माननीय अध्‍यक्ष जी, इस सदन में पहली बार, मेरा प्रवेश भी नया है और भाषण का अवसर भी पहली बार मिला।..... (व्‍यवधान)

इस सदन की गरिमा, परंपराएं बहुत ही उच्‍च रही हैं। इस सदन में काफी अनुभवी तीन-चार दशक से राष्‍ट्र के सवालों को उजागर करने वाले, सुलझाने वाले, लगातार प्रयत्‍न करने वाले वरि‍ष्‍ठ महानुभाव भी वि‍राजमान हैं। जब मुझ जैसा एक नया व्‍यक्‍ति‍ कुछ कह रहा है, सदन की गरि‍मा और मर्यादाओं में कोई चूक हो जाए तो नया हाने के नाते आप मुझे क्षमा करेंगे, ऐसा मुझे पूरा वि‍श्‍वास है। महामहिम राष्‍ट्रपति‍ जी के अभि‍भाषण पर लोकसभा में 50 से अधि‍क आदरणीय सदस्‍यों ने अपने वि‍चार रखे हैं। मैंने सदन में रहते हुए और कुछ अपने कमरे में करीब-करीब सभी भाषण सुने हैं।

आदरणीय मल्‍लि‍कार्जुन जी, आदरणीय मुलायम सिंह जी, डॉ0 थम्‍बीदुराई जी, भर्तुहरि जी, टी.एम.सी. के नेता तथा सभी वरि‍ष्‍ठ महानुभावों को मैंने सुना। एक बात सही है कि‍ एक स्‍वर यह आया है कि‍ आपने इतनी सारी बातें बताई हैं, इन्‍हें कैसे करोगे, कब करोगे। मैं मानता हूँ कि‍ सही वि‍षय को स्‍पर्श कि‍या है और यह मन में आना बहुत स्‍वाभावि‍क है। मैं अपना एक अनुभव बताता हूँ, मैं नया-नया गुरजरात में मुख्‍यमंत्री बनकर गया था और एक बार मैंने सदन में कह दि‍या कि मैं गुजरात के गाँवों में, घरों में 24 घंटे बि‍जली पहुँचाना चाहता हूँ। खैर ट्रेजरी बैंच ने बहुत तालि‍याँ बजाईं, लेकि‍न सामने की तरफ सन्‍नाटा था। लेकिन हमारे जो वि‍पक्ष के नेता थे, चौधरी अमर सिंह जी, वह कांग्रेस के ‍वरि‍ष्‍ठ नेता थे, बड़े सुलझे हुए नेता थे। वह बाद में समय लेकर मुझे मि‍लने आए। उन्‍होंने कहा कि‍ मोदी जी, कहीं आप की कोई चूक तो नहीं हो रही है, आप तो नए हो, आपका अनुभव नहीं है, यह 24 घंटे बि‍जली देना इम्‍पासिबल है, आप कैसे दोगे? एक मि‍त्र भाव से उन्‍होंने इस पर चिंता व्‍यक्‍त की थी। मैंने उनसे कहा कि मैंने सोचा है और मुझे लगता है ‍कि हम करेंगे। वह बोले संभव ही नहीं है। दो हजार मेगावाट अगर डेफि‍‍सि‍ट है तो आप कैसे करोगे? उनके मन में वह वि‍चार आना बड़ा स्‍वाभावि‍क था। लेकि‍न मुझे इस बात का आनंद है कि‍ वह काम गुजरात में हो गया था। अब इसलि‍ए यहाँ बैठे हुए सभी वरि‍ष्‍ठ महानुभावों के मन में सवाल आना बहुत स्‍वाभावि‍क है कि‍ अभी तक नहीं हुआ, अब कैसे होगा? अभी तक नहीं हुआ, इसलिए शक होना बहुत स्‍वाभावि‍क है। लेकिन मैं इस सदन को वि‍श्‍वास दि‍लाता हूँ कि‍ राष्‍ट्रपति‍ जी ने जो रास्‍ता प्रस्तुत कि‍या है, उसे पूरा करने में हम कोई कोताही नहीं बरतेंगे। हमारे लि‍ए राष्‍ट्रपति जी का अभि‍भाषण सि‍र्फ परंपरा और रि‍चुअल नहीं है। हमारे लि‍ए उनके माध्‍यम से कही हुई हर बात एक सैंक्‍टिटी है, एक पवि‍त्र बंधन है और उसे पूरा करने का हमारा प्रयास भी है और यही भावना हमारी प्रेरणा भी बन सकती है, जो हमें काम करने की प्रेरणा दे। इसलि‍ए राष्‍ट्रपति‍ जी के अभि‍भाषण को आने वाले समय के लि‍ए हमने हमेशा एक गरि‍मा देनी चाहि‍ए, उसे गंभीरता भी देनी चाहि‍ए और सदन में हम सब ने मि‍लकर उसे पूर्ण करने का प्रयास करना चाहि‍ए।

जब मतदान हुआ, मतदान होने तक हम सब उम्‍मीदवार थे, लेकि‍न सदन में आने के बाद हम जनता की उम्‍मीदों के दूत हैं। तब तो हम उम्‍मीदवार थे, लेकि‍न सदन में पहुँचने के बाद हम जनता की उम्‍मीदों के रखवाले हैं। कि‍सी का दायि‍त्‍व दूत के रूप में उसे परि‍पूर्ण करना होगा, कि‍सी का दा‍यि‍त्‍व अगर कुछ कमी रहती है तो रखवाले बनकर पूरी आवाज उठाना, यह भी एक उत्‍तम दायि‍त्‍व है। हम सब मि‍लकर उस दायि‍त्‍व को नि‍भायेंगे।

मुझे इस बात का संतोष रहा कि‍ अधि‍कतम इस सदन में जो भी वि‍षय आए हैं, छोटी-मोटी नोंक-झोंक तो आवश्‍यक भी होती है लकि‍न पूरी तरह सकारात्‍मक माहौल नजर आया। यहाँ भी जो मुद्दे उठाए गए, उनके भीतर भी एक आशा थी, एक होप थी। यानी‍ देश के सवा सौ करोड़ नागरि‍कों ने जि‍स होप के साथ इस संसद को चुना है, उसकी प्रति‍ध्‍वनि‍ इस तरफ बैठे हों या उस तरफ बैठे हुए हों, सबकी बातों में मुखर हुई है, यह मैं मानता हूँ।

यह भारत के भाग्‍य के लिए एक शुभ संकेत है। राष्‍ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में चुनाव, मतदाता, परिणाम की सराहना की है। मैं भी देशवासियों का अभिनंदन करता हूँ, उनका आभार व्‍यक्‍त करता हूँ कि कई वर्षों के बाद देश ने स्‍थिर शासन के लिए, विकास के लिए, सुशासन के लिए, मत दे कर 5 साल के लिए विकास की यात्रा को सुनिश्‍चित किया है। भारत के मतदाताओं की ये चिंता, उनका यह चिंतन और उन्‍होंने हमें जो जिम्‍मेवारी दी है, उसको हमें परिपूर्ण करना है। लेकिन हमें एक बात सोचनी होगी कि दुनिया के अंदर भारत एक बड़ा लोकतांत्रिक देश है, इस रूप में तो कभी-कभार हमारा उल्‍लेख होता है। लेकिन क्‍या समय की माँग नहीं है कि विश्‍व के सामने हम कितनी बड़ी लोकतांत्रिक शक्‍ति हैं, हमारी लोकतांत्रिक परंपराएं कितनी ऊँची हैं, हमारे सामान्‍य से सामान्‍य, अनपढ़ से अनपढ़ व्‍यक्‍ति की रगों में भी लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा कितनी अपार है। अपनी सारी आशा और आकांक्षाओं को लोकतांत्रिक परंपराओं के माध्‍यम से परिपूर्ण करने के लिए वह कितना जागृत है। क्‍या कभी दुनिया में, हमारी इस ताकत को सही रूप में प्रस्‍तुत किया गया है? इस चुनाव के बाद हम सबका एक सामूहिक दायित्‍व बनता है कि विश्‍व को डंके की चोट पर हम यह समझाएं। विश्‍व को हम प्रभावित करें। पूरा यूरोप और अमरीका मिल कर जितने मतदाता हैं, उससे ज्‍यादा लोग हमारे चुनावों में शरीक होते हैं। यह हमारी कितनी बड़ी ताकत है। क्‍या विश्‍व के सामने, भारत के इस सामर्थवान रूप को कभी हमने प्रकट किया है? मैं मानता हूँ कि यह हम सब का दायित्‍व बनता है। यह बात सही है कि कुछ वैक्‍युम है। 1200 साल की गुलामी की मानसि‍कता हमें परेशान कर रही है। बहुत बार हमसे थोड़ा ऊँचा व्‍यक्‍ति‍ मि‍ले तो, सर ऊँचा करके बात करने की हमारी ताकत नहीं होती है। कभी-कभार चमड़ी का रंग भी हमें प्रभावि‍त कर देता है। उन सारी बातों से बाहर नि‍कल कर भारत जैसा सामर्थ्‍यवान लोकतंत्र और इस चुनाव में इस प्रकार का प्रगट रूप, अब वि‍श्‍व के सामने ताकतवर देश के रूप में प्रस्‍तुत होने का समय आ गया है। हमें दुनि‍या के सामने सर ऊँचा कर, आँख में आँख मि‍ला कर, सीना तान कर, भारत के सवा सौ करोड़ नागरि‍कों के सामर्थ को प्रकट करने की ताकत रखनी चाहि‍ए और उसको एक एजेंडा के रूप में आगे बढ़ाना चाहि‍ए। भारत का गौरव और गरि‍मा इसके कारण बढ़ सकते हैं।

माननीय अध्‍यक्ष महोदया, यह बात सही है इस देश पर सबसे पहला अधि‍कार कि‍सका है? सरकार कि‍सके लि‍ए होनी चाहि‍ए? क्‍या सरकार सिर्फ पढ़े-लि‍खे लोगों के लि‍ए हो? क्‍या सरकार सि‍र्फ इने-गि‍ने लोगों के लाभ के लि‍ए हो? मेरा कहना है कि‍ सरकार गरीबों के लि‍ए होनी चाहि‍ए। अमीर को अपने बच्‍चों को पढ़ाना है तो वह दुनि‍या का कोई भी टीचर हायर कर सकता है। अमीर के घर में कोई बीमार हो गया तो सैकड़ों डॉक्‍टर तेहरात में आ कर खड़े हो सकते हैं, लेकि‍न गरीब कहाँ जाएगा?

