આજે કાલાહાંડીનો ગોલામુંડા બ્લૉક એક શાકભાજી કેન્દ્ર બની ગયો છે. આ પરિવર્તન કેવી રીતે આવ્યું? તેની શરૂઆત માત્ર દસ ખેડૂતોના એક નાના સમૂહથી થઈ. આ સમૂહે મળીને એક એફપીઓ- 'કિસાન ઉત્પાદક સંઘ'ની સ્થાપના કરી, ખેતીમાં આધુનિક ટૅક્નૉલૉજીનો ઉપયોગ શરૂ કર્યો અને આજે તેમનો આ એફપીઓ કરોડોનો વેપાર કરી રહ્યો છે. આજે ૨૦૦થી વધુ ખેડૂતો આ એફપીઓ સાથે જોડાયેલા છે, જેમાં ૪૫ મહિલા ખેડૂતો પણ છે. આ લોકો મળીને 200 એકરમાં ટમેટાંની ખેતી કરી રહ્યાં છે, 150 એકરમાં કારેલાંનું ઉત્પાદન કરી રહ્યાં છે. હવે આ એફપીઓનું વર્ષનું ટર્નઑવર વધીને દોઢ કરોડથી વધુ થઈ ગયું છે. આજે કાલાહાંડાની શાકભાજી ઓડિશાના વિભિન્ન જિલ્લાઓમાં જ નહીં, બીજા રાજ્યોમાં પણ પહોંચી રહી છે અને ત્યાંનો ખેડૂત, હવે બટેટાં અને ડુંગળીની ખેતીની નવી ટૅક્નિક શીખી રહ્યો છે.

સાથીઓ, કાલાહાંડીની આ સફળતા આપણને શીખવાડે છે કે સંકલ્પ શક્તિ અને સામૂહિક પ્રયાસથી શું ન કરી શકાય. હું તમને સહુને આગ્રહ કરું છું કે-

  • પોતાના ક્ષેત્રમાં એફપીઓને પ્રોત્સાહિત કરો
  • કિસાન ઉત્પાદક સંગઠનો સાથે જોડાવ અને તેમને મજબૂત કરો.

યાદ રાખો- નાની શરૂઆતથી પણ મોટાં પરિવર્તન સંભવ છે. આપણને બસ દૃઢ સંકલ્પ અને ટીમ ભાવનાની આવશ્યકતા છે.

સાથીઓ, આજની 'મન કી બાત'માં આપણે સાંભળ્યું, કેવી રીતે ભારત, વિવિધતામાં એકતા સાથે આગળ વધી રહ્યું છે. તે પછી રમતનું મેદાન હોય કે વિજ્ઞાનનું ક્ષેત્ર, સ્વાસ્થ્ય હોય કે શિક્ષણ, દરેક ક્ષેત્રમાં ભારત નવી ઊંચાઈઓને સ્પર્શી રહ્યું છે. આપણે એક પરિવારની જેમ મળીને દરેક પડકારનો સામનો કર્યો અને નવી સફળતાઓ પ્રાપ્ત કરી. 2014થી શરૂ થયેલી 'મન કી બાત'ના 116 એપિસૉડમાં મેં જોયું છે કે 'મન કી બાત' દેશની સામૂહિક શક્તિનો એક જીવંત દસ્તાવેજ બની ગયો છે. તમે બધાએ આ કાર્યક્રમને અપનાવ્યો, પોતાનો બનાવ્યો. દરેક મહિને તમે તમારા વિચારો અને પ્રયાસો જણાવ્યા. ક્યારેક કોઈ યુવા શોધકના વિચારને પ્રભાવિત કર્યો તો ક્યારેક કોઈ દીકરીની સિદ્ધિએ ગૌરવાન્વિત કર્યા. આ તમારા બધાની ભાગીદારી છે જે દેશના ખૂણેખૂણેથી સકારાત્મક ઊર્જાને એક સાથે લાવે છે. 'મન કી બાત' આ સકારાત્મક ઊર્જાની અનેક ગણી વૃદ્ધિનો મંચ બની ગયો છે અને હવે, 2025 ટકોરા મારી રહ્યું છે. આવનારા વર્ષમાં 'મન કી બાત'ના માધ્યમથી આપણે હજુ વધુ પ્રેરણાદાયક વિચારોને વહેંચીશું. મને વિશ્વાસ છે કે દેશવાસીઓની સકારાત્મક વિચારસરણી અને શોધની ભાવનાથી ભારત નવી ઊંચાઈઓને સ્પર્શશે. તમે તમારી આસપાસના અનોખા પ્રયાસોને #Mannkibaat સાથે શૅર કરતા રહો. હું જાણું છું કે આગામી વર્ષની દરેક 'મન કી બાત'માં આપણી પાસે એકબીજા સાથે વહેંચવા માટે ઘણું બધું હશે. તમને બધાને 2025ની ઘણી બધી શુભકામનાઓ. સ્વસ્થ રહો, ખુશ રહો, ફિટ ઇન્ડિયા મૂવમેન્ટમાં તમે પણ જોડાઈ જાવ, પોતાને પણ ફિટ રાખો. જીવનમાં પ્રગતિ કરતા રહો. ખૂબ ખૂબ ધન્યવાદ.