भाइयों और बहनों,

आज 3 दिसंबर का महत्वपूर्ण दिन है। पूरा विश्व इस दिन को अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के रूप में मनाता है। आज का दिन दिव्यांगजनों के साहस, आत्मबल और उपलब्धियों को नमन करने का विशेष अवसर होता है।

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भारत के लिए ये अवसर एक पवित्र दिन जैसा है। दिव्यांगजनों का सम्मान भारत की वैचारिकी में निहित है। हमारे शास्त्रों और लोक ग्रंथों में दिव्यांग साथियों के लिए सम्मान का भाव देखने को मिलता है।

रामायण में एक श्लोक है-

उत्साहो बलवानार्य, नास्त्युत्साहात्परं बलम्।

सोत्साहस्यास्ति लोकेऽस्मिन्, न किञ्चिदपि दुर्लभम्।

श्लोक का मूल यही है कि जिस व्यक्ति के मन में उत्साह है, उसके लिए विश्व में कुछ भी असंभव नहीं है।

आज भारत में हमारे दिव्यांगजन इसी उत्साह से देश के सम्मान और स्वाभिमान की ऊर्जा बन रहे हैं।

इस वर्ष ये दिन और भी विशेष है। इसी साल भारत के संविधान के 75 वर्ष पूर्ण हुए हैं। भारत का संविधान हमें समानता और अंत्योदय के लिए काम करने की प्रेरणा देता है।

संविधान की इसी प्रेरणा को लेकर बीते 10 वर्षों में हमने दिव्यांगजनों की उन्नति की मजबूत नींव रखी है। इन वर्षों में देश में दिव्यांगजनों के लिए अनेक नीतियां बनी हैं, अनेक निर्णय़ हुए हैं।

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ये निर्णय दिखाते है कि हमारी सरकार सर्वस्पर्शी है, संवेदनशील है और सर्वविकासकारी है। इसी क्रम में आज का दिन दिव्यांग भाई-बहनों के प्रति हमारे इसी समर्पण भाव को फिर से दोहराने का दिन भी बना है।

मैं जब से सार्वजनिक जीवन में हूं, मैंने हर मौके पर दिव्यांगजनों का जीवन आसान बनाने के लिए प्रयास किए हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद मैंने इस सेवा को राष्ट्र का संकल्प बनाया। 2014 में सरकार बनने के बाद हमने सबसे पहले ‘विक्लांग’ शब्द के स्थान पर ‘दिव्यांग’ शब्द को प्रचलित करने का फैसला लिया।

ये सिर्फ शब्द का परिवर्तन नहीं था, इसने समाज में दिव्यांगजनों की गरिमा भी बढ़ाई और उनके योगदान को भी बड़ी स्वीकृति दी। इस निर्णय ने ये संदेश दिया कि सरकार एक ऐसा समावेशी वातावरण चाहती है, जहां किसी व्यक्ति के सामने उसकी शारीरिक चुनौतियां दीवार ना बनें औऱ उसे उसकी प्रतिभा के अनुसार पूरे सम्मान के साथ राष्ट्र निर्माण का अवसर मिले। दिव्यांग भाई-बहनों ने विभिन्न अवसरों पर मुझे इस निर्णय के लिए अपना आशीर्वाद दिया। ये आशीर्वाद ही, दिव्यांगजन के कल्याण के लिए मेरी सबसे बड़ी शक्ति बना।

हर वर्ष देश भर में हम दिव्यांग दिवस पर अनेक कार्यक्रम करते हैं। मुझे आज भी याद है, 9 साल पहले हमने आज के ही दिन सुगम्य भारत अभियान का शुभारंभ किया था। 9 सालों में इस अभियान ने जिस तरह से दिव्यांगजनों को सशक्त किया, उससे मुझे बड़ा संतोष मिला है।

140 करोड़ देशवासियों की संकल्प-शक्ति से ‘सुगम्य भारत’ ने ना सिर्फ दिव्यांगजनों के मार्ग से कई बाधाएं हटाई, बल्कि उन्हें सम्मान और समृद्धि का जीवन भी दिया।

