भगवान बिरसा मुंडा की इस पवित्र धरती को प्रणाम करते हुए आप सबको भी, मैं बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूं। हमारे कृषि मंत्री, श्रीमान राधा मोहन सिंह जी ने विस्तार से सौ साल पहले कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में, बिहार की धरती पर कैसे कार्य प्रारंभ हुआ और बाद में इसी काम से ये भूभाग कैसे अछुता रह गया, इसका वर्णन किया है।
मैं देख रहा हूं, आज यंहा सिर्फ झारखंड के ही नहीं दक्षिण बिहार से भी बड़ी संख्या में लोग नज़र आ रहे हैं..क्योंकि दक्षिण बिहार के लोगों को बराबर समझ है कि इस अनुसंधान केंद्र का लाभ सिर्फ झारखंड को ही मिलेगा, ऐसा नहीं, दक्षिण बिहार के लोग भी इसका सर्वाधिक लाभ उठा पाएंगे, ये उनको भली-भांति पता है।
भारत कृषि प्रधान देश है, ये बात हम सदियों से सुनते आए हैं। लेकिन यह भी एक दुर्भाग्य है कि देश के कृषि जगत को किसानों के नसीब पर छोड़ दिया गया है। उसी का नतीजा है कि सारा विश्व कृषि के क्षेत्र में जो प्रगति कर चुका है, भारत आज भी उससे बहुत पीछे है। चाहे ज़मीन का रख-रखाव हो, चाहे अच्छी क्वालिटी के बीज मुहैया कराना हो, चाहे किसान को पानी और बिजली उपलब्ध कराना हो, चाहे किसान जो उत्पादित करता है चीजें, उसके लिए सही बाज़ार मिले, सही दाम मिले, मूल्य वृद्धि की प्रक्रिया हो, कृषि के साथ सहायक उद्योग, पशुपालन हो, मतस्य उद्योग हो, शहद का काम हो..इन सारी बातों को ले करके एक संतुलित, एक comprehensive, integrated जब तक हम प्लान नहीं करते, हम हमारे गांव के आर्थिक जीवन को बदल नहीं सकते, हम किसानों के जीवन में बदलाव नहीं ला सकते हैं।
इसलिए दिल्ली में बैठी हुई वर्तमान सरकार..परंपरागत ये कृषि है, जो हमारे भाई बहन अपने पुरखों से सीख करके आगे बढ़ा रहे हैं। वह .. कृषि आधुनिक कैसे बने, वह कृषि वैज्ञानिक कैसे बने और आज जो प्रति हेक्टेयर उत्पान होता है, वह उत्पादन कैसे बढ़े, ये चिंता का विषय है। इस सबके उपाय नहीं हैं, ऐसा नहीं है। उसके लिए कोई रास्ते नहीं खोजे जा सकते, ऐसा नहीं है। आवश्यकता है कि सरकार की नीतियों के द्वारा, प्रशिक्षण के द्वारा, संसाधन मुहैया कराने की पद्धति से कृषि को आधुनिक और वैज्ञानिक बनाया जा सकता है।
जनसंख्या बढ़ती चली जा रही है, ज़मीन कम होती चली जा रही है। आज से पचास साल पहले जिस परिवार के पास सौ बीघा ज़मीन होगी..परिवार का विस्तार होते होते, बेटे, बेटे के बेटे, चचेरे भाई, उनके बेटे..ज़मीन के टुकड़े होते होते अब परिवार के पास दो बीघा, पांच बीघा ज़मीन रह गई होगी। ज़मीन छोटे छोटे टुकड़ों में बंट रही है, परिवार का विस्तार हो रहा है। जनसंख्या बढ़ रही है, ज़मीन कम हो रही है। ऐसी स्थिति में हमारे पास जो उपलब्ध ज़मीन है, उसमें अगर हमारी उत्पादकता नहीं बढ़ेगी, हम ज़्यादा फसल नहीं प्राप्त करेंगे, न तो देश का पेट भरेगा, न तो किसान का जेब भरेगा।
इसलिए कृषि का विकास ऐसे हो, जो देशवासियों का पेट भी भरे और किसान का जेब भी भरे और इसलिए सबसे पहली आवश्यकता है, हमारी परंपरागत कृषि में पुनः संशोधन करने की, research करने की। भारत इतना विशाल देश है, कि एक कोने में एक laboratory में काम होने से काम चलेगा नहीं। सभी agro climatic zone में, वहां की वायु के अनुसार, ज़मीन के अनुसार, परंपराओं के अनुसार संशोधन करने पड़ेंगे। तब जा करके उन संसाधनों का उपयोग होगा। अगर, केरल में जो प्रयोग सफल होता है, वहीं प्रयोग हम झारखंड में फिट करने जाएंगे तो कभी कभी..न तो किसान उसको स्वीकार करेगा और कभी कोई प्रयोग अगर विफल गया, तो कभी किसान हाथ नहीं लगाएगा।
इसलिए वो जिस भू-भाग में रहता है, जिस प्राकृतिक अवस्था में रहता है, जिस परंपरा से खेती करता है, उसी में अगर हम संशोधन करेंगे, उसी में वैज्ञानिकता लाएंगे, तो किसान उसको सहज रूप में स्वीकार भी करेगा और किसान को वो उपकारक भी होगा। इसलिए हमने दूर-सुदूर इलाकों के विद्यार्थियों को.. कृषि के क्षेत्र में आधुनिक शिक्षा मिले, उनको research करने का अवसर मिले और वो अपने अपने क्षेत्र में, उस भूभाग के किसानों का भला करने की दिशा में नए संशोधन करे, जिसको आगे चल करके लागू किया जाए, उस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास..जिसके तहत आज एक कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में एक इंस्टीट्यूट झारखंड को मिल रहा है। इसका लाभ इस पूरे इलाके को मिलने वाला है।
हमारे देश ने प्रथम कृषि क्रांति देखी है, लेकिन उसको बहुत साल हो गए। अब समय की मांग है कि देश में दूसरी कृषि क्रांति बिना विलंब होनी चाहिए। ये दूसरी कृषि क्रांति होने की संभावना कहां है? मैं जानकारियों के आधार पर कह सकता हूं कि अब हिंदूस्तान में दूसरी कृषि क्रांति की संभावना अगर कहीं है, तो वह पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम, ये भारत के जो पूर्वी इलाके हैं, वहीं पर से दूसरी कृषि क्रांति की संभावना है। इसलिए सरकार ने पूरा अपना ध्यान इस क्षेत्र के विकास की ओर केंद्रित किया है और इस क्षेत्र के विकास के लिए जिस प्रकार से एक research institute का हम आरंभ कर रहे हैं, उसी प्रकार से.. किसान को fertilizer चाहिए, यूरिया चाहिए। इस इलाके में यूरिया के खातर के कारखाने बंद पड़े हैं। हमारी सरकार ने निर्णय किया.. चाहे गोरखपुर का कारखाना हो, चाहे सिंदरी का कारखाना हो, चाहे पश्चिम बंगाल, असम में कारखाने लगाने की बात हो, बिहार में लगाने की बात हो, अरबों, खरबों रूपयों की लागत से इन कारखानों को लगाया जाएगा, चालू किया जाएगा ताकि यहां के किसानों को खाद मिले, यूरिया मिले, उनको खातर मिले और पास में जो उत्पादन होता है, transportation का जो बोझ लगता है, उससे भी उसको मुक्ति मिले और यहां पर खाद के कारखाने लगें तो यहां के नौजवान को रोज़गार भी मिले।