उसके नसीब में तो वह सरकारी स्‍कूल है, उसके नसीब में तो वह सरकारी अस्‍पताल है और इसीलि‍ए सब सरकारों का यह सबसे पहला दायि‍त्‍व होता है कि‍ वे गरीबों की सुनें और गरीबों के लि‍ए जि‍यें। अगर हम सरकार का कारोबार गरीबों के लि‍ए नहीं चलाते हैं, गरीबों की भलाई के लि‍ए नहीं चलाते हैं तो देश की जनता हमें कतई माफ नहीं करेगी।

माननीय अध्‍यक्ष महोदया जी यह इस सरकार की पहली प्राथमि‍कता है। हम तो पंडि‍त दीन दयाल उपाध्‍याय जी के आदर्शों से पले हुए लोग हैं। जि‍न्‍होंने हमें अंत्‍योदय की शि‍क्षा दी थी। गाँधी, लोहि‍या और दीन दयाल जी, तीनों के वि‍चार सूत्र को हम पकड़े हैं, तो आखि‍री मानवि‍की छोर पर बैठे हुए इंसान के कल्‍याण का काम इस शताब्‍दी के राजनीति‍ के इन तीनों महापुरूषों ने हमें एक ही रास्‍ता दि‍खाया है कि‍ समाज के आखि‍री छोर पर जो बैठा हुआ इन्‍सान है, उसके कल्‍याण को प्राथमि‍कता दी जाए। यह हमारी प्रति‍बद्धता है। अंत्‍योदय का कल्‍याण, यह हमारी प्रति‍बद्धता है। गरीब को गरीबी से बाहर लाने के लि‍ए उसके अंदर वह ताकत लानी है जि‍ससे वह गरीबी के खि‍लाफ जूझ सके। गरीबी के खि‍लाफ लड़ाई लड़ने का सबसे बड़ा औजार होता है- ‘शि‍क्षा’। गरीबी से लड़ने का सबसे बड़ा साधन होता है- ‘अंधश्रद्धा से मुक्‍ति‍’। अगर गरीबों में अंधश्रद्धा के भाव पड़े हैं, अशि‍क्षा की अवस्‍था पड़ी है, अगर हम उसमें से उसे बाहर लाने में सफल होते हैं, तो इस देश का गरीब कि‍सी के टुकड़ों पर पलने की इच्‍छा नहीं रखता है। वह अपने बलबूते पर अपनी दुनि‍या खड़ी करने के लि‍ए तैयार है। सम्‍मान और गौरव से जीना गरीब का स्‍वभाव है। अगर हम उसकी उस मूलभूत ताकत को पकड़कर उसे बल देने का प्रयास करते हैं और इसलि‍ए सरकार की योजनाएं गरीब को गरीबी से बाहर आने की ताकत दें। गरीब को गरीबी के खि‍लाफ लड़ाई लड़ने की ताकत दें। शासन की सारी व्‍यवस्‍थायें गरीब को सशक्‍त बनाने के लि‍ए काम आनी चाहि‍ए और सारी व्‍यवस्‍थाओं का अंति‍म नतीजा उस आखि‍री छोर पर बैठे हुए इंसान के लि‍ए काम में आए उस दि‍शा में प्रयास होगा, तब जाकर उसका कल्‍याण हम कर पाएंगे।

हम सदि‍यों से कहते आए हैं कि‍ हमारा देश कृषि‍ प्रधान देश है, यह गाँवों का देश है। ये नारे तो बहुत अच्‍छे लगे, सुनना भी बहुत अच्‍छा लगा, लेकिन क्‍या हम आज अपने सीने पर हाथ रखकर कह सकते हैं कि‍ हम हमारे गाँव के जीवन को बदल पाए हैं, हमारे कि‍सानों के जीवन को बदल पाए हैं। यहाँ मैं कि‍सी सरकार की आलोचना करने के लि‍ए खड़ा नहीं हुआ हूँ। यह हमारा सामूहि‍क दायि‍त्‍व है कि‍ भारत के गाँवों के जीवन को बदलने के लि‍ए उसको हम अग्रि‍मता दें, कि‍सानों के जीवन को बदलने के लि‍ए उसको अग्रि‍मता दें। राष्‍ट्रपति‍ जी के अभिभा‍षण में उस बात को करने के लि‍ए हमने कोशि‍श की है। यहाँ एक वि‍षय ऐसा भी आया कि‍ कैसे करेंगे? हमने एक शब्‍द प्रयोग कि‍या है ‘Rurban’। गाँवों के वि‍कास के लि‍ए जो राष्‍ट्रपति‍ के अभि‍भाषण में हमने देखा है। जहाँ सुवि‍धा शहर की हो, आत्‍मा गाँव की हो। गाँव की पहचान गाँव की आत्‍मा में बनी हुई है। आज भी वह अपनापन, गाँव में एक बारात आती है तो पूरे गाँव को लगता है कि‍ हमारे गाँव की बारात है। गाँव में एक मेहमान आता है तो पूरे गाँव को लगता है कि‍ यह हमारे गाँव का मेहमान है। यह हमारे देश की एक अनमोल वि‍रासत है। इसको बनाना है, इसको बचाये रखना है, लेकि‍न हमारे गाँव के लोगों को आधुनि‍क सुवि‍धा से हम वंचि‍त रखेंगे क्‍या? मैं अनुभव से कहता हूँ कि‍ अगर गाँव को आधुनि‍क सुवि‍धाओं से सज्‍ज कि‍या जाये तो गाँव देश की प्रगति‍ में ज्‍यादा कांट्रि‍‍ब्‍यूशन कर रहा है।

अगर गाँव में भी 24 घंटे बि‍जली हो, अगर गाँव को भी ब्रॉडबैण्‍ड कनैक्‍टि‍वि‍टी मि‍ले, गाँव के बालक को भी उत्‍तम से उत्‍तम शि‍क्षा मि‍ले; पल भर के लि‍ए मान लें कि‍ शायद हमारे गाँव में अच्‍छे टीचर न हों, लेकि‍न आज का वि‍ज्ञान हमें लाँग डि‍स्‍टैन्‍स एजुकेशन के लि‍ए पूरी ताकत देता है। शहर में बैठकर भी उत्‍तम से उत्‍तम शि‍क्षक के माध्‍यम से गाँव के आखि‍री छोर पर बैठे हुए स्‍कूल के बच्‍चे को हम पढ़ा सकते हैं। हम सैटेलाइट व्‍यवस्‍था का उपयोग, उस आधुनि‍क वि‍ज्ञान का उपयोग उन गरीब बच्‍चों की शि‍क्षा के लि‍ए क्‍यों न करें? अगर गाँव के जीवन में हम यह बदलाव लाएँ तो कि‍सी को भी अपना गाँव छोड़कर जाने का मन नहीं करेगा। गाँव के नौजवान को क्‍या चाहि‍ए? अगर रोज़गार मि‍ल जाए तो वह अपने माँ-बाप के पास रहना चाहता है। क्‍या गाँवों के अंदर हम उद्योगों का जाल खड़ा नहीं कर सकते हैं? एट लीस्‍ट हम एक बात पर बल दें- एग्रो बेस्‍ड इंडस्‍ट्रीज़ पर। अगर हम मूल्‍यवृद्धि‍ करें और मूल्‍यवृद्धि‍ पर अगर हम बल दें। आज उसकी एक ताकत है, उस ताकत को हमने स्‍वीकार कि‍या तो हम गाँव के आर्थि‍क जीवन को भी, गाँव की व्‍यवस्‍थाओं के जीवन को भी बदल सकते हैं और कि‍सान का स्‍वाभावि‍क लाभ भी उसके साथ जुड़ा हुआ है।

सि‍क्‍कि‍म एक छोटा सा राज्‍य है, बहुत कम आबादी है लेकि‍न उस छोटे से राज्‍य ने एक बहुत महत्‍वपूर्ण काम कि‍या है। बहुत ही नि‍कट भवि‍ष्‍य में सि‍क्‍कि‍म प्रदेश हि‍न्‍दुस्‍तान के लि‍ए गौरव देने वाला ‘ऑर्गैनि‍क स्‍टेट’ बनने जा रहा है। वहाँ का हर उत्‍पादन ऑर्गैनि‍क होने वाला है। आज पूरे वि‍श्‍व में ऑर्गैनि‍क खेत उत्‍पादन की बहुत बड़ी माँग है। होलि‍स्‍टि‍क हैल्‍थकेयर की चि‍न्‍ता करने वाला एक पूरा वर्ग है दुनि‍या में, जो जि‍तना माँगो उतना दाम देकर ऑर्गेनि‍क चीजे़ं खरीदने के लि‍ए कतार में खड़ा है। यह ग्‍लोबल मार्केट को कैप्‍चर करने के लि‍ए सि‍क्‍कि‍म के कि‍सानों ने जो मेहनत की है, उसको जोड़कर अगर हम इस योजना को आगे बढ़ाएँ तो दूर-सुदूर हि‍मालय की गोद में बैठा हुआ सि‍क्‍कि‍म प्रदेश कि‍तनी बड़ी ताकत के साथ उभर सकता है। इसलि‍ए क्‍या कभी हम सपना नहीं देख सकते हैं कि‍ हमारे पूरे नॉर्थ ईस्‍ट को ऑर्गैनि‍क स्‍टेट के रूप में हम कैसे उभार सकें। पूरे नॉर्थ ईस्‍ट को अगर ऑर्गैनि‍क स्‍टेट के रूप में हम उभारें और वि‍श्‍व के मार्केट पर कब्‍ज़ा करने के लि‍ए भारत सरकार की तरफ से उनको मदद मि‍ले तो वहाँ दूर पहाड़ों में रहने वाले लोगों की जि‍न्‍दगी में, कृषि‍ के जीवन में कि‍तना बड़ा बदलाव आ सकता है। हमारी इतनी कृषि‍ यूनि‍वर्सि‍टीज़ हैं। बहुत रि‍सर्च हो रही हैं, लेकि‍न यह दुर्भाग्‍य रहा है कि‍ जो लैब में है, वह लैण्‍ड पर नहीं है। लैब से लैण्‍ड तक की यात्रा में जब तक हम उस पर बल नहीं देंगे, आज कृषि‍ को परंपरागत कृषि‍ से बाहर लाकर आधुनि‍क कृषि‍ की ओर ले जाने की आवश्‍यकता है। गुजरात ने एक छोटा सा प्रयोग कि‍या था- सॉयल हैल्‍थ कार्ड। हमारे देश में मनुष्‍य के पास भी अभी हैल्‍थ कार्ड नहीं है। लेकि‍न गुजरात में हमने एक इनीशि‍येटि‍व लि‍या था। उसकी जमीन की तबीयत का उसके पास कार्ड रहे। उसके कारण से पता चला कि‍ उसकी जमीन जि‍स क्रॉप के लि‍ए उपयोगी नहीं है, वह उसी फसल के लि‍ए खर्चा कर रहा था। जि‍स फर्टि‍लाइज़र की जरूरत नहीं है, उतनी मात्रा में वह फर्टि‍लाइजर डालता था। जि‍न दवाइयों की कतई जरूरत नहीं थी, वह दवाइयाँ लगाता था। बेकार ही साल भर में 50 हजार रुपये या लाख रुपये यूँ ही फेंक देता था। लेकि‍न सॉयल हैल्‍थ कार्ड के कारण उसको समझ आई कि‍ उसकी कृषि‍ को कैसे लि‍या जाए। क्‍या हम हि‍न्‍दुस्‍तान के हर कि‍सान को सॉयल हैल्‍थ कार्ड देने का अभि‍यान पूर्ण नहीं कर सकते? हम इसको कर सकते हैं। सॉयल टैस्‍टिंग के लि‍ए भी हम अध्‍ययन के साथ कमाई का एक नया आयाम ले सकते हैं। जो लोग मुझसे पूछ रहे हैं कि‍ कैसे करोगे, मैं इसलि‍ए एक वि‍षय को लंबा खींचकर बता रहा हूँ कि‍ कैसे करेंगे?