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पहले की सरकारों के समय जो नीतियां थीं...उनकी वजह से दिव्यांगजन सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा के अवसरों से पीछे रह जाते थे। हमने वो स्थितियां बदलीं। आरक्षण की व्यवस्था को नया रूप मिला। 10 वर्षों में दिव्यांगजन के कल्याण के लिए खर्च होने वाली राशि को भी तीन गुना किया गया। इन निर्णयों ने दिव्यांगजनों के लिए अवसरों और उन्नतियों के नए रास्ते बनाए। आज हमारे दिव्यांग साथी, भारत के निर्माण के समर्पित साथी बनकर हमें गौरवान्वित कर रहे हैं।

मैंने स्वयं ये महसूस किया है कि भारत के युवा दिव्यांग साथियों में कितनी अपार संभावनाएं हैं। पैरालंपिक में हमारे खिलाड़ियों ने देश को जो सम्मान दिलाया है, वो इसी ऊर्जा का प्रतीक है। ये ऊर्जा राष्ट्र ऊर्जा बने, इसके लिए हमने दिव्यांग साथियों को स्किल से जोड़ा है, ताकि उनकी ऊर्जा राष्ट्र की प्रगति की सहायक बन सके। ये प्रशिक्षण सिर्फ सरकारी कार्यक्रम भर नहीं है। इन प्रशिक्षणों ने दिव्यांग साथियों का आत्मविश्वास बढ़ाया है। उन्हें रोजगार तलाशने की आत्म शक्ति दी है।

मेरे दिव्यांग भाई-बहनों का जीवन सरल, सहज और स्वाभिमानी हो, सरकार का मूल सिद्धांत यही है। हमने Persons with Disabilities Act को भी इसी भाव से लागू किया। इस ऐतिहासिक कानून में Disability के Definition की कैटेगरी को भी 7 से बढ़ाकर 21 किया गया। पहली बार हमारे एसिड अटैक सर्वाइवर्स भी इसमें शामिल किए गए। आज ये कानून दिव्यांगजनों के सशक्त जीवन का माध्यम बन रहा है।

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इन कानूनों ने दिव्यांगजनों के प्रति समाज की धारणा बदली है। आज हमारे दिव्यांग साथी भी विकसित भारत के निर्माण के लिए अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ काम कर रहे हैं।

भारत का दर्शन हमें यही सिखाता है कि समाज के हर व्यक्ति में एक विशेष प्रतिभा जरूर है। हमें उसे बस सामने लाने की जरूरत है। मैंने हमेशा अपने दिव्यांग साथियों की उस अद्भुत प्रतिभा पर विश्वास किया है। और मैं पूरे गर्व से कहता हूं, कि हमारे दिव्यांग भाई-बहनों ने एक दशक में मेरे इस विश्वास को और प्रगाढ़ किया है। मुझे यह देखकर भी गर्व होता है कि उनकी उपलब्धियां कैसे हमारे समाज के संकल्पों को नया आकार दे रही हैं।

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आज जब पैरालंपिक का मेडल सीने पर लगाकर, मेरे देश के खिलाड़ी मेरे घर पर पधारते हैं, तो मेरा मन गौरव से भर जाता है। हर बार जब मन की बात में मैं अपने दिव्यांग भाई-बहनों की प्रेरक कहानियों को आपके साथ साझा करता हूं, तो मेरा हृदय गर्व से भर जाता है। शिक्षा हो, खेल या फिर स्टार्टअप, वे सभी बाधाओं को तोड़कर नई ऊंचाइयां छू रहे हैं और देश के विकास में भागीदार बन रहे हैं।

मैं पूरे विश्वास से कहता हूं कि 2047 में जब हम स्वतंत्रता का 100वां उत्सव मनाएंगे, तो हमारे दिव्यांग साथी पूरे विश्व का प्रेरणा पुंज बने दिखाई देंगे। आज हमें इसी लक्ष्य के लिए संकल्पित होना है।