सरकार ने एक महत्वपूर्ण initiative लिया है। आजकल, अगर हम बिमार होते हैं तो डाक्टर दवाई देने से पहले कहता है कि pathology laboratory में जाइए, रक्त परीक्षण करवाईए, यूरिन टेस्ट करवाइए, ब्लड टेस्ट करवाइए, उसके बाद तय करेंगे कि क्या बिमारी है और उसके बाद दवाई देंगे। गांव के अंदर भी आजकल डाक्टर सीधी दवाई देने के बजाए आपको ब्लड टेस्ट कराने के लिए भेजता है। शरीर के अंदर क्या कमी आई है, उसका पता पहले लगाया जाता है, उसके बाद दवाई दी जाती है। जैसा शरीर का स्वाभाव है, वैसा ही हमारी इस धरती माता का भी स्वभाव है। जैसे हम बिमार होते है, वैसे ही ये हमारी धरती माता भी बिमार होती है। जैसे हम अपने शरीर की चिंता करते हैं, वैसे हमें धरती माता की तबियत की भी चिंता करना ज़रूरी है। हमारी धरती माता को क्या बिमारी है? क्या कमियां आईं हैं? हमने किस प्रकार से हमारी धरती माता का दूरूपयोग किया है? कितना हमने उसको चूस लिया है? इसका अध्ययन ज़रूरी है..और इसलिए सरकार ने पूरे देश में हर खेत के लिए soil health card बनाना तय किया है। धरती के परीक्षण के द्वारा उसका एक कार्ड निकाला जाएगा। जैसे इंसान का health card होता है, वैसे किसान की धरती माता का भी health card होगा। आपकी धरती में क्या कमियां है, क्या बिमारियां हैं, आपकी धरती किस फसल के लिए उपयुक्त है, कौन से pesticide लगाना अच्छा है, कौन से लगाना बुरा है, कौन सा fertilizer डालना ठीक है, कौन सा डालना बुरा है, इसकी पूरी समझ किसान को अगर पहले से मिल जाए तो किसान तय कर सकता है कि मेरी ये धरती है, इसमें धान पैदा होगा, दलहन पैदा होंगे, क्या पैदा होगा, वो तय कर सकता है। एक बार यदि अपनी ज़मीन के हिसाब से फसल बोता है, तो उसको ज्यादा आय भी होती है, ज्यादा फसल पैदा होती है। पूरे हिंदूस्तान में वैज्ञानिक तरीके से हम ये बदलाव लाने के लिए लगे हैं ..और ये काम धीरे धीरे नौजवानों को रोज़गार देने वाला भी काम बन सकता है।
आज हिंदुस्तान में जितनी pathology laboratories हैं, वो सरकार कहां चलाती है? सरकार की तो बहुत कम हैं। लोग चलाते हैं, लोग अपना pathology laboratory बनाते हैं, patient आते हैं, परीक्षण करते हैं, अपना खर्चा वो ले लेते हैं, रोज़ी रोटी कमाते हैं, लोगों की तबियत की भी चिंता करते हैं। धीरे धीरे हम देश में नौजवानों को soil health card तैयार करने की laboratory का जाल बिछाने के लिए तैयार करना चाहते हैं। ताकि नौजवान का अपना व्यवसाय बन जाए..ज़मीन, मिट्टी का परीक्षण करने का उसका रोज़गार शुरू हो जाए और गांव का नौजवान गांव में ही कमाई करने लग जाए। उसके रोज़गार के भी द्वार खुल जाएं और ज़मीन के संबंध में किसान को सही जानकारी मिल जाए ताकि वो सही उत्पादन की दिशा में आगे बढ़ सके, उस दिशा में हम काम कर रहे हैं।
भाईयों-बहनों, हमारे कृषि के साथ पशुपालन का भी उतना ही महत्व है, मतस्य पालन का भी उतना ही महत्व है, मुर्गी पालन का भी उतना ही महत्व है, शहद का काम करना भी उतने ही महत्व का है। हमारी खेती अगर 6 महीना – 8 महीना चलती है तो बाकी समय में ये चीज़ें किसान की आर्थिक स्थिति में लाभ करते हैं। आज हमारे पास जितने पशु हैं, उसकी तुलना में हमारा दूध कम है। दुनिया में पशु कम हैं, दूध का उत्पादन ज्यादा है। हमारे यहां पशु ज्यादा है, दूध का उत्पादन कम है। ये स्थिति हमें पलटनी है। प्रति पशु ज्यादा से ज्यादा दूध कैसे उत्पादन हो..ताकि जो पशुपालक हैं, जो किसान हैं, उसके लिए पशुपालन कभी मंहगा नहीं होना चाहिए। पशुपालन का जितना खर्चा होता है, उससे ज्यादा आय उसको दूध में से मिलना चाहिए। इसलिए हमने डेयरी के क्षेत्र में, झारखंड को भी सेवाएं मिलें, ये अभी अभी निर्णय कर लिया है। झारखंड में भी डेयरी का विकास हो, पशुपालकों को लाभ हो, किसान को खेती के साथ साथ पशुपालन की भी व्यवस्था मिले, उस दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं।
मैं एक बार बिहार में भ्रमण कर रहा था, तो वहां लोगों ने मुझे बताया कि बिहार में हर वर्ष करीब 400 करोड़ रूपए की मछली दूसरे राज्यों में से import करके खाते हैं। अब ये 400 करोड़ रूपया कहीं और चला जाता है। अगर वहीं पर सही तरीके से मतस्य उद्योग हो, वहां के नौजवानों को रोज़गार मिले, वहां के लोगों की आवश्यकता की पूर्ति हो तो 400 करोड़ रूपए वहीं बच जाएंगे। उन 400 करोड़ रूपयों से कितने लोगों को रोजी-रोटी मिल जाएगा।