हमारे एग्रीकल्‍चरल यूनि‍वर्सि‍टी के स्‍टूडेण्‍ट्स अप्रैल, मई और जून में गाँव जाते हैं और पूरे हि‍न्‍दुस्‍तान में 10+2 के जो स्‍कूल्‍स हैं, जि‍नमें एक लैबोरेटरी होती है। क्‍यों न वैकेशन में उन लैबोरेटरीज को ‘सॉयल टैस्‍टिंग लैबोरेटरीज़’ में कनवर्ट कि‍या जाए। एग्रीकल्‍चरल यूनि‍वर्सि‍टी के स्‍टूडेंट्स जो वैकेशन में अपने गाँव जाते हैं उनको स्‍कूलों के अंदर काम में लगाया जाए और वैकेशन के अंदर वे अपना सॉयल टैस्‍टिंग का काम उस लैबोरेटरी में करें। उस स्‍कूल को कमाई होगी और उसमें से अच्‍छी लैबोरेटरी बनाने का इरादा बनेगा। एक जन आंदेलन के रूप में इसे परि‍वर्ति‍त कि‍या जा सकता है या नहीं कि‍या जा सकता है? कहने का तात्‍पर्य यह है कि‍ हम छोटे-छोटे प्रायोगि‍क उपाय करेंगे तो हम चीजों को बदल सकते हैं।

आज हमारे रेलवे की आदत क्‍या है? वह लकीर के फकीर हैं। उनको लि‍खा गया है कि‍ मंडे को जो माल आए, वह एक वीक के अंदर चला जाना चाहि‍ए। अगर मंडे को मार्बल आया है स्‍टेशन पर, जि‍से मुम्‍बई पहुँचाना है और टयूज़डे को टमाटर आया है, तो वह पहले मार्बल भेजता है, बाद में टमाटर भेजता है। क्‍यों? मार्बल अगर चार दि‍न बाद पहुँचेगा तो क्‍या फर्क पड़ता है, ले‍कि‍न अगर टमाटर पहले पहुँचता है तो कम से कम वह खराब तो नहीं होगा। हमें अपनी पूरी व्‍यवस्‍था को सैंसेटाइज़ करना है।

आज हमारे देश का दुर्भाग्‍य है, इंफोर्मेशन टेक्‍नोलॉजी के नाम पर दुनि‍या में हम छाये हुए रहें, साफ्टवेयर इंजीनि‍यर के रूप में हमारी पहचान बन गई लेकि‍न आज हमारे देश के पास एग्रो प्रोडक्‍ट का रि‍यल टाइम डाटा नहीं है। क्‍या हम इंफोर्मेशन टेक्‍नोलॅजी के नेटवर्क के माध्‍यम से एग्रो प्रोडक्‍ट का रि‍‍यल डाटा इक्‍ट्ठा कर सकते हैं? हमने महँगाई को दूर करने का वायदा कि‍या है और हम इस पर प्रमाणि‍कता से प्रयास करने के लि‍ए प्रति‍बद्ध हैं और यह इसलि‍ए नहीं कि‍ यह केवल चुनावी वायदा था इसलि‍ए करना है, यह हमारी सोच है कि‍ गरीब के घर में शाम को चूल्‍हा जलना चाहि‍ए। गरीब के बेटे आँसू पीकर के सो जाएं, इस स्‍थि‍ति‍ में बदलाव आना चाहि‍ए। यह हम सभी का कर्तव्‍य है चाहे राज्‍य सरकार हो या राष्‍ट्रीय सरकार हो, सत्‍ता में हो या वि‍पक्ष में हो। हम सभी का सामूहि‍क उत्‍तरदायि‍त्‍व है कि‍ हि‍न्‍दुस्‍तान का कोई भी गरीब भूखा न रहे। इस कर्तव्‍य की पूर्ति‍ के लि‍ए हम इस काम को करना चाहते हैं। अगर रि‍यल टाइम डाटा हो तो आज भी देश में अन्‍न के भंडार पड़े हैं। ऐसा नहीं है कि‍ अन्‍न के भंडार नहीं हैं, लेकि‍न व्‍यवस्थाओं की कमी है। अगर सरकार के पास यह जानकारी हो कि‍ कहाँ जरूरत है, रेलवे का जब लल पीरि‍यड हो उस समय उसे तभी शि‍फ्ट कर दि‍या जाए और वहाँ अगर गोदाम बनाए जाएं और वहाँ रख दि‍या जाए, तो इस समस्‍या का समाधान हो सकता है। फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडि‍या, सालों से एक ढाँचा चल रहा है। क्‍या उसे आधुनि‍क नहीं बनाया जा सकता है? प्रोक्‍योरमेंट का काम कोई और करे, रि‍जर्वेशन का काम कोई अलग करे, डि‍स्‍ट्रि‍ब्‍यूशन का काम कोई अलग करे, एक ही व्‍यवस्‍था को अगर तीन हि‍स्‍सों में बाँट दि‍या जाए और तीनों की रि‍स्‍पोंसि‍बि‍लटी बना दी जाए तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि‍ हम इन स्‍थि‍ति‍यों को बदल सकते हैं।

एग्रीकल्‍चर सेक्‍टर में हमारी एग्रीकल्‍चर यूनि‍वर्सि‍टीज़ को, हमारे कि‍सानों को, अभी एक बात पर बल देना पड़ेगा, यह समय की माँग है। जैसा मैंने आधुनि‍क खेती के बारे में कहा, हम टेक्‍नोलॉजी को एग्रीकल्‍चर में जि‍तनी तेजी से लाएंगे उतना लाभ होगा क्‍योंकि‍ परि‍वारों का विस्‍तार होता जा रहा है और जमीन कम होती जा रही है। हमें जमीन में प्रोडक्‍टीवि‍टी बढ़ानी पड़ेगी। इसके लि‍ए हमें अपनी यूनि‍वर्सि‍टीज़ में रि‍सर्च का काम बढ़ाना पड़ेगा। कि‍तने वर्षों से Pulses में कोई रि‍सर्च नहीं हुआ है। Pulses हमारे सामने बहुत बड़ा चैलेंज बनी हुई हैं। आज गरीब आदमी को प्रोटीन पाने के लि‍ए Pulses के अलावा कोई उपाय नहीं है। Pulses ही हैं, जि‍सके माध्‍यम से उसे प्रोटीन प्राप्‍त होता है और शरीर की रचना में प्रोटीन का बहुत महत्‍व होता है। अगर कुपोषण के खि‍लाफ लड़ाई लड़नी है तो हमें इन सवालों को एड्रेस करना होगा। Pulses के क्षेत्र में कई वर्षों से न हम प्रोडक्‍टि‍वि‍टी में बढ़ावा ले पाए हैं और न ही Pulses के अंदर प्रोटीन कंटेंट के अंदर वृद्धि‍ कर पाए हैं। हम शुगरकेन में शुगर कंटेंट बढ़ाने में सफल हुए हैं, लेकि‍न हम Pulses में प्रोटीन कंटेंट बढ़ाने में सफल नहीं हुए हैं। यह बहुत बड़ा चैलेंज है। क्‍या हमारे वैज्ञानि‍क, हमारी कृषि‍ यूनि‍वर्सि‍टीज को प्रेरि‍त करेंगे? हम इन समस्‍याओं पर क्‍यूमलेटि‍व इफैक्‍ट के साथ अगर चीजों को आगे बढ़ाते हैं तो मैं मानता हूँ कि‍ इन समस्‍याओं का समाधान हो सकता है। इसका यह रास्‍ता है।

हमारी माताएँ -बहनें जो हमारी पचास परसेंट की जनसंख्‍या है भारत की वि‍कास यात्रा में, उन्‍हें नि‍र्णय में, भागीदार बनाने की जरूरत है। उन्‍हें हमें आर्थि‍क प्रगति‍ से जोड़ना होगा। वि‍कास की नई ऊँचाइयों को पार करना है तो हिंदुस्‍तान की पचास प्रति‍शत हमारी मातृ शक्‍ति‍ है, उसकी सक्रि‍य भागीदारी को हमें नि‍श्‍चि‍त करना होगा। उनके सम्‍मान की चिंता करनी होगी, उनकी सुरक्षा की चिंता करनी होगी।

पि‍छले दि‍नों जो कुछ घटनाएँ घटी हैं, हम सत्‍ता में हों या न हों, पीड़ा करने वाली घटना है। चाहे पुणे की हत्‍या हो, चाहे उत्‍तर प्रदेश में हुई हत्‍या हो, चाहे मनाली में डूबे हुए हमारे नौजवान हों, चाहे हमारी बहनों पर हुए बलात्‍कार हो, ये सारी घटनाएँ, हम सब को आत्‍मचिंतन करने के लि‍ए प्रेरि‍त करती हैं। सरकारों को कठोरता से काम करना होगा। देश लंबा इंतजार नहीं करेगा, पीड़ि‍त लोग लंबा इंतजार नहीं करेंगे और हमारी अपनी आत्‍मा हमें माफ नहीं करेगी। इसलि‍ए मैं तो राजनेताओं से अपील करता हूँ। मैं देश भर के राजनेताओं को वि‍शेष रूप से करबद्ध प्रार्थना करना चाहता हूँ कि‍ बलात्‍कार की घटनाओं का ‘मनोवैज्ञानि‍क वि‍श्‍लेषण’ करना कम से कम हम बंद करें। हमें शोभा नहीं देता है। हम माँ-बहनों की डि‍ग्‍नि‍टी पर खि‍लवाड़ करते हैं। हमें राजनीति‍क स्‍तर पर, इस प्रकार की बयानबाजी करना शोभा देता है क्‍या? क्‍या हम मौन नहीं रह सकते? इसलि‍ए नारी का सम्‍मान, नारी की सुरक्षा, यह हम सब की, सवा सौ करोड़ देशवासि‍यों की प्राथमि‍कता होनी चाहि‍ए।

इस देश की 65 प्रतिशत जनसंख्‍या 35 से कम आयु की है। हम कितने सौभाग्‍यशाली हैं। हम उस युग चक्र के अंदर आज जीवित है। हम उस युग चक्र में संसद में बैठे हैं जब हिंदुस्‍तान दुनिया का सबसे नौजवान देश है। डेमोग्राफिक डिवीज़न- इस ताकत को हम पहचानें। पूरे विश्‍व को आने वाले दिनों में लेबर फोर्स की मैन पावर की Skilled मैनपावर की बहुत बड़ी आवश्‍यकता है। जो लोग इस शास्‍त्र के अनुभवी हैं, वे जानते हैं कि‍ पूरे वि‍श्‍व को Skilled मैनपावर की आवश्‍यकता है। हमारे पड़ोस में चीन बूढ़ा होता जा रहा है, हम नौजवान होते जा रहे हैं। यह एक एडवांटेज है। इसलि‍ए दुनि‍या के सभी देश समृद्ध-से-समृद्ध देश का एक ही एजेंडा रहता है- स्‍कि‍ल डेवलपमेंट। हमारे देश की प्राथमि‍कता होनी चाहि‍ए ‘स्‍कि‍ल डेवलपमेंट’। उसके साथ-साथ हमें सफल होना है तो हमें ‘श्रमेव जयते’ – इस मंत्र को चरि‍तार्थ करना होगा। राष्‍ट्र के नि‍र्माण में श्रमि‍क का स्‍थान होता है। वह वि‍श्‍वकर्मा है। उसका हम गौरव कैसे करें।

भाइयो-बहनो, भारत का एक परसेप्‍शन दुनि‍या में बन पड़ा है। हमारी पहचान बन गयी है ‘स्‍कैम इंडि‍या’ की। हमारे देश की पहचान हमें बनानी है ‘Skilled’ इंडि‍या की और उस सपने को हम पूरा कर सकते हैं। इसलि‍ए पहली बार एक अलग मंत्रालय बनाकर के- इंटरप्रेन्‍योरशि‍प एण्‍ड स्‍कि‍ल डेवलपमेंट- उस पर वि‍शेष रूप से बल दि‍या गया है।