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आइए, हम सब मिलकर एक ऐसे समाज का निर्माण करें, जहां कोई भी सपना और लक्ष्य असंभव ना हो। तभी जाकर हम सही मायने में एक समावेशी और विकसित भारत का निर्माण कर पाएंगे।

और निश्चित तौर पर मैं इसमें अपने दिव्यांग भाई-बहनों की बहुत बड़ी भूमिका देखता हूं। पुन: सभी दिव्यांग साथियों को आज के दिन की शुभकामनाएं।

  • krishangopal sharma Bjp December 17, 2024

    नमो नमो 🙏 जय भाजपा 🙏🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩,,
  • krishangopal sharma Bjp December 17, 2024

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  • krishangopal sharma Bjp December 17, 2024

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  • Parveen Kumar Saini December 07, 2024

    जय जय राम जय श्रीराम
  • Parveen Kumar Saini December 07, 2024

    जय जय राम जय श्रीराम
  • Parveen Kumar Saini December 07, 2024

    जय जय राम जय श्रीराम
  • Parveen Kumar Saini December 07, 2024

    जय जय राम जय श्रीराम
  • Parveen Kumar Saini December 07, 2024

    जय जय राम जय श्रीराम
  • Rajkumar maurya December 07, 2024

    jai 3
  • Bikranta mahakur December 07, 2024

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একতার মহাকুম্ভ – নতুন এক যুগের সূচনা
February 27, 2025

পবিত্র প্রয়াগরাজ শহরে সফল এক মহাকুম্ভ সম্পন্ন হয়েছে। ঐক্যের মহাযজ্ঞ সম্পূর্ণ হল। কোন জাতির মধ্যে যখন চেতনা জাগ্রত হয়, তখন সেই জাতি দীর্ঘ কয়েক শতক পুরনো পরাধীনতার শিকলকে ভেঙে ফেলে, নতুন শক্তিতে মুক্ত বাতাস গ্রহণ করে। ১৩ জানুয়ারি থেকে প্রয়াগরাজে একতার মহাকুম্ভে তার-ই প্রতিফলন দেখা গেছে।

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অযোধ্যায় রাম মন্দিরের প্রাণপ্রতিষ্ঠার সময় ২২ জানুয়ারি আমি দেবভক্তি এবং দেশভক্তির বিষয়ে বলেছিলাম। প্রয়াগরাজের মহাকুম্ভ চলাকালীন দেব-দেবী, সাধু-সন্ত, মহিলা, শিশু, যুবক-যুবতী, প্রবীণ নাগরিকবৃন্দ থেকে শুরু করে সমাজের সকল স্তরের মানুষ এখানে জড়ো হয়েছেন। আমরা জাতির মধ্যে চেতনা জাগ্রত হওয়ার প্রমাণ পেয়েছি। একতার এই মহাকুম্ভে একই জায়গায় একই সময়ে পবিত্র এক আয়োজনে ১৪০ কোটি ভারতবাসীর আবেগ পুঞ্জিভূত হয়েছে।

প্রয়াগরাজ অঞ্চলের পবিত্র শৃঙ্ঘারপুর হল ঐক্য, সম্প্রীতি এবং ভালোবাসার এক মহান ভূমি, যেখানে প্রভু শ্রীরাম এবং নিশাদরাজের মধ্যে সাক্ষাৎ হয়। তাঁদের সেই সাক্ষাৎ আসলে নিষ্ঠা এবং সদিচ্ছার মিলন। আজও সেই একই মানসিকতায় প্রয়াগরাজ আমাদের অনুপ্রাণিত করে চলেছে।

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গত ৪৫ দিন ধরে আমি প্রত্যক্ষ করেছি দেশের প্রতিটি প্রান্ত থেকে কোটি কোটি মানুষ সঙ্গমের উদ্দেশ্যে যাত্রা করেছেন। মিলনের সেই আবেগ আরো সঞ্চারিত হয়েছে। গঙ্গা, যমুনা এবং সরস্বতীর পবিত্র সঙ্গমে ভক্তরা বিপুল উৎসাহ উদ্দীপনায় আস্থার সঙ্গে মিলিত হয়েছেন।