इसलिए हम व्यवस्थाओं को विकसित करना चाहते हैं। हमारे देश में कुछ इलाके ऐसे हैं कि जहां किसान मधुमक्खी के पालन में लगा हुआ है और कुछ किसान तो ऐसे हैं जो शहद के उत्पादन से, मधु के उत्पादन से लाखों रूपयों की कमाई करते हैं। क्या हम हमारे देश में, हर राज्य में कम से कम एक जिला..वहां के किसानों को तैयार करें, मधु के लिए तैयार करें, शहद के लिए तैयार करें। और हर राज्य का एक जिला..जहां के किसान अपनी खेती, पशुपालन के साथ साथ मधु उत्पादन का भी काम करें। मधु खराब भी नहीं होता है। बोतल में पैक करके रख दिया। सालों तक चलता है। आज दुनिया में उसकी मांग है। हम हमारे किसान को आधुनिक रूप से बदलाव लाने की दिशा में ले जाना चाहते हैं।
आज किसान जागरूक हुआ है, Vermicompost की ओर बढ़ा है। क्या हम तय नहीं कर सकते कि पिछली बार हमारे पास सौ किलो earthworm थे.. पिछली बार अगर हमारे पास सौ किलो केंचुए थे, इस बार अगर हमने दो सौ किए। आपको तो सिर्फ एक गड्ढा खोद कर उसमें कूड़ा कचरा डालना है। बाकी काम अपने आप परमात्मा कर देता है। आपकी ज़मीन को भी वो संभालता है और आजकल केंचुओं का बाज़ार भी बहुत बड़ा होता जा रहा है। हमारी ज़मीन भी बचेगी, यूरिया का खपत भी बचेगा। यूरिया के कारण हमारी ज़मीन बरबाद हो रही है, वो भी बचेगी और Vermi-compost के द्वारा हम उत्पादन में वृद्धि ला सकते हैं, ये अपने घर में बैठ करके करने वाले काम हैं, उसको हम कर सकते हैं। इसलिए हम एक integrated approach के साथ हमारे कृषि क्षेत्र में बदलाव लाने की दिशा में एक के बाद एक कदम उठाने जा रहे हैं।
हमारे देश में आज भी..जब हमारे देश के प्रधानमंत्री थे, लाल बहादुर शास्त्री, उन्होंने एक बार कहा- जय जवान, जय किसान। देश के किसानों को कहा कि अन्न के भंडार भर दो, फिर इस देश के किसान ने कभी पीछे मुड़ करके देखा नहीं। उसने इतनी मेहनत की, इतनी मेहनत की, अन्न के भंडार भर दिए। अब विदेशों से खाने के लिए अन्न नहीं मंगवाना पड़ता। लेकिन मेरे किसान बहनों, भाईयों हमने अन्न के भंडार तो भर दिए, लकिन आज देश के लोगों को, खास करके गरीब लोगों को अपने खाने में दलहन की बड़ी आवश्यकता होती है। प्रोटीन उसी से मिलता है, दाल से मिलता है। हमारे यहां दाल का उत्पादन बहुत कम है, विदेशों से लाना पड़ता है। मैं देश के किसानों से आग्रह करता हूं कि अगर आपके पास पांच एकड़ भूमि है तो चार एकड़ भूमि में आप परंपरागत जो काम करते हैं, करिए। कम से कम एक एकड़ भूमि में आप दलहन की खेती कीजिए। देश को जो pulses बाहर से लाने पड़ते हैं, वो लाने न पड़ें और गरीब से गरीब व्यक्ति को जो दाल चाहिए, वो दाल हम उपलब्ध करा सकें। इसीलिए सरकार ने.. जो minimum support price देते हैं, उसमें pulses के लिए एक विशेष पैकेज दिया है - जो दाल वगैरह पैदा करेंगे, मूंग, चने वगैरह पैदा करेंगे, उनको अतिरिक्त minimum support price मिलेगा ताकि देश में दाल के उत्पादन को बढ़ावा मिले और देश की आवश्यकता हमारे देश का किसान पूर्ण करे।
इन बातों को ले करके हमने एक और काम का बीड़ा उठाया है। वो है- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना। बहुत ही महत्वपूर्ण काम है। अगर हमारे किसान को पानी मिल जाए तो मिट्टी में से सोना पैदा करने की वो ताकत रखता है। आज हमारे देश की ज्यादातर कृषि आसमान पर निर्भर है, ईश्वर पर निर्भर है। बारिश ठीक हो गई तो काम चल जाता है। बारिश अगर ठीक नहीं हुई तो मामला गड़बड़ा जाता है। उसे पानी चाहिए। अगर हम पानी पहुंचाने का प्रबंध ठीक से कर पाते हैं तो सिर्फ एक फसल नहीं, वो दो फसल दे सकता है, कोई तीन फसल ले सकता है और बाकी समय में भी कुछ न कुछ उत्पादन करके वो रोजी-रोटी कमा सकता है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना से पूरे हिंदूस्तान में खेतों में पानी पहुंचाने का, एक बहुत बड़ा भगीरथ काम उठाने की दिशा में ये सरकार आगे बढ़ रही है और आने वाले वर्षों में उस काम को हम पूर्ण करना चाहते हैं।
कितने जलाशय बने हुए हैं। लेकिन उन जलाशयों में खेतों तक पानी ले जाने की व्यवस्था नहीं है। मैं हैरान हूं..बिजली का कारखाना लग जाए लेकिन बिजली वहन करने के लिए जो तार नहीं लगेंगे तो कारखाना किस काम का? जलाशय बन जाए, पानी भर जाए, लेकिन उस पानी को पहुंचाने के लिए अगर नहर नहीं होगी तो उस पानी को देख करके क्या करेंगे? इसलिए देश भर में जलाशयों के बूंद बूंद पानी का उपयोग कैसे हो, हमारा किसान उससे लाभान्वित कैसे हो, उस दिशा में हम काम कर रहे हैं।
भारत जैसे देश में पानी भी बचाना पड़ेगा। इसलिए हमारा आग्रह है- per drop more crop. पानी के हर बूंद से फसल पैदा होनी चाहिए। एक एक बूंद का उपयोग करना चाहिए। micro-irrigation का उपयोग करना चाहिए..टपक सिंचाई, sprinkler, जहां जहां किसानों ने इस आधुनिक technology से पानी का उपयोग किया है, मेहनत भी कम हुई है, खर्चा भी कम हुआ है, उत्पादन ज्यादा बढ़ा है, मुनाफा भी ज्यादा बढ़ा है।
मैं किसानों से आग्रह करता हूं, देश भर के किसानों से आग्रह करता हूं कि आइए, ये हम flood irrigation..क्योंकि किसान का स्वभाव है, जब तक वो खेत में, लबालब पानी से भरा हुआ उसको खेत दिखता नहीं है, तब तक उसको लगता है कि पता नहीं फसल होगी कि नहीं होगी। ये सोच गलत है। फसल को इतने पानी की ज़रूरत नहीं होती है। पानी का प्रभाव भी फसल को नुकसान करता है, पानी का अभाव भी फसल को नुकसान करता है। अगर सही मात्रा में पानी पहुंचे तो उससे सर्वाधिक लाभ होता है। इसलिए micro-irrigation के द्वारा, टपक सिंचाई के द्वारा फसल का लाभ हम कैसे उठाएं, पानी पहुंचा पहुंचा कर कैसे लाभ उठाएं..।