हमारे देश का एक दुर्भाग्‍य है। किसी से पूछा जाए कि क्‍या पढ़े-लि‍खे हो तो वह कहता है कि‍ ग्रैजुएट हूँ, एम.ए. हूँ, डबल ग्रैजुएट हूँ। हमें अच्‍छा लगता है। मैंने बहुत बचपन में दादा धर्माधि‍कारी जी की एक कि‍ताब पढ़ी थी। महात्‍मा गाँधी के वि‍चारों के एक अच्‍छे चिंतक रहे, बि‍नोवा जी के साथ रहते थे। दादा धर्माधि‍कारी जी ने एक अनुभव लि‍खा था कि‍ कोई नौजवान उनके पास नौकरी लेने गया। उन्‍होंने पूछा कि‍ भाई, क्‍या करते हो, क्‍या पढ़े हो वगैरह। उसने कहा कि‍ मैं ग्रैजुएट हूँ। फि‍र कहने लगा कि‍ मुझे नौकरी चाहि‍ए। दादा धर्माधि‍कारी जी ने उससे पूछा कि‍ तुम्‍हें क्‍या आता है? उसने बोला- मैं ग्रैजुएट हूँ। फि‍र उन्‍होंने कहा- हाँ, हाँ भाई, तुम ग्रैजुएट हो, पर बताओ तुम्‍हें क्‍या आता है? उसने बोला- नहीं, नहीं! मैं ग्रैजुएट हूँ। चौथी बार पूछा कि‍ तुम्‍हें बताओ क्‍या आता है। वह बोला मैं ग्रैजुएट हूँ। हम इस बात से अनुभव कर सकते हैं कि‍ जि‍न्‍दगी का गुजारा करने के लि‍ए हाथ में हुनर होना चाहि‍ए, सि‍र्फ हाथ में सर्टि‍फि‍केट होने से बात नहीं होती। इसलि‍ए हमें स्‍कि‍ल डेवलपमेंट की ओर बल देना होगा, लेकि‍न स्‍कि‍ल्‍ड वर्कर जो हैं, उसका एक सामाजि‍क स्‍टेटस भी खड़ा करना पड़ेगा। सातवीं कक्षा तक पढ़ा हुआ बच्‍चा, गरीबी के कारण स्‍कूल छोड़ देता है। कहीं जा करके स्‍कि‍ल डेवलपमेंट के कोर्स का सौभाग्‍य मि‍ला, चला जाता है, लेकि‍न लोग उसको महत्‍व नहीं देते, अच्‍छा सातवीं पढ़े हो, चले जाओ। हमें उसकी इक्‍वीवैलंट व्‍यवस्‍था खड़ी करनी पड़ेगी। मैंने गुजरात में प्रयोग कि‍या था। जो दो साल की आईटीआई करते थे, मैंने उनको दसवीं के इक्‍वल बना दि‍या, जो दसवीं के बाद आए थे, उनको 12वीं के इक्‍वल बना दि‍या। उनको डि‍प्‍लोमा या आगे पढ़ना है तो रास्‍ते खोल दि‍ए। डि‍ग्री में जाना है तो रास्‍ते खोल दि‍ए। सातवीं पास था, लेकि‍न डि‍ग्री तक जा सकता है, रास्‍ते खोल दि‍ए। बहुत हि‍म्‍मत के साथ नये नि‍र्णय करने होंगे।

अगर हम स्‍कि‍ल डेवलपमेंट को बल देना चाहते हैं तो उसकी सामाजि‍क प्रति‍ष्‍ठा पैदा करनी होगी। मैंने कहा कि‍ दुनि‍या में वर्क फोर्स की आवश्‍यकता है। आज सारे वि‍श्‍व को टीचर्स की आवश्‍यकता है। क्‍या हि‍न्‍दुस्‍तान टीचर एक्‍सपोर्ट नहीं कर सकता है। मैथ्‍स और साइंस के टीचर अगर हम दुनि‍या में एक्‍सपोर्ट करें, एक व्‍यापारी वि‍देश जाएगा तो ज्‍यादा से ज्‍यादा डालर लेकर आएगा, लेकि‍न एक टीचर वि‍देश जाएगा तो पूरी की पूरी पीढ़ी अपने साथ समेट करके ले आएगा। ये ताकत रखनी है। वि‍श्‍व में हमारे सामर्थ्‍य को खड़ा करना है तो ये रास्‍ते होते हैं। क्‍या हम अपने देश में इस प्रकार के नौजवानों को तैयार नहीं कर सकते? ये सारी संभावनाएँ पड़ी हैं, उन संभावनाओं को ले करके अगर आगे चलने का हम इरादा रखते हैं तो मुझे वि‍श्‍वास है कि‍ हम परि‍णाम ला सकते हैं। दलि‍त, पीड़ि‍त, शोषि‍त एवं वंचि‍त हो।

हमारे दलि‍त एवं वनवासी भाई-बहनों, क्‍या हम वि‍श्‍वास से कह सकते हैं कि‍ आजादी के इतने सालों के बाद उनके जीवन में हम बदलाव ला सके हैं। ऐसा नहीं है कि‍ बजट खर्च नहीं हुए, कोई सरकार के पास गंभीरता नहीं थी। मैं ऐसा कोई कि‍सी पर आरोप नहीं लगा रहा हूँ, लेकि‍न हकीकत यह है कि‍ स्‍थि‍ति‍ में बदलाव नहीं आया। क्‍या हम पुराने ढर्रे से बाहर आने को तैयार हैं? हम सरकार की योजनाओं को कन्वर्जेंस कर-करके, कम से कम समाज के इन तबको को बाहर ला सकते हैं। क्‍यों नहीं उनके जीवन में बदलाव आ सकता है। मुसलमान भाई, मैं देखता हूँ, जब मैं छोटा था, जो साइकि‍ल रि‍पेयरिंग करता था, आज उसकी तीसरी पीढ़ी का बेटा भी साइकि‍ल रि‍पेयरिंग करता है। ऐसी दुर्दशा क्‍यों हुई? उनके जीवन में बदलाव कैसे आए? इस बदलाव के लि‍ए हमें फोकस एक्‍टि‍वि‍टी करनी पड़ेगी। उस प्रकार की योजनओं को ले करके आना पड़ेगा। मैं उन योजनाओं को तुष्‍टीकरण के रूप में देखता नहीं हूँ, मैं उनके जीवन को बदलाव के रूप में देखता हूँ। कोई भी शरीर अगर उसका एक अंग वि‍कलांग हो तो उस शरीर को कोई स्‍वस्‍थ नहीं मान सकता। शरीर के सभी अंग अगर सशक्‍त हों, तभी तो वह सशक्‍त शरीर हो सकता है। इसलि‍ए समाज का कोई एक अंग अगर दुर्बल रहा तो समाज कभी सशक्‍त नहीं हो सकता है। इसलि‍ए समाज के सभी अंग सशक्‍त होने चाहि‍ए। उस मूलभूत भावना से प्रेरि‍त हो करके हमें काम करने की आवश्‍यकता है और हम उससे प्रति‍बद्ध हैं। हम उसको करना चाहते हैं। हमारे देश में वि‍कास की एक नयी परि‍भाषा की ओर जाने की मुझे आवश्‍यकता लगी। क्‍या आजादी का आंदोलन, देश में आजादी की लड़ाई बारह सौ साल के कालखंड में कोई वर्ष ऐसा नहीं गया, जि‍समें आजादी के लि‍ए मरने वाले दीवाने न मि‍ले हों। 1857 के बाद सारा स्‍वतंत्र संग्राम का इति‍हास हमारे सामने है। हि‍न्‍दुस्‍तान का कोई भू-भाग ऐसा नहीं होगा, जहाँ से कोई मरने वाला तैयार न हुआ हो, शहीद होने के लि‍ए तैयार न हुआ हो। सि‍लसि‍ला चलता रहा था, फांसी के तख्‍त पर चढ़ करके देश के लि‍ए बलि‍दान होने वालों की श्रृंखला कभी रुकी नहीं थी।

भाइयों और बहनों, आप में से बहुत लोग ऐसे होंगे, जो आजादी के बाद पैदा हुए होंगे। कुछ महानुभाव ऐसे भी हैं, जो आजादी के पहले पैदा हुए होंगे, आजादी की जंग में लड़े भी होंगे। मैं आजादी के बाद पैदा हुआ हूँ। मेरे मन में वि‍चार आता है। मुझे देश के लि‍ए मरने का मौका नहीं मि‍ला, लेकि‍न देश के लि‍ए जीने का मौका तो मि‍ला है। हम यह बात लोगों तक कैसे पहुँचाये कि‍ हम देश के लि‍ए जि‍यें और देश के लि‍ए जीने का एक मौका लेकर वर्ष 2022 में जब आजादी के 75 साल हों, देश के लि‍ए जीवन न्‍यौछावर करने वाले उन महापुरूषों को याद करते हुए हम एक काम कर सकते हैं। बाकी सारे काम भी करने हैं, लेकि‍न एक काम जो प्रखरता से करें कि‍ हिंदुस्‍तान में कोई परि‍वार ऐसा न हो, जि‍सके पास रहने के लि‍ए अपना घर न हो। ऐसा घर जि‍समें नल भी हो, नल में पानी भी हो, बि‍जली भी हो, शौचालय भी हो। यह एक मि‍नि‍मम बात है। एक आंदोलन के रूप में सभी राज्‍य सरकारें और केंद्र सरकार मि‍लकर, हम सभी सदस्‍य मि‍लकर अगर आठ-नौ साल का कार्यक्रम बना दें, धन खर्च करना पड़े, तो खर्च करें, लेकि‍न आजादी के 75 साल जब मनायें तब भगत सिंह को याद करके, सुखदेव को याद करके, राजगुरु को याद करके, महात्‍मा गाँधी, सरदार पटेल इन सभी महापुरूषों को याद करके उनको हम मकान दे सकते हैं। अगर हम इस संकल्‍प की पूर्ति‍ करके आगे बढ़ते हैं तो देश के सपनों को पूरा करने का काम हम कर सकते हैं।

मैं जानता हूँ कि‍ शासन में आने के बाद जि‍सको नापा जा सके, ऐसा कार्यक्रम हाथ में लेना बड़ा कठि‍न होता है। आदरणीय मुलायम सिंह जी ने कहा कि‍ मैंने सरकार चलायी है। सरकार चलायी है, इसलि‍ए मैं कहता हूँ कि‍ भाई यह कैसे करोगे, यह कैसे होगा? उनकी सदभावना के लि‍ए मैं उनका आभारी हूँ। उन्‍होंने चि‍न्‍ता व्‍यक्‍त की है, लेकि‍न हम मि‍ल-बैठकर के रास्‍ता नि‍कालेंगे। हम सपना तो देखे हैं, उसे पूरा करने का प्रयास करेंगे। कुछ कठि‍नाई आयेगी तो आप जैसे अनुभवी लोग हैं, जि‍नका मार्गदर्शन हमें मि‍लेगा। गरीब के लि‍ए काम करना है, इसके लि‍ए हमें आगे बढ़ना है।

यहाँ यह बात भी आयी, नयी बोतल में पुरानी शराब है। उनको शराब याद आना बड़ा स्‍वाभावि‍क है। यह भी कहा कि‍ ये तो हमारी बातें हैं, आपने जरा ऊपर-नीचे करके रखी हैं, कोई नयी बात नहीं है। इसका मतलब यह है कि‍ जो हम कह रहे हैं, वह आपको भी पता था। कल से महाभारत की चर्चा हो रही है और मैं कहना चाहता हूँ कि‍ एक बार दुर्योधन से पूछा गया कि‍ भाई यह धर्म और अधर्म, सत्‍य और झूठ तुमको समझ है कि‍ नहीं है, तो दुर्योधन ने जवाब दि‍या था, उसने कहा कि‍ जानामि‍ धर्मम् न च में प्रवृत्‍ति‍:, मैं धर्म को जानता हूँ, लेकि‍न यह मेरी प्रवृत्‍ति‍ नहीं है। सत्‍य क्‍या है, मुझे मालूम है। अच्‍छा क्‍या है, मुझे मालूम है, लेकि‍न वह मेरे डीएनए में नहीं है। इसलि‍ए आपको पहले पता था, आप जानते थे, आप सोचते थे, मुझे इससे ऐतराज नहीं है, लेकि‍न दुर्योधन को भी तो मालूम था। इसलि‍ए जब महाभारत की चर्चा करते हैं, महाभारत लंबे अरसे से हमारे कानों में गूंजती रही है, सुनते आए हैं, लेकि‍न महाभारत काल पूरा हो चुका है। न पांडव बचे है, न कौरव बचे हैं, लेकि‍न जन-मन में आज भी पांडव ही वि‍जयी हों, हमेशा-हमेशा भाव रहा है। कभी पांडव पराजि‍त हों, यह कभी जन-मन का भाव नहीं रहा है।