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প্রয়াগরাজের মহাকুম্ভ নিয়ে আধুনিক যুগের ম্যানেজমেন্টের পেশাদার ব্যক্তিত্বরা পড়াশোনা করছেন। বিভিন্ন নীতি প্রণয়ন যারা করেন, সেই বিশেষজ্ঞ এবং পরিকল্পনাকারীরাও এই মহাকুম্ভের বিষয়ে আগ্রহপ্রকাশ করেছেন। এর আগে বিশ্বের কোথাও এত বৃহৎ জনসমাগম হয় নি।

তিনটি নদীর সঙ্গমস্থলে কোটি কোটি মানুষ জড়ো হওয়ার জন্য কিভাবে প্রয়াগরাজে এসেছেন সারা বিশ্ব তা প্রত্যক্ষ করেছে। এঁদের কাছে কেউ আনুষ্ঠানিকভাবে কোন আমন্ত্রণপত্র পাঠায়নি, কোথায় যেতে হবে তা বলে দেয়নি, অথচ কোটি কোটি মানুষ স্বইচ্ছায় মহাকুম্ভের উদ্দেশে রওনা হয়েছেন, পবিত্র অবগাহনের মাধ্যমে নিজেকে আশীর্বাদধন্য বলে মনে করেছেন।

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পবিত্র স্থানের পর প্রত্যেকের মুখে যে অপার আনন্দ ও তৃপ্তি আমি প্রত্যক্ষ করেছি তা কোনদিনই ভোলার নয়। মহিলা, বয়স্কজনেরা, আমাদের দিব্যাঙ্গ ভাই ও বোনেরা – প্রত্যেকেই ঠিক সঙ্গমে পৌঁছোনোর রাস্তা খুজে পেয়েছেন।

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ভারতের যুবসম্প্রদায় স্বতঃস্ফূর্তভাবে এই আয়োজনে সামিল হয়েছেন, যা অত্যন্ত আনন্দের বিষয়। মহাকুম্ভে তরুণ প্রজন্মের উপস্থিতি এক নতুন বার্তা দিয়েছে – আমাদের গৌরবোজ্জ্বল সংস্কৃতি এবং ঐতিহ্যকে তাঁরা এগিয়ে নিয়ে যাবেন। একে সংরক্ষণ করার বিষয়ে নিজ নিজ দায়িত্ব-কর্তব্য সম্পর্কে তাঁরা ওয়াকিবহাল হয়েছেন এবং এই দায়িত্ব পালনে অঙ্গীকারবদ্ধ হয়েছেন।

মহাকুম্ভ উপলক্ষে প্রয়াগরাজের বিপুল জনসমাগম নতুন এক রেকর্ড তৈরি করেছে। কিন্তু শারীরিক ভাবে উপস্থিত না হয়েও কোটি কোটি মানুষ এই উপলক্ষে এখানে মানসিক ভাবে সমাবেত হন। ভক্তরা যে পবিত্র জল নিয়ে নিজ নিজ গন্তব্যে ফিরে গেছেন, সেই জল লক্ষ লক্ষ মানুষের আধ্যাত্মিক ভাবনার উৎসে পরিণত হয়েছে। মহাকুম্ভ ফেরত বহু পূণ্যার্থীকে নিজ নিজ গ্রামে সসম্মানে বরণ করে নেওয়া হয়েছে, সমাজ তাঁদের সম্মানিত করেছে।

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গত কয়েক সপ্তাহ ধরে প্রয়াগরাজে যা ঘটেছে তা অভূতপূর্ব। এর মাধ্যমে আগামীদিনের দেশ গঠনের ভিত্তিপ্রস্তর স্থাপিত হয়েছে।