आपने देखा होगा कि अगर कोई बच्चा घर में बीमार रहता है, और आपने अगर सोचा हो कि एक बाल्टी भर दूध ले लें, दूध के अंदर केसर, पिस्ता, बादाम डाल दें और उस बाल्टी भर दूध से रोज़ बच्चे को नहलाना शुरू कर दें। क्योंकि बच्चे की तबियत ठीक नहीं रहती, वजन नहीं बढ़ता है,ढीला ढाला रहता है और पूरे दिन पड़ा रहता है, बच्चे की तरह वो हंसता, खेलता, दौड़ता नहीं है तो एक बाल्टी भर दूध..बादाम हो, पिस्ता हो, केसर हो, उससे उसको नहलाएं, आप मुझे बताएं कि बच्चे को इतने बढि़या दूध से नहलाने से उसकी तबियत ठीक होगी क्या, उसका वजन बढ़ेगा क्या? उसकी सेहत में सुधार होगा क्या? नहीं होगा। लेकिन अगर समझदार मां एक एक चम्मच से एक एक बूंद दूध पिलाती है, शाम तक चाहे 100 ग्राम दूध पिला दे, बच्चे के स्वास्थ्य में सुधार नज़र आना शुरू हो जाता है। फसल का भी ऐसा ही है, जैसे बच्चे को एक एक चम्मच दूध से बदलाव आता है, फसल को भी, एक एक बूंद पानी अगर उसके मूंह में जाता है तो उसको सचमुच में विकास करने का अवसर मिलता है। जिस प्रकार से हम बच्चे का लालन पालन करते हैं, उसी प्रकार हम फसल का भी लालन पालन कर सकते हैं। इसलिए मैं सभी किसान भाईयों को micro irrigation के लिए, टपक सिंचाई के लिए फ़वारे वाली सिंचाई के लिए आग्रह करता हूं। पानी बचाएंगे, पैसा भी बचेगा और फसल ज्यादा पैदा होगी, इसकी मैं आपको गारंटी देने आया हूं।
सरकार ने एक open university.. किसानों को रोज़मर्रा जानकारियां देने के लिए, रोज़मर्रा प्रशिक्षण करने के लिए, सरकार ने किसान चैनल चालू किया हैं। हमारे देश में कार्टून फिल्मों की चैनल होती है, स्पोर्ट्स की, समाचारों की चैनल होती है, मनोरंजन के लिए चैनल होती है, लेकिन किसानों के लिए चैनल नहीं थी। भारत सरकार ने पिछले महीने सिर्फ और सिर्फ किसानों की आवश्यकताओं के लिए एक किसान चैनल चालू किया। आपने भी अब देखना शुरू किया होगा, उसमें सारी जानकारियां बताई जाती हैं। किसान के सवालों के जवाब दिए जाते हैं, देशभर में कृषि क्षेत्र में क्या क्या प्रगति हुई, उसकी जानकारी दी जाती है। मैं चाहता हूं ये किसान चैनल हमारे देश के किसानों के लिए एक open university के रूप में काम करे। घर घर आ करके हर किसान को वो गाइड करे। किसान और किसान चैनल, कृषि में आधुनिकता कैसे आए कृषि में वैज्ञानिकता कैसे आए, कृषि में बदलाव कैसे आए, उस दिशा में काम करे।
आज जो झारखंड की इस धरती में जो प्रयास आरंभ हुआ है, वो उत्तम स्तर कक्षा के कृषि वैज्ञानिकों को तैयार करेगा, कृषि क्षेत्र के निष्णातों को तैयार करेगा और हमारी कृषि को आधुनिक बनाने की दिशा में झारखंड की धरती पर से एक नया युग प्रारंभ होगा, इसी एक विश्वास के साथ मैं आप सबको, खास करके मेरे किसान भाइयों को हृदय से बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूं। झारखंड को भी बहुत ही जल्द, ये संस्थान निर्माण हो जाए, बहुत तेजी से यहां के विद्यार्थियों को लाभ मिले, उस दिशा में आगे बढ़ें, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ आप सबको बहुत बहुत धन्यवाद। जय जवान, जय किसान।
আমার প্রিয় দেশবাসী, নমস্কার। ২০২৫ তো প্রায় এসেই গেল, এই তো দরজায় কড়া নাড়ছে। ২০২৫ সালের ২৬শে জানুয়ারি আমাদের সংবিধান কার্যকর হওয়ার পঁচাত্তর বছর পূর্ণ হতে চলেছে। আমাদের সবার জন্য অত্যন্ত গৌরবের ব্যাপার। আমাদের সংবিধান-নির্মাতারা আমাদের যে সংবিধান দিয়ে গিয়েছেন তা কালের প্রবাহে প্রতিটি মানদণ্ডে সাফল্য পেয়েছে। সংবিধান আমাদের জন্য এক দিশারী আলোকবর্তিকা, আমাদের পথপ্রদর্শক। ভারতের সংবিধানের কারণেই আমি আজ এখানে পৌঁছেছি, আপনাদের সঙ্গে কথা বলতে পারছি। এই বছর ২৬শে নভেম্বর, সংবিধান দিবস থেকে এক বছর ধরে চলবে এমন অনেক কাজ শুরু হয়েছে। দেশের নাগরিকদের সংবিধানের ঐতিহ্যের সঙ্গে যুক্ত করার জন্য কনস্টিটিউশন-সেভেন্টিফাইভ-ডট-কম নামে এক বিশেষ ওয়েবসাইটও বানানো হয়েছে। এতে আপনি সংবিধানের প্রস্তাবনা পাঠ করে নিজের ভিডিও আপলোড করতে পারেন। আলাদা-আলাদা ভাষায় সংবিধান পাঠ করতে পারেন, সংবিধানের ব্যাপারে প্রশ্নও জিজ্ঞাসা করতে পারেন। মন কি বাতের শ্রোতাদের কাছে, স্কুলপড়ুয়া বাচ্চাদের কাছে, কলেজে যাওয়া যুবক-যুবতীদের কাছে আমার অনুরোধ, আপনারা অবশ্যই এই ওয়েবসাইটে গিয়ে দেখুন, এর অংশ হয়ে উঠুন।
বন্ধুরা, আগামী মাসের তেরো তারিখ থেকে প্রয়াগরাজে মহাকুম্ভও অনুষ্ঠিত হতে চলেছে। এই সময় ওখানকার সঙ্গমতটে পূর্ণ উদ্যমে প্রস্তুতি চলছে। আমার মনে আছে, এই কিছুদিন আগে যখন আমি প্রয়াগরাজে গিয়েছিলাম তখন হেলিকপ্টার থেকে গোটা কুম্ভ ক্ষেত্র দেখে হৃদয় প্রসন্ন হয়ে গিয়েছিল। এত বিশাল! এত সুন্দর! এত মহৎ!