भाइयों और बहनों, वि‍जय हमें बहुत सि‍खाता है और हमें सीखना भी चाहि‍ए। वि‍जय हमें सि‍खाता है नम्रता, मैं इस सदन को वि‍श्‍वास देता हूँ, मुझे वि‍श्‍वास है कि‍ यहाँ के जो हमारे सीनि‍यर्स हैं, चाहे वह कि‍सी भी दल के क्‍यों नहों, उनके आशीर्वाद से हम उस ताकत को प्राप्‍त करेंगे, जो हमें अहंकार से बचाये।

जो हमें हर पल नम्रता सि‍खाए। यहाँ पर कि‍तनी ही संख्‍या क्‍यों न हो, लेकि‍न मुझे आपके बि‍ना आगे नहीं बढ़ना है। हमें संख्‍या के बल पर नहीं चलना है, हमें सामूहि‍कता के बल पर चलना है इसलि‍ए उस सामूहि‍कता के भाव को ले कर हम आगे बढ़ना चाहते हैं।

इन दि‍नों मॉडल की चर्चा होती है- गुजरात मॉडल, गुजरात मॉडल। जि‍न्‍होंने मेरा भाषण सुना होगा उन्‍हें मैं बताता हूँ कि‍ गुजरात का मॉडल क्‍या है? गुजरात में भी एक जि‍ले का मॉडल दूसरे जि‍ले में नहीं चलता है क्‍योंकि‍ यह देश वि‍वि‍धताओं से भरा हुआ है। अगर मेरा कच्‍छ का रेगि‍स्‍तान है और वहाँ का मॉडल मैं वलसाड के हरे-भरे जि‍ले में लगाऊंगा तो नहीं चलेगा। इतनी समझ के कारण तो गुजरात आगे बढ़ा है।..... (व्‍यवधान) यही उसका मॉडल है कि‍ जि‍समें यह समझ है।..... (व्‍यवधान) गुजरात का दूसरा मॉडल यह है कि‍ हि‍न्‍दुस्‍तान के कि‍सी भी कोने में अच्‍छा हो, उन अच्‍छी बातों से हम सीखते हैं, उन अच्‍छी बातों को हम स्‍वीकार करते हैं। आने वाले दि‍नों में भी हम उस मॉडल को ले कर आगे बढ़ना चाहते हैं, हि‍न्‍दुस्‍तान के कि‍सी भी कोने में अच्‍छा हुआ हो, जो अच्‍छा है, वह हम सबका है, उसको और जगहों पर लागू करने का प्रयास करना है।

कल तमि‍लनाडु की तरफ से बोला गया था कि‍ तमि‍लनाडु का मॉडल गुजरात के मॉडल से अच्‍छा है। मैं इस बात का स्‍वागत करता हूँ कि‍ इस देश में इतना तो हुआ कि‍ वि‍कास के मॉडल की स्‍पर्द्धा शुरू हुई है।..... (व्‍यवधान) एक राज्‍य कहने लगा कि‍ मेरा राज्‍य तुम्‍हारे राज्‍य से आगे बढ़़ने लगा है। मैं मानता हूँ कि‍ गुजरात मॉडल का यह सबसे बड़ा कॉण्‍ट्रि‍ब्‍यूशन है कि‍ पहले हम स्‍पर्द्धा नहीं करते थे, अब कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि‍ आने वाले दि‍नों में राज्‍यों के बीच वि‍कास की प्रति‍स्‍पर्द्धा हो। राज्‍य और केंद्र के बीच वि‍कास की स्‍पर्द्धा हो। हर कोई कहे कि‍ गुजरात पीछे रह गया है और हम आगे नि‍कल गए हैं। यह सुनने के लि‍ए मेरे कान तरस रहे हैं। देश में यही होगा, तभी तो बदलाव आएगा। छोटे-छोटे राज्‍य भी बहुत अच्‍छा करते हैं। जैसा मैंने कहा है कि‍ सि‍क्‍कि‍म, ऑर्गैनि‍क स्‍टेट बना है। तमि‍लनाडु ने अर्बन एरि‍या में रेन हार्वेस्‍टिंग का जो काम कि‍या है, वह हम सब को सीखने जैसा है। माओवाद के जुल्‍म के बीच जीने वाले राज्‍य छत्‍तीसगढ़ ने पी.डी.एस. सि‍स्‍टम का एक नया नमूना दि‍या है और गरीब से गरीब व्‍यक्‍ति‍ को पेट भरने के लि‍ए उसने नई योजना दी है।..... (व्‍यवधान)

हमारी बहन ममता जी पश्‍चि‍म बंगाल को 35 साल की बुराइयों से बाहर लाने के लि‍ए आज कि‍तनी मेहनत कर रही हैं, हम उनकी इन बातों का आदर करते हैं। इसलि‍ए हर राज्‍य में ....... (व्‍यवधान) केरल से भी..... (व्‍यवधान) आप को जान कर खुशी होगी कि‍ मैंने केरल के एक अफसर को बुलाया था। वह बहुत ही जुनि‍यर ऑफि‍सर थे और वहाँ लेफ्ट की सरकार चल रही थी। उनकी आयु बहुत छोटी थी। मैंने अपने यहाँ एक चिंतन शि‍वि‍र कि‍या और मैं और मेरा पूरा मंत्री परि‍षद् एक स्‍टुडेंट के रूप में बैठा था। मैंने उनसे ‘कुटुम्‍बश्री’ योजना का अध्‍ययन कि‍या था। उन्‍होंने हमें दो घंटे पढ़ाया।

मैंने नागालैण्‍ड के चीफ सेक्रेट्री को बुलाया था कि‍ आइए मुझे पढ़ाइये। नागालैंड में ट्राइबल के लि‍ए एक बहुत अच्‍छी योजना बनी थी। यही तो हमारे देश का मॉडल होना चाहि‍ए। हि‍न्‍दुस्‍तान के कोने में कि‍सी भी वि‍चारधारा की सरकार क्‍यों न हो, उसकी अच्‍छाइयों का हम आदर करें, अच्‍छाइयों को स्‍वीकार करें।...... (व्‍यवधान) यही मॉडल देश के काम आएगा। हम बड़े भाई का व्‍यवहार कि‍ तुम कौन होते हो? तुम ले जाना दो-चार टुकड़े ऐसा नहीं चाहते हैं, हम मि‍ल करके देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं, इसलि‍ए हमने ‘कॉपरेटि‍व फेडरलि‍ज्‍म’ की बात की है। सहकारि‍ता के संगठि‍त स्‍वरूप को लेकर चलने की हमने बात की है और इसलि‍ए एक ऐसे रूप को आगे बढ़ाने का हम लोगों का प्रयास है, उस प्रयास को लेकर आगे चलेंगे, ऐसा मुझे वि‍श्‍वास है।

माननीय अध्‍यक्ष महोदया जी, यह जो प्रस्‍ताव रखा गया है, उसके लि‍ए आज मैं सभी वरि‍ष्‍ठ नेताओं का आभारी हूँ और कुल मि‍ला कर कह सकता हूँ कि‍ आज एक सार्थक चर्चा रही है और समर्थन में चर्चा रही है और अगर आलोचना भी हुई तो अपेक्षा के संदर्भ में हुई है। मैं इसे बहुत हेल्‍दी मानता हूँ, इसका स्‍वागत करता हूँ और आज कि‍सी भी दल की तरफ से जो अच्‍छे सुझाव हमें मि‍ले हैं उन्‍हें मैं अपनी आलोचना नहीं मानता हूँ, उन्‍हें मैं मार्गदर्शक मानता हूँ।

उसका भी हम उपयोग करेंगे, अच्‍छाई के लि‍ए उपयोग करेंगे और लोकतंत्र में आलोचना अच्‍छाई के लि‍ए होती है और होनी भी चाहि‍ए। सिर्फ आरोप बुरे होते हैं आलोचना कभी बुरी नहीं होती है, आलोचना तो ताकत देती है। अगर लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकतवर कोई जड़ी-बूटी है तो वह आलोचना है। हम उस आलोचना के लि‍ए सदा-सर्वदा के लि‍ए तैयार हैं। मैं चाहूँगा हर नीति‍यों का अध्‍ययन करके गहरी आलोचना होनी चाहि‍ए ताकि‍ तप करके प्रखर होकर सोना नि‍कले जो आने वाले दि‍नों में देश के लि‍ए काम आए। उस भाव से हम चलना चाहते हैं।

आज नए सदन में मुझे अपनी बात बताने का अवसर मि‍ला। आदरणीय अध्यक्ष महोदया जी, कहीं कोई शब्‍द इधर-उधर हो गया हो, अगर मैं नि‍यमों के बंधन से बाहर चला गया हूँ तो यह सदन मुझे जरूर क्षमा करेगा। लेकि‍न मुझे वि‍श्‍वास है कि‍ सदन के पूरे सहयोग से, जैसे मैंने पहले कहा था, मतदान से पहले हम उम्‍मीदवार थे, मतदान के बाद हम उम्‍मीदों के रखवाले हैं, हम उम्‍मीदों के दूत हैं, सवा सौ करोड़ देशवासि‍यों की उम्‍मीदों को पूरा करने का हम प्रयास करें। इसी एक अपेक्षा के साथ इसे आप सबका समर्थन मि‍ले। इसी बात को दोहराते हुए आप सबका बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

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আমার প্রিয় দেশবাসী, নমস্কার। ২০২৫ তো প্রায় এসেই গেল, এই তো দরজায় কড়া নাড়ছে। ২০২৫ সালের ২৬শে জানুয়ারি আমাদের সংবিধান কার্যকর হওয়ার পঁচাত্তর বছর পূর্ণ হতে চলেছে। আমাদের সবার জন্য অত্যন্ত গৌরবের ব্যাপার। আমাদের সংবিধান-নির্মাতারা আমাদের যে সংবিধান দিয়ে গিয়েছেন তা কালের প্রবাহে প্রতিটি মানদণ্ডে সাফল্য পেয়েছে। সংবিধান আমাদের জন্য এক দিশারী আলোকবর্তিকা, আমাদের পথপ্রদর্শক। ভারতের সংবিধানের কারণেই আমি আজ এখানে পৌঁছেছি, আপনাদের সঙ্গে কথা বলতে পারছি। এই বছর ২৬শে নভেম্বর, সংবিধান দিবস থেকে এক বছর ধরে চলবে এমন অনেক কাজ শুরু হয়েছে। দেশের নাগরিকদের সংবিধানের ঐতিহ্যের সঙ্গে যুক্ত করার জন্য কনস্টিটিউশন-সেভেন্টিফাইভ-ডট-কম নামে এক বিশেষ ওয়েবসাইটও বানানো হয়েছে। এতে আপনি সংবিধানের প্রস্তাবনা পাঠ করে নিজের ভিডিও আপলোড করতে পারেন। আলাদা-আলাদা ভাষায় সংবিধান পাঠ করতে পারেন, সংবিধানের ব্যাপারে প্রশ্নও জিজ্ঞাসা করতে পারেন। মন কি বাতের শ্রোতাদের কাছে, স্কুলপড়ুয়া বাচ্চাদের কাছে, কলেজে যাওয়া যুবক-যুবতীদের কাছে আমার অনুরোধ, আপনারা অবশ্যই এই ওয়েবসাইটে গিয়ে দেখুন, এর অংশ হয়ে উঠুন।

বন্ধুরা, আগামী মাসের তেরো তারিখ থেকে প্রয়াগরাজে মহাকুম্ভও অনুষ্ঠিত হতে চলেছে। এই সময় ওখানকার সঙ্গমতটে পূর্ণ উদ্যমে প্রস্তুতি চলছে। আমার মনে আছে, এই কিছুদিন আগে যখন আমি প্রয়াগরাজে গিয়েছিলাম তখন হেলিকপ্টার থেকে গোটা কুম্ভ ক্ষেত্র দেখে হৃদয় প্রসন্ন হয়ে গিয়েছিল। এত বিশাল! এত সুন্দর! এত মহৎ!