কেউ ভাবতেও পারেননি এত বিপুল সংখ্যক তীর্থযাত্রী এখানে জড়ো হবেন। কুম্ভের অতীতের অভিজ্ঞতার ওপর ভিত্তি করে এখানে কতজন আসতে পারেন, সেবিষয়ে প্রশাসন কিছু হিসেব-নিকেশ করেছিল, কিন্তু সেই প্রত্যাশাকে ছাড়িয়ে বহু মানুষ এখানে এসেছেন।

মার্কিন যুক্তরাষ্ট্রে যতজন বসবাস করেন তার প্রায় দ্বিগুণ মানুষ একতার এই মহাকুম্ভে এসেছিলেন।

কোটি কোটি উৎসাহী অংশগ্রহণকারী ভারতবাসীর বিষয়ে আধ্যাত্মিক জগতের বিশেষজ্ঞরা যদি পর্যালোচনা করেন, তাহলে তাঁরা দেখবেন নিজ ঐতিহ্যে গর্বিত দেশবাসী এখন নতুন এক উদ্দীপনায় ভরপুর হয়ে উঠেছেন। আমি তাই মনে করি নতুন এক যুগের সূচনা হয়েছে, যা নতুন ভারতের ভবিষ্যতের পরিকল্পনা করবে।

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হাজার হাজার বছর ধরে ভারতের জাতীয় ভাবনাকে মহাকুম্ভ শক্তিশালী করেছে। প্রতিটি পূর্ণ কুম্ভে সাধু-সন্ত, বিদ্বান ব্যক্তি এবং পণ্ডিতেরা জড়ো হতেন। তাঁরা সেই সময়ে সমাজের বিভিন্ন বিষয় নিয়ে মত বিনিময় করতেন। তাঁদের আলোচনার ওপর ভিত্তি করে দেশ এবং সমাজ নতুন এক দিশায় এগিয়ে চলতো। প্রতি ৬ বছর পর অর্ধকুম্ভের সময় গৃহীত নীতিগুলি পর্যালোচনা করা হতো। ১৪৪ বছর পর ১২টি পূর্ণ কুম্ভের শেষে সেকেলে ঐতিহ্যগুলিকে বাতিল করে দেওয়া হতো, নতুন নতুন ধারণা যুক্ত হতো, ভবিষ্যতের জন্য নতুন নতুন রীতি-নীতি কার্যকর করা হতো।

১৪৪ বছর পর এই মহাকুম্ভে ভারতের উন্নয়নযাত্রা সম্পর্কে আমাদের সাধু-সন্ন্যাসীরা নতুন এক বার্তা দিয়েছেন। সেই বার্তা হল বিকশিত অর্থাৎ উন্নত ভারত গড়তে হবে।

একতার এই মহাকুম্ভে ধনী, দরিদ্র নির্বিশেষে , তরুণ বা প্রবীণ, গ্রামবাসী বা শহরের বাসিন্দা, দেশ-বিদেশের মানুষ, পূর্ব-পশ্চিম, উত্তর-দক্ষিণ – যে কোন প্রান্তের মানুষ এখানে মিলিত হয়েছেন। জাত, ধর্ম, নীতি, আদর্শ এ সব কিছু অগ্রাহ্য করে সঙ্গমে তাঁরা সমবেত হয়েছেন। এটি আসলে এক ভারত, শ্রেষ্ঠ ভারত ভাবনার প্রতিফলন, যেখানে কোটি কোটি মানুষের আস্থা রয়েছে। আর এখন আমরা সেই একই উৎসাহ, উদ্দীপনায় উন্নত ভারত গড়তে ব্রতী হব।

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এই প্রসঙ্গে আমার ভগবান কৃষ্ণের সেই উপাখ্যানটি মনে পড়ছে। মা যশোদা তাঁকে মুখ খুলে হাঁ করতে বললে, তিনি যখন মুখ খুলেছিলেন, তখন তাঁর মা সমগ্র বিশ্ব ব্রহ্মান্ড প্রত্যক্ষ করেন। একই ভাবে এই মহাকুম্ভে দেশ-বিদেশের মানুষ ভারতের সম্মিলিত শক্তির সম্ভাবনাকে প্রত্যক্ষ করেছেন। আমাদের আত্মপ্রত্যয়ী হয়ে, একনিষ্ঠ ভাবে উন্নত ভারত গড়তে হবে।