বন্ধুরা, মহাকুম্ভের বিশেষত্ব কেবল এর বিশালতার মধ্যেই নয়, কুম্ভের বিশেষত্ব এর বিবিধতার মধ্যেও ধরা আছে। এই উদ্যোগে কোটি-কোটি মানুষ এসে একত্রিত হন। লক্ষ-লক্ষ সন্ন্যাসী, হাজার-হাজার রীতি-পরম্পরা, শত-শত সম্প্রদায়, বহু আখড়া, প্রত্যেকে এই আয়োজনের অংশ হয়ে ওঠেন। কোথাও কোনও বিভেদ নেই, কেউ এখানে বড় নন, কেউ ছোট নন। বৈচিত্র্যের মধ্যে ঐক্যের এই দৃশ্য বিশ্বের আর কোথাও দেখা যায় না। এই জন্য আমাদের কুম্ভ ঐক্যের মহাকুম্ভও হয়ে ওঠে। এবারের মহাকুম্ভও ঐক্যের মহাকুম্ভের মন্ত্রকে শক্তিশালী করে তুলবে। আমি আপনাদের সবাইকে বলব, যখন কুম্ভে অংশ নেব আমরা, তখন ঐক্যের এই সঙ্কল্পকে নিজের সঙ্গে নিয়ে ফিরব। সমাজে বিভেদ আর বিদ্বেষের ভাবনাকেও নষ্ট করার সঙ্কল্প নেব আমরা। কম শব্দে যদি প্রকাশ করতে হয় আমাকে, তাহলে বলব-
মহাকুম্ভের সন্দেশ, এক হোক গোটা দেশ।
মহাকুম্ভের সন্দেশ, এক হোক গোটা দেশ।
আর যদি ভিন্ন ভাবে বলতে হয় তাহলে আমি বলবঃ
গঙ্গার নিরন্তর ধারা, মোদের সমাজ যেন না হয় ঐক্যহারা।
গঙ্গার নিরন্তর ধারা, মোদের সমাজ যেন না হয় ঐক্যহারা।।
বন্ধুরা, এবার প্রয়াগরাজে দেশ ও বিশ্বের ভক্তরা ডিজিটাল মহাকুম্ভেরও সাক্ষী হবেন। ডিজিটাল নেভিগেশনের সহায়তায় আপনারা আলাদা আলাদা ঘাট, মন্দির, সাধু-সন্ন্যাসীদের আখড়া পর্যন্ত পৌঁছনোর রাস্তা পেয়ে যাবেন। এই নেভিগেশন সিস্টেম আপনাদের পার্কিং পর্যন্ত পৌঁছতেও সাহায্য করবে। এই প্রথম বার কুম্ভমেলা আয়োজনে এআই চ্যাটবটের প্রয়োগ হবে। এই চ্যাটবটের মাধ্যমে ১১টি ভারতীয় ভাষায় কুম্ভ মেলার সঙ্গে যুক্ত সব রকম তথ্য জানা যাবে। এই চ্যাটবটে বিভিন্ন ধরনের টেক্সট টাইপ করে কিংবা মুখে বলে যে কোন ধরনের সহায়তা আপনারা চাইতে পারেন। সম্পূর্ণ মেলা প্রাঙ্গণকে এআই-পাওয়ারড ক্যামেরায় ঢেকে দেওয়া হচ্ছে। কুম্ভে যদি কেউ নিজের পরিচিতজনের থেকে বিচ্ছিন্ন হয়ে যান তাহলে এই ক্যামেরাগুলি তাকে খুঁজতেও সাহায্য করবে। ভক্তরা ডিজিটাল লস্ট এন্ড ফাউন্ড সেন্টারের সুবিধাও পাবেন। তাদের মোবাইলে government approved tour packages, থাকার জায়গা আর হোমস্টে সম্বন্ধেও জানানো হবে। আপনারাও যদি মহাকুম্ভে যান তাহলে এই সুবিধাজনক ব্যবস্থাগুলির সুফল নেবেন এবং #"একতা কা মহাকুম্ভ"-এর সঙ্গে নিজের সেলফি অবশ্যই আপলোড করবেন।
বন্ধুরা, মন কি বাত অর্থাৎ MKB-তে এবারে বলি KTB-র কথা। যারা প্রবীণ মানুষ তাদের মধ্যে অনেকেরই হয়তো KTB সম্বন্ধে জানা নেই। কিন্তু ছোটদের জিজ্ঞাসা করুন, KTB ওদের কাছে সুপারহিট। KTB কৃষ, ট্রিশ, বালটিবয়। আপনারা সম্ভবত জানেন ছোটদের পছন্দের অ্যানিমেশন সিরিজ, যার নাম "KTB - ভারত হ্যায় হাম", এখন তার দ্বিতীয় সিজনও চলে এসেছে। এই তিনটি অ্যানিমেশন ক্যারেক্টার আমাদের ভারতের স্বাধীনতা সংগ্রামের সেই সব নায়ক-নায়িকাদের সম্বন্ধে বলে যাদের নিয়ে তেমন ভাবে আলোচনা হয় না। সম্প্রতি এর সিজন টু বিশেষ সমারোহের সঙ্গে ইন্টারন্যাশনাল ফিল্ম ফেস্টিভ্যাল অফ ইন্ডিয়া, গোয়াতে লঞ্চ হয়েছে। সবচেয়ে দুর্দান্ত ব্যাপার, এই সিরিজটি শুধু ভারতের অনেকগুলি ভাষায় নয়, এমনকি বিদেশি ভাষাতেও সম্প্রচার হয়। দূরদর্শনের পাশাপাশি অন্য ওটিটি প্লাটফর্মেও এটি দেখা যায়।
বন্ধুরা, আমাদের অ্যানিমেশন ফিল্মের, রেগুলার ফিল্মের, টিভি সিরিয়ালের জনপ্রিয়তা এটা প্রমাণ করে যে, ভারতের ক্রিয়েটিভ ইন্ডাস্ট্রির কতটা ক্ষমতা রয়েছে। এই ইন্ডাস্ট্রি যে শুধু দেশের উন্নতির ক্ষেত্রে বড় অবদান রেখে চলেছে তাই নয়, বরং আমাদের অর্থনীতিকে নতুন উচ্চতায় নিয়ে যাচ্ছে। আমাদের ফিল্ম এবং এন্টারটেইনমেন্ট ইন্ডাস্ট্রি বিরাট। দেশে কত রকম ভাষায় সিনেমা তৈরি হয়, ক্রিয়েটিভ কনটেন্ট তৈরি হয়। আমি আমাদের ফিল্ম এবং এন্টারটেইনমেন্ট ইন্ডাস্ট্রিকে এই জন্য অভিনন্দন জানাই, কারণ তারা এক ভারত শ্রেষ্ঠ ভারত- এই ভাবনাকে আরো শক্তিশালী করে তুলেছে।
বন্ধুরা, ২০২৪ সালে আমাদের চলচ্চিত্র জগতের অনেক বিখ্যাত ব্যক্তিত্বের শততম জন্মজয়ন্তী আমরা পালন করছি। এই মহাপুরুষরা ভারতীয় সিনেমাকে বিশ্বের দরবারে পরিচিতি দিয়েছেন। রাজকাপুরজি ফিল্মের মাধ্যমে সারা পৃথিবীকে ভারতের সফ্ট পাওয়ারের সঙ্গে পরিচয় করিয়েছেন। রফি সাহেবের চমৎকার কণ্ঠস্বর সকলের হৃদয়কে ছুঁয়ে যেত। ওঁর কণ্ঠস্বর ছিল অদ্ভূত। ভক্তিগীতি হোক, রোমান্টিক গান হোক কিংবা বিরহের গান, সমস্ত
অনুভূতিকে তিনি নিজের কণ্ঠস্বরের মাধ্যমে জীবন্ত করে তুলেছিলেন। একজন শিল্পী হিসেবে ওঁর প্রতিভা সম্পর্কে এভাবেই আন্দাজ করা যায় যে, আজও যুবক-যুবতীরা ওঁর গান সেই একইরকম আগ্রহের সঙ্গে শোনে, এটাই টাইমলেস আর্টের পরিচয়। আক্কিনেনি নাগেশ্বর রাও গারু তেলুগু সিনেমাকে নতুন উচ্চতায় পৌঁছে দিয়েছিলেন। ওঁর সিনেমায় ভারতীয় ঐতিহ্য এবং মূল্যবোধের প্রদর্শন করা হয়েছে। তপন সিনহাজির সিনেমা সমাজকে এক অন্য দৃষ্টিভঙ্গিতে দেখিয়েছে। ওঁর সিনেমায় সামাজিক চেতনা এবং রাষ্ট্রীয় ঐক্যের বার্তা থাকত। আমাদের পুরো ফিল্ম ইন্ডাস্ট্রির জন্য এই মহান ব্যক্তিদের জীবন অনুপ্রেরণার মতোই।