বন্ধুরা, মহাকুম্ভের বিশেষত্ব কেবল এর বিশালতার মধ্যেই নয়, কুম্ভের বিশেষত্ব এর বিবিধতার মধ্যেও ধরা আছে। এই উদ্যোগে কোটি-কোটি মানুষ এসে একত্রিত হন। লক্ষ-লক্ষ সন্ন্যাসী, হাজার-হাজার রীতি-পরম্পরা, শত-শত সম্প্রদায়, বহু আখড়া, প্রত্যেকে এই আয়োজনের অংশ হয়ে ওঠেন। কোথাও কোনও বিভেদ নেই, কেউ এখানে বড় নন, কেউ ছোট নন। বৈচিত্র্যের মধ্যে ঐক্যের এই দৃশ্য বিশ্বের আর কোথাও দেখা যায় না। এই জন্য আমাদের কুম্ভ ঐক্যের মহাকুম্ভও হয়ে ওঠে। এবারের মহাকুম্ভও ঐক্যের মহাকুম্ভের মন্ত্রকে শক্তিশালী করে তুলবে। আমি আপনাদের সবাইকে বলব, যখন কুম্ভে অংশ নেব আমরা, তখন ঐক্যের এই সঙ্কল্পকে নিজের সঙ্গে নিয়ে ফিরব। সমাজে বিভেদ আর বিদ্বেষের ভাবনাকেও নষ্ট করার সঙ্কল্প নেব আমরা। কম শব্দে যদি প্রকাশ করতে হয় আমাকে, তাহলে বলব-

মহাকুম্ভের সন্দেশ, এক হোক গোটা দেশ।

মহাকুম্ভের সন্দেশ, এক হোক গোটা দেশ।

আর যদি ভিন্ন ভাবে বলতে হয় তাহলে আমি বলবঃ

গঙ্গার নিরন্তর ধারা, মোদের সমাজ যেন না হয় ঐক্যহারা।

গঙ্গার নিরন্তর ধারা, মোদের সমাজ যেন না হয় ঐক্যহারা।।

বন্ধুরা, এবার প্রয়াগরাজে দেশ ও বিশ্বের ভক্তরা ডিজিটাল মহাকুম্ভেরও সাক্ষী হবেন। ডিজিটাল নেভিগেশনের সহায়তায় আপনারা আলাদা আলাদা ঘাট, মন্দির, সাধু-সন্ন্যাসীদের আখড়া পর্যন্ত পৌঁছনোর রাস্তা পেয়ে যাবেন। এই নেভিগেশন সিস্টেম আপনাদের পার্কিং পর্যন্ত পৌঁছতেও সাহায্য করবে। এই প্রথম বার কুম্ভমেলা আয়োজনে এআই চ্যাটবটের প্রয়োগ হবে। এই চ্যাটবটের মাধ্যমে ১১টি ভারতীয় ভাষায় কুম্ভ মেলার সঙ্গে যুক্ত সব রকম তথ্য জানা যাবে। এই চ্যাটবটে বিভিন্ন ধরনের টেক্সট টাইপ করে কিংবা মুখে বলে যে কোন ধরনের সহায়তা আপনারা চাইতে পারেন। সম্পূর্ণ মেলা প্রাঙ্গণকে এআই-পাওয়ারড ক্যামেরায় ঢেকে দেওয়া হচ্ছে। কুম্ভে যদি কেউ নিজের পরিচিতজনের থেকে বিচ্ছিন্ন হয়ে যান তাহলে এই ক্যামেরাগুলি তাকে খুঁজতেও সাহায্য করবে। ভক্তরা ডিজিটাল লস্ট এন্ড ফাউন্ড সেন্টারের সুবিধাও পাবেন। তাদের মোবাইলে government approved tour packages, থাকার জায়গা আর হোমস্টে সম্বন্ধেও জানানো হবে। আপনারাও যদি মহাকুম্ভে যান তাহলে এই সুবিধাজনক ব্যবস্থাগুলির সুফল নেবেন এবং #"একতা কা মহাকুম্ভ"-এর সঙ্গে নিজের সেলফি অবশ্যই আপলোড করবেন।

বন্ধুরা, মন কি বাত অর্থাৎ MKB-তে এবারে বলি KTB-র কথা। যারা প্রবীণ মানুষ তাদের মধ্যে অনেকেরই হয়তো KTB সম্বন্ধে জানা নেই। কিন্তু ছোটদের জিজ্ঞাসা করুন, KTB ওদের কাছে সুপারহিট। KTB কৃষ, ট্রিশ, বালটিবয়। আপনারা সম্ভবত জানেন ছোটদের পছন্দের অ্যানিমেশন সিরিজ, যার নাম "KTB - ভারত হ্যায় হাম", এখন তার দ্বিতীয় সিজনও চলে এসেছে। এই তিনটি অ্যানিমেশন ক্যারেক্টার আমাদের ভারতের স্বাধীনতা সংগ্রামের সেই সব নায়ক-নায়িকাদের সম্বন্ধে বলে যাদের নিয়ে তেমন ভাবে আলোচনা হয় না। সম্প্রতি এর সিজন টু বিশেষ সমারোহের সঙ্গে ইন্টারন্যাশনাল ফিল্ম ফেস্টিভ্যাল অফ ইন্ডিয়া, গোয়াতে লঞ্চ হয়েছে। সবচেয়ে দুর্দান্ত ব্যাপার, এই সিরিজটি শুধু ভারতের অনেকগুলি ভাষায় নয়, এমনকি বিদেশি ভাষাতেও সম্প্রচার হয়। দূরদর্শনের পাশাপাশি অন্য ওটিটি প্লাটফর্মেও এটি দেখা যায়।

বন্ধুরা, আমাদের অ্যানিমেশন ফিল্মের, রেগুলার ফিল্মের, টিভি সিরিয়ালের জনপ্রিয়তা এটা প্রমাণ করে যে, ভারতের ক্রিয়েটিভ ইন্ডাস্ট্রির কতটা ক্ষমতা রয়েছে। এই ইন্ডাস্ট্রি যে শুধু দেশের উন্নতির ক্ষেত্রে বড় অবদান রেখে চলেছে তাই নয়, বরং আমাদের অর্থনীতিকে নতুন উচ্চতায় নিয়ে যাচ্ছে। আমাদের ফিল্ম এবং এন্টারটেইনমেন্ট ইন্ডাস্ট্রি বিরাট। দেশে কত রকম ভাষায় সিনেমা তৈরি হয়, ক্রিয়েটিভ কনটেন্ট তৈরি হয়। আমি আমাদের ফিল্ম এবং এন্টারটেইনমেন্ট ইন্ডাস্ট্রিকে এই জন্য অভিনন্দন জানাই, কারণ তারা এক ভারত শ্রেষ্ঠ ভারতএই ভাবনাকে আরো শক্তিশালী করে তুলেছে।
বন্ধুরা, ২০২৪ সালে আমাদের চলচ্চিত্র জগতের অনেক বিখ্যাত ব্যক্তিত্বের শততম জন্মজয়ন্তী আমরা পালন করছি। এই মহাপুরুষরা ভারতীয় সিনেমাকে বিশ্বের দরবারে পরিচিতি দিয়েছেন। রাজকাপুরজি ফিল্মের মাধ্যমে সারা পৃথিবীকে ভারতের সফ্ট পাওয়ারের সঙ্গে পরিচয় করিয়েছেন। রফি সাহেবের চমৎকার কণ্ঠস্বর সকলের হৃদয়কে ছুঁয়ে যেত। ওঁর কণ্ঠস্বর ছিল অদ্ভূত। ভক্তিগীতি হোক, রোমান্টিক গান হোক কিংবা বিরহের গান, সমস্ত
অনুভূতিকে তিনি নিজের কণ্ঠস্বরের মাধ্যমে জীবন্ত করে তুলেছিলেন। একজন শিল্পী হিসেবে ওঁর প্রতিভা সম্পর্কে এভাবেই আন্দাজ করা যায় যে, আজও যুবক-যুবতীরা ওঁর গান সেই একইরকম আগ্রহের সঙ্গে শোনে, এটাই টাইমলেস আর্টের পরিচয়। আক্কিনেনি নাগেশ্বর রাও গারু তেলুগু সিনেমাকে নতুন উচ্চতায় পৌঁছে দিয়েছিলেন। ওঁর সিনেমায় ভারতীয় ঐতিহ্য এবং মূল্যবোধের প্রদর্শন করা হয়েছে। তপন সিনহাজির সিনেমা সমাজকে এক অন্য দৃষ্টিভঙ্গিতে দেখিয়েছে। ওঁর সিনেমায় সামাজিক চেতনা এবং রাষ্ট্রীয় ঐক্যের বার্তা থাকত। আমাদের পুরো ফিল্ম ইন্ডাস্ট্রির জন্য এই মহান ব্যক্তিদের জীবন অনুপ্রেরণার মতোই।
বন্ধুরা, আমি আপনাদের আরেকটা আনন্দের কথা জানাতে চাই। ভারতের ক্রিয়েটিভ ট্যালেন্টকে পৃথিবীর সামনে রাখার এক বড় সুযোগ আসতে চলেছে। আগামী বছর আমাদের দেশে প্রথম বার ওয়ার্ল্ড অডিয়ো ভিসুয়াল এন্টারটেইনমেন্ট সামিট অর্থাৎ WAVES সামিটের আয়োজন হতে চলেছে। আপনারা সকলে দাবোসের ব্যাপারে শুনেছেন, যেখানে পৃথিবীর অর্থনীতি জগতের মহারথীরা যুক্ত হন। সে ভাবে এই সামিটে সারা পৃথিবীর মিডিয়া এবং এন্টারটেইনমেন্ট ইন্ডাস্ট্রির বিশেষজ্ঞ, ক্রিয়েটিভ জগতের মানুষরা ভারতে আসবেন। এই সামিট ভারতকে গ্লোবাল কনটেন্ট ক্রিয়েশনের হাব হিসেবে পরিচিতি দেওয়ার জন্য এক গুরুত্বপূর্ণ পদক্ষেপ। আমার এটা বলতে গর্ব হচ্ছে যে, এই সামিটের প্রস্তুতির সময়ে আমাদের দেশের ইয়ং ক্রিয়েটররাও সম্পূর্ণ আগ্রহের সঙ্গে যুক্ত হচ্ছেন। যখন আমরা পাঁচ ট্রিলিয়ন ডলার ইকোনমির দিকে এগিয়ে চলেছি, তখন আমাদের ক্রিয়েটর ইকোনমি এক নতুন শক্তির সঞ্চার করছে। আমি ভারতের সমগ্র এন্টারটেইনমেন্ট এবং ক্রিয়েটিভ ইন্ডাস্ট্রিকে বলতে চাই যে, আপনারা ইয়ং ক্রিয়েটর হোন বা প্রতিষ্ঠিত শিল্পী হোন বা বলিউডের সঙ্গে যুক্ত অথবা আঞ্চলিক সিনেমার সঙ্গে যুক্ত বা টিভি ইন্ডাস্ট্রির পেশাদার হোন অথবা অ‍্যানিমেশন বিশেষজ্ঞ বা গেমিং-এর সঙ্গে যুক্ত বা এন্টারটেইনমেন্ট টেকনোলজির ইনোভেটর হোন, আপনারা সকলে ওয়েভস সামিটের অংশ হয়ে উঠুন।