অতীতে ভক্তি আন্দোলনের সময় সাধু-সন্ন্যাসীরা দেশ জুড়ে আমাদের ঐক্যবদ্ধ সংকল্পকে চিহ্নিত করে তাকে কাজে লাগাতে উৎসাহিত করেছিলেন। আমাদের ঐক্যবদ্ধ প্রয়াসের শক্তি সম্পর্কে স্বামী বিবেকানন্দ থেকে শ্রী অরবিন্দ — প্রত্যেক মহান চিন্তাবিদ মনে করিয়ে দিয়েছেন। স্বাধীনতা আন্দোলনের সময় মহাত্মা গান্ধীও সেই অভিজ্ঞতা লাভ করেন। স্বাধীনতা উত্তর যুগে এই সম্মিলিত শক্তিকে যদি যথাযথ ভাবে স্বীকৃতি দেওয়া হতো, তাহলে তা প্রত্যেকের কল্যাণে ব্যবহার করা যেত। ফল স্বরূপ নতুন এক স্বাধীন রাষ্ট্রের জন্য তা গুরুত্বপূর্ণ এক শক্তি হিসেবে কাজে লাগান যেতো। দুর্ভাগ্যজনক ভাবে সেই শক্তিকে স্বীকৃতি দেওয়া হয়নি। তবে, বর্তমানে উন্নত ভারত গড়তে যে ভাবে জনগণের সম্মিলিত শক্তি আত্মপ্রকাশ করছে তা দেখে আমি আনন্দিত।

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বৈদিক যুগ থেকে বিবেকানন্দ , প্রাচীন যুগের নীতি থেকে আধুনিক যুগের কৃত্রিম উপগ্রহ – দেশের মহান রীতি-নীতি সবসময়ই জাতি গঠনে সহায়ক হয়েছে। নাগরিক হিসেবে আমি চাইবো আমাদের পূর্বপুরুষ এবং সাধু-সন্ন্যাসীদের কর্ম তৎপরতা অনুপ্রেরণার নতুন উৎস হোক। একতার এই মহাকুম্ভ নতুন নতুন সংকল্পকে বাস্তবায়িত করতে সহায়তা করুক। আসুন আমরা ঐক্যকে আমাদের পথপ্রদর্শক নীতি হিসেবে গ্রহণ করি। দেশ সেবা আসলে অধ্যাত্ম সেবার সমার্থক – এই ভাবনায় আমরা এগিয়ে চলি।

কাশীতে আমার নির্বাচনী প্রচারের সময়কালে আমি বলেছিলাম, “মা গঙ্গার আহ্বানে আমি এখানে এসেছি”। এটি নিছক কোন আবেগ ছিল না। এর মধ্য দিয়ে পবিত্র নদীগুলিকে পরিষ্কার করার ক্ষেত্রে আমাদের দায়বদ্ধতার বিষয়টি অন্তর্নিহীত ছিল। প্রয়াগরাজে গঙ্গা, যমুনা এবং সরস্বতী নদীর সঙ্গমে দাঁড়িয়ে আমার সেই সংকল্প আরও দৃঢ় হয়েছে। আমাদের নদীগুলির পরিচ্ছন্নতা বজায় রাখার সঙ্গে নিজেদের জীবনযাত্রা যুক্ত রয়েছে। তাই বড় বা ছোট যেরকমেরই নদী হোক সেই নদীকে জীবনদায়ী মাতা হিসেবে আমরা পুজো করবো। আমাদের নদীগুলিকে পরিচ্ছন্ন রাখার ক্ষেত্রে যে উদ্যোগ আমরা নিয়েছি, এই মহাকুম্ভ তাকে আরও অনুপ্রাণিত করেছে।