বন্ধুরা, আমি আপনাদের আরেকটা আনন্দের কথা জানাতে চাই। ভারতের ক্রিয়েটিভ ট্যালেন্টকে পৃথিবীর সামনে রাখার এক বড় সুযোগ আসতে চলেছে। আগামী বছর আমাদের দেশে প্রথম বার ওয়ার্ল্ড অডিয়ো ভিসুয়াল এন্টারটেইনমেন্ট সামিট অর্থাৎ WAVES সামিটের আয়োজন হতে চলেছে। আপনারা সকলে দাবোসের ব্যাপারে শুনেছেন, যেখানে পৃথিবীর অর্থনীতি জগতের মহারথীরা যুক্ত হন। সে ভাবে এই সামিটে সারা পৃথিবীর মিডিয়া এবং এন্টারটেইনমেন্ট ইন্ডাস্ট্রির বিশেষজ্ঞ, ক্রিয়েটিভ জগতের মানুষরা ভারতে আসবেন। এই সামিট ভারতকে গ্লোবাল কনটেন্ট ক্রিয়েশনের হাব হিসেবে পরিচিতি দেওয়ার জন্য এক গুরুত্বপূর্ণ পদক্ষেপ। আমার এটা বলতে গর্ব হচ্ছে যে, এই সামিটের প্রস্তুতির সময়ে আমাদের দেশের ইয়ং ক্রিয়েটররাও সম্পূর্ণ আগ্রহের সঙ্গে যুক্ত হচ্ছেন। যখন আমরা পাঁচ ট্রিলিয়ন ডলার ইকোনমির দিকে এগিয়ে চলেছি, তখন আমাদের ক্রিয়েটর ইকোনমি এক নতুন শক্তির সঞ্চার করছে। আমি ভারতের সমগ্র এন্টারটেইনমেন্ট এবং ক্রিয়েটিভ ইন্ডাস্ট্রিকে বলতে চাই যে, আপনারা ইয়ং ক্রিয়েটর হোন বা প্রতিষ্ঠিত শিল্পী হোন বা বলিউডের সঙ্গে যুক্ত অথবা আঞ্চলিক সিনেমার সঙ্গে যুক্ত বা টিভি ইন্ডাস্ট্রির পেশাদার হোন অথবা অ্যানিমেশন বিশেষজ্ঞ বা গেমিং-এর সঙ্গে যুক্ত বা এন্টারটেইনমেন্ট টেকনোলজির ইনোভেটর হোন, আপনারা সকলে ওয়েভস সামিটের অংশ হয়ে উঠুন।
আমার প্রিয় দেশবাসী, আপনারা সবাই জানেন যে, ভারতীয় সংস্কৃতির প্রকাশ আজ দুনিয়ার প্রতিটি প্রান্তে পৌঁছে যাচ্ছে। আজ আমি আপনাদের তিন মহাদ্বীপে এমন প্রয়াসের ব্যাপারে বলব, যা আমাদের সাংস্কৃতিক ঐতিহ্যের বৈশ্বিক বিস্তারের সাক্ষী। এগুলো একে অন্যের থেকে শত-শত মাইল দূরে অবস্থিত। কিন্তু ভারতের সংস্কৃতি জানার এবং সেটা থেকে শেখার আগ্রহ তাদের মধ্যে একইরকম।
বন্ধুরা, চিত্রকলার দুনিয়া যেমন রঙিন, তেমন সুন্দর। আপনারা যাঁরা টিভির মাধ্যমে মন কি বাতের সঙ্গে যুক্ত হয়েছেন, তাঁরা এখনই কিছু চিত্রকলা টিভিতে দেখতে পাবেন। এই সব চিত্রকলায় আমাদের দেবী-দেবতা, নৃত্যকলা আর মহাপুরুষদের দেখে আপনাদের খুব ভালো লাগবে। এর মধ্যে আপনারা ভারতে পাওয়া যায়, এমন জীবজন্তু থেকে শুরু করে আরও অনেক জিনিস দেখতে পাবেন। এর মধ্যে তাজমহলের এক চিত্তাকর্ষক চিত্রও রয়েছে, যেটা তেরো বছরের একটি মেয়ে তৈরি করেছে। আপনারা এটা জেনে বিস্মিত হবেন যে, এই দিব্যাঙ্গ কন্যা নিজের মুখ দিয়ে এই চিত্র তৈরি করেছে। সব থেকে আকর্ষণীয় ব্যাপার হল এই সব চিত্র নির্মাতারা ভারতের নয়, মিশরের শিক্ষার্থী, ওখানকার ছাত্র-ছাত্রী। কয়েক সপ্তাহ আগেই মিশরের তেইশ হাজার শিক্ষার্থী ছবি আঁকার এক প্রতিযোগিতায় অংশ নিয়েছিল। সেখানে তাদের ভারতের সংস্কৃতি আর দুই দেশের ঐতিহাসিক সম্পর্ক তুলে ধরার চিত্র তৈরি করতে হয়েছিল। আমি এই প্রতিযোগিতায় অংশগ্রহণকারী প্রত্যেক তরুণ-তরুণীর প্রশংসা করছি। তাদের সৃজনশীলতার যতই প্রংশসা করা হোক না কেন, তা কম হবে।
বন্ধুরা, দক্ষিণ আমেরিকায় একটি দেশ হল প্যারাগুয়ে। ওখানে বসবাসকারী ভারতীয়ের সংখ্যা ১০০০-এর থেকে বেশি হবে না। প্যারাগুয়েতে একটি অদ্ভুত প্রচেষ্টা চলছে। ওখানকার ভারতীয় দূতাবাসে Erica Huber বিনামূল্যে আয়ুর্বেদিক পরামর্শ দিয়ে থাকেন। ওঁর কাছে আয়ুর্বেদের পরামর্শ নেবার জন্য প্রচুর সংখ্যায় স্থানীয় মানুষেরা ভিড় করছেন। যদিও Erica Huber ইঞ্জিনিয়ারিং নিয়ে পড়াশোনা করেছেন, কিন্তু তিনি আয়ুর্বেদের প্রতি নিবেদিত-প্রাণ। তিনি আয়ুর্বেদের সঙ্গে যুক্ত বিভিন্ন কোর্সও করেছেন, আর সময়ের সঙ্গে সঙ্গে আয়ুর্বেদে পারদর্শীও হয়ে উঠেছেন।
বন্ধুরা, এটা আমাদের জন্য অত্যন্ত গর্বের বিষয় যে, পৃথিবীর সব থেকে প্রাচীন ভাষা হল তামিল, আর প্রত্যেক ভারতীয় এর জন্য গর্বিত। পৃথিবীর বিভিন্ন দেশে এই ভাষা শেখার লোকের সংখ্যা দিন দিন বাড়ছে। গত মাসের শেষের দিকে ফিজিতে ভারত সরকারের সাহায্যে তামিল টিচিং প্রোগ্রাম শুরু হয়। বিগত ৮০ বছরে এটাই প্রথম বার, যখন ফিজিতে অভিজ্ঞ শিক্ষকেরা তামিল ভাষা শেখাচ্ছেন। আমার এটা জেনে ভালো লাগছে যে, ফিজির ছাত্ররা তামিল ভাষা ও সংস্কৃতি শেখার ব্যাপারে অনেক আগ্রহ দেখাচ্ছে।
বন্ধুরা, এই কথাগুলো, এই ঘটনাগুলো শুধুমাত্র সাফল্যের কাহিনি নয়। এটা আমাদের সাংস্কৃতিক ঐতিহ্যেরও গাথা। এই উদাহরণগুলো আমাদের গৌরবান্বিত করে। আর্ট থেকে আয়ুর্বেদ, ল্যাঙ্গুয়েজ থেকে মিউজিক, ভারতে এত কিছু আছে যা পৃথিবীতে ছড়িয়ে গেছে ।
বন্ধুরা, শীতের এই মরশুমে দেশ জুড়ে খেলাধুলো ও fitness সংক্রান্ত বিভিন্ন অ্যাক্টিভিটিস হচ্ছে। আমি খুব খুশি এটা দেখে যে, মানুষ ফিটনেসকে দৈনন্দিন জীবনের অংশ করে তুলছেন। কাশ্মীরে স্কিংই থেকে শুরু করে গুজরাটে ঘুড়ি ওড়ানো পর্যন্ত, চারিদিকে খেলাধুলা নিয়ে উৎসাহ বিদ্যমান। #sundayOnCycle আর #cyclingTuesday এর মতো অভিযানের মাধ্যমে সাইকেল চালানোর উৎসাহ বাড়ছে।
বন্ধুরা, এখন আপনাদের একটি অনন্য বিষয়ে কথা বলতে চাই যেটা আমাদের দেশে আগত পরির্বতন এবং যুবা বন্ধুদের উদ্দীপনা ও আবেগের প্রতীক স্বরূপ। আপনি কি জানেন আমাদের বস্তারে একটি অনন্য অলিম্পিক শুরু হয়েছে! একদম ঠিক, প্রথমবার হওয়া বস্তার অলিম্পিকে বস্তারে এক নতুন বিপ্লবের সূচনা হয়েছে। আমার কাছে এটা খুবই আনন্দের কথা যে অবশেষে বস্তার অলিম্পিকের স্বপ্ন বাস্তবে রূপান্তরিত হয়েছে। আপনাদেরও জেনে ভালো লাগবে যে এলাকায় এই খেলা শুরু হয়েছে সেই এলাকাটি আগে মাওবাদী হিংসার সাক্ষী ছিল। বস্তার অলিম্পিকের প্রতীক হল - “বুনো মহিষ এবং পাহাড়ি ময়না”। এর প্রতীকগুলোর মধ্যে বস্তার অঞ্চলের সমৃদ্ধ সংস্কৃতির এক ঝলক দেখতে পাওয়া যায়। এই বস্তারে আয়োজিত অলিম্পিক মহাকুম্ভের, মূল মন্ত্রটি হল- “করসায় তা বস্তার, বরসায় তা বস্তার” অর্থাৎ “খেলবে বস্তার, জিতবে বস্তার”। প্রথম বার আয়োজিত বস্তার অলিম্পিকে সাতটি জেলা মিলিয়ে প্রায় এক লক্ষ ৬৫ হাজার খেলোয়াড় অংশগ্রহণ করেছে। এটি শুধুমাত্র একটি পরিসংখ্যান নয় – এটা আমাদের যুবাদের গ্রহণ করা সংকল্পের একটি গৌরব গাথা। অ্যাথলেটিক্স, তীরন্দাজ, ব্যাডমিন্টন, ফুটবল, হকি, ওয়েট লিফটিং, ক্যারাটে, কাবাডি, খো-খো এবং ভলিবল – প্রতিটি ক্ষেত্রেই আমাদের যুবারা তাদের প্রতিভার পরিচয় রেখেছে। কারি কাশ্যপজির কাহিনি আমাকে খুবই অনুপ্রাণিত করে। ছোট্ট গ্রাম থেকে আসা কারিজি, তীরন্দাজিতে রৌপ্য পদক জিতেছেন। তিনি বলেন – “বস্তার অলিম্পিক আমাদের জন্য শুধুমাত্র একটি খেলার মাঠ নয়, এটি আমাদের জীবনে এগিয়ে যাওয়ার সুযোগ করে দিয়েছে।’’ সুকমা এলাকার পায়েল কাওয়াসি জির কথাও কম প্রেরণাদায়ক নয়। জ্যাভলিন থ্রোতে স্বর্ণপদক প্রাপক পায়েল জি বলেছেন – “শৃঙ্খলা ও কঠোর পরিশ্রমের মাধ্যমে কোনো লক্ষ্যই অর্জন করা অসম্ভব নয়।” সুকমার দোরনাপালের পুনেম সান্না জির গল্পটি নতুন ভারতের জন্য একটি অনুপ্রেরণার সমান। একসময় নকশাল প্রভাব থেকে আসা পুনেম জি আজ হুইলচেয়ারে দৌড়ে পদক জিতেছেন। ওঁর সাহস ও মনের জোর সবার জন্য অনুপ্রেরণা। কোদাগাঁওয়ের তীরন্দাজ রঞ্জু সোরি জিকে ‘বস্তার ইউথ আইকন’ হিসাবে নির্বাচন করা হয়েছে।উনি মনে করেন বস্তর Olympic দূর দুরান্তের যুবাদের রাষ্ট্রীয় মঞ্চ পর্যন্ত পৌছনোর সুযোগ দিচ্ছে।
বন্ধুরা, বস্তর Olympic কেবল একটি ক্রীড়া উদ্যোগ নয়। এটি এমন একটি মঞ্চ যেখানে প্রগতি ও ক্রীড়ার মিলন ঘটে। যেখানে আমাদের যুবারা নিজেদের প্রতিভাকে প্রজ্জ্বলিত করে তুলছেন এবং একটি নতুন ভারত নির্মাণ করছেন। আমি আপনাদের সকলের কাছে অনুরোধ করছিঃ
- নিজেদের এলাকায় এই ধরণের ক্রীড়ার উদ্যোগের আয়োজন করার প্রচেষ্টাকে উৎসাহ দিন
- #খেলেগা ভারত-জিতেগা ভারত ব্যবহার করে নিজেদের অঞ্চলের ক্রীড়া প্রতিভাদের গল্প ভাগ করে নিন
- স্থানীয় ক্রীড়া প্রতিভাদের এগিয়ে যাওয়ার সুযোগ করে দিন
মনে রাখবেন, খেলাধুলোর মাধ্যমে শুধু শারীরিক বিকাশ-ই নয়, সমাজের সঙ্গে sportsman spirit যুক্ত করারও এই একটি শক্তিশালী মাধ্যম।
তাহলে খুব খেলুন, নিজেকে বিকশিত করুন।
আমার প্রিয় দেশবাসী, ভারতের দুটি বিশাল কৃতিত্ব আজ সারা বিশ্বের দৃষ্টি আকর্ষণ করছে। এগুলির কথা শুনলে আপনিও গর্ব অনুভব করবেন। এই দুটি সাফল্যই স্বাস্থ্যের ক্ষেত্রে এসেছে। প্রথম সাফল্যটি এসেছে ম্যালেরিয়ার সঙ্গে লড়াইয়ে। ম্যালেরিয়া রোগটি চার হাজার বছর ধরে মানবজাতির জন্য এক বড় চ্যালেঞ্জ ছিল। স্বাধীনতার সময়ও স্বাস্থ্যের ক্ষেত্রে আমাদের সবচেয়ে বড় চ্যালেঞ্জগুলোর মধ্যে অন্যতম ছিল এটি। এক মাস থেকে ৫ বছর বয়স অবধি বাচ্চাদের প্রাণঘাতী সংক্রামক রোগগুলোর মধ্যে ম্যালেরিয়ার স্থান তিনে। আজ আমি আনন্দের সঙ্গে বলতে পারছি, দেশবাসী নিরন্তর প্রচেষ্টার মাধ্যমে এই চ্যালেঞ্জের মোকাবিলা করেছেন।
বিশ্ব স্বাস্থ্য সংগঠন WHO-এর রিপোর্ট বলছে ‘ভারতে ২০১৫ থেকে ২০২৩-এর মধ্যে ম্যালেরিয়ায় আক্রান্ত হওয়া ও তার ফলে মৃত্যুর সংখ্যা ৮০ শতাংশ কমে গেছে। এটি কোন সামান্য কৃতিত্ব নয়। সবচেয়ে আনন্দের বিষয় এটাই যে এই সাফল্য সাধারণ মানুষের অংশীদারিত্বের মাধ্যমে এসেছে। ভারতের প্রতিটি প্রান্ত, প্রতিটি জেলা থেকে সবাই এই অভিযানে অংশ নিয়েছেন। অসমের জোরহাটের চা বাগানগুলোতে চার বছর আগে পর্যন্ত ম্যালেরিয়া মানুষের দুশ্চিন্তার একটি বড় কারণ ছিল। কিন্তু যখন একে নির্মূল করার লক্ষ্যে চা বাগানে থাকা সবাই এক জোট হন তখন এই ক্ষেত্রে অনেকাংশেই সাফল্য আসতে শুরু করে।
নিজেদের এই প্রয়াসে ওঁরা technology-র পাশাপাশি social media-ও বিশাল রূপে ব্যবহার করেন। এভাবেই হরিয়ানার কুরুক্ষেত্র জেলা ম্যালেরিয়া নিয়ন্ত্রণের লক্ষ্যে একটি খুব সুন্দর model সামনে নিয়ে এসেছেন। এখানে ম্যালেরিয়ার monitoring-এর ক্ষেত্রে জনগণের অংশগ্রহণ বেশ সফল হয়েছে। পথনাটিকা ও রেডিওর মাধ্যমে এমন বার্তায় জোর দেওয়া হয়েছে যার ফলে মশার breeding কম করতে অনেকটাই সাহায্য পাওয়া গেছে। সারা দেশে এই ধরণের নানান প্রচেষ্টার মাধ্যমেই আমরা ম্যালেরিয়ার বিরুদ্ধে যুদ্ধকে আরও দ্রুত এগিয়ে নিয়ে যেতে সক্ষম হয়েছি।
বন্ধুরা, আমাদের সচেতনতা এবং দৃঢ়সংকল্পের মাধ্যমে আমরা যে কী অর্জন করতে পারি তার দ্বিতীয় উদাহরণ হল ক্যান্সারের সঙ্গে লড়াই। বিশ্ব বিখ্যাত মেডিকেল জার্নাল ল্যানসেটের প্রকাশিত গবেষণা সত্যিই খুব আশাব্যঞ্জক। এই জার্নালের মতে, এখন ভারতে সময়মতো ক্যান্সারের চিকিৎসা শুরু করার সম্ভাবনা অনেক বেড়ে গেছে। সময়মতো চিকিৎসা বলতে, একজন ক্যান্সার রোগীর চিকিৎসা ৩০ দিনের মধ্যে শুরু করা যেতে পারে এবং আয়ুষ্মান ভারত প্রকল্প এতে বড় ভূমিকা পালন করেছে। এই প্রকল্পের কারণে ৯০% ক্যান্সার রোগী তাদের চিকিৎসা যথাসময়ে শুরু করতে পেরেছে। এমনটা হয়েছে কারণ আগে অর্থের অভাবে দরিদ্র রোগীরা ক্যান্সার রোগনির্ণয় ও চিকিৎসা থেকে সরে দাঁড়াতেন। এখন আয়ুষ্মান ভারত প্রকল্প তাদের জন্য একটি বড় ভরসা হয়ে উঠেছে। এখন তাঁরা তাঁদের চিকিৎসার জন্য এগিয়ে আসছেন। আয়ুষ্মান ভারত প্রকল্প ক্যান্সারের চিকিৎসার জন্য যে বিপুল অর্থ প্রয়োজন, সেই সমস্যাকে অনেকাংশে কমিয়ে দিয়েছে। এটাও ভালো বিষয় যে আজ মানুষ, ক্যান্সারের সময়মতো চিকিৎসার ব্যাপারে, অনেক বেশি সচেতন হয়েছেন। এই সাফল্য যতটা আমাদের স্বাস্থ্য ব্যবস্থার, চিকিৎসক, নার্স এবং কারিগরি কর্মীদের, ততটাই আমার নাগরিক ভাই ও বোনেদের। সকলের প্রচেষ্টায় ক্যান্সারকে পরাজিত করার আমাদের সংকল্প আরও শক্তিশালী হয়েছে। এই সাফল্যের কৃতিত্ব তাঁদের সকলের যারা সচেতনতা বৃদ্ধির ক্ষেত্রে উল্লেখযোগ্য অবদান রেখেছেন। ক্যান্সারের বিরুদ্ধে লড়াই করার একমাত্র মন্ত্র - Awareness, Action and Assurance। Awareness অর্থাৎ ক্যান্সার এবং তার লক্ষণ সম্পর্কে সচেতনতা। Action মানে সময়মতো রোগনির্ণয় এবং চিকিৎসা। Assurance মানে এই বিশ্বাস যে রোগীদের জন্য সবরকম সাহায্যের ব্যবস্থা থাকবে। আসুন আমরা সবাই মিলে ক্যান্সারের বিরুদ্ধে এই লড়াইকে দ্রুত এগিয়ে নিয়ে যাই এবং যতটা সম্ভব রোগীদের সাহায্য করি।