আমার প্রিয় দেশবাসী, আপনারা সবাই জানেন যে, ভারতীয় সংস্কৃতির প্রকাশ আজ দুনিয়ার প্রতিটি প্রান্তে পৌঁছে যাচ্ছে। আজ আমি আপনাদের তিন মহাদ্বীপে এমন প্রয়াসের ব্যাপারে বলব, যা আমাদের সাংস্কৃতিক ঐতিহ্যের বৈশ্বিক বিস্তারের সাক্ষী। এগুলো একে অন্যের থেকে শত-শত মাইল দূরে অবস্থিত। কিন্তু ভারতের সংস্কৃতি জানার এবং সেটা থেকে শেখার আগ্রহ তাদের মধ্যে একইরকম।

বন্ধুরা, চিত্রকলার দুনিয়া যেমন রঙিন, তেমন সুন্দর। আপনারা যাঁরা টিভির মাধ্যমে মন কি বাতের সঙ্গে যুক্ত হয়েছেন, তাঁরা এখনই কিছু চিত্রকলা টিভিতে দেখতে পাবেন। এই সব চিত্রকলায় আমাদের দেবী-দেবতা, নৃত্যকলা আর মহাপুরুষদের দেখে আপনাদের খুব ভালো লাগবে। এর মধ্যে আপনারা ভারতে পাওয়া যায়, এমন জীবজন্তু থেকে শুরু করে আরও অনেক জিনিস দেখতে পাবেন। এর মধ্যে তাজমহলের এক চিত্তাকর্ষক চিত্রও রয়েছে, যেটা তেরো বছরের একটি মেয়ে তৈরি করেছে। আপনারা এটা জেনে বিস্মিত হবেন যে, এই দিব্যাঙ্গ কন্যা নিজের মুখ দিয়ে এই চিত্র তৈরি করেছে। সব থেকে আকর্ষণীয় ব্যাপার হল এই সব চিত্র নির্মাতারা ভারতের নয়, মিশরের শিক্ষার্থী, ওখানকার ছাত্র-ছাত্রী। কয়েক সপ্তাহ আগেই মিশরের তেইশ হাজার শিক্ষার্থী ছবি আঁকার এক প্রতিযোগিতায় অংশ নিয়েছিল। সেখানে তাদের ভারতের সংস্কৃতি আর দুই দেশের ঐতিহাসিক সম্পর্ক তুলে ধরার চিত্র তৈরি করতে হয়েছিল। আমি এই প্রতিযোগিতায় অংশগ্রহণকারী প্রত্যেক তরুণ-তরুণীর প্রশংসা করছি। তাদের সৃজনশীলতার যতই প্রংশসা করা হোক না কেন, তা কম হবে।

বন্ধুরা, দক্ষিণ আমেরিকায় একটি দেশ হল প্যারাগুয়ে। ওখানে বসবাসকারী ভারতীয়ের সংখ্যা ১০০০-এর থেকে বেশি হবে না। প্যারাগুয়েতে একটি অদ্ভুত প্রচেষ্টা চলছে। ওখানকার ভারতীয় দূতাবাসে Erica Huber বিনামূল্যে আয়ুর্বেদিক পরামর্শ দিয়ে থাকেন। ওঁর কাছে আয়ুর্বেদের পরামর্শ নেবার জন্য প্রচুর সংখ্যায় স্থানীয় মানুষেরা ভিড় করছেন। যদিও Erica Huber ইঞ্জিনিয়ারিং নিয়ে পড়াশোনা করেছেন, কিন্তু তিনি আয়ুর্বেদের প্রতি নিবেদিত-প্রাণ। তিনি আয়ুর্বেদের সঙ্গে যুক্ত বিভিন্ন কোর্সও করেছেন, আর সময়ের সঙ্গে সঙ্গে আয়ুর্বেদে পারদর্শীও হয়ে উঠেছেন।

         বন্ধুরা, এটা আমাদের জন্য অত্যন্ত গর্বের বিষয় যে, পৃথিবীর সব থেকে প্রাচীন ভাষা হল তামিল, আর প্রত্যেক ভারতীয় এর জন্য গর্বিত। পৃথিবীর বিভিন্ন দেশে এই ভাষা শেখার লোকের সংখ্যা দিন দিন বাড়ছে। গত মাসের শেষের দিকে ফিজিতে ভারত সরকারের সাহায্যে তামিল টিচিং প্রোগ্রাম শুরু হয়। বিগত ৮০ বছরে এটাই প্রথম বার, যখন ফিজিতে অভিজ্ঞ শিক্ষকেরা তামিল ভাষা শেখাচ্ছেন। আমার এটা জেনে ভালো লাগছে যে, ফিজির ছাত্ররা তামিল ভাষা ও সংস্কৃতি শেখার ব্যাপারে অনেক আগ্রহ দেখাচ্ছে।

      বন্ধুরা, এই কথাগুলো, এই ঘটনাগুলো শুধুমাত্র সাফল্যের কাহিনি নয়। এটা আমাদের সাংস্কৃতিক ঐতিহ্যেরও গাথা। এই উদাহরণগুলো আমাদের গৌরবান্বিত করে। আর্ট থেকে আয়ুর্বেদ, ল্যাঙ্গুয়েজ থেকে মিউজিক, ভারতে এত কিছু আছে যা পৃথিবীতে ছড়িয়ে গেছে ।

      বন্ধুরা, শীতের এই মরশুমে দেশ জুড়ে খেলাধুলো ও fitness সংক্রান্ত বিভিন্ন অ্যাক্টিভিটিস হচ্ছে। আমি খুব খুশি এটা দেখে যে, মানুষ ফিটনেসকে দৈনন্দিন জীবনের অংশ করে তুলছেন। কাশ্মীরে স্কিংই থেকে শুরু করে গুজরাটে ঘুড়ি ওড়ানো পর্যন্ত, চারিদিকে খেলাধুলা নিয়ে উৎসাহ বিদ্যমান। #sundayOnCycle আর #cyclingTuesday এর মতো অভিযানের মাধ্যমে সাইকেল চালানোর উৎসাহ বাড়ছে।

 

বন্ধুরা, এখন আপনাদের একটি অনন্য বিষয়ে কথা বলতে চাই যেটা আমাদের দেশে আগত পরির্বতন এবং যুবা বন্ধুদের উদ্দীপনা ও আবেগের প্রতীক স্বরূপ। আপনি কি জানেন আমাদের বস্তারে একটি অনন্য অলিম্পিক শুরু হয়েছেএকদম ঠিক, প্রথমবার হওয়া বস্তার অলিম্পিকে বস্তারে এক নতুন বিপ্লবের সূচনা হয়েছে। আমার কাছে এটা খুবই আনন্দের কথা যে অবশেষে বস্তার অলিম্পিকের স্বপ্ন বাস্তবে রূপান্তরিত হয়েছে। আপনাদেরও জেনে ভালো লাগবে যে এলাকায় এই খেলা শুরু হয়েছে সেই এলাকাটি আগে মাওবাদী হিংসার সাক্ষী ছিল। বস্তার অলিম্পিকের প্রতীক হল - “বুনো মহিষ এবং পাহাড়ি ময়না”। এর প্রতীকগুলোর মধ্যে বস্তার অঞ্চলের সমৃদ্ধ সংস্কৃতির এক ঝলক দেখতে পাওয়া যায়। এই বস্তারে আয়োজিত অলিম্পিক মহাকুম্ভের, মূল মন্ত্রটি হল“করসায় তা বস্তার, বরসায় তা বস্তার” অর্থাৎ “খেলবে বস্তার, জিতবে বস্তার”। প্রথম বার আয়োজিত বস্তার অলিম্পিকে সাতটি জেলা মিলিয়ে প্রায় এক লক্ষ ৬৫ হাজার খেলোয়াড় অংশগ্রহণ করেছে। এটি শুধুমাত্র একটি পরিসংখ্যান নয় – এটা আমাদের যুবাদের গ্রহণ করা সংকল্পের একটি গৌরব গাথা। অ্যাথলেটিক্স, তীরন্দাজ, ব্যাডমিন্টন, ফুটবল, হকি, ওয়েট লিফটিং, ক্যারাটে, কাবাডি, খো-খো এবং ভলিবল – প্রতিটি ক্ষেত্রেই আমাদের যুবারা তাদের প্রতিভার পরিচয় রেখেছে। কারি কাশ্যপজির কাহিনি আমাকে খুবই অনুপ্রাণিত করে। ছোট্ট গ্রাম থেকে আসা কারিজি, তীরন্দাজিতে রৌপ্য পদক জিতেছেন। তিনি বলেন – “বস্তার অলিম্পিক আমাদের জন্য শুধুমাত্র একটি খেলার মাঠ নয়, এটি আমাদের জীবনে এগিয়ে যাওয়ার সুযোগ করে দিয়েছে।’’ সুকমা এলাকার পায়েল কাওয়াসি জির কথাও কম প্রেরণাদায়ক নয়। জ্যাভলিন থ্রোতে স্বর্ণপদক প্রাপক পায়েল জি বলেছেন – “শৃঙ্খলা ও কঠোর পরিশ্রমের মাধ্যমে কোনো লক্ষ্যই অর্জন করা অসম্ভব নয়।” সুকমার দোরনাপালের পুনেম সান্না জির গল্পটি নতুন ভারতের জন্য একটি অনুপ্রেরণার সমান। একসময় নকশাল প্রভাব থেকে আসা পুনেম জি আজ হুইলচেয়ারে দৌড়ে পদক জিতেছেন। ওঁর সাহস ও মনের জোর সবার জন্য অনুপ্রেরণা। কোদাগাঁওয়ের তীরন্দাজ রঞ্জু সোরি জিকে ‘বস্তার ইউথ আইকন’ হিসাবে নির্বাচন করা হয়েছে।উনি মনে করেন বস্তর Olympic দূর দুরান্তের যুবাদের রাষ্ট্রীয় মঞ্চ পর্যন্ত পৌছনোর সুযোগ দিচ্ছে।

বন্ধুরা, বস্তর Olympic কেবল একটি ক্রীড়া উদ্যোগ নয়। এটি এমন একটি মঞ্চ যেখানে প্রগতি ও ক্রীড়ার মিলন ঘটে। যেখানে আমাদের যুবারা নিজেদের প্রতিভাকে প্রজ্জ্বলিত করে তুলছেন এবং একটি নতুন ভারত নির্মাণ করছেন। আমি আপনাদের সকলের কাছে অনুরোধ করছিঃ

- নিজেদের এলাকায় এই ধরণের ক্রীড়ার উদ্যোগের আয়োজন করার প্রচেষ্টাকে উৎসাহ দিন

- #খেলেগা ভারত-জিতেগা ভারত ব্যবহার করে নিজেদের অঞ্চলের ক্রীড়া প্রতিভাদের গল্প ভাগ করে নিন

- স্থানীয় ক্রীড়া প্রতিভাদের এগিয়ে যাওয়ার সুযোগ করে দিন

 

মনে রাখবেন, খেলাধুলোর মাধ্যমে শুধু শারীরিক বিকাশ-ই নয়, সমাজের সঙ্গে sportsman spirit যুক্ত করারও এই একটি শক্তিশালী মাধ্যম।