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আমি জানি এধরনের একটি বৃহৎ কর্মকান্ডকে বাস্তবায়িত করা সহজ কোন কাজ নয়। আমাদের নিষ্ঠায় কোন ঘাটতি থাকলে তার জন্য আমি মা গঙ্গা, মা যমুনা এবং মা সরস্বতীর কাছে ক্ষমাপ্রার্থনা করছি। আধ্যাত্মিক চেতনার প্রতিমূর্তি জনতা জনার্দনকে পরিষেবা দেওয়ার ক্ষেত্রে আমাদের তরফে যদি কোনরকমের খামতি থাকে, তার জন্য আমি সকলের কাছে ক্ষমা প্রার্থনা করছি।

এই মহাকুম্ভে অগণিত মানুষ যে আধ্যাত্মিক চেতনায় জড়ো হয়েছিলেন, তাঁদের পরিষেবা দেওয়ার ক্ষেত্রে একই রকমের ভাবনায় আমরা কাজ করেছি। উত্তর প্রদেশের সাংসদ হিসেবে আমি বলতে চাই যোগীজির নেতৃত্বে প্রশাসন এবং জনসাধারণ যে ভাবে এই একতার মহাকুম্ভকে সফল করে তুলেছেন তার জন্য আমি গর্বিত। রাজ্য অথবা কেন্দ্র, প্রশাসক অথবা শাসক – কারোর পক্ষে একক ভাবে এই আয়োজন সফল করা সম্ভব নয়। নিকাশী ব্যবস্থার সঙ্গে যুক্ত কর্মী, পুলিশ, নৌকো চালক, গাড়ি চালক, খাদ্য সরবরাহকারী - প্রত্যেকে একনিষ্ঠ সেবক হিসেবে এখানে নিরলস ভাবে কাজ করে গেছেন। প্রয়াগরাজের জনসাধারণ নিজেদের হাজারও অসুবিধা সত্বেও যে ভাবে তীর্থযাত্রীদের স্বাগত জানিয়েছেন, তা এককথায় অনবদ্য। আমি প্রয়াগরাজের জনসাধারণ সহ উত্তরপ্রদেশের প্রত্যেককে আন্তরিক কৃতজ্ঞতা জানাই। তাঁরা এক অসাধারণ কাজ করেছেন।

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আমাদের দেশের উজ্জ্বল ভবিষ্যতের বিষয়ে আমার সবসময়ই অটুট আস্থা রয়েছে। এবারের মহাকুম্ভ প্রত্যক্ষ করে সেই আস্থা বহুগুণ শক্তিশালী হয়েছে।

যেভাবে ১৪০ কোটি ভারতবাসী একতার মহাকুম্ভকে আন্তর্জাতিক এক কর্মসূচিতে পরিণত করেছেন, তা অবিশ্বাস্য। আমাদের জনগণের নিষ্ঠা, অধ্যবসায় এবং উদ্যোগে আমি আপ্লুত। দেশবাসীর এই সম্মিলিত প্রয়াসের মধ্য দিয়ে যে সাফল্য আমরা অর্জন করেছি, আমি তা শ্রী সোমনাথকে নিবেদন করবো। দ্বাদশ জ্যোতির্লিঙ্গের মধ্যে আমি প্রথমে সেখানে যাব এবং তার কাছে প্রত্যেক দেশবাসীর জন্য প্রার্থনা করবো।

মহাশিবরাত্রীর দিনে মহাকুম্ভ হয়তো আনুষ্ঠানিক ভাবে শেষ হয়েছে, কিন্তু গঙ্গার শাশ্বত প্রবাহের মতো আমাদের আধ্যাত্মিক শক্তি, জাতীয় ঐক্য ও চেতনা জাগ্রত থাকবে, যেগুলিকে মহাকুম্ভ আমাদের প্রত্যেকের মধ্যে সঞ্চারিত করেছে। এই শক্তি, ঐক্য ও চেতনা আমাদের আগামী প্রজন্মকেও অনুপ্রাণিত করবে।