আমার প্রিয় দেশবাসী, আজ আমি আপনাদের ওড়িশার কালাহান্ডি অঞ্চলের এমন একটি প্রয়াসের কথা জানাতে চাই যারা খুব কম জল আর স্বল্প সম্পদ থাকা সত্ত্বেও সফলতার এক নতুন গাথা লিখেছে। এটি হল কালাহান্ডির সবজি ক্রান্তি। এক সময় যেখান থেকে কৃষক পালিয়ে যেতে বাধ্য হত, সেখানেই আজ কালাহান্ডির গোলামুন্ডা ব্লক vegetable hub হয়ে উঠেছে। এই পরিবর্তনটি কিভাবে এল? একে দশ জন কৃষকের একটি ছোট গোষ্ঠী শুরু করেন। এই গোষ্ঠীর সকলে মিলে একটা FPO - কৃষক উৎপাদন সংঘ স্থাপন করে, কৃষিতে আধুনিক প্রযুক্তির প্রয়োগ শুরু করা হয়, আজ ওদের এই FPO কোটি কোটি টাকার ব্যবসা করছে। আজ প্রায় ২০০-র বেশি কৃষক এই FPO -র সঙ্গে যুক্ত হয়েছেন যার মধ্যে ৪৫ জন মহিলা কৃষক সদস্যও রয়েছেন। এরা সবাই মিলে ২০০ একর জমিতে টমেটো চাষ করছেন আর ১৫০ একর জমিতে করলার চাষ করছেন। এখন এই FPO-র বার্ষিক turnover দেড় কোটিরও বেশি হয়ে গেছে। আজ কালাহান্ডির সবজি কেবল ওড়িশার বিভিন্ন জেলাতেই নয়, দেশের অন্য রাজ্যগুলিতেও পৌঁছে যাচ্ছে আর ওখানকার কৃষকেরা এখন আলু আর পেঁয়াজ চাষ করার নতুন কলাকৌশলও শিখছে।
বন্ধুরা, কালাহান্ডির এই সাফল্য আমাদের এই শিক্ষা দেয় যে সংকল্পশক্তি আর সমষ্টিগত প্রচেষ্টায় কি না সম্ভব। আমি আপনাদের সবার কাছে অনুরোধ করছি
- নিজেদের এলাকার FPO গুলিকে উৎসাহ দিন।
- কৃষক উৎপাদন গোষ্ঠীগুলির সঙ্গে যুক্ত হয়ে তাদের মজবুত করে তুলুন।
মনে রাখবেন ক্ষুদ্র প্রচেষ্টার মাধ্যমেও বড় পরিবর্তন ঘটানো সম্ভব। আমাদের শুধু দৃঢ় সংকল্প আর সম্মিলিত ভাবনার প্রয়োজন।
বন্ধুরা, আজকের ‘মন কি বাত’-এ আমরা শুনলাম কি ভাবে আমাদের ভারত বৈচিত্র্যের মধ্যে ঐক্য নিয়ে এগিয়ে চলেছে। তা সে খেলার মাঠ হোক বা বিজ্ঞানের ক্ষেত্র, স্বাস্থ্য হোক বা শিক্ষা- প্রতিটি ক্ষেত্রেই ভারত নিত্য নতুন উচ্চতা লাভ করে চলেছে। আমরা এক পরিবারের মতো মিলেমিশে প্রতিটি চ্যালেঞ্জের মোকাবিলা করেছি এবং সাফল্য লাভ করেছি। ২০১৪ সাল থেকে শুরু হওয়া ‘মন কি বাত’-এর ১১৬টি পর্বে আমি দেখেছি যে ‘মন কি বাত’ দেশের সামগ্রিক শক্তির এক জীবন্ত দলিল হয়ে উঠেছে। আপনারা সবাই এই অনুষ্ঠানকে আপন করে নিয়েছেন। প্রতি মাসে আপনারা আপনাদের চিন্তা-ভাবনা ও প্রচেষ্টা আমাদের সঙ্গে ভাগ করে নিয়েছেন। কখনো কোনো young innovator-এর আইডিয়াতে প্রভাবিত হয়েছি, তো কখনো কোন কন্যার achievement-এ গৌরবান্বিত হই। এটা আপনাদের সবার মিলিত প্রচেষ্টা, যা দেশের প্রতিটি প্রান্ত থেকে ইতিবাচক শক্তি সঞ্চার করেছে। ‘মন কি বাত’ এইরকম ইতিবাচক শক্তি বিকাশের মঞ্চ হয়ে উঠেছে, এখন ২০২৫ কড়া নাড়ছে। আসন্ন বছরে ‘মন কি বাত’-এর মাধ্যমে আমরা উৎসাহব্যঞ্জক প্রচেষ্টার বিষয়গুলো ভাগ করে নেব। আমার বিশ্বাস, দেশবাসীর ইতিবাচক চিন্তা ও innovation-এর ভাবনায় ভারত নতুন উচ্চতার শিখরে পৌঁছবে। আপনারা নিজেদের আশেপাশের unique প্রচেষ্টাকে #Mannkibaat-এর সঙ্গে share করতে থাকুন। আমি জানি যে পরের বছরের প্রতিটা ‘মন কি বাত’-এ আমাদের কাছে একে অপরের সঙ্গে ভাগ করে নেওয়ার মতো অনেক কিছু থাকবে। আপনাদের সবাইকে জানাই ২০২৫-এর জন্য অনেক শুভকামনা। সুস্থ থাকুন, আনন্দে থাকুন, Fit India Movement-এর সঙ্গে যুক্ত হয়ে যান, নিজেকেও fit রাখুন। জীবনে উন্নতি করতে থাকুন। অনেক অনেক ধন্যবাদ।
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WAVES Summit is a key step in making India a hub for global content creation.#MannKiBaat pic.twitter.com/VNWSaS125c
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The radiance of Indian culture is spreading across the world.#MannKiBaat pic.twitter.com/Oznb4pMJ48
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Bastar Olympics showcases the spirit of youth and their talent.#MannKiBaat pic.twitter.com/uIAHq226MU
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Powered by the collective effort of people, India has made remarkable progress in the fight against malaria.#MannKiBaat pic.twitter.com/SJHymYvsgV
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Ayushman Bharat Yojana has greatly reduced financial burdens in cancer treatment.#MannKiBaat pic.twitter.com/VvUOiMBZzv
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Odisha's Kalahandi has become a vegetable hub. Farmers formed an FPO and embraced modern farming methods.#MannKiBaat pic.twitter.com/cRnq7FdBzS
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