তাহলে খুব খেলুন, নিজেকে বিকশিত করুন।

আমার প্রিয় দেশবাসী, ভারতের দুটি বিশাল কৃতিত্ব আজ সারা বিশ্বের দৃষ্টি আকর্ষণ করছে। এগুলির কথা শুনলে আপনিও গর্ব অনুভব করবেন। এই দুটি সাফল্যই স্বাস্থ্যের ক্ষেত্রে এসেছে। প্রথম সাফল্যটি এসেছে ম্যালেরিয়ার সঙ্গে লড়াইয়ে। ম্যালেরিয়া রোগটি চার হাজার বছর ধরে মানবজাতির জন্য এক বড় চ্যালেঞ্জ ছিল। স্বাধীনতার সময়ও স্বাস্থ্যের ক্ষেত্রে আমাদের সবচেয়ে বড় চ্যালেঞ্জগুলোর মধ্যে অন্যতম ছিল এটি। এক মাস থেকে ৫ বছর বয়স অবধি বাচ্চাদের প্রাণঘাতী সংক্রামক রোগগুলোর মধ্যে ম্যালেরিয়ার স্থান তিনে। আজ আমি আনন্দের সঙ্গে বলতে পারছি, দেশবাসী নিরন্তর প্রচেষ্টার মাধ্যমে এই চ্যালেঞ্জের মোকাবিলা করেছেন।

বিশ্ব স্বাস্থ্য সংগঠন WHO-এর রিপোর্ট বলছে ‘ভারতে ২০১৫ থেকে ২০২৩-এর মধ্যে ম্যালেরিয়ায় আক্রান্ত হওয়া  ও তার ফলে মৃত্যুর সংখ্যা ৮০ শতাংশ কমে গেছে। এটি কোন সামান্য কৃতিত্ব নয়। সবচেয়ে আনন্দের বিষয় এটাই যে এই সাফল্য সাধারণ মানুষের অংশীদারিত্বের মাধ্যমে এসেছে। ভারতের প্রতিটি প্রান্ত, প্রতিটি জেলা থেকে সবাই এই অভিযানে অংশ নিয়েছেন। অসমের জোরহাটের চা বাগানগুলোতে চার বছর আগে পর্যন্ত ম্যালেরিয়া মানুষের দুশ্চিন্তার একটি বড় কারণ ছিল। কিন্তু যখন একে নির্মূল করার লক্ষ্যে চা বাগানে থাকা সবাই এক জোট হন তখন এই ক্ষেত্রে অনেকাংশেই সাফল্য আসতে শুরু করে।

নিজেদের এই প্রয়াসে ওঁরা technology-র পাশাপাশি social media-ও বিশাল রূপে ব্যবহার করেন। এভাবেই হরিয়ানার কুরুক্ষেত্র জেলা ম্যালেরিয়া নিয়ন্ত্রণের লক্ষ্যে একটি খুব সুন্দর model সামনে নিয়ে এসেছেন। এখানে ম্যালেরিয়ার monitoring-এর ক্ষেত্রে জনগণের অংশগ্রহণ বেশ সফল হয়েছে। পথনাটিকা ও রেডিওর মাধ্যমে এমন বার্তায় জোর দেওয়া হয়েছে যার ফলে মশার breeding কম করতে অনেকটাই সাহায্য পাওয়া গেছে। সারা দেশে এই ধরণের নানান প্রচেষ্টার মাধ্যমেই আমরা ম্যালেরিয়ার বিরুদ্ধে যুদ্ধকে আরও দ্রুত এগিয়ে নিয়ে যেতে সক্ষম হয়েছি।

বন্ধুরা, আমাদের সচেতনতা এবং দৃঢ়সংকল্পের মাধ্যমে আমরা যে কী অর্জন করতে পারি তার দ্বিতীয় উদাহরণ হল ক্যান্সারের সঙ্গে লড়াই। বিশ্ব বিখ্যাত মেডিকেল জার্নাল ল্যানসেটের প্রকাশিত গবেষণা সত্যিই খুব আশাব্যঞ্জক। এই জার্নালের মতে, এখন ভারতে সময়মতো ক্যান্সারের চিকিৎসা শুরু করার সম্ভাবনা অনেক বেড়ে গেছে। সময়মতো চিকিৎসা বলতে, একজন ক্যান্সার রোগীর চিকিৎসা ৩০ দিনের মধ্যে শুরু করা যেতে পারে এবং আয়ুষ্মান ভারত প্রকল্প এতে বড় ভূমিকা পালন করেছে। এই প্রকল্পের কারণে ৯০% ক্যান্সার রোগী তাদের চিকিৎসা যথাসময়ে শুরু করতে পেরেছে। এমনটা হয়েছে কারণ আগে অর্থের অভাবে দরিদ্র রোগীরা ক্যান্সার রোগনির্ণয় ও চিকিৎসা থেকে সরে দাঁড়াতেন। এখন আয়ুষ্মান ভারত প্রকল্প তাদের জন্য একটি বড় ভরসা হয়ে উঠেছে। এখন তাঁরা তাঁদের চিকিৎসার জন্য এগিয়ে আসছেন। আয়ুষ্মান ভারত প্রকল্প ক্যান্সারের চিকিৎসার জন্য যে বিপুল অর্থ প্রয়োজন, সেই সমস্যাকে অনেকাংশে কমিয়ে দিয়েছে। এটাও ভালো বিষয় যে আজ মানুষ, ক্যান্সারের সময়মতো চিকিৎসার ব্যাপারে, অনেক বেশি সচেতন হয়েছেন। এই সাফল্য যতটা আমাদের স্বাস্থ্য ব্যবস্থার, চিকিৎসক, নার্স এবং কারিগরি কর্মীদের, ততটাই আমার নাগরিক ভাই ও বোনেদের। সকলের প্রচেষ্টায় ক্যান্সারকে পরাজিত করার আমাদের সংকল্প আরও শক্তিশালী হয়েছে। এই সাফল্যের কৃতিত্ব তাঁদের সকলের যারা সচেতনতা বৃদ্ধির ক্ষেত্রে উল্লেখযোগ্য অবদান রেখেছেন। ক্যান্সারের বিরুদ্ধে লড়াই করার একমাত্র মন্ত্র - Awareness, Action and Assurance। Awareness অর্থাৎ ক্যান্সার এবং তার লক্ষণ সম্পর্কে সচেতনতা। Action মানে সময়মতো রোগনির্ণয় এবং চিকিৎসা। Assurance মানে এই বিশ্বাস যে রোগীদের জন্য সবরকম সাহায্যের ব্যবস্থা থাকবে। আসুন আমরা সবাই মিলে ক্যান্সারের বিরুদ্ধে এই লড়াইকে দ্রুত এগিয়ে নিয়ে যাই এবং যতটা সম্ভব রোগীদের সাহায্য করি।

আমার প্রিয় দেশবাসী, আজ আমি আপনাদের ওড়িশার কালাহান্ডি অঞ্চলের এমন একটি প্রয়াসের কথা জানাতে চাই যারা খুব কম জল আর স্বল্প সম্পদ থাকা সত্ত্বেও সফলতার এক নতুন গাথা লিখেছে। এটি হল কালাহান্ডির সবজি ক্রান্তি। এক সময় যেখান থেকে কৃষক পালিয়ে যেতে বাধ্য হত, সেখানেই আজ কালাহান্ডির গোলামুন্ডা ব্লক vegetable hub হয়ে উঠেছে। এই পরিবর্তনটি কিভাবে এল? একে দশ জন কৃষকের একটি ছোট গোষ্ঠী শুরু করেন। এই গোষ্ঠীর সকলে মিলে একটা FPO - কৃষক উৎপাদন সংঘ স্থাপন করে, কৃষিতে আধুনিক প্রযুক্তির প্রয়োগ শুরু করা হয়, আজ ওদের এই FPO কোটি কোটি টাকার ব্যবসা করছে। আজ প্রায় ২০০-র বেশি কৃষক এই FPO -র সঙ্গে যুক্ত হয়েছেন যার মধ্যে ৪৫ জন মহিলা কৃষক সদস্যও রয়েছেন। এরা সবাই মিলে ২০০ একর জমিতে  টমেটো চাষ করছেন আর ১৫০ একর জমিতে করলার চাষ করছেন। এখন এই FPO-র বার্ষিক turnover দেড় কোটিরও বেশি হয়ে গেছে। আজ কালাহান্ডির সবজি কেবল ওড়িশার বিভিন্ন জেলাতেই নয়, দেশের অন্য রাজ্যগুলিতেও পৌঁছে যাচ্ছে আর ওখানকার কৃষকেরা এখন আলু আর পেঁয়াজ চাষ করার নতুন কলাকৌশলও শিখছে।
বন্ধুরা, কালাহান্ডির এই সাফল্য আমাদের এই শিক্ষা দেয় যে সংকল্পশক্তি আর সমষ্টিগত প্রচেষ্টায় কি না সম্ভব। আমি আপনাদের সবার কাছে অনুরোধ করছি
- নিজেদের এলাকার FPO গুলিকে উৎসাহ দিন।
- কৃষক উৎপাদন গোষ্ঠীগুলির সঙ্গে যুক্ত হয়ে তাদের মজবুত করে তুলুন।
মনে রাখবেন ক্ষুদ্র প্রচেষ্টার মাধ্যমেও বড় পরিবর্তন ঘটানো সম্ভব। আমাদের শুধু দৃঢ় সংকল্প আর সম্মিলিত ভাবনার প্রয়োজন।

বন্ধুরা, আজকের ‘মন কি বাত’-এ আমরা শুনলাম কি ভাবে আমাদের ভারত বৈচিত্র্যের মধ্যে ঐক্য নিয়ে এগিয়ে চলেছে। তা সে খেলার মাঠ হোক বা বিজ্ঞানের ক্ষেত্র, স্বাস্থ্য হোক বা শিক্ষাপ্রতিটি ক্ষেত্রেই ভারত নিত্য নতুন উচ্চতা লাভ করে চলেছে। আমরা এক পরিবারের মতো মিলেমিশে প্রতিটি চ্যালেঞ্জের মোকাবিলা করেছি এবং সাফল্য লাভ করেছি। ২০১৪ সাল থেকে শুরু হওয়া ‘মন কি বাত’-এর ১১৬টি পর্বে আমি দেখেছি যে ‘মন কি বাত’ দেশের সামগ্রিক শক্তির এক জীবন্ত দলিল হয়ে উঠেছে। আপনারা সবাই এই অনুষ্ঠানকে আপন করে নিয়েছেন। প্রতি মাসে আপনারা আপনাদের চিন্তা-ভাবনা ও প্রচেষ্টা আমাদের সঙ্গে ভাগ করে নিয়েছেন। কখনো কোনো young innovator-এর আইডিয়াতে প্রভাবিত হয়েছি, তো কখনো কোন কন্যার achievement-এ গৌরবান্বিত হই। এটা আপনাদের সবার মিলিত প্রচেষ্টা, যা দেশের প্রতিটি প্রান্ত থেকে ইতিবাচক শক্তি সঞ্চার করেছে। ‘মন কি বাত’ এইরকম ইতিবাচক শক্তি বিকাশের মঞ্চ হয়ে উঠেছে, এখন ২০২৫ কড়া নাড়ছে। আসন্ন বছরে ‘মন কি বাত’-এর মাধ্যমে আমরা উৎসাহব্যঞ্জক প্রচেষ্টার বিষয়গুলো ভাগ করে নেব। আমার বিশ্বাস, দেশবাসীর ইতিবাচক চিন্তা ও innovation-এর ভাবনায় ভারত নতুন উচ্চতার শিখরে পৌঁছবে। আপনারা নিজেদের আশেপাশের unique প্রচেষ্টাকে #Mannkibaat-এর সঙ্গে share করতে থাকুন। আমি জানি যে পরের বছরের প্রতিটা ‘মন কি বাত’-এ আমাদের কাছে একে অপরের সঙ্গে ভাগ করে নেওয়ার মতো অনেক কিছু থাকবে। আপনাদের সবাইকে জানাই ২০২৫-এর জন্য অনেক শুভকামনা। সুস্থ থাকুন, আনন্দে থাকুন, Fit India Movement-এর সঙ্গে যুক্ত হয়ে যান, নিজেকেও fit রাখুন। জীবনে উন্নতি করতে থাকুন। অনেক অনেক ধন্যবাদ।